प्रोस्टेट कैंसर इलाज में एसजीपीजीआई की नई उपलब्धि
रेट्ज़ियस-स्पेरिंग और मल्टीपोर्ट ट्रांसवेसिकल रोबोटिक रैडिकल प्रोस्टेक्टोमी तकनीक से मरीजों को नया जीवन
संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआई), लखनऊ ने प्रोस्टेट कैंसर के इलाज में बड़ी प्रगति की है। संस्थान के यूरोलॉजी एवं रीनल ट्रांसप्लांटेशन विभाग ने अत्याधुनिक रेट्ज़ियस-स्पेरिंग और मल्टीपोर्ट ट्रांसवेसिकल रोबोटिक रैडिकल प्रोस्टेक्टोमी तकनीकों की शुरुआत की है। इन नई विधियों से न केवल कैंसर का प्रभावी इलाज हो रहा है, बल्कि मरीजों को सर्जरी के बाद सामान्य जीवन जीने का अवसर मिल रहा है।
क्या है तकनीक
रेट्ज़ियस-स्पेरिंग तकनीक में सर्जरी के दौरान पेट के निचले हिस्से (रेट्ज़ियस स्पेस) को बचाया जाता है। इस हिस्से में मूत्र नियंत्रण और यौन क्षमता से जुड़ी नाजुक संरचनाएं होती हैं। इन्हें सुरक्षित रखने से मरीज बहुत जल्दी सामान्य जीवन जीने लगता है।
मल्टीपोर्ट ट्रांसवेसिकल रोबोटिक रैडिकल प्रोस्टेक्टोमी में मूत्राशय के रास्ते से रोबोटिक तकनीक की मदद से प्रोस्टेट निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में कई छोटे पोर्ट बनाए जाते हैं और रोबोटिक उपकरणों से अत्यंत सटीक सर्जरी की जाती है। इससे खून का बहाव कम होता है और मरीज की रिकवरी तेजी से होती है।
विशेषज्ञ की राय
विभाग के एडीशनल प्रोफेसर डॉ. उदय प्रताप सिंह ने बताया—
“इन दोनों तकनीकों की खासियत यह है कि यह कैंसर को पूरी तरह हटाती हैं और साथ ही मूत्र एवं यौन क्षमता को सुरक्षित रखती हैं। पहले मरीजों को लंबे समय तक इन परेशानियों का सामना करना पड़ता था, लेकिन अब कुछ ही हफ्तों में वे सामान्य जीवन जीने लगते हैं।”
एडवांस्ड स्टेज के मरीजों के लिए नई उम्मीद
कई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त दवा परीक्षण और शोध परियोजनाएं चल रही हैं। इनसे उन मरीजों को नई उम्मीद मिल रही है, जिनका कैंसर हड्डियों, फेफड़ों या लिवर तक फैल चुका है और जहां पारंपरिक इलाज कारगर नहीं होता।
यूरोलॉजी विभाग के एडीशनल प्रोफेसर डॉ. सिंह ने कहा—
“हमारा उद्देश्य केवल कैंसर का इलाज करना नहीं है, बल्कि मरीजों की जीवन गुणवत्ता बेहतर बनाना है।
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