शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

आउटसोर्स कर्मचारियों निगम: फिर एजेंसी (दलाल) की क्या आवश्यकता?

 




आउटसोर्स कर्मचारियों के हित में बना निगम: फिर एजेंसी (दलाल) की क्या आवश्यकता?


देश और प्रदेश में सरकारें समय-समय पर यह दावा करती रही हैं कि वे आम जनता और कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसी सोच के तहत अनेक राज्यों में आउटसोर्स कर्मचारियों की समस्याओं को दूर करने और उन्हें एक संगठित एवं सुरक्षित कार्य व्यवस्था देने के उद्देश्य से विशेष निगम (Corporation) बनाए गए हैं। यह एक सराहनीय कदम है, लेकिन सवाल यह उठता है कि जब सरकार स्वयं कर्मचारियों के लिए निगम गठित कर रही है, तो फिर कर्मचारियों और सरकार के बीच में किसी एजेंसी या दलाल व्यवस्था की क्या आवश्यकता है?


आउटसोर्सिंग व्यवस्था की मूल भावना


आउटसोर्सिंग की अवधारणा का उद्देश्य था—कम संसाधनों में दक्ष मानव संसाधन प्राप्त करना, नौकरशाही का बोझ कम करना, और निजी क्षेत्र की गति व दक्षता का लाभ उठाना। परंतु व्यवहार में यह एक शोषणकारी तंत्र बन गई है, जिसमें कर्मचारियों को कम वेतन, अस्थिर रोजगार और शून्य सामाजिक सुरक्षा झेलनी पड़ती है।


सरकार का सकारात्मक प्रयास: निगम की स्थापना


सरकार ने इस शोषण से निजात दिलाने के लिए जब एक विशेष निगम बनाया, तो यह माना गया कि अब भर्ती, सेवा शर्तें, वेतन, पीएफ (PF), ईएसआई (ESI) जैसी सुविधाएं सीधे निगम के माध्यम से दी जाएंगी। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी, दलाली समाप्त होगी, और कर्मचारियों को समय से वेतन व सेवाएं मिलेंगी।


फिर एजेंसी क्यों?


यहां सबसे बड़ा विरोधाभास सामने आता है। जब सरकार और कर्मचारी दोनों के बीच एक सरकारी निगम मौजूद है, तो किसी तीसरे निजी ठेकेदार, एजेंसी या बिचौलिए की क्या जरूरत?


क्या यह महज राजनीतिक या प्रशासनिक सुविधा के नाम पर निजी एजेंसियों को लाभ पहुंचाने की व्यवस्था है?


या फिर यह भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप देने का तरीका है, जहां एक तयशुदा कमीशन के बदले में एजेंसियां कार्य दिलवाती हैं?



दलाल व्यवस्था के नुकसान


1. कर्मचारी का शोषण – कर्मचारी को उसका पूरा वेतन नहीं मिलता। एजेंसी अपना हिस्सा काट लेती है।



2. गोपनीयता का हनन – 



3. नियंत्रण में बाधा – सरकार चाहकर भी पारदर्शी नियंत्रण नहीं रख पाती क्योंकि कर्मचारी सरकार के नहीं, एजेंसी के अधीन होते हैं।



4. न्याय की अनुपलब्धता – कोई विवाद या शोषण होने पर कर्मचारी को न तो निगम न्याय देता है, न एजेंसी। वह दो नावों में फंसा रहता है।




समाधान क्या है?


एजेंसी मॉडल को समाप्त कर सरकार द्वारा गठित निगम को ही नियुक्ति, वेतन, अनुशासन और सेवा शर्तों का संपूर्ण अधिकार दिया जाए।


निगम और कर्मचारी के बीच प्रत्यक्ष अनुबंध (Direct Contract) हो।


डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित किया जाए, जहाँ सभी नियुक्तियों की प्रक्रिया पारदर्शी और ट्रैक करने योग्य हो।


निगम को ही कर्मचारियों की शिकायतों के निवारण की जिम्मेदारी दी जाए।




संयुक्त स्वास्थ्य आउटसोर्स कर्मचारी के वरिष्ठ नेता सचिदानंद मिश्रा कहते हैं कि सरकार ने एक ऐसा निगम स्थापित कर दिया है, जो कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए बना है, तब निजी एजेंसी की भूमिका न केवल अनावश्यक है, बल्कि शोषणकारी भी है। यह व्यवस्था जन-हित के खिलाफ है और इसे तत्काल समाप्त करने की जरूरत है। दलाल-मुक्त, पारदर्शी और जवाबदेह प्रणाली ही सच्चे लोकतंत्र और सुशासन का प्रमाण होती है।


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