शुक्रवार, 21 मई 2021

एक दिन में 50 से 60 हजार का लगता है एम्फोटेरिसिन बी लाइपोसोमल इंजेक्शन

 









प्री डायबिटीक है तो शुगर पर रखें कड़ी नजर

प्री डायबटिक कोरोना संक्रमित यानि जिनमें पहले शुगर नहीं रहा है उन्हे और सावधानी बरतने की जरूरत है क्योंकि उनके पास न तो ग्लूकोमीटर रहता है और न दवाएं । इस लिए इनमें स्टेरॉयड लेने पर तेजी से शुगर का स्तर बढ़ता है । इन लोगों को शुगर बढ़ते ही दवा शुरू करने की जरूरत है।

- कोरोना संक्रमण खत्म होने बाद भी लंबे समय तक शुगर पर नजर रखने की जरूरत है।

- कोरोना संक्रमण होने पर पहले चार दिन हल्का बुखार आता है पांचवें दिन तेज बुखार होता है ऐसा देखा गया है इस लिए स्टेरॉयड पांचवें दिन शुरू के और दसवें दिन बंद कर दें

 

इनमें है अधिक ब्लैक फंगस का खतरा

 

राईनो सेरेब्रल म्यूकर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) नाम का नया रोग सामने आ गयाजो कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों के लिए खतरा बन गया। कोरोना रोग से ग्रसित मरीजों में उपचार के बाद राईनोसेरेबल म्यूकरमाईकोसिस पाया जा रहा है।  इस रोग का प्रारंभिक अवस्था में पता लगाना इसके उपचार और बेहतर परिणाम के लिए आवश्यक है। 

 

-कोविडमधुमेह के साथ कोविड रोगी जो स्टेरॉयड  अन्य इम्यूनो सप्रेसिव प्रयोग कर रहे हैं और उनका ब्लड शुगर नियंत्रण में नहीं है।

-कोविड रोगी जो पहले से इम्यूनो सप्रेसिव प्रयोग कर रहे हैं।

-जिन कोविड रोगियों का अंग प्रत्यारोपण हो चुका है।

 

बचाव के तरीके

 

 

-ब्लड शुगर पर पूरा नियंत्रण।

-स्टेरॉयड का उचिततर्कसंगत और विवेकपूर्ण प्रयोग।

-ऑक्सीजन ट्यूबिंग का बार-बार बदला जाना और प्रयोग की गई ऑक्सीजन ट्यूब का दोबारा इस्तेमाल न किया जाए।

-कोविड मरीज को आक्सीजन देते समय उसका आर्द्रता करण करें और आर्द्रता विलयन बार-बार किया जाए।

-दिन में दो बार नाक को सलाइन से धोएं।

 



 

कैसे होगी ब्लैंक फंगस की पुष्टि

 

-नेजल स्पेकुलम से नाक की प्रारंभिक जांच।

-नेजल एंडोस्कोपी।

-केओएच वेट माउंट।

-एंडोस्कोपी पर मिडिल तथा इन्फीरियर टरबीनेट की ब्लैकिनिंग।

 

ये है उपचार

 

-मधुमेह का उचित नियंत्रण।

-इलेक्ट्रोलाइट के बिगड़ने तथा रीनल फंक्शन टेस्ट और लिवर फंक्शन टेस्ट।

-डेड टिश्यू को प्रारंभिक अवस्था में निकालना।

-फंगल कल्चर और सेंसिटिविटी (साथ ही कुछ दवाइयों के नाम सुझाए गए हैं।)

 

क्या है इलाज

इस बीमारी का इलाज है एम्फोटेरिसिन-बी लाइपोसोमल इंजेक्शन. अगर मरीज को इस इंजेक्शन की डोज दी जाएं तो कोई खतरा नहीं है

 

एक दिन में 50 से 60 हजार का लगता है   एम्फोटेरिसिन बी लाइपोसोमल इंजेक्शन

यह एक एंटी फंगल इंजेक्शन है. यह शरीर में फंगस की ग्रोथ को रोक देता हैजिससे संक्रमण बढ़ने का खतरा खत्म हो जाता है. कोरोना संक्रमण के बाद कई मरीजों में ब्लैक फंगस या म्यूकरमाइकोसिस के मामले सामने आ रहे हैं।  ऐसे में एम्फोटेरिसिन बी लाइपोसोमल  इंजेक्शन इसके इलाज में काफी कारगर है।  ये इंजेक्शन मरीज को रोजाना लगाने की जरूरत पड़ती है और 10-15 दिन तक इस इंजेक्शन की डोज देने पड़ती है. इस इंजेक्शन की भारतीय बाजार में कीमत 7-8 हजार रुपए हो सकती है इसकी पांच से 6 इंजेक्शन रोज देनी पड़ सकती है। इस तरह 50 हजार तक का खर्च रोज का केवल दवाओं का आस सकता है।   इस इंजेक्शन के साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं,  इसलिए बिना डॉक्टर की सलाह के इस इंजेक्शन का इस्तेमाल ना करें.

 

मिट्टी गीली लकड़ी में  रहता है  ब्लैक फंगस 

विशेषज्ञों का कहना है कि ब्लैक फंगस या म्यूकरमाइकोसिस बीमारी म्यूकर फंगस से होती है. यह फंगस हमारे वातावरण जैसे हवानमी वाली जगहमिट्टीगीली लकड़ी और सीलन भरे कमरों आदि में पाई जाती है. स्वस्थ लोगों को यह फंगस कोई नुकसान नहीं पहुंचाती है लेकिन जिन लोगों की इम्यूनिटी कमजोर हैउन्हें इस फंगस से इंफेक्शन का खतरा है.

 

कोरोना मरीजों को क्यों है ब्लैक फंगस से ज्यादा खतरा

कई कोरोना मरीजों में उनकी इम्यूनिटी ही उनकी दुश्मन बन जाती है और वह हाइपर एक्टिव होकर शरीर की सेल्स को ही तबाह करना शुरू कर देती है. ऐसे में डॉक्टर मरीज को इम्यूनिटी कम करने वाली दवाएं या स्टेरॉयड देते हैं. यही वजह है कि कोरोना मरीजों में ब्लैक फंगस का खतरा बढ़ गया है. इसके अलावा डायबिटीज और कैंसर के मरीजों में भी इम्यूनिटी कमजोर होती हैजिससे उन्हें भी ब्लैक फंगस का खतरा ज्यादा होता है.

 

 

ब्लैक फंगस आंखों और ब्रेन को पहुंचा रहा नुकसान

संजय गांधी पीजीआइ की नेत्र रोग विशेषज्ञ प्रो. रचना अग्रवाल के मुताबिक   ब्लैक फंगस मरीज के शरीर में घुसकर उसकी आंखों और ब्रेन को नुकसान पहुंचा सकता है।  साथ ही स्किन को भी हानि पहुंचा सकता है।  यही वजह है कि ब्लैक फंगस के मरीजों में आंख की रोशनी जाने और जबड़ा या नाक में संक्रमण फैलने की परेशानी हो सकती है।  कई बार ऑपरेशन से निकालने की नौबत भी आ रही है। 

 

 

यह है तो हो जाए सजग

ब्लैक फंगस के लक्षण की बात करें तो इससे मरीज के चेहरे में एक तरफ दर्द या सुन्न होने की समस्या हो सकती है. इसके अलावा आंखों में दर्दधुंधला दिखना या आंख की रोशनी जाना भी इसके संक्रमण के लक्षण हैं।  नाक से भूरे या काले रंग का डिस्चार्ज आना और चेहरे पर काले धब्बेबुखारसीने में दर्दसांस लेने में तकलीफजी मिचलानापेट दर्द और उल्टी आदि की समस्या भी हो सकती है.

 

 

 

  सावधानियां

- खुद या किसी गैर विशेषज्ञ डॉक्टरोंदोस्तोंमित्रोंरिश्तेदारों के कहने पर स्टेरॉयड दवा कतई शुरू न करें।

- लक्षण के पहले 5 से 7 दिनों में स्टेरॉयड देने के दुष्परिणाम हो सकते हैं। बीमारी शुरू होते स्टेरॉयड शुरू न करें। इससे बीमारी बढ़ सकती है।

- स्टेरॉयड का प्रयोग विशेषज्ञ डॉक्टर कुछ ही मरीजों को केवल 5 से 10 दिनों के लिए देते हैंवह भी बीमारी शुरू होने के 5 से 7 दिनों बादकेवल गंभीर मरीजों को। इससे पहले बहुत सी जांच होना जरूरी हैं।

 

 

- इलाज शुरू होने पर डॉक्टर से पूछें की इन दवाओं में स्टेरॉयड तो नहीं हैअगर है तो ये दवाएं मुझे क्यों दी जा रही हैं।

- स्टेरॉयड शुरू होने पर विशेषज्ञ डॉक्टर के नियमित संपर्क में रहें।

- घर पर अगर ऑक्सीजन लगाया जा रहा है तो उसकी बोतल में उबालकर ठंडा किया हुआ पानी डालें या नॉर्मल स्लाइन डालेंबेहतर हो अस्पताल में भर्ती हों।

 

 

 डरे नहीं सजग रहें

 

संजय गांधी पीजीआई के प्रो. संदीप साहू के मुताबिक जरा सा आंख लाल हुई , थोडा सा नाक बंद हुआ , नाक पर सूजन दिखा तो लोग ब्लैक फंगस समझ कर परेशान हो रहे है मेरे पास तमाम लोगों ने तमाम लोगों ने फोटो भेजा और लोग काफी डरे है। प्रो. संदीप ने कहा ब्लैंक फंगस की आशंका सबसे अधिक आईसीयू में भर्ती लोगों में होती है। खास तौर कोरोना के ऐसे मरीज जिनमें शुगर कंट्रोल नहीं होता है। ऐसे कोरोना के मरीज कोरोना ठीक होने के बाद भी स्टेरॉयड ले रहे है।     

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें