पीजीआई डिप्लोमा धारकों को नौकरी से वंचित करने पर उठा सवाल
बरसों से आउटसोर्सिंग पर सेवा दे रहे ओटी तकनीशियनों ने मांगा न्याय
उत्तर प्रदेश में ऑपरेशन थिएटर टेक्नीशियन के रूप में वर्षों से सेवा दे रहे हजारों डिप्लोमा धारकों के भविष्य पर संकट गहरा गया है। हाल ही में संजय गांधी पीजीआई द्वारा जून 2025 में जारी ओटी (ऑपरेशन थिएटर) असिस्टेंट की भर्ती में केवल बी.एससी. ओटी टेक्नोलॉजी (बैचलर ऑफ साइंस इन ऑपरेशन थिएटर टेक्नोलॉजी) और बी.एससी. एनेस्थीसिया टेक्नोलॉजी (बैचलर ऑफ साइंस इन एनेस्थीसिया टेक्नोलॉजी) योग्यता को मान्यता दी गई है। इसके चलते उत्तर प्रदेश स्टेट मेडिकल फैकल्टी से मान्यता प्राप्त डिप्लोमा कोर्स कर चुके अभ्यर्थियों को पूरी तरह बाहर कर दिया गया है।
डिप्लोमा इन ऑपरेशन थिएटर टेक्नीशियन कोर्स किए हुए युवा एसजीपीजीआई, केजीएमयू, आरएमएल, बीएचयू, यूपीयूएमएस जैसे देश के प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में बीते 5 से 8 वर्षों से कार्यरत हैं। उनका कहना है कि जब राज्य सरकार स्वयं यह डिप्लोमा कोर्स चला रही है और वर्षों से उसी आधार पर नियुक्तियां हो रही हैं, तो अब इन योग्यताओं को अमान्य घोषित करना अन्याय है।
इस बीच डिप्लोमा धारक अभ्यर्थियों ने सवाल उठाया है कि जब संस्थानों में नौकरी के लिए डिप्लोमा को मूल योग्यता नहीं माना जा रहा, तो फिर ये कोर्स क्यों चलाए जा रहे हैं? उनका आरोप है कि ऐसे कोर्स कराकर सरकार बेरोजगारों की फौज खड़ी कर रही है। या तो ये कोर्स बंद किए जाएं, या तब तक मान्यता दी जाए जब तक डिप्लोमा धारकों को नौकरी नहीं मिल जाती।
अभ्यर्थियों का कहना है कि वर्तमान में बीएससी डिग्री धारकों को प्राथमिकता दी जा रही है और डिप्लोमा वालों को नजरअंदाज किया जा रहा है, जो स्पष्ट रूप से भेदभाव है। उन्होंने यह भी मांग की है कि डिप्लोमा कोर्स को भी मूल योग्यता में शामिल किया जाए और उन्हें भी परीक्षा में बैठने का अवसर दिया जाए।
आउटसोर्सिंग (बाहरी संविदा) के तहत कार्यरत इन तकनीशियनों ने सरकार से अनुरोध किया है कि टेलीमेडिसिन स्टाफ की तरह उन्हें भी अनुभव के आधार पर 5% से 30% तक अतिरिक्त अंक (वेटेज) दिए जाएं।
डिप्लोमा धारक अभ्यर्थियों का कहना है कि वर्षों से मेहनत कर रहे प्रशिक्षित युवाओं के साथ अन्याय अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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