सोमवार, 22 दिसंबर 2025

60 फीसदी में गंभीर क्षति के बाद पहचान में आती है किडनी बीमारी

 




60 फीसदी में गंभीर क्षति के बाद पहचान में आती है किडनी बीमारी


20 रुपए में चल जाता है किडनी खराबी का पता


 हर 6 महीने पर पेशाब में प्रोटीन की जांच जरूरी




संजय गांधी पीजीआई में आयोजित इंडियन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी (आईएसएन) के 54वें वार्षिक सम्मेलन आईएसएनकॉन 2025 में किडनी रोगों की रोकथाम, समय पर पहचान और स्वदेशी तकनीक के विकास पर विशेष जोर दिया गया। सम्मेलन में आयोजित राष्ट्रपति व्याख्यान में विशेषज्ञों ने बताया कि क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) एक साइलेंट बीमारी है, जिसका पता अधिकांश मामलों में समय पर नहीं चल पाता।


 


आयोजक एवं नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि करीब 60 प्रतिशत मामलों में किडनी खराबी का पता तब चलता है, जब किडनी का 60–80 प्रतिशत कार्य पहले ही समाप्त हो चुका होता है। यही कारण है कि सीकेडी एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनती जा रही है।सीकेडी की शुरुआती अवस्था में लक्षण न होने के कारण अधिकांश मरीज बीमारी से अनजान रहते हैं। देश में लगभग 19 प्रतिशत किडनी रोग ऐसे हैं, जिनका स्पष्ट कारण पता नहीं चल पाता। सलाह दिया कि हर 6 महीने में पेशाब में प्रोटीन की जांच कराने से शुरुआती दौर में ही खराबी का पता लग जाता है। यह जांच 20 से 50 रुपए में होती है। बीपी और शुगर नियंत्रित रखें।   


 


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स्क्रीनिंग की जरूरत


 


विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि इस स्थिति से निपटने के लिए जनसंख्या स्तर पर नियमित स्क्रीनिंग और मजबूत रोकथाम रणनीतियाँ आवश्यक हैं। विशेष रूप से मधुमेह और उच्च रक्तचाप से ग्रस्त लोगों के लिए अत्यंत जरूरी है।  




 


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राष्ट्रीय किडनी रोग रोकथाम दिवस का प्रस्ताव


 


सम्मेलन में विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि हर साल अप्रैल के दूसरे रविवार को ‘राष्ट्रीय किडनी रोग रोकथाम दिवस’ मनाया जाना चाहिए, ताकि लोगों में जागरूकता बढ़ाई जा सके। 


 


चिकित्सा शिक्षा में बदलाव की जरूरत


 


प्रो. रवि शंकर कुशवाहा ने कहा कि किडनी रोगों की रोकथाम को प्रभावी बनाने के लिए प्रिवेंटिव नेफ्रोलॉजी का एक संरचित पाठ्यक्रम मेडिकल शिक्षा और प्रशिक्षण में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि रोकथाम रोजमर्रा की चिकित्सा प्रक्रिया का हिस्सा बन सके।


 


किडनी प्रत्यारोपण में सुधार पर जोर


 


प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि किडनी प्रत्यारोपण की संख्या के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है। उत्तर प्रदेश में सभी सेंटर को मिलकार 400 प्रत्यारोपण होता है लेकिन ब्रेन डेड दाता से होने वाले प्रत्यारोपण की दर अभी भी कम है। ब्रेन डेड दाता प्रत्यारोपण में 16 प्रतिशत की वृद्धि को सकारात्मक बताते हुए उन्होंने जन जागरूकता, अंगदान प्रणाली और नीतिगत समर्थन को और मजबूत करने की आवश्यकता बताई।


 


नेफ्रोलॉजी में ‘मेक इन इंडिया’ का आह्वान


 


विशेषज्ञों ने नेफ्रोलॉजी क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया।पेरिटोनियल डायलिसिस फ्लूइड,हीमोडायलिसिस तकनीक,और डायलिसिस उपकरणों का स्वदेशी विकास और निर्माण देश को आत्मनिर्भर बनाएगा और इलाज को सस्ता व सुलभ करेगा।










गर्भावस्था और प्रसव के दौरान हो सकती है  किडनी इंजरी


 


प्रो. नारायण प्रसाद ने बताया कि एक सत्र में गर्भावस्था, प्रसव या प्रसवोत्तर के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव, अनियमित बीपी , सेप्सिस, असुरक्षित गर्भपात और लंबे समय तक कम रक्तचाप की समय पर पहचान न होने पर यह मां के लिए जानलेवा हो सकती है और किडनी को स्थायी नुकसान पहुँचा सकती है। नियमित प्रसवपूर्व जांच, रक्तचाप व पेशाब की निगरानी, सुरक्षित प्रसव, संक्रमण की त्वरित पहचान तथा समय पर विशेषज्ञ उपचार से गर्भावस्था एकेआई की रोकथाम और सफल उपचार संभव है।

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