रविवार, 30 जुलाई 2017

निमोनिया ग्रस्त 17.3 फीसदी बच्चों में होती है अाक्सीजन की कमी

निमोनिया ग्रस्त 17.3 फीसदी बच्चों में होती है अाक्सीजन की कमी 

निमोनिया ग्रस्त बच्चों का जीवन बचाने के लिए भारत अौर फ्रांस ने मिल कर बताया उपाय

एचएमपीवी और अारएसवी वायरस के संक्रमण से बढ जाती है अाक्सीजन के कमी की अाशंका





कुमार संजय। लखनऊ

निमोनिया के कारण बच्चों की होने वाली मौत के कारण अौर निवारण का पता फ्रांस अौर भारत के वैज्ञानिकों ने लगा लिया है। विशेषज्ञों ने कहा कि शरीर में अाक्सीजन की कमी( हाइपोक्सीमिया) निमोनिया की गंभीरता को बढ़ा देता है जिसके कारण कई बार बच्चे की मौत हो सकती है। विशेषज्ञों ने देखा कि ह्यूमन मेटा न्यूमोवायरस ( एचएमपीवी) अौर रिस्पाइरेटरी सिनसाइटियल वायरस( अारसीवी) के संक्रमण से शरीर में अाक्सीजन की कमी की अाशंका बढ़ जाती है। यह भी देखा कि यदि स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोकोकस फेफडे से रक्त  में पहुंच जाता है अौर रक्त में प्रोकैल्सीटोनिन की मात्रा 50 मिलीग्राम मिली लीटर से अधिक है तो भी शरीर में अाक्सीजन की कमी हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि सीने की नीचे रिब्स की हड्डी की अंदर की तरफ अौर होठ अौर जीभ नीला हो रहा है तो यह अाक्सीजन की कमी के संकेत है। निमोनिया ग्रस्त बच्चों की स्थित गंभीर न हो इसके लिए इन वायरस पर नजर रखने की जरूरत है देखा गया है कि जिन 405 निमोनिया ग्रस्त बच्चों में शोध हुअा उनमें से 17.3 फीसदी बच्चों के शरीर में अाक्सीजन की कमी हुई।  शोध में मेडिकल विवि से डा. शैली अवस्थी अौर डा. नितिन पाण्डेय शामिल हुए। यह शोध भारत अौर फ्रांस ने मिल कर ग्लोबल एप्रोच टू बायोलाजिकल रिसर्च इंफेक्शियस डिजीज एंड इपीडियोमिक्स इन टू इनकम कंट्री नेट वर्क ने किया। शोध को अमेरिकल जर्नल अाफ ट्रोपिकल मेडिसिन एंड हाइिजन ने स्वीकार करते हुए कहा है कि निमोनिया के मामले में शरीर में अक्सीजन के स्तर पर नजर रखने की जरूरत है। 

अाक्सीजन की कमी चार गुना बढा देता है खतरा

विशेषज्ञों ने कहा कि शरीर में अाक्सीजन की कमी होने पर बच्चे की जीवन पर खतरा चार गुना तक बढ़ जाता है। हाइपोक्सीमिया खतरे का बड़ा सूचक है। विशेषज्ञों का कहना है पांच साल से कम उम्र को बच्चों के कुल मौत में 15 फीसदी तक निमोनिया कारण साबित होता है।  

पल्स अक्सीमीटर से देखें अाक्सीजन 

शरीर में अाक्सीजन का स्तर जानने के लिए हर सेंटर पर पल्स अाक्सीमीटर होना चाहिए जिससे ऊंगली पर लगाने से संतृप्त अाक्सीजन (एस अो टू) का पता लगता है। देखा गया कि हाइपोक्सीमिया वाले बच्चों में अाक्सीजन का स्तर 80 से 87 फीसदी था जबकि दूसरे बच्चों में 94 से 97 फीसदी था।  

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