संजय गांधी का सपना और भारत की ‘पीपल्स कार’
1970 के दशक का भारत—जहाँ कार रखना सिर्फ अमीरों का शौक़ माना जाता था। देश की सड़कों पर फिएट (पद्मिनी) और एम्बेसडर जैसी गाड़ियाँ तो दिखती थीं, लेकिन उनकी कीमत, रखरखाव और पेट्रोल खपत आम मध्यम वर्ग के लिए लगभग असंभव थी। इसी दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने एक बड़ा सपना देखा—हर भारतीय परिवार के पास अपनी कार हो।
सपना: एक सस्ती और भरोसेमंद कार
संजय गांधी का विचार था कि भारत को एक ऐसी पीपल्स कार मिले, जो सस्ती, भरोसेमंद और भारतीय सड़कों व मौसम के अनुकूल हो। उन्होंने 1971 में मारुति लिमिटेड नामक कंपनी बनाई।
संजय गांधी हनुमान जी के भक्त थे और हनुमान जी का एक नाम मारुति भी है। इसी आस्था के कारण उन्होंने अपनी कंपनी का नाम ‘मारुति’ रखा।
चुनौतियाँ और असफलता
लेकिन यह सफ़र आसान नहीं था। न तकनीकी अनुभव था, न पूंजी। कार का एक प्रोटोटाइप तो बना, लेकिन वह व्यावहारिक नहीं निकला। आलोचकों ने इसे “राजकुमार का हवाई सपना” कहकर खारिज कर दिया।
1977 में जब जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई, तो मारुति प्रोजेक्ट पर भ्रष्टाचार और लाइसेंसिंग में गड़बड़ी के आरोप लगे और कंपनी बंद कर दी गई।
संजय गांधी की असमय मृत्यु
इसके बावजूद संजय अपने सपने पर डटे रहे। लेकिन 23 जून 1980 को एक विमान दुर्घटना में उनकी असमय मृत्यु हो गई। इसी के साथ भारत की "पीपल्स कार" का सपना अधूरा लगता था।
सपना हुआ साकार: मारुति उद्योग लिमिटेड
1980 के अंत में इंदिरा गांधी फिर सत्ता में लौटीं। उन्होंने अपने बेटे के अधूरे सपने को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया।
1981 में मारुति उद्योग लिमिटेड (Maruti Udyog Ltd.) की स्थापना हुई और जापान की सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन के साथ तकनीकी साझेदारी की गई।
1983: भारत की ‘ड्रीम कार’
दिसंबर 1983 में जब पहली बार मारुति 800 लॉन्च हुई, तो वह केवल एक कार नहीं रही, बल्कि करोड़ों भारतीयों के सपनों की चाबी बन गई।
शुरुआती कीमत करीब ₹50,000 थी।
इसकी माँग इतनी थी कि 5 साल तक वेटिंग लिस्ट लग गई।
किफ़ायती, टिकाऊ और कम पेट्रोल खपत वाली इस कार ने भारतीय मध्यम वर्ग की ज़िंदगी बदल दी।
विरासत जो आज भी जारी है
मारुति 800 ने भारतीय ऑटोमोबाइल सेक्टर की परिभाषा बदल दी। यही वजह है कि इसे भारत की सबसे सफल कार कहा जाता है।
आज मारुति सुजुकी देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी है, जिसका बाज़ार हिस्सा 40% से अधिक है।
नतीजा
संजय गांधी ने शायद यह नहीं सोचा होगा कि उनका सपना कभी इतना बड़ा रूप लेगा। उनका अधूरा सपना, उनकी असमय मौत और फिर इंदिरा गांधी की दृढ़ इच्छाशक्ति ने मिलकर भारत को एक ऐसी "पीपल्स कार" दी, जो आज भी करोड़ों लोगों की यादों और सड़कों पर ज़िंदा है।
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👉 जब भी सड़क पर कोई मारुति सुजुकी कार दौड़ती नज़र आए, तो यह याद रखिए कि यह सिर्फ एक गाड़ी नहीं, बल्कि संजय गांधी की आस्था, उनके अधूरे सपने और भारत के मध्यम वर्ग की कहानी है।
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