शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

संजय गांधी पीजीआई का न्यूरो सर्जरी विभाग: देश में नई तकनीकों का शिखर

 


   


संजय गांधी पीजीआई का न्यूरो सर्जरी विभाग: देश में नई तकनीकों का शिखर


 देश के दूसरे संस्थान का दर्जा प्राप्त संजय गांधी पीजीआई का न्यूरो सर्जरी विभाग


आंख के बगल से दिमाग के स्कल बेस के ट्यूमर की  सर्जरी तकनीक स्थापित


जटिल स्कल बेस के अंदर भी सर्जरी की नई तकनीक स्थापित  


 


संजय गांधी पीजीआई का न्यूरो सर्जरी विभाग ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। यह विभाग देश का दूसरा ऐसा संस्थान बन गया है, जहां दिमाग के निचले हिस्से (स्कल बेस) के ट्यूमर और एनीऑरिज्म की सर्जरी बिना सिर खोले, आंख के किनारे से दिमाग के अंदर पहुंच कर करने की तकनीक स्थापित की गई है। इस तकनीक को "ट्रांस आर्बिटल एप्रोच" कहा जाता है, जो एडवांस इंडोस्कोपी के माध्यम से संभव हो पाई है। इस तकनीक को दो साल पहले स्थापित किया गया था और अब तक लगभग 25 मरीजों में सफल सर्जरी हो चुकी है। दूसरी तकनीक, "ट्रांस केवरनेस एप्रोच" के जरिए कान के पास स्थित केवरनेस साइनस से स्कल बेस की जटिल सर्जरी की जा सकती है।


विभाग के  प्रो. कुंतल कांति दास ने कहा, "यह सम्मान केवल एक सर्जन का नहीं बल्कि विभाग के सभी सर्जनों की मेहनत का परिणाम है। यह हमें और काम करने के लिए प्रेरित करता है और संस्थान निदेशक के सहयोग के बिना यह संभव नहीं हो सकता था।"


 


संजय गांधी पीजीआई को प्रतिष्ठित रैंकिंग


 


प्रमुख शोध एजेंसी द्वारा संजय गांधी पीजीआई के न्यूरो सर्जरी विभाग को भारत में दूसरा सर्वश्रेष्ठ और एशिया में 9वां स्थान दिया गया है। वैश्विक स्तर पर यह विभाग 65वें स्थान पर है। यह उपलब्धि रोगी देखभाल, शोध प्रकाशनों और पूर्व छात्रों के सामाजिक योगदान की वजह से मानी जाती है।


 


गामा नाइफ की बडे  ट्यूमर के इलाज होगी भूमिका


प्रो. कुंतल ने बताया कि अब तक माना जाता रहा है कि गामा नाइप का की जरूरत छोटे ट्यूमर में होती है लेकिन अब बडे ट्यूमर में इसकी जरूरत है। बडे ट्यूमर को पूरा निकलाने में कई बार दिमाग को नुकसान होने की आशंका रहती है ऐसे में हम लोग नीयर टोटल रीमूवल करते है बचे हिस्से को गामा नाइफ से रेडियन देकर नष्ट करते है।  जागरूकता के कारण अब छोटे ट्यूमरे के मरीज भी आने लगे कई बार लक्षण के आधार पर भी छोटे ट्यूमर पकड़ में आ जाते है।





सालाना शोध कार्य और परियोजनाएं


 


प्रति वर्ष 40 से 45 उच्च गुणवत्ता वाले शोध पत्र प्रकाशित किए जाते हैं।


 


30 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं।


 


6 करोड़ रुपये से अधिक के शोध परियोजनाएं चल रही हैं।


 


मल्टी-सेंट्रिक शोध परियोजनाओं का संचालन हो रहा है।


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