शनिवार, 13 दिसंबर 2025

नाभि में भी हो सकता है पाइलोनाइडल साइनस, एसजीपीजीआई में सफल सर्जरी

 



नाभि में भी हो सकता है पाइलोनाइडल साइनस, एसजीपीजीआई में सफल सर्जरी


लखनऊ स्थित संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में चिकित्सा विज्ञान से जुड़ा एक दुर्लभ मामला सामने आया है। अब तक पाइलोनाइडल साइनस या सिस्ट आमतौर पर रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से, खासकर कूल्हों के बीच देखा जाता था, लेकिन एसजीपीजीआई में पहली बार नाभि में पाइलोनाइडल साइनस का सफल उपचार किया गया है। यह मामला चिकित्सा जगत के लिए नई जानकारी देने वाला है।


प्लास्टिक सर्जरी विभाग की प्रोफेसर अनुपमा ने बताया कि मरीज लंबे समय से नाभि में बार-बार पस निकलने, बदबू और दर्द की समस्या से परेशान था। कई बार सामान्य संक्रमण मानकर इलाज कराया गया, लेकिन समस्या पूरी तरह ठीक नहीं हो रही थी। विस्तृत जांच के बाद पता चला कि नाभि में पाइलोनाइडल साइनस बन गया है, जो अत्यंत दुर्लभ स्थिति है।


प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉ. नीलेश और डॉ. एना अग्रवाल ने बताया कि शिशु की गर्भनाल मां के प्लेसेंटा से जुड़ी होती है, जिससे गर्भावस्था के दौरान शिशु को पोषण मिलता है। जन्म के बाद गर्भनाल काट दी जाती है और नाभि बनती है। इस मरीज में नाल का अवशेष सामान्य से अधिक गहरा रह गया था, जिसके कारण बाल, मृत त्वचा और गंदगी अंदर फंसती चली गई। इससे नाभि में बार-बार संक्रमण और पस बनने की समस्या उत्पन्न हुई।


चिकित्सकों ने बताया कि विशेष सर्जिकल तकनीक की मदद से पूरे साइनस ट्रैक को सुरक्षित तरीके से निकाला गया और नाभि की संरचना को भी यथासंभव प्राकृतिक रखा गया। सर्जरी के बाद मरीज तेजी से स्वस्थ हो रहा है और अब उसे किसी प्रकार की परेशानी नहीं है।


विशेषज्ञों के अनुसार यदि नाभि में लंबे समय तक पस, दर्द, सूजन या बदबू बनी रहे तो इसे साधारण संक्रमण समझकर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। समय पर विशेषज्ञ से जांच कराने पर जटिल सर्जरी और लंबे इलाज से बचा जा सकता है। यह सफल सर्जरी न केवल मरीज के लिए राहत लेकर आई है, बल्कि भविष्य में ऐसे दुर्लभ मामलों की पहचान और उपचार में भी सहायक साबित होगी।



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