लाखों रूपए से बनी पीजीआइ के नेफ्रोलाजी लैब पर क्या लगेगा ताला
विभाग के दूसरे संकाय सदस्य को नहीं दी जा रही जिम्मेदारी
पहले भी जेनटिक्स विभाग में बंद हो चुकी है जांच
कुमार संजय। लखनऊ
संजय गांधी पीजीआइ के नेफ्रोलाजी विभाग की लाखों रूपए से बनी लैब में ताला बंद करने की तैयारी चल रही है क्योंकि अागे लैब का संचालन कौन करेगा यह तय नहीं पाया है। इस लैब का संचालन विभाग के प्रो.अारके शर्मा कर रहे है लेकिन अक्टूबर 2018 वह रिटायर होने वाले है अागे लैब चलती रहे इसके लिए पहले से ही विभाग के किसी संकाय सदस्यों को हस्तांरित कर देना चाहिए जिससे वह संकाय सदस्य लैब की कार्य प्रणाली से फेमलियर हो जाए लेकिन एेसा नहीं किया जा रहा है । सूत्रों का कहना है कि लैब में किसी दूसरे विभाग के संकाय सदस्य की इंट्री तक बैन है एेसे में पहले से यदि किसी को लैब से जोडा जाएगा तो लैब बंद हो सकती है , जैसे पहले जेनटिक्स विभाग में हो रही एचएलए टाइपिंग बंद हो गयी। संस्थान फिर वही गल्ती दोहराने की राह पर है। संस्थान के नेफ्रोलाजी विभाग में तमाम हाई टेक मशीने लगा कर तमाम वह जांचे शुरू की गयी जो पहले से किसी -किसी लैब में हो रही थी लेकिन तर्क यह दिया गया कि दूसरे विभाग रिपोर्ट देर से देते है इसलिए विभाग में ही जांच होने से मरीजों को जल्दी जांच रिपोर्ट मिलेगी। इस तर्क के अाधार पर चल रही लैब अागे कैसे चलेगी इस पर संस्थान प्रशासन कोई कार्य योजना नहीं तैयार कर रहा है। इस बारे में निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने कहा कि जो संस्थान हित में होगा वह किया जाएगा।
नेफ्रोलाजी में यह हैै मशीने
फ्लोसाइटोमीटप जिसकी कीमत लगभग 50 लाख, ल्यूमिनेक्स कीमत लगभग 80 लाख, एचएलए टाइपिंग मशीन लगभग 36 लाख इसके अलावा चार अाटो एनलाइजर सहित तमाम लाखो की मशीनों को साथ 20 से अधिक पैरामेडिकल स्टाफ है।
नहीं लिया जेनटिक्स से सीख
संस्थान के जेनटिक्स विभाग में किडनी ट्रांसप्लांट से पहले सीडीसी जांच होती है जो अब बंद हो गयी है। संस्थान में यह जांच लगभग 13 सौ में होती है लेकिन अब मरीजों को निजि पैथोलाजी में जांच करानी पड़ रही है जहां जांच की कीमत 23 सौ रूपया है। इसी तरह एचएलए टाइपिंग भी विभाग में बंद हो गयी।
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