रविवार, 26 अक्टूबर 2025

सिर और चेहरे की विकृतियों के इलाज में नई तकनीकें बनीं संजीवनी

 

सिर और चेहरे की विकृतियों के इलाज में नई तकनीकें बनीं संजीवनी


एसजीपीजीआई में इंडो गल्फ क्रेनियोफेशियल सोसायटी की चौथी बैठक संपन्न


लखनऊ। जन्मजात सिर और चेहरे की विकृतियों (क्रेनियोफेशियल डिफॉर्मिटीज़) से जूझ रहे बच्चों को सामान्य जीवन देने की दिशा में अब तकनीक नई राह दिखा रही है। इस दिशा में विशेषज्ञों का चौथा सम्मेलन शनिवार को होटल क्लार्क्स अवध में हुआ, जिसका आयोजन संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के प्लास्टिक सर्जरी विभागाध्यक्ष एवं इंडो गल्फ क्रेनियोफेशियल सोसायटी के अध्यक्ष प्रो. राजीव अग्रवाल के नेतृत्व में किया गया।


प्रो. अग्रवाल ने बताया कि अब सिर और चेहरे की हड्डियों की सर्जरी में 3-डी प्रिंटिंग, रीज़ॉर्बेबल प्लेट्स (स्वयं घुल जाने वाली प्लेटें), माइक्रोइंस्ट्रूमेंट्स और नेविगेशन सिस्टम जैसी उन्नत तकनीकें उपयोग में लाई जा रही हैं। इससे सर्जरी ज्यादा सुरक्षित और सटीक हो गई है। पहले टाइटेनियम प्लेटें लगाई जाती थीं जो स्थायी रहती थीं, अब पॉली डाइऑक्सानोन (PDO) और पॉलीलैक्टिक एसिड (PLA) जैसी बायोडिग्रेडेबल प्लेटों से हड्डियों को जोड़ा जाता है, जो कुछ महीनों में शरीर में घुल जाती हैं और किसी दूसरी सर्जरी की जरूरत नहीं रहती।


उन्होंने बताया कि एसजीपीजीआई देश के उन चुनिंदा केंद्रों में है जहां ऐसी सर्जरी नियमित रूप से की जाती है। अब तक सैकड़ों बच्चों को नया जीवन मिला है। यह सर्जरी तब जरूरी होती है जब बच्चे के सिर का आकार असामान्य रूप से बड़ा हो, आंखें उभरी हों या होंठ व तालू में दोष के कारण सांस लेने में कठिनाई होती हो।


सम्मेलन में देश-विदेश के विशेषज्ञों ने भाग लिया, जिनमें डॉ. तैमूर अल बुलुशी (खौला अस्पताल, मस्कट), डॉ. सुल्तान अल शाक्सी, डॉ. अडेल (मस्कट) और एम्स ऋषिकेश की डॉ. मधुबरी वथुल्या प्रमुख रहीं।


कार्यक्रम दो सत्रों में हुआ—सुबह के सत्र में क्लिफ्ट लिप, क्लिफ्ट पैलेट, सिर-चेहरे की हड्डियों के फिक्सेशन पर व्याख्यान और पैनल चर्चा हुई। वहीं, दोपहर बाद वर्कशॉप में प्रतिभागियों को क्लिफ्ट लिप और पैलेट सर्जरी तथा स्कल फिक्सेशन तकनीक का प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया गया। इस दौरान 3-डी मॉडल और सर्जिकल सिमुलेटर की मदद से अभ्यास कराया गया।


सम्मेलन का उद्घाटन माननीय न्यायमूर्ति आलोक माथुर, वरिष्ठ न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय (लखनऊ पीठ) ने किया। उन्होंने कहा कि भारत में ऐसे विशेषज्ञ सर्जनों की संख्या बहुत कम है, इसलिए इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम देश के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।

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