बात 1992-93 की है जब में केवल समाचार पढ़ता खास तौर पर रूमा सिन्हा अौर जफर इरशाद की लिखी खबरे क्यों कि मेरी रूचि शुरू से इस विषय पर रही । इन दोनों को पढ़ते -पढ़ते मैने लिखना सीखा अौर स्वंत्र चेतना से शुरूअात किया उस समय यहां संपादक नरेंद्र भदौरिया जी थे...इसके बाद जो सफर शुरू हुअा वह कुबेर टाइम्स, हिन्दुस्तान, अमर उजाला, जनसत्ता एक्सप्रेसे से अाज तक जारी है। रूमा सिन्हा अौर जफर इरशाद से पहले मेडिकल एंड साइंस पर कोई ध्यान नहीं देता था छपता भी तो केवल इतना कि सेमीनार शुरू अौर खत्म किसने क्या कहा ...कैसे बीमारी पहचानी जाए, किसने क्या शोध किया यह सब नहीं छपता था . इससे शोध करने वाले वैज्ञानिकों अौर काम करने वाले चिकित्सक भी केवल अपनी बिरादरी में चर्चिच होते थे लेकिन पत्रकारिता की नई शुरूअात करने वाले इन दोनों लोगों को कारण इन्हें भी चर्चा मिलने लगी। रूमा सिन्हा अौर जफर इरशाद मेरे मेंटर है...इनकी लेखऩी को एक बार फिर नमन करता हूं....
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