रविवार, 18 मई 2025

पीजीआई के पांच विभागों के विशेषज्ञों ने लौटाई नरेंद्र के परिवार में मुस्कान

 



पीजीआई के पांच विभागों के विशेषज्ञों ने लौटाई नरेंद्र के परिवार में मुस्कान

आधुनिक जांच तकनीक और अनुभव से मरीजों को मिल रही राहत
धीरे-धीरे दबने लगी आवाज, चिंता ने डर का रूप लिया

कुमार संजय, लखनऊ

संत कबीर नगर जिले के ग्राम कोहूगाड़ा निवासी 74 वर्षीय नरेंद्र कुमार की जिंदगी एक महीने पहले थम-सी गई थी। उनकी आवाज़ धीरे-धीरे दबने लगी थी। परिवार ने सोचा, यह सामान्य संक्रमण है, लेकिन कई डॉक्टरों को दिखाने के बावजूद राहत नहीं मिली, तो चिंता डर में बदल गई।

गले की एंडोस्कोपी में वॉइस बॉक्स के नीचे गांठ का पता चला। गांठ की स्थिति और लक्षणों को देखकर डॉक्टरों ने कैंसर की आशंका जताई। यह खबर नरेंद्र के ग्रामीण परिवार पर बिजली बनकर गिरी।

संजय गांधी पीजीआई के पांच विभागों के विशेषज्ञों ने आधुनिक तकनीक और अनुभव से इस केस की गंभीरता को समझा। इसमें प्रो. अमित केशरी (न्यूरो ओंटोलॉजी), प्रो. विकास अग्रवाल (क्लीनिक इम्यूनोलॉजी), प्रो. जफर नियाज़ (रेडियोलॉजी), प्रो. मनीष ओरा (न्यूक्लियर मेडिसिन) और प्रो. मनोज जैन (हिस्टोपैथोलॉजी) शामिल रहे।

विशेषज्ञों के मुताबिक गांठ की प्रकृति स्पष्ट किए बिना इलाज संभव नहीं था। शुरुआती बायोप्सी में हाइपरप्लासिया मिला — यानी कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि। हालांकि कैंसर की पुष्टि नहीं हुई, लेकिन आशंका बनी रही, जिसके चलते सीटी-गाइडेड बायोप्सी और पॉज़िट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी (पेट) स्कैन की योजना बनाई गई।

गांठ की संवेदनशील स्थिति को देखते हुए प्रो. जफर नियाज़ ने विशेष सतर्कता के साथ बायोप्सी की और प्रो. मनीष ओरा के निर्देशन में पेट स्कैन कराया गया।

रिपोर्ट में सामने आया कि यह कैंसर नहीं, बल्कि एक प्रकार की ऑटोइम्यून बीमारी है। यह खबर पूरे परिवार के लिए राहत लेकर आई। विशेषज्ञों ने न सिर्फ बीमारी की पहचान की, बल्कि नरेंद्र की आवाज और सेहत बहाल करने का इलाज भी शुरू कर दिया।

विशेषज्ञों के अनुसार अगर यह कैंसर होता, तो भी यह प्रारंभिक अवस्था में था और केवल रेडियोथेरेपी से ठीक किया जा सकता था। ऐसी बीमारियां सारकॉइडोसिस जैसे ऑटोइम्यून रोगों से जुड़ी हो सकती हैं, इसलिए हर पहलू की जांच जरूरी है।

नरेंद्र के बेटे अनुराग ने कहा, “पिछला एक महीना हमारे लिए पहाड़ जैसा था, लेकिन पीजीआई टीम ने हमें हौसला दिया।”

विशेषज्ञ मानते हैं कि समय पर इलाज और जागरूकता से ही जिंदगियां बच रही हैं। चाहे कैंसर हो या कोई और जटिलता — जितनी जल्दी इलाज शुरू हो, सफलता की संभावना उतनी अधिक होती है

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