शनिवार, 27 सितंबर 2025

कोविड-19 टीकाकरण और कैंसर: दक्षिण कोरिया के बड़े अध्ययन में मिले चिंताजनक संकेत




कोविड-19 टीकाकरण और कैंसर: दक्षिण कोरिया के बड़े अध्ययन में मिले चिंताजनक संकेत


दक्षिण कोरिया में किए गए एक बड़े जनसंख्या आधारित अध्ययन ने यह संकेत दिए हैं कि कोविड-19 टीकाकरण के बाद एक वर्ष के भीतर कुछ प्रकार के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। यह अध्ययन अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका बायोमार्कर रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।


अध्ययन का तरीका


यह अध्ययन स्वास्थ्य बीमा से जुड़ी राष्ट्रीय डाटाबेस पर आधारित था। इसमें करीब 84 लाख वयस्कों को शामिल किया गया। शोधकर्ताओं ने “प्रोपेंसिटी स्कोर मैचिंग (Propensity Score Matching)” नामक सांख्यिकीय तकनीक का प्रयोग किया, ताकि टीका लगवाने और न लगवाने वाले समूहों को उम्र, लिंग और अन्य स्वास्थ्य कारकों के हिसाब से तुलनात्मक रूप से समान बनाया जा सके।


अंतिम विश्लेषण में करीब 5.95 लाख टीकाकृत और 23.8 लाख बिना टीका लगे व्यक्तियों की तुलना की गई।


इसके बाद एक वर्ष की अवधि में इन व्यक्तियों में नए कैंसर मामलों की दर (इंसिडेंस) को दर्ज किया गया और फिर “हैज़र्ड रेशियो (Hazard Ratio)” के आधार पर जोखिम का अनुमान लगाया गया।



अध्ययन के निष्कर्ष


अध्ययन में यह पाया गया कि कोविड-19 वैक्सीन लगवाने वाले व्यक्तियों में थायरॉयड कैंसर का खतरा 35 प्रतिशत, पेट का 34 प्रतिशत, आंत्र का 28 प्रतिशत, फेफड़े का 53 प्रतिशत, स्तन का 20 प्रतिशत और प्रोस्टेट कैंसर का 69 प्रतिशत अधिक पाया गया।


टीके के प्रकार, लिंग और उम्र के आधार पर फर्क


डीएनए आधारित (सीडीएनए) टीकों से प्रोस्टेट और फेफड़े के कैंसर का खतरा अधिक पाया गया, जबकि मैसेंजर आरएनए (एमआरएनए) आधारित टीकों से स्तन कैंसर का खतरा बढ़ा।


पुरुषों में पेट और फेफड़े के कैंसर का जोखिम अधिक पाया गया, जबकि महिलाओं में थायरॉयड और आंत्र कैंसर का।


65 वर्ष से कम उम्र वालों में थायरॉयड और स्तन कैंसर का खतरा खास तौर पर बढ़ा दिखा।

इसके अलावा, जिन लोगों ने बूस्टर खुराक ली, उनमें पेट और अग्न्याशय के कैंसर का खतरा बढ़ने की संभावना सामने आई।



आशंका किस तरह जताई गई और वैज्ञानिकों में शोर


शोधकर्ताओं ने कहा कि इतने बड़े समूह में एक जैसी प्रवृत्ति दिखना महज संयोग नहीं हो सकता। उनका मानना है कि यह “स्वास्थ्य नीति-निर्माताओं के लिए चेतावनी की घंटी” है और आगे गहन जैविक अध्ययनों की आवश्यकता है।

इस अध्ययन के प्रकाशन के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस छिड़ गई। वैक्सीन समर्थक वैज्ञानिकों का कहना है कि यह केवल सांख्यिकीय सहसंबंध है, कारण-परिणाम का प्रमाण नहीं। जबकि आलोचक इसे अब तक का “सबसे ठोस जनसंख्या-आधारित संकेत” मान रहे हैं और कैंसर जैसी गंभीर बीमारी पर और अधिक सतर्कता बरतने की मांग कर रहे हैं।



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