केजीएमयू में चिकित्सकीय चमत्कार: गुएलन-बैरे सिंड्रोम से दो महीने वेंटिलेटर पर रहे आठ वर्षीय वीर को मिला नया जीवन
75 दिन लंबा संघर्ष, विशेषज्ञों की मेहनत और माता-पिता की दुआएं बनीं ताक़त
किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के डॉक्टरों ने असंभव को संभव कर दिखाया है। विकास नगर निवासी विवेक गुप्ता के आठ वर्षीय बेटे वीर को एक बेहद गंभीर ऑटोइम्यून बीमारी गुएलन-बैरे सिंड्रोम (Guillain-Barré Syndrome – GBS) ने अचानक जकड़ लिया था। एक सामान्य स्वस्थ बच्चा देखते ही देखते लकवाग्रस्त हो गया। हाथ-पैर ने काम करना बंद कर दिया, यहां तक कि निगलने में भी परेशानी होने लगी। इस स्थिति में परिजन बच्चे को लेकर 13 मार्च को केजीएमयू पहुंचे, जहाँ से वीर के जीवन की सबसे कठिन लड़ाई की शुरुआत हुई।
बीमारी की गंभीरता: शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली बन गई दुश्मन
आईसीयू के प्रभारी प्रो. विपिन सिंह के अनुसार, गुएलन-बैरे सिंड्रोम एक दुर्लभ और तीव्र न्यूरोलॉजिकल विकार है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली खुद ही नसों पर हमला करने लगती है। इससे मांसपेशियाँ धीरे-धीरे कमजोर हो जाती हैं और लकवे जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। जीबीएस आमतौर पर किसी वायरल संक्रमण के बाद शुरू होता है, लेकिन इसके लक्षण धीरे-धीरे गंभीर रूप ले सकते हैं।
वीर को जब भर्ती किया गया, तब वह पूरी तरह होश में था लेकिन शरीर ने उसका साथ छोड़ना शुरू कर दिया था। उसे सांस लेने में कठिनाई होने लगी और निगलने में भी दिक्कत आ रही थी। इन स्थितियों को देखते हुए तत्काल उसे वेंटिलेटर पर रखा गया और गहन चिकित्सकीय निगरानी शुरू हुई।
दो महीने वेंटिलेटर पर, संक्रमण का खतरा और सतत देखभाल
लगभग 60 दिन वेंटिलेटर पर रहना अपने आप में एक बड़ी चुनौती होती है। इस दौरान न सिर्फ सांस की सहायता दी जाती है, बल्कि संक्रमण का खतरा भी लगातार बना रहता है। प्रो. विपिन सिंह के अनुसार, इस पूरी अवधि में एनेस्थेसिया विभाग की प्रो. मोनिका कोहली और उनकी टीम ने बेहतरीन समन्वय के साथ वीर की स्थिति को नियंत्रित किया।
फिजियोथेरेपी की भी अहम भूमिका रही। इलाज के दौरान उसे लगातार मांसपेशियों की गतिविधि बनाए रखने के लिए फिजियोथेरेपी दी जाती रही। डॉ. निश्चय, डॉ. सौरभ, डॉ. आराधना और डॉ. शोमा की टीम ने अत्यंत निष्ठा से कार्य किया। इस दौरान नर्सिंग स्टाफ निष्ठा और ममता की देखभाल ने भी पूरे इलाज को मानवीय संवेदना के साथ जोड़े रखा।
इम्यूनोग्लोबुलिन थेरेपी बनी वरदान
इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए वीर को इम्यूनोग्लोबुलिन थेरेपी दी गई, जो इस रोग के लिए सबसे प्रभावी उपचार मानी जाती है। यह थेरेपी शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करती है और नसों पर हमले को रोकती है। सही समय पर दी गई यह थेरेपी और चिकित्सा टीम की सतत मेहनत ने बच्चे को न केवल बचाया, बल्कि उसे पूर्णतः स्वस्थ किया।
शुक्रवार को मिलेगा छुट्टी, डॉक्टरों की मेहनत का नतीजा
75 दिनों के कठिन संघर्ष के बाद अब वीर पूरी तरह से स्वस्थ है और शुक्रवार को उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी। डॉक्टरों का कहना है कि वह अब सामान्य जीवन जी सकता है, लेकिन कुछ समय तक नियमित फॉलो-अप और फिजियोथेरेपी जारी रहेगी।
लक्षणों की समय पर पहचान है जरूरी
डॉक्टरों ने यह भी बताया कि गुएलन-बैरे सिंड्रोम के प्रारंभिक लक्षणों को पहचानना बहुत जरूरी है, क्योंकि समय पर इलाज ही इस बीमारी से बचाव और पुनर्प्राप्ति की कुंजी है। यदि किसी बच्चे या व्यक्ति को हाथ-पैर में झुनझुनी, सुन्नता, चलने में कठिनाई, सांस लेने में दिक्कत, निगलने में परेशानी या चेहरे की मांसपेशियों में कमजोरी हो, तो तुरंत अस्पताल जाना चाहिए।
मानवता और चिकित्सा विज्ञान की जीत
वीर की कहानी सिर्फ एक बच्चे की नहीं, बल्कि आधुनिक चिकित्सा, समर्पित डॉक्टरों और उम्मीदों के एकजुट प्रयास की मिसाल है। केजीएमयू की यह सफलता यह बताती है कि जब इच्छाशक्ति और विशेषज्ञता साथ होती है, तो सबसे कठिन जंग भी जीती जा सकती है
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