जागरण संवाददाता, लखनऊ : जीन में बदलाव और ऑटो इम्यून डिजीज के बीच गहरा रिश्ता है। ऑटो इम्यून डिजीज में कई जीन की भूमिका होती है, लेकिन ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (एचएलए) जीन की काफी बड़ी भूमिका होती है। जीन में बदलाव होने पर उससे बनने वाले प्रोटीन के कारण शरीर का इम्यून सिस्टम शरीर के खिलाफ ही काम करने लगता है। 1यह जानकारी संजय गांधी पीजीआइ के पूर्व निदेशक एवं वैज्ञानिक स्वर्गीय प्रो.एसएस अग्रवाल की याद में आयोजित कार्यक्रम में जिपमर पांडिचेरी के क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो.वीर सिंह नेगी ने जेनेटिक्स ऑफ ऑटोइम्यून विषय पर दी। प्रो.नेगी ने बताया कि किसी व्यक्ति में ऑटो इम्यून डिजीज है तो उसके लड़केऔर लड़की में डिजीज की आशंका दो से चार फीसद सामान्य लोगों के मुकाबले अधिक होगी। प्रो.नेगी बताया कि महिलाओं में आटोइम्यून डिजीज 25 से 30 फीसद अधिक होती है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान उनके शरीर में तमाम हारमोन बदलाव होता है इसके साथ महिलाओं में सेक्स हारमोन एस्ट्रोजन की भी ऑटो इम्यून में भूमिका है। उन्होंने बताया कि इंफेक्शन कम होने के साथ ऑटो इम्यून डिजीज की आशंका बढ़ जाती है। इसलिए बहुत सफाई पसंद होना भी ठीक नहीं है। जीन के म्यूटेशन में वातावरण का भी अहम रोल है। सौ तरह के ऑटो इम्यून डिजीज होती है जिसमें टाइप वन डायबिटीज, रिह्यमेटायड अर्थराइिटस, एंकलाइजिंग स्पोंडलाइिटस काफी कॉमन है। इस मौके पर क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग की प्रो. अमिता अग्रवाल, प्रो. विकास अग्रवाल, प्रो.दुर्गा प्रसन्ना, क्लीनिकल जेनेटिक्स विभाग की प्रमुख प्रो. शुभा फड़के, मेडिकल विवि के प्रो. सिद्धार्थ दास, प्रो. विनीता दास, सीआरआइ के पूर्व निदेशक प्रो. नित्यानंद सहित अन्य लोगों ने कहा कि प्रो.एसएस अग्रवाल की देन है कि देश में क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी और जेनेटिक्स विधा स्थापित हुई। अब इसका विस्तार हो रहा है।
1इस मौके पर निदेशक प्रो. राकेश कपूर ने कहा कि
प्रो. एसएस हमारे टीचर भी रहे। जब पीजीआइ ज्वाइन किया तो यहां भी वह हमारे मेंटर साबित हुए। उन्होंने कई सलाह दी जिस पर आज भी चल रहा हूं। जेनेटिक्स और इम्यूनोलॉजी का हर बीमारी के इलाज में अहम् रोल है।
प्रो. एसएस हमारे टीचर भी रहे। जब पीजीआइ ज्वाइन किया तो यहां भी वह हमारे मेंटर साबित हुए। उन्होंने कई सलाह दी जिस पर आज भी चल रहा हूं। जेनेटिक्स और इम्यूनोलॉजी का हर बीमारी के इलाज में अहम् रोल है।
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