शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

पांच साल में 785 पतियों की हत्या

 




पांच राज्यों में पांच साल में 785 पतियों की हत्या — रिश्तों में पनपती हिंसा की खामोश चीख

पत्नी पर हत्या या साजिश का आरोप, आंकड़े तो हैं ही, पर सवाल कहीं गहरा है...


एक ओर समाज महिला हिंसा के खिलाफ जागरूकता बढ़ा रहा है, वहीं दूसरी ओर एक चुपचाप उभरती सच्चाई हमारी आंखें खोलने के लिए काफी है। पिछले पांच वर्षों (2020 से 2024) में देश के पांच बड़े राज्यों — उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश — में कुल 785 पतियों की हत्या दर्ज हुई। ये वो मामले हैं जिनमें पत्नी को या तो प्रत्यक्ष रूप से हत्या का आरोपी बनाया गया या फिर उस पर हत्या की साजिश में शामिल होने का शक जताया गया। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो में यह खुलासा किया है।


ये आंकड़े केवल अपराध नहीं दर्शाते, बल्कि टूटते पारिवारिक ढांचे और रिश्तों में गहराती दरार की दर्दनाक तस्वीर भी पेश करते हैं।


कौन से राज्य सबसे आगे?


उत्तर प्रदेश इस सूची में सबसे ऊपर है, जहां 2020 से 2024 के बीच कुल 274 पतियों की हत्या दर्ज की गई।

बिहार में 186, राजस्थान में 138, महाराष्ट्र में 100 और मध्य प्रदेश में 87 मामले सामने आए।


वर्ष उत्तर प्रदेश बिहार राजस्थान महाराष्ट्र मध्य प्रदेश


2020 45 30 20 15 12

2021 52 35 25 18 15

2022 60 40 28 20 18

2023 55 39 30 22 20

2024 62 42 35 25 22



आंकड़े चौंकाते हैं, लेकिन असली सवाल है — क्यों?


रिश्तों की शुरुआत प्यार और भरोसे से होती है, लेकिन जब संवाद खत्म होता है, तो मन में पनपता अविश्वास और गुस्सा कभी-कभी हिंसा का रूप ले लेता है। कई मामलों में घरेलू कलह, संपत्ति विवाद, अफेयर या मनोवैज्ञानिक असंतुलन कारण बना।


विशेषज्ञों का कहना है कि भारत जैसे पारंपरिक समाज में जहां तलाक को अब भी सामाजिक कलंक माना जाता है, वहां कई बार झगड़े खुली बातचीत से नहीं, चुपचाप नफरत में बदलते जाते हैं — और जब रिश्ते मरते हैं, तब कई बार इंसान भी मारे जाते हैं।


पुरुष भी बन रहे घरेलू हिंसा के शिकार?


हमारा समाज अभी तक घरेलू हिंसा को अधिकतर महिलाओं की पीड़ा से जोड़कर देखता आया है। लेकिन ये घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि पुरुष भी घरेलू हिंसा और भावनात्मक शोषण के शिकार हो सकते हैं — और कभी-कभी इसका अंजाम जानलेवा भी हो सकता है।


अब क्या ज़रूरी है?


कानूनी पहलुओं से इतर समाज को अब रिश्तों की मरम्मत पर ध्यान देना होगा। पारिवारिक परामर्श, विवाह पूर्व काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य सहायता जैसी सेवाओं को सामान्य बनाना होगा। सिर्फ अपराध के बाद जांच और सजा नहीं, बल्कि शादी के भीतर पनप रहे तनावों को समय रहते समझना ज़रूरी है।


निष्कर्ष


785 पतियों की हत्या केवल क्राइम डाटा नहीं — यह रिश्तों की गहराई में चल रही टूटन की कहानी है।

इन घटनाओं से हमें यह सीखने की जरूरत है कि कोई भी रिश्ता संवाद और समझदारी के बिना नहीं टिक सकता। जहां रिश्ते दम तोड़ते हैं, वहां अपराध जन्म लेता है। सवाल सिर्फ कानून का नहीं, समाज के उस ढांचे का है जहां शादी को निभाने की जगह, कभी-कभी खत्म कर देने का रास्ता चुन लिया जाता है।


समय आ गया है कि हम रिश्तों को सिर्फ निभाएं नहीं, समझें भी। वरना ये आंकड़े सिर्फ बढ़ते जाएंगे — और हम चुपचाप पढ़ते रहेंगे।


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