सोमवार, 7 अगस्त 2017

ऐसे तो संभव नहीं है प्रदेश में संभव नही आर्गन ट्रासप्लांट

ऐसे तो संभव नहीं है प्रदेश में संभव नही आर्गन ट्रासप्लांट  

केवल पीजीआइ के भरोसे है चल रहा है किडनी ट्रांसप्लांट 

लिवर ट्रांसप्लांट पर लगा ग्रहण

ट्रांसप्लांट तक जिंदा रहने तक ही खर्च हो  जाता है काफी पैसा





35 वर्षीय राम प्रसाद की किडनी काम नहीं कर रही है । इलाज केवल किडनी ट्रांसप्लांट है। पत्नी किडनी देने के लिए सारी जांच करा चुकी है । ट्रांसप्लांट के लिए संजय गांधी पीजीआइ में एक साल बाद की डेट  मिल रही है। एक साल तक इन्हें डायलसिस पर ही रहना पडेगा। इससे पहले यह कई बार इंंफेक्शन के कारण भर्ती हो चुके है। इस पर इनका दो लाख के तक खर्च हो चुका है। ट्रांसप्लांट  तक पहुंचने में ही यह कंगाल हो चुके है। ऐसे केवल राम प्रसाद ही नहीं है इस तरह के लगभग 80 हजार लोग प्रदेश में है जिसमें किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत है। विशेषज्ञ कहते है कि डायलसिस के दौरान हिपेटाइिटस बी और सी का इंफेक्शन होने की आशंका 60 से 70 फीसदी मामलों में होती है जिससे निपटने में ही मरीज का काफी पैसा खर्च हो जाता है। ट्रांसप्लांट तक बचे रहने पर ही काफी पैसा खर्च हो जाता है। यह तब है जब डोनर मरीज के पास होता है ऐसे में कैडेवर की कल्पना ही संभव नहीं है।  हाल यह है कि बीएचयू में ट्रांसप्लांट शुरू हुआ बंद हो गया। मेडिकल विवि लखनऊ में शुरू किया बंद हो गया केवल लोहिया संस्थान लखनऊ नें शुरू किया जो चलाना चाहता है लेकिन अभी रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है।   



प्रदेश में 60 सेंटर पर हो ट्रांसप्लांट तो संभव वेटिंग में कमी

इंडियन सोसाइटी आफ नेफ्रोलाजी के सचिव प्रो.नारायन प्रसाद कहते है कि प्रदेश में केवल एक संस्थान है जो किडनी ट्रांसप्लांट कर रहा है। तमिल नाडु मे लगभग 60 सेंटर है जहां पर किडनी ट्रांसप्लांट होता है अब केवल एक संस्थान के भरोसे किडनी ट्रासप्लांट की वेटिंग खत्म करना संभव नहीं है। कारपोरेट अस्पतालों में ट्रासप्लांट मंहगा है । सभी लोग इतना खर्च नहीं उठा सकते हैं। प्रदेश में कम से कम 50 ट्रांसप्लांट सेंटर शुरू हो तब मरीजों को राहत मिलेगी।

पीजीआइ भी नहीं बढा रहा है किडनी ट्रांसप्लांट 

संजय  गांधी पीजीआई भी किडनी ट्रांसप्लांट की संख्या नहीं बढा पा रहा है। दस सालों में साल में 120 से 130 तक ही किडनी ट्रांसप्लांट हो पा रहा है जबकि इसकी संख्या 200 से अधिक होनी चाहिए। विशेषज्ञ कहते है कि इसके पीछे संसाधन की कमी है जिसमें ओटी की संख्या, एनेस्थेसिया, ट्रांसप्लांट सर्जन की कमी, किडनी ट्रांसप्लांट यूनिट का विस्तार शामिल है। 


 

लाइव डोनेशन के  भरोसे चल रहा है ट्रांसप्लांट प्रोग्राम

संस्थान के गुर्दा रोग विशेषज्ञ प्रो. नरायन प्रसाद और प्रो. धर्मेंद्र भदौरिया   कहते है कि लोगों में जागरूकता का आभाव है। कुछ लोग धार्मिक कारणों से अंग दान नहीं करते हैं। आज जो भी किडनी ट्रांसप्लांट हो रहा है वह लाइव डोनर के कारण हो रहा है। विशेषज्ञ कहते हैं 66 फीसदी लोगों का गुर्दा डायबटीज के कारण खराब होता है। आज के दिन प्रति दस लाख पर लगभग 800 लोग क्रनिक किडनी डिजीज और 150 से 200 लोग इंड स्टेज किडनी डिजीज के शिकार है। पूरे देश में हर साल केवल 3500 लोगों में किडनी ट्रांसप्लांट हो पा रहा है जबकि दो लाख दस हजार लोगों में ट्रांसप्लांट की जरूरत है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण डोनर की कमी है। देश में  पिछले पांच सालों में बीस से तीस लाख की मौत का कारण अंगो की कमी है। भारत में अंग दान की दर 0.05 प्रति दस लाख से भी कम है। इसी तरह लिवर , पैंक्रियाज, कार्निया की जरूरत हर साल 80 से एक लाख तक है।
 
प्रदेश में नहीं सपोर्ट मैनजमेंट
बात केवल जागरूकता तक सिमित नहीं है। प्रदेश में कोई परिजन अपने किसी नजदीकी के अंग को दान करना चाहे तो कहां और किससे संर्पक करें किसी को नहीं पता है। सड़क दुर्घटना में घायल होने के बाद ऐसा कोई सिस्टम नहीं जिससे उस व्यक्ति को सही जगह पर लाया जाए। संजय गांधी पीजीआई के किडनी प्रत्यारोपण विशेषज्ञ प्रो. राकेश कपूर और प्रो. अनीस श्रीवास्तव  का कहना है कि अंग दान को बढ़ावा देने के लिए एक सिस्टम विकसित करना होगा। आर्गन रिट्राइवल बैंक प्रदेश में भी होना चाहिए। विशेषज्ञ कहते हैं जितने लोग की मौत सड़क दुर्घटना में होती है उसमें से 50 पीसदी लोगों का अंग दान हो जाए तो अंगों की कमी नहीं रहेगी।  
 

 
एक अंग दाता दे सकता है 11 लोगों को जिदंगी
दो कार्निया से 6 लोगों को रोशनी, दो किडनी ने दो लोगों में गुर्दा प्रत्यारोपण, एक दिल, एक लिवर, और एक पैक्रियाज से एक -एक लोगों को जिंदगी मिल सकती है।
 


पीजीआइ में क्यों सफल है किडनी ट्रांसप्लांट

पीजीआइ में किडनी ट्रांसप्लांट के सफलता के पीछे किडनी रोग विशेषज्ञ अौर किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन के बीच अच्छा तालमेल है। ट्रांसप्लांट से तुरंत पहले अौर ट्रांसप्लांट के तुरंत बाद मरीज किडनी रोग विशेषज्ञों के हाथ में होता है। ट्रांसप्लांट सर्जन सर्जरी के पहले अपने हाथ  में लेता है अौर सर्जरी के बाद तुरंत उन्हे सौंप देता है । नेफ्रोलाजिस्ट की टीम ट्रांसप्लांट के तुरंत बाद से केयर करती है अौर किसी तरह की परेशानी होने पर सर्जन से सलाह लेती है। संस्थान के किडनी ट्रांसप्लांट यूनिट में समर्पित नर्सेज की टीम है जो ट्रांसप्लांट के मरीज के साथ पूरी रात सलान चलाती है। जिससे प्रत्यारोपित किडनी अच्छे से काम करने लगे।  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें