मंगलवार, 25 जुलाई 2023

15.3 फीसदी ( प्री-डायबिटिक) यानि कभी भी हो सकते है डायबटीज के शिकार

 15.3 फीसदी ( प्री-डायबिटिक)  यानि कभी भी हो सकते है डायबटीज के शिकार







देश में डायबिटीज के मरीजों की संख्या को लेकर आए ताजा आंकड़े निश्चित रूप से चौंकाने वाले हैं, लेकिन इन्हें चेतावनी के रूप में भी देखा जाना चाहिए। संजय गांधी पीजीआई के इंडोक्राइनोलाजिस्ट प्रो. सुशील गुप्ता  हेल्थ जर्नल ‘लांसेट’ में प्रकाशित इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की ताजा स्टडी के मुताबिक देश में डायबिटीज के मरीजों की संख्या 10 करोड़ से ऊपर हो गई है। हैरानी की बात यह है कि पिछले चार साल के अंदर इसमें 44 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जो बात इन आंकड़ों को ज्यादा गंभीर बनाती है वह यह भी है कि प्री-डायबिटीज मामलों की संख्या भी कम नहीं है। ताजा सर्वे के मुताबिक अगर देश की 11.4 फीसदी आबादी डायबिटीज से पीड़ित है तो15.3 फीसदी लोग प्री-डायबिटीज श्रेणी में हैं


। प्री-डायबिटीज कैटिगरी में उन लोगों को रखा जाता है जिनका ब्लड शुगर लेवल सामान्य से ज्यादा होता है, लेकिन इतना ऊपर नहीं होता कि टाइप-2 डायबिटीज की कैटिगरी में शामिल किया जा सके। ये ऐसे लोग होते हैं जिनके डायबिटिक होने का अंदेशा रहता है। प्री-डायबिटीज का कोई मामला डायबिटीज में शामिल होगा या नहीं और होगा तो कितने समय में, इसे लेकर निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन एक्सपर्ट्स आम तौर पर मानते हैं कि ऐसे एक तिहाई मामले डायबिटीज में तब्दील हो जाते हैं।

सरे एक तिहाई मामले प्री-डायबिटीज कैटिगरी में ही बने रहते हैं जबकि आखिरी एक तिहाई जीवनशैली में बदलाव और ऐसे अन्य उपायों से बेहतर होकर नॉर्मल स्थिति में लौट जाते हैं। अगर प्री-डायबिटीज के एक तिहाई मामले भी डायबिटीज में कन्वर्ट हुए तो स्वास्थ्य के मोर्चे पर अगले कुछ वर्षों में गंभीर चुनौती पैदा हो सकती है। खासकर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां हर एक डायबिटिक व्यक्ति पर प्री-डायबिटीज के क्रमश: चार और तीन मामले बताए जा रहे हैं। इन हालात में खास तौर पर किडनी पेशंट्स की संख्या में इजाफा होने जैसी स्थितियों के लिए तैयार रहने की जरूरत है। ऐसे कई मरीजों को डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। न केवल ऐसी मशीनें कम हैं और ज्यादातर शहरी केंद्रों तक सीमित हैं बल्कि उनका बेहद खर्चीला होना भी उन्हें ज्यादातर किडनी मरीजों की पहुंच से दूर कर देता है। सेवाभावी संस्थाओं की ओर से जहां-तहां ऐसी सेवाएं मुफ्त या कम कीमत पर उपलब्ध कराई जा रही हैं, लेकिन यह अव्यवस्थित, अनियमित और अपर्याप्त हैं। 

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