एथलीटों में हर दूसरा खिलाड़ी होता है घायल: सबसे ज्यादा असर पैरों पर
संपर्क खेलों में खतरा ज्यादा, फुटबॉल और कुश्ती से जुड़ी चोटें सबसे आम
कुमार संजय
लखनऊ के एथलीटों को खेल मैदान में जीत हासिल करने के साथ-साथ चोटों की बड़ी चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के खेल चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन ने खेल क्षेत्र में चिंता बढ़ा दी है। शोध के अनुसार, हर दूसरा खिलाड़ी किसी न किसी चोट का शिकार हुआ है, और सबसे ज्यादा असर शरीर के निचले हिस्से, खासकर घुटने, टखने और जांघ की मांसपेशियों पर देखा गया है।
400 खिलाड़ियों पर किया गया अध्ययन
स्पोर्ट्स मेडिसिन विभाग के विशेषज्ञों ने लखनऊ क्षेत्र के 400 सक्रिय एथलीटों पर यह अध्ययन किया। 48.5 प्रतिशत खिलाड़ियों ने बताया कि वे खेल के दौरान कभी न कभी घायल हुए। पुरुषों में यह आंकड़ा 50.6 प्रतिशत और महिलाओं में 45.2 प्रतिशत रहा।खास बात यह रही कि फुटबॉल के 64 फीसदी और कुश्ती के 58 फीसदी और संपर्क खेलों में चोट की संभावना सबसे अधिक पाई गई।
पैरों में लगती हैं सबसे ज्यादा चोटें
शोध के अनुसार, 61.3 प्रतिशत चोटें शरीर के निचले हिस्से में पाई गईं। इनमें प्रमुख रूप से घुटनों में मोच या खिंचाव, टखनों की चोट, और हैमस्ट्रिंग (जांघ के पीछे की मांसपेशियों) में खिंचाव प्रमुख रहे। इन चोटों की वजह से कई खिलाड़ियों को प्रशिक्षण और प्रतियोगिताओं से लंबा विराम लेना पड़ा।
चोट के पीछे के कारण
शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया कि ये चोटें सिर्फ खेल के दौरान हुई दुर्घटनाएं नहीं हैं, बल्कि कई बार लापरवाही और तैयारी की कमी भी इसके लिए जिम्मेदार होती है:
बिना वार्म-अप किए खेल शुरू करना
पर्याप्त आराम और रिकवरी न लेना
खेल चिकित्सा की सुविधाओं की कमी
चोट के शुरुआती संकेतों को नजरअंदाज करना
डॉ. अभिषेक चौधरी बताते हैं, "अधिकांश चोटें रोकी जा सकती हैं अगर खिलाड़ी थोड़ी सतर्कता बरतें और सही प्रशिक्षण पद्धति अपनाएं। स्पोर्ट मेडिसिन की सुविधा के विस्तार की जरूरत है।
कैसे बचें इन चोटों से
खेल विशेषज्ञों ने खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए हैं:
खेल से पहले संरचित वार्म-अप जरूर करें
हर खेल सत्र के बाद पर्याप्त विश्राम लें
संदेह की स्थिति में तुरंत खेल चिकित्सक से परामर्श लें
चोटों और सुरक्षा से संबंधित शिक्षा और प्रशिक्षण को अनिवार्य बनाएं
जीत के पहले जरूरी है सुरक्षा की सोच
खेल का मैदान ऊर्जा, जुनून और सपनों से भरा होता है, लेकिन वहां हर कदम पर जोखिम भी होता है। यह शोध सिर्फ आंकड़े नहीं दिखाता, बल्कि खिलाड़ियों की सुरक्षा को लेकर एक चेतावनी है।
सही प्रशिक्षण, चिकित्सा सहयोग और सजगता से न केवल चोटों से बचा जा सकता है, बल्कि एथलीटों का करियर भी लंबा और सफल बनाया जा सकता है।
इन्होंने किया शोध
यह अध्ययन “प्रिवेलेंस ऑफ स्पोर्ट्स इंजरीज अमंग एथलीट्स इन द लखनऊ रीजन” विषय पर किया गया। शोधकर्ताओं में डॉ. अभिषेक चौधरी, डॉ. अभिषेक अग्रवाल, और डॉ. अभिषेक सैनी शामिल हैं। इस अध्ययन को अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल 'क्योरस' ने स्वीकार किया है, जो इसकी वैज्ञानिक गुणवत्ता का प्रमाण है।
ये आंकड़े बताते हैं कि...
-400 खिलाड़ी हुए शामिल
-48.5 फीसदी खिलाड़ी किसी न किसी चोट का शिकार
-फुटबॉल खिलाड़ियों में 64 फीसदी को लगी चोट
-कुश्ती खिलाड़ियों में 58 फीसदी घायल हुए
-61.3 फीसदी चोटें शरीर के निचले हिस्से में
नेशनल फुटबॉल खिलाड़ी आदर्श गोस्वामी
फुटबॉल और कुश्ती एक चुनौतीपूर्ण खेल है, जहां हर दिन नई चोट का सामना करना पड़ता है। घुटने, टखने और जांघ की मांसपेशियों में खिंचाव या मोच आम हैं, खासकर जब बिना वार्म-अप के खेल शुरू किया जाता है। मेरा मानना है कि सुरक्षा गियर जैसे घुटने और टखने के पैड का सही इस्तेमाल और शारीरिक तैयारी से चोटों को रोका जा सकता है। पर्याप्त आराम और सही डाइट भी महत्वपूर्ण हैं। अगर खिलाड़ियों को चोट के शुरुआती संकेतों का पता चले, तो वे समय रहते इलाज करवा सकते हैं और अपनी खेल यात्रा को सुरक्षित रख सकते हैं।
डा. सिदार्थ राय
फिजिकल मेडिडिसन एंड रीहैबिलटेशन
एपेक्स ट्रामा सेंटर एसजीपीजीआई
खेल चिकित्सा में चोटें केवल खेल के परिणाम नहीं, बल्कि खिलाड़ियों की शारीरिक तैयारी की कमी और लापरवाही का भी परिणाम होती हैं। अधिकांश चोटें वार्म-अप न करने, थकान के बावजूद खेलते रहने या सुरक्षा उपकरणों का सही तरीके से इस्तेमाल न करने से होती हैं। खिलाड़ियों को अपनी शारीरिक स्थिति समझनी चाहिए और मानसिक तनाव से बचने के उपाय करने चाहिए। चिकित्सा सुविधाएं भी समय पर उपलब्ध होनी चाहिए, ताकि चोटों का इलाज तुरंत किया जा सके। यही सही प्रशिक्षण और चिकित्सा से चोटों को कम किया जा सकता है और कैरियर को सुरक्षित रखा जा सकता है।

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