सोमवार, 31 मई 2021

भाप लेने और लंबे समय तक मास्क लगाने से नहीं होता है फंगस

 

भाप लेने और लंबे समय तक मास्क लगाने से नहीं होता है फंगस

 

 

संक्रामक नहीं है म्यूकर माइकोसिस

 

- रात में कूलर चला कर सोया था सुबह आंख में सूजन आ गयी

- गले में खरास थी भाप लिया रात में सुबह नाक में जाम हो गया

 ऐसे तमाम सवालों के कई फोन संजय गांधी पीजीआइ के  ई -ओपीडी में आ रहे है। डाक्टर भी इनसे फोटो मंगा कर देखते है तो कुछ और जनाकारी लेते है तो पता चलता है कि इन्हें म्यूकर माइकोसिस की कोई परेशानी नहीं है। संजय गांधी पीजीआइ के न्यूरो-ओटोलाजिस्ट प्रो. अमित केशरी कहते है कि म्यूकर माइकोसिस ( ब्लैक फंगस) को लेकर तमाम तरह की भ्रांतियां है तमाम लोग कह रहे है कि भाप लेने लंबे समय तक मास्क लगाने से भी फंगल की आशंका है। इस तथ्य को पूरी तरह गलत है।  

सोशल मीडिया पर ब्लैक फंगल, व्हाइट फंगस, यलो फंगल  को  लेकर कई तरह की भ्रामक जानकारियां चल रही है। जितना खतरनाक बताया जा रहा है ऐसा नहीं है। सतर्कता बरतने से इन फंगस से लड़ा जा सकता है। म्यूकर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों में ज्यादा देखा जा रहा है। ब्लैक फंगस कूलर की हवा में नहीं फैलता। यह हवा मेंपौधों मेंबाथरूम में और हमारे आसपास ही हो सकता है लेकिन यह उससे एक दूसरे व्यक्ति को नहीं फैलता है। यह बहुत लोगों के शरीर के ऊपर भी हो सकता हैलेकिन संक्रमण उसी व्यक्ति को करता है जिसकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।  लोगों को मास्क को बदलते रहना जरूरी हैलेकिन एक ही मास्क लंबे समय तक लगाने से लोगों को म्यूकोर माइकोसिस हो रहा हैयह गलत है।

भाप लेने से नहीं होता है फंगस

 भाप लेने से म्यूकोर माइकोसिस होने का खतरा बढ़ जाता हैऐसा नहीं है। सोशल मीडिया पर वायरल एक डॉक्टर के इस वीडियो के दावे के सवाल के जवाब में उन्होंने यह बात कही। इस वीडियो में कहा गया था कि लोग ज्यादा भाप ले रहे हैं इससे नाक के जरिए म्यूकोर शरीर में प्रवेश कर रहा है। 

 

कोरोना काल से पहले भी 50 फीसदी थी मृत्यु दर

 

म्यूकर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) से पीड़ित मरीजों में इस बार मृत्यु दर बढ़ सकती है।  कोरोना काल से पहले म्यूकोर माइकोसिस से पीड़ित मरीजों में 50 फीसदी तक मृत्यु दर देखी जाती थी लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण की वजह से यह बढ़ सकती है। 

 

 

 

 

शुगर के मरीज ध्यान रखें

इसका संक्रमण उन्हीं लोगों को होता है जो या तो शुगर के मरीज है और उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है। उन्होंने कहा कि ब्लड में शुगर की मात्रा अधिक हो और प्रतिरोधक क्षमता कम हो तो इस फंगस को आपके शरीर में भोजन मिल जाता है। यह हमारे आसपास ही मौजूद रहता है।

बीटाडीन नाक में मत डाले

 मुंह से बीटाडीन के गार्गल करने की बजाय नाक में इसका इस्तेमाल न करें।  यह जानलेवा हो सकता है। कोरोना के मरीजों को बीटाडीन गार्गल करने के लिए कहते हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि नाक में इसका इस्तेमाल किया जाए।

 

-यह जरूर ध्यान रखें-

शुगर का स्तर नियंत्रित रखें

स्टेरॉइड का सेवन अच्छे डॉक्टर की सलाह पर ही करें

-प्रारंभिक लक्षण होने पर डॉक्टर को दिखाएं

 

नाक के जरिए फैलता है संक्रमण

यह फंगस नाक के जरिये शरीर में प्रवेश करता है। वहां यह रक्तवाहिनी को बंद करता है।

इससे उस क्षेत्र की रक्त की आपूर्ति बंद हो जाती है और नाक में भारीपन लगता है।

यह नाक के पास ही साइनस में चला जाता है। साइनस वह खोखला हिस्सा होता है जो गाल के पास होता है।

साइनस एयर नाक के पास ही आंख होती है। वहां से ये आंख में चल जाता है

- चेहरे के किसी हिस्से में संवेदना ( सेंसेशन) कम जो जाना प्रारंभिक लक्षण है 

रविवार, 30 मई 2021

गंदा और गीला मास्क सुरक्षा के बजाए दे सकता है फंगल इंफेक्शन

 

गंदा और गीला मास्क सुरक्षा के बजाए दे सकता है फंगल इंफेक्शन

 

गर्मी में पसीने से गीला हो जाता है मास्क इस लिए दो से तीन मास्क लेकर निकले

 स्टेरायड या दूसरे इम्यूनोसप्रेसिव पर रहने वाले लोगों में अधिक है आशंका


 

म्यूकोर मायकोसिस  ( फंगस) के पीछे सबसे बडा कारण इम्यूनो सप्रेसिव दवाओं का लंबे समय तक इस्तेमाल तो है ही इसके अलावा बिना धोए लंबे समय तक मास्क पहनना, या खराब हवादार कमरों जैसे बेसमेंट, या कम हवादार कमरों में रहना। मास्क गीला हो जाए और तब भी इसे लगाए रहने भी एक बडा कारण हो सकता है।  यह मास्क  कोरोना संक्रमण से सुरक्षा देने के बजाय फंगस संक्रमण की चपेट में ला सकता है। घर से बेहद जरूरी काम के लिए ही बाहर जाने वाले लोग भी अपनी जेब में एक अधिक मास्क लेकर ही बाहर निकले । जब मास्क गीला हो जाता है तो वह कोरोना संक्रमण से सुरक्षा देने में कम या बिल्कुल ही प्रभावशील नहीं रह जाता। पानी हवा के बहाव को रोकता है जिससे मास्क की वायरल कणों को फिल्टर करने की क्षमता घट जाती है। आक्सीजम मास्क से भी इंफेक्शन की आशंका रहती है 

संजय गांधी स्नातकोत्तर आर्युविज्ञान संस्थान ( एसजीपीजीआई) के माइक्रोबायलोजिस्ट एसोसिएट प्रो. चिन्मय साहू के मुताबिक कवक या फंगल बैक्टीरिया के पनपने के लिए नमी भरा मौसम सबसे अनुकूल होता है। ऐसे में अगर मुंह पर लगा मास्क वातावरण के कारण नम अथवा गीला हो जाता है तो उसमें फंगल बीजाणु पहुंच जाएंगे। ये बीजाणु मास्क के माध्यम से नाक में प्रवेश कर सकते हैं। इस वक्त कोरोना संक्रमण के कारण लोगों की इम्युनिटी कमजोर हो गई हैऐसे में बहुत संभावना है कि यह फंगल इंफेक्शन आपके फेफड़ों में पहुंचकर शरीर को बीमार कर दे। इम्यूनोसप्रेसिव दवा पर रहने वाले लोगों में यह आशंका काफी अधिक होती है। 

धूप में सुखाएं मास्क

 मास्क को भी कुछ देर धूप में सुखा लेना सबसे बेहतर उपाय है। सामान्य मौसम में भी गीला या फिर गंदा मास्क न पहने। कम से कम दो मास्क का उपयोग करेंएक इस्तेमाल के बाद धोकर धूप में सुखा लें और तब तक दूसरा साफ मास्क इस्तेमाल करें।  साथ ही अगर लोग डिस्पोजेबल मास्क लगा रहे हैं तो उसे आठ घंटे के बाद बदल दें।

 

डबल मास्क की सुरक्षा

संक्रमण से बचने के लिए दो मास्क लगाना चाहिए। पसीने से अंदर के मास्क के नम जाने की ज्यादा संभावना हैऐसे में मास्क को ऊपर कर करें और ऊपर वाले को नीचे कर लें।

मास्क की जांच

कपड़े वाला साधारण मास्क : इस मास्क के ऊपर पानी डालकर देखने पर यह पूरे पानी को अपने अंदर सोख लेगा और पूरी तरह भीग जाएगा।

तीन परत वाला मास्क : ट्रिपल लेयर मास्क में ऊपर से पानी डालकर देखने पर पाएंगे कि यह पानी की पूरी मात्रा को अंदर तक नहीं जाने देगा। अंदर की परतें कुछ कम ही गीली होंगी।

सर्जिकल मास्क : इस मास्क के ऊपर पानी डालकर देखने पर पाएंगे कि यह पानी को अंदर ही नहीं जाने देगा।

शनिवार, 29 मई 2021

सीआरपी बताएगा कितना उठा साइटोकाइन का तूफान

 

सीआरपी बताएगा कितना उठा साइटोकाइन का तूफान


 

संक्रमण होने पर लिवर से स्रावित होता है यह ब्लड मार्कर

 

कोरोना संक्रमित होने सीआरपी( सी रिएक्टिव प्रोटीन) की जांच करायी जाती है। इस जांच से किस तरह की जानकारी मिलती है यह सवाल तमाम लोगों के मन में आता है। संजय गांधी पीजीआइ के क्लीनिकल इम्यूनोलॉजिस्ट प्रो. विकास अग्रवाल यह एक रूटीन जांच है जिससे हम लोग आटो इम्यून डिजीज के मरीजों में इंफेक्शन की गंभीरता का पता लगाने के लिए करते है। यह जांच कोरोना संक्रमित मरीजों में कोरोना का संक्रमण होने पर साइटोकाइन( आईएल6 सहित अन्य) का स्टार्म ( तूफान) उठता है जिससे इंफ्लामेंशन होता है। इस तूफान की गति नापने के लिए यह मार्कर है। इसके स्चर के आधार पर हम कोरोना संक्रमण की गंभीरता जानने के साथ ही इलाज की दिशा भी तय करने में मदद मिलती है।   हमारा शरीर एक केमिकल फैक्ट्री की तरह काम करता है। जब भी कोई बाहरी वायरस या इन्फेक्शन हमला करता है तो शरीर में कई रासायनिक प्रक्रिया शुरू हो जाती हैं। इनमें से एक है इन्फ्लेमेशन या सूजन। इस दौरान लिवर में सी-रिएक्टिव प्रोटीन बनता है। यह एक ब्लड मार्कर है जो शरीर में इन्फेक्शन का लेवल बताता है।खून का सैंपल लेकर सीआरपी लेवल मापा जाता है। इसका  लेवल जितना बढ़ा हुआ होगाउतना ही इन्फेक्शन भी बढ़ा हुआ होगा।

कब कराते है सीआरपी की जांच

माइल्ड से मॉडरेट  लक्षणों वाले मरीजों को इस टेस्ट की कोई जरूरत नहीं है। पर अगर इंफेक्शन होने के 5 दिन बाद भी मरीज में कोई गंभीर लक्षण दिखता है तो यह टेस्ट कराना जरूरी हो जाता है। अगर लक्षण बढ़ रहे हैं या नए लक्षण सामने आ रहे हैं तो यह ब्लड टेस्ट कराना चाहिए। समय पर यह टेस्ट कराने से इन्फेक्शन को माइल्ड और मॉडरेट से गंभीर होने से रोकने में मदद मिलती है। आम तौर पर यह टेस्ट उन लोगों में कराया जाता हैजिनके शरीर में गंभीर बैक्टीरियल या फंगल इन्फेक्शन होता दिखाई देता है। इससे उस इन्फेक्शन के स्तर को समझने में मदद मिलती है।

खुद न कराएं सीआरपी की जांच

यह जांच खुद कराना  नहीं चाहिए। डॉक्टर भी मरीज के लक्षणों की गंभीरता को देखकर ही यह टेस्ट करवाते हैं। आम तौर पर यह टेस्ट 500 रुपए में हो जाता है। अलग-अलग लैबोरेटरी इसके लिए कम या ज्यादा फीस ले सकती है।

                कितना होना चाहिए स्तर

                       आम तौर पर सीआरपी  का सामान्य 30-50 मिग्रा/ डेसीलीटर है। पर जब यह स्तर बढ़ जाता है तो खतरा बढ़ने लगता है। किसी व्यक्ति का ऑक्सीजन सैचुरेशन नॉर्मल है और सीआरपी लेवल 70 यूनिट से अधिक है तो यह ऐसी स्थिति में ले जा सकता हैजहां शरीर के डिफेंस सिस्टम के प्रोटीन ही शरीर को नुकसान पहुंचाने लगते हैं।

गुरुवार, 27 मई 2021

टीके के प्रभाव पर जरा सी भी आशंका नहीं,,,, हर व्‍यक्ति का जेने‍टिक स्‍ट्रक्‍चर अलग होने से समान प्रभाव नहीं







टीके के प्रभाव पर जरा सी भी आशंका नहीं, हर व्‍यक्ति का जेने‍टिक स्‍ट्रक्‍चर अलग होने से समान प्रभाव नहीं



दोनो टीका लेने के बाद केवल 0.02 फीसदी में है गंभीर संक्रमण  

 

एंटी बाडी कम बनी या तो नहीं बनी जिसके कारण दोनो टीका लेने के बाद हुआ गंभीर संक्रमण

 कहीं....वायरस के नए स्ट्रेन ने दे दिया नहीं दिया एंटीबॉडी को चकमा


 

टीकाकरण और कोविड-उपयुक्त व्यवहार पर रहे सतर्क     

 

 

कोरोना की दोनों डोज लेने के बाद भी कुछ लोग गंभीर रूप से संक्रमित हुए । कुछ लोगों की मौत भी हुई लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वैक्सीन कारगर नहीं है। तमाम लोगों के मन में सवाल भी उठ रहा है कि दोनों वैक्सीन के बाद भी गंभीर संक्रमण क्यों हुआ। इस बारे में संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान( एसजीपीजीआई) के  इमरजेंसी मेडिसिन विभाग के सहायक प्रो.  तन्मय घटक कहते हैं कि सेकंड वेव में देखनें मे आ रहा है कि वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के बाद बहुत कम फीसदी लोग गंभीर रूप से संक्रमित हुए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के बाद संक्रमण की दर केवल 0.02-0.04 फीसदी है यानि इतने फीसदी में ही गंभीर संक्रमण की आशंका है।भारत में उपलब्ध दोनों को वैक्सीन या कोविशील्ड एकदम सुरक्षित हैं। टीका लेने के बाद संक्रमण होने के पीछे हो सकते है कई कारण हो सकते है इस पर आगे शोध की जरूरत है।  प्रो. तन्मय कहते है कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध से पता चला है कि 12 सप्ताह में बाद में दूसरी खुराक बहुत अधिक प्रभावकारी हैलेकिन भारत में अधिकांश वैक्सीन दूसरी खुराक हो सकता है जल्दी मिला है , शायद इसकी वजह से सुरक्षा मजबूत नहीं थी। सबके शरीर का जिनोमिक स्ट्रक्चर अलग होता है। इसके अलावा संभव है कि दोनों डोज लगने के बाद एंटीबॉडी शीघ्र नहीं बनी या एंटीबॉडी समुचित मात्रा में नहीं बनी या जो न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी चाहिए वो नहीं बनी या तीसरी पॉसिबिलिटी है कि वायरस का नया स्ट्रेन इन एंटीबॉडी को अवॉइड कर गया और इन्फेक्शन सीरियस हो गया। यह भी संभव है कि उन्हें पहले से कोई दूसरी परेशानी रही हो जिसके कारण कोरोना संक्रमण के बाद तेजी से बढा हो।


वैक्सीन के कारण ही फ्रंट लाइन कर्मी दे पाये सेवा

 

   प्रो. तन्मय कहते है कि   वैक्सीनेटेड होने के कारण ही बडी संख्या में स्वास्थ्य कर्मी एवं फ्रंट लाइन कर्मी भयमुक्त होकर कोविड प्रभावित मरीजों की देखभाल कर पाए। इस लिए टीका सुरक्षित है इसको लेने में किसी प्रकार की लापरवाही करने की जरूरत नहीं है।  

 

 

 

वैक्सीन के ट्रायल में भी 20-25 फीसदी लोगों को हुआ था संक्रमण

जब वैक्सीन के फेज ट्रायल हुए थे उस वक्त मुख्य मुद्दा आया था कि जिनको वैक्सीन लगी थीउनको भी कोरोना इन्फेक्शन हुआ था। ऐसा नहीं है कि वैक्सीन लगने के बाद किसी को कोरोना इन्फेक्शन नहीं हुआ। 20-25 फीसदी लोगों को कोरोना इन्फेक्शन हुआ था। ट्रायल में वालंटियर ग्रुप में इन्फेक्शन माइल्ड था। उस ग्रुप में किसी को हॉस्पिटल कीआईसीयू की या वेंटिलेटर की आवश्यकता कम पड़ी थी। ना किसी की मृत्यु हुई थी।

 

भारत में उपलब्ध दोनों वैक्सीन को वैक्सीन  या कोविशील्ड 70-80 फीसदी है बचाव

 

सेकेंड वेब आने तक आम आदमी का विश्वास यही थे कि वैक्सीन की दो डोज लगवाना इन्फेक्शन से,  वेंटिलेटर पर जानेआईसीयू में जाने या मृत्यु से 100 फीसदी प्रोटेक्शन है। इसलिए वे लापरवाह थे। 

 

मजबूत आंकड़े एकत्र करने की जरूरत है

 

हम अभी भी दूसरी लहर में वैक्सीन के बाद ब्रेकथ्रू संक्रमण के आंकड़ों को एकजुट कर रहे हैं। हमें टीकाकरण के बाद के संक्रमण के और अधिक मजबूत आंकड़े एकत्र करने की जरूरत है। महामारी को हराने का एकमात्र तरीका हैविशेष रूप से बड़े पैमाने पर टीकाकरण है और कोविड-उपयुक्त व्यवहार के महत्व को महसूस करना और अभ्यास करना है। 


वैक्सीन के बाद भी रखें इन बातों का ध्यान

ध्यान रखने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एक टीका तत्काल सुरक्षा की गारंटी नहीं देता है। पहला डोज लगने से आप खुद को सुरक्षित ना मानें। दूसरी डोज के दूसरे हफ्ते से एंटीबॉडी आ गई होंगी ऐसा माना जाता है। इसके बाद भी मास्कसोशल डिस्टेंसिंगबंद जगहों पर इकट्ठा ना होना और हैंड हाइजीन इन सबका ध्यान रखना बेहद जरूरी है।

 

बुधवार, 26 मई 2021

80 फीसदी कोरोना संक्रमित नहीं है दिल के बीमार होने की आशंका फिर भी रखें दिल का ख्याल

 

80 फीसदी कोरोना संक्रमित नहीं है दिल के बीमार होने की आशंका 


कोरोना संक्रमित जिन्हे भर्ती होना पडा वह  दिल का रखें ख्याल  

कोरोना ठीक होने के बाद 10 से 20 फीसदी में रहती है दिल की बीमारी आशंका

गंभीर कोरोना संक्रमण से छुटकारा पाने के बाद दिल पर जरूर नजर रखें। कोरोना संक्रमण खत्म होने के बाद लोगों में दिल की परेशानी हो सकती है।  संजय गांधी पीजीआइ के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सुदीप कुमार के मुताबिक देखा गया है कि  ठीक होने के 10 से   20 फीसदी लोगों को दिल की परेशानी की आशंका रहती है। खास कर ऐसे मरीज जिनमें गंभीर संक्रमण के कारण भर्ती होना पड़ता है। 80 फीसदी लोग घर पर ठीक हो जाते है। इनमें दिल की बीमारी की आशंका काफी कम होती है।   संक्रमित होने के बाद फेफड़ों में संक्रमण और निमोनिया की वजह से सांस फूलने और सांस लेने में दिक्कत की समस्या होती है लेकिन ठीक होने के बाद  सांस फूलने और सीने में दर्द   की समस्या हृदय रोग से जुड़ी भी हो सकती है। देखने में आया है कि  कोविड के बाद  पहले हेल्दी थे उनमें भी परेशानी हो सकती है। रिकवर होने वाले कई मरीजों में बाद में हृदय से जुड़ी दिक्कतें हो रही हैं।

 

क्यों होती है दिल की परेशानी

कई बार ठीक होने के बाद  रक्तचाप की समस्या उभरती है जिससे ब्लड प्रेशर के अचानक बढ़ने या घटने जैसी दिक्कतें हैं। संक्रमण शरीर में इंफ्लेमेशन को ट्रिगर करता हैजिससे दिल की मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं। साथ ही धड़कन की गति भी प्रभावित होती है। इससे खून का थक्का जमने आदि की समस्या हो जाती है। उन्होंने कहा कि दरअसल कोरोना से हृदय की मांसपेशियां कमजोर पड़ जाती हैं। हार्ट में इंफ्लेमेशन बढ़ने से ऐसा होता है। इससे हार्ट फेलियरब्लड प्रेशर की दिक्कत और धड़कन की गति तेज या धीमी होने लगती है। इसके अलावा फेफड़ों में खून के थक्के जमने की वजह से हार्ट पर बुरा असर पड़ता है।

नियमित रूप से कार्डियक स्क्रीनिंग करवाएं

मरीजों में हाइपरटेंशन और घबराहट  महसूस होने से लेकर हार्ट अटैकहार्ट फेलियरस्ट्रोक और पल्मोनरी एम्बोलिज्म जैसी गंभीर दिक्कतें भी देखने को मिल रही हैं। 

 

यह परेशानी तो हो जाए सावधान

चक्कर आनासिर घूमनासिर में दर्द रहनाघबराहट महसूस होनाहाइपरटेंशनउल्टी आनापसीना आनासांस फूलनाचेस्ट पेन जैसी हल्की फुल्की दिक्कत भी महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें बीमारी को अगर शुरुआत में ही पता चल जाए और इलाज समय पर शुरू हो जाए तो मरीज को आगे चलकर बेहतर जीवन जीने में मदद मिलती है। 

 

 

दिल का कैसे रखें ख़्याल

-       डॉक्टरों ने ब्लड थिनर और दूसरी दवाएँ जो भी लिखी होजितने वक़्त के लिए लिखी हों उन्हें ज़रूर लें

-       अगर आप धूम्रपान करते हैं या आपको शराब पीने की आदत है. तो कोविड के बाद तुरंत आदत छोड़ दें

-       खाने पीने का विशेष ख्याल रखें. फलहरी सब्जियां खूब खाये और घर का खाना ही खाएं

-       पानी खूब पिएं 

-      गंभीर कोरोना संक्रमित मरीज  अस्पताल से डिस्चार्ज होने के दो हफ़्ते बादअपने डॉक्टर के पास फॉलो-अप चेक-अप के लिए ज़रूर जाएँ जरूरत हो तो ईसीजीइको कार्डियोग्राम डॉक्टर की सलाह पर ज़रूर करवाएँ

मंगलवार, 25 मई 2021

पीजीआइ कोरोना संक्रमित मरीजों की विशेष डायलिसिस तकनीक से किडनी फिर हो रही है ठीक

 

पीजीआइ  कोरोना कर सकता है किडनी को परेशान

विशेष डायलिसिस तकनीक से किडनी फिर हो रही है ठीक

कोरोना संक्रमित किडनी मरीजों के डायलिसिस में विशेष सावधानी


 

कोरोना संक्रमित सात से दस फीसदी लोगों में एक्यूट किडनी इंजरी हो सकती है जिसके कारण किडनी के कार्य क्षमता में कमी आ जाती है। सीरम क्रिएटिनिन अन्य मार्कर बढ़ जाते है। इस मामले में किडनी की खराबी को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है। संजय गांधी पीजीआइ के नेफ्रोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद के मुताबिक एक्यूट किडनी इंजरी वाले एक से दो फीसदी में डायलिसिस सहित अन्य इलाज से दोबारा किडनी की कार्यक्षमता को ठीक किया जा सकता है। इनमें सामान्य डायलिसिस के अलावा स्लो लो इफिशिएंसी डायलिसिस( स्लेड)  या कंटीन्यूअस लो एफिशिएंसी डायलिसिस तकनीक की जरूरत होती है। सामान्य डायलिसिस में तीन से चार घंटे लगते है लेकिन स्लेड या सीआरआरटी(कॉन्टिनयस रीनल रिप्लेस मेन्ट थेरपी) तकनीक में लगातार 24 घंटे से दो दिन तक लगातार डायलिसिस होती है। इस दौरान रक्तदाब सहित अन्य मानकों का विशेष ध्यान रखना होता है। देखा है कि विशेष डायलिसिस तकनीक से 90 फीसदी तक एक्यूट किडनी इंजरी के कारण किडनी खराबी ठीक हो जाती है। प्रो. नरायन ने बताया कि कोरोना का संक्रमण होने पर कई बार रक्त दाब में कमी, साइटोकाइन स्टार्म के कारण किडनी प्रभावित होती है जिसके कारण किडनी की कार्य क्षमता प्रभावित होती है। प्रो. नारायण ने कहा कि किडनी खराबी के मरीज किसी भी स्थिति में इमरजेंसी और होल्डिंग एरिया में संपर्क कर इलाज की सुविधा ले सकते हैं।  

 

कोरोना पॉजिटिव मरीजों के लिए 11 डायलिसिस स्टेशन

प्रो. नारायण ने बताया कि कोरोना पॉजिटिव मरीजों के लिए कोविड अस्पताल में 11 डायलिसिस स्टेशन है। इस पर 24 घंटे डायलिसिस की सुविधा है। किसी भी कोरोना संक्रमित मरीज को डायलिसिस के लिए हम लोग कहीं नहीं भेजते है। इन मरीजों में डायलिसिस के साथ कोरोना का भी इलाज चलता है जिसके कारण विशेष सावधानी  और केयर की जरूरत होती है। आईसीयू में भर्ती मरीज की वहीं पर डायलिसिस की जाती है। इस कोरोना काल में 274 कोरोना संक्रमित मरीजों का डायलिसिस हो चुका है। 

  

नान कोविड के 55 डायलिसिस स्टेशन

नान कोविड मरीजों के मुख्य अस्पताल में 55 डायलिसिस सेंटर है। इस साल अभी तक लगभग दस हजार मरीजों में डायलिसिस सेंशन किया जा चुका है। इसके साथ सस्पेक्टेड मरीजों के लिए होल्डिंग एरिया में भी तीन स्टेशन स्थापित है।   कोरोना कर सकता है किडनी को परेशान

विशेष डायलिसिस तकनीक से किडनी फिर हो रही है ठीक

कोरोना संक्रमित किडनी मरीजों के डायलिसिस में विशेष सावधानी


 

कोरोना संक्रमित सात से दस फीसदी लोगों में एक्यूट किडनी इंजरी हो सकती है जिसके कारण किडनी के कार्य क्षमता में कमी आ जाती है। सीरम क्रिएटिनिन अन्य मार्कर बढ़ जाते है। इस मामले में किडनी की खराबी को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है। संजय गांधी पीजीआइ के नेफ्रोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद के मुताबिक एक्यूट किडनी इंजरी वाले एक से दो फीसदी में डायलिसिस सहित अन्य इलाज से दोबारा किडनी की कार्यक्षमता को ठीक किया जा सकता है। इनमें सामान्य डायलिसिस के अलावा स्लो लो इफिशिएंसी डायलिसिस( स्लेड)  या कंटीन्यूअस लो एफिशिएंसी डायलिसिस तकनीक की जरूरत होती है। सामान्य डायलिसिस में तीन से चार घंटे लगते है लेकिन स्लेड या सीआरआरटी(कॉन्टिनयस रीनल रिप्लेस मेन्ट थेरपी) तकनीक में लगातार 24 घंटे से दो दिन तक लगातार डायलिसिस होती है। इस दौरान रक्तदाब सहित अन्य मानकों का विशेष ध्यान रखना होता है। देखा है कि विशेष डायलिसिस तकनीक से 90 फीसदी तक एक्यूट किडनी इंजरी के कारण किडनी खराबी ठीक हो जाती है। प्रो. नरायन ने बताया कि कोरोना का संक्रमण होने पर कई बार रक्त दाब में कमी, साइटोकाइन स्टार्म के कारण किडनी प्रभावित होती है जिसके कारण किडनी की कार्य क्षमता प्रभावित होती है। प्रो. नारायण ने कहा कि किडनी खराबी के मरीज किसी भी स्थिति में इमरजेंसी और होल्डिंग एरिया में संपर्क कर इलाज की सुविधा ले सकते हैं।  

 

कोरोना पॉजिटिव मरीजों के लिए 11 डायलिसिस स्टेशन

प्रो. नारायण ने बताया कि कोरोना पॉजिटिव मरीजों के लिए कोविड अस्पताल में 11 डायलिसिस स्टेशन है। इस पर 24 घंटे डायलिसिस की सुविधा है। किसी भी कोरोना संक्रमित मरीज को डायलिसिस के लिए हम लोग कहीं नहीं भेजते है। इन मरीजों में डायलिसिस के साथ कोरोना का भी इलाज चलता है जिसके कारण विशेष सावधानी  और केयर की जरूरत होती है। आईसीयू में भर्ती मरीज की वहीं पर डायलिसिस की जाती है। इस कोरोना काल में 274 कोरोना संक्रमित मरीजों का डायलिसिस हो चुका है। 

  

नान कोविड के 55 डायलिसिस स्टेशन

नान कोविड मरीजों के मुख्य अस्पताल में 55 डायलिसिस सेंटर है। इस साल अभी तक लगभग दस हजार मरीजों में डायलिसिस सेंशन किया जा चुका है। इसके साथ सस्पेक्टेड मरीजों के लिए होल्डिंग एरिया में भी तीन स्टेशन स्थापित है। 

सोमवार, 24 मई 2021

थोड़ी सी सावधानी के घर के बाकी कोरोना से नहीं होंगे संक्रमित


  



---

  बुखार या दूसरे लक्षण आते ही घर में ही जाए आइसोलेट करें  


कोरोना संक्रमण की पुष्टि का न करें इंतजार


बुखार या दूसरे लक्षण आते ही आइसोलेट करें



थोड़ी से सावधानी आप के परिवार को  कोरोना से  संक्रमित होने बचा सकती है। इस बार देखने में आ रहा है कि परिवार में एक व्यक्ति के संक्रमित होने पर परिवार के दूसरे लोग भी संक्रमित हो जा रहे है क्योंकि इस बार का कोरोना स्ट्रेन काफी संक्रामक है। देखने में आया है कि पचास फीसदी से अधिक परिवार में एक से अधिक संक्रमित हो रहे हैं।  

परिवार में कई लोगों के संक्रमित होने से घर में एक दूसरे की देखभाल करने वाले लोगों की कमी हो जाती है। संजय गांधी पीजीआइ के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो.राजीव अग्रवाल   जो कोरोना वार्ड में  मरीजों का मैनेजमेंट भी कर चुके है कहते है कि परिवार में किसी भी बुखार या दूसरे लक्षण हो तो तुरंत उस व्यक्ति के अलग कमरे में आइसोलेट करना होगा। उनका भोजन भी कमरे के बाहर रखें। कमरे में कोई भी न जाए। उनके कपड़े भी अलग धोए जाएं। घर के लोग एन 95 मास्क का इस्तेमाल करें।  देखा जा रहा है कि परिवार के किसी व्यक्ति के बुखार होने से कोरोना संक्रमण की पुष्टि तक  साथ रहते है जिसके कारण घर के दूसरे लोग संक्रमित हो रहे है। बुखार आने के बाद पेरासिटामोल 650 मिलीग्राम लेना शुरू करें। इससे चार बार तक लिया जा सकता है। इसकी अधिकतम डोज तीन मिली ग्राम है। इसके साथ ही घर में पल्स आक्सीमीटर, थर्मामीटर और स्टीम वेपोराइजर( भाप लेने की मशीन) जरूर रखें यह सब दो हजार में मिल जाता है। जांच में संक्रमण की पुष्टि होने पर योग, कमरे में 30 मिनट चलें। पेट के बल लेटे इससे काफी हद आराम मिलेगा। भाप चार से पांच लें। प्रो. राजीव का कहना है कि होम आइसोलेशन में 70 से 75 फीसदी लोग दवा के साथ ठीक हो सकते है।

 

संक्रमण की पुष्टि हो जाने पर सार्वजनिक स्थानों जैसे कि कार्यालय, स्कूल, थिएटर, रेस्तरां आदि पर न जाएं। डॉक्टर ने जो दवाइयां दी हैं सिर्फ वही लें, स्टेरॉयड, रेमेडिसविर आदि का खुद से सेवन न शुरू करें। सार्वजनिक परिवहनों का प्रयोग बिल्कुल न करें। जब तक लक्षण पूरी तरह के खत्म न हो जाएं या फिर टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव न आ जाए, न तो आइसोलेशन खत्म करें न ही किसी से मिलें।



  

कल के लिए
Show quoted text

शुक्रवार, 21 मई 2021

एक दिन में 50 से 60 हजार का लगता है एम्फोटेरिसिन बी लाइपोसोमल इंजेक्शन

 









प्री डायबिटीक है तो शुगर पर रखें कड़ी नजर

प्री डायबटिक कोरोना संक्रमित यानि जिनमें पहले शुगर नहीं रहा है उन्हे और सावधानी बरतने की जरूरत है क्योंकि उनके पास न तो ग्लूकोमीटर रहता है और न दवाएं । इस लिए इनमें स्टेरॉयड लेने पर तेजी से शुगर का स्तर बढ़ता है । इन लोगों को शुगर बढ़ते ही दवा शुरू करने की जरूरत है।

- कोरोना संक्रमण खत्म होने बाद भी लंबे समय तक शुगर पर नजर रखने की जरूरत है।

- कोरोना संक्रमण होने पर पहले चार दिन हल्का बुखार आता है पांचवें दिन तेज बुखार होता है ऐसा देखा गया है इस लिए स्टेरॉयड पांचवें दिन शुरू के और दसवें दिन बंद कर दें

 

इनमें है अधिक ब्लैक फंगस का खतरा

 

राईनो सेरेब्रल म्यूकर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) नाम का नया रोग सामने आ गयाजो कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों के लिए खतरा बन गया। कोरोना रोग से ग्रसित मरीजों में उपचार के बाद राईनोसेरेबल म्यूकरमाईकोसिस पाया जा रहा है।  इस रोग का प्रारंभिक अवस्था में पता लगाना इसके उपचार और बेहतर परिणाम के लिए आवश्यक है। 

 

-कोविडमधुमेह के साथ कोविड रोगी जो स्टेरॉयड  अन्य इम्यूनो सप्रेसिव प्रयोग कर रहे हैं और उनका ब्लड शुगर नियंत्रण में नहीं है।

-कोविड रोगी जो पहले से इम्यूनो सप्रेसिव प्रयोग कर रहे हैं।

-जिन कोविड रोगियों का अंग प्रत्यारोपण हो चुका है।

 

बचाव के तरीके

 

 

-ब्लड शुगर पर पूरा नियंत्रण।

-स्टेरॉयड का उचिततर्कसंगत और विवेकपूर्ण प्रयोग।

-ऑक्सीजन ट्यूबिंग का बार-बार बदला जाना और प्रयोग की गई ऑक्सीजन ट्यूब का दोबारा इस्तेमाल न किया जाए।

-कोविड मरीज को आक्सीजन देते समय उसका आर्द्रता करण करें और आर्द्रता विलयन बार-बार किया जाए।

-दिन में दो बार नाक को सलाइन से धोएं।

 



 

कैसे होगी ब्लैंक फंगस की पुष्टि

 

-नेजल स्पेकुलम से नाक की प्रारंभिक जांच।

-नेजल एंडोस्कोपी।

-केओएच वेट माउंट।

-एंडोस्कोपी पर मिडिल तथा इन्फीरियर टरबीनेट की ब्लैकिनिंग।

 

ये है उपचार

 

-मधुमेह का उचित नियंत्रण।

-इलेक्ट्रोलाइट के बिगड़ने तथा रीनल फंक्शन टेस्ट और लिवर फंक्शन टेस्ट।

-डेड टिश्यू को प्रारंभिक अवस्था में निकालना।

-फंगल कल्चर और सेंसिटिविटी (साथ ही कुछ दवाइयों के नाम सुझाए गए हैं।)

 

क्या है इलाज

इस बीमारी का इलाज है एम्फोटेरिसिन-बी लाइपोसोमल इंजेक्शन. अगर मरीज को इस इंजेक्शन की डोज दी जाएं तो कोई खतरा नहीं है

 

एक दिन में 50 से 60 हजार का लगता है   एम्फोटेरिसिन बी लाइपोसोमल इंजेक्शन

यह एक एंटी फंगल इंजेक्शन है. यह शरीर में फंगस की ग्रोथ को रोक देता हैजिससे संक्रमण बढ़ने का खतरा खत्म हो जाता है. कोरोना संक्रमण के बाद कई मरीजों में ब्लैक फंगस या म्यूकरमाइकोसिस के मामले सामने आ रहे हैं।  ऐसे में एम्फोटेरिसिन बी लाइपोसोमल  इंजेक्शन इसके इलाज में काफी कारगर है।  ये इंजेक्शन मरीज को रोजाना लगाने की जरूरत पड़ती है और 10-15 दिन तक इस इंजेक्शन की डोज देने पड़ती है. इस इंजेक्शन की भारतीय बाजार में कीमत 7-8 हजार रुपए हो सकती है इसकी पांच से 6 इंजेक्शन रोज देनी पड़ सकती है। इस तरह 50 हजार तक का खर्च रोज का केवल दवाओं का आस सकता है।   इस इंजेक्शन के साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं,  इसलिए बिना डॉक्टर की सलाह के इस इंजेक्शन का इस्तेमाल ना करें.

 

मिट्टी गीली लकड़ी में  रहता है  ब्लैक फंगस 

विशेषज्ञों का कहना है कि ब्लैक फंगस या म्यूकरमाइकोसिस बीमारी म्यूकर फंगस से होती है. यह फंगस हमारे वातावरण जैसे हवानमी वाली जगहमिट्टीगीली लकड़ी और सीलन भरे कमरों आदि में पाई जाती है. स्वस्थ लोगों को यह फंगस कोई नुकसान नहीं पहुंचाती है लेकिन जिन लोगों की इम्यूनिटी कमजोर हैउन्हें इस फंगस से इंफेक्शन का खतरा है.

 

कोरोना मरीजों को क्यों है ब्लैक फंगस से ज्यादा खतरा

कई कोरोना मरीजों में उनकी इम्यूनिटी ही उनकी दुश्मन बन जाती है और वह हाइपर एक्टिव होकर शरीर की सेल्स को ही तबाह करना शुरू कर देती है. ऐसे में डॉक्टर मरीज को इम्यूनिटी कम करने वाली दवाएं या स्टेरॉयड देते हैं. यही वजह है कि कोरोना मरीजों में ब्लैक फंगस का खतरा बढ़ गया है. इसके अलावा डायबिटीज और कैंसर के मरीजों में भी इम्यूनिटी कमजोर होती हैजिससे उन्हें भी ब्लैक फंगस का खतरा ज्यादा होता है.

 

 

ब्लैक फंगस आंखों और ब्रेन को पहुंचा रहा नुकसान

संजय गांधी पीजीआइ की नेत्र रोग विशेषज्ञ प्रो. रचना अग्रवाल के मुताबिक   ब्लैक फंगस मरीज के शरीर में घुसकर उसकी आंखों और ब्रेन को नुकसान पहुंचा सकता है।  साथ ही स्किन को भी हानि पहुंचा सकता है।  यही वजह है कि ब्लैक फंगस के मरीजों में आंख की रोशनी जाने और जबड़ा या नाक में संक्रमण फैलने की परेशानी हो सकती है।  कई बार ऑपरेशन से निकालने की नौबत भी आ रही है। 

 

 

यह है तो हो जाए सजग

ब्लैक फंगस के लक्षण की बात करें तो इससे मरीज के चेहरे में एक तरफ दर्द या सुन्न होने की समस्या हो सकती है. इसके अलावा आंखों में दर्दधुंधला दिखना या आंख की रोशनी जाना भी इसके संक्रमण के लक्षण हैं।  नाक से भूरे या काले रंग का डिस्चार्ज आना और चेहरे पर काले धब्बेबुखारसीने में दर्दसांस लेने में तकलीफजी मिचलानापेट दर्द और उल्टी आदि की समस्या भी हो सकती है.

 

 

 

  सावधानियां

- खुद या किसी गैर विशेषज्ञ डॉक्टरोंदोस्तोंमित्रोंरिश्तेदारों के कहने पर स्टेरॉयड दवा कतई शुरू न करें।

- लक्षण के पहले 5 से 7 दिनों में स्टेरॉयड देने के दुष्परिणाम हो सकते हैं। बीमारी शुरू होते स्टेरॉयड शुरू न करें। इससे बीमारी बढ़ सकती है।

- स्टेरॉयड का प्रयोग विशेषज्ञ डॉक्टर कुछ ही मरीजों को केवल 5 से 10 दिनों के लिए देते हैंवह भी बीमारी शुरू होने के 5 से 7 दिनों बादकेवल गंभीर मरीजों को। इससे पहले बहुत सी जांच होना जरूरी हैं।

 

 

- इलाज शुरू होने पर डॉक्टर से पूछें की इन दवाओं में स्टेरॉयड तो नहीं हैअगर है तो ये दवाएं मुझे क्यों दी जा रही हैं।

- स्टेरॉयड शुरू होने पर विशेषज्ञ डॉक्टर के नियमित संपर्क में रहें।

- घर पर अगर ऑक्सीजन लगाया जा रहा है तो उसकी बोतल में उबालकर ठंडा किया हुआ पानी डालें या नॉर्मल स्लाइन डालेंबेहतर हो अस्पताल में भर्ती हों।

 

 

 डरे नहीं सजग रहें

 

संजय गांधी पीजीआई के प्रो. संदीप साहू के मुताबिक जरा सा आंख लाल हुई , थोडा सा नाक बंद हुआ , नाक पर सूजन दिखा तो लोग ब्लैक फंगस समझ कर परेशान हो रहे है मेरे पास तमाम लोगों ने तमाम लोगों ने फोटो भेजा और लोग काफी डरे है। प्रो. संदीप ने कहा ब्लैंक फंगस की आशंका सबसे अधिक आईसीयू में भर्ती लोगों में होती है। खास तौर कोरोना के ऐसे मरीज जिनमें शुगर कंट्रोल नहीं होता है। ऐसे कोरोना के मरीज कोरोना ठीक होने के बाद भी स्टेरॉयड ले रहे है।