मंगलवार, 16 सितंबर 2025

पीजीआई दीक्षांत समारोह में बृजेश पाठक ने कह दी बड़ी बात





 समाज की अपेक्षाओं पर खरा उतरें डॉक्टर – राज्यपाल


एसजीपीजीआई के 29वें दीक्षांत समारोह में 415 छात्रों को मिली उपाधि


 




संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के 29वें दीक्षांत समारोह में मंगलवार को 415 छात्रों को उपाधि प्रदान की गई। समारोह की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने की।


 


राज्यपाल ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि “संस्था केवल भवन और जमीन से नहीं बनती, बल्कि समाज की अपेक्षाओं को पूरा करने से बनती है। डॉक्टर को मरीज को परिवार की तरह समझ कर सेवा करनी चाहिए – महिला आए तो मां की तरह और बुजुर्ग किसान आए तो पिता की तरह।”


 


विश्व रैंकिंग और गुणवत्ता पर जोर


 


उन्होंने विश्वविद्यालयों की विश्व रैंकिंग का जिक्र करते हुए कहा कि भारत में केवल सात विश्वविद्यालय विश्व स्तर पर पहुंचे हैं। क्वालिटी और शोध पर ध्यान दिए बिना आगे बढ़ना संभव नहीं है। “अगर मेहनत न की होती तो हम आज पांचवें क्रम पर भी नहीं दिखते। वर्ल्ड रैंकिंग में जगह बनाना जरूरी है।”


 


किसानों के बलिदान को न भूलें


 


राज्यपाल ने याद दिलाया कि संस्थान की जमीन किसानों ने दी थी। कई किसानों ने अपनी पूरी जमीन खो दी और उन्हें पर्याप्त मुआवजा भी नहीं मिला। “किसानों की तकलीफ देखकर सेवा भाव से काम करना चाहिए। जिस किसान ने जमीन दी, उसी के गांव में डॉक्टर और स्वास्थ्य सुविधा न हो, यह उचित नहीं है।”


 


जनस्वास्थ्य और समाज की जिम्मेदारी


 


राज्यपाल ने कहा कि—


 


हर महिला और बेटी की जांच व देखभाल जरूरी है।


 


सभी प्रसव 100% अस्पताल में होने चाहिए।


 


शुद्ध पेयजल और स्वच्छ पर्यावरण के बिना बीमारियों पर रोक संभव नहीं।


 


मेडिकल वेस्ट निपटान और ड्रेनेज सिस्टम सुधार में 25 साल लग सकते हैं, लेकिन यही अस्पतालों पर बोझ घटाएगा।


 


डॉक्टरों को गांवों की ओर भेजना जरूरी


 


राज्यपाल ने ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं पर चिंता जताते हुए कहा कि आज भी एक डॉक्टर के भरोसे पूरा पीएचसी या सीएचसी चलता है। कई डॉक्टर बांड भरकर सेवा से बच जाते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि कड़े नियम बनाने होंगे, ताकि डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम तीन साल सेवा दें।


 


मुख्य अतिथि का संबोधन


 


मुख्य अतिथि, एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के अध्यक्ष प्रो. डी. नागेश्वर रेड्डी ने कहा कि संस्थान का गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग देश का नंबर-वन विभाग है। स्वर्गीय प्रो. एस.आर. नायक ने इसकी नींव रखी और इसे विश्व स्तरीय बनाया। उन्होंने कहा, “सम्मान पैसे से नहीं मिलता, समाज के लिए किए गए कार्य के प्रभाव से ही सम्मान मिलता है।”


 


उन्होंने छात्रों को मूल मंत्र दिए—


 


माता और शिक्षक का सम्मान करें।


 


कार्य की गुणवत्ता बढ़ाएं।


 


अनुशासन और दृढ़ निश्चय रखें।


 


सहानुभूति रखें और संवाद पर विशेष ध्यान दें।


 


टीम वर्क और नेतृत्व क्षमता विकसित करें।


 


उद्यमी बनें, हमेशा विनम्र रहें।


 


परिवार और कार्य के बीच संतुलन बनाए रखें।


 


उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने कह दी कड़वी बात


 


उन्होंने कहा कि टर्शियरी केयर के मामले में एसजीपीजीआई का कोई जवाब नहीं है। संस्थान ओवरलोड है, इसलिए विस्तार जरूरी है। “कोशिश करें कि कोई निराश होकर यहां से वापस न जाए।”


छात्रों से कहा कि सरकारी क्षेत्र में काम करें, यहां का अनुभव आगे बहुत उपयोगी होगा। सरकारी क्षेत्र में काम करने वाले डॉक्टर जब यही निजी अस्पतालों में जाते हैं तो सरकारी अस्पताल का इस्तेमाल करते हैं अपने आगे लिखते हैं एक्स पीजीआई ,,,,,,,


 


राज्यमंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह का वक्तव्य


 


उन्होंने कहा कि अनुवांशिकी विभाग एसजीपीजीआई से शुरू हुआ, लेकिन मरीज एम्स दिल्ली जाते हैं। इस विभाग के बारे में अधिक प्रचार की जरूरत है। देश के बड़े डॉक्टरों ने सरकारी क्षेत्र से ही शुरुआत की, क्योंकि यहां सबसे अधिक एक्सपोज़र मिलता है।


 


निदेशक का वक्तव्य


 


संस्थान के निदेशक प्रो. आर.के. धीमान ने बताया कि—


 


स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और फार्माकोलॉजी विभाग की स्थापना की जा रही है।


 


नया ओपीडी परिसर भी बनने जा रहा है।


 


पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत तीन टेस्ला एमआरआई और 128-स्लाइस सीटी स्कैन मशीन लगी हैं, जिससे वेटिंग खत्म हो गई है।


 


टेली-आईसीयू से 6 मेडिकल कॉलेज जुड़े हैं, आगे 36 मेडिकल कॉलेज और 18 जिला अस्पताल जोड़ने की योजना है।


 


बच्चों और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का सम्मान


 


कल्ली पश्चिम प्राथमिक विद्यालय की छात्रा शालिनी ने पर्यावरण पर भाषण दिया। सभा खेड़ा और कल्ली पश्चिमी स्कूलों के छात्रों ने पर्यावरण पर नृत्य-नाटिका प्रस्तुत की। राज्यपाल ने उन्हें सम्मानित किया।


इसके अलावा खुशी, काव्या सिंह, राजकुमार तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं कुसुमलता, सुषमा, अनीता देवी, वंदना श्रीवास्तव को किट देकर सम्मानित किया गया।


 


विशेष सम्मान


 


प्रो. एस.आर. नाइक अवार्ड – प्रो. दुर्गा प्रसन्ना मिश्रा (क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी)


 


प्रो. एस.आर. नाइक अवार्ड – डॉ. चंद्र प्रकाश चतुर्वेदी (क्लिनिकल हेमेटोलॉजी)


 


प्रो. एस.एस. अग्रवाल अवार्ड – डॉ. अर्चना तिवारी (एंडोक्राइनोलॉजी)


 


प्रो. एस.एस. अग्रवाल अवार्ड – डॉ. स्वपलिन सुरेश (क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी)


 


प्रो. एस.एस. अग्रवाल अवार्ड – डॉ. सूरज कुमार सिंह (हेमेटोलॉजी)


 


प्रो. आर.के. शर्मा अवार्ड – डॉ. लक्ष्मी एम.आर. (क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी)


 


प्रो. आर.के. शर्मा अवार्ड – डॉ. स्पंदा (एंडो सर्जरी)


 


डॉ. एस.एस. सरकार गोल्ड मेडल – डॉ. मयंक कुमार (रेडियोडायग्नोसिस)


 


सबसे अधिक पेटेंट – प्रो. देवेंद्र गुप्ता (एनेस्थीसिया), डॉ. विनीता अग्रवाल (पैथोलॉजी), डॉ. आशीष कनौजिया (एनेस्थीसिया), डॉ. तन्मय घटक (इमरजेंसी मेडिसिन)


 


अधिकतम शोध सहायता – डॉ. अनुष्का श्रीवास्तव (मेडिकल जेनेटिक्स), डॉ. रोहित सिन्हा (एंडोक्राइनोलॉजी), प्रो. राजेश कश्यप (हेमेटोलॉजी), प्रो. अमित गोयल (हेपेटोलॉजी)


शोध विज्ञानियों से बता



टाकायासु आर्टेराइटिस में  हृदय रोग की आशंका अधिक

डा. स्वप्निल सुरेश-  प्रो. एस.एस. अग्रवाल अवार्ड

टाकायासू आर्टराइटिस में बड़ी धमनियों में सूजन और संकुचन हो जाता है।  इस रोग से पीड़ित मरीजों में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण हृदय रोग है। धमनियों पर लगातार दबाव के कारण ब्लड प्रेशर बढ़ता है और दिल का दौरा या हृदय विफलता का खतरा रहता है। ऐसे मरीजों की नियमित हृदय जांच, ब्लड प्रेशर नियंत्रण, स्टेरॉयड व इम्यूनो-सप्रेसिव दवाओं का प्रयोग और जीवनशैली में सुधार बेहद जरूरी है। समय रहते रोकथाम और देखभाल से मृत्यु की आशंका को काफी हद तक कम किया जा सकता है।





नैनोमैटेरियल से स्टेम सेल की बढाया -

प्रो. एस.एस. अग्रवाल अवार्ड – डॉ. सूरज कुमार सिंह (हेमेटोलॉजी)


 नैनोमेटेरियल की मदद से स्टेम सेल गुणवत्ता बढ़ाने में कामयाबी मिली है। पैंक्रियाटिक बीटा सेल में परिवर्तित हो सकते हैं, जो इंसुलिन उत्पादन के लिए जिम्मेदार होते हैं। इस तकनीक से तैयार बीटा सेल भविष्य में डायबिटीज मरीजों के लिए बीटा सेल ट्रांसप्लांट में उपयोगी साबित होंगे। यह विधि न केवल कृत्रिम इंसुलिन पर निर्भरता कम कर सकती है बल्कि मरीजों के रक्त शर्करा नियंत्रण को भी लंबे समय तक स्थिर बनाए रखने में मददगार होगी।


 

नॉन-फैटी लिवर बीमारी के इलाज की दिशा में नई उम्मीद -

प्रो. एस.एस. अग्रवाल अवार्ड – डॉ. अर्चना तिवारी (एंडोक्राइनोलॉजी)


नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर बीमारी का अभी तक कोई निश्चित इलाज नहीं है। हाल ही में चूहों पर हुए एक अध्ययन में पाया गया कि शरीर में प्राकृतिक रूप से बनने वाले राइबो न्यूक्लिएज वन एंजाइम को इंजेक्ट करने से लिवर को बचाया जा सकता है। सामान्यतः फैटी लिवर में सेल फट जाते हैं और अन्य स्थान पर चिपककर सिरोसिस का कारण बनते हैं। लेकिन एंजाइम देने पर यह प्रक्रिया रुक गई।यह तकनीक भविष्य में उन मरीजों के लिए राहत बन सकती है  फैटी लिवर से ग्रस्त होते है। 









बच्चों में रूमेटाइड आर्थराइटिस, परिवार को रहना होगा सतर्क

प्रो. आर.के. शर्मा अवार्ड – डॉ. लक्ष्मी एम.आर. (क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी)




रूमेटाइड अर्थराइटिस से ग्रस्त लगभग 40% बच्चों के परिवार या रक्त संबंधियों में किसी न किसी प्रकार की ऑटोइम्यून बीमारी पाई गई है।  यह प्रवृत्ति आनुवंशिक हो सकती है, इसलिए परिवार के अन्य सदस्यों को भी समय-समय पर जांच कर सतर्क रहना चाहिए। बच्चों में होने वाली आर्थराइटिस को अक्सर साधारण जोड़ दर्द समझकर नजरअंदाज कर दिया जाता है। सही समय पर इलाज न मिलने से इन बच्चों में हृदय रोग, आंखों की समस्या और विकास में रुकावट जैसी गंभीर दिक्कतें हो सकती हैं। इसलिए शुरुआती पहचान और विशेषज्ञ चिकित्सक से उपचार बेहद जरूरी है।









जेगुलर वेन का फैलाव बना सिरदर्द और कान की समस्या का कारण

डॉ. एस.एस. सरकार गोल्ड मेडल – डॉ. मयंक कुमार (रेडियोडायग्नोसिस)



 2.3% मरीजों में सिरदर्द और कान से जुड़ी परेशानियों का कारण जेगुलर वेन का फैलाव है। जब यह नस असामान्य रूप से चौड़ी हो जाती है तो दिमाग को सुरक्षा देने वाली परत मैनेनजिस पर दबाव पड़ता है। इससे मरीज को लगातार सिरदर्द, कानों में सनसनाहट या सीटी बजने जैसी समस्या (टिन्निटस) हो सकती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस स्थिति की पहचान एमआरआई और एंजियोग्राफी से संभव है। शुरुआती स्तर पर इलाज न होने पर यह समस्या न्यूरोलॉजिकल दिक्कतों को जन्म दे सकती है। 







थायरॉयड ऊतक में खून से अलग पाई गई सूजन की स्थिति


प्रो. आर.के. शर्मा अवार्ड – डॉ. स्पंदना जे (एंडो सर्जरी)



 थायरॉयड सर्जरी के दौरान लिए गए ऊतक (कोलॉइड) में सूजन पैदा करने वाले तत्व, खून के नमूनों की तुलना में कहीं अधिक पाए गए। कि इसका अर्थ है कि थायरॉयड के भीतर की सूजन की स्थिति शरीर की सामान्य रक्त परिसंचरण प्रणाली से अलग होती है। यह खोज थायरॉयड से जुड़ी बीमारियों जैसे गॉयटर और कैंसर के इलाज को समझने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस अध्ययन से आगे थायरॉयड की सूजन और उससे जुड़े खतरों पर गहन रिसर्च का रास्ता खुलेगा।



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