सोमवार, 31 जुलाई 2017

सावित्री का सम्मान

संजय गांधी पीजीआइ की कर्मचारी नेता , इंटक महिला शाखा की जिला अध्यक्ष सावित्री सिंह को उनके सामाजिक कार्य के लिए शुभम सेवा समिति ने सम्मानित किया। जीफ पोस्ट जरनल अारके प्रसाद ने सम्मानित किया

स्वाद ग्रंथि कमजोर होने से बढ़ता है मोटापा

स्वाद ग्रंथि कमजोर होने से बढ़ता है मोटापा

मोटापा बढ़ने के लिए आपकी जीभ भी जिम्मेदार होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जिन लोगों की स्वाद ग्रंथि कमजोर होती है, वे खाने में ज्यादा मीठा पसंद करते हैं। इस कारण से खाने में कैलोरी की मात्र ज्यादा रहती है और मोटापे का खतरा बढ़ जाता है। 1अमेरिका की कार्नेल यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर रॉबिन डेंडो ने कहा कि हमने पाया कि बहुत से लोगों की जीभ मीठे के प्रति कम संवेदनशील होती है। ऐसे लोग खाने में ज्यादा मीठे का इस्तेमाल करते हैं। 1वैज्ञानिकों ने कहा कि अगर मोटापाग्रस्त व्यक्ति स्वाद ग्रंथि की कमजोरी से भी जूझ रहा हो तो स्थिति और ज्यादा चिंताजनक हो जाती है। डेंडो ने कहा कि हमें समझना होगा कि स्वाद अनुभव करने की क्षमता मोटापे में बड़ी भूमिका निभाती है। इसको ध्यान में रखते हुए भविष्य में मोटापे से निपटने के अन्य कारगर तरीके खोजे जा सकते हैं

अवसाद से दिल के मरीजों की जान को दोगुना खतरा

दिल की बीमारियों से जूझ रहे व्यक्ति को यदि अवसाद हो जाए तो उसकी असमय मौत का खतरा दोगुना तक बढ़ जाता है। ताजा शोध के मुताबिक, अन्य कारणों की तुलना में अवसाद का दिल के मरीजों पर ज्यादा दुष्प्रभाव पड़ता है। किसी व्यक्ति में दिल की बीमारी के लक्षण मिलने के कई साल बाद तक भी तनाव की जांच और इलाज का विशेष ध्यान रखना चाहिए। 1अवसाद होना ऐसे लोगों में असमय मौत के खतरे को दोगुना कर देता है। शोध में पाया गया कि दिल के मरीजों पर उम्र, डायबिटीज, हाई ब्लडप्रेशर और स्ट्रोक से ज्यादा खतरा अवसाद के कारण असमय मौत का रहता है। इस शोध में 24,138 मरीजों को शामिल किया गया था। अध्ययन में हालांकि यह सामने नहीं आया है कि अवसाद के कारण यह खतरा बढ़ता क्यों है?



पीजीआइ संविदा कर्मचारियों ने लगायी मुख्यमंत्री से गुहार

पीजीआइ संविदा कर्मचारियों ने लगायी मुख्यमंत्री से गुहार

डाटा इंट्री का मानदेय सफाई कर्मचारी से भी कम
 

संजय गांधी पीजीआइ के संविदा कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री से गुहार लगाते हुए कहा कि उन्हें सफाई कर्मचारियों से भी कम वेतन मिल रहा है। कर्मचारियों का कहना है कि संस्थान के संविदा कर्मचारियों को नियोजन 59 के तहत न्यूमनमत वेतन दिया जाता है जिसमें पीजीआइ जैसे शामिल ही नहीं है । पूर्व निदेशक ने श्रमायुक्त ने स्वीकार किया है कि इस नियम में पीजीआइ शामिल नहीं है। इसके अलावा संस्थान में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1984 के तहत वेतन तय किया गया है इसमें सरकारी अस्पताल शामिल नहीं है। मांग की है कि उन्हें कुशल एौर अर्ध कुशल कर्मचारी की तरह वेतन दिया जाए। संस्थान में डाटा इंट्री अापरेटर,कैशियर,  पेशेंट हेल्पर सहित कई पदों पर संविदा कर्मचारी तैनात है। इसके  अलावा छुट्टी अौर दूसरी सुविधाएं दी जाएं।

रविवार, 30 जुलाई 2017

निमोनिया ग्रस्त 17.3 फीसदी बच्चों में होती है अाक्सीजन की कमी

निमोनिया ग्रस्त 17.3 फीसदी बच्चों में होती है अाक्सीजन की कमी 

निमोनिया ग्रस्त बच्चों का जीवन बचाने के लिए भारत अौर फ्रांस ने मिल कर बताया उपाय

एचएमपीवी और अारएसवी वायरस के संक्रमण से बढ जाती है अाक्सीजन के कमी की अाशंका





कुमार संजय। लखनऊ

निमोनिया के कारण बच्चों की होने वाली मौत के कारण अौर निवारण का पता फ्रांस अौर भारत के वैज्ञानिकों ने लगा लिया है। विशेषज्ञों ने कहा कि शरीर में अाक्सीजन की कमी( हाइपोक्सीमिया) निमोनिया की गंभीरता को बढ़ा देता है जिसके कारण कई बार बच्चे की मौत हो सकती है। विशेषज्ञों ने देखा कि ह्यूमन मेटा न्यूमोवायरस ( एचएमपीवी) अौर रिस्पाइरेटरी सिनसाइटियल वायरस( अारसीवी) के संक्रमण से शरीर में अाक्सीजन की कमी की अाशंका बढ़ जाती है। यह भी देखा कि यदि स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोकोकस फेफडे से रक्त  में पहुंच जाता है अौर रक्त में प्रोकैल्सीटोनिन की मात्रा 50 मिलीग्राम मिली लीटर से अधिक है तो भी शरीर में अाक्सीजन की कमी हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि सीने की नीचे रिब्स की हड्डी की अंदर की तरफ अौर होठ अौर जीभ नीला हो रहा है तो यह अाक्सीजन की कमी के संकेत है। निमोनिया ग्रस्त बच्चों की स्थित गंभीर न हो इसके लिए इन वायरस पर नजर रखने की जरूरत है देखा गया है कि जिन 405 निमोनिया ग्रस्त बच्चों में शोध हुअा उनमें से 17.3 फीसदी बच्चों के शरीर में अाक्सीजन की कमी हुई।  शोध में मेडिकल विवि से डा. शैली अवस्थी अौर डा. नितिन पाण्डेय शामिल हुए। यह शोध भारत अौर फ्रांस ने मिल कर ग्लोबल एप्रोच टू बायोलाजिकल रिसर्च इंफेक्शियस डिजीज एंड इपीडियोमिक्स इन टू इनकम कंट्री नेट वर्क ने किया। शोध को अमेरिकल जर्नल अाफ ट्रोपिकल मेडिसिन एंड हाइिजन ने स्वीकार करते हुए कहा है कि निमोनिया के मामले में शरीर में अक्सीजन के स्तर पर नजर रखने की जरूरत है। 

अाक्सीजन की कमी चार गुना बढा देता है खतरा

विशेषज्ञों ने कहा कि शरीर में अाक्सीजन की कमी होने पर बच्चे की जीवन पर खतरा चार गुना तक बढ़ जाता है। हाइपोक्सीमिया खतरे का बड़ा सूचक है। विशेषज्ञों का कहना है पांच साल से कम उम्र को बच्चों के कुल मौत में 15 फीसदी तक निमोनिया कारण साबित होता है।  

पल्स अक्सीमीटर से देखें अाक्सीजन 

शरीर में अाक्सीजन का स्तर जानने के लिए हर सेंटर पर पल्स अाक्सीमीटर होना चाहिए जिससे ऊंगली पर लगाने से संतृप्त अाक्सीजन (एस अो टू) का पता लगता है। देखा गया कि हाइपोक्सीमिया वाले बच्चों में अाक्सीजन का स्तर 80 से 87 फीसदी था जबकि दूसरे बच्चों में 94 से 97 फीसदी था।  

माननीय मोदी जी का संसदीय क्षेत्र है जलमग्न व गड्ढायुक्त ..............



            एक तरफ़ काशी में जहाँ श्रावण माह में शिव सेवा में लीन कावाँरियों की भारी भीड़ देखने को मिलती है तो वहीं दूसरी तरफ़ आवागमन वाले मार्गों पर भारी जलभराव व बड़े बड़े गड्डो से भी दो चार होना भी किसी आश्चर्य से कम नहीँ है। क्योटो की तर्ज पर बनने वाला काशी आज सिर्फ उपहास बन कर ही रह गया है। प्रशासन भी मात्र मूकदर्शक की भाँति ही अपना रोल अदा करता दिख रहा है यहाँ । यह कह पाना तो अभी सम्भव नहीँ है कि यह काशी कब तक क्योटो बन पायेगा , परंतु कहीँ यह मात्र उपहास ही न बन के रह जाये । जब माननीय मोदी जी के संसदीय क्षेत्र का यह हाल है तो फ़िर आस पास के अन्य क्षेत्रो की क्या व्यवस्था होगी इसका अंदाजा तो आप स्वयम ही लगा सकते हैं। जलभराव से त्रस्त है काशी की जनता ॥............

शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

हिपेटाइटिस हाई रिस्क ग्रुप के बचाव के लिए पीजीआइ चलाएगा मुहिम

पीजीआइ में हिपेटाइिटस कंट्रोल सेल ने किया अायोजन

हिपेटाइटिस हाई रिस्क ग्रुप के बचाव के लिए पीजीआइ चलाएगा मुहिम

हेल्थ वर्कर में अधिक है हिपेटाइिटस का खतरा



संजय गांधी पीजीआइ  हाई रिस्क ग्रुप को हिपेटाइटिस से बचाने के लिए मुहिम शुरू करेगा। संस्थान के गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो.वीए सारस्वत ने बताया कि हेल्थ केयर वर्कर, वेस्ट मैनजमेंट वर्कर, एचअाईवी ग्रस्त , इम्यूनोथिरेपी सहित अन्य में हिपेटाइिटस बी एवं सी की अधिक अाशंका रहती है। इस लिए इनके बचाव के लिए सभी अस्पतालों को अभियान शुरू करना चाहिए। संस्थान ने अपने हेल्थ केयर वर्कर के लिए हिपेटाइटिस कंट्रोल सेल शुरू किया है। इसी तर्ज पर राजधानी के दूसरे अस्पताल , निजि अस्पताल को शुरू करने के लिए एक मंच पर लाने की कोशिश कर रहे है। विश्व हिपेटाइिटस दिवस के मौके पर अायोजित जागरूकता कार्यक्रम में नर्सिग होम एसोसिएशन के डा. जीसी मक्कड़ अौर डा. अनूप अग्रवाल , मेडिकल विवि के डा. हिमांशु , पीएमएस के डा. अोंकार यादव सहित कई लोगों पीजीआइ पहुंच कर कार्यक्रम शुरू पर रूचि दिखायी है। प्रो.सारस्वत ने कहा कि हमने पहले अपने घर को ठीक करने के लिए कंट्रोल सेल शुरू किया । एक साल में 2030 कर्मचारियों का डाटा तैयार किया है अब इनमें एंटी एचबीएस स्तर देख कर अागे बचाव की योजना पर काम करेंगे। बताया कि इसमें संविदा कर्मचारियों को भी शामिल किया जाएगा लेकिन अभी इस पर खर्च के लिए स्रोत की व्यवस्था हो रही है। प्रो.सारस्वत ने बताया कि हिपेटाइटिस बी के तीन टीके के एक महीने के बाद  बाद यदि एंटी एचबीएस का स्तर 100 से अधिक है तो इसका मतलब वह व्यकित् हिपेटाइटिस बी से सुरझित है। इस मैके पर मेडिकल सोशल वेलफेयर अफीसर डा. रमेश कुमार, हिपेटाइटिस कंट्रोल सेल की पीआरओ कुसुम यादव, तकनीकि अधिकारी टीएस नेगी ने भी जानकारी दी।    

निडिल इंजरी हेल्प लाइन 

पीजीआइ ने अभी इंटरनल निडिल इंजरी हेल्प लाइन शुरू किया इसी तरह सभी अस्पतालों को शुरू करना चाहिए। यदि हेल्थ वर्कर या केयर टेकर को हिपेटाइिटस ग्रस्त मरीज के इलाज के दौरान निडिन इंजरी या कट एक्सोपजर हुअा है तो हमें इस हेल्प लाइन पर सूचना मिलती है। एंटी एचबीएस यदि 10 से अधिक होता है तो कुछ करने की जरूरत नहीं होती है। हेल्प लाइन के इंचार्ज प्रो.अमित गोयल ने बताया कि एक साल में 39 लोगों में निडिल इंजरी रिपोर्ट हुई जिसमें से 14 फीसदी लोगों को हिपेटाइिटस बी या सी मरीज से इंजरी हुई। एंटी एचबीएस टाइटर कम होने पर इम्यूनोग्लोबलीन दिया जाता है। किसी दूसरे अस्पताल में काम करने वाले को यदि हिपेटाइटिस बी या सी मरीज का रक्त निकालते समय इंजरी होती है तो वह विभाग के अोपीडी  में सलाह ले सकता है।  



कैंसर के कहां, कैसे मरीज नहीं है अांकडे तो कैसे हो सही इलाज की प्लानिंग

कैंसर के कहां, कैसे मरीज  नहीं है अांकडे तो कैसे हो सही इलाज की प्लानिंग

पीजीआइ में हास्पिटल बेस्ड कैंसर रजिस्ट्री पर वर्कशाप

प्रदेश के केवल तीन अस्पताल जुटा रहे है अांकडा



प्रदेश में किस तरह के कैंसर के कितने मरीज है इसकी सही जानकारी नहीं है जिसके कारण इलाज अौर बचाव के लिए सही प्लानिंग नहीं बन पा रही है। प्रदेश में 40 से अधिक अस्पताल है जहां कैंसर का इलाज होता है लेकिन केवल तीन अस्पताल संजय गांधी पीजीआइ, कमला नेहरू मेडिकल कालेज इलाहाबाद अौर बीएचयू हास्पिटल बेस्ड कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम में शामिल है। एसजीपीजीआइ में कैंसर रजिस्ट्री पर अायोजित कार्य शाला में नेशनल सेंटर फार डिजीज इंफारमेटिक्स एंड रिसर्च के निदेशक डा. प्रशांत माथुर  ने कहा कि भारतीय चिकित्सा अुनसंधान परिषद ने हास्पिटल बेस्ड कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम शुरू किया जिसमें अस्पताल को मरीज कैंसर के किस स्टेज में अाया। इलाज मिला तो कितना सफल रहा। इलाज के बाद कब तक ठीक रहा। इलाज में क्या परेशानी अायी जैसी तमाम जानकारी अान लाइन फीड किया जाता है। इसके अाधार पर हमारा संस्थान किस तरह का कैंसर किस इलाके में पता कर सरकार को रिपोर्ट देते है जिसके अाधार पर सरकार इलाज अौर बचाव के लिए प्रभावी कदम उठाती है। सही अांकडो की जानकारी न होने पर सही प्लानिंग संभव नहीं है। प्रदेश में केवल तीन अस्पताल अभी तक इस प्रोग्राम में शामिल हुए है। कहा कि देश के अाठ राज्य कैंसर की जानकारी देने के लिए नियम बना दिए है जिसमें उत्तर प्रदेश शामिल नहीं है।  पीजीआई के प्रो.नीरज रस्तोगी ने बताया कि अांकडो की सही जनाकारी होने पर ट्रीटमेंट के लिए कितने मशीन , मानव संसाधन की जरूरत है इसकी प्लानिंग कर जल्दी इलाज दिया जा सकता है। इसी के अाधार पर सरकार से हम बजट मांग सकते है।   

पीजीआइ में रजिस्ट्री टीम
प्रो.राजेश हर्षवर्धन ने बताया कि पीजीआइ में प्रो.शालीन कुमार, प्रो. पुनीता लाल, प्रो.राकेश पाण्डेय , प्रो.उत्तम सिंह अौर प्रो.मारिया दास की टीम है जो कैंसर के मरीजों की सारी जानकारी रजिस्ट्री में फीड करती है। पीजीआइ में हर साल लगभग तीन हजार कैंसर के नए मरीज अाते है। देखा गया है कि पुरूषों में मुंह अौर फेफडे के कैंसर अौर महिलाअों में स्तन अौर सर्विक्स के कैंसर अधिक होते है। 40 से 50 फीसदी मरीज कैंसर के लास्ट स्टेज में अाते है। भारत सरकार ने तीन तरह के कैसर का पता जल्दी लगाने के लिए स्क्रीनिंग प्रोग्राम शुरू किया है जिसमें ब्रेस्ट, सर्विक्स अौर हेड नेक कैंसर शामिल है।





गुरुवार, 27 जुलाई 2017

पीजीआइ----अब इमरजेंसी के मामले में एक्सीलेंस अाफ सेंटर का सपना होगा साकार

पीजीआइ गवर्निंग बाडी की बैठक में हुए कई फैसले
 
अब इमरजेंसी के मामले में एक्सीलेंस अाफ सेंटर का सपना होगा साकार

6 महीने में पीजीआइ ट्रामा सेंटर होगा शुरू

ट्रामा सेंटर अधिकारिक रूप से पीजीआइ को मिला



संजय गांधी पीजीआइ के निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने इमरजेंसी मेडिसिन सेंटर फार एक्सीलेंस का जो खाका तैयार किया था वह साकार हो सकता है। संस्थान प्रशासन ने इस पर होने वाले खर्च 453 करोड़ को ब्योरा सरकार को पिछली सरकार को सौंपा था जिसमें तय हुअा था । तय हुअा था कि संस्थान स्टेट बैंक से लोन लेकर सेंटर स्थापित करें कर्ज की राशि की ईएमआई सरकार अौर संस्थान दोनों वहन करें लेकिन इस योजना पर विराम लग गया था लेकिन गुरूवार को शासन में संस्थान के गवर्निग बाडी की बैठक में इस योजना को शुरू करने पर सहमति बनी है। शासी निकाय की  बैठक में तय हुअा कि संस्थान के कर्मचारियों का कैडर रीसटक्चरिंग एक -एक करके न भेजा जाए संस्थान के सभी सवर्ग के कर्मचारियों का प्रस्ताव एक साथ भेजा जाए। इसके लिए किसी एजेंसी या पूर्व अाईएएस की सेवा ली जा सकती है। बैठक में ट्रामा सेंटर टू को पीजीआइ को सौंप दिया गया है। अब मेडिकल विवि इसे संस्थान को हैंड अोवर करेगा। बैठक में तय हुअा कि मौजूदा संसाधन के अाधार पर 6 महीने में इसे शुरू किया जाए। इसके अलावा शासी निकाय में कहा गया कि संस्थान विजन डाक्यूमेंट बना कर सरकार को सौंपे जिससे संस्थान अाने वाले बीस साल में कैसे इलाज अौर तकनीक के क्षेत्र में अग्रणी रहे इसके लिए काम शुरू हो सके। संस्थान के निदेशक के विजन का ही नतीजा है कि संस्थान में सेंटर फार एक्सीलेंस इन इमरजेंसी मेडिसिन पर बात हो रही है। बैठक में प्रमुख सचिव राजीव कुमार, निदेशक प्रो.राकेश कपूर, चिकित्सा शिक्षा सचिव अनीता जैन भटनागर, वित्त सचिव , विशेष इनवाइटी राम निवास जैन, इंडोसर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो.एसके मिश्रा, इंडोक्राइनोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो.ईश भाटिया, रेडियोलाजी विभाग  की प्रो. नमिता मोहिंद्रा सहित कई लोग शामिल थे।    

 

ब्रेन स्ट्रोक ,गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ब्लीड और इंफेक्शियस डिजीज का संभव होगा इलाज


 निदेशक प्रो. राकेश कपूर का कहना है कि  प्रदेश में स्ट्रोक, संक्रामक बीमारियों के इलाज के सुपर स्पेशलाइज्ड यूनिट नहीं है जिसके कारण तमाम लोगों की मौत हो जाती है। इनकों सही और अच्छा इलाज उपलब्ध कराने के लिए कार्य़ योजना तैयार की गयी है ।  इस योजना में इमरजेंसी मेडिसिन की दिशा काम कर रहे है अमेरिका के वाल्टीमोर एवं न्यू जर्सी के विशेषज्ञों को भी शामिल किया जिससे इलाज का स्तर इंटरनेशनल लेवल का हो। इस योजना के तहत 210 वेड का रखा गया है। पड़ने के एक घंटे के अंदर सभी तरह का इलाज देना संभव होगा। इसमें स्ट्रोक यूनिट बनाने का प्रस्ताव है जिसमें न्यूरो लाजिस्ट, न्यूरो सर्जन एवं इंटरवेंशन रेडियोलाजिस्ट की टीम इस केस को मैनेज करेंगी। कहा कि स्ट्रोक पड़ने के दो से तीन घंटे के अंदर मरीज को लाने पर उसे काफी हद तक बचाया जा सकता है लेकिन संसाधन के आभाव में कई बार समय से मरीज के आने के बाद भी सही इलाज नहीं मिल पाता है। 


जीआई ब्लीड यूनिट  

गैस्ट्रोइंटेशटाइनल ब्लीड के साथ आने वाले लोगों को भी तुरंत इलाज की जरूरत होती है। इस यूनिट गैस्ट्रोइंट्रोलाजिस्ट   की टीम होगी जो इस परेशानी के आत आने वालो मरीज  को तुंरत इंडोस्कोप या दूसरी तकनीक से पेट में हो रक्त स्राव को रोक कर मरीजों की जिंदगी बचाने का काम करेंगे। देखा गया है कि समय से इलाज न मिलने के कारण 80 फीसदी लोगों का जीवन खतरे में पड़ जाता है। बताया कि तीस बेड हाई डिपेंडेंसी आईसीयू रखा गया है। 

बुधवार, 26 जुलाई 2017

मेडिकल विवि अौर पीजीआई ने खोजा मूड डिस्अार्डर का नया कारण

 मेडिकल विवि अौर पीजीआई ने खोजा मूड डिस्अार्डर का नया कारण

मूड डिसआर्डर का शिकार बना सकता है दिमाग का खास ट्यूमर

डिप्रेशन शिकार में दवा से राहत नहीं तो न्यूरो सर्जन से भी लें सलाह

कुमार संजय। लखनऊ




32 वर्षीय राम चरित्र साल से डिप्रेशन के शिकार थे। उनका किसी काम में मन नहीं लगता। घर में अकेले पडे रहते। बात-बक पर झल्ला जाते। कभी अपने बहुत बडी फेमली से बताते तो कभी एक दीन हीन बन जाते है। नींद भी कम अाती। कई डाक्टरों के दिखाया कभी मल्टी विटामिन, एंटी अाक्सीडेंट दिया गया तो कभी एंटी डिप्रेशन की दवाएं दी गयी लेकिन राहत नहीं मिली। धीरे -धीरे परेशानी बढ़ती गयी कभी -कभी बेहोश होने लगे। तमाम नशीले पदार्थों के सेवन करने लगे।  इस केस को न्यूरो सर्जरी विभाग से मेडिकल विवि के मानसिक रोग विभाग के प्रो. सुजीत कुमार कार के पास भेजा गया। संजय गांधी पीजीआइ के न्यूरो सर्जरी विभाग के विशेषज्ञों से इस मरीज के बारे में सलाह लिया तो यहां के विशेषज्ञों ने दिमाग का एमअारअाई जांच कराया तो देखा कि राम चरित्र के दिमाग में इंट्रा क्रेनियल डपीडर्मायड ट्यूमर था जिसके कारण वह मूड डिअार्डर के शिकार थे। संस्थान के न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो.राज कुमार, प्रो.संजय बिहारी, प्रो.अवधेश जायसवाल, प्रो. अरूण श्रीवास्तव, प्रो.अनंत मेहरोत्रा ,  प्रो.कुंतल दास, प्रो.अमित केसरी अौर पैथोलाजी विभाग की प्रो.सुशीला जायसवाल ने इस ट्यूमर को निकाल दिया जिसके बाद राम चरित्र की हालत में सुधार होने लगा। विशेषज्ञों का कहा है कि डिप्रेशन की दवाअों से मरीज को फायदा नहीं हो रहा है तो मानसिक रोग विशेषज्ञों को एक बार न्यूरो सर्जरी के विशेषज्ञों से सलाह लेना चाहिए। लंबे समय तक एंटी डिप्रेशन की दवाअों से साइट इफेक्ट होता है। इस खोज को जर्नल अाफ न्यूरोसाइंस इन रूरल प्रैक्टिस ने स्वीकार किया है। 

क्या है इंट्राक्रेनियल इंपी डपीडर्मायड

संजय गांधी पीजीाइ के न्यूरोसर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो.राजकुमार ने बताया कि दिमाग स्थित रक्त वाहिकाअों की सुरक्षा के लिए सेरीब्रल स्पाइनल फ्लूड से भरा अावरण रहता है जिसमें कई बार ट्यूमर बन जाता है। यह ट्यूमर जहां जगह होता है वहां फैलता है। यह ट्यूमर ब्रेन में दबाव नही बनाता है जिससे उल्टी, दौरा पडने की परेशानी नहीं होती है जिसके कारण मरीजों में इस परेशानी का पता देरी से लगता है। कई बार इस ट्यूमर की वजह से मूड डिसअार्डर की परेशानी हो सकती है। यह टय्बमर कुल ट्यूमर( ब्रेऩ) का दो फीसदी के अास -पास होता है। कई बार यह ट्यूमर क्रेनियल नर्व पर दबाव डालता है जिससे सुनने, देखने में परेशानी हो सकती है। 

लाखों रूपए से बनी पीजीआइ के नेफ्रोलाजी लैब पर क्या लगेगा ताला

लाखों रूपए से बनी  पीजीआइ के   नेफ्रोलाजी लैब पर क्या लगेगा ताला

विभाग के दूसरे संकाय सदस्य को नहीं दी जा रही जिम्मेदारी

पहले भी जेनटिक्स विभाग में बंद हो चुकी है जांच
कुमार संजय।  लखनऊ    

संजय गांधी पीजीआइ के नेफ्रोलाजी विभाग की लाखों रूपए से बनी लैब में ताला बंद करने की तैयारी चल रही है क्योंकि अागे लैब का  संचालन कौन करेगा यह तय नहीं पाया है। इस लैब का संचालन विभाग के प्रो.अारके शर्मा कर रहे है लेकिन अक्टूबर 2018  वह रिटायर होने वाले है अागे लैब चलती रहे इसके लिए पहले से ही विभाग के किसी संकाय सदस्यों को हस्तांरित कर देना चाहिए जिससे वह संकाय सदस्य लैब की कार्य प्रणाली से फेमलियर हो जाए लेकिन एेसा नहीं किया जा रहा है । सूत्रों का कहना है कि लैब में किसी दूसरे विभाग के संकाय सदस्य की इंट्री तक बैन है एेसे में पहले से यदि किसी को लैब से जोडा जाएगा तो लैब बंद हो सकती है , जैसे पहले जेनटिक्स विभाग में हो रही एचएलए टाइपिंग बंद हो गयी। संस्थान फिर वही गल्ती दोहराने की राह पर है। संस्थान के नेफ्रोलाजी विभाग में तमाम हाई टेक मशीने लगा कर तमाम वह जांचे शुरू की गयी जो पहले से किसी -किसी लैब में हो रही थी लेकिन तर्क यह दिया गया कि दूसरे विभाग रिपोर्ट देर से देते है इसलिए विभाग में ही जांच होने से मरीजों को जल्दी जांच रिपोर्ट मिलेगी। इस तर्क के अाधार पर चल रही लैब अागे कैसे चलेगी इस पर संस्थान प्रशासन कोई कार्य योजना नहीं तैयार कर रहा है। इस बारे में निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने कहा कि जो संस्थान हित में होगा वह किया जाएगा। 

नेफ्रोलाजी में यह हैै मशीने
फ्लोसाइटोमीटप जिसकी कीमत लगभग 50 लाख, ल्यूमिनेक्स कीमत लगभग 80 लाख, एचएलए टाइपिंग मशीन लगभग 36 लाख इसके अलावा चार अाटो एनलाइजर सहित तमाम लाखो की मशीनों को साथ 20 से अधिक पैरामेडिकल स्टाफ है।    
  

नहीं लिया जेनटिक्स से सीख 

संस्थान के जेनटिक्स विभाग में किडनी ट्रांसप्लांट से पहले सीडीसी जांच होती है जो अब बंद हो गयी है। संस्थान में यह जांच लगभग 13 सौ में होती है लेकिन अब मरीजों को निजि पैथोलाजी में जांच करानी पड़ रही है जहां जांच की कीमत 23 सौ रूपया है। इसी तरह एचएलए टाइपिंग भी विभाग में बंद हो गयी।  

पीजीआइ में बना एक अौर कर्मचारी महा संघ

पीजीआइ में बना एक अौर कर्मचारी महा संघ

कई संगठनों ने दिया समर्थन 

नए महासंघ की अध्यक्ष सावित्री सिंह अौर महामंत्री राजेश शर्मा मनोनित



संजय गांधी पीजीआइ में एक अौर कर्मचारी महासंघ बन गया है। इस महासंघ को कई फोरम अौर कर्मचारियों के संगठनों ने समर्थन देते हुए इसी बैनर के नीचे कर्मचारियों की समस्याअों के साथ संंस्थान की बेहतरी के लिए काम करने का निर्णय लिया है। देर शाम सगठनों अौर फोरम के पदाधिकारियों ने बैठक कर सावित्री सिंह को अध्यक्ष अौर राजेश शर्मा को महामंत्री मनोनित किया है। मदन मुरारी इस महासंघ के संयोजक होंगे। यह तीनों लोग कार्यकारणी का गठन कर निदेशक को जानकारी देंगे जिससे वह महासंघ को मान्यता दें। कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष महिपाल सिंह , हास्पिटल अडेंट टेक्नीकल फोरम के अध्यक्ष कृण्ण गोपाल, मिनिस्टिरियल संघ के अध्यक्ष सीएल वर्मा , अखिल भारतीय सफाई मजदूर संघ( पीजीआइ) के अध्य़क्ष सुरेश कुमार धानुक सहित कई संगठनों ने समर्थन पत्र सौंप दिया है। मेडिटेक एसोसिएशन के अध्यक्ष डीके सिंह सहति दूसरे संगठनों के पदाधिकारियोंने कहा कि वह इस नए महासंघ के साथ रहेंगे लेकिन अभी समर्थन पत्र नहीं दिया है। संयोजक मदन मुरारी का कहना है कि सबका उदेश्य एक ही वैचारिक भिन्नता  होने के कारण साथ नहीं रह सकते है ।  


इंप्लाई हेल्प सेल की मांग

कर्मचारी महासंघ की अध्यक्ष एवं इंटक की महिला शाखा की अध्यक्ष सावित्री सिंह अौर राजेश शर्मा ने निदेशक से मांग की है कि एक्स अौर वर्तमान कर्मचारियों को परिवार के इलाज के लिए हेल्प सेल बनाया जाए। संस्थान के रिटायर्ड और वर्तमान कर्मचारी भटकते रहते है जो कि खेद जनक है। इनकी सहायता के लिए वीआइपी सेल की तर्ज पर इंप्लाई हेल्प डेस्क बनाया जाए। इसके साथ अाईसीयू अौर इरजेंसी में भी बेड की व्यवस्था की जाए। 

श्री कृष्णाय वासुदेवाय: नम: ..............



             नवधा भक्ति से अलंकृत है श्री श्री राधारमण बिहारी जी का मन्दिर । सेक्टर एफ़ , सुशांत गोल्फ सिटी , शहीद पथ स्तिथ श्री राधारमण बिहारी जी का यह भव्य मन्दिर जो की नित्य ही नवधा भक्ति के रुप में अपने भक्तों को श्री बांके बिहारी जी की पावन लीलाओं से सराबोर करता है ,  उसको शब्दों द्वारा बता पाना शायद सम्भव नहीँ है ,  क्यों कि प्रभु की लीलाओं में इतना आनन्द निहित है कि हम उसी आनन्द में ही कहीँ समाहित हों जाते हैं। मन्दिर के मुख्य सेवादार (अध्यक्ष ) व परम पूज्यनीय श्री श्री अपरिमेय श्यामदास जी ने  श्री कृष्ण कृपा के कारण भक्ति की ऐसी गंगा प्रवाहित की है जो की अकल्पनीय है। पाँच एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ यह पवित्र मन्दिर परिसर , जब भजन की गूँज से गुञ्जायमान होता है तो ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे मानो साक्षात वृंदावन ही अवध की धरा पर अवतरित हो गया हो । सुशांत गोल्फ सिटी व सीजी सिटी को जोड़ता है यह दिव्य कृष्ण मन्दिर । प्रात:काल 4:30 बजे मंगला आरती से मन्दिर के कपाट भक्तों के लिये खोल दिये जाते हैं , उसके पश्चात 6:00 बजे तुलसी आरती व अन्य भक्ति संस्कार का क्रियान्वयन परम पूज्य श्री के निर्देशानुसार अनवरत चलता रहता है। कृष्ण भक्तों का तो जैसे मेला सा लगा रहता है यहाँ । भक्तिमय ज्ञान गँगा में विशेषतया भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से निकली परम पावन ऐवम पुण्यमयी श्री गीता जी के श्लोक ऐवम पाठ ऐवम प्रभू श्री कृष्ण जी की सम्पूर्ण लीलाओं का विस्तृत व्याख्यान श्रीमदभागवत ग्रंथानुसार किया जाता है। जिज्ञासु भक्त अपनी बुद्धि व विवेकानुसार अपने प्रश्नों को पूज्यनीय श्री गुरुदेव श्री के समक्ष प्रस्तुत करते हैं ,  जिसका निदान स्वयम श्री गुरुदेव श्री बड़ी ही सरल भाषा में करते हैं जो कि बड़ा ही अद्भुत है।                            
             ॥ कृष्णम वंदे जगदगुरूम ॥

सोमवार, 24 जुलाई 2017

जीन में होने वाले परिवर्तन पर मेडिकल जेनेटिकस द्वारा आयोजित कार्यशाला विशेष




             संजय गाँधी पीजीआई लखनऊ के मेडिकल जेनेटिकस विभाग के तत्वाधान में आयोजित 16वा आई सी एम आर कोर्स का शुभआरम्भ आज पीजीआई के मेडिकल जेनेटिकस विभाग की विभागाध्यक्ष महोदया श्रीमती शुभा फड्के जी के कर कमलों द्वारा हुआ । जिसमे स्त्री रोग विशेषज्ञ , बाल्य रोग विशेषज्ञ व अन्यत्र मेडिकल विभाग से सम्बन्धित हस्तियां ऐवम नान मेडिकल हस्तियों ने भी शिरकत की । इस 13दिवसीय कार्यशाला में मेडिकल विशेषज्ञ व सामान्यजन यह जानने का प्रयास करेंगे की शरीर में होने वाले परिवर्तन की प्रक्रिया को किस प्रकार पहचाना जाये मसलन मुँह का टेढ़ापन , टांगो का पतलापन , छाती का अनावश्यक उभार , शरीर पर रोम की अधिकता व अन्य प्रकार के दिखने वाले लक्षण जो कि समान्य से पृथक हों उन्हे किस प्रकार से चिन्हित किया जाये और इस सन्दर्भ में किस प्रकार से किसी कुशल चिकित्सक की सलाहनुसार रोगी का इलाज किया जाये ताकि भविष्य में रोगी को जीन में होने वाली समस्या से निजात मिलने की सम्भावना बन सके । कार्यशाला में जीन सम्बन्धी विषयक पर विशेष अध्यन करने का अवसर मिलेगा जो कि भविष्य में बेहतर अनुभव के रुप में रूपान्तरित होगा ।...................

रविवार, 23 जुलाई 2017

सरस्वतीपुरम क्षेत्र की सड़कें हो रहीं बदहाली का शिकार ............



              पीजीआई के निकट बसा रिहायशी क्षेत्र  सरस्वतीपुरम , जो की जजेज लेन से शुरू होता है , वो आज अपनी बदहाली पर आँसू बहाता नज़र आ रहा है। वीवीआईपी माना जाने वाला यह क्षेत्र आज किस कदर मामूली बन के रह गया है वो तो आप यहाँ पहुँच कर ही अंदाजा लगा सकते हैं। इस क्षेत्र में कुल सात पार्को का निर्माण किया गया है,  परन्तु उन पार्को तक पहुँचने के लिये जिस मार्ग का हम चुनाव करते हैं, उस मार्ग पर से गुजरना तो किसी चमत्कार से कम नही है। वर्षा ऋतु का आगमन भी हो चुका है पर किसी भी सम्बन्धित विभाग ने अभी तक सड़कों के रख रखाव पर ध्यान नही दिया । आवागमन जैसी समस्या से तो रोज़ ही दो चार होना पड़ रहा है सरस्वतीपुरम वासियों को । कितनी ही बार सम्बन्धित विभाग व मंत्रियों को मार्ग सम्बन्धित समस्याओं से अवगत कराया गया परन्तु समस्या का निवारण नही हो पाया । सरोजनीनगर नगर विधान सभा के अन्तर्गत आने वाला यह क्षेत्र आज उपेक्षा का शिकार हो रहा है। सरकार व शासन सभी से गुहार लगा चुके हैं सरस्वतीपुरम वासी ,पर अफसोस की सिर्फ निराशा ही हाथ लगी । बरसात के मौसम में मार्ग द्वारा आवागमन सम्बन्धी समस्या सरस्वतीपुरम वासियों के लिये एक जटिल समस्या के रुप में बरकरार है , जिसका अंत तो दूर दूर तक नहीँ दिखायी पड़ता , खास कर केशव पार्क के पास रहने वाले वासियों को तो बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

बुधवार, 19 जुलाई 2017

पीजीआई गेट पर लगने वाले जाम से निजात दिलाने को श्री भरत सिंह जी ने की प्रभावी पहल ...............



   
      संजय गाँधी पीजीआई , लखनऊ के सुरक्षा अधिकारी श्री भरत सिंह जी ने आज पीजीआई गेट पर स्वयम ही जाम से निजात दिलाने की जिम्मेदारी सम्हाली । आज श्री सिंह जी ने यह साबित कर दिया की ऊँचे पद पर होने के बावजूद भी वह किस प्रकार अपनी सामजिक कर्तव्यनिष्ठता को बनाये रखते हैं ,  और सिर्फ अपने कार्यालय कक्ष में ही बैठ कर नही वरन अपने कार्यक्षेत्र में भी प्रभावी रहने का अथक प्रयास करते हैं। जाम की समस्या आज के युग की एक ज्वलन्त समस्या बन चुकी है , जिससे निजात मिलना तो न के बराबर ही दिखता है, परन्तु जाम से निजात दिलाने के लिये यदि हम पहल करते हैं, तो अवश्य ही वह एक सराहनीय कार्य है। सभी विभागों के कर्मचारीगण यदि इसी प्रकार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते रहें तो अवश्य ही उत्तर प्रदेश (उत्तम प्रदेश) के रुप में स्तापिथ हो कर रहेगा ।......................

सेवा की अनूठी मिसाल हैं पीजीआई के वंशी लाल ..............


     संजय गाँधी पीजीआई के क्लीनिकल इम्म्यूनोलोजी विभाग में लैब अटेंडेंट के पद पर  कार्यरत श्री वंशी लाल जी ने सेवा की अनूठी मिसाल प्रस्तुत की है। चाहे कोई भी मौसम हो या समय , बिना उसकी परवाह किये बगैर हर कार्य के लिये सदैव तत्पर रहते हैं श्री वंशी लाल । नित्य ही विभाग के कार्यों को बखूबी अंजाम देने के साथ साथ विभाग के प्रत्येक कर्मचारीगणों का भी विशेष ध्यान रखते हैं श्री वंशी लाल ।
                        दिन के भोजन की व्यवस्था भी वंशी लाल अपने घर से ही कर के लाते हैं जो कि लैब में कार्य करने वाले कर्मचारियों को ही समर्पित कर देते हैं। खुद तो एक भी कौर नहीँ ग्रहण करते परन्तु लैब में कार्यरत कर्मचारियों को बड़े ही स्नेह से खिलाते हैं उनके इस विशिष्ट कार्य में उनकी धर्मपत्नी व परिवार के अन्य सदस्य भी उनका साथ देते हैं।
       सेवा ही परमोधर्म: इसको चरितार्थ करते हैं पीजीआई के वंशी लाल ।.......नमन .........

           

मंगलवार, 18 जुलाई 2017

कैसे हो इलाज जांच किट का टोटा

खून की जांचों के लिए नहीं अा रहा है किट 

बीमारी का पता नहीं कैसे हो इलाज

70 फीसदी  इंपोर्टेड किट और केमिकल के सहारे होती है विशेष जांचे




कुमार संजय। लखनऊ 



बीमारी पता करने के लिए लैबों में जांच होती है  जिसमें लगने वाले किट की अापूर्ति थम गयी है। पुराने स्टाक से कुछ जांचे चल रहा है।  तमाम जांचे बंद हो गयी है खास तौर विशेष जांचे जिससे लिवर, किडनी, अाटो इम्यून डिजीज सहित कई बीमारी का पता चलता है। इसके पीछे कारण जीएसटी बताया जा रहा है। जांच के केमिकल अौर किट के तीन स्लैब है जिसमें हिपेटाइटिस, मलेरिया, बल्ड कंपोनेंट की दर पांच फीसदी बतायी जा रही है बाकी जांचो की दर 12 फीसदी बतायी जा रही है। लैब के समान की सप्लाई करने वाली कंपनी के प्रतिनिध का कहना है कि हम लोग विदेश से किट मंगा कर अस्पताल अौर जांच केंद्रो को सप्लाई करते है लेकिन विदेशों से किट नहीं अा रही है क्योंकि जीएसटी के  अाधार पर टैक्स अभी फिक्स नहीं हुअा है। हम लोगों के पास जो सामान पहले है उसी को दे रहे है। अाटोइम्यून डिजीज के लिए डीएस डीएनए जांच होती है जिसके लिए अाटोमेटेड एलाइजा किट की सप्लाई नहीं अा रही है । लिवर प्रोफाइल, हारमोन प्रोफाइल सहित तमाम जांच के लिए विशेष किट इस्तेमाल होती है जिसकी सप्लाई नहीं हो रही है। केवल प्राइमरी जांच की कुछ किट भारत में बनती है जिसकी सप्लाई हो रही है।

डायग्नोस्टिक किट पर विदेशी कंपनियों का 70 फीसदी कब्जा

डायग्नोस्किटक क्षेत्र से जुडे लोगों का कहना है कि जांच के लिए बनने वाली किट या केमिकल पर 70 फीसदी विदेशी कंपनियों का कब्जा है। संजय गांधी पीजीआइ इनवेस्टीगेशन रिवाल्विंग फंड के वीके जायसवाल कहते है कि तमाम जांच किट केवल विदेश में बनती है जो भारत में बेचती है। उनकी गुणवत्ता से जांच करने वाले विभाग संतुष्ट है रिपोर्ट में 10 फीसदी तक वैरिएशन होता है। बताता है कि केवल इम्यूनोकमेंस्टी के केमिकल अौर किट का भारतीय बाजार में विदेशी कंपनियों का शेयर 17 सौ करोड के अास -पास है। 


सही जांच से चलती है बीमारी का पता

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं पैथोलाजिस्ट डा.पीके गुप्ता के मुकाबिक किडनी का कितना काम कर रही है। शुगर का लेवल क्या है  जैसे तमाम शरीर के अंदर की जानकारी जांच से होती है। बीमारी की डायग्नोसिस भी विशेष जांचों से होती है । बीमारी की सही जानकारी के बिना इलाज संभव नहीं है। विदेशी कंपनियों की क्वालिटी उतना क्वालिटी कंट्रोल नहीं है। इसे करने की जरूरत है तभी निर्भरता कमी होगी। 


जांचे होंगी मंहगी

पहले वैट पांच फीसदी लगता था अब विशेष जांच किट अौर समाना पर जीएसटी पर 12 फीसदी हो गया है जिससे जांच की दरों में इजाफा संभव है । नए दर पर सामान कंपनियां सप्लाई करेंगी तो रेट बढाना पडेगा। इससे निजि लैब में जांच कराने वाले मरीजों पर भार पडेगा। 

मनकामेश्वर मठ मंदिर सात अगस्त (सोमवार) को दोपहर 1:52 बजे से भक्तों के लिए बंद रहेगा

 सावन के महीनों में हर सोमवार को शिव मंदिरों में भक्त पूजा करने पहुंचते है। राजधानी का मनकामेश्वर मठ मंदिर में सावन के सोमवार को विशेष पूजा होती है। यहाँ सैकड़ों लोग पूजा के लिए पहुंचते हैं। भक्तों के लिए यहाँ विशेष तैयारी भी होती है। इस मंदिर में सुबह से शाम तक भक्त पूजा के लिए आते हैं। लेकिन इस बार सावन के अंतिम सोमवार के दिन ग्रहण होने से भक्त शाम को यहाँ पूजा पाएंगे। 

डालीगंज स्थित मनकामेश्वर मठ मंदिर सात अगस्त, 2017 दिन सोमवार को दोपहर 1:52 बजे से भक्तों के लिए बंद रहेगा। मनकामेश्वर मठ मंदिर की महंत देव्या गिरि महाराज ने बताया कि सात अगस्त को चंद्रग्रहण पड़ रहा है। इस वजह से सूतक दोपहर 1:52 बजे से शुरू होकर नौ घंटे तक चलेगा। चंद्रग्रहण रात 10:52 बजे से शुरू होगा। 

जबकि मोक्ष काल रात 12:48 बजे तक रहेगा। सूतक ग्रहण से नौ घंटे पहले ही लग जायेगा। इस वजह से दोपहर 1:52 बजे से सावन का सोमवार होने के बाद भी मंदिर परिसर के सभी कपाट भक्तों के लिए बंद रहेंगे। महंत देव्या गिरि ने बताया कि ग्रहण काल एवं सूतक काल में देवमूर्ति का स्पर्श नहीं करना चाहिए। इसलिए सभी भक्तों से अपील की जाती है कि वह दोपहर डेढ़ बजे तक सात अगस्त दिन सोमवार को भगवान शिव के दर्शन कर लें। उसके बाद मंदिर नहीं खुलेगा।

पीजीआई के मरीज एस्क्लेटर से पहुंचेंगे ओपीडी

पीजीआई के मरीज एस्क्लेटर से पहुंचेंगे ओपीडी
-पांच मंजिला ओपीडी में मरीजों को आने-जाने में होगी सहूलियत





पीजीआई के मरीज अब एस्क्लेटर से ओपीडी तक पहुंचेंगे। न्यू ओपीडी में मरीजों की सहूलियत के मद्देनजर एस्क्लेटर लगाए जा रहे है। हालांक अभी मरीज और तीमारदार लिफ्ट और जीने से ओपीडी में आते-जाते हैं। मरीजों का भारी दबाव होने की वजह से मरीजों को लिफ्ट में लम्बा इंतजार करना पड़ रहा है। पीजीआई निदेशक डॉ. राकेश कपूर बताते हैं कि ओपीडी पांच मंजिला होने की वजह से मरीजों को आने-जाने में दिक्कतें आ रही थी। जिसको देखते हुए एस्क्लेटर लगाने का निर्णय लिया गया है।
पीजीआई में संचालित न्यू ओपीडी में रोजाना चार से पांच हजार मरीज और तीमारदार आते हैं। अभी तक मरीज ओपीडी में आने-जाने के लिए लिफ्ट और जीने का सहारा ले रहे थे। मरीजों का भारी दबाव और लिफ्ट में सीमित लोगों के जाने की वजह से गंभीर बीमारियों के मरीजों को लम्बा इंतजार करना पड़ता था। ये लिफ्ट आए दिन खराब भी रहती है। जिसकी वजह से गंभीर मरीजों को पांच मंजिला ओपीडी तक पहुंचने में बहुत दिक्कतें आती हैं। पीजीआई के सीमएमएस डॉ. अमित अग्रवाल बताते हैं कि न्यू ओपीडी में मरीजों के दबाव को देखते हुए एस्क्लेटर लगाने का निर्णय लिया है।

शनिवार, 15 जुलाई 2017

मॉर्निंग वॉक करें , कैंसर से बचें ......



          प्रख्यात अमेरिकी कैंसर वैज्ञानिक डा. यांग ली जो की वर्तमान समय में ओहियो , अमेरिका में विश्व के दूसरे नंबर के अस्पताल क्लेवलैंड क्लीनिक में कैंसर बायोलोजी के प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। डा. यांग ली के अनुसार यदि कैंसर से बचना है तो सुबह या शाम टहले और व्यायाम ज़रूर करें । कैंसर सेल की प्रभावी रोकथाम पर रिसर्च कर रहे डा. यांग के मुताबिक विकसित देशों में एक तिहाई मौतें कैंसर से होती हैं।
                    कैंसर वैज्ञानिक डा. यांग ने बातचीत में कहा की शोध में अब तक यह सामने आया है कि टहलने और व्यायाम करने से कैंसर से लड़ने वाली सेल मजबूत होती है। शरीर में 'टी' और 'बी' सेल होती है। 'टी' सेल कैंसरेस हो चुकी कोशिकाओं कि पहचान कर उन्हे मारती है। कैंसर में तब्दील होने वाली कोशिकाएँ बहुरूपिये कि तरह होती हैं। ऐसे में अक्सर 'टी' सेल उन्हे पहचानने में धोखा खा जाती हैं। डा. यांग ली के मुताबिक जेनेरिक कैंसर का अब तक कोई भी इलाज सम्भव नही हो सका है। जेनेरिक कैंसर की सेल को जीन पी-53 कहते हैं। अगर यह शरीर में है तो कैंसर होने की समभावनाये बढ़ जाती हैं।

शान्तनु नर्सिंग होम में कैंसर के मरीजों का किया जाता है विशेष उपचार ।

   
   
   जनपद प्रतापगढ़ के नगर क्षेत्र में स्तिथ शान्तनु नर्सिंग होम में कैंसर के मरीजों का विशेष ख़याल रखा जाता है जहाँ पर मरीजों को कीमोथैरेपी व सर्जरी के माध्यम से कैंसर जैसी जघन्य बीमारी से निजात दिलाने की पूरी कोशिश की जाती है। नर्सिंग होम के संचालक डा. घनश्याम अग्रवाल (भूतपूर्व सीनियर रेसिडेंट्) के.जी.एम.यू. , सर्जन व कैंसर रोग विशेषज्ञ यहाँ के कैंसर के मरीजों के लिये किसी भगवान से कम नही हैं। कैंसर के मरीजों के लिये अपनी दिनचर्या का भी ध्यान नही रख पाते हैं डा. घनश्याम अग्रवाल , अपना पूर्ण समय मरीजों के देखभाल में ही व्यतीत कर देने के बावजूद भी किसी भी प्रकार का मलाल नही रखते डा. घनश्याम अग्रवाल । आप की अनुशासनात्मक व सेवामय कार्यप्रडाली तो देखते ही बनती है जो कि किसी उदाहरण से कम नही है।

शर्मिंदा......जरूर पढे खास तौर वह बहुएं जो ...

अक्सर सुनने को मिलता है कि मायके वाले अाएं तो सब ठीक कहीं ससुराल से कोई अाए जाए तो लगता है कि बहुअों का पहाड़ टूट पडा..इसी पर अाधारित एक कहानी  
फ़ोन की घंटी तो सुनी, मगर आलस की वजह से रजाई में ही लेटी रही। उसके पति राहुल को आखिर उठना ही पड़ा। दूसरे कमरे में पड़े फ़ोन की घंटी बजती ही जा रही थी।इतनी सुबह कौन हो सकता है जो सोने भी नहीं देता, इसी चिड़चिड़ाहट में उसने फ़ोन उठाया। “हेल्लो, कौन” तभी दूसरी तरफ से आवाज सुन सारी नींद खुल गयी।
राहुल ने कहा “नमस्ते पापा।” उधर से आवाज़ आई "बेटा, बहुत दिनों से तुम्हे मिले नहीं सो हम दोनों ११ बजे की गाड़ी से आ रहे है। दोपहर का खाना साथ में खा कर हम ४ बजे की गाड़ी वापिस लौट जायेंगे। ठीक है।” “हाँ पापा, मैं स्टेशन पर आपको लेने आ जाऊंगा।”
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फ़ोन रख कर वापिस कमरे में आ कर उसने रचना को बताया कि मम्मी पापा ११ बजे की गाड़ी से आरहे है और दोपहर का खाना हमारे साथ ही खायेंगे।
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रजाई में घुसी रचना का पारा एक दम सातवें आसमान पर चढ़ गया। “कोई इतवार को भी सोने नहीं देता, अब सबके के लिए खाना बनाओ। पूरी नौकरानी बना दिया है।” गुस्से से उठी और बाथरूम में घुस गयी। राहुल हक्का बक्का हो उसे देखता ही रह गया।
जब वो बाहर आयी तो राहुल ने पूछा “क्या बनाओगी।” गुस्से से भरी रचना ने तुनक के जवाब दिया “अपने को तल के खिला दूँगी।” राहुल चुप रहा और मुस्कराता हुआ तैयार होने में लग गया, स्टेशन जो जाना था।
थोड़ी देर बाद ग़ुस्सैल रचना को बोल कर वो मम्मी पापा को लेने स्टेशन जा रहा है वो घर से निकल गया।
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रचना गुस्से में बड़बड़ाते हुए खाना बना रही थी।
दाल सब्जी में नमक, मसाले ठीक है या नहीं की परवाह किए बिना बस करछी चलाये जा रही थी। कच्चा पक्का खाना बना बेमन से परांठे तलने लगी तो कोई कच्चा तो कोई जला हुआ। आखिर उसने सब कुछ ख़तम किया, नहाने चली गयी।
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नहा के निकली और तैयार हो सोफे पर बैठ मैगज़ीन के पन्ने पलटने लगी।उसके मन में तो बस यह चल रहा था कि सारा संडे खराब कर दिया। बस अब तो आएँ , खाएँ और वापिस जाएँ ।
थोड़ी देर में घर की घंटी बजी तो बड़े बेमन से उठी और दरवाजा खोला। दरवाजा खुलते ही उसकी आँखें हैरानी से फटी की फटी रह गयी और मुँह से एक शब्द भी नहीं निकल सका।
सामने राहुल के नहीं उसके अपने मम्मी पापा खड़े थे जिन्हें राहुल स्टेशन से लाया था।
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मम्मी ने आगे बढ़ कर उसे झिंझोड़ा “अरे, क्या हुआ। इतनी हैरान परेशान क्यों लग रही है। क्या राहुल ने बताया नहीं कि हम आ रहे हैं।” जैसे मानो रचना के नींद टूटी हो “नहीं, मम्मी इन्होंने तो बताया था पर…. रर… रर। चलो आप अंदर तो आओ।” राहुल तो अपनी मुसकराहट रोक नहीं पा रहा था।
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कुछ देर इधर उधर की बातें करने में बीत गया। थोड़ी देर बाद पापा ने कहाँ “रचना, गप्पे ही मारती रहोगी या कुछ खिलाओगी भी।” यह सुन रचना को मानो साँप सूँघ गया हो। क्या करती, बेचारी को अपने हाथों ही से बनाए अध पक्के और जले हुए खाने को परोसना पड़ा। मम्मी पापा खाना तो खा रहे थे मगर उनकी आँखों में एक प्रश्न था जिसका वो जवाब ढूँढ रहे थे। आखिर इतना स्वादिष्ट खाना बनाने वाली उनकी बेटी आज उन्हें कैसा खाना खिला रही है।
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रचना बस मुँह नीचे किए बैठी खाना खा रही थी। मम्मी पापा से आँख मिलाने की उसकी हिम्मत नहीं हो पा रही थी। खाना ख़तम कर सब ड्राइंग रूम में आ बैठे। राहुल कुछ काम है अभी आता हुँ कह कर थोड़ी देर के लिए बाहर निकल गया। राहुल के जाते ही मम्मी, जो बहुत देर से चुप बैठी थी बोल पड़ी “क्या राहुल ने बताया नहीं था की हम आ रहे हैं।”
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तो अचानक रचना के मुँह से निकल गया “उसने सिर्फ यह कहाँ था कि मम्मी पापा लंच पर आ रहे हैं, मैं समझी उसके मम्मी पापा आ रहे हैं।”
फिर क्या था रचना की मम्मी को समझते देर नहीं लगी कि ये मामला है। बहुत दुखी मन से उन्होंने रचना को समझाया “बेटी, हम हों या उसके मम्मी पापा तुम्हे तो बराबर का सम्मान करना चाहिए। मम्मी पापा क्या, कोई भी घर आए तो खुशी खुशी अपनी हैसियत के मुताबिक उसकी सेवा करो। बेटी, जितना किसी को सम्मान दोगी उतना तुम्हे ही प्यार और इज़्ज़त मिलेगी। जैसे राहुल हमारी इज़्ज़त करता है उसी तरह तुम्हे भी उसके माता पिता और सम्बन्धियों की इज़्ज़त करनी चाहिए। रिश्ता कोई भी हो, हमारा या उसका, कभी फर्क नहीं करना।”
रचना की आँखों में ऑंसू आ गए और अपने को शर्मिंदा महसूस कर उसने मम्मी को वचन दिया कि आज के बाद फिर ऐसा कभी नहीं होगा..!

पीजीआइ ट्रामा सेंटर को मिले अलग संस्थान का दर्जा

पीजीआइ ट्रामा सेंटर को मिले अलग संस्थान का दर्जा

ट्रामा  चलाने के लिए न्यूरोसर्जरी के प्रमुख प्रो.राजकुमार ने शासन को दिया प्रस्ताव

ट्रामा सेंटर की नींव से जुडे रहे प्रो.राजकुमार 

चिकित्सा शिक्षा मंत्री को सौंपी कार्य योजना


संजय गांधी पीजीआइ के न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रमुख एवं एम्स ऋषिकेश के पूर्व निदेशक प्रो.राजकुमार ने ट्रामा सेंटर को संस्थान परिसर में स्थित  सीबीएमअार की तरह अलग संस्थान का दर्जा देने का प्रस्ताव सरकार को सौंपा है। वर्ष 2009 में जब ट्रामा सेंटर की नींव पडी थी तब से वह इसका काम देख रहे थे। प्रो.राजकुमार का कहना है कि एम्स दिल्ली की तरह इसे चलाने के लिए इसे अलग संस्थान का दर्जा देने की जरूरत है। इससे ट्रामा सेंटर के संचालन में निर्णय लिया जा सकेगा। निदेशक पीजीआइ की भूमिका सलाहकार के रूप में होगी ।चिकित्सा संकाय सदस्यों का रोटेशन ट्रामा सेंटर में निदेशक पीजीआइ के सलाह किया जाए। संस्थान में जो विभाग उस विभाग के लिए ट्रामा सेंटर में संकाय सदस्यों का चयन संस्थान के विभागों में ही किया जाए तभी ट्रामा सेंटर के लिए संकाय सदस्य अाएंगे केवल ट्रामा सेंटर के लिए संकाय सदस्य नहीं अाएंगे। ट्रामा अौर संस्थान के संकाय सदस्यों का रोटेशन किया जाए। जो विभाग पीजीआइ में नहीं उन विभागों के लिए ट्रामा सेंटर में ट्रामा सेंटर निदेशक द्वारा नियुक्ति की जाए। प्रो. राजकुमार का कहना है कि ट्रामा सेंटर को चलाने के लिए शुरूअाती दौर में सीटी स्कैन, एमअारअाई, लैब , सर्जरी के लिए उपकरण , अाईसीयू की जरूरत होगी इसके लिए मंहगे उपकरण प्राइवेट प्रार्टरनर शिप पर लगा कर सेवाएं शुरू की जा सकती हैं। 

ट्रामा सेंटर के लेवल वन है

पीजीआइ का ट्रामा सेंटर लेवल 1 स्तर का होगा इसकी योजना इस तरह बनायी गयी थी ट्रामा शिकार का सभी इलाज हो सके जिसमें ब्रेन की सर्जरी से लेकर रिहैबिलेटेशन की व्यस्था हो। यह ट्रामा सेंटर प्रदेश के अन्य ट्रामा सेंटर का सुपरविजन कर सके। इसमें विभिन्न स्तर के मैन पावर का प्रशिक्षण एवं शोध किया जा सके। प्रदेश के अन्य पांच ट्रामा सेंटर को विकसित करने में इसकी अहम भूमिका हो लेकिन वर्ष 2012 से दो सौ करोड की लगात से बना ट्रामा सेंटर काम नहीं कर पाया जिसका खामियाजा प्रदेश के ट्रामा ग्रस्त लोगों को भुगतना पड़ रहा है।   

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

मनकामेश्वर मठ - अमरनाथ के शहीदों की आत्मा की शान्ति के लिए हुआ शान्ति हवन, मौन


मनकामेश्वर मठ की ओर से फूंका गया आतंकवाद का पुतला
अमरनाथ के शहीदों की आत्मा की शान्ति के लिए हुआ शान्ति हवन, मौन



अमरनाथ यात्रियों पर हुए आतंकी हमले के विरोध में मनकामेश्वर मठ मंदिर की ओर से मंगलवार को डालीगंज मठ मंदिर परिसर में शान्ति हवन किया गया । इसके साथ ही आक्रोशित विभिन्न समुदाय के लोगों ने आतंकवाद का पुतला मंदिर परिसर के बाहर फूंका। इस विरोध प्रदर्शन में मुस्लिम समाज के लोगों ने भी आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठायी। शौकत अली, आरिफ खान, नवाब गाजी, हाफिज सैय्यद मुहम्मद वसी, महबूब अंसारी ने इस विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया। प्रदर्शनकारियों ने आतंकवाद मुर्दाबाद और भारत माता की जय जैसे नारे लगाकर आक्रोश जताया। मनकामेश्वर मठ मंदिर जहां भारत माता की चौकी स्थापित है, वहां मंगलवार को श्रीमहंत देव्या गिरि जी महाराज ने बताया कि 10 जुलाई को सावन के पहले सोमवार के पवित्र अवसर पर जिस तरह आतंकवादियों ने कायरतापूर्वक अमरनाथ के श्रद्धालुओं पर हमला किया, वह उसकी घोर निंदा करती हैं। इस आतंकी घटना में बेगुनाह सात श्रद्धालू शहीद हुए। उन्होंने कहा कि यह सीधे-सीधे देश की अखंडता पर हमला है। इसका केंद्र सरकार की ओर से पुरजोर जवाब दिया जाना चाहिए। एक ओर तीन आतंकवादियों ने अर्द्धसैनिक बल की छावनी पर हमला किया। फिर रात 8:20 बजे खानाबल के पास यात्रियों से भरी बस पर अंधाधुंध गोलाबारी कर दी। गुजरात के बनासकांठा जिला की उस बस पर हुए इस घिनौने हमले में 32 श्रद्धालू गंभीर रूप से जख्मी हुए। उस बस में 56 श्रद्धालू थे जो गुजरात, दमन दीव और महाराष्ट्र के थे। यह और चिंतनीय है कि जिन सात श्रद्धालुओं की मृत्यु हुयी, उनमें 5 स्त्रियां थी। सात शहीदों में पांच गुजरात के और शेष दो महाराष्ट्र के थे। जम्मू और कश्मीर पुलिस के अनुसार हमले में पाकिस्तानी इस्लामी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ हैं।
मनकामेश्वर मठ मंदिर में हुए शान्ति हवन में उपस्थित भक्तों ने शहीद श्रद्धालुओं की आत्मा की शान्ति के लिए आहूतियां दीं। हवन के बाद शहीद श्रद्धालुओं की आत्मा की शन्ति के लिए दो मिनट का मौन भी रखा गया। इसके बाद मंदिर परिसर के बाहर आतंकवाद के खात्मे के लिए आतंकवाद के पुतले का दहन किया गया। इस मौके पर सर्वेश त्रिवेदी, एडवोकेट सत्येन्द्र सिंह, जितेन्द्र राजपूत, संजय सोनकर, अमित गुप्ता, जगदीश गुप्ता, अमित विश्वकर्मा, उपमा पाण्डेय, पूजा, शिवानी, नम्रता मिश्रा समेत मंदिर के सेवादार मौजूद रहे।

उम्मीद--- अब शुरू होगा पीजीआइ का ट्रामा सेंटर


उम्मीद--- अब शुरू होगा पीजीआइ का ट्रामा सेंटर 

कुमार संजय ’ लखनऊ
अब पीजीआइ ट्रामा सेंटर के चलने की उम्मीद बंध गई है। राज्य सरकार ने ट्रामा 2 के लिए 25 करोड़ का बजट देकर यह साफ कर दिया है कि ट्रामा 2 के संचालन की जिम्मेदारी पीजीआइ की ही होगी। 1दरअसल, पांच साल से पीजीआइ ट्रामा सेंटर भवन बनकर तैयार है। स्टाफ, संकाय सदस्य और मशीन की उपलब्धता न हो पाने के कारण सेंटर काम नहीं कर पा रहा है। लगभग 200 करोड़ की लागत से बने इस ट्रामा सेंटर को चलाने के लिए संस्थान प्रशासन ने कई बार प्रस्ताव भेजा, लेकिन सरकारों ने बजट नहीं दिया। यही नहीं, पूर्व सरकार द्वारा इसे चलाने का जिम्मा केजीएमयू को दे दिया गया था। केजीएमयू ट्रामा चलाने के नाम पर खानापूर्ति करता रहा क्योंकि उनके पास बजट नहीं था। सरकार के साथ मेडिकल विवि की सत्ता बदली तो कुलपति प्रो. एमएलबी भट्ट ने इसे चलाने से मना कर दिया। अब पीजीआइ को इसे दोबारा हैंडओवर किया जाना है। पीजीआइ को बेसिक विभाग जनरल सर्जरी, आर्थोपैडिक, न्यूरोसर्जन ट्रामा सहित विशेषज्ञों की तैनाती करनी पड़ेगी। विशेषज्ञ कहते है कि 2013 में संस्थान ने पदों का निर्धारण एम्स दिल्ली ट्रामा सेंटर के प्रमुख के अलावा देश के कई विशेषज्ञों की समिति ने मिल कर तय किया था। ट्रामा टू में अभी केवल प्लास्टर या सर्जरी संभव है। कई न्यूरोसर्जन नहीं है, जिससे गंभीर केस मैनेज हो सकें। यहां से मरीजों को ट्रॉमा सेंटर मेडिकल विवि रिफर किया जाता है।’