सोमवार, 14 अगस्त 2017

68 फीसदी बच्चों के पेट में वर्म की परेशानी-पढाई में कमजोर कर सकता है पेट का कीड़ा

पढाई में कमजोर कर सकता है पेट का कीड़ा

68 फीसदी बच्चों के पेट  में वर्म की परेशानी

साल में दो बार डी वार्मिग जरूरी 
 


 
पेट में यदि कीडे है तो इससे बच्चा पढाई में कम जोर हो सकता है। इस परेशानी की वजह से एनीमिया के साथ उसका शरीरिक विकास भी थम सकता है। संजय गांधी पीजीआइ के पिडियाट्रिक गैस्ट्रो इंट्रोलाजिस्ट प्रो. मोनिक सेन शर्मा कहते है कि  मां-बाप की एक आम शिकायत यही होती है कि उनका बच्चा ठीक से खाता-पीता नहीं हैया फिर यह कि खाता तो ठीक से है मगर बच्चे का उस अनुपात में वजन नहीं बढ़ रहा या उसकी लंबाई नहीं बढ़ रहा है ये शिकायतें सुनने में बहुत आम सी लगती हैं मगर हकीकत यह है कि ये सारी परेशानियां आमतौर पर बच्चों की आंतों में कीड़ा या कृमि (वर्म) होने के कारण सामने आती हैं। इस समस्या का इलाज बेहद आसान है मगर आमतौर पर माता-पिता इस समस्या को गंभीरता से ही नहीं लेते।  प्रो. मोनिक सेन शर्मा कहते है कि  घनी आबादी, लो इनक वर्ग  और आमतौर पर नम रहने वाले वातावरण के कारण इन कृमियों के प्रसार के लिए आदर्श हैं ।  एक से 14 साल की उम्र के लगभग 68 फीसदी बच्चे आंतों में कृमि के संक्रमण से ग्रस्त हैं। पेट में परजीवी की तरह पड़े रहने वाले ये कीड़े आपके बच्चे का अधिकांश पोषण खुद हड़प जाते हैं । बताया कि  साल में दो बार दें एल्बेंडाजोल दवा देनी चाहिए। ध्यान सिर्फ इतना रखना है कि कृमि के लक्षण नजर आते ही डॉक्टर से सलाह लेकर बच्चे को दवा दे दें। 

  
पढाई में हो जाते है कमजोर

पेट में कृमि होने पर  बच्चे पढ़ाई में एकाग्रचित्त नहीं हो पाते हैं। कृमि और अंडों की संख्या बहुत अधिक हो जाए तो आंत में एक तरह का जाल बना देते हैंतब बच्चों को अत्यधिक रक्तस्राव की आशंका रहती है। इसके अलावा दुर्लभ मामलों में मस्तिष्क में भी कीड़े के अंडे पहुंचने की घटनाएं सामने आई हैं जिससे बच्चों में दौरे पड़ने लगते हैं।

12 महीने बाद से रहता है खतरा

बच्चे के एक वर्ष का होने के बाद उसके इस तरह के कृमि संक्रमण में आने का खतरा बढ़ने लगता है क्योंकि जन्म के बाद से लेकर करीब 10 महीने तक बच्चा अधिकांशत: किसी न किसी की गोद में रहता है इसलिए जमीन से होने वाले कृमि संक्रमण से वह बचा रहता है। मगर इसके बाद वह घुटनों के बल चलने और लुढक़ने लगता है तब संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

पांच से 15 साल के उम्र में अधिक खतरा
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन बताते हैं कि वर्ष की उम्र से लेकर 15 वर्ष तक की उम्र के बच्चे सबसे अधिक इसकी चपेट में आते हैं क्योंकि इस उम्र में बच्चे ज्यादा देर तक बाहर खेलने लगते हैं और दूसरे बच्चों से घुलने-मिलने की संख्या भी बढ़ जाती है। ये बच्चे पार्क में अक्सर नंगे पैर भी खेल लेते हैं और खेलकूद कर आने के बाद बिना हाथ-मुंह धोए कुछ भी खा लेते हैं। चूंकि ये कृमि पैर की त्चचामल मार्ग और मुंहकहीं से भी शरीर में प्रवेश कर सकते हैं इसलिए इस उम्र के बच्चे इनका आसान शिकार होते हैं।

 यह होती है परेशानी
-बच्चों में खून की कमी
- बच्चों को भूख न लगना या बच्चों को अत्यधिक भूख
- वजन न बढऩा
- बच्चों का पेट असामान्य रूप से बढऩा
-बच्चों में खून की कमी के कारण थकान
- मल मार्ग में खुजली भी इसका लक्षण है।
- बच्चे का गंदगी या मिट्टी खाना और दूसरा नींद में दांत किटकिटाना अवैज्ञानिक लक्षण  

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