गुरुवार, 6 मई 2021

सौ फीसदी नहीं 90 से 92 के बीच रखना चाहिए ऑक्सीजन का सेचुरेशन- सहति कई सावधानी आक्सीजन देने में

 



सौ फीसदी नहीं 90 से 92 के बीच रखना चाहिए ऑक्सीजन का सेचुरेशन

ऑक्सीजन का कम फ्लो के अलावा ज्यादा फ्लो भी मरीज को पहुंचा सकता है नुकसान

 



कोरोना संक्रमित मरीज के परिजन ऑक्सीजन लेवल 90 से कम होने पर ऑक्सीजन सिलेंडर घर पर लाकर ऑक्सीजन दे रहे हैं। ऑक्सीजन देने में क्या सावधानी बरतनी है । कितना सेचुरेशन देना है जैसे तमाम जानकारी संजय गांधी पीजीआइ के एनेस्थीसिया विभाग के प्रोफेसर एवं आईसीयू एक्सपर्ट प्रो. संदीप साहू ने दी।     

-     ऑक्सीजन की क्यों और कब जरूरत पड़ती है?

 

एक मिनट में 24 से ज्यादा बार सांस और 94 से कम ऑक्सीजन सैचुरेशन पर ही ऑक्सीजन जरूरी है।किसी कोरोना मरीज की रेस्पिरेटरी रेट यानी सांस लेने की दर एक मिनट में 24 बार से ज्यादा होने और पल्स ऑक्सीमीटर में उसका ऑक्सीजन सैचुरेशन 94 फीसदी से कम होने पर ही ऑक्सीजन देने की जरूरत पड़ती है।

 

-    कितना होना चाहिए सेचुरेशन ( ऑक्सीजन स्तर)

-सामान्य ऑक्सीजन लेवल 94 से 99 होता हैलेकिन कोविड मरीजों के लिए इसे 88 से 92 के बीच हासिल करने का लक्ष्य रखना चाहिए। जब शरीर बीमार हो तो सौ फीसदी  सैचुरेशन की कोशिश नहीं करनी चाहिए इससे रिसोर्सेज (ऑक्सीजन) जल्दी से खत्म हो जाएगा।

 

-ऑक्सीजन फ्लो क्या होता हैइसे कैसे कंट्रोल करते हैं

 

सिलेंडर में 99 फीसदी तक शुद्ध मेडिकल ऑक्सीजन होती हैऐसे में डॉक्टर मरीज की हालत के हिसाब से तय करते हैं कि उन्हें हर मिनट कितने लीटर ऑक्सीजन की जरूरत है। इसी दर को ऑक्सीजन का फ्लो कहते हैं। यह 1 लीटर प्रति मिनट से लेकर 15 लीटर प्रति मिनट तक होती है। मरीज केवल सिलेंडर से मिलने वाली ऑक्सीजन से ही बल्कि आसपास के वातावरण से भी ऑक्सीजन लेता है। सिलेंडर में 99फीसदी शुद्ध ऑक्सीजन होती और वातावरण में करीब 21फीसदी। ऑक्सीजन का कम फ्लो के अलावा ज्यादा फ्लो भी मरीज को काफी नुकसान पहुंचा सकता है।

-     घर पर ऑक्सीजन देते हुए और क्या निगरानी है

पल्स रीडिंग और ऑक्सीजन रीडिंग पर निगरानी जरूरी है। इससे यह जानने में मदद मिलेगी कि शरीर बीमारी के खिलाफ कैसे लड़ रहा है।

किसी मरीज को हर मिनट 1 से 2 लीटर ऑक्सीजन की ज़रुरत होती है तो इसे 3 से 4 लीटर किया जा सकता है।अगर ऑक्सीजन सैचुरेशन लगातार कम बना रहे तो मरीजों को घर पर रखने की बजाय मेडिकल निगरानी में रखना जरूरी है।

 

-कार्बन डाइऑक्साइड रिटेंशन क्या हैघर पर ऑक्सीजन देने से इसका भी खतरा हो सकता है

 

आमतौर यह लंबे समय तक ऑक्सीजन सपोर्ट पर रहने से यह समस्या होती है। हमारे फेफड़े शरीर के लिए न केवल ऑक्सीजन उपलब्ध कराते हैं बल्कि शरीर में बनने वाली कार्बन डाइऑक्साइड को भी बाहर निकालना इनका काम है।लगातार या ज्यादा मात्रा में शुद्ध ऑक्सीजन मिलने पर हमारे फेफड़े बेहद धीरे-धीरे सांस लेना शुरू कर देते हैं और शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकल नहीं पाती। जल्द ही मरीज के खून में इसका का स्तर बढ़ने लगता है। इसे कार्बन डाइऑक्साइड रिटेंशन या हाइपरकार्बिया कहते हैं।ऐसे में ऑक्सीजन पर होने के बावजूद मरीज को बेहोशी छाने लगती है। उसके सोचने समझने की क्षमता कमजोर होने लगती हैसिर दर्द और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। ऑक्सीमीटर खून में ऑक्सीजन का लेवल तो बता सकता है लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड का नहीं।

 इस लिए केवल सांस ले नही गहरी सांस लेकर छोड़ते भी रहे।

 

 

 ऑक्सीजन देने में बरतें यह एहतियात बरतें

 

-घर पर ऑक्सीजन देने के लिए कम से दो सिलेंडर रखें। ताकि एक सिलेंडर भरने के दौरान दूसरा उपलब्ध रहे।

-सप्ताह में कम से कम एक बार प्लास्टिक ट्यूबिंग को सैनिटाइजर से साफ करें।  इस दौरान दूसरे सेट से ऑक्सीजन देना जारी रखें।

-एक सप्ताह बाद कैनुला यानी नाक से ऑक्सीजन पहुंचाने वाली प्लास्टिक पतली नली को बदल लें।

-अगर मास्क से ऑक्सीजन दे रहे हैं तो मास्क को एक से 2 सप्ताह में बदल लें।

-किसी एक मरीज का कैनुला या मास्क दूसरे मरीज के लिए इस्तेमाल न करें।

-मरीज के ठीक होने पर कैनुलामास्क आदि को मेडिकल वेस्ट के रूप में संबंधित  संस्था को सील पॉलीबैग में सौंप दें।

-ऑक्सीजन से नाक और गले में सूखापन हो सकता है ऐसे में नाक के भीतर लुब्रिकेशन रखें।

-ऑक्सीजन देने के लिए मास्क के बजाय कैनुला का इस्तेमाल करने की कोशिश करें जब ऑक्सीजन के फ्लो की जरूरत एक से दो लीटर ही। इससे

  मरीज को बोलने या खाने-पीने में दिक्कत नही होती।  

परिजन या अटेंडेंट पूरी तरह सावधानी के साथ देखभाल करें।  

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