रविवार, 6 जुलाई 2025

मैं एक बेटी का पिता हूं



📍 छेड़खानी: जब बेटियों की आज़ादी को अपराध समझा जाए — 


✍️ आंकड़ों से लेकर एक पिता के आंसुओं तक



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जब भी कोई लड़की घर से निकलती है, तो वो सिर्फ किताबें, पहचान पत्र या बैग लेकर नहीं निकलती — वो साथ लेकर चलती है एक अदृश्य डर, एक छाया जो उसे हर सड़क, हर भीड़, और हर नजर से डराती है।

छेड़खानी, पीछा करना, फोन पर परेशान करना, अश्लील बातें करना — ये सब "मजाक" या "मर्दानगी" नहीं, एक सोच-समझ कर किया गया अपराध है, जो रोज़ाना लाखों लड़कियों की आत्मा को कुचल रहा है।



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📊 राष्ट्रीय और उत्तर प्रदेश में छेड़खानी की सच्चाई:


🇮🇳 भारत स्तर पर (NCRB 2022 के आंकड़े):


महिलाओं के खिलाफ कुल अपराध: 4.45 लाख+


इनमें से 55,000 से अधिक मामले छेड़खानी, पीछा करने और यौन इशारों से जुड़े थे।


असल में यह संख्या 10 गुना अधिक हो सकती है, क्योंकि अधिकतर मामले दर्ज ही नहीं होते।



🧭 उत्तर प्रदेश (2023–2024 के आंकड़े):


NCW (राष्ट्रीय महिला आयोग) को 2024 में कुल 25,743 शिकायतें मिलीं, जिनमें 13,868 (54%) केवल यूपी से थीं।


इनमें 1,500+ शिकायतें छेड़खानी और साइबर उत्पीड़न की थीं।


2023 में यूपी से कुल 28,811 महिलाओं की शिकायतें दर्ज हुईं, सबसे ज़्यादा पूरे देश में।




Sherni Squad को 2024 में सक्रिय किया गया, ताकि स्कूल-कॉलेज, बस स्टॉप, मार्केट जैसी जगहों पर छेड़खानी रोकी जा सके।



➡️ फिर भी सवाल कायम है — जब हर गली में डर है, तो बेटियाँ कैसे बेफिक्र रहें?



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💔 छेड़खानी का असर: डर, घरबंदी और आत्महत्याएं


📚 शिक्षा पर असर:


Plan India के अनुसार, 70% लड़कियाँ बाहर निकलने में असुरक्षित महसूस करती हैं।


हर 3 में से 1 लड़की स्कूल या कॉलेज छोड़ देती है क्योंकि रास्ते में पीछा, अश्लील टिप्पणी या मोबाइली उत्पीड़न होता है।



😢 आत्महत्या की तरफ धकेलती चुप्पी:


NCRB रिपोर्ट के अनुसार, हर साल लगभग 3,000 से अधिक युवतियाँ (15–29 आयु वर्ग) आत्महत्या करती हैं।


इनमें से कई मामलों में कारण रहा — पीछा करना, छेड़खानी, साइबर बुलिंग और मानसिक उत्पीड़न।




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🧠 लेकिन इन आँकड़ों से परे है एक इंसान — एक पिता


💬 "मैं उसे रोज़ देखता हूँ, वो हँसती है, लेकिन उसकी आँखों में डर झलकता है..."


मैं एक बेटी का बाप हूँ।


वो अब कोचिंग नहीं जाती। पहले बहाने बनाती थी, अब सीधे मना कर देती है।

कभी कहती थी डॉक्टर बनेगी। अब कहती है — “पापा, कहीं भी नौकरी मिल जाए बस घर से दूर न जाना पड़े।”

मैं समझ गया हूँ, लेकिन वो मुझसे कहती नहीं। शायद उसे लगता है कि मैं भी उसे ही दोष दूँगा, जैसे समाज करता है।


उसके फोन पर रोज़ कॉल आते हैं, व्हाट्सऐप पर मैसेज — “मैं देख रहा हूँ तुझे”, “तू बहुत प्यारी लगती है”… और कभी अश्लील तस्वीरें।

उसने नंबर बदल लिया, ऐप डिलीट कर दिए — मगर डर नहीं मिटा।


> "मैं पिता होकर भी उसे सुरक्षा नहीं दे पाया… ये दर्द अंदर ही अंदर मुझे खा रहा है।"




मोहल्ले में FIR करवाने जाऊँ तो कहते हैं — "बदनामी होगी", "लड़की की शादी में दिक्कत आएगी"।

पर क्या कोई पूछेगा — उसकी मुस्कान में अब खामोशी क्यों है?



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🧭 समाज से सवाल:


क्या बेटी की इज्ज़त सिर्फ तभी होती है जब वो चुप रहे?


क्या लड़के "बच्चे हैं", और लड़कियाँ उनके बर्ताव की सज़ा भुगतें?


क्या मर्दानगी का मतलब किसी की मजबूरी का फायदा उठाना है?




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🛠️ रास्ता क्या है? समाधान कैसे निकले?


✅ प्रशासन और कानून:


Anti-Romeo स्क्वाड को ज़मीनी स्तर पर जवाबदेह बनाना होगा।


महिला थाने और हेल्पलाइन (1090 / 112 / 181) को सशक्त और संवेदनशील बनाना होगा।



✅ शिक्षा में बदलाव:


लड़कों को स्कूल से ही सिखाना होगा — "ना मतलब ना होता है।"


"सम्मान, सहमति और संयम" को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा।



✅ परिवार और समाज का रोल:


बेटियों को “बचने” नहीं, लड़ने और बोलने की आज़ादी दीजिए।


माँ-बाप दोष न दें, साथ खड़े हों।


हर मोहल्ले में सीसीटीवी निगरानी, महिला सहायता केंद्र, और सख्त सामुदायिक कार्रवाई जरूरी है।




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🗣️ जागरूकता के लिए नारे:


✊ "छेड़खानी मज़ाक नहीं, जुर्म है!"


✊ "बेटियाँ कमजोर नहीं, बस समाज की चुप्पी से थकी हैं।"


✊ "अगर आज तुम चुप हो, तो कल तुम्हारी बहन भी सहने पर मजबूर होगी।"


✊ "बेटियाँ फूल नहीं, आग हैं — अब सहेंगी नहीं!"




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🔚 निष्कर्ष:


छेड़खानी सिर्फ एक हरकत नहीं — यह एक सोच है, जो लड़कियों को उनके हक से दूर कर देती है।

UP और भारत के ताज़ा आंकड़े चीख-चीखकर बता रहे हैं कि अब बदलाव ज़रूरी है — कानून में, शिक्षा में और सबसे पहले समाज की मानसिकता में।

और जब एक बाप अपनी बेटी की आँखों में डर देखता है — तो समझिए, वो डर सिर्फ उसकी बेटी का नहीं, पूरे समाज का पतन है



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💔 एक पिता की पुकार — 'मैं कैसे समझाऊं कि मेरी बेटी डरती नहीं, थरथराती है'


> "मैं उसे रोज़ तैयार होते देखता हूँ... वो मुस्कराती है, लेकिन उसकी आंखों में डर की एक परत साफ़ दिखती है।"




मैं एक बेटी का पिता हूँ।

वो दसवीं में है, पढ़ने में होशियार है, डॉक्टर बनना चाहती है। लेकिन पिछले कुछ महीनों से वह चुप है — किताबें खुली हैं, पर मन बंद है।

हर बार जब वो कोचिंग जाती है, मैं दरवाजे पर खड़ा रह जाता हूँ — नज़रों से उसे दूर तक जाते देखता हूँ, और मन में बस एक ही प्रार्थना करता हूँ — "कोई फिर से आज उसे कुछ न कहे..."


उसने बताया नहीं, पर उसकी माँ ने समझा — कुछ लड़के उसका पीछा करते हैं, रास्ता रोकते हैं, व्हाट्सऐप पर गंदे मैसेज भेजते हैं।

उसने मुझसे कुछ नहीं कहा, शायद इसलिए क्योंकि उसे डर है कि मैं उसकी पढ़ाई बंद न कर दूं, या फिर उस पर ही सवाल न उठा बैठूं जैसे समाज करता है।


लेकिन मैं जानता हूँ...

मैं रोज़ देखता हूँ कैसे वो मोबाइल को हाथ में पकड़कर सहम जाती है, कैसे वो अचानक "बाहर नहीं जाना" कह देती है, कैसे वो अब हर मुस्कान के बाद कुछ छुपा लेती है।


> "एक पिता के लिए इससे बड़ा अपराध और क्या हो सकता है कि उसकी बेटी ज़िंदा है—but आज़ाद नहीं है?"




मैंने पुलिस में रिपोर्ट करवाने की सोची, लेकिन पहले ही मोहल्ले वालों ने कह दिया — “नाम बदनाम होगा।”

क्या नाम की इज्ज़त बेटी की इज्ज़त से बड़ी होती है?


> "अगर समाज सवाल करने वाले लड़कों से ज़्यादा, जवाब देने वाली लड़की को दोष देता है—तो सच में ये समाज बीमार है।"




कभी-कभी वो कहती है — “पापा, आप चिंता न करो, मैं संभाल लूंगी।”

मगर मैं जानता हूँ कि यह बात वो मुझे दिलासा देने के लिए कहती है।

असल में, वो डर को खुद में दबा रही है।

और मैं?

मैं एक पिता होकर भी उसके उस डर को खत्म नहीं कर पा रहा हूँ।

क्या इससे बड़ा कोई गुनाह है मेरी मर्दानगी के लिए?



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> "मेरी बेटी को अपनी आज़ादी चाहिए, सुरक्षा नहीं—क्योंकि सुरक्षा उसे तभी चाहिए जब समाज में दरिंदे आज़ाद हों।"





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✊ पिता की आवाज़ बनिए, चुप मत रहिए।


जो हर बेटी के साथ हो सकता है, वो आपकी बेटी के साथ भी हो सकता है।


हर बाप को अपनी बेटी के साथ खड़ा होना होगा — सिर्फ रक्षा नहीं, बराबरी के लिए।









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