हृदय रोग विशेषज्ञों की पढ़ाई में बड़े बदलाव की ज़रूरत
परीक्षा प्रणाली में बदलाव पर दिया जोर
पीजीआई , केजीएमयू और एम्स दिल्ली के हृदय रोग विशेषज्ञों ने शोध पत्र में दी राय
कुमार संजय
भारत में हृदय रोग विशेषज्ञ बनने के लिए चल रहे डी. एम. और डी. एन. बी. पाठ्यक्रम अब पुरानी प्रणाली पर आधारित हैं, जो आज की तकनीकी और व्यावहारिक ज़रूरतों को पूरा नहीं करते। यह बात संजय गांधी पी. जी. आई., लखनऊ के डॉ. आदित्य कपूर, के. जी. एम. यू. के डॉ. ऋषि सेठी और एम्स, दिल्ली के डॉ. राकेश यादव द्वारा किए गए एक महत्वपूर्ण अध्ययन में सामने आई है। यह शोध इंडियान हार्ट जर्नल ने स्वीकार किया है। विशेषज्ञों ने भारत में कार्डियोलॉजी ट्रेनिंग करिकुलम: दोबारा सोचने का समय है विषय पर रिसर्च किया। शोध में कहा गया है कि कार्डियोलॉजी के छात्र केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि व्यावहारिक निर्णय क्षमता, संवेदनशीलता, नैतिक सोच और रिसर्च कौशल भी प्राप्त करें इसके लिए पाठ्यक्रम में बदलाव ज़रूरी है। विशेषज्ञों ने परीक्षा प्रणाली में बदलाव पर जोर दिया है कहा कि वर्तमान डी. एम./डी. एन. बी. की परीक्षा अब भी पुराने ढर्रे पर है, जिसमें कुछ खास बीमारियों पर ही ज़ोर दिया जाता है। आज मरीजों को कॉम्प्लेक्स कार्डियक केयर की ज़रूरत है। इसलिए केस-बेस्ड डिस्कशन, मिनी सी. ई. एक्स., और वर्कप्लेस बेस्ड एसेसमेंट को अपनाने की जरूरत है। भारत में कार्डियोलॉजी ट्रेनिंग की शुरुआत 1948 में डॉ. बिधान चंद्र रॉय के नेतृत्व में हुई थी। एम्स दिल्ली में 1957 में पहला डी. एम. पाठ्यक्रम शुरू हुआ। लेकिन आज की बदलती जरूरतों को देखते हुए इसमें मौलिक सुधार की जरूरत है।
यह है आज की जरूरत
-करिकुलम में बदलाव: क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्वास्थ्य ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम में डिजिटल हेल्थ, एथिक्स, सॉफ्ट स्किल्स और प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी जैसे विषय शामिल किए जाएं।
-शिक्षण पद्धति का सुधार: केवल लेक्चर आधारित पद्धति से हटकर फ्लिप्ड क्लासरूम, सिम्युलेशन बेस्ड लर्निंग और केस आधारित पढ़ाई पर ज़ोर दिया जाए।
अंतिम मूल्यांकन: छात्रों की परीक्षा प्रणाली को भी बदला जाए, जिसमें ओ. एस. सी. ई. (ऑब्जेक्टिव स्ट्रक्चर्ड क्लिनिकल एग्ज़ामिनेशन), ई. सी. जी., केस स्टडी और निर्णय क्षमता को शामिल किया जाए।
रिसर्च को बढ़ावा: छात्रों को बेहतर रिसर्च ट्रेनिंग, मार्गदर्शन और फंडिंग दी जाए। देश में एक राष्ट्रीय रिसर्च डाटा बैंक बनाया जाए।
फेलोशिप की ज़रूरत: अब हृदय रोगों में गहराई से इलाज के लिए इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी, हार्ट फेल्योर, कार्डियो-ऑन्कोलॉजी आदि में फेलोशिप ट्रेनिंग शुरू की जाए।
भारत को वैश्विक मानकों पर खरे उतरने वाले कार्डियोलॉजिस्ट चाहिए तो मौजूदा ट्रेनिंग सिस्टम में बुनियादी बदलाव करना ही होगा। तभी देश के मरीजों को बेहतर, संवेदनशील और सुरक्षित उपचार मिल सकेगा.....प्रो. आदित्य कपूर प्रमुख कार्डियोलॉजी विभाग एसजीपीजीआई
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