शनिवार, 4 जनवरी 2025

पीजीआई - टीएमएस तकनीक से मिलेगा रोज़ सिरदर्द से छुटकारा

 

पीजीआई - टीएमएस तकनीक से मिलेगा रोज़ सिरदर्द से छुटकारा


टीएमएस थेरेपी से 50 फीसदी तक सिर दर्द में राहत 




कुमार संजय


रोज़ाना सिरदर्द की समस्या झेल रहे मरीजों के लिए राहत की खबर है। संजय गांधी पीजीआई, लखनऊ के न्यूरोलॉजी विभाग के विशेषज्ञों ने ट्रांसक्रानियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन (टीएमएस) तकनीक से इलाज कर सिरदर्द में 50 फीसदी तक की कमी दर्ज की है। खास बात यह है कि यह थेरेपी उन मरीजों के लिए कारगर साबित हुई, जिन पर दवाओं का असर कम हो जाता था। सिर दर्द में परेशानी के साथ ही  शोध के नतीजों के अनुसार सिरदर्द की तीव्रता में 50 फीसदी तक सुधार हुआ।हर 28 दिनों में औसतन 10.84 दिन सिरदर्द कम हुआ।अवसाद और चिंता के लक्षणों में भी राहत मिली।


रोज़ाना सिरदर्द से परेशान मरीजों को राहत

डॉक्टरी भाषा में इस स्थिति को न्यू डेली पर्सिस्टेंट हेडेक (NDPH) कहा जाता है, जिसमें मरीज हर दिन सिरदर्द से जूझते हैं। यह समस्या क्रोनिक डेली हेडेक (सीडीएच) विकारों में आती है, जिससे दुनिया में करीब 4 फीसदी लोग प्रभावित हो सकते हैं। शोध में पाया गया कि टीएमएस तकनीक से सिरदर्द की तीव्रता और दर्द के दिनों में महत्वपूर्ण कमी आई। टीएमएस तकनीक उन मरीजों के लिए नई उम्मीद बन सकती है, जो रोज़ाना सिरदर्द से परेशान रहते हैं और जिन पर दवाओं का असर कम होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह थेरेपी सिरदर्द से स्थायी राहत दिलाने में मददगार साबित हो सकती है।


शोध में 50 मरीजों पर हुआ परीक्षण

पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग के विशेषज्ञों ने 50 मरीजों (31 महिलाएं शामिल) पर यह अध्ययन किया। मरीजों को लगातार तीन दिनों तक टीएमएस थेरेपी दी गई, जो बाएं प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स में दी जाती है। चार हफ्ते बाद 70 फीसदी मरीजों में 50 फीसदी तक दर्द में राहत मिली।


क्या है टीएमएस तकनीक?

ट्रांसक्रानियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन  एक नॉन-इनवेसिव (चीरा रहित) तकनीक है, जिसमें चुंबकीय तरंगों के जरिए मस्तिष्क की नर्व कोशिकाओं को उत्तेजित किया जाता है। इससे सिरदर्द की तीव्रता को कम किया जाता है और मरीज को राहत मिलती है।


अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ शोध

यह शोध संजय गांधी पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रो. विमल कुमार पालीवाल के निर्देशन में डॉ. एम.एम. भारथा, स्वांशु बत्रा, डॉ. नैना मिश्रा और डॉ. रोमिल सैनी द्वारा किया गया। शोध को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ हेडेक एंड पेन में प्रकाशित किया गया है।

बुधवार, 1 जनवरी 2025

आर्टिफिशियल आंसू दूर करेगा ड्राई आई की परेशानी-- एसी से कमजोर कर सकती है आप की आंख




आर्टिफिशियल आंसू दूर करेगा ड्राई आई की परेशानी

एसी से कमजोर कर सकती है आप की आंख 

1.15 फीसदी लोगों की नजर है कमजोर

 
कुमार संजय। लखनऊ

विश्व नेत्र दिवस (10 अक्टूबर ) के मौके पर संजय गांधी पीजीआई नेत्र रोग विभाग के प्रमुख प्रो. विकास कनौजिया ने बताया कि  एसी में जो लोग लंबे समय तक रहते है उनकी आंख सूख सकती है। आंख में आंसू कम होने पर काली पुतली सूख जाती है जिससे रोशनी कम हो सकती है। इसे ड्राई आई कहते हैं। एसी में लंबे समय तक रहने वाले लोगों में ड्राई आई की परेशानी दूसरे लोगों की तुलना में अधिक देखी गयी है। एसी में रहने वाले लोगों को यदि किसी तरह की परेशानी हो रही है तो वह विशेषज्ञ से सलाह लें।
प्रोफेसर विकास कहते हैं कि इन लोगों में विटामिन डी की भी बहुत कमी होती है इसलिए इन्हें धूप का सेवन लगातार करना चाहिए इससे आंख की रोशनी पर भी प्रभाव पड़ता है। 
आर्टिफिशियल आंसू आने लगा है जिससे आंख का सूखापन दूर कर किया जा सकता है। बताया कि प्रदेश में सौ मे से 1.15 लोग की नजर कमजोर है। कारण मोतियाबिंद, ग्लूकोमा, रिफ्लेक्शन(नजर कमजोर), काला मोतिया , सर्जिकल कंपलिकेशन है। विशेषज्ञों का कहना है कि 80 फीसदी मामले में अंधापन को दूर किया जा सकता है। बशर्ते उनको सही समय पर सही इलाज मिल जाए।

यह है रोशनी की परेशानी का  कारण

73 फीसदी- मोतियाबिंद
 9 फीसदी - रिफ्लेक्शन
 8 फीसदी - ग्लूकोमा
2 फीसदी - सर्जिकल कंपलिकेशन 


 एक हजार में से एक बच्चे की नजर कमजोर 
भारत में एक हज़ार मे से 0.8 फीसदी बच्चों की नजर कमजोर है। इन्हें साफ दिखाई नहीं देता है। बच्चों को यदि देखने में परेशानी है तो आंख की जांच करानी चाहिए। 


कभी मत डाले आंख में यह दवा 
आंख में लाली आने पर अपने मन से कभी आई ड्राप नहीं डालना चाहिए। प्रो.विकास कनौजिया के मुताबिक आंख में एलर्जी होने पर आंख लाल हो जाती है। जलन होता है देखा गया है कि कई लोग अपने मन से आंख में दवा डाल लेते हैं। आंख में प्रिडली सिलोन, डेक्सामेथासोन और बेटनीसोल युक्त दवा कभी भी बिना डॉक्टरी सलाह के लिए नहीं डालना चाहिए। 

टीवी और मोबाइल बच्चों की नजर कर रहा है कमजोर 

प्रोफेसर रचना अग्रवाल ने बताया कि बच्चों में नजर की परेशानी बहुत तेजी से बढ़ रही है इस वर्ष का नेत्र दिवस बच्चों पर ही समर्पित है बच्चों में सबसे अधिक परेशानी का कारण मोबाइल टीवी और कंप्यूटर है इसके इस्तेमाल में सावधानी बरतने की जरूरत है । हमारी ओपीडी में आने वाले 20 फ़ीसदी बच्चे नजर की परेशानी लेकर आ रहे हैं

नजर को बचाए रखने के लिए यह करें उपाय 
-कम या तेज प्रकाश न पढ़े 
- अंधेरे में टीवी न देंखे 
- लगातार टीवी या कंप्यूटर पर नजर न लगाए रखें 
- फल, सब्जी, विटामिन ए और ई का पर्याप्त सेवन करें 
- धूप में अच्छे किस्म का यूवी प्रोटेक्टिव लेंस वाले सन ग्लास लगाए 
- तैरते या खेलते समय आंख की सुरक्षा पर ध्यान दें 
- आंख को रेस्ट दें 
- डायबिटीज है तो आंख की रेगुलर जांच कराए 
- आंख से कम या धुंधला दिख रहा है तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें 


अब युवाओं में भी कॉक्लियर इम्प्लांट सफल

 








अब युवाओं में भी कॉक्लियर इम्प्लांट सफल

-पीजीआई ने पढ़ने व नौकरी पेशा वाले 50 युवाओं का किया कॉक्लियर इंप्लांट 

कुमार संजय

अब सात वर्ष के बच्चों की तरह दिमागी बुखार व दूसरे संक्रमण से सुनने की क्षमता गंवा चुके युवाओं में भी कॉक्लियर इंप्लांट सफल है। संजय गांधी पीजीआई ने दो वर्ष में पढ़ने और नौकरी पेशा वाले 50 युवाओं का इम्प्लांट किया है। इनकी उम्र 18 से 45 वर्ष के बीच है। इनमें से 48 युवाओं को 95 फीसदी सुन सकते हैं। बचे दो 60 फीसदी तक ही सुन सकते हैं। इम्पलांट के बाद यह भी सामान्य युवाओं की तरह पढ़ाई और अन्य कामकाज कर रहे हैं। पीजीआई के न्यूरो ऑटोलॉजी विभाग के प्रो. अमित केसरी ने यह कॉक्लियर इंप्लांट किये हैं। अक्तूबर में यह पेपर इंडियन जर्नल में प्रकाशित हुआ।

90 फीसदी से अधिक सुनाई देने लगा

पीजीआई के न्यूरो ऑटोलॉजी विभाग के प्रो. अमित केसरी ने बताया कि 50 युवाओं में किये गए कॉक्लियर इंप्लांट के अच्छे परिणाम आए हैं। इंप्लांट के बाद यह 90 से 95 फीसदी तक सुन सकते हैं। इंप्लांट के बाद इन युवाओं में एक उम्मीद जगी है। अब यह सामान्य युवाओं की तरह पढ़ाई, नौकरी व अन्य दूसरे कामकाज निपटा रहे। अब इन युवाओं को सुनाई न देने की वजह से स्कूल व कार्यालय में सहपाठी व अन्य से इन्हें हीन भावना व ताने सुनने से निजात मिल गई है।

इनमें कारगर है कॉक्लियर इम्प्लांट
प्रो. अमित केसरी का कहना है कि युवाओं में न सुनाई देने की समस्या जन्मजात नहीं होती है। यह सुन नहीं सकते हैं, लेकिन बोल व समझ सकते हैं। इनमें दिमागी बुखार, ऑटो इम्यून डिजीज व संक्रमण की वजह से सुनने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती है। संक्रमण की वजह से सुनने वाली नसे सूख जाती हैं। जिसकी वजह से 10 से 15 साल बाद दोनों कानों से सुनाई देना बंद हो जाता है। हेयरिंग हेड भी काम नहीं करता है। ऐसे में इंप्लांट ही आखिरी विकल्प बचता है। इम्पलांट में करीब साढ़े पांच लाख रुपये का खर्च आता है।

यह हैं कारण
-आनुवांशिक
-दिमागी बुखार
-ऑटो इम्यून डिजीज
-संक्रमण