सोमवार, 28 जुलाई 2025

हेड एंड नेक कैंसर दिवस पर जागरूकता कार्यक्र

 



सिर और गर्दन के कैंसर से पीड़ित रोगियों की संख्या लगभग 30 से 40 प्रतिशत


 मल्टी स्पेशलिटी की कैंसर के इलाज में जरूरत




संजय गांधी पीजीआई के हेड एंड नेक सर्जरी विभाग ने 28 जुलाई को वर्ल्ड हेड एंड नेक कैंसर दिवस पर जागरूकता कार्यक्रम और सीएमई का आयोजन किया। विभागाध्यक्ष प्रो अमित केसरी के नेतृत्व में आयोजित इस कार्यक्रम में सिर और गर्दन के कैंसर सहायता समूह की भी शुरुआत की गई, जिसका उद्देश्य मरीजों को विशेषज्ञों और अन्य रोगियों से जोड़ना है।


मुख्य अतिथि संस्थान के निदेशक  प्रो. आर.के. धीमन ने बताया कि भारत में कैंसर के कुल मामलों में 30 से 40 प्रतिशत सिर और गर्दन के कैंसर होते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे मरीजों के इलाज में बहु-विषयक टीम दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है, जिसमें सर्जन, प्लास्टिक सर्जन, रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट, मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट, पैथोलॉजिस्ट और पैलिएटिव केयर विशेषज्ञ शामिल हों।


इस अवसर पर संस्थान के डीन प्रो. शालीन कुमार, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. देवेंद्र गुप्ता और रेडियोथेरेपी विभागाध्यक्ष डॉ. पुनीता लाल भी मौजूद रहीं। डॉ. नाजरीन हमीद ने तंबाकू, गुटखा और पान मसाला जैसे प्रमुख जोखिम कारकों और स्क्रीनिंग के महत्व पर प्रकाश डाला। डॉ. रुद्र प्रकाश ने मुख कैंसर के शुरुआती प्रबंधन, डॉ. अमित रस्तोगी ने एनेस्थीसिया संबंधी चिंताओं और डॉ. अंकुर ने जटिल पुनर्निर्माण पर व्याख्यान दिया। डॉ. मनोज जैन ने हिस्टोपैथोलॉजी की भूमिका और डॉ. संजय धीराज ने दर्द प्रबंधन पर बात की। कार्यक्रम का संचालन डॉ. इंदु शुक्ला ने किया और सभी का आभार जताया।

रविवार, 27 जुलाई 2025

New Therapy at SGPGI Slows Down Kidney Failure Progression




 New Therapy at SGPGI Slows Down Kidney Failure Progression

Combination therapy offers 2–3 years of dialysis-free relief for patients

Kumar Sanjay


With chronic kidney disease (CKD) cases on the rise, the Department of Nephrology at Sanjay Gandhi Postgraduate Institute of Medical Sciences (SGPGIMS), Lucknow, has developed a new combination therapy that has successfully delayed the need for dialysis by 2 to 3 years in more than 200 patients.


Previously, the creatinine level in patients would rise from 3 to 5 within a year. However, this therapy has been able to significantly slow down that progression. With timely intervention, patients may be able to avoid dialysis for several years.


How does the therapy work?


According to Prof. Narayan Prasad and Prof. Ravi Shankar Kushwaha from the Department of Nephrology, the therapy combines four to five key drugs:


RAS Inhibitor (Renin-Angiotensin System Inhibitor)


SGLT-2 Inhibitor (Sodium-Glucose Co-Transporter Type-2 Inhibitor)


Finerenone (Non-steroidal Mineralocorticoid Receptor Antagonist)


Semaglutide (Glucagon-like Peptide-1 Receptor Agonist)



Patients undergoing this treatment are advised to limit their protein intake to 0.8 grams per kg of body weight per day, maintain blood pressure below 130/80 mm Hg, and keep HbA1c below 7%.


The current state of the disease


Prof. Narayan Prasad noted that over 10% of India’s population is at risk of kidney disease in some form. The major risk factors include diabetes, hypertension, and high-protein diets. Kidney disease is often asymptomatic and goes undetected until it reaches an advanced stage.


Preventive measures


Test GFR (Glomerular Filtration Rate) every six months


Check protein levels in urine, especially for diabetic and hypertensive patients


Avoid protein supplements and reduce salt intake


Maintain strict control of diabetes and blood pressure


Follow a balanced diet, exercise regularly, and get periodic health checkups



> “This combination therapy offers new hope for CKD patients. With timely treatment, dialysis can be delayed for years.”

— Prof. Narayan Prasad, Head, Department of Nephrology, SGPGIMS




पीजीआई की नई थेरेपी से किडनी फेल होने की रफ्तार थमी

 




पीजीआई की नई थेरेपी से किडनी फेल होने की रफ्तार थमी

कांबिनेशन थिरेपी से मरीजों को 2-3 साल तक डायलिसिस से राहत


कुमार संजय


क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के बढ़ते मामलों के बीच संजय गांधी पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग ने एक नई कंबिनेशन थिरेपी विकसित की है, जिससे मरीजों को डायलिसिस की जरूरत टालने में 2 से 3 साल तक की राहत मिल रही है। यह थेरेपी 200 से ज्यादा मरीजों पर सफल साबित हो चुकी है।


अब तक क्रिएटिनिन का स्तर 3 से 5 तक पहुंचने में जहां एक साल लगता था, वहीं यह थिरेपी उस प्रक्रिया को धीमा कर देती है। मरीजों को समय पर इलाज मिलने पर डायलिसिस को वर्षों तक टालना संभव हो सकता है।


कैसे काम करती है यह थेरेपी


नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. नारायण प्रसाद और प्रो. रवि शंकर कुशवाहा के अनुसार, इस थिरेपी में चार से पांच दवाओं का संयोजन किया गया है:


आर-ए-एस इनहिबिटर (रेनिन-एंजियोटेंसिन सिस्टम अवरोधक)


एसजीएलटी-2 इनहिबिटर (सोडियम-ग्लूकोज को-ट्रांसपोर्टर टाइप-2 अवरोधक)


फिनेरेनोन (गैर-स्टेरॉयड मिनरल कोर्टिकोइड रिसेप्टर विरोधी)


सेमाग्लूटाइड (ग्लूकागन जैसे पेप्टाइड रिसेप्टर एगोनिस्ट)



मरीज को प्रोटीन की मात्रा 0.8 ग्राम/किलो वजन प्रतिदिन तक सीमित रखनी होती है। इसके साथ ही रक्तचाप 130/80 मिमी पारे से कम और एचबीए1सी 7% से नीचे बनाए रखना जरूरी होता है।


क्या है बीमारी की स्थिति?


प्रो. नारायण के मुताबिक देश की 10% से ज्यादा आबादी किसी न किसी रूप में किडनी की बीमारी के जोखिम में है। मधुमेह, उच्च रक्तचाप और अधिक प्रोटीनयुक्त खानपान इसके प्रमुख कारण हैं। अक्सर यह बीमारी लक्षणहीन होती है और अंतिम चरण में पता चलती है।


बचाव कैसे करें?


हर 6 महीने में जीएफआर (ग्लोमेर्युलर फिल्ट्रेशन रेट) की जांच


पेशाब में प्रोटीन की जांच, खासकर डायबिटीज और बीपी के मरीजों में


प्रोटीन सप्लीमेंट और नमक से परहेज


मधुमेह और बीपी का सख्त नियंत्रण


संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और समय-समय पर जांच



> "यह कंबिनेशन थिरेपी मरीजों के लिए एक नई उम्मीद है। समय पर इलाज मिलने से डायलिसिस को वर्षों तक टाला जा सकता है।"

— प्रो. नारायण प्रसाद, विभागाध्यक्ष, नेफ्रोलॉजी, एसजीपीजीआई

शनिवार, 26 जुलाई 2025

कल्याण सिंह कैंसर संस्थान में कारगिल विजय दिवस पर संगोष्ठी व वृक्षारोपण


कल्याण सिंह कैंसर संस्थान में कारगिल विजय दिवस पर संगोष्ठी व वृक्षारोपण

“एक पेड़ कारगिल बलिदानियों के नाम” अभियान चला


लखनऊ। कल्याण सिंह अति विशिष्ट कैंसर संस्थान, लखनऊ में शनिवार को कारगिल विजय दिवस की 26वीं वर्षगांठ के अवसर पर संगोष्ठी और वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य देश की रक्षा में शहीद हुए वीर जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करना और उनके अद्वितीय बलिदान को स्मरण करना रहा।


कार्यक्रम की शुरुआत संस्थान के निदेशक प्रो. एम.एल.बी. भट्ट के प्रेरक उद्बोधन से हुई। मुख्य वक्ता के रूप में  आशुतोष जी (प्रांत बाल विद्यार्थी कार्य प्रमुख, अवध प्रांत) ने शहीदों के जीवन और उनके योगदान पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी में संस्थान के डॉक्टर  प्रमोद गुप्ता, सीएमएस डॉ विजेंद्र, डॉ  शरद सिंह के अलावा नर्सिंग स्टाफ और अन्य कर्मचारियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।


इस अवसर पर “एक पेड़ कारगिल बलिदानियों के नाम” विशेष वृक्षारोपण अभियान भी चलाया गया। संस्थान परिसर में चंदन, शमी, गूलर, अशोक, रुद्राक्ष, पारिजात, मौलश्री आदि के 21 पौधे लगाए गए।


कार्यक्रम के अंत में सभी उपस्थित जनों ने शहीदों की स्मृति में दो मिनट का मौन रखा और ‘जय हिंद’ के नारों के साथ राष्ट्र के प्रति अपने समर्पण को दोहराया।

पीजीआई हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए तैयार

 

कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी विभाग का स्थापना दिवस समारोह 


पीजीआई हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए तैयार


कैडेवर हार्ट मिलते ही करेंगे ट्रांसप्लांट, तीन मरीजों को है इंतजार



संजय गांधी पीजीआई के कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी विभाग ने हार्ट ट्रांसप्लांट की पूरी तैयारी कर ली है। विभाग के स्थापना दिवस के मौके पर विभागाध्यक्ष प्रो. एस.के. अग्रवाल ने बताया कि ट्रांसप्लांट के लिए कैडेवर हार्ट यानी मस्तिष्क-मृत व्यक्ति का स्वस्थ दिल जरूरी होता है। जैसे ही ऐसा हार्ट उपलब्ध होगा, ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। फिलहाल तीन मरीज प्रतीक्षा सूची में हैं।


प्रो. अग्रवाल ने बताया कि हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए ऐसा दिल चाहिए जो कम से कम 90 फीसदी तक कार्यरत हो। पहले हार्ट सर्जरी के लिए मरीजों को एक साल तक का इंतजार करना पड़ता था, लेकिन अब यह अवधि घटकर छह महीने रह गई है। विभाग में इस समय तीन ऑपरेशन थिएटर क्रियाशील हैं और दो नए ओटी जल्द ही शुरू होने वाले हैं। वर्तमान में हर महीने 80 से 85 सर्जरी की जा रही हैं, जिसे बढ़ाकर 150 तक पहुंचाने का लक्ष्य है।


संकाय विस्तार की तैयारी, बढ़ेगी सर्जरी की रफ्तार


प्रो. अग्रवाल ने बताया कि सर्जरी की संख्या बढ़ाने के लिए संकाय सदस्यों की संख्या भी बढ़ाई जा रही है। अभी विभाग में पांच संकाय सदस्य हैं। 11 नए पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए हैं और उम्मीद है कि जल्द तीन नए विशेषज्ञ मिल जाएंगे, जिससे सर्जरी की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।


मिनिमल इनवेसिव और रोबोटिक सर्जरी से घटी मृत्यु दर


विभाग में मिनिमल इनवेसिव और रोबोटिक सर्जरी तकनीकें तेजी से अपनाई जा रही हैं। इससे जटिलताएं कम हुई हैं और मृत्यु दर भी घटी है। पहले जहां मृत्यु दर 10 प्रतिशत से अधिक थी, अब यह घटकर केवल 2 प्रतिशत रह गई है। यह सुधार तकनीकी उन्नति और टीम की कार्यक्षमता से संभव हुआ है।


स्वदेशी रोबोट से सर्जरी में आएगा और सुधार


प्रो. अग्रवाल ने कहा कि विभाग को एक अलग सर्जिकल रोबोट की जरूरत है। इसके लिए भारत में विकसित एसएसआई मंत्रा रोबोट को लेने पर विचार किया जा रहा है। इसके साथ ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी उपयोग कर सर्जरी प्रक्रिया को और सटीक और सुरक्षित बनाया जाएगा।


चार प्रमुख सर्जरी होती हैं विभाग में


कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी विभाग में मुख्य रूप से चार तरह की सर्जरी होती हैं जिसमें


 बच्चों की दिल की जन्मजात बनावट की सर्जरी। 

 बच्चों के दिल की खराबी की सर्जरी। कोरोनरी आर्टरी डिजीज के मरीजों में

बायपास सर्जरी।

हार्ट फेल्योर के मरीजों में वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस लगाने की प्रक्रिया

हालांकि, प्रो. अग्रवाल ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल अस्थायी समाधान है। हार्ट ट्रांसप्लांट ही इन मरीजों के लिए स्थायी इलाज है।

कैंसर संस्थान में 'क्वालिटी ऑफ एविडेंस' कार्यशाला का सफल आयोजन

 

प्रदेश में पहली बार कैंसर संस्थान में 'क्वालिटी ऑफ एविडेंस' कार्यशाला का सफल आयोजन

नीति निर्माण, इलाज और रिसर्च की गुणवत्ता में आएगा सुधार


लखनऊ।

डॉक्टरों को अब क्लिनिकल निर्णयों के लिए ठोस और वैज्ञानिक आधार मिल सकेगा, जिससे इलाज की गुणवत्ता में बड़ा सुधार होगा। इसी उद्देश्य को लेकर कल्याण सिंह अति विशिष्ट कैंसर संस्थान, लखनऊ में उत्तर प्रदेश की पहली और देश की दूसरी ‘क्वालिटी ऑफ एविडेंस’ कार्यशाला का सफल आयोजन किया गया। यह चार दिवसीय कार्यशाला निदेशक प्रो. मदन लाल ब्रह्म भट्ट के मार्गदर्शन और डॉ. आयुष लोहिया की अध्यक्षता में आयोजित की गई।


इसमें 15 राज्यों से आए 40 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, जिनमें मेडिकल कॉलेजों के चिकित्सक, आईसीएमआर के वैज्ञानिक, विद्यार्थी और शोधार्थी शामिल थे। कार्यक्रम को आईसीएमआर–डीएचआर के 'सारांश–2' प्रोजेक्ट के तहत आयोजित किया गया।


एम्स, केजीएमयू, बीएचयू और केएसएसएससीआई जैसे प्रमुख संस्थानों के विशेषज्ञों ने प्रशिक्षण दिया। संकाय में डॉ. रिजवान, डॉ. अदिति मोहता, डॉ. अभिषेक जयसवाल, डॉ. फरहाद अहमद, डॉ. प्रदीप खार्या, डॉ. रामा शंकर रथ, डॉ. बालेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ. मनीष कुमार सिंह, डॉ. गीतिका पंत और डॉ. इंदुबाला मौर्या शामिल थे।


यह कार्यशाला नीति निर्माताओं, चिकित्सकों और मरीजों — तीनों के लिए फायदेमंद साबित होगी:


 केंद्र और राज्य सरकार को मजबूत व भरोसेमंद वैज्ञानिक साक्ष्य मिलेंगे, जिससे वे प्रभावी और जनहितकारी स्वास्थ्य नीतियां बना सकेंगी। डॉक्टरों को क्लिनिकल निर्णयों के लिए सशक्त वैज्ञानिक प्रमाण मिलेंगे जिससे इलाज अधिक सुरक्षित और प्रभावशाली होगा।

 मरीज अपने इलाज को बेहतर समझ सकेंगे और डॉक्टर के साथ मिलकर निर्णय लेने में अधिक सक्षम होंगे।

कार्यशाला से रिसर्च की गुणवत्ता भी बढ़ेगी और इससे बीमारी की पहचान, रोकथाम, इलाज और पुनर्वास जैसे क्षेत्रों में नई दिशा मिलेगी।

बुधवार, 23 जुलाई 2025

सीबीएमआर ने मनाया 19वां स्थापना दिवस,

 

सीबीएमआर ने मनाया 19वां स्थापना दिवस, 


एम्स रायबरेली व लोहिया संस्थान से हुआ शोध समझौता

छह वैज्ञानिक सम्मानित, प्रो. अशुतोष शर्मा ने दिया स्मृति व्याख्यान


लखनऊ, 23 जुलाई। केंद्र जैवचिकित्सा अनुसंधान (सीबीएमआर) ने मंगलवार को अपने 19वें स्थापना दिवस के अवसर पर वैज्ञानिक नवाचार और सहयोग की दिशा में कई अहम पहल की। इस अवसर पर डॉ. राम मनोहर लोहिया संस्थान, एम्स रायबरेली, केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद और एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ के साथ सहयोग समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए।


मुख्य अतिथि उपमुख्यमंत्री श्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि “सीबीएमआर प्रदेश का गौरव है, जो न्यूरोइमेजिंग, बायोमार्कर खोज और ट्रांसलेशनल मेडिसिन में उत्कृष्ट कार्य कर रहा है।” उन्होंने संस्थान को संरचना विस्तार और वैज्ञानिक संसाधन बढ़ाने का आश्वासन दिया।


निदेशक प्रो. आलोक धवन ने वर्षभर की उपलब्धियों की रिपोर्ट प्रस्तुत की और क्यू-लाइन बायोटेक प्रा. लि. के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (ईओआई) की घोषणा की।


इस अवसर पर “सीबीएमआर रिसर्च पब्लिकेशन अवार्ड” से छह वैज्ञानिकों को सम्मानित किया गया:


डॉ. अरुण कुमार तिवारी


डॉ. पूजा शर्मा


डॉ. अवनीश कुमार


डॉ. नवनीत कुमार


डॉ. नूतन पांडेय


डॉ. रोहित मिश्रा

इन शोधकर्ताओं ने न्यूरोबायोलॉजी, मेटाबोलिक डिसऑर्डर और कैंसर बायोलॉजी जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण शोध प्रकाशित किए हैं।



विशिष्ट व्याख्यान सी.एल. खेतरपाल स्मृति व्याख्यान के रूप में प्रो. अशुतोष शर्मा (पूर्व विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सचिव, भारत सरकार) ने दिया। उन्होंने नैनोटेक्नोलॉजी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा में संभावित परिवर्तन पर विचार रखे और युवाओं को अनुशासन-पार शोध के लिए प्रेरित किया।


डीन प्रो. नीरज सिन्हा ने समापन में सभी प्रतिभागियों, अतिथियों और आयोजकों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में देशभर के लगभग 300 शोधार्थियों और शिक्षाविदों की भागीदारी रही।

मंगलवार, 22 जुलाई 2025

एसजीपीजीआई ने एम्स सुपरटे को 23 रन से पराजित किया--

 

एसजीपीजीआई ने एम्स सुपरटे को 23 रन से पराजित किया--


-विट्रो टी-20 क्रिकेट टूर्नामेंट एसजीपीजीआई लगातार दूसरी बार बना चैंपियन

लखनऊ,एसजीपीजीआई ने विट्रो टी-20 क्रिकेट टूर्नामेंट के फाइनल मैच में एम्स सुपरटेक को 23 रन से हराकर दूसरी बार खिताब जीता है। दिल्ली एम्स की ओर से आयोजित हारकोर्ट बटलर मैदान पर फाइनल मुकाबला हुआ। कप्तान डीके सिंह की अगुआई में पहले बल्लेबाजी करते हुए एसजीपीजीआई ने आलोक कुमार 28 गेंद में 65 रनकी दमदार पारी के दम पर 193 रन बनाए। जवाब में एम्स सुपरटेक 169 रन ही बना सकी। आलोक को फाइनल मैच का मैन ऑफ द मैच दिया गया। वहीं अजीत कुमार वर्मा को चार मैचों में 16 विकेट लेने पर सिरीज बेस्ट बॉलर घोषित किया गया। जबकि सौरभ रौतेला मैन ऑफ द सीरीज चुने गए। अंकित और फिलिप ने भी अच्छी गेंदबाजी में योगदान दिया। टीम के लखनऊ पहुंचने पर एसजीपीजीआई निदेशक पद्मश्री डॉ. आरके धीमान ने सभी खिलाड़ियों को बधाई दी।

Kgmu perform complex soulder surgery by balloon spacer




Complex Shoulder Surgery Performed for the First Time at KGMU Using Balloon Spacer

Advanced Technique Offers Relief to Elderly Patient


Jagran Correspondent, Lucknow:

For the first time, the Department of Orthopedics at King George’s Medical University (KGMU) has successfully performed a complex shoulder surgery using a balloon spacer on a 72-year-old patient. According to the doctors, this is the first such surgery conducted in any government hospital in the state using this advanced technique. In this procedure, a special balloon-like implant was placed between the shoulder bones.


As per Department Head Prof. Ashish Kumar and Prof. Shantanu Kumar, the elderly patient, a resident of Lucknow, had suffered a serious shoulder injury after a sudden fall. Despite visiting several hospitals, he found no relief, and surgery was advised everywhere. However, due to his age, the family was hesitant to proceed with a surgical option. On a relative’s recommendation, they brought the patient to the Orthopedics Department at KGMU.


After thorough consultation and necessary investigations, doctors recommended a minimally invasive procedure using a balloon spacer. This method is commonly used for treating torn rotator cuffs. The rotator cuff is a group of muscles and tendons that stabilize the shoulder joint and enable arm movement. Injuries in this area are often complex and difficult to treat.


According to spokesperson Prof. K.K. Singh, the patient was in severe pain, and repairing the damaged shoulder muscles was a challenge. Therefore, a balloon spacer was implanted using an arthroscopic (keyhole) procedure. A small incision was made to insert the balloon between the shoulder bones. The entire surgery took only 30 minutes. Post-surgery, the patient experienced complete relief from pain and regained shoulder mobility.


Remarkably, the patient was discharged the very next day after the procedur







केजीएमयू में बैलून स्पेसर से पहली बार की गई कंधे की जटिल सर्जरी


आधुनिक तकनीक


से मरीज का इलाज


आर्थोपेडिक्स विभाग में


 किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के हड्डी रोग विभाग ने पहली बार बैलून स्पेसर की मदद से एक 72 वर्षीय बुजुर्ग के कंधे की जटिल सर्जरी करने में कामयाबी हासिल की है। डाक्टरों का दावा है कि आधुनिक विधि से प्रदेश के किसी सरकारी संस्थान में पहली बार ऐसी सर्जरी की गई है। बैलून स्पेसर की मदद से कंधे के बीच हड्डियों में गुब्बारा प्रत्यारोपित किया गया।


विभागाध्यक्ष प्रो. आशीष कुमार और प्रो. शांतनु कुमार के मुताबिक, लखनऊ निवासी बुजुर्ग कुछ समय पहले अचानक गिर गए थे, जिसकी वजह से उनके कंधे में गंभीर चोटें आईं। कई अस्पताल में दिखाया, लेकिन राहत नहीं मिली। हर जगह सर्जरी की सलाह दी गई। उम्र अधिक होने के चलते सर्जरी के लिए परिवारजन तैयार नहीं थे। रिश्तेदार की सलाह पर मरीज को लेकर केजीएमयू


बैलून स्पेसर


के हड्डी रोग विभाग पहुंचे। यहां पूरी जानकारी लेने के बाद कई जांचें कराई गईं। बैलून स्पेसर से बेहद छोटी सर्जरी की सलाह दी गई। दरअसल, बैलून स्पेसर एक प्रकार की कंधे की सर्जरी है, जो रोटेटर कफ के फटने के इलाज के लिए उपयोग की जाती है। रोटेटर कफ कंधे के बीच वाले हिस्से की मांसपेशियों और रेशों का एक समूह है। यह कंधे को जोड़कर रखता है, जिससे हाथ घुमाने में आसानी होती है। ऐसी जगह चोट लगने पर इलाज जटिल हो जाता है। प्रवक्ता प्रो.


केके सिंह ने बताया कि चोट की वजह से बुजुर्ग के कंधे में भीषण दर्द हो रहा था। कंधे की मांसपेशियों की मरम्मत चुनौतीपूर्ण थी। ऐसे में स्पेस बैलून स्पेसर सर्जरी से इलाज किया गया। दूरबीन विधि से एक छोटा छेद कर गुब्बारा कंधे की हड्डियों के बीच प्रत्यारोपित किया गया। इसमें कुल 30 मिनट लगे। मरीज का दर्द भी पूरी तरह ठीक हो गया। कंधे का मूवमेंट भी बढ़िया हो गया। खास बात यह है कि बुजुर्ग को इस प्रक्रिया के अगले दिन घर भेज दिया गया।

New Hope for Complex Elbow Fractures: PGI Develops Innovative “Arc Fixator” Technique

 




New Hope for Complex Elbow Fractures: PGI Develops Innovative “Arc Fixator” Technique

No More Plaster, Faster Recovery and Early Movement Possible


By Kumar Sanjay


A promising new technique has been developed by doctors in Lucknow for the treatment of complex and severe elbow fractures in children, specifically supracondylar fractures. Orthopedic specialists at the Apex Trauma Center of Sanjay Gandhi Postgraduate Institute of Medical Sciences (SGPGIMS), Lucknow, have introduced the "Arc Fixator", an external fixation system that is proving to be more effective than traditional pinning and plaster methods.


Treatment Without Plaster and Easier Nerve Monitoring


This innovative method not only stabilizes the bone but also allows for easy post-operative monitoring of nerves and blood flow. The most notable advantage is that it eliminates the need for a plaster cast, reducing complications such as elbow stiffness and enabling early initiation of physiotherapy.


Faster Recovery of Elbow Movement


As an external fixation system, the Arc Fixator does not restrict the patient's movement. This accelerates the healing process and allows children to regain normal use of their elbow more quickly compared to conventional treatment methods.


Promising Initial Results


Doctors at SGPGIMS successfully used this technique on 10 children aged between 6 and 12 years.


Out of these, 6 had fractures in the arm.


One patient experienced temporary ulnar nerve palsy due to a flexion-type injury, which resolved naturally within three months.


In three children, the injury had affected the median and ulnar nerves, which also recovered without the need for surgical intervention.


All fractures healed within six weeks, and most children regained normal elbow function within three months.



Expert Opinion


Experts believe this technique offers a safer and more effective treatment option, especially for older children with complex supracondylar fractures. It has the potential to become a widely adopted method in the future.


Research Recognized Internationally


This research has been recently accepted for publication in the Journal of Clinical Orthopaedics and Research.

The team of researchers includes:


Dr. Amit Kumar


Dr. Kumar Keshav


Dr. Anurag Baghel


Dr. Pulak Sharma – Department of Orthopaedics, SGPGIMS, Lucknow


Dr. Anoop Raj Singh – Sheikh-ul-Hind Maulana Mahmood Hasan Medical College, Saharanpur


Dr. Alok Rai – Department of Orthopaedics, Banaras Hindu University (BHU), Varanasi




कोहनी के जटिल फ्रैक्चर में राहत बन रही नई तकनीक आर्क फिक्सेटर











कोहनी के जटिल फ्रैक्चर में राहत बन रही  नई तकनीक आर्क फिक्सेटर


पीजीआई की नई तकनीक  प्लास्टर से मुक्ति और जल्दी मूवमेंट की आज़ादी


कुमार संजय


बच्चों की कोहनी की हड्डी में गंभीर और जटिल फ्रैक्चर  सुप्राकॉन्डाइलर फ्रैक्चर  के इलाज में लखनऊ के डॉक्टरों ने एक नई उम्मीद जगाई है। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (पीजीआई) के अपेक्स ट्रामा सेंटर स्थित आर्थोपेडिक्स विभाग के विशेषज्ञों ने "आर्क फिक्सेटर"  नामक नई तकनीक विकसित की है, जो पारंपरिक पिनिंग  और प्लास्टर  पद्धति की तुलना में अधिक प्रभावशाली साबित हो रही है।


बिना प्लास्टर के इलाज, नसों की आसान निगरानी


यह तकनीक हड्डी को स्थिर रखने के साथ-साथ ऑपरेशन के बाद नसों और रक्त प्रवाह की जांच की सुविधा देती है। सबसे खास बात यह है कि इसमें प्लास्टर की आवश्यकता नहीं होती, जिससे बच्चों को कोहनी की स्टिफनेस  जैसी जटिलता से राहत मिलती है और जल्दी फिजियोथेरेपी  शुरू की जा सकती है।


जल्दी लौटती है कोहनी की गतिशीलता


आर्क फिक्सेटर  एक एक्सटर्नल फिक्सेशन सिस्टम  है, जिसमें मरीज की मूवमेंट  पर कोई प्रतिबंध नहीं रहता। इससे हड्डी जल्दी जुड़ती है और बच्चों को कोहनी के सामान्य उपयोग की स्वतंत्रता शीघ्र मिलती है।


प्रारंभिक परिणाम उत्साहजनक


पीजीआई के डॉक्टरों ने 6 से 12 वर्ष की उम्र के 10 बच्चों पर इस तकनीक का सफलतापूर्वक उपयोग किया।


इनमें से 6 बच्चों के फ्रैक्चर  हाथ में थे।


एक मरीज में फ्लेक्शन चोट के कारण अस्थायी अल्नर नर्व पल्सी पाई गई, जो तीन महीने में खुद ठीक हो गई।


तीन बच्चों में चोट के कारण नर्व्स  – मीडियन व अल्नर नर्व  प्रभावित थीं, जो बिना किसी सर्जिकल इंटरवेंशन  के स्वतः स्वस्थ हो गईं।


6 सप्ताह में सभी की हड्डी जुड़ गई और 3 महीने में अधिकतर बच्चों का हाथ सामान्य रूप से काम करने लगा।



विशेषज्ञों की राय


विशेषज्ञों के अनुसार, बड़े बच्चों में जटिल सुप्राकॉन्डाइलर फ्रैक्चर की स्थिति में यह तकनीक इलाज को अधिक सुरक्षित और कारगर बनाती है। भविष्य में यह पद्धति व्यापक रूप से अपनाई जा सकती है।


यह शोध यहां हुआ स्वीकार 


इस शोध को जर्नल ऑफ क्लीनिकल ऑर्थोपेडिक्स एंड रिसर्च ने हाल ही में स्वीकार किया है। जिसमें यह 


शोधकर्ता शामिल हुए।


डॉ. अमित कुमार, डॉ. कुमार केशव, डॉ. अनुराग बघेल, डॉ. पुलक शर्मा – ऑर्थोपेडिक्स विभाग, पीजीआई एपेक्स ट्रॉमा सेंटर 

डॉ. अनूप राज सिंह – शेखुलहिंद मौलाना महमूद हसन मेडिकल कॉलेज, सहारनपुर,

डॉ. आलोक राय – ऑर्थोपेडिक्स विभाग, बीएचयू, वाराणसी





गुरुवार, 17 जुलाई 2025

Workshop organized at SGPGIMS for EHCP Training

 


Ensuring Easy Access to Ayushman Bharat Scheme for Patients


Workshop organized at SGPGIMS for EHCP Training


A training workshop was organized at Sanjay Gandhi Postgraduate Institute of Medical Sciences (SGPGIMS), Lucknow, with the objective of enhancing the efficiency of empanelled health care providers (EHCPs) under the Ayushman Bharat – Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana (AB-PMJAY) and to bring standardization in the scheme's implementation.


This workshop was jointly led by the State Agency for Comprehensive Health and Integrated Services (SACHIS) and SGPGIMS.


Professor Rajesh Harshvardhan, Head of Hospital Administration and Medical Superintendent, informed that over 2,546 hospitals in Uttar Pradesh are empanelled under this scheme, including 1,032 government hospitals, 1,220 private for-profit institutions, and 294 private non-profit organizations.


A total of 60 representatives from various districts of the state participated in the program. Key dignitaries present included Archana Verma, Chief Executive Officer of SACHIS; Dr. Pooja Yadav, Additional CEO; Professor Devendra Gupta, Chief Medical Superintendent of SGPGIMS; and Ranjit Sameer, General Manager and Head of Human Resources.


During the inaugural session, Professor Harshvardhan emphasized the need for such training and highlighted the critical role of EHCPs in the scheme. Professor Devendra Gupta described the scheme as a "game changer" for the underprivileged, stating that it provides free medical services to those who were earlier deprived of treatment.


In the technical sessions, the SACHIS team provided detailed insights into various digital components of the scheme, including:


User Management Portal


Beneficiary Identification System


Transaction Management System


Hospital Implementation procedures



Participants were also briefed on the Pandit Deendayal Upadhyay State Government Employee Cashless Medical Scheme, with a focus on its integration and practical benefits.


An open session allowed participants to share challenges faced at the field level in implementing the scheme, offering valuable feedback for further improvements.



ईएचसीपी के प्रशिक्षण हेतु पीजीआई में कार्यशाला

 

मरीजों को आसानी में मिले

आयुष्मान योजना का लाभ


ईएचसीपी के प्रशिक्षण हेतु पीजीआई में कार्यशाला


प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के अंतर्गत सूचीबद्ध स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की कार्यकुशलता बढ़ाने और योजना के संचालन में मानकीकरण लाने के उद्देश्य से लखनऊ स्थित संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया।

इस आयोजन का नेतृत्व

स्टेट एजेंसी फॉर कॉम्प्रिहेन्सिव हेल्थ एंड इंटीग्रेटेड सर्विसेज़ साचीस और एसजीपीजीआईएमएस के संयुक्त प्रयास से किया गया।

अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख और चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर राजेश हर्षवर्धन ने बताया कि

उत्तर प्रदेश में 2,546 से अधिक अस्पताल इस योजना में सूचीबद्ध हैं, जिनमें से 1,032 सरकारी, 1,220 निजी लाभकारी तथा 294 निजी गैर-लाभकारी संस्थान शामिल हैं।

प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए 60 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

कार्यक्रम में साचीस की मुख्य कार्यकारी अधिकारी अर्चना

वर्मा, अपर सीईओ डॉ. पूजा यादव, एसजीपीजीआईएमएस के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो. देवेंद्र गुप्ता, मानव संसाधन प्रमुख एवं महाप्रबंधक रंजीत समीर उपस्थित रहे।

उद्घाटन सत्र में प्रो. हर्षवर्धन ने प्रशिक्षण की आवश्यकता और ईएचसीपी की भूमिका को रेखांकित किया। प्रो. देवेंद्र गुप्ता ने इस योजना को गरीबों के लिए "गेम चेंजर" बताया, जिससे पहले इलाज से वंचित रह जाने वाले मरीजों को अब मुफ्त सेवाएं मिल रही हैं।

तकनीकी सत्रों में साचीस की टीम द्वारा योजना के विभिन्न डिजिटल घटकों पर विस्तार से जानकारी दी गई।

यूज़र मैनेजमेंट पोर्टल

लाभार्थी पहचान प्रणाली

ट्रांजैक्शन मैनेजमेंट सिस्टम

हॉस्पिटल इम्प्लीमेंटेशन के बारे में जानकारी दी गई।

प्रतिभागियों को पंडित दीनदयाल उपाध्याय राज्य कर्मचारी कैशलेस चिकित्सा योजना के बारे में भी बताया गया, विशेष रूप से इसके एकीकरण और व्यवहारिक लाभों को समझाया गया।

एक खुले सत्र में प्रतिभागियों ने योजना के फील्ड लेवल (क्षेत्रीय स्तर) पर आने वाली समस्याओं को साझा किया।

रविवार, 13 जुलाई 2025

नर्सिंग भर्ती में केवल प्रदेश वालो का हो आवेदन अन्य राज्यों के अभ्यर्थियों का न हो चयन ।

 

नर्सिंग भर्ती  में केवल प्रदेश वालो का हो आवेदन अन्य राज्यों के अभ्यर्थियों का न हो चयन 


उत्तर प्रदेश के विभिन्न चिकित्सा संस्थानो तथा मेडिकल कॉलेजो में नर्सिंग भर्ती की प्रक्रिया प्रदेश सरकार द्वारा समय-समय पर की जा रही है जिसमें देखा जा रहा है कि अन्य प्रदेशों के लोग आवेदन करते है और अन्य प्रदेशों के लोगों का ही चयन भी भारी मात्रा में हो रहा है । चिकित्सा संस्थानों में आजकल राजस्थान के लोग अधिकांशतः दिखाई दे रहे है ।सुभासपा श्रम प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष रितेश मल्ल जी ने मा मुख्यमंत्री जी से मांग किया है कि उ प्र नर्सिंग भर्ती परीक्षा में केवल उ प्र के निवासियों एवं उ प्र के डिप्लोमा धारियों का ही आवेदन करवाया जाए तथा अन्य प्रदेशों के अभ्यर्थियों के आवेदन पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए। मल्ल जी ने यह भी कहा है कि अन्य प्रदेश जैसे केरल ,हरियाणा, राजस्थान ,मध्य प्रदेश, बिहार में वही के निवासी तथा वहीं की शैक्षिक योग्यता सरकार द्वारा अनिवार्य किया गया है लेकिन उ प्र सरकार की ओर से इस पर रोक नहीं लगाए जाने के कारण अपने यहां के युवा , योग्य तथा अनुभवी लोग स्थाई नौकरी से वंचित रह जा रहे हैं । अन्य प्रदेशों के लोग आकर उ प्र में नौकरी प्राप्त कर ले रहे हैं ऐसे में सरकार की जो मनसा है रोजगार के क्षेत्र में उस पर पानी फिर रहा है ।

 नर्सिंग भर्ती में केवल उ प्र का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया है बाहर के लोग आकर प्रदेश में रजिस्ट्रेशन करवा ले रहे हैं और आवेदन करके नौकरी प्राप्त कर ले रहे हैं जो की उचित नहीं है।

 इसलिए सरकार के यशस्वी मा मुख्यमंत्री जी से अपील है कि युवा हित को ध्यान में रखते हुए तथा प्रदेश की इकोनॉमी और प्रतिव्यक्ति आय को मजबूत किए जाने हेतु उ प्र नर्सिंग भर्ती परीक्षा में केवल यहां के निवासियों तथा उ प्र की शैक्षिक योग्यता वालों को ही आवेदन करने का अधिकार दिया जाए।  नर्सिंग भर्ती परीक्षा नियमावली में संशोधन किया जाए जिससे उत्तर प्रदेश के युवा उपेक्षित महसूस ना करें ।

इसी तरह स्टेट मेडिकल फैकल्टी में रजिस्टर्ड लोगों को ही प्रदेश में नौकरी मले  जो उत्तर प्रदेश में रजिस्टर्ड नहीं है उनको यहां पर नौकरी नहीं देना चाहिए हमारे प्रदेश में ही लाखों लोग बेरोजगार है दूसरे प्रदेशों से आकर लोग यहां हमारे रोजगार पर कब्जा कर रहे है।

शनिवार, 12 जुलाई 2025

Major Initiative Launched to Eliminate Rheumatic Heart Disease from Uttar Pradesh

 




AI Stethoscope to Revolutionize Early Detection of RHD

High-Level Scientific Committee Meeting Held at SGPGI

Major Initiative Launched to Eliminate Rheumatic Heart Disease from Uttar Pradesh

A high-level meeting of the Scientific Advisory Committee was held on July 11, 2025, at Sanjay Gandhi Postgraduate Institute of Medical Sciences (SGPGIMS), Lucknow, to guide the “RHD Roko” initiative — a major step towards eliminating rheumatic heart disease (RHD) from Uttar Pradesh. This initiative is a collaborative effort between SGPGI, the Government of Uttar Pradesh, and Stanford Biodesign, aiming to eradicate RHD over the next decade.

The meeting was chaired by Mr. Parth Sarathi Sen Sharma, Principal Secretary of the Medical Education Department. From SGPGI, Padma Shri Prof. R.K. Dhiman, Prof. Aditya Kapoor, and Prof. S.K. Agarwal led the proceedings.

The meeting saw participation from several national and international experts including:

Prof. Anurag Mairal, Dr. Saunli Doshi, and Dr. Jagdish Chaturvedi from Stanford Biodesign

Dr. Craig Sable from the American Heart Association

Dr. Anita Saxena from Fortis Escorts

Dr. Prakash Raj Regmi from Nepal Heart Foundation

Dr. Arpit Patnaik, Dr. Rohitashwa Kumar, and Dr. Satyabrata Rautray from PATH

Dr. Rohit Singh from Edwards Lifesciences

Dr. Charit Bhograj from Tricog

Dr. S.K. Gautam and Dr. Reshma Masood from the National Health Mission, Uttar Pradesh


Prof. Anurag Mairal described the initiative as a transformative public health model. Prof. Dhiman called it a historic step in the direction of preventive cardiology. Mr. Parth Sarathi Sen Sharma emphasized integrating the initiative with existing government schemes through the involvement of RBSK (Rashtriya Bal Swasthya Karyakram) workers.

Prof. Aditya Kapoor highlighted that the early detection of RHD is now possible through a combination of oral questionnaires and an AI-enabled stethoscope designed by Tricog, which has already been successfully tested at SGPGI. Prof. Agarwal stressed the need for capacity building at the district level for early diagnosis and timely referral.

The "RHD Roko" project will be implemented in four phases:

1. Preliminary screening


2. Detection of cardiac murmurs using the AI stethoscope


3. Echocardiography at district hospitals


4. Referral of confirmed cases to SGPGI



The committee will also develop diagnostic protocols for DEICs, PHCs, and CHCs across the state, along with training, implementation, and monitoring.


रोमांटिक हार्ट डिजीज को खत्म करने के लिए बड़ी पहल

 




ए आई स्टेथोस्कोप से आसान होगी आर एच  डी की पहचान


पीजीआई में 

वैज्ञानिक समिति की बैठक



उत्तर प्रदेश से रूमेटिक हृदय रोग खत्म करने की दिशा में बड़ी पहल


संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान  में 11 जुलाई 2025 को ‘आरएचडी रोको पहल’ को दिशा देने के लिए वैज्ञानिक सलाहकार समिति  की उच्चस्तरीय बैठक आयोजित की गई। यह पहल एसजीपीजीआई उत्तर प्रदेश सरकार और स्टैनफोर्ड बायोडिज़ाइन  के सहयोग से शुरू की गई है, जिसका उद्देश्य अगले दशक में रूमेटिक हृदय रोग का उन्मूलन है।


बैठक की अध्यक्षता चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव श्री पार्थ सारथी सेन शर्मा ने की। एसजीपीजीआई की ओर से पद्मश्री प्रो. आर.के. धीमन, प्रो. आदित्य कपूर और प्रो. एस.के. अग्रवाल ने नेतृत्व किया। बैठक में स्टैनफोर्ड बायोडिज़ाइन से प्रो. अनुराग मैरल, डॉ. सौलनी दोशी और डॉ. जगदीश चतुर्वेदी, अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन  से डॉ. क्रेग सेबल, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स  से डॉ. अनीता सक्सेना, नेपाल हार्ट फाउंडेशन से डॉ. प्रकाश राज रेग्मी, पाथ से डॉ. अर्पित पटनायक, डॉ. रोहिताश्व कुमार और डॉ. सत्यब्रत राउत्रे, एडवर्ड्स लाइफसाइंसेज़  से डॉ. रोहित सिंह और ट्राइकोग  से डॉ. चरित भोगराज सहित कई विशेषज्ञ उपस्थित थे। यूपी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के प्रतिनिधि डॉ. एस.के. गौतम और डॉ. रेशमा मसूद भी बैठक में शामिल हुए।


प्रो. अनुराग मैरल ने कहा कि यह एक परिवर्तनकारी पब्लिक हेल्थ मॉडल  बन सकता है। डॉ. धीमन ने इसे प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजीकी दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया। डॉ. पार्थ सारथी सेन शर्मा ने आरबीएसके (राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम) कार्यकर्ताओं की भागीदारी से पहल को सरकारी योजनाओं से जोड़ने की बात कही।


प्रो. आदित्य कपूर ने बताया कि मौखिक प्रश्नावली और ट्राइकोग द्वारा डिज़ाइन एआई स्टेथोस्कोप  से आरएचडी की शुरुआती पहचान संभव है, जिसे एसजीपीजीआई में सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है। प्रो. अग्रवाल ने जिला स्तर पर शीघ्र निदान और रेफरल के लिए क्षमता निर्माण की जरूरत पर बल दिया।


‘आरएचडी रोको’ परियोजना चार चरणों में कार्य करेगी जिसमें 


 प्रारंभिक जांच,

एआई स्टेथोस्कोप से मर्मर की पहचान,

 जिला अस्पताल में इकोकार्डियोग्राफी

पुष्ट मामलों का एसजीपीजीआई रेफरल शामिल है। 

समिति पूरे प्रदेश में डीईआईसी,पीएचसी  और सीएचसी  के लिए नैदानिक प्रोटोकॉल तैयार करेगी, प्रशिक्षण और कार्यान्वयन की निगरानी भी करेगी।


शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

पांच साल में 785 पतियों की हत्या

 




पांच राज्यों में पांच साल में 785 पतियों की हत्या — रिश्तों में पनपती हिंसा की खामोश चीख

पत्नी पर हत्या या साजिश का आरोप, आंकड़े तो हैं ही, पर सवाल कहीं गहरा है...


एक ओर समाज महिला हिंसा के खिलाफ जागरूकता बढ़ा रहा है, वहीं दूसरी ओर एक चुपचाप उभरती सच्चाई हमारी आंखें खोलने के लिए काफी है। पिछले पांच वर्षों (2020 से 2024) में देश के पांच बड़े राज्यों — उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश — में कुल 785 पतियों की हत्या दर्ज हुई। ये वो मामले हैं जिनमें पत्नी को या तो प्रत्यक्ष रूप से हत्या का आरोपी बनाया गया या फिर उस पर हत्या की साजिश में शामिल होने का शक जताया गया। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो में यह खुलासा किया है।


ये आंकड़े केवल अपराध नहीं दर्शाते, बल्कि टूटते पारिवारिक ढांचे और रिश्तों में गहराती दरार की दर्दनाक तस्वीर भी पेश करते हैं।


कौन से राज्य सबसे आगे?


उत्तर प्रदेश इस सूची में सबसे ऊपर है, जहां 2020 से 2024 के बीच कुल 274 पतियों की हत्या दर्ज की गई।

बिहार में 186, राजस्थान में 138, महाराष्ट्र में 100 और मध्य प्रदेश में 87 मामले सामने आए।


वर्ष उत्तर प्रदेश बिहार राजस्थान महाराष्ट्र मध्य प्रदेश


2020 45 30 20 15 12

2021 52 35 25 18 15

2022 60 40 28 20 18

2023 55 39 30 22 20

2024 62 42 35 25 22



आंकड़े चौंकाते हैं, लेकिन असली सवाल है — क्यों?


रिश्तों की शुरुआत प्यार और भरोसे से होती है, लेकिन जब संवाद खत्म होता है, तो मन में पनपता अविश्वास और गुस्सा कभी-कभी हिंसा का रूप ले लेता है। कई मामलों में घरेलू कलह, संपत्ति विवाद, अफेयर या मनोवैज्ञानिक असंतुलन कारण बना।


विशेषज्ञों का कहना है कि भारत जैसे पारंपरिक समाज में जहां तलाक को अब भी सामाजिक कलंक माना जाता है, वहां कई बार झगड़े खुली बातचीत से नहीं, चुपचाप नफरत में बदलते जाते हैं — और जब रिश्ते मरते हैं, तब कई बार इंसान भी मारे जाते हैं।


पुरुष भी बन रहे घरेलू हिंसा के शिकार?


हमारा समाज अभी तक घरेलू हिंसा को अधिकतर महिलाओं की पीड़ा से जोड़कर देखता आया है। लेकिन ये घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि पुरुष भी घरेलू हिंसा और भावनात्मक शोषण के शिकार हो सकते हैं — और कभी-कभी इसका अंजाम जानलेवा भी हो सकता है।


अब क्या ज़रूरी है?


कानूनी पहलुओं से इतर समाज को अब रिश्तों की मरम्मत पर ध्यान देना होगा। पारिवारिक परामर्श, विवाह पूर्व काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य सहायता जैसी सेवाओं को सामान्य बनाना होगा। सिर्फ अपराध के बाद जांच और सजा नहीं, बल्कि शादी के भीतर पनप रहे तनावों को समय रहते समझना ज़रूरी है।


निष्कर्ष


785 पतियों की हत्या केवल क्राइम डाटा नहीं — यह रिश्तों की गहराई में चल रही टूटन की कहानी है।

इन घटनाओं से हमें यह सीखने की जरूरत है कि कोई भी रिश्ता संवाद और समझदारी के बिना नहीं टिक सकता। जहां रिश्ते दम तोड़ते हैं, वहां अपराध जन्म लेता है। सवाल सिर्फ कानून का नहीं, समाज के उस ढांचे का है जहां शादी को निभाने की जगह, कभी-कभी खत्म कर देने का रास्ता चुन लिया जाता है।


समय आ गया है कि हम रिश्तों को सिर्फ निभाएं नहीं, समझें भी। वरना ये आंकड़े सिर्फ बढ़ते जाएंगे — और हम चुपचाप पढ़ते रहेंगे।


90% लोग माइग्रेन और साइनस में फर्क नहीं कर पाते

 





90% लोग माइग्रेन और साइनस में फर्क नहीं कर पाते


 60% लेते हैं गलत इलाज


सिरदर्द की अनदेखी से बढ़ रही  की परेशानी


कुमार संजय


क्या आपका सिरदर्द अक्सर लौटकर आता है? क्या आप इसे साइनस समझकर नाक की दवा ले रहे हैं या माइग्रेन की गोली खा रहे हैं? अगर हां, तो आप अकेले नहीं हैं।  संजय गांधी पीजीआई में सिर दर्द की परेशानी के साथ आने वाले मरीजों पर सर्वे से  पता लगा कि 90%

 लोग माइग्रेन और साइनस हेडेक के बीच फर्क नहीं कर पाते, और लगभग 60% लोग गलत इलाज लेते हैं। इससे समय, पैसा और स्वास्थ्य तीनों की हानि होती है।


 माइग्रेन और साइनस हेडेक: फर्क समझें



संजय गांधी पीजीआई के न्यूरोलॉजिस्ट प्रोफेसर रुचिका टंडन का कहना है कि माइग्रेन एक न्यूरोलॉजिकल समस्या है जिसमें सिर के एक ओर धड़कन जैसा दर्द होता है। यह कई घंटों से लेकर 72 घंटे तक चल सकता है और इसमें मतली, उल्टी, तेज़ रोशनी व आवाज से संवेदनशीलता और कुछ मामलों में ऑरा (दृश्य आभास) हो सकता है। यह तनाव, नींद की कमी और कुछ खाद्य पदार्थों से ट्रिगर होता है।


हेड एंड नेक सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर अमित केसरी का कहना है कि

साइनस हेडेक आमतौर पर साइनस संक्रमण या सूजन के कारण होता है। यह माथे, गाल या आंखों के पीछे दबाव जैसा दर्द देता है, जो झुकने या लेटने पर बढ़ जाता है। इसके साथ नाक बंद,  स्राव और बुखार जैसे लक्षण होते है।



 चिंताजनक आंकड़े:


भारत में 10 करोड़ से अधिक माइग्रेन पीड़ित हैं।


हर 4 में से 3 माइग्रेन मरीज साइनस समझकर इलाज शुरू करते हैं।


करीब 40% साइनस मरीज माइग्रेन की दवा लेते हैं।


 यह परेशानी तो सतर्क


विशेषज्ञों के अनुसार, सिरदर्द का बार-बार होना, खासतौर पर जब वह रोशनी, आवाज या झुकने से बिगड़े, तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए। माइग्रेन और साइनस का लक्षण भले ही मिलता-जुलता हो, लेकिन इलाज अलग है।

बुधवार, 9 जुलाई 2025

अंगदान अभियान को मिलेगा पहिए की ताकत और तकनीकी बढ़त

 





बस एक स्कैन की दूरी पर


 


अंगदान अभियान को मिलेगा पहिए की ताकत और तकनीकी बढ़त


 


वैन उत्तर प्रदेश भर में यात्रा करेगी, अंगदान प्रतिज्ञाओं के लिए एक-स्टॉप समाधान के रूप में भी काम करेगी


 


कुमार संजय


कभी किसी की जिंदगी को बचाने का सबसे बड़ा अवसर हमारे पास से यूं ही निकल जाता है — शायद जानकारी के अभाव में, या प्रक्रिया की जटिलता के कारण लेकिन अब यह बदलाव की शुरुआत है।


लोग जल्द ही अंगदान के लिए खुद को रजिस्टर कर सकेंगे केवल एक क्यूआर कोड को स्कैन करके। एक विशेष रूप से सुसज्जित वैन पर, जिसे 3 अगस्त  अंगदान दिवस के अवसर पर लॉन्च किया जाएगा।


 


उत्तर प्रदेश के राज्य अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (सोटो यू पी) ने यह सराहनीय पहल शुरू की है ताकि अंगदान के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके और इसकी पंजीकरण प्रक्रिया को सरल, सुलभ और आमजन के लिए सहज बनाया जा सके।


 


यह वैन, जो पूरे उत्तर प्रदेश में यात्रा करेगी, न केवल जागरूकता फैलाने के लिए डिज़ाइन की गई है, बल्कि यह उन हज़ारों ज़िंदगियों की उम्मीद भी बन सकती है जिन्हें समय पर एक अंग की दरकार होती है। यह अब अंगदान पंजीकरण के लिए एक समर्पित समाधान के रूप में कार्य करेगी।


 


वैन में एक बिल्ट-इन स्कैनर सिस्टम है, जिससे लोग केवल एक क्यूआर कोड स्कैन करके कुछ ही क्षणों में अंगदान की प्रतिज्ञा कर सकेंगे — वह भी बिना किसी पेपरवर्क या लंबी प्रक्रिया के।


 


यह नवाचार प्रयास संजय गांधी पीजीआई के अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक और सोटो यूपी के प्रमुख प्रोफेसर राजेश हर्षवर्धन द्वारा शुरू की गई कई जनहितकारी पहलों का हिस्सा है। बताया कि  लगातार प्रस्तावों और उच्च स्तरीय बैठकों के माध्यम से केंद्रीय अनुमोदन प्राप्त किया है, और यह पहल राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण कार्यक्रम के अंतर्गत संचालित हो रही है।


 


इस वैन के निर्माण के लिए ₹51.85 लाख की स्वीकृति दी गई है — एक ऐसी वैन जो केवल सड़क पर नहीं दौड़ेगी, बल्कि किसी के दिल की धड़कन, किसी की सांसों और किसी की उम्मीद को भी आगे बढ़ाएगी। इस जागरूकता वैन के जरिए लोगों में अंगदान के प्रति जागरूकता से कोई मां, पिता या बच्चा सिर्फ एक अंग की कमी से जीवन की दौड़ से बाहर न हो जाए। यह वैन न सिर्फ जागरूकता के काम करेगा साथ ही  संग्रहीत अंगों के सुरक्षित परिवहन और प्रदेश के शहरों और कस्बों में प्रतिज्ञा ड्राइव्स के संचालन में किया जाएगा।


 


इस वैन में मौजूद क्यूआर-कोड स्कैनिंग प्रणाली लोगों को कुछ ही सेकंड में अंगदान के लिए अपनी प्रतिज्ञा दर्ज करने की सुविधा देती है।


"यह एक तकनीकी रूप से उन्नत, उपयोगकर्ता-अनुकूल पहल है, जो अंगदान में भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू की गई है।


 


 


 


 


 


किडनी ट्रांसप्लांट की स्थिति


 

नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो नारायण प्रसाद के मुताबिक

प्रदेश में लगभग 50,000 रोगियों को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत है ।


 


लगभग 40,000 मरीज डायलिसिस पर हैं, जिनमें से 40‑50 फीसदी यानी करीब 20,000–25,000 मरीज प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे हैं ।


सरकारी अस्पतालों में प्रतिवर्ष केवल 350–400 किडनी ट्रांसप्लांट ही हो पाते हैं  । 


बाक्स


67 फीसदी में होता है ब्रेन डेथ


प्रो. हर्ष वर्धन का कहना है कि प्रदेश में मृत्य 25000 प्रति वर्ष रोड एक्सीडेंट से जिसमें 67 फीसदी का ब्रेन डेथ होता यदि यह अंगदान करें तो अंगों की कमी काफी दूर हो सकती है।  






पीजीआई में वेटिंग


किडनी ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा कर रहे मरीजों की संख्या (केवल सक्रिय उम्मीदवार) – 241


लिवर प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे सक्रिय मरीजों की संख्या: 57

पीजीआई डिप्लोमा धारकों को नौकरी से वंचित करने पर उठा सवाल

 

पीजीआई डिप्लोमा धारकों को नौकरी से वंचित करने पर उठा सवाल

बरसों से आउटसोर्सिंग पर सेवा दे रहे ओटी तकनीशियनों ने मांगा न्याय



उत्तर प्रदेश में ऑपरेशन थिएटर टेक्नीशियन के रूप में वर्षों से सेवा दे रहे हजारों डिप्लोमा धारकों के भविष्य पर संकट गहरा गया है। हाल ही में संजय गांधी पीजीआई द्वारा जून 2025 में जारी ओटी (ऑपरेशन थिएटर) असिस्टेंट की भर्ती में केवल बी.एससी. ओटी टेक्नोलॉजी (बैचलर ऑफ साइंस इन ऑपरेशन थिएटर टेक्नोलॉजी) और बी.एससी. एनेस्थीसिया टेक्नोलॉजी (बैचलर ऑफ साइंस इन एनेस्थीसिया टेक्नोलॉजी) योग्यता को मान्यता दी गई है। इसके चलते उत्तर प्रदेश स्टेट मेडिकल फैकल्टी से मान्यता प्राप्त डिप्लोमा कोर्स कर चुके अभ्यर्थियों को पूरी तरह बाहर कर दिया गया है।


डिप्लोमा इन ऑपरेशन थिएटर टेक्नीशियन कोर्स किए हुए युवा एसजीपीजीआई, केजीएमयू, आरएमएल, बीएचयू, यूपीयूएमएस जैसे देश के प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में बीते 5 से 8 वर्षों से कार्यरत हैं। उनका कहना है कि जब राज्य सरकार स्वयं यह डिप्लोमा कोर्स चला रही है और वर्षों से उसी आधार पर नियुक्तियां हो रही हैं, तो अब इन योग्यताओं को अमान्य घोषित करना अन्याय है।


इस बीच डिप्लोमा धारक अभ्यर्थियों ने सवाल उठाया है कि जब संस्थानों में नौकरी के लिए डिप्लोमा को मूल योग्यता नहीं माना जा रहा, तो फिर ये कोर्स क्यों चलाए जा रहे हैं? उनका आरोप है कि ऐसे कोर्स कराकर सरकार बेरोजगारों की फौज खड़ी कर रही है। या तो ये कोर्स बंद किए जाएं, या तब तक मान्यता दी जाए जब तक डिप्लोमा धारकों को नौकरी नहीं मिल जाती।


अभ्यर्थियों का कहना है कि वर्तमान में बीएससी डिग्री धारकों को प्राथमिकता दी जा रही है और डिप्लोमा वालों को नजरअंदाज किया जा रहा है, जो स्पष्ट रूप से भेदभाव है। उन्होंने यह भी मांग की है कि डिप्लोमा कोर्स को भी मूल योग्यता में शामिल किया जाए और उन्हें भी परीक्षा में बैठने का अवसर दिया जाए।


आउटसोर्सिंग (बाहरी संविदा) के तहत कार्यरत इन तकनीशियनों ने सरकार से अनुरोध किया है कि टेलीमेडिसिन स्टाफ की तरह उन्हें भी अनुभव के आधार पर 5% से 30% तक अतिरिक्त अंक (वेटेज) दिए जाएं।


डिप्लोमा धारक अभ्यर्थियों का कहना है कि वर्षों से मेहनत कर रहे प्रशिक्षित युवाओं के साथ अन्याय अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

सोमवार, 7 जुलाई 2025

हृदय रोग विशेषज्ञों की पढ़ाई में बड़े बदलाव की ज़रूरत

 

हृदय रोग विशेषज्ञों की पढ़ाई में बड़े बदलाव की ज़रूरत

परीक्षा प्रणाली में बदलाव पर दिया जोर


पीजीआई , केजीएमयू और एम्स दिल्ली के हृदय रोग विशेषज्ञों ने शोध पत्र में दी राय


कुमार संजय


भारत में हृदय रोग विशेषज्ञ बनने के लिए चल रहे डी. एम. और डी. एन. बी. पाठ्यक्रम अब पुरानी प्रणाली पर आधारित हैं, जो आज की तकनीकी और व्यावहारिक ज़रूरतों को पूरा नहीं करते। यह बात संजय गांधी पी. जी. आई., लखनऊ के डॉ. आदित्य कपूर, के. जी. एम. यू. के डॉ. ऋषि सेठी और एम्स, दिल्ली के डॉ. राकेश यादव द्वारा किए गए एक महत्वपूर्ण अध्ययन में सामने आई है। यह शोध  इंडियान हार्ट जर्नल ने स्वीकार किया है। विशेषज्ञों ने  भारत में कार्डियोलॉजी ट्रेनिंग करिकुलम: दोबारा सोचने का समय है विषय पर रिसर्च किया। शोध में कहा गया है कि कार्डियोलॉजी के छात्र केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि व्यावहारिक निर्णय क्षमता, संवेदनशीलता, नैतिक सोच और रिसर्च कौशल भी प्राप्त करें  इसके लिए पाठ्यक्रम में बदलाव ज़रूरी है। विशेषज्ञों ने परीक्षा प्रणाली में बदलाव पर जोर दिया है कहा कि  वर्तमान डी. एम./डी. एन. बी. की परीक्षा अब भी पुराने ढर्रे पर है, जिसमें कुछ खास बीमारियों पर ही ज़ोर दिया जाता है।  आज मरीजों को कॉम्प्लेक्स कार्डियक केयर की ज़रूरत है। इसलिए केस-बेस्ड डिस्कशन, मिनी सी. ई. एक्स., और वर्कप्लेस बेस्ड एसेसमेंट को अपनाने की जरूरत है।  भारत में कार्डियोलॉजी ट्रेनिंग की शुरुआत 1948 में डॉ. बिधान चंद्र रॉय के नेतृत्व में हुई थी। एम्स दिल्ली में 1957 में पहला डी. एम. पाठ्यक्रम शुरू हुआ। लेकिन आज की बदलती जरूरतों को देखते हुए इसमें मौलिक सुधार की जरूरत है। 


यह है आज की जरूरत 


-करिकुलम में बदलाव: क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्वास्थ्य ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम में डिजिटल हेल्थ, एथिक्स, सॉफ्ट स्किल्स और प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी जैसे विषय शामिल किए जाएं।


-शिक्षण पद्धति का सुधार: केवल लेक्चर आधारित पद्धति से हटकर फ्लिप्ड क्लासरूम, सिम्युलेशन बेस्ड लर्निंग और केस आधारित पढ़ाई पर ज़ोर दिया जाए।


अंतिम मूल्यांकन: छात्रों की परीक्षा प्रणाली को भी बदला जाए, जिसमें ओ. एस. सी. ई. (ऑब्जेक्टिव स्ट्रक्चर्ड क्लिनिकल एग्ज़ामिनेशन), ई. सी. जी., केस स्टडी और निर्णय क्षमता को शामिल किया जाए।


रिसर्च को बढ़ावा: छात्रों को बेहतर रिसर्च ट्रेनिंग, मार्गदर्शन और फंडिंग दी जाए। देश में एक राष्ट्रीय रिसर्च डाटा बैंक बनाया जाए।


फेलोशिप की ज़रूरत: अब हृदय रोगों में गहराई से इलाज के लिए इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी, हार्ट फेल्योर, कार्डियो-ऑन्कोलॉजी आदि में फेलोशिप ट्रेनिंग शुरू की जाए।







भारत को वैश्विक मानकों पर खरे उतरने वाले कार्डियोलॉजिस्ट चाहिए तो मौजूदा ट्रेनिंग सिस्टम में बुनियादी बदलाव करना ही होगा। तभी देश के मरीजों को बेहतर, संवेदनशील और सुरक्षित उपचार मिल सकेगा.....प्रो. आदित्य कपूर प्रमुख कार्डियोलॉजी विभाग एसजीपीजीआई

कल्याण सिंह कैंसर के विशेषज्ञ अमेरिका में लिया अनुभव

 

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भारतीय डॉक्टर को मियामी में अंतरराष्ट्रीय फेलोशिप का शानदार अनुभव, भारत में कैंसर मरीजों को होगा लाभ


भारतीय रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट को मियामी कैंसर इंस्टीट्यूट, फ्लोरिडा, अमेरिका में प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय फेलोशिप करने का अवसर कल्याण सिंह कैंसर संस्थान के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रमोद कुमार गुप्ता को

मिला। डॉ गुप्ता ने कहा कि यह अनुभव न केवल व्यक्तिगत रूप से समृद्ध रहा, बल्कि भारत में कैंसर मरीजों की सेवा को नई दिशा देने वाला भी साबित हो सकता है।

डॉक्टर ने बताया कि मियामी कैंसर संस्थान की कार्य संस्कृति, मरीजों की देखभाल और अत्याधुनिक रेडिएशन उपचार तकनीकों को देखने और समझने का अवसर मिला। यह विश्व के उन चुनिंदा संस्थानों में शामिल है, जहां एक ही छत के नीचे सभी प्रमुख आधुनिक रेडियोथेरेपी तकनीकें उपलब्ध हैं।


इस अवसर के लिए उन्होंने एसोसिएशन ऑफ रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट्स ऑफ इंडिया (ए.आर.ओ.आई.) और इसके नेतृत्व के प्रति हार्दिक आभार प्रकट किया, जिन्होंने उन्हें इस सम्मान के लिए चुना।


फेलोशिप के दौरान उन्हें भारतीय मूल के विश्व-प्रसिद्ध रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट — डॉ. रुपेश कोटेचा, डॉ. मिनेश मेहता सहित डॉ. नोआ काल्मन, माइकल डी. चुओंग और डॉ. रंजिनी जैसे विशेषज्ञों से मिलने और विमर्श करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। चर्चा का केंद्र रहा भारत में कैंसर इलाज की गुणवत्ता और रिसर्च को और बेहतर बनाना।


डॉक्टर ने यह भी बताया कि उनके अपने संस्थान में भी इन आधुनिक तकनीकों में से कई पहले से उपलब्ध हैं, और बहुत जल्द दो और नई रेडिएशन मशीनें जोड़ी जाएंगी। इससे कैंसर मरीजों को विश्व स्तरीय इलाज सस्ती और सुलभ दरों पर मिल सकेगा।


उन्होंने कहा, "यह अनुभव मेरे लिए अत्यंत प्रेरणादायक रहा। इसने मुझे अपने मरीजों की सेवा में और अधिक समर्पण के साथ कार्य करने की ऊर्जा दी है।"


यह फेलोशिप न केवल डॉक्टर के लिए एक उपलब्धि है, बल्कि भारतीय कैंसर चिकित्सा के क्षेत्र में भी यह एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।




रविवार, 6 जुलाई 2025

मैं एक बेटी का पिता हूं



📍 छेड़खानी: जब बेटियों की आज़ादी को अपराध समझा जाए — 


✍️ आंकड़ों से लेकर एक पिता के आंसुओं तक



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जब भी कोई लड़की घर से निकलती है, तो वो सिर्फ किताबें, पहचान पत्र या बैग लेकर नहीं निकलती — वो साथ लेकर चलती है एक अदृश्य डर, एक छाया जो उसे हर सड़क, हर भीड़, और हर नजर से डराती है।

छेड़खानी, पीछा करना, फोन पर परेशान करना, अश्लील बातें करना — ये सब "मजाक" या "मर्दानगी" नहीं, एक सोच-समझ कर किया गया अपराध है, जो रोज़ाना लाखों लड़कियों की आत्मा को कुचल रहा है।



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📊 राष्ट्रीय और उत्तर प्रदेश में छेड़खानी की सच्चाई:


🇮🇳 भारत स्तर पर (NCRB 2022 के आंकड़े):


महिलाओं के खिलाफ कुल अपराध: 4.45 लाख+


इनमें से 55,000 से अधिक मामले छेड़खानी, पीछा करने और यौन इशारों से जुड़े थे।


असल में यह संख्या 10 गुना अधिक हो सकती है, क्योंकि अधिकतर मामले दर्ज ही नहीं होते।



🧭 उत्तर प्रदेश (2023–2024 के आंकड़े):


NCW (राष्ट्रीय महिला आयोग) को 2024 में कुल 25,743 शिकायतें मिलीं, जिनमें 13,868 (54%) केवल यूपी से थीं।


इनमें 1,500+ शिकायतें छेड़खानी और साइबर उत्पीड़न की थीं।


2023 में यूपी से कुल 28,811 महिलाओं की शिकायतें दर्ज हुईं, सबसे ज़्यादा पूरे देश में।




Sherni Squad को 2024 में सक्रिय किया गया, ताकि स्कूल-कॉलेज, बस स्टॉप, मार्केट जैसी जगहों पर छेड़खानी रोकी जा सके।



➡️ फिर भी सवाल कायम है — जब हर गली में डर है, तो बेटियाँ कैसे बेफिक्र रहें?



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💔 छेड़खानी का असर: डर, घरबंदी और आत्महत्याएं


📚 शिक्षा पर असर:


Plan India के अनुसार, 70% लड़कियाँ बाहर निकलने में असुरक्षित महसूस करती हैं।


हर 3 में से 1 लड़की स्कूल या कॉलेज छोड़ देती है क्योंकि रास्ते में पीछा, अश्लील टिप्पणी या मोबाइली उत्पीड़न होता है।



😢 आत्महत्या की तरफ धकेलती चुप्पी:


NCRB रिपोर्ट के अनुसार, हर साल लगभग 3,000 से अधिक युवतियाँ (15–29 आयु वर्ग) आत्महत्या करती हैं।


इनमें से कई मामलों में कारण रहा — पीछा करना, छेड़खानी, साइबर बुलिंग और मानसिक उत्पीड़न।




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🧠 लेकिन इन आँकड़ों से परे है एक इंसान — एक पिता


💬 "मैं उसे रोज़ देखता हूँ, वो हँसती है, लेकिन उसकी आँखों में डर झलकता है..."


मैं एक बेटी का बाप हूँ।


वो अब कोचिंग नहीं जाती। पहले बहाने बनाती थी, अब सीधे मना कर देती है।

कभी कहती थी डॉक्टर बनेगी। अब कहती है — “पापा, कहीं भी नौकरी मिल जाए बस घर से दूर न जाना पड़े।”

मैं समझ गया हूँ, लेकिन वो मुझसे कहती नहीं। शायद उसे लगता है कि मैं भी उसे ही दोष दूँगा, जैसे समाज करता है।


उसके फोन पर रोज़ कॉल आते हैं, व्हाट्सऐप पर मैसेज — “मैं देख रहा हूँ तुझे”, “तू बहुत प्यारी लगती है”… और कभी अश्लील तस्वीरें।

उसने नंबर बदल लिया, ऐप डिलीट कर दिए — मगर डर नहीं मिटा।


> "मैं पिता होकर भी उसे सुरक्षा नहीं दे पाया… ये दर्द अंदर ही अंदर मुझे खा रहा है।"




मोहल्ले में FIR करवाने जाऊँ तो कहते हैं — "बदनामी होगी", "लड़की की शादी में दिक्कत आएगी"।

पर क्या कोई पूछेगा — उसकी मुस्कान में अब खामोशी क्यों है?



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🧭 समाज से सवाल:


क्या बेटी की इज्ज़त सिर्फ तभी होती है जब वो चुप रहे?


क्या लड़के "बच्चे हैं", और लड़कियाँ उनके बर्ताव की सज़ा भुगतें?


क्या मर्दानगी का मतलब किसी की मजबूरी का फायदा उठाना है?




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🛠️ रास्ता क्या है? समाधान कैसे निकले?


✅ प्रशासन और कानून:


Anti-Romeo स्क्वाड को ज़मीनी स्तर पर जवाबदेह बनाना होगा।


महिला थाने और हेल्पलाइन (1090 / 112 / 181) को सशक्त और संवेदनशील बनाना होगा।



✅ शिक्षा में बदलाव:


लड़कों को स्कूल से ही सिखाना होगा — "ना मतलब ना होता है।"


"सम्मान, सहमति और संयम" को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा।



✅ परिवार और समाज का रोल:


बेटियों को “बचने” नहीं, लड़ने और बोलने की आज़ादी दीजिए।


माँ-बाप दोष न दें, साथ खड़े हों।


हर मोहल्ले में सीसीटीवी निगरानी, महिला सहायता केंद्र, और सख्त सामुदायिक कार्रवाई जरूरी है।




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🗣️ जागरूकता के लिए नारे:


✊ "छेड़खानी मज़ाक नहीं, जुर्म है!"


✊ "बेटियाँ कमजोर नहीं, बस समाज की चुप्पी से थकी हैं।"


✊ "अगर आज तुम चुप हो, तो कल तुम्हारी बहन भी सहने पर मजबूर होगी।"


✊ "बेटियाँ फूल नहीं, आग हैं — अब सहेंगी नहीं!"




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🔚 निष्कर्ष:


छेड़खानी सिर्फ एक हरकत नहीं — यह एक सोच है, जो लड़कियों को उनके हक से दूर कर देती है।

UP और भारत के ताज़ा आंकड़े चीख-चीखकर बता रहे हैं कि अब बदलाव ज़रूरी है — कानून में, शिक्षा में और सबसे पहले समाज की मानसिकता में।

और जब एक बाप अपनी बेटी की आँखों में डर देखता है — तो समझिए, वो डर सिर्फ उसकी बेटी का नहीं, पूरे समाज का पतन है



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💔 एक पिता की पुकार — 'मैं कैसे समझाऊं कि मेरी बेटी डरती नहीं, थरथराती है'


> "मैं उसे रोज़ तैयार होते देखता हूँ... वो मुस्कराती है, लेकिन उसकी आंखों में डर की एक परत साफ़ दिखती है।"




मैं एक बेटी का पिता हूँ।

वो दसवीं में है, पढ़ने में होशियार है, डॉक्टर बनना चाहती है। लेकिन पिछले कुछ महीनों से वह चुप है — किताबें खुली हैं, पर मन बंद है।

हर बार जब वो कोचिंग जाती है, मैं दरवाजे पर खड़ा रह जाता हूँ — नज़रों से उसे दूर तक जाते देखता हूँ, और मन में बस एक ही प्रार्थना करता हूँ — "कोई फिर से आज उसे कुछ न कहे..."


उसने बताया नहीं, पर उसकी माँ ने समझा — कुछ लड़के उसका पीछा करते हैं, रास्ता रोकते हैं, व्हाट्सऐप पर गंदे मैसेज भेजते हैं।

उसने मुझसे कुछ नहीं कहा, शायद इसलिए क्योंकि उसे डर है कि मैं उसकी पढ़ाई बंद न कर दूं, या फिर उस पर ही सवाल न उठा बैठूं जैसे समाज करता है।


लेकिन मैं जानता हूँ...

मैं रोज़ देखता हूँ कैसे वो मोबाइल को हाथ में पकड़कर सहम जाती है, कैसे वो अचानक "बाहर नहीं जाना" कह देती है, कैसे वो अब हर मुस्कान के बाद कुछ छुपा लेती है।


> "एक पिता के लिए इससे बड़ा अपराध और क्या हो सकता है कि उसकी बेटी ज़िंदा है—but आज़ाद नहीं है?"




मैंने पुलिस में रिपोर्ट करवाने की सोची, लेकिन पहले ही मोहल्ले वालों ने कह दिया — “नाम बदनाम होगा।”

क्या नाम की इज्ज़त बेटी की इज्ज़त से बड़ी होती है?


> "अगर समाज सवाल करने वाले लड़कों से ज़्यादा, जवाब देने वाली लड़की को दोष देता है—तो सच में ये समाज बीमार है।"




कभी-कभी वो कहती है — “पापा, आप चिंता न करो, मैं संभाल लूंगी।”

मगर मैं जानता हूँ कि यह बात वो मुझे दिलासा देने के लिए कहती है।

असल में, वो डर को खुद में दबा रही है।

और मैं?

मैं एक पिता होकर भी उसके उस डर को खत्म नहीं कर पा रहा हूँ।

क्या इससे बड़ा कोई गुनाह है मेरी मर्दानगी के लिए?



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> "मेरी बेटी को अपनी आज़ादी चाहिए, सुरक्षा नहीं—क्योंकि सुरक्षा उसे तभी चाहिए जब समाज में दरिंदे आज़ाद हों।"





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✊ पिता की आवाज़ बनिए, चुप मत रहिए।


जो हर बेटी के साथ हो सकता है, वो आपकी बेटी के साथ भी हो सकता है।


हर बाप को अपनी बेटी के साथ खड़ा होना होगा — सिर्फ रक्षा नहीं, बराबरी के लिए।









एक तिहाई डाइट घटाएं, फैटी लिवर से राहत पाएं




एक तिहाई डाइट घटाएं, फैटी लिवर से राहत पाएं


PGI के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी के डॉ. गौरव पांडेय ने दिए सुझाव, गैस बनना और पेट ठीक न रहना एक मानसिक भ्रम भी


: मोटापा और फैटी लिवर के मरीजों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। कुछ मामलों में यह लिवर कैंसर और सिरोसिस जैसी गंभीर बीमारियों का कारण भी बन सकता है। लेकिन समय रहते पहचान और खानपान में बदलाव से इसे रोका जा सकता है। गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. गौरव पांडेय 



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शुरू में नहीं दिखते लक्षण


फैटी लिवर के ज्यादातर मरीजों को शुरू में कोई लक्षण नहीं होता। बाद में थकान और दाईं ओर ऊपर पेट में हल्का दर्द महसूस होता है। यह समस्या उन लोगों में ज्यादा पाई जाती है, जो शारीरिक श्रम नहीं करते, लंबे समय तक बैठकर काम करते हैं या मोटे हैं। समय रहते पहचान और इलाज से यह पूरी तरह ठीक हो सकता है।



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सुरक्षित लिवर कई बीमारियों को रोके


डॉ. गौरव ने बताया कि शरीर में कई काम लिवर करता है जैसे पाचन में मदद, पोषक तत्वों को पचाना, शरीर से विषैले पदार्थ निकालना आदि। जब लिवर में चर्बी बढ़ जाती है तो वह अपने जरूरी कार्य नहीं कर पाता। इससे कई समस्याएं हो सकती हैं, जैसे –


पेट में पानी भरना


पैरों में सूजन आना


उल्टी में खून आना


ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना




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सामान्य फैटी लिवर खतरनाक नहीं


फैटी लिवर का मतलब है लिवर में सामान्य से ज्यादा चर्बी जमा होना। अगर सिर्फ चर्बी है, तो उसे स्टीटोसिस कहते हैं, जो ज्यादा खतरनाक नहीं है। अगर उसमें सूजन और कोशिकाओं की क्षति शुरू हो जाए तो उसे स्टीटोहेपेटाइटिस (NASH) कहते हैं। यह अधिक खतरनाक है।



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डायग्नोस प्रामाणिक नहीं


फैटी लिवर की पुष्टि के लिए सबसे अच्छा तरीका है फाइब्रोस्कैन। सोनोग्राफी से केवल अंदाजा लगाया जा सकता है। ब्लड टेस्ट (SGOT-SGPT) से भी जानकारी मिलती है।



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प्रोसेस्ड फूड की वैल्यू नहीं


मैदा व मैदे से बने फूड और प्रोसेस्ड फूड को छोड़ें। इनमें पोषक तत्व नहीं होते और फैटी लिवर को बढ़ावा देते हैं।



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इन्हें भी डॉक्टर से मिलने की सलाह


डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर वाले : इन्हें हर 6 महीने में लिवर की जांच करानी चाहिए।


फैटी लिवर की पहचान हुई है : वजन घटाएं, फाइब्रोस्कैन करवाएं।


ब्लड रिपोर्ट में SGOT-SGPT बढ़ा है : डॉक्टर से मिलें।


हर साल अल्ट्रासाउंड : लिवर सामान्य नहीं है तो हर साल अल्ट्रासाउंड कराएं।


वजन का 5-10% घटाएं : यह दवाओं से बेहतर है।





● मेरी उम्र 80 साल है। पेट में गैस और प्रेशर बनता है। डॉक्टर ने कहा फैटी लिवर है। क्या करूं?


> अगर ब्लड रिपोर्ट और अल्ट्रासाउंड से फैटी लिवर की पुष्टि हुई है तो फाइब्रोस्कैन कराएं। इसके बाद डॉक्टर से सलाह लें। हर उम्र में खानपान में सुधार जरूरी है।




● 70 साल का हूं। विटामिन डी और बी12 की कमी है। भूख भी कम लगती है। क्या लिवर की वजह से?



> भूख न लगना लिवर से जुड़ा हो सकता है। फाइब्रोस्कैन और एलएफटी कराएं। विटामिन की दवा लें।




● फैटी लिवर है, क्या योगासन ठीक कर सकता है?

– 


> हां, योग और एक्सरसाइज से वजन घटता है और फैटी लिवर में सुधार होता है।




● मेरे पापा को फैटी लिवर है। दवा चल रही है। क्या सावधानी रखें?

– 


> खाने में मैदा न लें, मीठा और तला हुआ कम करें। प्रोसेस्ड फूड बिल्कुल न खाएं।




● मेरे पापा 68 साल के हैं। कुछ दिनों से खाना खाने के बाद पेट फूल जाता है। कोई दिक्कत?

– 


> यह गैस या अपच हो सकती है। अगर लिवर की कोई दिक्कत है तो जांच जरूरी है।




● 41 साल का हूं। थकान और पेट भारी लगता है। फैटी लिवर तो नहीं?

– 


> हो सकता है। अल्ट्रासाउंड और फाइब्रोस्कैन करवाएं।




● मेरे पापा को फैटी लिवर है। कभी-कभी आंखों में पीलापन दिखता है। इसका क्या कारण हो सकता है?

– 


> लिवर सिरोसिस की शुरुआत हो सकती है। तुरंत डॉक्टर से मिलें।




● मेरे पति कुछ काम नहीं करते हैं और उनका वजन बढ़ गया है। क्या इससे फैटी लिवर हो सकता है?



> हां, शारीरिक श्रम न करने वालों को फैटी लिवर का खतरा ज्यादा होता है।




● मेरे भाई को फैटी लिवर है। पेट में पानी भर गया है। क्या करें?

– 


> यह सिरोसिस का संकेत हो सकता है। डॉक्टर से मिलकर फाइब्रोस्कैन, एंडोस्कोपी कराएं।



शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

स्कूल मर्जर हर काम का केवल विरोध

 

केंद्र सरकार  ने स्कूल मर्जर पर पुनर्विचार के निर्देश दिए।



हर कम पर सरकार का विरोध नहीं करना चाहिए केवल इसलिए  कि सरकार का विरोध करना है

  कंपोजिट विद्यालय का विरोध इसीलिए हो रहा है कंपोजिट विद्यालय के

के तमाम फायदे हैं 

उत्तर प्रदेश सरकार की कंपोजिट विद्यालय योजना के प्रमुख फायदे: वैसे भी गांव में भी बच्चे अब आप सरकारी स्कूल में नए पढ़कर मोंटेसरी स्कूल में ही पढ़ने जा रहे हैं गांव तक शहर के स्कूलों की बसें आ रही हैं यदि विद्यालय को बंद करने के दूसरे विद्यालय में मर्जर किया जा रहा है ऐसे छात्रों के लिए परिवहन की व्यवस्था कर थोड़ा सुधार किया जा सकता है अगर बच्चों को परेशानी है आने-जाने में पहले की स्थिति और थी आज गांव में किसके पास साइकिल नहीं है और किसके पास मोटरसाइकिल नहीं है क्या आप अपने बच्चों को स्कूल तक पहुंचा नहीं सकते हैं यदि स्कूल तक आप बच्चे को पहुंचा नहीं सकते हैं तो आपको बच्चा पैदा करने का हक भी नहीं है इतना तो समय दीजिए कि बच्चों को स्कूल साइकिल से पहुंचा दीजिए और यदि आप कामकाजी हैं तो आप इतना तो कमाते ही होंगे कि बच्चों के लिए परिवहन की व्यवस्था कर दें बच्चों को पढ़ना खिलाना भी जिम्मेदारी आप ही की है सरकार की नहीं सरकार स्कूल खुल रही है फ्री फीस फ्री पढ़ रही है फ्री किताब दे रही है फ्री मिड डे मील दे रही है कितना फ्री चाहिए


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✅ 1. संसाधनों का बेहतर उपयोग


छात्रों की संख्या बहुत कम होने पर विद्यालय भवन, शिक्षक और सुविधाएँ व्यर्थ पड़ी रहती हैं। कंपोजिट योजना के अंतर्गत इन्हें पास के बड़े विद्यालय में समायोजित कर उपयोगी बनाया जा रहा है।


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✅ 2. शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार


बड़े और एकीकृत स्कूलों में अनुभवी शिक्षक, स्मार्ट क्लास, पुस्तकालय, लैब जैसी आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं जिससे बच्चों को बेहतर और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है।


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✅ 3. निरंतर और समेकित शिक्षा


एक ही परिसर में कक्षा 1 से 8 या 1 से 12 तक की पढ़ाई उपलब्ध कराई जा रही है। इससे बच्चों को स्कूल बदलने की जरूरत नहीं होती और उनकी पढ़ाई में निरंतरता बनी रहती है।


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✅ 4. मिड-डे मील और बुनियादी सुविधाओं में सुधार


कंपोजिट विद्यालयों में समर्पित किचन शेड, स्वच्छ पेयजल, बालक-बालिकाओं के लिए अलग शौचालय, और साफ-सफाई जैसी सुविधाएँ सुदृढ़ की जा रही हैं।


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✅ 5. ड्रॉपआउट दर में कमी


अच्छा माहौल, सुविधाएँ और पढ़ाई का स्तर सुधरने से बच्चों का विद्यालय छोड़ने का रुझान कम होता है, जिससे उनकी शिक्षा जारी रहती है।


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✅ 6. नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP 2020) के अनुरूप


यह योजना नई शिक्षा नीति के उस लक्ष्य को पूरा करती है जिसमें समावेशी, सशक्त और एकीकृत शिक्षा प्रणाली की बात की गई है।


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✅ 7. समान अवसर और समावेशिता


ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों को भी वे सभी सुविधाएँ मिल रही हैं जो अब तक सिर्फ शहरों के बड़े स्कूलों में होती थीं।


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✅ 8. प्रशासनिक दक्षता


कंपोजिट विद्यालयों में प्रशासनिक निगरानी, रिपोर्टिंग, और योजना क्रियान्वयन सरल, पारदर्शी और प्रभावी बनता है।


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उत्तर प्रदेश सरकार की कंपोजिट विद्यालय योजना से शिक्षा का स्तर बेहतर हो रहा है, संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग हो रहा है और बच्चों को एक ही स्थान पर समग्र, सुरक्षित व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अवसर मिल रहा है।




आउटसोर्स कर्मचारियों निगम: फिर एजेंसी (दलाल) की क्या आवश्यकता?

 




आउटसोर्स कर्मचारियों के हित में बना निगम: फिर एजेंसी (दलाल) की क्या आवश्यकता?


देश और प्रदेश में सरकारें समय-समय पर यह दावा करती रही हैं कि वे आम जनता और कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसी सोच के तहत अनेक राज्यों में आउटसोर्स कर्मचारियों की समस्याओं को दूर करने और उन्हें एक संगठित एवं सुरक्षित कार्य व्यवस्था देने के उद्देश्य से विशेष निगम (Corporation) बनाए गए हैं। यह एक सराहनीय कदम है, लेकिन सवाल यह उठता है कि जब सरकार स्वयं कर्मचारियों के लिए निगम गठित कर रही है, तो फिर कर्मचारियों और सरकार के बीच में किसी एजेंसी या दलाल व्यवस्था की क्या आवश्यकता है?


आउटसोर्सिंग व्यवस्था की मूल भावना


आउटसोर्सिंग की अवधारणा का उद्देश्य था—कम संसाधनों में दक्ष मानव संसाधन प्राप्त करना, नौकरशाही का बोझ कम करना, और निजी क्षेत्र की गति व दक्षता का लाभ उठाना। परंतु व्यवहार में यह एक शोषणकारी तंत्र बन गई है, जिसमें कर्मचारियों को कम वेतन, अस्थिर रोजगार और शून्य सामाजिक सुरक्षा झेलनी पड़ती है।


सरकार का सकारात्मक प्रयास: निगम की स्थापना


सरकार ने इस शोषण से निजात दिलाने के लिए जब एक विशेष निगम बनाया, तो यह माना गया कि अब भर्ती, सेवा शर्तें, वेतन, पीएफ (PF), ईएसआई (ESI) जैसी सुविधाएं सीधे निगम के माध्यम से दी जाएंगी। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी, दलाली समाप्त होगी, और कर्मचारियों को समय से वेतन व सेवाएं मिलेंगी।


फिर एजेंसी क्यों?


यहां सबसे बड़ा विरोधाभास सामने आता है। जब सरकार और कर्मचारी दोनों के बीच एक सरकारी निगम मौजूद है, तो किसी तीसरे निजी ठेकेदार, एजेंसी या बिचौलिए की क्या जरूरत?


क्या यह महज राजनीतिक या प्रशासनिक सुविधा के नाम पर निजी एजेंसियों को लाभ पहुंचाने की व्यवस्था है?


या फिर यह भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप देने का तरीका है, जहां एक तयशुदा कमीशन के बदले में एजेंसियां कार्य दिलवाती हैं?



दलाल व्यवस्था के नुकसान


1. कर्मचारी का शोषण – कर्मचारी को उसका पूरा वेतन नहीं मिलता। एजेंसी अपना हिस्सा काट लेती है।



2. गोपनीयता का हनन – 



3. नियंत्रण में बाधा – सरकार चाहकर भी पारदर्शी नियंत्रण नहीं रख पाती क्योंकि कर्मचारी सरकार के नहीं, एजेंसी के अधीन होते हैं।



4. न्याय की अनुपलब्धता – कोई विवाद या शोषण होने पर कर्मचारी को न तो निगम न्याय देता है, न एजेंसी। वह दो नावों में फंसा रहता है।




समाधान क्या है?


एजेंसी मॉडल को समाप्त कर सरकार द्वारा गठित निगम को ही नियुक्ति, वेतन, अनुशासन और सेवा शर्तों का संपूर्ण अधिकार दिया जाए।


निगम और कर्मचारी के बीच प्रत्यक्ष अनुबंध (Direct Contract) हो।


डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित किया जाए, जहाँ सभी नियुक्तियों की प्रक्रिया पारदर्शी और ट्रैक करने योग्य हो।


निगम को ही कर्मचारियों की शिकायतों के निवारण की जिम्मेदारी दी जाए।




संयुक्त स्वास्थ्य आउटसोर्स कर्मचारी के वरिष्ठ नेता सचिदानंद मिश्रा कहते हैं कि सरकार ने एक ऐसा निगम स्थापित कर दिया है, जो कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए बना है, तब निजी एजेंसी की भूमिका न केवल अनावश्यक है, बल्कि शोषणकारी भी है। यह व्यवस्था जन-हित के खिलाफ है और इसे तत्काल समाप्त करने की जरूरत है। दलाल-मुक्त, पारदर्शी और जवाबदेह प्रणाली ही सच्चे लोकतंत्र और सुशासन का प्रमाण होती है।


बुधवार, 2 जुलाई 2025

सीपीआर और एईडी से जान बचाना संभव, आवास भवन में स्थापित हुई 'शॉक मशीन'

 

सीपीआर और एईडी से जान बचाना संभव, आवास भवन में स्थापित हुई 'शॉक मशीन'


"सी.पी.आर. जानें, ए.ई.डी. का उपयोग करें, जीवन को दूसरा मौका दें" थीम पर आधारित अचानक हृदयाघात जागरूकता एवं सीपीआर कार्यशाला के बाद आज उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद भवन में स्वचालित बाह्य डिफाइब्रिलेटर (एईडी) स्थापित किया गया। यह मशीन अचानक हृदयाघात (एस सी ए) के दौरान पीड़ित की जान बचाने में मदद करती है।


एसजीपीजीआई कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. आदित्य कपूर ने बताया कि भारत में हर साल 6-7 लाख लोग एस  सी ए के कारण दम तोड़ देते हैं। यदि पहले तीन मिनट में सीपीआर या एईडी न मिले, तो बचने की संभावना लगभग खत्म हो जाती है। हर 1 मिनट की देरी से यह संभावना 10 फीसदी घट जाती है।


आवास आयुक्त डॉ. बलकार सिंह, आईएएस ने कहा कि सीपीआर एक सरल, लेकिन जीवन रक्षक कौशल है जिसे हर किसी को सीखना चाहिए। उन्होंने एसजीपीजीआई और आईसीआईसीआई बैंक के सहयोग की सराहना की।


कार्यक्रम में उप आवास आयुक्त सुश्री पल्लवी मिश्रा (पीसीएस), आईसीआईसीआई बैंक से श्री धीरज, श्री तरुण और श्री क्षितिज उपस्थित रहे।

मंगलवार, 1 जुलाई 2025

लेकिन गवार हैं इन्हें पप्पू कहते हैं

 


👇 जापानीज मार्शल आर्ट #एकीडो में ब्लैक बैल्ट हैं।

👉  जूडो कराटे में #ब्लैक_बेल्ट, अंतराष्ट्रीय प्रशिक्षक से मार्शल आर्ट्स में ट्रेंड! 

👉 बिना ऑक्सीजन 75 मीटर गहरा गोता लगा सकते हैं और अंडर वाटर स्विमिंग में परफेक्ट हैं,, #प्रमाणित_गोताखोर भी हैं।

👉 #पर्वतारोहण का भी पाठ्यक्रम पूरा कर कई ट्रैकिंग कर चुके हैं।

👉 ट्रेंड व लाइसेंसधारी #पायलट, जो ट्रैक्टर से हवाई जहाज तक चला सकते हैं, तकनीक को समझते हैं!

👉 प्रशिक्षित #शूटर अर्थात निशानेबाज़ है। नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में रैंक हासिल हैं। 

👉 हर रोज 14 किमी तेज गति से दौड़ते हैं और 32 किमी #दौड़ लगा सकते है!

👉वह सांसद जो अंतर विश्वविद्यालय टीम के लिए #फुटबॉल खेलते रहे हो। 

👉 अंतर विश्वविद्यालय टीम के लिए #क्रिकेट खेले हों। 

👉 हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से हिस्ट्री एंड इंटरनेशनल रिलेशंस में ग्रेजुएट, और कैम्ब्रिज यूनीवर्सिटी से डेवलपमेंट एंड इकॉनमी में #Mphil हों! 

👉 हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के माइकल पोर्टर की लंदन टॉप मैनेजमेंट कंसल्टेंसी फर्म मॉनिटर ग्रुप का अहम सदस्य रहा हो। 

👉 खुद टेक्नोलॉजी फर्म बैकऑप्स इंडिया और यूके बनाई हो, जो रक्षा क्षेत्र की टेक्लॉलाजी की आपूर्ति करती हो। 

👉 चारो वेद, गीता, उपनिषद, बाइबिल, कुरान और गुरुग्रंथ सब #पढ़े और समझे हों! 

ऐसी अतुलनीय क्षमता और गुणों वाला इस वक्त दुनिया में एक मात्र चुने हुए सांसद और नेता प्रतिपक्ष हैं Rahul Gandhi जी...! लेकिन गवार इन्हें पप्पू कहते है क्योंकि वीडियो एडिट करके सोशल मीडिया के जरिए उन्हें यही समझाया गया अपना दिमाग तो था जो समझाया उसे समझ लए

-ड्रामे-दिखावे नहीं, जनता की आवाज हैं #