शनिवार, 31 मई 2025

मंडल 2.0: क्या जाति गणना यूपी की राजनीति में एक और उथल-पुथल की जमीन तैयार




मंडल 2.0: क्या जाति गणना यूपी की राजनीति में एक और उथल-पुथल की जमीन तैयार कर रही है?


नई कवायद से उन दलों की रणनीति तय हो सकती है या दोबारा बनाई जा सकती है जो उत्तर प्रदेश में एक कड़ी चुनावी लड़ाई की उम्मीद कर रहे हैं, जहां अगला विधानसभा चुनाव 2027 में होना है। पहले किए गए मिनी सर्वेक्षणों में राज्य में ओबीसी आबादी 50% से अधिक आंकी गई है।




स्लोगन अक्सर उत्तर प्रदेश की राजनीति को परिभाषित करते हैं। जाति समीकरण, जातिगत पहचान और इतिहास में दर्ज वर्गों की उपेक्षा को संबोधित करने के वादों ने दशकों से सामाजिक न्याय आधारित राजनीतिक विमर्श को आकार दिया है।


अब एक नई जाति गणना की कवायद ऐसे समय में शुरू की जा सकती है जब सभी दल 2027 के लिए कमर कस रहे हैं। इससे मंडल आयोग की सिफारिशों के बाद बने सामाजिक न्याय के विमर्श में एक और मोड़ आ सकता है।


नई कवायद से उन दलों की रणनीति तय हो सकती है या दोबारा बनाई जा सकती है जो उत्तर प्रदेश में एक कड़ी चुनावी लड़ाई की उम्मीद कर रहे हैं, जहां अगला विधानसभा चुनाव 2027 में होना है और जहां पिछले मिनी-सर्वेक्षणों में ओबीसी की आबादी 50% से अधिक बताई गई है। यह जाति गणना 2026 में कराई जा सकती है।


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहले 2023 में जाति आधारित सर्वेक्षण कराया था। अब उत्तर प्रदेश ऐसा करने वाला अगला राज्य बन सकता है, जहां ऐसे आंकड़े चुनावी रणनीतियों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं।


यह उल्लेख करना जरूरी है कि भारत के पहले ओबीसी जातिगत सर्वेक्षण की सिफारिश 1950 के दशक में तत्कालीन यूपी सरकार द्वारा गठित चिब्बर लाल सती समिति द्वारा की गई थी।


अब, जैसा कि सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी दल ओबीसी, एससी और मुस्लिम मतदाताओं के समर्थन के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, ऐसे सर्वेक्षणों से प्राप्त सामाजिक समूहों के डेटा का इस्तेमाल राज्य में चुनावी रणनीतियों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण को आकार देने के लिए किया जा सकता है।



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सती समिति


1975 में, चिब्बर लाल सती के नेतृत्व में गठित समिति ने राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की पहचान की। तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने समिति का गठन किया था। सती समिति ने 70 जातियों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत किया और राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपी।


समिति की सिफारिशों के आधार पर राज्य सरकार ने 27% आरक्षण की सिफारिश की थी। इसके तहत 14% आरक्षण ओबीसी को, 10% आरक्षण अनुसूचित जातियों को और 3% आरक्षण आर्थिक रूप से पिछड़े उच्च जातियों के लिए प्रस्तावित किया गया था। समिति ने यह भी सिफारिश की थी कि मुस्लिम पिछड़े वर्गों को भी ओबीसी कोटे में शामिल किया जाए। सती समिति की रिपोर्ट ने उत्तर प्रदेश में सामाजिक और राजनीतिक विमर्श को बदल दिया।



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हुकुम सिंह समिति


जून 2001 में, हुकुम सिंह की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई, जिसने इस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया कि ओबीसी कोटे के भीतर सबसे पिछड़े वर्गों (एमबीसी) को कैसे पहचाना जाए और उन्हें आरक्षण लाभ प्रदान किया जाए।


इस समिति का गठन तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने किया था। इसके पैनल ने ओबीसी और अनुसूचित जातियों के लाभों के वितरण में असमानता को उजागर किया और इन समुदायों के लिए सब-कोटा की सिफारिश की।


समिति ने सुझाव दिया कि आरक्षण की समीक्षा की जाए ताकि सबसे कमजोर समूहों को भी इसका लाभ मिल सके। इसने कहा कि 79 जातियों, जिनमें से अधिकांश ओबीसी और एससी समुदाय से थीं, को सरकारी नौकरियों में न्यूनतम प्रतिनिधित्व प्राप्त हुआ है।



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2001 में हुकुम सिंह समिति ने ओबीसी कोटे के भीतर सबसे पिछड़े वर्गों के लिए कोटा का मुद्दा उठाया।


सरकार ने समिति की रिपोर्ट के आधार पर सिफारिशों को लागू करने के लिए एक खाका तैयार किया। हालांकि, उच्च न्यायालय द्वारा इन सब-कोटा के कार्यान्वयन पर रोक लगाने के बाद यह मुद्दा अदालतों में चला गया।


2007 में, जब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव राज्य के मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को फिर से गठित किया और न्यायमूर्ति राम प्रसाद की अध्यक्षता में एक नया पैनल बनाया।


पैनल ने सुझाव दिया कि ओबीसी को तीन उप-श्रेणियों में विभाजित किया जाना चाहिए: A, B और C। यादव, अहिर, जाट, गुर्जर, कुर्मी, शाक्य और मौर्य जैसी प्रमुख ओबीसी जातियों को समूह C में रखा गया, जिन्हें सबसे अधिक लाभ मिला था। समूह A और B में उन जातियों को शामिल किया गया जिन्हें कम या बहुत कम लाभ मिला था।



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न्यायमूर्ति रघुवेन्द्र समिति


2018 में, योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक समिति का गठन किया जिसकी अध्यक्षता सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति रघुवेन्द्र कुमार ने की थी, ताकि राज्य में ओबीसी की स्थिति और उप-श्रेणियों पर विचार किया जा सके।


समिति ने सामाजिक और आर्थिक स्थिति, शिक्षा, सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व और अन्य संकेतकों के आधार पर ओबीसी के भीतर और अधिक विभाजन की सिफारिश की।



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मंडल की विरासत और यूपी में ओबीसी नेताओं की भूमिका


जातिगत जनगणना के परिणाम यूपी की राजनीति में व्यापक प्रभाव डाल सकते हैं, खासकर उस राज्य में जिसने मंडल राजनीति की कई परतों को देखा है।


मंडल युग ने राज्य में सामाजिक न्याय पर आधारित राजनीति को फिर से परिभाषित किया। इसने समाजवादी पार्टी के ओबीसी नेता मुलायम सिंह यादव को सशक्त किया और उनके बाद उनके बेटे अखिलेश यादव को लाभ हुआ।


जाति आधारित जनगणना और इसके राजनीतिक प्रभाव का समर्थन करने वाले ओबीसी नेताओं की एक पीढ़ी रही है। इनमें से कई नेता भाजपा, कांग्रेस, सपा, बीएसपी और अन्य दलों में शामिल हैं।


साल 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया था, लेकिन इसके कुछ नेताओं, जैसे कि केशव प्रसाद मौर्य और स्वतंत्र देव सिंह, ने जातीय गणना की मांगों का समर्थन किया है।



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सभी की निगाहें भाजपा के रुख पर


मंडल की राजनीति के उत्थान के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की राजनीति में नई जातीय परतें उभरीं।


हाल के वर्षों में कई ओबीसी नेताओं ने जातीय गणना की मांग को लेकर आवाज उठाई है। इनमें सुभासपा (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) प्रमुख ओम प्रकाश राजभर, निषाद पार्टी प्रमुख संजय निषाद, एनडीए सहयोगी अपना दल (एस) प्रमुख अनुप्रिया पटेल और एसपी सांसद राम गोपाल यादव शामिल हैं।


अब जबकि उत्तर प्रदेश जातिगत सर्वेक्षण के विचार पर गंभीरता से विचार कर रहा है, तो यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भाजपा इस पर क्या रुख अपनाती है, खासकर तब जब इसका एक बड़ा आधार ओबीसी समुदाय से आता है।


राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, यदि राज्य सरकार एक जातिगत जनगणना कराती है और यह साबित होता है कि ओबीसी की आबादी 50% से अधिक है, तो इससे चुनावी रणनीति और सामाजिक न्याय की राजनीति की दिशा बदल सकती है।



साभार   हिंदुस्तान टाइम्स आदरणीय संपादक प्रांशु मिश्रा जी

कल्याण सिंह कैंसर संस्थान में जल्द शुरू होगा तंबाकू निषेध परामर्श केंद्र

 

कल्याण सिंह कैंसर संस्थान में जल्द शुरू होगा तंबाकू निषेध परामर्श केंद्र

प्रलोभन का पर्दाफाश थीम पर आयोजित हुआ जागरूकता कार्यक्रम



विश्व तंबाकू निषेध दिवस 2025 के अवसर पर शुक्रवार को कल्याण सिंह विशिष्ट कैंसर संस्थान, लखनऊ में जनजागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस वर्ष की थीम “प्रलोभन का पर्दाफाश” रही। कार्यक्रम का उद्देश्य तंबाकू उत्पादों से होने वाले कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करना और यह संदेश देना था कि समय पर जांच और सही इलाज से कैंसर जैसी घातक बीमारी से बचा जा सकता है।


संस्थान के निदेशक प्रोफेसर मदन लाल ब्रह्मा भट्ट ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि पान मसाला, सुपारी, तंबाकू, खैनी, गुटखा आदि के सेवन से कैंसर होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। उन्होंने बताया कि 80 प्रतिशत कैंसर रोगी तंबाकू सेवन करने वाले होते हैं। उन्होंने तंबाकू और निकोटिन उद्योगों पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह कंपनियाँ जानबूझकर युवाओं को गुमराह कर उन्हें लत की ओर धकेल रही हैं। इनके भ्रामक विज्ञापन बच्चों और किशोरों को निशाना बनाते हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपनी युवा पीढ़ी को इन छलपूर्ण प्रचारों से बचाने के लिए एकजुट होना होगा।


प्रो. भट्ट ने घोषणा की कि संस्थान में शीघ्र ही एक तंबाकू निषेध परामर्श केंद्र (क्लिनिक) की शुरुआत की जाएगी, जो जनस्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत संचालित होगा।


कार्यक्रम का संयोजन डॉ. प्रमोद कुमार गुप्ता (किरण चिकित्सा विभाग) एवं डॉ. आयुष लोहिया (जनस्वास्थ्य विभाग) ने किया। अपने स्वागत भाषण में डॉ. लोहिया ने बताया कि भारत में हर चार में से एक व्यक्ति तंबाकू का सेवन करता है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्र में इसका प्रतिशत अधिक है। उन्होंने यह भी बताया कि 20 प्रतिशत कैंसर के मामले बिना धुएँ वाले तंबाकू, 10 प्रतिशत धूम्रपान और 3 प्रतिशत दोनों प्रकार के सेवन के कारण होते हैं। पान, सुपारी और कत्था जैसी वस्तुएँ भी मुख, मसूड़ों और तालू के कैंसर का कारण बन सकती हैं।


इस अवसर पर डॉ. विजेंद्र कुमार, डॉ. वरुण विजय, श्री रजनीकांत वर्मा सहित संस्थान के कई वरिष्ठ चिकित्सक, अधिकारी व संकाय सदस्य उपस्थित रहे।

एलडीए कॉलोनी सेक्टर-एल में सुंदरकांड व विशाल भंडारे का आयोजन, समाज के कई प्रमुख लोग रहे शामिल

 

एलडीए कॉलोनी सेक्टर-एल में सुंदरकांड व विशाल भंडारे का आयोजन, समाज के कई प्रमुख लोग रहे शामिल


लखनऊ। एलडीए कॉलोनी सेक्टर-एल में आज भव्य सुंदरकांड पाठ के उपरांत विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें क्षेत्र के सैकड़ों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। कार्यक्रम में सामाजिक समरसता और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिला।


इस आयोजन में कई प्रमुख लोग उपस्थित रहे और उन्होंने सक्रिय सहयोग भी किया। युवा नेता आयुष शुक्ला, ब्राह्मण समाज के नेता दुर्गेश पांडेय, युवा समाजसेवी पप्पू शुक्ला, समाजसेवी एवं पत्रकार विनय तिवारी, पत्रकार निशी त्रिवेदी, संजय गांधी पीजीआई के तकनीकी अधिकारी संजय प्रजापति, राहुल कुमार, अभिषेक पांडेय, अजय कुमार, नर्सिंग ऑफिसर शिखा पांडेय एवं नर्सिंग ऑफिसर विंध्यवासिनी जी, साधना मिश्रा  और  सभासद कमलेश सिंह,सहित कई अन्य गणमान्य नागरिकों ने कार्यक्रम में भाग लेकर आयोजन को सफल बनाने में योगदान दिया। भंडारे के आयोजन में मुख्य भूमिका मनीष अरोड़ा की रही उन्होंने बताया कि यह 12 वा भंडारा था। कॉलोनी के अध्यक्ष निगम जी, डॉ त्रिभुवन नारायण सिंह ,  त्रिपाठी जी, अखिलेश पांडे सहित अन्य का विशेष सहयोरहाहा


स्थानीय लोगों ने इस आयोजन की सराहना की और कहा कि ऐसे आयोजन सामाजिक एकता और आध्यात्मिक चेतना को मजबूत करने का कार्य करते हैं।

शुक्रवार, 30 मई 2025

पीजीआई एथलीटों की चोटों से सुरक्षा के लिए हेल्पलाइन

 

एथलीटों की चोटों से सुरक्षा के लिए हेल्पलाइन


जुड़ने वाले प्रतिभागियों को मिलेंगे पीजीआई मुफ्त स्वास्थ्य लाभ


खेलों में लगने वाली चोटें अक्सर एथलीटों के जीवन की दिशा ही बदल देती हैं। ये चोटें न केवल शारीरिक प्रदर्शन को बाधित करती हैं, बल्कि मानसिक तनाव और करियर पर भी गहरा असर डालती हैं। इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, संजय गांधी पीजीआई के हड्डी रोग विभाग के प्रो. पुलक शर्मा ने एक पहल की है, जिसका उद्देश्य चोटों की रोकथाम और खिलाड़ियों के स्वास्थ्य की रक्षा करना है।


यह परियोजना एक प्रतिष्ठित केंद्रीय अनुसंधान संस्था के सहयोग से चलाई जा रही है। इसमें पेशेवर और शौकिया दोनों तरह के एथलीटों की भागीदारी आमंत्रित की गई है। भाग लेने के लिए केवल 5 से 10 मिनट का एक ऑनलाइन फॉर्म भरना होता है।


खेल से जुड़ी चोटों के लिए यह एक समर्पित हेल्पलाइन है, जिसके माध्यम से एथलीट सीधे विशेषज्ञों से संपर्क कर सकते हैं।


हेल्पलाइन नंबर (केवल व्हाट्सऐप पर उपलब्ध):

 7068839655, 9151119382

ईमेल: orthohelpline.atc@gmail.com


अपेक्स ट्रॉमा सेंटर की डॉ. पलक ने बताया कि परियोजना से जुड़ने वाले प्रतिभागियों का निःशुल्क रजिस्ट्रेशन किया जाएगा और दो वर्षों तक किसी भी तरह की जांच निशुल्क की जाएगी।


इस पहल का उद्देश्य केवल डेटा संग्रहण नहीं है, बल्कि चोटों की रोकथाम के प्रति जागरूकता फैलाना है, जिससे भविष्य में हजारों एथलीटों का करियर और स्वास्थ्य सुरक्षित हो सके।


यदि आप एथलीट हैं – चाहे पेशेवर हों या खेल को शौकिया तौर पर खेलते हों – तो इस पहल का हिस्सा बनें और अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करें।

गुरुवार, 29 मई 2025

Medical Miracle at KGMU: 8-Year-Old Boy Battles Guillain-Barré Syndrome, Recovers After 75 Days of Hospitalization

 





Medical Miracle at KGMU: 8-Year-Old Boy Battles Guillain-Barré Syndrome, Recovers After 75 Days of Hospitalization

Two Months on Ventilator, Continuous Care and Prayers Turn the Tide



Doctors at King George’s Medical University (KGMU) have accomplished what seemed impossible — giving a new lease of life to 8-year-old Veer, son of Vivek Gupta from Vikas Nagar, Lucknow. A healthy, active child suddenly fell victim to a rare and severe autoimmune disorder known as Guillain-Barré Syndrome (GBS). Within days, he lost the ability to move his limbs and even had difficulty swallowing. On March 13, Veer was rushed to KGMU, marking the beginning of a long and courageous fight for survival.


A Dangerous Disease: When the Body Turns Against Itself


According to ICU in-charge Prof. Vipin Singh, Guillain-Barré Syndrome is a rare and acute neurological disorder where the body’s immune system mistakenly attacks its own nerves. This leads to progressive muscle weakness and in many cases, paralysis. Often triggered by a preceding viral infection, the symptoms of GBS can quickly escalate, affecting mobility, respiration, and heart function.


When Veer was admitted, he was conscious, but his body had started shutting down. Breathing became difficult, and even swallowing food was a challenge. Doctors immediately placed him on a ventilator and began intensive care.


Two Months on Ventilator: A Delicate Battle Against Time and Infection


Staying on a ventilator for almost 60 days is itself a major challenge. During this period, not only is constant respiratory support required, but the risk of infections increases manifold. Prof. Vipin Singh explained that the anesthesia team led by Prof. Monika Kohli played a pivotal role in managing Veer’s critical condition with precise coordination.


Physiotherapy also proved crucial in the recovery process. Veer was given continuous muscle stimulation therapy to prevent long-term damage. The dedicated efforts of Dr. Nishchay, Dr. Saurabh, Dr. Aradhana, and Dr. Shoma, alongside compassionate care from nursing staff Nishtha and Mamta, created a nurturing and healing environment.


Immunoglobulin Therapy: The Turning Point


To combat this life-threatening condition, doctors administered immunoglobulin therapy, considered one of the most effective treatments for GBS. This therapy helps suppress the immune system's misguided attacks on the nervous system. Timely intervention with this therapy, combined with relentless medical attention, not only saved Veer’s life but led to his full recovery.


Discharge on Friday: A Triumph of Teamwork and Hope


After 75 grueling days, including two months on life support, Veer is now fully conscious, mobile, and ready to return home. He will be discharged on Friday, a moment of joy and relief for his family and the entire medical team. While he may require ongoing physiotherapy and follow-ups, he is expected to lead a normal life once again.


Recognizing the Symptoms Early Can Save Lives


Doctors urge awareness about early symptoms of Guillain-Barré Syndrome. Warning signs include tingling or numbness in the hands and feet, progressive weakness in the limbs, difficulty walking, breathing troubles, facial muscle weakness, and swallowing difficulties. The disorder often develops after a viral infection but is not contagious. Early detection and prompt medical intervention are essential.




A Victory for Humanity and Medical Science


Veer’s journey is not just a story of a child’s survival; it is a testament to the power of modern medicine, the commitment of healthcare professionals, and the strength of hope. This success at KGMU demonstrates that with expertise, determination, and compassion, even the most daunting medical battles can be won.



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गुएलन-बैरे सिंड्रोम से दो महीने वेंटिलेटर पर रहे आठ वर्षीय वीर को मिला नया जीवन

 








केजीएमयू में चिकित्सकीय चमत्कार: गुएलन-बैरे सिंड्रोम से दो महीने वेंटिलेटर पर रहे आठ वर्षीय वीर को मिला नया जीवन

75 दिन लंबा संघर्ष, विशेषज्ञों की मेहनत और माता-पिता की दुआएं बनीं ताक़त



किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के डॉक्टरों ने असंभव को संभव कर दिखाया है। विकास नगर निवासी विवेक गुप्ता के आठ वर्षीय बेटे वीर को एक बेहद गंभीर ऑटोइम्यून बीमारी गुएलन-बैरे सिंड्रोम (Guillain-Barré Syndrome – GBS) ने अचानक जकड़ लिया था। एक सामान्य स्वस्थ बच्चा देखते ही देखते लकवाग्रस्त हो गया। हाथ-पैर ने काम करना बंद कर दिया, यहां तक कि निगलने में भी परेशानी होने लगी। इस स्थिति में परिजन बच्चे को लेकर 13 मार्च को केजीएमयू पहुंचे, जहाँ से वीर के जीवन की सबसे कठिन लड़ाई की शुरुआत हुई।


बीमारी की गंभीरता: शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली बन गई दुश्मन


आईसीयू के प्रभारी प्रो. विपिन सिंह के अनुसार, गुएलन-बैरे सिंड्रोम एक दुर्लभ और तीव्र न्यूरोलॉजिकल विकार है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली खुद ही नसों पर हमला करने लगती है। इससे मांसपेशियाँ धीरे-धीरे कमजोर हो जाती हैं और लकवे जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। जीबीएस आमतौर पर किसी वायरल संक्रमण के बाद शुरू होता है, लेकिन इसके लक्षण धीरे-धीरे गंभीर रूप ले सकते हैं।


वीर को जब भर्ती किया गया, तब वह पूरी तरह होश में था लेकिन शरीर ने उसका साथ छोड़ना शुरू कर दिया था। उसे सांस लेने में कठिनाई होने लगी और निगलने में भी दिक्कत आ रही थी। इन स्थितियों को देखते हुए तत्काल उसे वेंटिलेटर पर रखा गया और गहन चिकित्सकीय निगरानी शुरू हुई।


दो महीने वेंटिलेटर पर, संक्रमण का खतरा और सतत देखभाल


लगभग 60 दिन वेंटिलेटर पर रहना अपने आप में एक बड़ी चुनौती होती है। इस दौरान न सिर्फ सांस की सहायता दी जाती है, बल्कि संक्रमण का खतरा भी लगातार बना रहता है। प्रो. विपिन सिंह के अनुसार, इस पूरी अवधि में एनेस्थेसिया विभाग की प्रो. मोनिका कोहली और उनकी टीम ने बेहतरीन समन्वय के साथ वीर की स्थिति को नियंत्रित किया।


फिजियोथेरेपी की भी अहम भूमिका रही। इलाज के दौरान उसे लगातार मांसपेशियों की गतिविधि बनाए रखने के लिए फिजियोथेरेपी दी जाती रही। डॉ. निश्चय, डॉ. सौरभ, डॉ. आराधना और डॉ. शोमा की टीम ने अत्यंत निष्ठा से कार्य किया। इस दौरान नर्सिंग स्टाफ निष्ठा और ममता की देखभाल ने भी पूरे इलाज को मानवीय संवेदना के साथ जोड़े रखा।


इम्यूनोग्लोबुलिन थेरेपी बनी वरदान


इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए वीर को इम्यूनोग्लोबुलिन थेरेपी दी गई, जो इस रोग के लिए सबसे प्रभावी उपचार मानी जाती है। यह थेरेपी शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करती है और नसों पर हमले को रोकती है। सही समय पर दी गई यह थेरेपी और चिकित्सा टीम की सतत मेहनत ने बच्चे को न केवल बचाया, बल्कि उसे पूर्णतः स्वस्थ किया।


शुक्रवार को मिलेगा छुट्टी, डॉक्टरों की मेहनत का नतीजा


75 दिनों के कठिन संघर्ष के बाद अब वीर पूरी तरह से स्वस्थ है और शुक्रवार को उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी। डॉक्टरों का कहना है कि वह अब सामान्य जीवन जी सकता है, लेकिन कुछ समय तक नियमित फॉलो-अप और फिजियोथेरेपी जारी रहेगी।


लक्षणों की समय पर पहचान है जरूरी


डॉक्टरों ने यह भी बताया कि गुएलन-बैरे सिंड्रोम के प्रारंभिक लक्षणों को पहचानना बहुत जरूरी है, क्योंकि समय पर इलाज ही इस बीमारी से बचाव और पुनर्प्राप्ति की कुंजी है। यदि किसी बच्चे या व्यक्ति को हाथ-पैर में झुनझुनी, सुन्नता, चलने में कठिनाई, सांस लेने में दिक्कत, निगलने में परेशानी या चेहरे की मांसपेशियों में कमजोरी हो, तो तुरंत अस्पताल जाना चाहिए।





मानवता और चिकित्सा विज्ञान की जीत


वीर की कहानी सिर्फ एक बच्चे की नहीं, बल्कि आधुनिक चिकित्सा, समर्पित डॉक्टरों और उम्मीदों के एकजुट प्रयास की मिसाल है। केजीएमयू की यह सफलता यह बताती है कि जब इच्छाशक्ति और विशेषज्ञता साथ होती है, तो सबसे कठिन जंग भी जीती जा सकती है


शनिवार, 24 मई 2025

thyroid medications should never be discontinued without medical advice

 

CME Organized at SGPGI on World Thyroid Day

Thyroid Hormone Imbalance Can Lead to Fatigue, Depression, and Infertility


The Department of Endocrinology at Sanjay Gandhi Postgraduate Institute of Medical Sciences (SGPGI), in collaboration with the College of Nursing, organized a comprehensive Continuing Medical Education (CME) program on the occasion of World Thyroid Day. The event was held at the Nursing College Auditorium located in the Advanced Diabetes Center.


The program commenced with a welcome address by the Head of Department, Prof. Dr. Subhash B. Yadav. During the event, Dr. Shivendra Verma, Dr. Bibhuti, and Prof. Vijay Lakshmi provided detailed insights into thyroid-related disorders. Expert sessions were conducted as part of the CME, where Dr. Ayushi Singhal, Dr. Prashant, Dr. Nirupama, and Dr. Sangeeta discussed topics such as hyperthyroidism, hypothyroidism, thyroid disorders during pregnancy, and neonatal screening.


Experts emphasized that thyroid medications should never be discontinued without medical advice. Similarly, the dosage of the medication should not be increased or decreased on one’s own.


Thyroid hormones, secreted by the thyroid gland, regulate metabolism, and their imbalance can lead to various health issues. Hypothyroidism and hyperthyroidism particularly affect women and pregnant women.


The event saw the special participation of SGPGI Director Prof. R.K. Dhiman, Dean Dr. Shaleen Kumar, and Principal of the Nursing College Dr. Radha K.


SGPGI Experts Emphasize the Role of Nutrition and Diet Therapy in Managing Lifestyle Diseases

 

Clinical Nutrition Update Organized at SGPGI

Experts Emphasize the Role of Nutrition and Diet Therapy in Managing Lifestyle Diseases


Lucknow –

A “Clinical Nutrition Update” program was organized under the joint aegis of the Department of Nutrition at Sanjay Gandhi Postgraduate Institute of Medical Sciences (SGPGI), the Indian Association for Parenteral and Enteral Nutrition, and the Poshan Dhara Association. Experts at the event highlighted the importance of controlling GERD (Gastroesophageal Reflux Disease), obesity, and metabolic disorders through nutrition and lifestyle modifications.


Professor Anshuman Elhence from the Department of Gastroenterology stated that GERD is a common but serious condition that cannot be managed solely with medication. He emphasized that a balanced diet and improved lifestyle are essential for prevention. Prof. Elhence advised patients to avoid oily, spicy, and acidic foods, refrain from lying down for at least two hours after meals, use elevated pillows while sleeping, and avoid tobacco and alcohol. He identified obesity as a major cause of GERD.


Prof. V.K. Paliwal from the Department of Neurology highlighted the benefits of the ketogenic diet and intermittent fasting. He explained that methods such as the “16:8 fasting” regimen, consuming low-calorie meals twice a week, and following a ketogenic diet not only help with weight loss but are also effective in managing metabolic syndrome and type 2 diabetes. He noted that during a ketogenic diet, the body uses fat as an energy source, which has shown benefits for neurological disorders as well.


Pediatrician Dr. P. Bhattacharya provided insights into constipation issues among children.


On this occasion, Dr. Prerna Kapoor and program organizer Dr. Rama Tripathi expressed concern over the rising obesity rates in India. They shared that around 135 million people in the country are affected by obesity, with one in four adults and one in five urban children suffering from the condition. This issue not only leads to diabetes and heart disease but also impacts mental health.


SGPGI Director Prof. R.K. Dhiman, Prof. MLB Bhatt, and Prof. LK Bharti advocated for the revival of traditional dietary practices. The event witnessed the participation of a large number of doctors, officials, and staff members.


थायराइड की दवा कभी भी अपने आप बंद नहीं करनी चाहिए।

 

विश्व थायराइड दिवस पर एसजीपीजीआई में सीएमई का आयोजन


थायराइड हार्मोन के असंतुलन से थकान, अवसाद व बांझपन जैसी समस्याएं


 संजय गांधी पीजीआई के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग ने नर्सिंग कॉलेज के सहयोग से विश्व थायराइड दिवस के अवसर पर एक व्यापक सतत चिकित्सा शिक्षा  कार्यक्रम आयोजित किया। यह आयोजन एडवांस्ड डायबिटीज सेंटर स्थित नर्सिंग कॉलेज ऑडिटोरियम में संपन्न हुआ।


कार्यक्रम की शुरुआत विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. सुभाष बी. यादव के स्वागत भाषण से हुई। आयोजन में डॉ. शिवेंद्र वर्मा और डॉ. बिभूति, प्रो विजय लक्ष्मी ने थायराइड बीमारी के बारे में जानकारी  दी।  सीएमई के दौरान थायराइड विकारों पर विशेषज्ञ सत्र आयोजित किए गए, जिनमें डॉ. आयुषी सिंघल, डॉ. प्रशांत, डॉ. निरुपमा और डॉ. संगीता ने हाइपरथायरायडिज्म, हाइपोथायरायडिज्म, गर्भावस्था में थायराइड विकार और नवजात स्क्रीनिंग जैसे विषयों पर प्रकाश डाला। विशेषज्ञों ने बताया कि थायराइड की दवा कभी भी अपने आप     बंद नहीं करनी चाहिए। दवा की मात्रा कभी भी अपने आप काम या अधिक नहीं करनी चाहिए। 


थायराइड ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करते हैं, और इनके असंतुलन से शरीर में कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायरायडिज्म विशेषकर महिलाओं और गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करते हैं।


कार्यक्रम में संस्थान के निदेशक प्रो. आर. के. धीमन, डीन डॉ. शालीन कुमार और नर्सिंग कॉलेज की प्राचार्या डॉ. राधा के ने विशेष सहभागिता निभाई।

जीवनशैली रोगों के नियंत्रण में पोषण और डाइट थेरेपी की भूमिका को बताया अहम

 

पीजीआई में क्लीनिकल न्यूट्रिशन अपडेट का आयोजन

विशेषज्ञों ने जीवनशैली रोगों के नियंत्रण में पोषण और डाइट थेरेपी की भूमिका को बताया अहम


लखनऊ

 संजय गांधी  पीजीआई के पोषण विभाग, इंडियन एसोसिएशन फॉर पैरेन्टेरल एंड एंटरल न्यूट्रिशन, और पोषण धारा एसोसिएशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “क्लीनिकल न्यूट्रिशन अपडेट” कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने पोषण और जीवनशैली में बदलाव के ज़रिए जीईआरडी, मोटापा और मेटाबोलिक रोगों के प्रभावी नियंत्रण की आवश्यकता पर बल दिया।


कार्यक्रम में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रो. अंशुमान एल्हेंस ने बताया कि गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज (जीईआरडी) एक आम लेकिन गंभीर समस्या है, जिसकी रोकथाम केवल दवाओं से नहीं, बल्कि संतुलित आहार और जीवनशैली में सुधार से संभव है। उन्होंने मरीजों को तैलीय, मसालेदार और अम्लीय खाद्य पदार्थों से परहेज, भोजन के बाद कम से कम दो घंटे तक न सोने, ऊँचा तकिया इस्तेमाल करने और तंबाकू-शराब से दूरी बनाए रखने की सलाह दी। प्रो. एल्हेंस ने मोटापे को जीईआरडी का प्रमुख कारण बताया।


न्यूरोलॉजी विभाग के प्रो. वीके पालीवाल ने कीटोजेनिक डाइट और इंटरमिटेंट फास्टिंग के लाभों को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि "16:8 फास्टिंग", सप्ताह में दो दिन कम कैलोरी वाला आहार और कीटोजेनिक डाइट जैसे उपाय न केवल मोटापे में राहत देते हैं, बल्कि मेटाबोलिक सिंड्रोम और टाइप-2 डायबिटीज़ में भी कारगर हैं। उन्होंने समझाया कि कीटोजेनिक डाइट के दौरान शरीर फैट को ऊर्जा के रूप में उपयोग करता है, जिससे मस्तिष्क संबंधी विकारों में भी लाभ देखा गया है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ पी भट्टाचार्य ने बच्चों में कब्ज की परेशानी पर जानकारी दी। 


इस अवसर पर डॉ. प्रेरणा कपूर और कार्यक्रम की आयोजक डॉ. रमा त्रिपाठी ने भारत में बढ़ते मोटापे पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि देश में करीब 13.5 करोड़ लोग मोटापे से ग्रस्त हैं। हर चार में से एक वयस्क और पाँच में से एक शहरी बच्चा इस समस्या का शिकार है। इससे न केवल डायबिटीज और हृदय रोग, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ पी भट्टाचार्य ने बच्चों में कब्ज के परेशानी पर जानकारी दी। 


कार्यक्रम में पीजीआई निदेशक प्रो. आरके धीमन, प्रो. एमएलबी भट्ट और प्रो. एलके भारती ने पुरातन आहार प्रणाली को अपनाने की अपील की। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में चिकित्सक, अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित रहे।

बुधवार, 21 मई 2025

Rajiv Gandhi: A Reluctant Politician, A Transformative Leader







Rajiv Gandhi: A Reluctant Politician, A Transformative Leader


On 21 May 1991, Rajiv Gandhi was assassinated. He was a man born into a family deeply entrenched in Indian politics — his great-grandfather, grandfather, father, mother, and brother were all political figures — yet he himself never wished to enter politics.


Rajiv Gandhi was the grandson of India’s first Prime Minister Pandit Jawaharlal Nehru, and the elder son of Prime Minister Indira Gandhi and Feroze Gandhi. His younger brother, Sanjay Gandhi, was already active in politics and served as a Member of Parliament from Amethi. Rajiv, on the other hand, was content with his job as a professional pilot.


Early Life and Education


Born on 20 August 1944 in Bombay, Rajiv Gandhi had little interest in politics. In 1966, he joined Indian Airlines as a pilot. He received his early education at Welham Boys' School and later at The Doon School in Dehradun. For higher studies, he went to the United Kingdom, where he met Edvige Antonia Albina Maino, an Italian student. They got married in 1968, and she became known as Sonia Gandhi. The couple had two children: Rahul Gandhi and Priyanka Gandhi.


Entry into Politics


After Indira Gandhi lost power in 1977, Rajiv went abroad for a while. However, destiny had other plans. In 1980, following the tragic death of his brother Sanjay Gandhi in a plane crash, Rajiv joined politics to support his grieving mother. He won the by-election from Amethi and became a Member of Parliament.


Becoming Prime Minister


After Indira Gandhi’s assassination on 31 October 1984, Rajiv Gandhi was swiftly appointed as Prime Minister of India. In the December 1984 elections, the Congress Party secured a massive victory, winning 401 out of 542 seats — the highest ever. It was also the first election where the Bharatiya Janata Party (BJP) participated, winning only 2 seats.


Contributions and Reforms


Rajiv Gandhi's tenure is remembered for ushering in the era of computerization and telecommunications in India. His government reduced the voting age from 21 to 18, aiming to increase youth participation in democracy. He believed that the development of villages was key to India's progress and launched the Panchayati Raj system, bringing governance to the grassroots.


In 1986, he announced the National Education Policy, leading to the establishment of Jawahar Navodaya Vidyalayas across the country.


Controversies


Despite his achievements, Rajiv Gandhi's term was marred by controversies. The Shah Bano case was a major issue where he reversed a Supreme Court judgment to appease the Muslim community, causing national debate.


Another major scandal was the Bofors scam, where it was alleged that Indian officials received kickbacks in a defense deal with Sweden. The exposure led to massive political fallout. His Defense Minister V.P. Singh resigned and eventually led the opposition to form a new party, Janata Dal, which significantly contributed to the downfall of Rajiv’s government in 1989.


The Sri Lanka Conflict and Assassination


Rajiv Gandhi faced criticism for sending the Indian Peace Keeping Force (IPKF) to Sri Lanka to mediate in the civil conflict. This move angered the Liberation Tigers of Tamil Eelam (LTTE), a Tamil militant organization.


On 21 May 1991, while campaigning in Sriperumbudur, Tamil Nadu, Rajiv Gandhi was approached by a woman named Dhanu, who was associated with the LTTE. As she bent to touch his feet, she detonated a belt packed with RDX explosives, killing Rajiv Gandhi and 14 others on the spot. The attack shocked the entire nation and left many injured.


Rajiv Gandhi died at the young age of 46, making him the youngest Prime Minister in India’s history. His legacy is marked by both significant achievements and complex controversies.


Had he been alive today, he would have been 81 years old.




राजीव गांधी कम्प्यूटराईजेशन और टेलीकम्यूनिकेशन क्रांति

 




राजीव गांधी की पुण्यतिथि: देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री की कहानी, जहां सपनों की उड़ान को सियासत ने रोक दिया


21 मई 1991... एक ऐसा दिन जब भारत ने अपने सबसे युवा प्रधानमंत्री को खो दिया। सिर्फ 46 वर्ष की उम्र में आत्मघाती हमले का शिकार बने राजीव गांधी एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनकी पहचान एक पायलट के रूप में शुरू हुई और नियति ने उन्हें देश की बागडोर सौंप दी।

राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 को बंबई में हुआ। वे भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नाती, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के पुत्र थे। परिवार की राजनीतिक विरासत के बावजूद राजीव राजनीति से दूर रहना चाहते थे और 1966 में इंडियन एयरलाइंस में पायलट के रूप में काम शुरू किया।

राजीव गांधी की शिक्षा देहरादून के वेल्हेम्स और दून स्कूल में हुई। फिर उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैंड गए, जहां उनकी मुलाकात इतालवी छात्रा एडविज एंटोनिया अल्बिना माइनो से हुई, जो बाद में सोनिया गांधी बनीं।

राजनीति में उनकी शुरुआत 1980 में हुई, जब छोटे भाई संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मृत्यु के बाद उन्हें मां इंदिरा गांधी ने अमेठी से उपचुनाव लड़ने के लिए राजी किया।

31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने। उसी वर्ष कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत के साथ 401 सीटें जीतकर इतिहास रचा। राजीव गांधी ने देश में कंप्यूटर, टेलीकॉम, शिक्षा और पंचायत स्तर पर क्रांति की शुरुआत की। युवाओं के लिए मतदान की उम्र घटाकर 18 वर्ष करना और नवोदय विद्यालयों की स्थापना उनके बड़े फैसलों में शामिल हैं।

लेकिन उनका कार्यकाल विवादों से भी अछूता नहीं रहा। शाह बानो केस, बोफोर्स तोप सौदा और श्रीलंका में लिट्टे के खिलाफ भारतीय शांति सेना भेजना उन्हें घेरने वाले प्रमुख मुद्दे बने। बोफोर्स विवाद ने उनकी लोकप्रियता को गहरा धक्का दिया और 1989 में सत्ता हाथ से निकल गई।

21 मई 1991 को चुनाव प्रचार के दौरान तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में लिट्टे की आत्मघाती हमलावर धनु ने उनके करीब पहुंचकर विस्फोट कर दिया, जिसमें राजीव गांधी समेत 14 लोगों की जान चली गई।

राजीव गांधी की जीवन यात्रा हमें यह दिखाती है कि एक आम नागरिक से देश का सर्वोच्च नेता बनने की राह कितनी अप्रत्याशित और जोखिम भरी हो सकती है।

आज उनकी पुण्यतिथि पर देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है – एक नेता, जो तकनीक, युवा और ग्रामीण भारत को आगे ले जाना चाहता था, लेकिन जिसकी यात्रा अधूरी रह गई।



"Why would anyone join a government medical college with a salary that is ₹30,000 less?"

 


"Why would anyone join a government medical college with a salary that is ₹30,000 less?"


Filling faculty positions in Uttar Pradesh’s government medical colleges has become a major challenge for the Department of Medical Education. Despite offering preferred postings to selected Assistant Professors, most are reluctant to join.


Key Highlights:


Low Turnout for Counseling:

Out of 43 selected Assistant Professors called for counseling on Tuesday, only 8 turned up.


Major Absenteeism Identified:

An April review found that 87 selected candidates had not yet joined. Fresh counseling was held on May 20–21 to encourage them with location choices.


Counseling Results (May 20):


5 chose BRD Medical College, Gorakhpur


1 each opted for Prayagraj, Jhansi, and Kanpur



Main Reasons for Reluctance:


Lack of resources and lower salary in state medical colleges


Institutions like KGMU, SGPGI, and RMLIMS offer up to ₹30,000 higher salary, better research opportunities, and modern infrastructure


Complaints about political interference and inadequate facilities in many government colleges



Government's Appeal:

Deputy CM Brajesh Pathak urged doctors to see this not just as a job but as a service opportunity to contribute to state healthcare development


Next Steps:

Another 44 Assistant Professors are called for counseling on Wednesday. If they also refuse to join, a final list will be prepared for further action.



> Conclusion:

Mere selection is not enough. Providing competitive facilities and a conducive work environment is essential to attract and retain qualified professionals in public service.




30000 कम वेतन तो क्यों ज्वाइन करेंगे सरकारी मेडिकल कॉलेज में नौकरी





 मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी की भर्ती बनी चुनौती, मनचाही तैनाती के बावजूद नहीं मिल रही सहमति

वेतन-भत्तों और संसाधनों की कमी से चिकित्सक उदासीन, पहले दिन 43 में से सिर्फ 8 विशेषज्ञ पहुंचे काउंसिलिंग में


प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी पदों को भरना चिकित्सा शिक्षा विभाग के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। लोक सेवा आयोग से चयनित असिस्टेंट प्रोफेसरों को मनचाही तैनाती की पेशकश के बावजूद वे कार्यभार ग्रहण करने से कतरा रहे हैं। मंगलवार को काउंसिलिंग के लिए बुलाए गए 43 में से सिर्फ आठ विशेषज्ञ ही पहुंचे।


चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय ने अप्रैल में जांच कराई थी, जिसमें पता चला कि चयनित 87 असिस्टेंट प्रोफेसरों ने अब तक कार्यभार नहीं ग्रहण किया है। इसके बाद 20 और 21 मई को दोबारा काउंसिलिंग आयोजित की गई है ताकि उन्हें उनकी पसंद के कॉलेजों में नियुक्ति दी जा सके। मंगलवार को हुई काउंसिलिंग में सिर्फ आठ विशेषज्ञ ही आए, जिनमें से पांच ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर, जबकि प्रयागराज, झांसी और कानपुर के लिए एक-एक ने सहमति दी।


मुख्य वजह: संसाधनों की कमी और वेतन में अंतर

कार्यभार ग्रहण न करने वाले असिस्टेंट प्रोफेसरों का कहना है कि केजीएमयू, एसजीपीजीआई और लोहिया संस्थान जैसे प्रतिष्ठानों की तुलना में सरकारी मेडिकल कॉलेजों में वेतन-भत्ते व संसाधनों की भारी कमी है। इन संस्थानों में करीब 30 हजार रुपये अधिक वेतन, बेहतर शोध सुविधाएं और तकनीकी उन्नयन के अधिक अवसर मिलते हैं। वहीं, राजकीय और स्वशासी मेडिकल कॉलेजों में सुविधाओं का अभाव और राजनीतिक हस्तक्षेप ज्यादा होने की बात कही जा रही है।


सरकार की अपील: इसे सिर्फ नौकरी नहीं, सेवा समझें

राज्य सरकार का कहना है कि वह फैकल्टी सदस्यों के हितों को लेकर गंभीर है और संसाधनों में सुधार किए जा रहे हैं। उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने अपील की कि असिस्टेंट प्रोफेसर इसे सिर्फ नौकरी के रूप में न देखें, बल्कि प्रदेश के स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास में योगदान के अवसर के रूप में स्वीकार करें।


अंतिम सूची बनेगी

बुधवार को 44 अन्य असिस्टेंट प्रोफेसरों को काउंसिलिंग के लिए बुलाया गया है। चिकित्सा शिक्षा विभाग के अनुसार, यदि वे भी कार्यभार ग्रहण नहीं करते हैं तो अंतिम सूची तैयार की जाएगी और उसके अनुसार आगे की कार्रवाई की जाएगी।


यह स्थिति दर्शाती है कि केवल चयन पर्याप्त नहीं है, बल्कि बेहतर सुविधाएं और अनुकूल कार्य वातावरण देना भी उतना ही जरूरी है, जिससे योग्य विशेषज्ञ राज्य की सेवा में आ सकें।


रविवार, 18 मई 2025

PGI Experts from Five Departments Bring Relief to Narendra's Family

 

PGI Experts from Five Departments Bring Relief to Narendra's Family

Modern diagnostic tools and clinical experience offer timely relief to patients


Voice gradually faded, fear replaced worry

By Kumar Sanjay, Lucknow


Life came to a standstill for 74-year-old Narendra Kumar, a resident of Kohugada village in Sant Kabir Nagar district, about a month ago. His voice had started to weaken gradually. Initially, the family thought it was a minor infection. However, after consulting several doctors without any improvement, worry gave way to fear.


An endoscopy of the throat revealed a lump beneath the voice box. Based on its appearance and symptoms, doctors feared it could be cancer—a diagnosis that struck the rural family like a bolt of lightning.


A team of specialists from five departments at Sanjay Gandhi Postgraduate Institute of Medical Sciences (SGPGI) came together to assess the case using advanced technology and extensive clinical experience. The team included Prof. Amit Keshari (Neuro-Otology), Prof. Vikas Agarwal (Clinical Immunology), Prof. Zafar Niyaz (Radiology), Prof. Manish Ora (Nuclear Medicine), and Prof. Manoj Jain (Histopathology).


According to the specialists, treatment could not proceed without first identifying the nature of the lump. The initial biopsy revealed hyperplasia—an abnormal increase in cell growth. While cancer was not confirmed, the suspicion remained. This led to a plan for a CT-guided biopsy and a PET (Positron Emission Tomography) scan.


Given the sensitive location of the lump, Prof. Zafar Niyaz conducted the biopsy with special care, and the PET scan was performed under the supervision of Prof. Manish Ora.


The reports brought unexpected relief—it was not cancer but an autoimmune condition. This news brought a wave of joy and hope to Narendra’s family. Not only did the experts identify the correct diagnosis, but they also initiated treatment to restore his voice and overall health.


According to the doctors, even if it had been cancer, it was at an early stage and could have been effectively treated with radiotherapy. Conditions like this are often linked to autoimmune diseases such as sarcoidosis, which is why a thorough investigation of every symptom is critical.


Narendra’s son, Anurag, said, “The past month felt like a mountain we had to climb, but the PGI team gave us strength and hope.”


Experts emphasize that timely diagnosis and awareness are crucial to saving lives. Whether it's cancer or another complex condition, the earlier the treatment begins, the greater the chances of success.


पीजीआई के पांच विभागों के विशेषज्ञों ने लौटाई नरेंद्र के परिवार में मुस्कान

 



पीजीआई के पांच विभागों के विशेषज्ञों ने लौटाई नरेंद्र के परिवार में मुस्कान

आधुनिक जांच तकनीक और अनुभव से मरीजों को मिल रही राहत
धीरे-धीरे दबने लगी आवाज, चिंता ने डर का रूप लिया

कुमार संजय, लखनऊ

संत कबीर नगर जिले के ग्राम कोहूगाड़ा निवासी 74 वर्षीय नरेंद्र कुमार की जिंदगी एक महीने पहले थम-सी गई थी। उनकी आवाज़ धीरे-धीरे दबने लगी थी। परिवार ने सोचा, यह सामान्य संक्रमण है, लेकिन कई डॉक्टरों को दिखाने के बावजूद राहत नहीं मिली, तो चिंता डर में बदल गई।

गले की एंडोस्कोपी में वॉइस बॉक्स के नीचे गांठ का पता चला। गांठ की स्थिति और लक्षणों को देखकर डॉक्टरों ने कैंसर की आशंका जताई। यह खबर नरेंद्र के ग्रामीण परिवार पर बिजली बनकर गिरी।

संजय गांधी पीजीआई के पांच विभागों के विशेषज्ञों ने आधुनिक तकनीक और अनुभव से इस केस की गंभीरता को समझा। इसमें प्रो. अमित केशरी (न्यूरो ओंटोलॉजी), प्रो. विकास अग्रवाल (क्लीनिक इम्यूनोलॉजी), प्रो. जफर नियाज़ (रेडियोलॉजी), प्रो. मनीष ओरा (न्यूक्लियर मेडिसिन) और प्रो. मनोज जैन (हिस्टोपैथोलॉजी) शामिल रहे।

विशेषज्ञों के मुताबिक गांठ की प्रकृति स्पष्ट किए बिना इलाज संभव नहीं था। शुरुआती बायोप्सी में हाइपरप्लासिया मिला — यानी कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि। हालांकि कैंसर की पुष्टि नहीं हुई, लेकिन आशंका बनी रही, जिसके चलते सीटी-गाइडेड बायोप्सी और पॉज़िट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी (पेट) स्कैन की योजना बनाई गई।

गांठ की संवेदनशील स्थिति को देखते हुए प्रो. जफर नियाज़ ने विशेष सतर्कता के साथ बायोप्सी की और प्रो. मनीष ओरा के निर्देशन में पेट स्कैन कराया गया।

रिपोर्ट में सामने आया कि यह कैंसर नहीं, बल्कि एक प्रकार की ऑटोइम्यून बीमारी है। यह खबर पूरे परिवार के लिए राहत लेकर आई। विशेषज्ञों ने न सिर्फ बीमारी की पहचान की, बल्कि नरेंद्र की आवाज और सेहत बहाल करने का इलाज भी शुरू कर दिया।

विशेषज्ञों के अनुसार अगर यह कैंसर होता, तो भी यह प्रारंभिक अवस्था में था और केवल रेडियोथेरेपी से ठीक किया जा सकता था। ऐसी बीमारियां सारकॉइडोसिस जैसे ऑटोइम्यून रोगों से जुड़ी हो सकती हैं, इसलिए हर पहलू की जांच जरूरी है।

नरेंद्र के बेटे अनुराग ने कहा, “पिछला एक महीना हमारे लिए पहाड़ जैसा था, लेकिन पीजीआई टीम ने हमें हौसला दिया।”

विशेषज्ञ मानते हैं कि समय पर इलाज और जागरूकता से ही जिंदगियां बच रही हैं। चाहे कैंसर हो या कोई और जटिलता — जितनी जल्दी इलाज शुरू हो, सफलता की संभावना उतनी अधिक होती है

शनिवार, 17 मई 2025

50 फ़ीसदी को नहीं पता कि वह है हाई बीपी के शिकार










 एसजीपीजीआई लखनऊ में विश्व उच्च रक्तचाप दिवस पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित



संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई), लखनऊ में विश्व उच्च रक्तचाप दिवस के अवसर पर एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की थीम थी—"उच्च रक्तचाप आपके दरवाजे पर दस्तक दे सकता है, लेकिन यह आपकी पसंद है कि आप इसे अंदर आने दें या नहीं।"


यह आयोजन अस्पताल प्रशासन, कार्डियोलॉजी और सामान्य अस्पताल विभागों के संयुक्त प्रयास से हुआ। मुख्य अतिथियों में प्रो. देवेंद्र गुप्ता (सीएमएस), डॉ. आदित्य कपूर (कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष), डॉ. पियाली भट्टाचार्य, डॉ. अंकित साहू और डॉ. सौरभ सिंह अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर राजेश हर्षवर्धन रहे।


कार्डियोलॉजी की सहायक प्रोफेसर डॉ. अर्पिता कठेरिया ने "उच्च रक्तचाप को समझना: साइलेंट किलर" विषय पर व्याख्यान दिया, जिसमें इसकी गंभीरता, लक्षणहीनता और नियंत्रण के उपायों पर जानकारी दी गई।

बताया कि लगातार बीपी बढ़े होने पर किडनी खराब हो सकती है ब्रेन स्ट्रोक हो सकता है और हार्ट अटैक भी पड़ सकता है

कार्यक्रम के अंत में एक प्रश्नोत्तरी भी आयोजित की गई जिसमें डॉ. अक्षिता, वैष्णवी, कृतिका और अनमोल ने भाग लिया। इसे मोबाइल क्यूआर कोड के माध्यम से इंटरैक्टिव रूप में प्रस्तुत किया गया।


विश्व स्तर पर 12800लाख  से अधिक वयस्क उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं, जिनमें से 50 फीसदी को इसकी जानकारी नहीं होती। भारत में हर तीसरा वयस्क इसका शिकार है। डॉ. प्रेरणा कपूर ने नियमित जांच और समय पर इलाज की आवश्यकता पर बल दिया।


कार्यक्रम में युवाओं में बढ़ते तनाव, खराब जीवनशैली और उनके स्वास्थ्य पर प्रभाव पर भी चिंता व्यक्त की गई।

गुरुवार, 15 मई 2025

प्रो हर्षवर्धन बने पीजीआई के एम एस

 


प्रो हर्षवर्धन बने पीजीआई के एम एस 


अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर राजेश हर्षवर्धन को संस्थान का चिकित्सा अधीक्षक बनाया गया है निदेशक प्रोफेसर आरके धीमान ने इस आशय का आदेश आज जारी किया। प्रोफेसर हर्षवर्धन ने आज ही शाम को कार्यभार ग्रहण कर लिया। प्रोफेसर हर्षवर्धन अंगदान को बढ़वा देने, हॉस्पिटल वेस्ट मैनेजमेंट सहित कई संस्थान के कार्यों को लगन से पूरा कर रहे हैं। 

 चिकित्सा अधीक्षक (Medical Superintendent) का कार्य एक सामान्य अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक की तुलना में कहीं अधिक जटिल और व्यापक होता है।


1. अस्पताल प्रशासन का नेतृत्व:


ओपीडी, आईपीडी, आपातकालीन, ऑपरेशन थिएटर, आईसीयू आदि विभागों के समन्वय और संचालन की निगरानी।


अस्पताल में प्रतिदिन आने वाले हजारों मरीजों के लिए सुव्यवस्थित चिकित्सा सेवाएं सुनिश्चित करना।


डॉक्टरों, नर्सों, पैरामेडिकल स्टाफ, टेक्नीशियन, सफाईकर्मी आदि की कार्यप्रणाली का पर्यवेक्षण।



2. उच्च स्तरीय चिकित्सा सेवाओं की देखरेख:


सुपर-स्पेशलिटी और मल्टी-स्पेशलिटी सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करना।


मरीजों को समय पर उचित उपचार और रेफरल सेवाएं उपलब्ध कराना।



3. आपातकालीन और आपदा प्रबंधन:


किसी भी राष्ट्रीय आपदा, महामारी (जैसे कोविड-19), या विशेष स्थिति में अस्पताल की त्वरित प्रतिक्रिया का संचालन।


आपातकालीन दवाओं और सुविधाओं की उपलब्धता बनाए रखना।



4. प्रशासनिक और वित्तीय प्रबंधन:


अस्पताल के बजट, संसाधन आवंटन और उपयोग की निगरानी।


सरकारी नीतियों के अनुसार अस्पताल संचालन सुनिश्चित करना।



5. कानूनी और नैतिक दायित्व:


मरीजों के अधिकारों, गोपनीयता और मेडिकल एथिक्स का पालन कराना।


RTI, जनहित याचिका (PIL), मानवाधिकार आयोग, या अदालतों से संबंधित मामलों का उत्तरदायित्व निभाना।



6. स्वास्थ्य सेवाओं का नवाचार और डिजिटलाइजेशन:


ई-हॉस्पिटल प्रणाली, डिजिटल रिकॉर्ड, टेलीमेडिसिन आदि के संचालन में योगदान।


गुणवत्ता सुधार (Quality Improvement) और NABH/NABL जैसे मानकों की निगरानी।



7. शिक्षा और प्रशिक्षण में सहयोग:




मंगलवार, 13 मई 2025

पीजीआई में उन्नत नई तकनीक से 70 वर्षीय बुजुर्ग को नई ज़िंदगी मिली

 




दिल की डोर फिर बंधी” – पीजीआई में उन्नत नई तकनीक से 70 वर्षीय बुजुर्ग को नई ज़िंदगी मिली


  सांसें साथ छोड़ रही थीं और हर कदम पर थकान घेर लेती थी… लेकिन डॉक्टरों ने मुझे एक और मौका दिया, जीने का।” – यह शब्द हैं उस 70 वर्षीय बुजुर्ग मरीज के, जिनकी ज़िंदगी संजय गांधी पीजीआई के डॉक्टरों की मेहनत और नई चिकित्सा तकनीक मिट्रा क्लिप  की बदौलत फिर मुस्कुरा उठी।


इस बुजुर्ग मरीज को दिल की गंभीर बीमारी थी – माइट्रल रिगर्जिटेशन, जिसमें हृदय का माइट्रल वाल्व ठीक से बंद नहीं होता, जिससे खून का बहाव उल्टा होने लगता है। इसके साथ ही उन्हें किडनी की बीमारी और पहले स्ट्रोक की भी शिकायत थी। ऐसे में खुली सर्जरी करना बहुत जोखिम भरा था। हर पल उनके जीवन पर संकट मंडरा रहा था।


 कार्डियोलॉजी टीम — प्रो. रूपाली खन्ना, प्रो. सत्येन्द्र तिवारी, प्रो. आदित्य कपूर, प्रो अंकित साहू और डॉ. हर्षित खरे — ने हार नहीं मानी। उन्होंने मिट्रा क्लिप नामक एक अत्याधुनिक और न्यूनतम चीरा-युक्त तकनीक के जरिए मरीज की माइट्रल वाल्व की मरम्मत की।


प्रो. रूपाली खन्ना ने बताया कि इस मरीज की स्थिति बेहद नाजुक थी, परंतु इस तकनीक ने बिना छाती खोले, बस एक छोटी सी प्रक्रिया के ज़रिए, दिल की मरम्मत कर दी।



इस प्रक्रिया के दौरान एनेस्थीसिया विभाग — प्रो. प्रभात तिवारी, प्रो. आशीष कनौजिया और डॉ. लारीब — की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण रही।


22 अप्रैल 2025 को की गई यह प्रक्रिया सफल रही। मरीज कुछ ही दिनों में अपने पैरों पर चलने लगे और अस्पताल से मुस्कराते हुए घर लौटे। दो हफ्तों की फॉलो-अप में उनकी हालत में अभूतपूर्व सुधार देखा गया — न सांस फूल रही थी, न दिल बैठता था।


मरीज ने भावुक होकर कहा, “मैं संस्थान का तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूं। उन्होंने न केवल मेरी जान बचाई, बल्कि मुझे फिर से ज़िंदगी जीने की उम्मीद दी। अब हर सुबह नई लगती है संस्थान के निदेशक प्रो. आर.के. धीमान ने बधाई दी है।

सोमवार, 12 मई 2025

युद्ध कोई बॉलीवुड फिल्म नहीं, यह एक गंभीर

 



इससे पहले मैंने भी कहा था युद्ध कोई मनोरंजन का विषय नहीं है और आज यही बात सेवा के प्रमुख ने भी गई कुछ लोग तो ऐसे बतियाते हैं की आर पार कर देना चाहिए था सुबह पाकिस्तान का नाम नहीं रहेगा यह सब अनर्गल प्रलाप वही लोग करते हैं आगे आप समझ जाइए,,,,,,


युद्ध कोई बॉलीवुड फिल्म नहीं, यह एक गंभीर मामला है: जनरल नरवणे


पुणे। भारत और पाकिस्तान के बीच "ऑपरेशन सिंदूर" के दौरान संघर्षविराम और युद्ध की संभावनाओं पर पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने रविवार को एक कार्यक्रम में महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि युद्ध कोई रोमांटिक बॉलीवुड फिल्म नहीं है, बल्कि यह एक अत्यंत गंभीर और दुखद अनुभव होता है, जिसे अंतिम विकल्प के रूप में ही अपनाना चाहिए।


इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए जनरल नरवणे ने कहा, “युद्ध रोमांच नहीं, त्रासदी है। यह कोई फिल्मी दृश्य नहीं होता, जहां अंत में सब ठीक हो जाता है। वास्तविक जीवन में युद्ध की कीमत आम नागरिकों को चुकानी पड़ती है, खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वालों को।”


उन्होंने आगे कहा कि सीमावर्ती गांवों में रहने वाले नागरिक, विशेषकर बच्चे, गोलाबारी के खौफनाक दृश्य देखते हैं। “उन्हें रातों में आश्रय स्थलों में भागना पड़ता है। कई लोगों ने अपने प्रियजनों को खोया है, और यह दुख पीढ़ियों तक उनके जीवन पर असर डालता है। कुछ लोग पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) जैसी मानसिक बीमारियों से भी पीड़ित हो जाते हैं।”


जनरल नरवणे ने यह भी कहा कि यदि युद्ध हम पर थोपा जाता है, तो सेना को अपना कर्तव्य निभाना होगा, लेकिन यह कभी भी हमारी पहली पसंद नहीं होनी चाहिए। “एक सैनिक के रूप में यदि मुझे आदेश दिया जाता है, तो मैं युद्ध में जाऊँगा, लेकिन मेरी पहली प्राथमिकता हमेशा कूटनीति होगी।”


 डीआरडीओ के पूर्व अध्यक्ष डॉ. जी. सतीश रेड्डी ने भी ऑपरेशन सिंदूर और देश की बढ़ती रक्षा आत्मनिर्भरता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “इस युद्ध में भारत ने कई स्वदेशी तकनीकों का सफलतापूर्वक उपयोग किया। एंटी-ड्रोन सिस्टम जैसे उपकरणों ने पाकिस्तान की ओर से आने वाले कई ड्रोनों को नष्ट करने में अहम भूमिका निभाई।”


डॉ. रेड्डी ने बताया कि ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों ने भी इस संघर्ष में अपनी सटीकता और विश्वसनीयता को साबित किया है। उन्होंने कहा, “स्वदेशी विकास और उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करने से भारत की विदेशी रक्षा तकनीक पर निर्भरता कम हो रही है, और यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक बड़ा कदम है।”


कार्यक्रम में दोनों पूर्व अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि युद्ध कोई उत्सव नहीं है, और इसका इस्तेमाल केवल तब होना चाहिए जब हर शांतिपूर्ण प्रयास विफल हो जाए।

ल्यूपस पर विजय, जीवन का जश्न"

 

"ल्यूपस पर विजय, जीवन का जश्न"


सही समय पर सही इलाज से लुपस के साथ मिल सकती है अच्छी जिंदगी


विश्व ल्यूपस दिवस पर जागरूकता आयोजन



 विश्व ल्यूपस दिवस के उपलक्ष्य में क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी और रूमेटोलॉजी फाउंडेशन द्वारा क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी और रूमेटोलॉजी विभाग के सहयोग से "इनस्पायर ल्यूपस इंडिया" शीर्षक से एक विशेष जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य ल्यूपस रोग के प्रति जनसामान्य में जागरूकता फैलाना, मानसिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करना और इस रोग से जूझ रहे रोगियों की संघर्ष यात्रा का सम्मान करना था।


कार्यक्रम में  विभाग की प्रमुख विशेषज्ञ प्रोफेसर अमिता अग्रवाल और प्रोफेसर रुद्रा ने ल्यूपस के वैज्ञानिक पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि ल्यूपस  एक गंभीर ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली स्वयं के ऊतकों और अंगों पर आक्रमण करने लगती है। यह रोग त्वचा, जोड़ों, गुर्दे, हृदय, फेफड़े और मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है।


उन्होंने बताया कि ल्यूपस के सामान्य लक्षणों में जोड़ों में दर्द व सूजन, अत्यधिक थकान, बुखार, बाल झड़ना तथा चेहरे पर तितली के आकार का चकत्ता शामिल हैं। इसका समय पर निदान एवं उपचार अत्यंत आवश्यक है, जिससे रोग की तीव्रता को नियंत्रित किया जा सके और रोगी की जीवन गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके।


वर्तमान में ल्यूपस का कोई पूर्ण इलाज नहीं है, लेकिन एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं, इम्यूनोसप्रेसेंट्स, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन और आधुनिक बायोलॉजिक्स जैसी दवाओं के माध्यम से लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि नियमित चिकित्सकीय निगरानी और अनुशासित जीवनशैली अपनाकर ल्यूपस रोगी एक सामान्य, सक्रिय और उत्पादक जीवन जी सकते हैं।


कार्यक्रम की शुरुआत मानसिक शांति हेतु आयोजित ध्वनि स्नान ध्यान सत्र से हुई, जिसका संचालन मुदिता श्रीवास्तव ने किया। एम एम एस एस ओ  मुनीब ने बताया कि मरीजों और उनके परिजनों के लिए रोचक प्रश्नोत्तरी, संवाद सत्र और एक प्रेरणादायक फैशन वॉक का आयोजन किया गया। "ओपन हाउस" सत्र में रोगियों ने अपने सवाल सीधे विशेषज्ञों से पूछे और व्यावहारिक समाधान प्राप्त किए।


फैशन वॉक में ल्यूपस वॉरियर्स ने रैम्प पर आत्मविश्वास से चलकर यह संदेश दिया कि बीमारी से लड़ाई सिर्फ शरीर की नहीं, आत्मा की भी होती है — और यह लड़ाई जीती जा सकती है।

पीजीआई बेस्ट नर्स" सम्मान से नर्सिंग अधिकारी हुए सम्मानित

 

अंतर्राष्ट्रीय नर्सेज डे पर पीजीआई में विविध आयोजनों 


 "बेस्ट नर्स" सम्मान से  नर्सिंग अधिकारी हुए सम्मानित


लखनऊ।



 संजय गांधी पीजीआई  में अंतर्राष्ट्रीय नर्सेज डे (12 मई) के अवसर पर नर्सिंग प्रशासन व नर्सिंग यूनियन के संयुक्त तत्वावधान में सप्ताह भर विविध कार्यक्रम आयोजित किए गए। इस आयोजन में नर्सिंग कैडर के सभी वर्गों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया।


आयोजन के तहत खेलकूद, वैज्ञानिक प्रस्तुतियाँ, ड्राइंग व फोटोग्राफी प्रदर्शनी, पोस्टर प्रतियोगिता आदि हुए।


इसके अतिरिक्त संस्थान की प्रत्येक यूनिट से एक वरिष्ठ नर्सिंग अधिकारी और एक नर्सिंग अधिकारी को “बेस्ट नर्स” का सम्मान दिया गया। इस सम्मान से पूजा त्रिपाठी, शिवानी सिंह, संदीप सचान, सुनीता फेड्रिक, कुसुम, अर्चना सचान, ओ. पी. जाट आदि को नवाज़ा गया।


समारोह में निदेशक डॉ. आर. के. धीमान, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. देवेंद्र गुप्ता, चिकित्सा अधीक्षक डॉ. प्रशांत अग्रवाल, सब डीन डॉ. अंकुर भटनागर और एच  आर एफ प्रमुख डॉ. आदित्य कपूर ने विजेताओं को प्रशस्ति पत्र प्रदान किए और नर्सिंग कैडर की भूमिका को संस्थान की रीढ़ बताया।


मुख्य नर्सिंग अधिकारी मनोरमा चरण एवं अन्य नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट्स द्वारा नर्सिंग स्टाफ एसोसिएशन को कैडरहित कार्यों के लिए सम्मानित  किया गया।


समारोह में लता सचान, विवेक सागर, सुजान सिंह, राजकुमार, मंजू कमल, अश्वनी, वीरेंद्र, सुखलेश, मंजू राव, कुशवाहा, सुरेंद्र सहित कई अन्य नर्सिंग कर्मी भी मौजूद रहे।

शुक्रवार, 9 मई 2025

एआई से लैस नई तकनीक से पीजीआई में और बेहतर होगी एंजियोप्लास्टी,

 




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एआई से लैस नई तकनीक से पीजीआई में और बेहतर होगी एंजियोप्लास्टी, ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी प्रणाली शुरू


 – संजय गांधी  पीजीआई में दिल के मरीजों के इलाज के लिए एक नई और उन्नत तकनीक की शुरुआत की गई है। कार्डियोलॉजी विभाग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस  से लैस इंट्रावैस्कुलर ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी (ओ सी टी ) मशीन लगाई गई है। इससे हृदय की ब्लॉकेज यानी रुकावट को दूर करने के लिए की जाने वाली एंजियोप्लास्टी की प्रक्रिया अब और सटीक और सफल होगी।


यह तकनीक फ्रैक्शनल फ्लो रिजर्व , रिलेटिव फ्लो रिजर्व और थ्री डी एंजियो को-रजिस्ट्रेशन जैसी आधुनिक विधियों को एक साथ जोड़ती है। इससे डॉक्टर दिल की रक्त वाहिकाओं की अंदरूनी स्थिति को बेहद साफ और गहराई से देख सकते हैं।


इस तकनीक से प्लाक (ब्लॉकेज), कैल्सीफिकेशन (चिकनाई जमना), रक्त वाहिका का आकार, और स्टेंट की स्थिति की जांच पहले से कहीं बेहतर हो सकेगी। साथ ही, यह एंजियोग्राफी के आंकड़ों को भी जोड़कर डॉक्टरों को पूरा दृश्य दिखा सकती है। अब तक इस नई प्रणाली से 10 मरीजों की एंजियोप्लास्टी सफलतापूर्वक की जा चुकी है।


विशेषज्ञों ने जताई संतुष्टि

कार्डियोलॉजी विभाग की टीम – प्रो. आदित्य कपूर, प्रो. सत्येन्द्र तिवारी, प्रो. रूपाली खन्ना, प्रो. नवीन गर्ग और डॉ. अंकित साहू – ने इस नई तकनीक की सफलता पर खुशी जताई है। उनका कहना है कि इससे एंजियोप्लास्टी में स्टेंट का चुनाव भी पहले से ज्यादा सटीक होगा और इलाज की सफलता दर बढ़ेगी।


कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. आदित्य कपूर ने  बताया कि यह मशीन हाई-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग, थ्री-डी तस्वीरें, और एक साथ एंजियोग्राफी और ओसीटी डिस्प्ले जैसे फीचर्स देती है। इससे इलाज की गुणवत्ता और मरीजों के नतीजों में सुधार होगा।


संस्थान के निदेशक प्रो. आर. के. धीमन ने भी कार्डियोलॉजी विभाग की सराहना करते हुए कहा कि यह तकनीक मरीजों की बेहतर देखभाल की दिशा में एक अहम कदम है।

पीजीआई में नर्सिंग दिवस पर स्वैच्छिक रक्तदान सप्ताह

 




-पीजीआई में नर्सिंग दिवस पर स्वैच्छिक रक्तदान सप्ताह


  नर्सों ऑफिसरों ने किया 80 यूनिट रक्तदान



संजय गांधी पीजीआई में अन्तरराष्ट्रीय नर्सिंग दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित स्वैच्छिक रक्तदान सप्ताह में 80 नर्सिंग आफीसर ने रक्तदान कर सेना के अधिकारियों और जवनों का हौसला बढ़ाया है। नर्सेज ने कहा कि जरूरत पड़ने पर देश के सैनिकों के लिये रक्तदान को तैयार हैं। रक्तदान के बाद नर्सिंग अधिकारियों ने सेना के जवानों की सलामती की दुआ और सेवा का संकल्प लिया। 

पीजीआई के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. प्रशांत अग्रवाल, ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन की विभागाध्यक्ष डॉ. प्रीति एल्हेंस और मुख्य नर्सिंग अधीक्षिका मनोरमा चरन ने स्वैच्छिक रक्तदान शिविर का उदघाटन किया। डॉ. प्रशांत अग्रवाल ने बताया कि शिविर में 200 से अधिक नर्सिंग अधिकारियों द्वारा रक्तदान का लक्ष्य है। नर्सिंग स्टाफ एसोसिएशन (एनएसए) की अध्यक्ष लता सचन का कहना है कि भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव को लेकर संस्थान के सभी कर्मचारी देश के साथ हैं। उन्होंने संस्थान की नर्सिंग अधिकारियों से अपील की है कि शिविर में आकर ज्यादा से ज्यादा रक्त्दान करें। ताकि जरूरतमंद को खून मुहैया कराया जा सके। इस मौके पर नीना इमानुएल, विनीता कटियार, ज्योति भारती और संजय मित्तल समेत अन्य मौजूद रहे। ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की ओर से रक्तदाताओं को प्रमाण पत्र दिये गए।

बुधवार, 7 मई 2025

सेकंड सौ वें भाग की भी चूक से मरीज के अंग हो सकते है फेल

 

एक सेकंड सौ वें भाग की भी चूक  से मरीज के अंग हो सकते है फेल 


परफ्यूशनिस्ट के बिना हृदय सर्जरी की कल्पना असंभव


एसजीपीजीआई में परफ्यूशनिस्ट दिवस का आयोजन  






दिल की सर्जरी के दौरान अक्सर दिल को अस्थायी रूप से बंद करना पड़ता है। इस समय हृदय और फेफड़ों का कार्य एक विशेष मशीन — हार्ट-लंग मशीन — से लिया जाता है। दिल को बंद करने और मशीन से रक्त प्रवाह शुरू करने के बीच एक सेकंड की भी चूक मरीज की जान के लिए खतरा बन सकती है। यदि दिल से रक्त प्रवाह एक सेकेंड के लिए भी रुक जाए, तो शरीर के कई अंग प्रभावित हो सकते हैं।इस नाजुक प्रक्रिया में दिल और मशीन के बीच समन्वय स्थापित करने वाले विशेषज्ञ को परफ्यूशनिस्ट कहा जाता है।


 संजय गांधी पीजीआई में आज उत्तर प्रदेश परफ्यूशनिस्ट सोसायटी के तत्वावधान में परफ्यूशनिस्ट दिवस मनाया गया।इस अवसर पर आयोजित अकादमिक सत्र में सोसाइटी के संरक्षक एस.बी. सिंह ने बताया कि ओपन हार्ट सर्जरी के दौरान परफ्यूशनिस्ट का कार्य अत्यंत जटिल और संवेदनशील होता है। जब सर्जरी के दौरान हृदय और फेफड़े बंद होते हैं, तब शरीर के प्रत्येक अंग में रक्त और ऑक्सीजन पहुंचाने का जिम्मा परफ्यूशनिस्ट का होता है।मैक्स अस्पताल के  के.एन. सिंह ने बताया कि परफ्यूशनिस्ट भले ही पर्दे के पीछे काम करता है, लेकिन ओपन हार्ट सर्जरी में उसकी भूमिका अनिवार्य होती है। 


केजीएमयू के  मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि परफ्यूशनिस्ट के बिना ओपन हार्ट सर्जरी की कल्पना भी नहीं की जा सकती।एसजीपीजीआई के  विनय प्रताप सिंह ने बताया कि परफ्यूशनिस्ट की एक सेकंड के सौवें हिस्से की भी गलती मरीज के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। इससे ब्रेन डेड, किडनी फेल्योर जैसे गंभीर परिणाम हो सकते हैं।आरएमएल के  शैलेंद्र और सैफई के  निर्मल मिड्डे ने परफ्यूशनिस्ट की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह विशेषज्ञ फिजियोलॉजी, फार्माकोलॉजी, होमोडायने मिक्स और बायोइंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में दक्ष होता है। सकते हैं:

सोमवार, 5 मई 2025

आईटी-सेल का नया झूठ

 

आईटी-सेल का ताजा नाटक सामने आया है। 

 इस फोटो में संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और डॉ. भीमराव आंबेडकर के मोटरसाइकिल पर एकसाथ सफर करते दिख रहे हैं।  डॉ. हेडगेवार का निधन 1940 में हुआ, जबकि तस्वीर में दिखाई गई मोटरसाइकिल रॉयल एनफील्ड है जिसका प्रचलित नाम है बुलेट, यह बाइक 1955 में बाजार में आई। 

 डॉ. हेडगेवार और डॉ. आंबेडकर के मोटरसाइकिल पर एकसाथ होने का कोई ऐतिहासिक सबूत नहीं है।


रॉयल एनफील्ड बुलेट पहली बार भारतीय बाजार में 1955 में आई थी। उस समय यह मोटरसाइकिल मद्रास (अब चेन्नई) में भारत सरकार और रॉयल एनफील्ड (UK) के बीच समझौते के तहत भारत लाई गई थी, ताकि भारतीय सेना और पुलिस बलों को एक मजबूत और भरोसेमंद मोटरसाइकिल मिल सके।


शुरुआत में 350cc की बुलेट ब्रिटेन से आयात की जाती थी, लेकिन 1956 से इसका स्थानीय निर्माण भारत में शुरू हो गया था। बाद में यह पूरी तरह से भारतीय बन गई और रॉयल एनफील्ड इंडिया के नाम से चेन्नई में इसका उत्पादन होने लगा।


डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संस्थापक थे, का निधन 21 जून 1940 को नागपुर में हुआ था। उनकी समाधि नागपुर के रेशम बाग़ में स्थित है, जहाँ उनका अंतिम संस्कार भी किया गया था।  और सबसे बड़ी दुखद बात यह है कि इस फोटो को वायरल करने वाला व्यक्ति अपने को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य बताया है।

महिलाओं में अस्थमा की व्यापकता पुरुषों से अधिक है।



“इनहेलेशन उपचार तक पहुँच सभी अस्थमा रोगियों की आवश्यकता है।”

”आइये हम सभी मिलकर प्रत्येक अस्थमा रोगी को खुलकर साँस लेने में मदद करें।”

दमा को अगर हराना है, साँसों को बचाना है, तो इन्हेलर अपनाना है।”

सांस हैं अनमोल, रखे दूर अस्थमा रोग,

अपनाये इन्हेलर, रहें स्वस्थ्य और निरोग।

-प्रो. (डॉ.) वेद प्रकाश


अस्थमा की समस्या:-

अस्थमा विश्व और भारत दोनों के लिए एक सतत् स्वास्थ्य समस्या है।

विश्व में अनुमानतः 26.2 करोड़ लोग अस्थमा से प्रभावित हैं (WHO 2024)।

वैष्विक स्तर पर अस्थमा से प्रतिवर्ष लगभग 4.55 लाख लोगों की मृत्यु होती हैै (WHO 2024)।

अस्थमा रोग बच्चों एवं किशोरों में सबसे सामान्य दीर्घकालिक रोग है, जिससे बार‑बार अस्पताल में भर्ती होना और विद्यालय में अनुपस्थितियाँ होना सम्मिलित हैं।

भारत में अनुमानतः 2–5 % जनसंख्या अस्थमा से ग्रस्त है।

महिलाओं में अस्थमा की व्यापकता पुरुषों से अधिक है।

वैश्विक अस्थमा मामलों के लगभग 13 % भारत में पाये जाते हैं जिससे स्वास्थ्य‑व्यवस्था पर भारी बोझ पड़ता है।

2021 में अस्थमा प्रबंधन पर वैश्विक स्तर पर लगभग ₹ 68,300 करोड़ का खर्च आया था।

अनुमानतः भारत में 3.4 करोड़ से अधिक लोग अस्थमा ग्रसित हैं।

अस्थमा‑सम्बंधित वैश्विक मौतों का 46 % हिस्सा भारत में होता है, जो समुचित निदान एवं उपचार तक मरीजों की पहुंच ना होना दर्शाता है।

खराब वायु गुणवत्ता भारत में अस्थमा की समस्या का एक प्रमुख कारक है।

जागरूकता की कमी और अल्प‑निदान एक बड़ी चुनौती है एक अध्ययन के अनुसार केवल 5 ः भारतीय अस्थमा रोगियों का सही निदान व उपचार हो पाता है।

एलर्जी एक वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है और इसकी व्यापकता लगातार बढ़ रही है।

विश्व एलर्जी संगठन के अनुसार, विश्व की 30 से 40 ः जनसंख्या किसी न किसी एलर्जी से प्रभावित है।

एलर्जिक राइनाइटिस वयस्कों में 10 से 30 % तथा बच्चों में 40 % तक को प्रभावित करता है।

खाद्य एलर्जी विश्व स्तर पर 68 % बच्चों और 24 % वयस्कों में पाई जाती है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में एलर्जी‑रोधी दवाओं पर वार्षिक खर्च 5 अमेरिकी अरब डॉलर (लगभग ₹ 4,000 करोड़) से अधिक है।

अस्थमा के प्रमुख लक्षणः

घरघराहट (छाती से सीटीध्घर्र की ध्वनि)।

साँस फूलना या साँस लेने में कठिनाई।

विशेषकर रात में या सुबह होने वाली खांसी।

छाती में जकड़न, दर्द या घुटन‑सा महसूस होना।

ट्रिगरः एलर्जेन, संक्रमण, वायु‑प्रदूषण, ठंडी हवा, शारीरिक व्यायाम, मानसिक तनाव आदि अस्थमा के ट्रिगर (बढाने वाले तत्व) का कार्य करते है 

अस्थमा लाइलाज बीमारी नही है, उचित उपचार व जीवन‑शैली में बदलाव से इसे पूरी तरह नियंत्रित कर सामान्य जीवन जिया जा सकता है।

इस वर्ष की थीमः MAKE INHALED TREATMENTS ACCESSIBLE FOR ALL 

ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा (GINA) ने विश्व अस्थमा दिवस 2025 की थीम “इनहेलेशन उपचार सभी के लिए सुलभ बनाएं” निर्धारित की है। यह थीम विशेष रूप से इनहेलेड कॉर्टिको‑स्टेरॉयड्स (ICS) जैसी प्रभावी औषधियों को सुनिश्चित करने के महत्व को रेखांकित करती है।

भारत में, यद्यपि ICS को आवश्यक औषधि सूची में शामिल किया गया है, फिर भी जागरूकता की कमी, अधिक व्यय एवं आपूर्ति‑श्रृंखला समस्याओं के कारण इनका उपयोग अपेक्षाकृत कम है। इन चुनौतियों का समाधान अस्थमा‑संबंधित समस्याओं एवं मृत्यु दर को घटाने के लिए अत्यावश्यक है।


अस्थमा प्रबंधनः ;बेहतर परिणामों के लिए रणनीतियाँ 

कंट्रोलर दवाएँः एयरवे सूजन कम करने हेतु नियमित रूप से इनहेलेड कॉर्टिको‑स्टेरॉयड्स का उपयोग किया जाता है। 

रिलीवर दवाएँः तुरंत लक्षण से राहत पाने के लिए ब्रोंकोडाएलेटर्स का उपयोग किया जाता है।

ट्रिगर से बचावः व्यक्तिगत ट्रिगर पहचान कर न्यूनतम संपर्क करके अस्थमा को बढाने से रोका जा सकता है। 

फेनोटाइप की पहचानः प्रत्येक रोगी भिन्न होता हैय वैयक्तिकृत उपचार योजना आवश्यक होती है। 

नियमित फॉलो‑अपः चिकित्सकीय निगरानी व योजना में समय‑समय पर संशोधन से अस्थमा का समुचित इलाज किया जाता है।

रोगी शिक्षाः अस्थमा एवं प्रबंधन संबंधी जानकारी देकर रोगी को सशक्त बनाना।

उचित प्रबंधन से अस्थमा रोगी पूर्णतः सक्रिय एवं स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।



आगे की राहः अनुसंधान एवं रोकथाम:-

किफायती इनहेलेशन दवाओं तक पहुँच सुलभ कराना।

कम‑लागत, उच्च‑दक्षता वाले इनहेलर विकसित करना।

विशेषकर वंचित क्षेत्रों में जन‑जागरूकता अभियान चलाना।

डिजिटल स्वास्थ्य साधनों का उपयोग कर निगरानी एवं सहायता।

वायु‑प्रदूषण में कमी हेतु पर्यावरणीय नीतियों का अनुपालन।

गंभीर अस्थमा के लिए बायोलॉजिक चिकित्सा, आनुवंशिक जोखिम चिन्ह एवं वैयक्तिकृत उपचार के क्षेत्र में चल रहे अनुसंधान उत्साहजनक परिणाम दे रहे हैं।


पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर मेडिसिन द्वारा अस्थमा के उपचार सम्बन्धित प्रतिबद्धता:-

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी का पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग एलर्जी एवं अस्थमा की समग्र देख‑रेख हेतु समर्पित है। अत्याधुनिक सुविधाओं एवं विशेषज्ञ टीम के साथ, विभाग सटीक निदान के लिए परिष्कृत पल्मोनरी फंक्शन जांच तथा स्किन प्रिक टेस्ट सहित विभिन्न एलर्जी परीक्षण उपलब्ध कराता है। गंभीर अथवा व्यापक अस्थमा में बायोलॉजिक थेरेपी एवं इम्यूनोथेरेपी का विशेषज्ञ मार्गदर्शन भी प्रदान किया जाता है, जिससे प्रत्येक रोगी के लिए वैयक्तिकृत एवं प्रभावी उपचार सुनिश्चित हो। प्रो. (डॉ.) वेद प्रकाश, विभागाध्यक्ष, पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग प्रो0 राजेन्द्र प्रसाद, प्रोफेसर रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग, एराज लखनऊ मेडिकल यूनिवर्सिटी, प्रो0 आर0ए0एस0 कुषवाहा, प्रोफेसर, रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग, के0जी0एम0यू0 लखनऊ प्रो0 राजेष कुमार प्रोफेसर, पीडियाट्रिक्स विभाग, के0जी0एम0यू0 लखनऊ डा0 सचिन कुमार, डा0 मो0 आरिफ, डा0 मृत्युंजय, आदि लोग उपस्थित रहे। 





प्रत्यारोपित किडनी की खराबी का पता अब बिना दर्द के संभव



प्रत्यारोपित किडनी की खराबी का पता अब बिना दर्द के संभव


किडनी ट्रांसप्लांट के बाद होने वाली जटिलताओं की जांच अब इलास्टोग्राफी से संभव


पीजीआई के विशेषज्ञों ने शोध में बताया — यह तकनीक होगी ट्रांसप्लांट की निगरानी में कारगर



संजय गांधी पीजीआई के विशेषज्ञों ने अपने शोध में पाया है कि इलास्टोग्राफी नामक तकनीक से किडनी ट्रांसप्लांट के बाद होने वाली इंटरस्टिशियल फाइब्रोसिस एंड ट्यूबूलर एंट्रॉफी (आईएफटीए) का पता आसानी से और बिना किसी सर्जरी या बायोप्सी के लगाया जा सकता है। किडनी की इस खराबी का पता लगाने के लिए बायोप्सी किया जाता रहा है जिसमें मरीज को दर्द होता है। किडनी बायोप्सी से डरते भी है । कंपलिकेशन की भी आशंका रहती है। विशेषज्ञों ने शोध में 61 किडनी ट्रांसप्लांट मरीजों को शामिल किया गया, जो क्रोनिक किडनी इंजरी से पीड़ित थे। मरीजों का चयन उनकी क्लीनिक स्थिति, क्रिएटिनिन स्तर और GFR रिपोर्ट के आधार पर किया गया। सभी मरीजों की बायोप्सी और इलास्टोग्राफी टेस्ट किए गए और उनके परिणामों की तुलना की गई।बायोप्सी में देखा गया कि


10 मरीजों में कोई फाइब्रोसिस नहीं। 33 मरीजों में हल्का फाइब्रोसिस। 16 में मध्यम। 2 में गंभीर फाइब्रोसिस पाया गया। इलास्टोग्राफी से जब किडनी के ऊतक (टिशू) की कठोरता मापी गई, तो पाया गया कि जैसे-जैसे फाइब्रोसिस बढ़ता गया, कठोरता भी बढ़ती गई।जिनमें फाइब्रोसिस नहीं था, उनमें कठोरता: 39.86 केपीए। जबकि गंभीर फाइब्रोसिस में: 53.83 केपीए मिला। इलास्टोग्राफी और बायोप्सी के नतीजे लगभग समान पाए गए।


 


इलास्टोग्राफी क्यों है भरोसेमंद?


विशेषज्ञों का कहना है कि इलास्टोग्राफी इतनी सटीक है कि इससे हल्का, मध्यम और गंभीर फाइब्रोसिस के बीच भी स्पष्ट अंतर किया जा सकता है। यह तकनीक सस्ती,सुरक्षित,और बिना दर्द के है। इसे किडनी ट्रांसप्लांट मरीजों की नियमित निगरानी के लिए सामान्य फॉलोअप स्कैनिंग में शामिल किया जाए, तो यह मरीजों के लिए बड़ी राहत बन सकती है।


 


इलास्टोग्राफी से फायदे:


यह एक पेन-फ्री और गैर-सर्जिकल तकनीक है। मरीजों को बार-बार बायोप्सी जैसी इनवेसिव प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ेगा। बीमारी का जल्दी और सटीक पता चलता है। 


 


क्या है इंटरस्टिशियल फाइब्रोसिस एंड ट्यूबूलर एंट्रॉफी


इंटरस्टिशियल फाइब्रोसिस: जब किडनी के ऊतकों में सामान्य कोशिकाओं की जगह कठोर रेशेदार टिशू बनने लगते हैं।


 ट्यूब्यूलर एट्रॉफी: किडनी की सूक्ष्म नलिकाएं (ट्यूब्स) सिकुड़ने या खराब होने लगती हैं जिससे वो खून छानने का काम ठीक से नहीं कर पातीं। इसे पूरी तरह ठीक नहीं की जा सकती, लेकिन इसका फैलाव रोका जा सकता है।


 


इलास्टोग्राफी कैसे काम करती है?


यह एक खास अल्ट्रासाउंड तकनीक है। इसमें शरीर पर एक प्रोब रखा जाता है। प्रोब से हल्की तरंगें भेजी जाती हैं जो ऊतक से टकराकर लौटती हैं। इन तरंगों की गति से टिशू की नरमी या कठोरता का आकलन किया जाता है। 


 


शोधकर्ताओं की टीम:


शीयर वेव इलास्टोग्राफी की भूमिका: किडनी ट्रांसप्लांट में फाइब्रोसिस की जांच और बायोप्सी से तुलना विषय पर शोध किया जिसमें रेडियोलॉजी विभाग के डा.  सुरोजित रुइदास, प्रो,  हीरा लाल, डा. रघुनंदन प्रसाद,डा.  सृष्टि शर्मा डा.  सुरभी अग्रवाल,  डा.  रणविजय सिंह, नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रो,  नारायण प्रसाद, प्रो,  मानस रंजन पटेल, प्रो. रवि शंकर कुशवाहा, पैथोलॉजी विभाग के प्रो.. मनोज जैन शामिल हुए। शोध जर्नल ऑफ अल्ट्रासाउंड मेडिसिन ने हाल में ही स्वीकार किया है।