आठ साल में 27 डॉक्टर और 37 नर्सिंग स्टाफ ने छोड़ा कैंसर संस्थान
वेतन असमानता से बढ़ रहा पलायन, मरीजों के इलाज पर संकट
पीजीआई और केजीएमयू ने भी लगातार पलायन
कैंसर संस्थान नियुक्ति के बाद भी नहीं कर रहे है ज्वाइन
उत्तर प्रदेश में सरकारी चिकित्सा संस्थानों से डॉक्टरों का पलायन लगातार बढ़ता जा रहा है। संजय गांधी पीजीआई और केजीएमयू के बाद अब कल्याण सिंह सुपर स्पेशियलिटी कैंसर संस्थान भी इसी गंभीर स्थिति से गुजर रहा है। साल 2017 में प्रदेश के कैंसर मरीजों को समर्पित इस संस्थान की स्थापना बड़े उद्देश्य के साथ हुई थी, लेकिन आठ साल में 27 डॉक्टर, 37 नर्सिंग ऑफिसर और 5 पैरामेडिकल स्टाफ यहाँ से इस्तीफा दे चुके हैं।इससे कई विभाग या तो बंद हो चुके हैं या न्यूनतम स्टाफ के सहारे चल रहे हैं।
कैंसर संस्थान में बड़े सुविधा तो दूसरे संस्थानों पर काम हो भार
विशेषज्ञों का कहना है कि कैंसर संस्थान पूरे क्षमता के साथ काम करें तो पीजीआई , केजीएमयू में कैंसर मरीजों का लोड कम होगा दूसरे मरीजों का इंतजार कम होगा। पेट के कैंसर, यूरोलॉजिकल कैंसर , हेड एंड नेक कैंसर( मुंह और गले), प्लास्टिक सर्जरी, ब्लड कैंसर . गायनेकोलॉजिकल कैंसर के मरीजों की भीड़ इन संस्थानों में है जिससे नॉन कैंसर बीमारी के इलाज के लिए मरीजों को इंतजार करना पड़ता है । विशेषज्ञों का अनुमान है कि अब लगभग हर तीन वर्ष में एक से दो वरिष्ठ डॉक्टरों का इस्तीफा आम हो चुका है।यह प्रवृत्ति न केवल संस्थानों की सेवाओं को प्रभावित कर रही है, बल्कि प्रदेश की कैंसर चिकित्सा व्यवस्था के भविष्य पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा कर रही है।
भर्ती निकली, पर जॉइन कम
पिछले वर्ष कैंसर संस्थान में 91 चिकित्सकों की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी हुआ, लेकिन केवल 140 आवेदन आए और इनमें से 21 डॉक्टरों का चयन हुआ।इनमें से भी कुछ ने जॉइन नहीं किया।संस्थान के एक वरिष्ठ चिकित्सक के अनुसार “हमारा वेतनमान एसजीपीजीाई, केजीएमयू और लोहिया संस्थान से काफी कम है। एक ही शहर में समान कार्य के बावजूद इतनी वेतन असमानता क्यों? डॉक्टर आखिर कब तक समझौता करेंग।
वेतनमान बदलने से बिगड़ी स्थिति
संस्थान की स्थापना के समय डॉक्टरों और स्टाफ को एसजीपीजीआई के समान वेतनमान देने का प्रावधान था। कुछ नियुक्ति पत्रों में यह स्पष्ट रूप से लिखा भी गया था।लेकिन कुछ वर्षों बाद यह व्यवस्था बदल दी गई और राज्य सरकार का सामान्य वेतनमान लागू कर दिया गया।इससे डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ के वेतन में 20–30% तक की कमी आ गई। भत्ते और सविधाएं कम हो गए।नतीजा यह हुआ कि कई डॉक्टरों ने या तो निजी अस्पतालों में नौकरी ले ली या अन्य सरकारी संस्थानों में चले गए।“अगर वही वेतनमान जारी रहता, तो शायद कोई भी डॉक्टर संस्थान न छोड़ता,” — एक वरिष्ठ डॉक्टर।
वेतन के मामले में केजीएमयू और लोहिया से पीछे कैंसर संस्थान
कैंसर संस्थान के डॉक्टरों को केजीएमयू और लोहिया संस्थान की तुलना में औसतन 20–30% कम वेतन मिलता है।
साथ ही, नाइट ड्यूटी अलाउंस, पेशेंट केयर अलाउंस, रिसर्च इंसेंटिव और हाउसिंग भत्ता जैसी सुविधाएं भी सीमित हैं।
जहाँ प्रोफेसर स्तर के डॉक्टरों को केजीएमयू या लोहिया में लगभग ₹3 लाख मासिक वेतन मिलता है, वहीं कैंसर संस्थान में यह ₹2 लाख या उससे कम है।समान काम के बावजूद वेतन और सुविधाओं में यह असमानता डॉक्टरों के बीच असंतोष का मुख्य कारण है।
मशीनों उपकरणों और भवन से नहीं चलता है संस्थान
संस्थान के सर्जरी, रेडियोलॉजी, मेडिकल ऑन्कोलॉजी, एनेस्थीसिया, प्लास्टिक सर्जरी, क्रिटिकल केयर मेडिसिन और ईएनटी जैसे विभाग डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं।कुछ विभाग तो लगभग ठप हो चुके हैं।संस्थान में अत्याधुनिक मशीनें आ चुकी हैं, लेकिन डॉक्टरों की अनुपलब्धता के कारण उनका पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा।300 बेड वाले अस्पताल में रोजाना लगभग 400 मरीज ओपीडी में आते हैं, लेकिन सीमित स्टाफ के कारण मरीजों को इलाज के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है।
निजी अस्पतालों का आकर्षण
निजी अस्पताल डॉक्टरों को सरकारी संस्थानों के मुकाबले तीन गुना तक अधिक वेतन, बेहतर आवास, आधुनिक उपकरण और कम प्रशासनिक झंझट देते हैं।इस कारण कई अनुभवी डॉक्टर सरकारी नौकरी छोड़ निजी क्षेत्र में जा रहे हैं।सरकारी संस्थानों में सीमित वेतन, अत्यधिक कार्यभार और प्रशासनिक दबाव के कारण डॉक्टरों में निराशा बढ़ रही है।
सरकारी लक्ष्य पर असर
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस संस्थान को एम्स और टाटा हॉस्पिटल की तर्ज पर विकसित करने का लक्ष्य रखा था।
लेकिन लगातार हो रहे पलायन के कारण यह सपना अधूरा दिख रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो प्रदेश के कैंसर मरीजों को दिल्ली या मुंबई जैसे शहरों का रुख करना पड़ेगा।
डॉक्टरों की मांग: समान वेतन और सम्मानजनक कार्य वातावरण
डॉक्टरों ने सरकार से मांग की है कि कैंसर संस्थान को भी केजीएमयू और लोहिया संस्थान के समान वेतनमान व भत्ते दिए जाएँ।
साथ ही, प्रशासनिक दखल और अनावश्यक दबाव को कम किया जाए ताकि डॉक्टर स्वतंत्र और सुरक्षित माहौल में काम कर सकें।
“वेतन तो ज़रूरी है, लेकिन सम्मान और निर्णय की स्वतंत्रता उससे भी बड़ी चीज़ है,” — संस्थान के एक संकाय सदस्य ने कहा।
PGI और KGMU में भी जारी पलायन
सिर्फ कैंसर संस्थान ही नहीं, संजय गांधी पीजीआई और केजीएमयू में भी वरिष्ठ डॉक्टर लगातार इस्तीफा दे रहे हैं।
हाल ही में PGI के 12 और KGMU के 10 से अधिक संकाय सदस्य संस्थान छोड़ चुके हैं।अनुभवी डॉक्टरों के जाने से इलाज की गुणवत्ता और शोध कार्य दोनों पर असर पड़ रहा है।
मुख्य कारण और प्रवृत्ति
अत्यधिक कार्यभार और सीमित स्टाफ
प्रशासनिक दबाव और निर्णय प्रक्रिया में दखल
कार्य वातावरण में असंतोष और मनोवैज्ञानिक तनाव
समान वेतन न मिलने से नाराज़गी, निजी अस्पतालों में तीन गुना वेतन
प्रशासनिक दबाव और दखल भी पलायन का बड़ा कारण




























