बुधवार, 30 अगस्त 2017

पीजीआइ में सीने पर नश्तर चलाए बिना बदला दिया दिल का वाल्व



पीजीआइ में सीने पर नश्तर चलाए बिना बदला दिया दिल का वाल्व


कैथेटर के जरिए दिल के अंदर पहुंच कर बदला वाल्व 

पीजीआइ ने कंपनी से बिना शुल्क दिलवाया 20 लाख का वाल्व




जागरण संवाददाता। लखनऊ  

बनारस के रहने वाले 76 वर्षीय जुगुल प्रसाद अौर कुशीनगर के रहने वाले 75 वर्षीय केदार कुशवाहा को दिल की परेशानी से मुक्ति मिल गयी है। इन दोनों लोगों को सांस लेने में परेशानी के साथ तमाम दूसरी परेशानी हो रही थी। संजय गांधी पीजीआइ के हृदय रोग विशेषज्ञों ने तमाम जांच के बाद देखा कि दिल के वाल्व में सिकुडन जिसे बदलना जरूरी थी। दिल का वाल्व बदलने के लिए अोपेन सर्जरी करनी पड़ती है लेकिन इनमें अधिक अधिक उम्र के चलते अोपेन सर्जरी संभव नहीं थी। संस्थान के हृदय रोग विशेषज्ञों ने नस से दिल में वाल्व डालकर बदल दिया जिससे इनकी परेशानी दूर हो गयी। इन मरीजों की माली हालत ठीक नहीं थी विभाग के विशेषज्ञों ने कंपनी से बिना शुल्क 20 लाख का वाल्व इन मरीजों को दिलवाया।   हृदय रोग विभाग के प्रमुख प्रो.पीके गोयल ने बताया कि नस से वाल्व बदलने की तकनीक को  डाक्टरी भाषा में ट्रांस कैथेटर एरोटिक  वाल्व इंप्लांट कहते है।  इन लोगों में   सर्जरी संभव( हाई रिस्क)  नहीं थी  उनमें वाल्व का इलाज संभव हुअा है।  अागे सभी अायु वर्ग अौर सामान्य लोगों में भी इस तकनीक से वाल्व बदला जाएगा। इन मरीजों में इंटरवेंशन तकनीक से ही वाल्व बदला गया जिसका एरोटिक वाल्व काम नहीं कर रहा था इस परेशानी को एरोटिक स्टोनोसिस कहते हैं।   सामान्य तौर पर वाल्व के खराब होने पर सीने को खोल कर पुराने वाल्व को निकल कर नया वाल्व लगाया जाता है अोपेन सर्जरी के अपने रिस्क है । इस तकनीक में भी एंजियोप्लास्टी की तरह जांघ के पास फीमोरल अार्टरी में मिमी का छेद बना कर अार्टरी के जरिए कैथेटर में वाल्व को लगाकर दिल में डाला जाता है जो वहां पहुंच कर 29 मिमी का वाल्व हो जाता है। यह वाल्व निटिनांल पदार्थ का बना होता है जो पानी में सिकुड जाता है अौर शरीर के तापमान पर फैल जाता है। 

एेसे मरीजों के जीवन दायी साबित होगी नई तकनीक
 अधिक उम्र,  फेफड़े की बीमारीकिडनी की कार्य क्षमता में कमीशरीरिक रूप से कमजोर लोगों में अोपेन सर्जरी संभव नहीं होती एेसे लोगों के वाल्व बदलने में यह तकनीक काफी कारगर साबित होगी। बताया कि उम्र बढ़ने के साथ वाल्व में कैल्शियम जमा हो जाता है जिससे उसके खुलने अौर बंद होने की गति में कमी अा जाती है जिससे दिल में खून भरने लगता है जो हार्ट फेल्योर का कारण बन सकता है। देखा गया है कि 70 की उम्र के बाद तीन से पांच फीसदी लोगों के एअोरटिक वाल्व  के काम में कमी अाती है।   


यह परेशानी तो लें सलाह

वाल्व में परेशानी होने सांस फूलने लगती है कई बार वैठे सांस फूलने लगती है। सीने में दर्द की परेशानी होती है। इस परेशानी का पता इको कार्डियोग्राफी परीक्षण से लगता है।  

पीजीआई लखनऊ ने स्थापित की पीसीआईडी तकनीक , उत्तर भारत में नही है कोई भी विकल्प............


मंगलवार, 29 अगस्त 2017

सात महीने अौर दो लाख खर्चने के बाद मिली बीमारी की सही जानकारी

सात महीने अौर दो लाख खर्चने के बाद मिली बीमारी की सही जानकारी

प्रोस्टेट कैंसर की परेशानी रीढ़ की हड्डी का हो रहा था इलाज

पीजीआइ ने दिया हारमोन अौर कीमोथिरेपी से मिली राहत


जागरणसंवाददाता। लखनऊ
देवरिया के रहने वाले सैफुद्दीन को बार -बार पेशाब जाने के साथ कमर अौर पीठ में दर्द की परेशानी ने बैचेन कर रखा था। इस दर्द से परेशान हो कर वह 50 हजार महीने की नौकरी छोड़ कर इलाज कराने में जुट गए। सैफुद्दीन के मुताबिक गोरखपुर में नामी डाक्टरों के पास गए किसी ने रीढ़ की हड्डी में नस दबने की परेशानी का इलाज किया । कभी हड्डी रोग विशेषज्ञ के पास भेज दिया। थाक हार डाक्टरों ने न्यूरो सर्जन के पास भेज दिया । न्यूरो स्रजन ने डेट भी दे दी लेकिन रक्त दाब बढने के कारण अापरेशन चल गया। परेशानी के साथ सात महीने घूमने के बाद जब परेशानी दूर नहीं हुई तो किसी ने संजय गांधी पीजीआइ के न्यूरो सर्जरी विभाग के पूर्व प्रमुख प्रो.डीके छाबडा से सलाह लेने को कहा । सैफुद्दीन प्रो.छाबडा के पास गए तब उन्होंने कहा कि समस्या रीढ़ की हड्डी  की नहीं प्रोस्टेट की है । पीजीआइ रिफर कर दिया। पीजीआइ के यूरो लाजिस्ट प्रो. संजय सुरेखा ने पीएसए रिपोर्ट देखा जो कि 65 था देखते ही प्रोस्टेट की बायोप्सी किया जिसमें पता चला कि सैफुद्दीन को प्रोस्टेट कैंसर की परेशानी है जो हड्डी तक फैल चुकी है। प्रो.सुरेखा ने इलाज शुरू किया मई 2017 से इलाज चल रहा है । अाज फालोअप पर अाए सैफुद्दीन ने कहा कि अब उन्हे 75 फीसदी तक अाराम है। प्रो.सुरेखा ने बताया कि तमाम जांच के बाद टेस्टोरान हारमोन ब्लाक करने की दवा के साथ डाक्सीटेक्सिन कीमोथिरेपी दी जा रही है जिससे अाराम है। अगे इनका अंडकोश निकाल दिया जाएगा जिसके बाद टेस्टोट्रान ब्लाक करने की दवा की जरूरत नहीं पडेगी। 

पेशाब में परेशानी तो यूरोलाजिस्ट से भी लें सालह

प्रो. संजय सुरेखा ने बताया कि पेशाब में रूकावट, पूरा पेशाब न होना  या बार -बार पेशाब करने जाना पड़ता है तो इसका मतलब है कि पेशाब के रास्ते में रूकावट है तो यह यूरोलाजिकल परेशानी हो सकती है खास तौर उम्र 50 से अधिक होने पर पीएसए की जांच करानी चाहिए। सैफुद्दीन के मामले में पीएसए की जांच तो हुई लेकिन इस रिपोर्ट पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। प्रो. छाबडा सर ने इसे देखते ही रिफर कर दिया।   

चिकित्सीय विशेषज्ञों ने मेनिनजाइटिस को पहचानने की ईजाद की नयी तकनीक ......


चिकित्सीय विशेषज्ञों ने मेनिनजाइटिस को पहचानने की ईजाद की नयी तकनीक ......


रविवार, 27 अगस्त 2017

हेड इंजरी सुनते ही बिना देखे भेज देते है ट्रामा सेंटर

पीजीआइ में ट्रामा मैनेजमेंट पर वर्कशाप... 
हेड इंजरी सुनते ही बिना देखे भेज देते है ट्रामा सेंटर
80 फीसदी हेड इंजरी के मरीज पीएचसीस सीएचसी अौर जिला अस्पताल पर हो सकते है मेनेज


  
जागरणसंवाददाता। लखनऊ

पीएचसी, सीएचसी अौर जिला अस्पताल के डाक्टर न्यूरो सर्जन न होने का बहाना बना कर सिर पर चोट ( हेड इंजरी) सुनते ही मरीज को ट्रामा सेंटर लखनऊ ऱिफर कर देते है जिससे यहां पर लोड बढ़ता है । हकीकत यह है कि 80 फीसदी हेड इंजरी के मरीज का इलाज वहीं पर हो सकता है। केवल इन पर नजर रखने की जरूरत होती है। इन मरीज को यदि वहीं पर मैनेज किया जाए तो इनकी जिंदगी बच सकती है लेकिन जिलों से लखनऊ भेजने में लगने वाले 6 से सात घंटे में मरीज की हालत खराब हो जाती है जिसके कारण कई बार उनकी मौत हो जाती है। मेडिकल विवि के ट्रामा सेंटर में रोज 70 से 80 हेड इंजरी के मरीज अाते है जिसमें से केवल तीन से चार  मरीजों में न्यूरो सर्जरी की जरूरत पड़ती है। यह दर्द शनिवार को संजय गांधी पीजीआइ में ट्रामा मैनेजमेंट में अायोजित वर्कशाप में मेडिकल विवि के न्यूरो सर्जन प्रो.क्षितिज श्रीवास्तव ने वयां किया। वह हेड इंजरी के मरीज में प्राथमिक देख -भाल विषय पर जानकारी दे रहे थे। प्रो. श्रीवास्तव ने बताया कि हेड इंजरी के बाद मरीज का रक्तदाब ठीक।  मरीज होश में है। संतृप्त अाक्सीजन का स्तर ठीक है तो उसे केवल देख भाल की जरूरत है । सीटी स्कैन करा लें यदि सिर के अंदर बडा क्लाट है तो उसे न्यूरो सर्जन के पास भेजने की जरूरत है नहीं तो वहीं पर इलाज किया जा सकता है। अायोजक प्रो.संदीप शाहू ने कहा कि अांतरिक चोट देखने के लिए चेस्ट एक्स-रे अौर अल्ट्रासाउंड करा कर कुछ हद सामान्य सर्जन मैनेज कर सकते हैं। 

अायुष चिकित्सक भी कर सकेंगे ट्रामा मैनेजमेंट

पीजीआइ में अायोजित वर्कशाप में होम्योपैथ, अार्यवेद विधा से जुडे 15 से अधिक डाक्टरों को ट्रामा मैनेजमेंट के हुनर सिखाया गया। इसमें हेड  इंजरी होने पर प्राथमिक देख-भाल, सीने में चोट लगने पर आईसीडी नली डालकर फेफडे  के पास जमा हवा अौर खून निकलाने के तरीका सहित कई तकनीक करके सिखायी गयी। 

एेसे करें मरीज को शिफ्ट
- एक्सीडेंट के शिकार 30 से 40 फीसदी में रीढ़ की हड्डी  में चोट की अाशंका रहती है इसलिए मरीज को शिफ्ट करते समय कालर लगाएं
- बाहरी रक्त स्राव को रोके
- सांस लेने में परेशानी को दूर करें
- अधिक रक्त स्राव हो गया है तो रक्त या अवयव चढा कर भेजे 

पीजीआइ अतिरिक्त निदेशक को दिया महासंघ ने ज्ञापन

पीजीआइ अतिरिक्त निदेशक को दिया महासंघ ने ज्ञापन
 महासंघ  क्रमिक अांदोलन के लिए तैयार
पीजीआइ के 22सौ कर्मचारीयों पर नहीं मिला  सतवां वेतन अायोग


जागरणसंवाददाता। लखनऊ

कर्मचारी महासंघ पीजीअाई और (इंटक महिला) की जिला  अध्यक्ष सावित्री सिंह एवं कार्यकारी अध्यक्ष एवं नर्सेज स्टाफ एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला और संयोजक मदन मुरारी सिंह ने नव नियुक्त अतिरिक्त निदेशक जयंत नारलेकर ने मुलाकत कर सतवें वेतन अायोग की रिपोर्ट लागू करने के संबंध में ज्ञापन दिया। कहा कि केंद्रीय अौर राज्य कर्मचारियों के लिए सतवें वेतन अायोग की रिपोर्ट लागू हो चुकी है लेकिन संस्थान 22 सौ कर्मचारियों के लिए रिपोर्ट नहीं लागू की गयी। प्रतिनिध मंडल में  महासंघ के महामंत्री एसपी यादव, वरिष्ठ उपाध्यक्ष अफसर वेग, दीप चंद, श्वेता दीक्षित,  कौशलेंद्र चौरसिया, संयुक्त मंत्री वीके त्रिपाठी, प्रदीप राणा   कोषाध्यक्ष दिलीप सिंह, सलाहकार अजय कुमार सिंह, एसपी राय सहित अन्य लोगों ने अतिरिक्त निदेशक का स्वागत करते हुए कहा कि पहली बार पूर्ण कालिक अतिरिक्त निदेशक की तैनाती हुई इस लिए संस्थान के तामम रूके हुए कार्य पूरा होना संभव हुअा है। प्रतिनिध मंडल ने संस्थान को केंद्र के अधीन करने के लिए सहयोग मांगा कहा कि अतिरिक्त निदेशक मोहदय अपने स्तर से इसके लिए प्रयास करें। दूसरी तरफ पीजीआइ कर्मचारी महासंघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष धर्मेश कुमार ने बताया कि हम लोगों ने भी अतिरिक्त निदेशक को ज्ञापन दिया है। हम लोग काला फीता बांध कर काम करना शुरू की योजना बना चुके है।   

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी पीजीआइ को केंद्र के अधीन लेने को थे तैयार

सावित्री सिंह अौर सीमा शुक्ला ने कहा कि संस्थान को केंद्र के अधीन लेने का प्रस्ताव केंद्र में तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने सहमति जतायी थी जिस पर  तत्कालीन मुख्य मंत्री मायावती सहमति दे चुकी थी लेकिन इसी बीच राज्य में सरकार  बदलने के कारण संस्थान केंद्र के अधीन नहीं जा पाया।  इस समय दोनों सरकार एक ही पार्टी की है इस लिए संस्थान केंद्र के अधीन जा सकता है। संस्थान देश का विशिष्ट संस्थान है इस लिए इसे नेशनल इंपार्टेेश का दर्जा मिलना चाहिए।

गुरुवार, 24 अगस्त 2017

पीजीआइ ने पचास साला में दिया पांच कर्मचारियों को नोटिस

पीजीआइ ने पचास साला में दिया पांच कर्मचारियों को नोटिस
विभाग के प्रमुखों से मांगे गए काम न करने वाले कर्मचारियों के नाम




जागरणसंवाददाता। लखनऊ

संजय गांधी पीजीआइ प्रशासन ने  पांच कर्मचारियों के नोटिस दे कर पूछा है कि उन्होने बीते 6 महीने  में कितना अौर क्या काम किया है । इनसे काम का  विवरण प्रस्तुत करने को कहा गया है।  यह नोटिस इनके विभाग के प्रमुख ने दिया है।  इसके अलावा पचास साल से ऊपर के कर्मचारियों की सूची बना कर विभाग के प्रमुखों से इनके कार्य  के बारे में जानकारी मांगी गयी है। मिली जानकारी के मुताबिक पांचों कर्मचारियों के जवाब के बाद समिति इनके अनिवार्य सेवानिवृत्ति के बारे में फैसला लेगी।  संस्थान प्रशासन ने  पचास साल की अायु पूरी कर चुके एेसे  कर्मचारी जो काम के योग्य नहीं है या काम नहीं करते है उनका  पता लगा कर अनिवार्य सेवा निवृत्ति देने के लिए संस्थान प्रशासन ने चार सदस्यों वाली समिति का गठन किया है। समिति के अध्यक्ष न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के प्रो.एके शुक्ला है। इनके अलावा मुख्य चिकित्सा अधीक्षक , संयुक्त निदेशक प्रशासन, वित्त अधिकारी अौर मेडिकल बोर्ड के अध्यक्ष इसके सदस्य है।  संस्थान प्रशासन का कहना है कि संस्थान के शासी निकास के 77 वीं बैठक  में अनिवार्य सेवानिवृत्ति का नियम पास हो चुका है। इस नियम के तहत शिकायत मिलने पर नियुक्ति प्राधिकारी के सामने समिति अनिवार्य सेवा निवृत्ति  के लिए संस्तुति स्क्रीनिंग के बाद  प्रस्तुत करेगी । संस्थान प्रशासन का कहना है कि अनिवार्य सेवा निवृत्ति के लिए केवल तीन माह की नोटिस दे कर सेवा से हटाया जा सकता है। एेसे कर्मचारी की विशेष निगरानी होगी जिनके बारे में विभाग के प्रमुख अनुमोदन करते हैं। 

कर्मचारी संगठनों ने जताया विरोध

कर्मचारी संगठनों का कहना है कि कोई कर्मचारी काम नहीं कर रहा है तो यह संस्थान प्रशासन की कमी है। काम नहीं कर रहा है तो पहले नोटिस क्यों नहीं दी गयी। यह 
उत्पीड़न का  नया हथियार है।  संस्थान में पहले से कर्मचारियों की कमी है। काम चलाने के लिए संविदा पर कर्मचारी रखें गए है जो कर्मचारी काम नहीं कर रहे उनके कार्य पटल को बदल कर दूसरा काम लिया जा सकता है। हम लोग हर स्तर पर पचास साल की उम्र पार करने वाले कर्मचारियों को उत्पीड़न का विरोध करेंगे।

हम है दिल के खतरे से लापरवाह



हम है दिल के खतरे से लापरवाह

पहली बार दिल की बीमारी से ग्रस्त सात सौ  लोगो पर देखा गया कारण
दिल की बीमारी से बचने के लिए एस्प्रिन, बीटा व्लाकर अौर स्टेटिन का कम करते है इस्तेमाल
51.9 फीसदी दिल के मरीजों में ब्लड प्रेशर और 9.9 में शुगर पर देखा गया कंट्रोल

कुमार संजय। लखनऊ 

हम लोग दिल की बीमारी पैदा करने वाले खतरों के प्रति सचेत नहीं है जिसके कारण दिल का दर्द कई बार जानलेवा साबित होता है। दिल को दर्द देने वाले  खतरे है डायबटीज, बढा हुअा हार्ट रेट. एलडीएल कोलेस्ट्राल का बढा स्तर और रक्त चाप यह तो तमाम लोग जाने है लेकिन इन पर नियंत्रण के उपाय हम लोग नहीं अपनाते है। भारत के लखनऊ सहित अन्य क्षेत्रों से 709 भारतीय मरीज में कारण अौर बचाव के उपाय पर शोध किया गया । इंडियन हार्ट जर्नल के शोध हाल के शोध का हवाला देते हुए  हृदय रोग विशेषज्ञों ने बताया कि  हम लोग बचाव के मामले  में पीछे है। देखा गया कि रक्तदाब 140-90 से कम 51.9  भारतीयों में मिला। एलडीएल कोलेस्ट्राल का बढा स्तर 26.2 फीसदी भारतीयों में मिला।  शुगर कंट्रोल जानने के लिए एचबीए वन सी सात फीसदी से कम केवल 9.9 फीसदी भारतीयों में मिला।  अनियंत्रित शुगर दिल की बीमारी का बडा कारण मिला। हार्ट रेट 60  से कम केवल 2.5 फीसदी भारतीय मरीजों में मिला।  दिल की बीमारी से बचाव के लिए एस्प्रिन का सेवन 85.6 फीसदी भारतीय करते है।  बीटा ब्लाकर का इस्तेमाल 69.4 फीसदी भारतीय करते है।  लिपिड का स्तर कम करने के लिए स्टेटिन का इस्तेमाल 90 फीसदी भारतीय करते है। शोध में मेडिकल विवि के प्रो.अारके सरन विशेष रूप से शामिल थे।  

फेमली हिस्ट्री नहीं तो भी हो सकती है परेशानी

विशेषज्ञों का कहना है कि दिल की बीमारी कार्नरी अार्टरी डिजीज जितने लोगों में हुअा उनमें से भारतीयों में फेमली हिस्ट्री 21.3 फीसदी में मिली।  इससे साबित होता है कि फेमली हिस्ट्री न होने पर भी हार्ट की परेशानी हो सकती है ।इसके साथ यह भी देखा गया कि मोटापा न होने पर भी दिल की बीमारी हो सकती है। शोध में शामिल भारतीयों की बीएमअाई 25.7 था। 

डायबटीज है बडा कारण
संजय गांधी पीजीआइ के हृदय लोग विशेषज्ञ प्रो.सुदीप कुमार कहते है कि इस शोध में देेखा गया कि दिलकी बीमारी(सीएडी) जितने लोगों में हुई उनमें 42.9 फीसदी में डायबटीज की परेशानी था ।  प्रो.सुदीप ने कहा कि दिल की बीमारी से बचने के लिए यह उपाय करें
- शुगर पर लगातार नियंत्रण जरूरी एचबीएवन सी सात से कम होना जरूरी
- रक्तदाब 140-90 से कम रखने के लिए लगातार लें बीपी की दवा
- लिपिड बढा है तो लिपिड कम करने की दवा के साथ दूसरी दवाएं न करें बंद

पीजीआइ सतवें वेतन अायोग अौर केंद्र के अधीन करने के लिए हुए कर्मचारी नेता एक राय

पीजीआइ
 सतवें वेतन अायोग अौर केंद्र के अधीन करने के लिए हुए कर्मचारी नेता एक राय 

कई सवर्ग के नेता एक मंच पर अाए किया एलान
जागरणसंवाददाता। लखनऊ




संजय  गांधी पीजीआइ के कर्मचारी नेता कुछ मुद्दों पर एक साथ होकर  अांदोलन चलाने पर सहमत हो गए हैं। बुधवार को कर्मचारी महासंघ पीजीआइ , नर्सेज एसोसिएशन , मिनिस्ट्रियल , लैब सहाय, लेखा विभाग , कार्यालय साहयक सहित संगठनों के पदाधिकारियों की बैठक हुई जिसमें तय हुअा कि सतवें वेतन अायोग अौर संस्थान के केंद्र के अधीन ले जाने के लिए दो मुद्दों पर सभी कर्मचारी नेता एक होकर अांदोलन करेंगे। महासंघ( सावित्री गुट) की अध्यक्ष एवं इंटक (महिला ) की जिला अध्यक्ष सावित्री सिंह, नर्सेज एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला एवं महासंघ की कार्यकारी अध्यक्ष सीमा शुक्ला , टीएनअाई के सदस्य अजय कुमार सिंह, एसी पी राय, मिनिस्ट्रियल संघ के केके तिवारी, वीके त्रिपाठी, एसएसडब्लू सुनंदा पुरवार, लेखा सवंर्ग के कौशलेंद्र के अलावा महासंघ के महामंत्री एसपी यादव, उपाध्यक्ष अफसर वेग, उपाध्यक्ष श्वेता दीक्षित ,इंजीनियरिंग सेंक्शन के वीरू यादव , कर्मचारी नेता राम सिंह, अवधेश, मिनिस्ट्रियल के अजय श्रीवास्तव, महामंत्री एसपी यादव , कर्मचारी नेता दीप चंद के अलावा तमाम नेताअों ने कहा कि देश अौर प्रदेश के सभी विभागों में सातवां वेतन अायोग लागू हो चुका है लेकिन पीजीआइ में केवल इसलिए लागू नहीं किया जा रहा है कि यहां पर अभी संकाय सदस्यों के लिए लागू नहीं हो रहा है। कर्मचारी पूरी मेनहत से काम कर रहे है एम्स दिल्ली में भी लागू हो चुका है लेकिन यहां पर लागू नही किया जा रहा है। महासंघ( सावित्री गुट) के संयोजक मदन मुरारी सिंह अौर एनएसए की अध्यक्ष  सीमा शुक्ला  कहा कि संस्थान जब केंद्र के अधीन नहीं होगा  तब तक संस्थान का भला नहीं होगा। संस्थान नेशनल इंपारटेंस है इसलिए राज्य अौर केंद्र सरकार मिल कर इसे अपने अधीन ले। इसके लिए मुख्यमंत्री से मिल कर इस संबंध मे ज्ञापन दिया जाएगा।   




रविवार, 20 अगस्त 2017

मेडिकल कालेज गोरखपुर को 152.62 रूपया में रोज एक मरीज पर इलाज का जिम्मा

सिविल से भी कम मेडिकल कालेज गोरखपुर मिलता  है इलाज के लिए पैसा

सिविल अस्पताल लखनऊ को एक बेड पर एक दिन के लिए 1393 रूपया तो मेडिकल कालेज गोरखपुर को 152.62 रूपया 

एेसे में कैसे संभव है मेडिकल कालेजों में सही इलाज



कुमार संजय । लखनऊ


चमचमाती टाइल्स युक्त भवन है।  मशीने भी खरीद ली गयी है। बेड भी लगा है। स्टाफ भी तैनात है लेकिन है नहीं तो इलाज के लिए दवा, जांच के लिए , सर्जिकल अाइटम के लिए पैसा। सरकार मद संख्या 39 के तहत अौषधि एवं रसायन के लिए बजट देती है जिससे इलाज के सारे खर्च होते है। सरकार ने इस मद में सविलि और बलरामपुर अस्पताल से भी कम बजट गोरखपुर मेडिकल सहित अन्य मेडिकल कालेजों को बजट देती है। मेडिकल कालेज  गोरखपुर में तो 150 वेंटीलेटर भी है जबकि इन अस्पतालों में वेंटीलेटर या बडी सर्जरी का इंतजाम नहीं है। सिविल अस्पताल लखनऊ को औषधि एवं रसायन मद में लगभग चार सौ बेड लगभग 17.34 करोड़ का बजट दिया गया है। इस अनुसार एक बेड पर एक दिन के लिए मरीज को दवा , जांच सहित अन्य के लिए 1393. 16पैसा दिया जाता है। बलराम पुर अस्पताल को एक बेड पर एक मरीज  के लिए 24 घंटे इलाज का खर्च   731 रूपया दिया जाता है। राम मनोहर लोहिया अस्पताल का देखे तो पता लगता है औषधि एवं रसायन के लिए 11.56 करोड़ दिया जाता है । इसके अनुसार एक बेड पर 24 घंटे के इलाज के लिए    560.55  पैसा बजट दिया जाता है।मेडिकल कालेज   गोरखपुर मेडिकल कालेज में 955 बेड है जिसमें 150  बेड वेंटीलेटर युक्त है। सरकार मद संख्या -39 के तहत जिसमें अौषधि अौर रसायन के तहत केवल पांच करोड़  32 लाख पूरे साल के लिए देती है।  इलाज, दवा , जांच के लिए 152.62  रूपए 24 घंटे एक बेड पर  दिया जाता है।


152.62  में कैसे है इलाज संभव
 विशेषज्ञों की माने तो वेंटीलटर पर रहने वाले मरीज में 24 घंटे में अाठ से बारह हजार का खर्च पीजीआइ, राम मनोहर लोहिया जैसे संस्थान में अाता है जहां पर दवाएं, सर्जिकल अाइटम , जांच किट  एचअारएफ सिस्मटम से कीमत के 40 से 50 फीसदी कम कीमत पर मरीजों को उपल्ध करायी जाती है। एेेसे में 152.62 के बजट में कैसे इलाज संभव है इस बारे में सामाजिक सरोकार मंच एवं अाईएमए लखनऊ के अध्यक्ष डा. पीके गुप्ता कहते है कि सामान्य बेड और सामान्य परेशानी में भी एक मरीज पर 24  घंटे में कम से एक हजार का खर्च अाता है। संजय गांधी पीजीआइ के अस्पताल प्रबंधन विभाग के प्रो. राजेश हर्ष वर्धन कहते है कि इस हाल में मरीज या खुद दवा, सर्जिकल अाइटम, जांच कैसे होती है यह तो रिसर्च  का विषय़ है। 

वेंटीलेटर पर अाठ से 15 हजार का खर्च

संजय  गांधी पीजीआइ के वेंटीलेटर यूनिट से जुडे प्रो.देवेंद्र गुप्ता कहते है कि वेंटीलेटर पर रहने वाले मरीज में फिल्टर, सर्किट, ट्रेकी कार्डिया ट्यूब, सेंट्रल लाइन सहित तमाम सर्जिकल अाइमट के साथ एंटी बायोटिक के अलावा मरीज की स्थित जानने के लिए तमाम ब्लड कमेंस्ट्री, ब्लड गैस, हिमैटोलाजिकल जांचे करानी होती है जिसमें एक मरीज पर 24  घंटे में अाठ से 15 हजार तक का खर्च अाता है।   


सामन्य बेड पर रोज है एक हजार का खर्च

विशेषज्ञों का कहना है कि सामान्य परेशानी वाले सामान्य मरीज को भर्ती करने पर  जांच , दवा, सिरिंज निडिल, नाम्रल सलाइन, पर एक हजार का खर्च अाता है। 

औषधि रसायन मद क्या है

सरकार बजट देते समय दवा, जांच किट, सर्जिकल अाइटम, सफाई के लिए केमिकल, अाक्सीजन, सिलेंडर, एंबू बैग सहित तमाम इलाज के लिए काम  अाने वाले वस्तुअों के लिए अलग से बजट देता है। गोरखपुर 152.62 एक बेड के लिए बजट साल भर के लिए दिया  जाता है। यहां पर एक बेड पर दो से तीन मरीज रहते है एेसे में इलाज कैसे संभव है। 



किस मेडिकल कालेज  को कितना मिलता है औषधि अौर रसायन के लिए बजट

इलाहाबाद- चार करोड़
झांसी मेडिकल कालेज- चार करोड़
मेरठ- 5.32
गोरखपुर- 5.32
अागरा- चार करोड़
कानपुर - 5.28
अाजमगढ़- 3 करोड़
बांदा- एक करोड़
सिविल अस्पताल लखनऊ- 17.34 करोड़
बलरामपुर अस्पताल लखनऊ- 17.51करोड़
राम मनोहर लोहिया अस्पताल-11.56 करोड़

जीएसटी के बाद भी पीजीआई दें रहा सस्ती दवाएँ........


शनिवार, 19 अगस्त 2017

पीएचसी -सीएचसी पर फ्री जांच में खेल

फ्री जांच के नाम पर कमाई कृष्णा डायग्नोस्टिक का खेल ...
थ्रीपी मॉडल : रक्त की जांच पर रोक, भुगतान से इन्कार






संदीप पांडेय ’ लखनऊ एनएचएम की मुफ्त पैथोलॉजी जांच सेवा में नियमों की धज्जियां उड़ा दी गईं। कंपनी ने स्टेब्लिसमेंट रिपोर्ट व अनुमति लिए बगैर ही सेंटरों को रन करा दिया। जांच में पर्दाफाश होने पर स्वास्थ्य केंद्रों में पीपीपी मॉडल पर हो रही रक्त की जांच पर तुरंत रोक लगा दी, वहीं कंपनी द्वारा भेजे गए करोड़ों के बिल का भुगतान करने से इंकार कर दिया गया। ऐसे में राज्य में थ्रीपी मॉडल पर शुरू हुई मुफ्त जांच की सेवा धांधली की भेंट चढ़ गई। 1सीएचसी व अस्पताल में करीब 28 रक्त की जांचें मुफ्त करने का फैसला फरवरी 2017 में किया गया था। राज्य की 822 सीएचसी और 95 जिला चिकित्सालयों में मरीजों की जांच के लिए कृष्णा डायग्नोस्टिक सेंटर को काम सौंपा गया था। मगर कंपनी ने टेंडर फाइनल होते ही शर्तो की धज्जियां उड़ाना शुरू कर दिया। लखनऊ समेत कई जनपदों में सेंटर खोलकर आननफानन रन करा दिए गए। वहीं स्वास्थ्य विभाग व एनएचएम को सेंटर स्टेब्लिसमेंट रिपोर्ट तक नहीं दी, साथ ही बगैर अनुमति के मरीजों की जांच भी शुरू कर दी। इसके बाद कंपनी ने करीब ढाई करोड़ का बिल बनाकर भी भेज दिया। जांच में खुली अनियमितताओं की परतों पर अधिकारी सकते में आ गए। ऐसे में एनएचएम निदेशक आलोक कुमार व चिकित्सा स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. पदमाकर सिंह ने बिना अनुमति शुरू हुए सेंटरों का बिल अवैध करार दिया। दोनों अधिकारियों ने कहा कि स्वास्थ्य केंद्रों पर थ्रीपी मॉडल पर जांच बंद करने के निर्देश दिए गए हैं, वहीं कंपनी के बिल को भुगतान करने से इन्कार कर दिया गया। 

गोरखपुर में हेराफेरी, सिद्धार्थनगर में फर्जी जांचें : शिकायत में कृष्णा डायग्नोस्टिक सेंटर पर टेंडर लेकर दूसरी कंपनियों को काम देने के आरोप लगाए गए। कहा गया कि गोरखपुर में खुद काम करने के बजाए डॉ. अमित की पैथोलॉजी को काम सौंप दिया गया, वहीं लखनऊ में सौरभ डायग्नोस्टिक सेंटर को जांच को जिम्मा दे दिया। इसके अलावा विक्टोरिया लाइफ केयर को भी काम सौंपने के आरोप हैं। उधर, कंपनी द्वारा भुगतान अधिक लेने के लिए फर्जी जांचें की गईं। सिद्धार्थ नगर के इटवा सीएचसी प्रभारी ने मामला पकड़ने पर सेंटर को चेतावनी दी, मगर सिलसिला नहीं थमा। ऐसे में डॉक्टरों की बगैर सलाह पर बेवजह मरीजों की अतिरिक्त जांच करने पर जुलाई में पर्चा व रिपोर्ट को नत्थी कर उच्चाधिकारियों से लिखित शिकायत की। ऐसे में सेंटरों पर फर्जी जांचें भी की गईं। 


सरकार के ‘लोगो’ का अवैध प्रयोग

कृष्णा डायग्नोस्टिक सेंटर ने सरकारी चिन्हों का भी जमकर दुरुपयोग किया। उसने खुद के लेटर पैड पर एनएचएम व यूपी सरकार के लोगो छपवा रखे थे। जिससे वह खुद के सेंटर का समाज के बीच प्रभाव जमा रहा था। जांच में इस करतूत को अवैध करार दिया गया। कृष्णा डायग्नोस्टिक सेंटर ने स्टेब्लिसमेंट रिपोर्ट नहीं दी। बगैर अनुमति प्राप्त किए उसने स्वास्थ्य केंद्रों पर सेंटर रन कर मरीजों की जांच शुरू कर दी। इसलिए उसके द्वारा भेजा गया बिल अवैध है। उसका भुगतान नहीं किया जाएगा।

डॉ. पद्माकर सिंह, महानिदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य-  कंपनी का बिल अमान्य है। इसका भुगतान करने का सवाल ही नहीं है। वहीं फिलहाल स्वास्थ्य केंद्रों पर थ्रीपी मॉडल पर रक्त की जांच बंद करने के निर्देश दिए गए हैं।

आलोक कुमार, निदेशक, एनएचएम ---स्टेब्लिसमेंट रिपोर्ट दिए शुरू किए सेंटर, नहीं ली अनुमति-कंपनी द्वारा भेजा गया करोड़ों का बिल अवैध, फंसा भुगतान

जांच पर सवाल, सेहत से खिलवाड़

सीएचसी पर खोले गए सेंटर पर लैब टेक्नीशियन, एसी व रेफ्रीजरेटर न होने से सैंपल कलेक्शन में एरर हुआ है। वहीं संग्रह किए गए सैंपल को रूम टेंपरेचर में घंटों रखा गया। रेफ्रीजरेटर न होने से उसका कोल्ड चेन मेनटेन नहीं रखा गया। ऐसे में कई घंटे बाद जांच के लिए मशीन में लगाए गए सैंपल की रिपोर्ट भी सवालों के घेरे में है। पैथोलॉजिस्ट के मुताबिक चार डिग्री तापमान में सैंपल रखकर दो घंटे में ही सैंपल की एनॉलिसस शुरू कर देनी चाहिए। ऐसा न होने से जांच के पैरामीटर सटीक आने में संशय रहता है, जोकि मरीज के सीधे इलाज को प्रभावित करता है।



शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

पीजीआइ -अोपीडी में 24 घंटे जांच के सपने रह गए अधूरे

अोपीडी में 24 घंटे जांच के सपने रह गए अधूरे

एक साल पहले संस्थान दिखाया था  मरीजों को दो घंटे में जांच रिपोर्ट देने का सपना

पुरानी अोपीडी में बन तैयार है दस लाख से लैब


जागरण संवाददाता। लखनऊ

संस्थान की अोपीडी में अाने वाले मरीजों को निजि पैथोलाजी के सिकंजे से बचाने के लिए संस्थान प्रशासन ने अोपीडी में जांच केंद्र खोलने का वादा किया था लेकिन एक साल भी बाद भी संस्थान प्रशासन यह सपना पूरा नहीं कर पाया। मरीजों को अभी रिपोर्ट के लिए अगले दिन का इंतजार करना पड़ता है नहीं तो निजि पैथोलाजी से जांच कराना पड़ता है। तमाम मरीज एेसे में जिसमें बीमारी का पता करने के लिए साधारण टेस्ट से लाइन मिल जाती है जिसके लिए तुरंत जांच की जरूरत होती है एेसे मरीजों के लिए जब 24 घंटे लैब भर्ती मरीजों के लिए खुल रही थी तो वादा किया एेसे ही लैब अोपीडी  में भी होगी। अोपीडी में लैब बनवाया भी गया जिसके निर्माण में लगभग दस लाख खर्च भी हुअा लेकिन लैब बंद पडी है। रीजेंट काट्रेक्ट पर यह लैब खोली जानी थी। इसका जिम्मा भी भर्ती मरीजों की 24 घंटे जांच करने वाली कंपनी को दिया गया था । 24 घंटे जांच की सुविधा इंडोर मरीजों को लिए है।  सामान्य जांच बायोकमेस्ट्री, ड्रग लेवल, हीमोग्लोबील सहित सामान्य जांच के अधार पर विशेषज्ञ दवा में बदलाव करते है । मरीज को अभी अगले दिन रिपोर्ट मिलने तक या उस विशेषज्ञ की अगली अोपीडी तक इंतजार करना पड़ता है । संस्थान प्रशासन का कहना था कि   24 अोपीडी लैब शुरू होने के बाद अोपीडी में दिखाने के बाद तुरंत जांच का नमूना देगा दो से तीन घंटे में रिपोर्ट मिलने के बाद उसी दिन दिखा कर दवा में बदलाव करा सकेंगे। मरीज पीजीआई के दर पर ही जांच करा सकेंगे यह वादा फिलहाल पूरा नहीं हो पाया है। 

ड्रग लेवल की जांच भी नही हो सकी शुरू

 ट्रांसप्लांट के लोगों में ड्रग लेवल के अाधार पर दवा की डोज तय होती है। अभी रिपोर्ट के लिए मरीजों को इंतजार करना पड़ता है। कहा गया था कि  अोपीडी जांच सेवा शुरू होेने के बाद उसी दिन इम्यूनोसप्रेसिव सहित दूसरी दवाअों के लेवल की रिपोर्ट मरीजों को दी जाए। इस सेवा के लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जाएगा। जिस दर में पहले जांच होती थी उसी दर पर जांच होगी। बताते चले के लिए इम्यूनोसप्रेसिव लेव की जांच निजि क्षेत्र में 4 से पांच हजार है पीजीआई में 15  सौ में जांच हो सकती है। 

पुरानी अोपीडी में जहां पर अोपीडी मरीजों के लिए लैब स्थापित होनी है उसी एरिया में 140 बेड बढ़ना है जिसमें मोडीफिकेशन होना है इसके कारण अोपीडी में लैब नहीं शुरू की गयी है। मरीजों को वहां जाने में परेशानी होती बेड शुरू करने के बाद अोपीडी लैब शुरू की जाएगी.....निदेशक प्रो.राकेश कपूर  

नए कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष सावित्री सिंह एवं महामंत्री एसपी यादव

नए कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष सावित्री सिंह एवं महामंत्री एसपी यादव 

दूसरे महासंघ से मिले निदेशक 


जागरणसंवाददाता। लखनऊ
नए कर्मचारी महासंघ पीजीआइ के गठन हो गया है। संयोजक मदन मुरारी ने बताया कि संस्थान केई ट्रेड यूनियन के समर्थन से महासंघ का गठन किया गया है। इसमें 45 सदस्यों वाली कार्यकारणी का गठन किया गया जिसमें वरिष्ठ उपाध्यक्ष अफसर वेग, दीप चंद, श्वेता दीक्षित, उपाध्यक्ष सपना , मनीष सिंह, वरिष्ठ मंत्री अोम प्रकाश , कौशलेंद्र चौरसिया, संयुक्त मंत्री वीके त्रिपाठी, अशोक कुमार संगठन मंत्री अवधेश रावत, कोषाध्यक्ष दिलीप सिंह, सलाहकार अजय सिंह, कार्यकारणी सदस्य रवि निगम, सरोज, मीना, शीतला प्रसाद, नेत राम, सुनील कुमार, गंगाराम, अदित्या अवस्थी, राजनारायन, महेंद्र प्रताप , सुकलेश सहित अन्य लोग पदाधिकारी बनाए गए हैं। संघ के मुख्य संरक्षक इंटक के प्रदेश अध्यक्ष अशोक सिंह बनाए गए । दूसरे महासंघ के पदाधिकारियों से निदेशक ने शिष्टाचार मुलाकात कर मागों के बारे में जानकारी हासिल कर समस्याअों के निस्तारण का अाश्वसन दिया। निदेशक ने कहा कि सातवें वेतन अायोग को लागू करने के लिए शासन से वार्ता हो रही है। हरी झंडी मिलने के बाद लागू किया जाएगा। जहां तक केंद्र के अधीन ले जाने की बात है यह सरकार का फैसला है। 

ट्रामा टू का जिम्मा संभालेंगे प्रो. राजकुमार

ट्रामा टू का जिम्मा संभालेंगे प्रो. राजकुमार

इंचार्ज बनने के बाद किया दौरा मिली तमाम खामियां


जागरणसंवाददाता। लखनऊ
ट्रामा टू शुरू करने व चलाने का  जिम्मा  संस्थान प्रशासन अौर सरकार ने न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो. राजकुमार को सौंपा गया है। प्रो. राजकुमार ने गुरूवार को ट्रामा टू का निरीक्षण कर स्थिति का जायजा लिया जिसमें तमाम खामियां मिली जिसे ठीक करने के लिए निर्माण एंजेसी राजकीय़ निर्माण निगम से ठीक करने को कहेंगे। बताय़ा कि बेस मेंट में पानी भरा हुअा है। कई जगह दीवारों में दरार पड़ गयी है। फायर सिस्सटम काम नहीं कर रहा है। लिफ्ट भी खराब है। सबसे बडी परेशानी बिजली की लाइन को लेकर है। पीजीआइ से तीन केबिल ट्रामा टू को गयी थी लेकिन एक केबिल काम कर रही है दो केबिल काम नहीं कर रही है। संभव है कि हाइवे बनते समय लाइन खराब हो गयी है इसको ठीक कराए बिना वहां पर काम संभव नहीं है। इसके अलावा स्टाफ और संसाधन के लिए निदेशक को प्रस्ताव भेजा है। सही समय पर सही संसाधन मिले तो भी 6 महीने इसे शुरू में लगेगा। बताया कि पहले 50 बेड एक्टीवेट करने की योजना है। 




एनएचएम में मुफ्त जांच में घोटाला

एनएचएम में मुफ्त जांच  में घोटाला


पैथोलॉजी का टेंडर लेने वाली कंपनी ने दूसरे को सौंप दिया काम





संदीप पांडेय ’ लखनऊ
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत मुफ्त पैथोलॉजी जांच के लिए किया गया करार मरीजों के साथ मजाक साबित हुआ। इन जांचों के लिए टेंडर लेने वाली कंपनी कृष्णा डायग्नोस्टिक सेंटर ने ऐसी दूसरी कंपनी को यह काम सौंप दिया, जिसके पास पैथोलॉजी जांचों के लिए बुनियादी ढांचा तक नहीं है।1इतना ही नहीं, ज्यादा भुगतान पाने के लिए लगातार फर्जी जांचें भी की गईं। उनकी जांच रिपोर्ट की सत्यता पर भी संदेह है। जांच के नाम पर यह खेल प्रदेश के 822 सीएचसी और तमाम जिला अस्पतालों में खेला गया। एनएचएम के तहत राज्य में पीपीपी मॉडल पर पैथोलॉजी जांच का फैसला किया गया। इसके लिए 7 फरवरी 2017 को कृष्णा डायग्नोस्टिक सेंटर के साथ करार हुआ। पहले चरण का काम 7 अप्रैल तक पूरा करना था, मगर ऐसा नहीं किया गया। खुलासा डीजी हेल्थ की जांच में हुआ। जांच समिति की बैठक 12 मई को हुई थी। अब शासन को टेंडर निरस्त करने की संस्तुति की गई।’

राज्य में मुफ्त जांच के लिए कृष्णा डायग्नोस्टिक सेंटर से था करार।  योजना के दायरे में हैं राज्य के 822 सीएचसी व 95 जिला अस्पतालखून की मुफ्त जांच का करार कृष्णा डायग्नोस्टिक सेंटर के साथ किया गया था। सेंटर द्वारा किए जा रहे कार्यो में काफी गड़बड़ी पाई गई है। ऐसे में शासन को टेंडर निरस्त करने के लिए पत्र लिखा गया है।डा. पद्माकर सिंह, महानिदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य



जांच में टेंडर की शर्तो का उल्लंघन पाया गया है। कृष्णा डायग्नोस्टिक सेंटर को टर्मिनेशन का नोटिस जारी कर दिया गया है।आलोक कुमार निदेशक, एनएचएम



इस तरह हुई अनियमितता

- कृष्णा डायग्नोस्टिक ने टेंडर लिया, लेकिन संचालन दूसरे को दे दिया 

- इसके लिए उसने उप संविदा भी निकाली, जो नियम विपरीत थी

-बिना टेक्नीशियन और रेफ्रिजरेटर के चलाए गए सेंटर

-तैनात कर्मचारियों की योग्यता पर संदेह, नहीं दिया ब्योरा1’ ब्लड सैंपल के तापमान को मेनटेन करने के लिए नहीं थी व्यवस्था

- सेंटर पर एसी, सैंपल बार कोड, लैब इन्फॉर्मेशन सिस्टम भी नहीं




मंगलवार, 15 अगस्त 2017

मच्छर अौर कुपोषण बना रहा है पूर्वाचल को बच्चों की मौत की राजधानी

बच्चों की मौत की राजधानी है पूर्वाचल 

पांच साल से कम उम्र के हजार में से 86 से 100 बच्चों की हो जाती है मौत


कुमार संजय। लखनऊ
पूर्वाचल के जिले श्रावस्ती, गोंडा, सिद्दार्थ नगर, बस्ती, संतकबीर महराजगंज, गोरखुपर , कुशीनगर , देवरिया सहित कई जिले पांच साल से कम उम के बच्चों के मौत की राजधानी साबित हो रहे है। एनुअल हेल्थ सर्वे के अांकडे इसकी गवाही देते है लेकिन सरकार का दावा है कि सब ठीक है। बच्चों के मौत के कारणों पर गौर करें तो पता चलता है संक्रमण जिसमें इंसेफेलाइिटस, डायरिया, फेफडे में संक्रमण  सहित अन्य परेशानी के कारण मौत के शिकार होते है। रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल के कम उम्र के 80 से 92 फीसदी बच्चों में बुखार की परेशानी, 8 से 13.9 फीसदी में डायरिया, 8 से 16 फीसदी तक सांस लेने में परेशानी देखने को मिली है। सही समय पर सही इलाज न मिलने के कारण बच्चों की मौत होती है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत दर राज्य स्तर 92 प्रति हजार है । यह पूर्वाचल के जिलों में 135 से 86 तक है। नवजात शिशु के मौत के मामले में इन जिलों में 46 से 69 प्रति हजार है। गोरखुप मेडिकल कालेज इन्ही जिलों के बच्चे इलाज के लिए अाते है । 

पूर्वाचल में मच्छर है परेशानी की जड़

मेडिकल विवि लखनऊ के माइक्रोबायलोजिस्ट डा. प्रशांत अौर संजय गांधी पीजीआइ के माइक्रोबायलोजिस्ट  डा.टीएन ढोल कहते है कि पूर्वाचल में मच्छर सबसे बडी परेशानी की जड़ है। दवा अौर इलाज तो ठीक है परेशानी की जड़ पर प्रहार करने की जरूरत है जिसके लिए इन जिलों के गांव , कस्बों में मच्छर की दवा का छिडकाव के लिए अभियान चलाना पडेगा । संतकबीर नगर के शिक्षा विद दिग्विजय पाण्डेय कहते है कि गांव में अाज तक छिड़काव नहीं हुअा । 

 कुपोषण, अधूरा टीकाकरण है वजह
- कुपोषण, अधूरा टीकाकरण, खुले में शौच और असुरक्षित पीने का पानी है।''
- चौथे नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार 'गोरखपुर में 35% से ज्यादा बच्चे अंडरवेट हैं, जबकि 42% कमजोर या छोटे कद के हैं।'' 
- गोरखपुर टीकाकरण के मामले में भी पीछे है। यहां 3 में से 1 बच्चा जरूरी टीकाकरण चक्र को पूरा नहीं करता है। सिर्फ 35% घरों में टॉयलेट्स हैं। इससे पता चलता है कि यहां खुले में शौच की दर सबसे ज्यादा है। यही कारण है कि यहां 25% बच्चे डायरिया से पीड़ित हैं।''
कुपोषित बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता कम
- अाशियना चाइल्ड एंड मैटर्लिटी होम के बाल रोग विशेषज्ञ डा. अनुराग  कहते हैं कि कुपोषण और अधूरा टीकाकरण बच्चों को कमजोर बना देता है और इससे इंसेफलाइटिस जैसी बीमारियां होती हैं। 
- संजय गांधी पीजीआइ के पिडियाट्रिक गैस्ट्रो इंट्रोलाजिस्ट प्रो.मोइनाक सेन शर्मा कहते है कि कुपोषित बच्चों की बीमारी के मुकाबले प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और इसी वजह से डायरिया जैसी आम बीमारियों से उनकी मौत हो जाती है।''
कई साल से हो रही बच्चों की मौत
-  70% बच्चे इंसेफलाइटिस का शिकार होते हैं, वो कुपोषित होते हैं। 
- विशेषज्ञ कहते है कि  गोरखपुर में कई सालों से बच्चों की मौत हो रही है और उन्हें बचाने के लिए सख्त जरूरतों पर जोर देने के लिए डाटा की कमी नहीं है।



पांच साल से कम उम्र के बच्चो की मौत दर प्रति एक हजार
श्रावस्ती- 135
गोंडा- 96
सिद्दार्थ नगर- 118
बस्ती-106
संतकबीर नगर- 93
महराजगंज- 105
गोरखुपर- 81
कुशीनगर- 99
देवरिया- 86
१० फीसदी औरतों में बीमार शिशु का खतरा
राजधानी के १० फीसदी महिलाओं में है जेनटिक रिस्क फैक्टर
इनसे पैदा हो सकता है बीमार शिशु
पीजीआई सहित पांच संस्थान ने आठ हजार महिलाओं पर किया शोध
  कुमार संजय
लखनऊ। हर मां की हसरत होती है कि उसके कोख से स्वस्थ्य और सुंदर शिशु का ही जंम हो लेकिन  लखनऊ की १० फीसदी महिलाओं में अनुवांशिकी बीमारी के साथ शिशु के  जंम देने वाले रिस्क फैक्टर फैक्टर मौजूद है।  संजय गांधी पीजीआई के अनुवांशिकी रोग विभाग की प्रमुख प्रो. शुभा फड़के ने इस तथ्य का खुलासा लखनऊ की २६५८ महिलाओं पर लंबे शोध के बाद किया है। इनकी बात भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने स्वीकार भी किया है। देश में अनुवांशिकी बीमारियों की आशंका की दर का  पता लगाने के लिए परिषद ने  एम्स दिल्ली, आईसीएमआर रिसर्च सेंटर मुम्बई, सेंट जांस मेडिकल कालेज बंगलौर, एसजीपीजीआई लखनऊ, बी जे मेडिकल पुणे को जिम्मा सौंपा था। पाया कि सभी संस्थानों ने  ८३३१ महिलाओं पर शोध किया तो    पाया  कि देश में  १४ फीसदी महिलाओं में एक या अधिक रिस्क फैक्टर मौजूद है। १० फीसदी एक रिस्क फैक्टर पाया गया जबिक ३.५ फीसदी महिलाओं में दो या अधिक रिस्क फैक्टर पाया गया।  लखनऊ की १०.३, दिल्ली की ११.३, बंगलौर की १२.६, मुम्बई की २३.३ और पुणे की १९.४  फीसदी महिलाओं में एक या अधिक जेनटिक रिस्क फैक्टर देखा गया है।  शोध में लखनऊ सेंटर से प्रदेश की २६५८ महिलाएं शामिल थी जिसमें से १०.३ फीसदी महिलाओं में अनुवांशिकी खतरे की आशंका मिली। अनुवांशिकी विभाग की प्रमुख प्रो. शुभा फड़के के मुताबिक किसी परिवार में यदि अनुवांशिकी बीमारी के साथ शिशु का जंम हुआ हो तो गर्भधारण करने से पहले और गर्भधारण करने के बाद अनुवांशिकी रोग विशेषज्ञों से सलाह लेना चाहिए।    

गर्भ में लग सकता है बीमारी की पता
गर्भस्थ शिशु में बीमारी का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड, एमनियोसेंटियोसिस, कोरियोनिक विलस सैप्लिंग जैसी विधियों से लग सकता है। एमनियोसेंटियोसिस विधि में जंम जात विकृति का पता लगाने के लिए गर्भवती महिला के गर्भ से पानी निकाल कर उसका क्रोमोसोम परीक्षण किया जाता है। तमाम बीमारियों का पता इस तकनीक से भी नहीं लगता है।  



 क्या हो सकती है परेशानी

इस परेशानी की वजह से जंम लेने वाले शिशु में न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट, थैलेसीमिया , अंगो के बनावटी में विकृति जैसी बीमारियां हो सकती है। इनसे मृत शिशु का जंम हो सकता है। इन्हें स्वत:गर्भपात हो सकता है।


सोमवार, 14 अगस्त 2017

68 फीसदी बच्चों के पेट में वर्म की परेशानी-पढाई में कमजोर कर सकता है पेट का कीड़ा

पढाई में कमजोर कर सकता है पेट का कीड़ा

68 फीसदी बच्चों के पेट  में वर्म की परेशानी

साल में दो बार डी वार्मिग जरूरी 
 


 
पेट में यदि कीडे है तो इससे बच्चा पढाई में कम जोर हो सकता है। इस परेशानी की वजह से एनीमिया के साथ उसका शरीरिक विकास भी थम सकता है। संजय गांधी पीजीआइ के पिडियाट्रिक गैस्ट्रो इंट्रोलाजिस्ट प्रो. मोनिक सेन शर्मा कहते है कि  मां-बाप की एक आम शिकायत यही होती है कि उनका बच्चा ठीक से खाता-पीता नहीं हैया फिर यह कि खाता तो ठीक से है मगर बच्चे का उस अनुपात में वजन नहीं बढ़ रहा या उसकी लंबाई नहीं बढ़ रहा है ये शिकायतें सुनने में बहुत आम सी लगती हैं मगर हकीकत यह है कि ये सारी परेशानियां आमतौर पर बच्चों की आंतों में कीड़ा या कृमि (वर्म) होने के कारण सामने आती हैं। इस समस्या का इलाज बेहद आसान है मगर आमतौर पर माता-पिता इस समस्या को गंभीरता से ही नहीं लेते।  प्रो. मोनिक सेन शर्मा कहते है कि  घनी आबादी, लो इनक वर्ग  और आमतौर पर नम रहने वाले वातावरण के कारण इन कृमियों के प्रसार के लिए आदर्श हैं ।  एक से 14 साल की उम्र के लगभग 68 फीसदी बच्चे आंतों में कृमि के संक्रमण से ग्रस्त हैं। पेट में परजीवी की तरह पड़े रहने वाले ये कीड़े आपके बच्चे का अधिकांश पोषण खुद हड़प जाते हैं । बताया कि  साल में दो बार दें एल्बेंडाजोल दवा देनी चाहिए। ध्यान सिर्फ इतना रखना है कि कृमि के लक्षण नजर आते ही डॉक्टर से सलाह लेकर बच्चे को दवा दे दें। 

  
पढाई में हो जाते है कमजोर

पेट में कृमि होने पर  बच्चे पढ़ाई में एकाग्रचित्त नहीं हो पाते हैं। कृमि और अंडों की संख्या बहुत अधिक हो जाए तो आंत में एक तरह का जाल बना देते हैंतब बच्चों को अत्यधिक रक्तस्राव की आशंका रहती है। इसके अलावा दुर्लभ मामलों में मस्तिष्क में भी कीड़े के अंडे पहुंचने की घटनाएं सामने आई हैं जिससे बच्चों में दौरे पड़ने लगते हैं।

12 महीने बाद से रहता है खतरा

बच्चे के एक वर्ष का होने के बाद उसके इस तरह के कृमि संक्रमण में आने का खतरा बढ़ने लगता है क्योंकि जन्म के बाद से लेकर करीब 10 महीने तक बच्चा अधिकांशत: किसी न किसी की गोद में रहता है इसलिए जमीन से होने वाले कृमि संक्रमण से वह बचा रहता है। मगर इसके बाद वह घुटनों के बल चलने और लुढक़ने लगता है तब संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

पांच से 15 साल के उम्र में अधिक खतरा
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन बताते हैं कि वर्ष की उम्र से लेकर 15 वर्ष तक की उम्र के बच्चे सबसे अधिक इसकी चपेट में आते हैं क्योंकि इस उम्र में बच्चे ज्यादा देर तक बाहर खेलने लगते हैं और दूसरे बच्चों से घुलने-मिलने की संख्या भी बढ़ जाती है। ये बच्चे पार्क में अक्सर नंगे पैर भी खेल लेते हैं और खेलकूद कर आने के बाद बिना हाथ-मुंह धोए कुछ भी खा लेते हैं। चूंकि ये कृमि पैर की त्चचामल मार्ग और मुंहकहीं से भी शरीर में प्रवेश कर सकते हैं इसलिए इस उम्र के बच्चे इनका आसान शिकार होते हैं।

 यह होती है परेशानी
-बच्चों में खून की कमी
- बच्चों को भूख न लगना या बच्चों को अत्यधिक भूख
- वजन न बढऩा
- बच्चों का पेट असामान्य रूप से बढऩा
-बच्चों में खून की कमी के कारण थकान
- मल मार्ग में खुजली भी इसका लक्षण है।
- बच्चे का गंदगी या मिट्टी खाना और दूसरा नींद में दांत किटकिटाना अवैज्ञानिक लक्षण