आईएसएनकॉन 2025:
ए आइ के जरिए लगेगा कितना सफल होगा किडनी प्रत्यारोपण
पीजीआई तैयार कर रहा है एआई आधारित सिस्टम
संजय गांधी पीजीआई में आयोजित इंडियन सोसायटी आफ नेफ्रोलॉजी के वार्षिक अधिवेशन ( आईएसएनकॉन 2025) में विशेषज्ञों ने बताया कि आर्टिफिशियल इंटीलेजेंस ( एआई) अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में तेजी से अपनी उपयोगिता साबित होगी। एआई तकनीक की मदद से प्रत्यारोपण प्रक्रिया को अधिक सटीक, सुरक्षित और दीर्घकालिक रूप से सफल बनाया जा सकता है।
नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नरायान प्रसाद ने बताया कि विभाग एआई आधारित सिस्टम तैयार कर रहा है जिससे बड़ी मात्रा में मरीजों के क्लिनिकल डेटा, लैब रिपोर्ट, इमेजिंग, रक्त समूह और ऊतक संगतता (एचएलए मैचिंग) का विश्लेषण करेंगे। इसके आधार पर यह अनुमान लगाया जाएगा किस दाता का अंग किस मरीज के लिए सबसे उपयुक्त रहेगा। इससे प्रत्यारोपण की सफलता दर बढ़ती है और अंगों की अनावश्यक बर्बादी कम होती है।
प्रत्यारोपण के बाद है ए आई की हम भूमिका
प्रत्यारोपण के बाद एआई की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। मरीज की रक्त और पेशाब जांच, क्रिएटिनिन स्तर, इम्यूनोलॉजिकल मार्कर और संक्रमण संकेतों का निरंतर विश्लेषण कर एआई अंग अस्वीकृति (रीजेक्शन) या जटिलताओं के शुरुआती संकेत पहचान सकता है। इससे डॉक्टर समय रहते इलाज में बदलाव कर पाते हैं और गंभीर स्थिति से बचाव संभव होता है।
एआई तकनीक इम्यूनोसप्रेसिव दवाओं की खुराक को व्यक्तिगत जरूरत के अनुसार तय करने में भी मदद करती है। प्रत्येक मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली अलग होती है और एआई डेटा आधारित विश्लेषण से दवा की सही मात्रा तय की जा सकती है, जिससे दुष्प्रभाव कम होते हैं और अंग लंबे समय तक सुरक्षित रहता है।
ऑर्गन वेटिंग होगी सरल
भारत जैसे देश में, जहां अंगों की उपलब्धता सीमित और प्रतीक्षा सूची लंबी है, एआई अंग आवंटन प्रणाली को अधिक पारदर्शी, न्यायसंगत और वैज्ञानिक बना सकता है। यह तकनीक मरीज की गंभीरता, प्रतीक्षा अवधि और चिकित्सीय प्राथमिकताओं का संतुलित आकलन करती है।
जहर और जहरीले जीव के काटने से किडनी हो सकती है प्रभावित
प्रो. नरायण प्रसाद के मुताबिक ज़हर और जहर देने वाले जीवों के डंक या काटने से एक्यूट किडनी इंजरी (एकेआई) एक गंभीर समस्या बन सकती है। विष, कीट या सांप के विष किडनी की नलिकाओं और रक्त प्रवाह को प्रभावित कर तीव्र किडनी फेल्योर का कारण बनते हैं। इसके परिणामस्वरूप पेशाब कम होना, इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन और जीवन-धमकाने वाली जटिलताएं हो सकती हैं। इलाज में तुरंत विष नियंत्रण, हाइड्रेशन, इलेक्ट्रोलाइट संतुलन और जरूरत पड़ने पर डायलिसिस शामिल है। समय पर पहचान और उचित उपचार से जटिलताओं को कम किया जा सकता है।

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