होल-लंग लवेज” तकनीक से चलने लगी सांस
पीजीआई में पल्मोनरी एल्वियोलर प्रोटीनोंसिस से पीड़ित दो मरीजों की जिंदगी बची
विशेषज्ञों ने बताई जागरूकता की ज़रूरत
जब सांसें बार-बार रुकने लगें, सीढ़ियां चढ़ना भी कठिन हो जाए और सफेद झाग जैसे कफ आने लगें तो यह सामान्य अस्थमा, निमोनिया या टीबी नहीं बल्कि पल्मोनरी एल्वियोलर प्रोटीनोंसिस (पीएपी) नामक अल्ट्रा-रेयर फेफड़ों की बीमारी हो सकती है। इस बीमारी में प्रोटीन जैसी झागदार परत फेफड़ों की थैलियों (एयर सैक) में जम जाती है, जिससे ऑक्सीजन खून तक नहीं पहुंच पाती और मरीज धीरे-धीरे गंभीर सांस की तकलीफ में फंस जाता है।10 लाख में 7 लोग ही इस बीमारी से प्रभावित होते हैं।
संजय गांधी पीजीआई ने ऐसे ही दो गंभीर मरीजों को होल-लंग लवेज द्वारा नई जिंदगी दी है।
क्या होता है होल लंग लवेज तकनीक
यह एक विशेष तकनीक है जिसमें मरीज को बेहोशी देकर एक-एक कर फेफड़ों को अलग किया जाता है और उनमें गर्म खारा पानी (सलाइन) डाला और निकाला जाता है। इस धुलाई से फेफड़ों में जमा झागदार परत साफ हो जाती है और मरीज को सांस लेने में राहत मिलती है।
विभागाध्यक्ष पल्मोनरी मेडिसिन प्रो. आलोक नाथ ने बताया कि
“यह बीमारी आम संक्रमणों जैसी दिखती है और अक्सर देर से पकड़ी जाती है। समय पर रेफरल और विशेषज्ञ केंद्रों पर इलाज ही मरीज की जिंदगी बदल सकता है।इलाज के बाद 85 फीसदी से अधिक मरीज बेहतर होते
टीबी या अस्थमा समझते रहते हैं
लगातार खांसी, सीने में भारीपन, सफेद-जेली जैसे बलगम और हल्की मेहनत पर भी सांस फूलना — अक्सर अस्थमा, वायरल संक्रमण या टीबी जैसे सामान्य रोग समझ लिए जाते हैं। इसी वजह से मरीजों का सही निदान महीनों या वर्षों तक नहीं हो पाता। यही देरी जानलेवा साबित हो सकती है।
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इलाज करने वाली टीम
पल्मोनरी मेडिसिन विभाग से अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. मानसी गुप्ता, सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रसंथ ए.पी. और सहायक प्रोफेसर डॉ. यश जगधरी के नेतृत्व में, लीड इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजिस्ट प्रो. अजमल खान की देखरेख में दोनों मरीजों की सफल सर्जरी की गई।
कार्डियक एनेस्थीसिया विभाग की टीम अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. अमित रस्तोगी, सहायक प्रोफेसर डॉ. पल्लव सिंह, सहायक प्रोफेसर डॉ. आरिब शेख, के साथ विभागाध्यक्ष कार्डियक एनेस्थीसिया प्रो. प्रभात तिवारी और विभागाध्यक्ष सीटीवीएस प्रो. एस.के. अग्रवाल के मार्गदर्शन में जुड़ी रही।
किस पर ज्यादा असर
मध्यम आयु वर्ग, खासकर पुरुषों पर; धूम्रपान, धूल-धुएं का एक्सपोजर, संक्रमण व रक्त कैंसर जैसी स्थितियों से खतरा बढ़ता है
इलाज करने वाले डॉक्टर की टीम
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