शुक्रवार, 24 मार्च 2023

हाई रिस्क ग्रुप में लेटेंट टीबी का पता लगा कर बचाव संभव

 




विश्व टीबी दिवस आज

  • हाई रिस्क ग्रुप में लेटेंट टीबी का पता लगा कर बचाव संभव

आईजीआरए से छिपे बैक्टीरिया का लगता है पता

एक लाख में 319 लोग टीबी से ग्रस्त


प्रदेश में 40 से 45 फीसदी ऐसे लोग है जिनमें टीबी के लक्षण तो नहीं है लेकिन शरीर में टीबी का बैक्टीरिया है। ऐसे लोगों का पता लगा कर इनमें टीबी बैक्टीरिया का खात्मा करना जरूरी है।   विश्व टीबी दिवस( 24 मार्च) के मौके पर संजय गांधी पीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. आलोक नाथ ने कहा कि टीबी उन्मूलन तभी संभव है जब टीबी के सक्रिय मामलों को खोज कर उनका इलाज किया जाए। साथ ही जिनमें टीबी का बैक्टीरिया छिपे( लेटेंट टीबी) के लोगों भी खोज कर उनमें बैक्टीरिया खत्म किया जाए। लेटेंट टीबी का पता लगाने के लिए मांटूक्स टेस्ट और इंटरफेरॉन गामा रिलीज ए(आईजीआरए) का परीक्षण  किया जाता है। लटेंट टीबी का पता हाई रिस्क ग्रुप में खास तौर पर लगाने की जरूरत है। किडनी की बीमारी, डायबिटीज, घर में किसी को टीबी , लिवर की बीमारी, आटो इम्यून डिजीज सहित अन्य हाई रिस्क ग्रुप में आते है। इनमें छिपे बैक्टीरिया का पता लगा कर प्रिवेंटिव थेरेपी( प्रोफाइलेक्सिस) दी जा सकती है। इनमें 6 , 4 या तीन महीने दवा का कोर्स चलता है।लटेंट टीबी के 10 फीसदी मामले एक्टिव केस में बदल जाते है। प्रो. आलोक ने बताया कि भारत में टीबी के 28 लाख मरीज रिपोर्ट है लेकिन 12 से 15 लाख एक्टिव टीबी के मामले मिसिंग है इनका पता लगाना जरूरी है। इसी उद्देश्य को लेकर घर-घर जा कर टीबी मरीजों को खोजने का सिलसिला शुरू किया। टीबी के मरीज यदि दवा पूरे समय तक नहीं लेते है तो मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस ( एमडीआऱ) में बदल जाते है इनमें प्रचलित  दवाएं काम नहीं करती है। इनमें दवाएं बदलनी पड़ती है। इस लिए इलाज पूरे समय तक सही तरीके से करना चाहिए। देखा गया कुल एक्टिव टीबी के 25 फीसदी मामले एमडीआर में बदल जाते है। प्रति लाख 319 मामले टीबी के होते है । 9.1 प्रति लाख एमडीआर के देखे गए है।   

कोरोना काल में बढ़ा टीबी

टीबी की दर दो फीसदी के आस-पास रही है लेकिन कोरोना काल में यह 3.5 फीसदी हो गया क्योंकि इस दौरान इलाज और खोज दोनों प्रभावित हुआ। इस साल उम्मीद है कि इलाज और खोज के बढ़ने के साथ दर में कमी आएगी।  


विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक आईजीआरए और मांटूक्स

 टेस्ट दोनों के परिणाम बराबर है । आईजीआरए महंगा पड़ता है

 इसलिए लेटेंट टीबी का पता लगाने के लिए माटूक्स टेस्ट कराया

 जा सकता है। यह सस्ता पडता है और पूरे विश्व में प्रचलित है।

 यह  परीक्षण टीबी डायग्नोसिस के लिए नहीं है केवल लेटेंट टीबी

 पता लगाने के  लिए है।  हाई रिस्क ग्रुप के लोगों में छिपे

 बैक्टीरिया का पता लगा कर इलाज जरूरी है..डा. सुधीर सिन्हा

 विशेष वैज्ञानिक एसजीपीजीआई       

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