मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी की भर्ती बनी चुनौती, मनचाही तैनाती के बावजूद नहीं मिल रही सहमति
वेतन-भत्तों और संसाधनों की कमी से चिकित्सक उदासीन, पहले दिन 43 में से सिर्फ 8 विशेषज्ञ पहुंचे काउंसिलिंग में
प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी पदों को भरना चिकित्सा शिक्षा विभाग के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। लोक सेवा आयोग से चयनित असिस्टेंट प्रोफेसरों को मनचाही तैनाती की पेशकश के बावजूद वे कार्यभार ग्रहण करने से कतरा रहे हैं। मंगलवार को काउंसिलिंग के लिए बुलाए गए 43 में से सिर्फ आठ विशेषज्ञ ही पहुंचे।
चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय ने अप्रैल में जांच कराई थी, जिसमें पता चला कि चयनित 87 असिस्टेंट प्रोफेसरों ने अब तक कार्यभार नहीं ग्रहण किया है। इसके बाद 20 और 21 मई को दोबारा काउंसिलिंग आयोजित की गई है ताकि उन्हें उनकी पसंद के कॉलेजों में नियुक्ति दी जा सके। मंगलवार को हुई काउंसिलिंग में सिर्फ आठ विशेषज्ञ ही आए, जिनमें से पांच ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर, जबकि प्रयागराज, झांसी और कानपुर के लिए एक-एक ने सहमति दी।
मुख्य वजह: संसाधनों की कमी और वेतन में अंतर
कार्यभार ग्रहण न करने वाले असिस्टेंट प्रोफेसरों का कहना है कि केजीएमयू, एसजीपीजीआई और लोहिया संस्थान जैसे प्रतिष्ठानों की तुलना में सरकारी मेडिकल कॉलेजों में वेतन-भत्ते व संसाधनों की भारी कमी है। इन संस्थानों में करीब 30 हजार रुपये अधिक वेतन, बेहतर शोध सुविधाएं और तकनीकी उन्नयन के अधिक अवसर मिलते हैं। वहीं, राजकीय और स्वशासी मेडिकल कॉलेजों में सुविधाओं का अभाव और राजनीतिक हस्तक्षेप ज्यादा होने की बात कही जा रही है।
सरकार की अपील: इसे सिर्फ नौकरी नहीं, सेवा समझें
राज्य सरकार का कहना है कि वह फैकल्टी सदस्यों के हितों को लेकर गंभीर है और संसाधनों में सुधार किए जा रहे हैं। उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने अपील की कि असिस्टेंट प्रोफेसर इसे सिर्फ नौकरी के रूप में न देखें, बल्कि प्रदेश के स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास में योगदान के अवसर के रूप में स्वीकार करें।
अंतिम सूची बनेगी
बुधवार को 44 अन्य असिस्टेंट प्रोफेसरों को काउंसिलिंग के लिए बुलाया गया है। चिकित्सा शिक्षा विभाग के अनुसार, यदि वे भी कार्यभार ग्रहण नहीं करते हैं तो अंतिम सूची तैयार की जाएगी और उसके अनुसार आगे की कार्रवाई की जाएगी।
यह स्थिति दर्शाती है कि केवल चयन पर्याप्त नहीं है, बल्कि बेहतर सुविधाएं और अनुकूल कार्य वातावरण देना भी उतना ही जरूरी है, जिससे योग्य विशेषज्ञ राज्य की सेवा में आ सकें।
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