प्रो.एसएस अग्रवाल स्मृति व्याख्यान
जीन सिक्वेंसिंग से काफी पहले लग सकता है अनुवांशिक बीमारी का पता
गर्भधारण से पहले शिशु में लगाएं बीमारी की आशंका का पता
नेक्स्ट जनरेशन जीन सिक्वेंसिंग तकनीक के जरिए गर्भधारण के पहले भी शिशु में आनुवांशिक बीमारियों का पता लग सकता है। होने वाली संतान स्वस्थ हो इसके लिए जरूरी है जिनके परिवार अनुवांशिक बीमारी डाउन सिंड्रोम, आंख की परेशानी, कम लंबाई, थैलेसीमिया, रीढ़ की हड्डी में बनावटी खराबी सहित अन्य से ग्रस्त बच्चे का जन्म हो चुका है उन दंपति के जरूर जांच करानी चाहिए। जीन सिक्वेंसिंग में 20 हजार जीन की जांच एक साथ होती है यह काफी एडवांस तकनीक है। यह जानकारी संजय गांधी पीजीआई में प्रो,एसएस अग्रवाल के स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में एम्स दिल्ली के अनुवांशिक विशेषज्ञ प्रो.मधुलिका काबरा ने दी। बताया कि पांच फीसदी अनुवांशिक बीमारी का इलाज है । देखा गया कि बीमारी का पता न लगने से परिजन परेशान रहते है। बीमारी का पता लगने के बाद अगले संतान में आशंका का पता लगा जाता है। देखा गया है अभी भी बीमारी का पता लगने में आठ से 10 साल लग जाते है। परिजन भटकते रहते है। सही जानकारी मिल जाने के बाद परिजन काफी हद तक संतुष्ट हो जाते है। निदेशक प्रो. आरके धीमन और डीन प्रो.एसपी अंबेश ने कहा कि प्रो. अग्रवाल बहुत ही दूर दृष्टि वाले थे। तीस साल पहले ही उन्होंने देश के पहले जेनेटिक्स एंड इम्यूनोलॉजी विभाग को स्थापित किया। आज इम्यूनोलॉजी काफी महत्वपूर्ण हो गया है। जेनेटिक्स के विकास के बाद बीमारी का पता लगने से साथ कई बीमारियों में जीन थेरेपी भी शुरू हो गयी है। विभाग की प्रमुख प्रो. शुभा फड़के और क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रो. अमिता अग्रवाल ने बताया कि हम लोगों के प्रो. अग्रवाल टीचर रहे है । जब विभाग एक साथ था । आज उन्हीं की सोच की देन है कि तमाम बीमारियों का इलाज और जांच संभव हो पा रहा है। इस मौके पर मुख्य रूप से कर्मचारी महासंघ के पूर्व महामंत्री धर्मेश कुमार इम्यूनोलॉजी विभाग के विनोद त्रिवेदी कार्यालय अधीक्षक मनोज श्रीवास्तव सहित तमाम लोग उपस्थित हुए
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