सोमवार, 29 सितंबर 2025

पीजीआई में राष्ट्रीय पोषण माह पर जागरूकता कार्यक्रम

 



पीजीआई में राष्ट्रीय पोषण माह पर जागरूकता कार्यक्रम


 एसजीपीजीआईएमएस के एपेक्स ट्रॉमा सेंटर में राष्ट्रीय पोषण माह के अवसर पर जन-जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में डॉ. एल. के. भारती (नोडल ऑफिसर), डॉ. पुलक (प्रमुख, आर्थोपेडिक्स विभाग), डॉ. सुरूचि (एनेस्थीसिया विभाग) और डॉ. रोमिल (मनोचिकित्सा विभाग) उपस्थित रहे।


कार्यक्रम का संचालन डायटिशियन मोनिका दीक्षित एवं उनकी टीम ने किया। वरिष्ठ डायटिशियन अर्चना सिन्हा ने संतुलित आहार की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है। डॉ. निरुपमा सिंह ने हर आयु वर्ग के लिए सभी पोषक तत्वों को आहार में शामिल करने का संदेश दिया। डायटिशियन प्रीति यादव ने लोगों से आग्रह किया कि वे धरती माँ के नाम से एक फलदार या फूलदार पौधा लगाएं।


कार्यक्रम में पोषण क्विज़ और खेल गतिविधियों का आयोजन भी किया गया। वरिष्ठ डायटिशियन शिल्पी पांडे ने बताया कि “पोषण केवल भोजन तक सीमित नहीं, बल्कि जीवनशैली और स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।” रीता आनंद और दीपा मिश्रा ने “पोषक थाली – संतुलित आहार” के महत्व को रोचक तरीके से प्रदर्शित किया।


मुख्य अतिथियों ने कहा कि राष्ट्रीय पोषण माह छोटे प्रयासों से बड़े स्तर पर स्वास्थ्य सुधार की प्रेरणा देता है।

आयुष्मान भारत में सहयोग के लिए प्रो हर्षवर्धन को उत्कृष्ट सम्मान

 


किडनी मरीजों के लिए सहारा बना आयुष्मान 


 पीजीआई  हृदय और इमरजेंसी मेडिसिन के मरीज को आयुष्मान से मिली रहत



संजय गांधी पीजीआई में  आयुष्मान भारत मरीजों के लिए जीवन का नया सहारा बनकर उभरा है। खासकर गरीब और बुजुर्ग मरीजों के लिए यह योजना किसी वरदान से कम नहीं। वर्ष 2022–23 से 2024–25 (31 जुलाई तक) के बीच संस्थान में 31,000 से अधिक मरीजों ने इसका लाभ उठाया। संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर राजेश हर्षवर्धन ने बताया कि  नेफ्रोलॉजी विभाग सबसे आगे रहा, जहाँ किडनी रोग से जूझ रहे 4,287  गंभीर बीमारी में यह आर्थिक राहत मरीजों और उनके परिवारों के लिए उम्मीद की किरण बन गई।


न्यूरो और इमरजेंसी विभाग में भी बढ़ा 


न्यूरोसर्जरी विभाग में तीन वर्षों में 2,763 मरीज और इमरजेंसी मेडिसिन विभाग में 2,129 मरीजों ने आयुष्मान भारत की मदद पाई। 


कैंसर और हार्मोनल बीमारियों में भी मदद

कैंसर रोगियों के लिए रेडियोथेरेपी विभाग में 2,604 मरीजों ने और एंडोक्राइन सर्जरी विभाग में 2,912 मरीजों ने योजना के तहत महंगे इलाज का लाभ लिया। इन विभागों में इलाज की उच्च लागत को देखते हुए आयुष्मान भारत गरीब मरीजों के लिए जीवनदायिनी साबित हुई।


दिल, दिमाग और हड्डियों का इलाज भी आसान


कार्डियोलॉजी विभाग: 1,254 मरीज


न्यूरोलॉजी विभाग: 1,757 मरीज


गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी विभाग: 1,209 मरीज


ऑर्थोपेडिक्स विभाग: 906 मरीज



यूरोलॉजी: 972


एन्डोक्रिनोलॉजी: 203


नवजात विज्ञान: 342


पल्मोनरी मेडिसिन: 345


रेडियो डायग्नोसिस: 240


नेत्र विज्ञान: 241


मेडिकल जेनेटिक्स: 95


मातृ एवं प्रजनन स्वास्थ्य: 215



वर्ष-दर-वर्ष बढ़ते आंकड़े

संस्थान में आयुष्मान भारत योजना से लाभ पाने वाले मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2022–23 में 5,526 मरीज, 2023–24 में 9,706 और 2024–25 (31 जुलाई तक) में 16,179 मरीजों ने योजना का लाभ उठाया।




आयुष्मान भारत में सहयोग के लिए प्रोफेसर हर्षवर्धन को उत्कृष्ट सम्मान


 संजय गांधी पीजीआई के प्रो. (डॉ.) आर. हर्षवर्धन, नोडल अधिकारी एबी-पीएमजेएवाई एवं प्रमुख, अस्पताल प्रशासन विभाग को आयुष्मान भारत – प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में सराहनीय योगदान के लिए उत्कृष्टता सम्मान प्रदान किया गया। यह सम्मान अटल बिहारी वाजपेयी वैज्ञानिक सम्मेलन केंद्र,  में आयोजित आयुष्मान संवाद कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक ने प्रदान किया। कार्यक्रम का आयोजन साचीस (समग्र स्वास्थ्य एवं एकीकृत सेवा एजेंसी) द्वारा योजना के सात वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में किया गया।


शनिवार, 27 सितंबर 2025

कोविड-19 टीकाकरण और कैंसर: दक्षिण कोरिया के बड़े अध्ययन में मिले चिंताजनक संकेत




कोविड-19 टीकाकरण और कैंसर: दक्षिण कोरिया के बड़े अध्ययन में मिले चिंताजनक संकेत


दक्षिण कोरिया में किए गए एक बड़े जनसंख्या आधारित अध्ययन ने यह संकेत दिए हैं कि कोविड-19 टीकाकरण के बाद एक वर्ष के भीतर कुछ प्रकार के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। यह अध्ययन अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका बायोमार्कर रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।


अध्ययन का तरीका


यह अध्ययन स्वास्थ्य बीमा से जुड़ी राष्ट्रीय डाटाबेस पर आधारित था। इसमें करीब 84 लाख वयस्कों को शामिल किया गया। शोधकर्ताओं ने “प्रोपेंसिटी स्कोर मैचिंग (Propensity Score Matching)” नामक सांख्यिकीय तकनीक का प्रयोग किया, ताकि टीका लगवाने और न लगवाने वाले समूहों को उम्र, लिंग और अन्य स्वास्थ्य कारकों के हिसाब से तुलनात्मक रूप से समान बनाया जा सके।


अंतिम विश्लेषण में करीब 5.95 लाख टीकाकृत और 23.8 लाख बिना टीका लगे व्यक्तियों की तुलना की गई।


इसके बाद एक वर्ष की अवधि में इन व्यक्तियों में नए कैंसर मामलों की दर (इंसिडेंस) को दर्ज किया गया और फिर “हैज़र्ड रेशियो (Hazard Ratio)” के आधार पर जोखिम का अनुमान लगाया गया।



अध्ययन के निष्कर्ष


अध्ययन में यह पाया गया कि कोविड-19 वैक्सीन लगवाने वाले व्यक्तियों में थायरॉयड कैंसर का खतरा 35 प्रतिशत, पेट का 34 प्रतिशत, आंत्र का 28 प्रतिशत, फेफड़े का 53 प्रतिशत, स्तन का 20 प्रतिशत और प्रोस्टेट कैंसर का 69 प्रतिशत अधिक पाया गया।


टीके के प्रकार, लिंग और उम्र के आधार पर फर्क


डीएनए आधारित (सीडीएनए) टीकों से प्रोस्टेट और फेफड़े के कैंसर का खतरा अधिक पाया गया, जबकि मैसेंजर आरएनए (एमआरएनए) आधारित टीकों से स्तन कैंसर का खतरा बढ़ा।


पुरुषों में पेट और फेफड़े के कैंसर का जोखिम अधिक पाया गया, जबकि महिलाओं में थायरॉयड और आंत्र कैंसर का।


65 वर्ष से कम उम्र वालों में थायरॉयड और स्तन कैंसर का खतरा खास तौर पर बढ़ा दिखा।

इसके अलावा, जिन लोगों ने बूस्टर खुराक ली, उनमें पेट और अग्न्याशय के कैंसर का खतरा बढ़ने की संभावना सामने आई।



आशंका किस तरह जताई गई और वैज्ञानिकों में शोर


शोधकर्ताओं ने कहा कि इतने बड़े समूह में एक जैसी प्रवृत्ति दिखना महज संयोग नहीं हो सकता। उनका मानना है कि यह “स्वास्थ्य नीति-निर्माताओं के लिए चेतावनी की घंटी” है और आगे गहन जैविक अध्ययनों की आवश्यकता है।

इस अध्ययन के प्रकाशन के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस छिड़ गई। वैक्सीन समर्थक वैज्ञानिकों का कहना है कि यह केवल सांख्यिकीय सहसंबंध है, कारण-परिणाम का प्रमाण नहीं। जबकि आलोचक इसे अब तक का “सबसे ठोस जनसंख्या-आधारित संकेत” मान रहे हैं और कैंसर जैसी गंभीर बीमारी पर और अधिक सतर्कता बरतने की मांग कर रहे हैं।



शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

संजय गांधी पीजीआई का न्यूरो सर्जरी विभाग: देश में नई तकनीकों का शिखर

 


   


संजय गांधी पीजीआई का न्यूरो सर्जरी विभाग: देश में नई तकनीकों का शिखर


 देश के दूसरे संस्थान का दर्जा प्राप्त संजय गांधी पीजीआई का न्यूरो सर्जरी विभाग


आंख के बगल से दिमाग के स्कल बेस के ट्यूमर की  सर्जरी तकनीक स्थापित


जटिल स्कल बेस के अंदर भी सर्जरी की नई तकनीक स्थापित  


 


संजय गांधी पीजीआई का न्यूरो सर्जरी विभाग ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। यह विभाग देश का दूसरा ऐसा संस्थान बन गया है, जहां दिमाग के निचले हिस्से (स्कल बेस) के ट्यूमर और एनीऑरिज्म की सर्जरी बिना सिर खोले, आंख के किनारे से दिमाग के अंदर पहुंच कर करने की तकनीक स्थापित की गई है। इस तकनीक को "ट्रांस आर्बिटल एप्रोच" कहा जाता है, जो एडवांस इंडोस्कोपी के माध्यम से संभव हो पाई है। इस तकनीक को दो साल पहले स्थापित किया गया था और अब तक लगभग 25 मरीजों में सफल सर्जरी हो चुकी है। दूसरी तकनीक, "ट्रांस केवरनेस एप्रोच" के जरिए कान के पास स्थित केवरनेस साइनस से स्कल बेस की जटिल सर्जरी की जा सकती है।


विभाग के  प्रो. कुंतल कांति दास ने कहा, "यह सम्मान केवल एक सर्जन का नहीं बल्कि विभाग के सभी सर्जनों की मेहनत का परिणाम है। यह हमें और काम करने के लिए प्रेरित करता है और संस्थान निदेशक के सहयोग के बिना यह संभव नहीं हो सकता था।"


 


संजय गांधी पीजीआई को प्रतिष्ठित रैंकिंग


 


प्रमुख शोध एजेंसी द्वारा संजय गांधी पीजीआई के न्यूरो सर्जरी विभाग को भारत में दूसरा सर्वश्रेष्ठ और एशिया में 9वां स्थान दिया गया है। वैश्विक स्तर पर यह विभाग 65वें स्थान पर है। यह उपलब्धि रोगी देखभाल, शोध प्रकाशनों और पूर्व छात्रों के सामाजिक योगदान की वजह से मानी जाती है।


 


गामा नाइफ की बडे  ट्यूमर के इलाज होगी भूमिका


प्रो. कुंतल ने बताया कि अब तक माना जाता रहा है कि गामा नाइप का की जरूरत छोटे ट्यूमर में होती है लेकिन अब बडे ट्यूमर में इसकी जरूरत है। बडे ट्यूमर को पूरा निकलाने में कई बार दिमाग को नुकसान होने की आशंका रहती है ऐसे में हम लोग नीयर टोटल रीमूवल करते है बचे हिस्से को गामा नाइफ से रेडियन देकर नष्ट करते है।  जागरूकता के कारण अब छोटे ट्यूमरे के मरीज भी आने लगे कई बार लक्षण के आधार पर भी छोटे ट्यूमर पकड़ में आ जाते है।





सालाना शोध कार्य और परियोजनाएं


 


प्रति वर्ष 40 से 45 उच्च गुणवत्ता वाले शोध पत्र प्रकाशित किए जाते हैं।


 


30 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं।


 


6 करोड़ रुपये से अधिक के शोध परियोजनाएं चल रही हैं।


 


मल्टी-सेंट्रिक शोध परियोजनाओं का संचालन हो रहा है।


15 फीसदी लोग वैरिकोज वेन और डीवीटी से हो सकते हैं प्रभावित

 











पीजीआई में वीनस डिजीज में सीएमई


ड्राइवर, ऑफिस कर्मचारी, गर्भवती महिलाएं और बुजुर्ग में पैर की नसों में रुकावट की आशंका 



15 फीसदी लोग वैरिकोज वेन और डीवीटी से हो सकते हैं प्रभावित


 इलाज की नई तकनीक से पैर काटने की दर में आई है कमी


 


 10-15 फीसदी में वैरिकोज वेन की समस्या होती है।  डीप वेन थ्रोम्बोसिस  लगभग 1-2 फीसदी लोगों को प्रभावित करता है। ये दोनों नसों से जुड़ी गंभीर बीमारियां हैं जिसका सही समय पर  सही इलाज न मिलने पर खतरा बन सकती हैं। खासकर उन लोगों में जोखिम अधिक होता है, जिनका काम लंबे समय तक खड़े रहने या बैठने वाला होता है, जैसे ड्राइवर, ऑफिस कर्मचारी, गर्भवती महिलाएं और बुजुर्ग। यह बात इंडियन सोसाइटी ऑफ़ वीनस डिजीज द्वारा आयोजित सीएमई के आयोजक सामान्य अस्पताल के सर्जन डॉ. वृजेश सिंह और प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रो. अंकुर भटनागर ने कही। उद्घाटन प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा अमित कुमार घोष ने किया था, जिसमें संस्थान के निदेशक और कई संकाय सदस्य भी मौजूद थे।





इलाज न होने पर पैर काटने की नौबत आती है


 


प्रो. अंकुर भटनागर के अनुसार, वैरिकोज वेंस अल्सर और डीवीटी का समय पर इलाज न होने पर घाव और संक्रमण गहराते हैं, जिससे सेप्सिस (संक्रमण) के कारण कभी-कभी पैर काटने की जरूरत पड़ सकती है। गंभीर और अनदेखे वेरिकोज अल्सर के कारण पैरों की कटाई (अंपुटेशन) की दर लगभग 1-3 फीसदी तक देखी गई है। पहले यह दर 4-6 फीसदी तक थी, लेकिन तकनीक और जागरूकता के कारण इसमें कमी आई है। 







 


क्या है वैरिकोज वेंस और डीवीटी


 


इसमें टांगों की नसों के वाल्व कमजोर हो जाते हैं और रक्त वापस सही दिशा में नहीं पहुंच पाता। इससे नसें फैल जाती हैं, सूज जाती हैं और त्वचा पर अल्सर या घाव बनने लगते हैं।डीवीटी में गहरी नसों में खून का थक्का जम जाता है, जिससे रक्त प्रवाह बाधित होता है।








 शुरूआत में दवा से भी इलाज संभव


 


इसमें शुरुआती इलाज दवाओं से होता है। वैरिकोज वेंस में दर्द निवारक, सूजन कम करने वाली दवाएं और रक्त परिसंचरण सुधारने वाली दवाएं दी जाती हैं। डीवीटी में रक्त पतला करने वाली दवाएं थक्कों को बढ़ने से रोकती हैं।जब दवाएं काम नहीं करतीं, घाव गहरा हो या थक्का बड़ा हो जाए, तब इंटरवेंशन प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं, जिनमें शामिल 


 


फोम स्क्लेरोथेरेपी: दवा को झाग के रूप में प्रभावित नस में डाला जाता है, जिससे नस सिकुड़ जाती है।


 


लेजर एब्लेशन: लेजर किरणों से नस को अंदर से बंद किया जाता है, जिससे सूजन कम होती है और घाव जल्दी भरते हैं।


 


मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी: डीवीटी के थक्के को कैथेटर से हटाने की प्रक्रिया, जो तुरंत राहत देती है।


 



 


यह परेशानी तो तुरंत लें सलाह


 


-टांगों में लगातार दर्द


 


-सूजन या गर्माहट महसूस होना


 


-त्वचा पर नीले या गहरे रंग के धब्बे


 


-टांगों में गांठ या सूजी हुई नसें दिखना


 


-टांगों में घाव या अल्सर होना


 


-पैरों में कमजोरी या भारीपन महसूस होना


 


यह करके कम कर सकते हैं आशंका:


 


-वजन नियंत्रित रखें


 


-लंबे समय तक बिना हिले-डुले न बैठें और न खड़े रहें


प्रो अंकुर भटनागर

डॉ बृजेश सिंह



हिप रिप्लेसमेंट में नहीं होगा पैर बड़ा या छोटा:

 

नई तकनीक से हिप रिप्लेसमेंट में नहीं होगा पैर छोटा न बड़ा: एवैस्कुलर नेक्रोसिस से ग्रस्त युवक की हुई  सर्जरी


 


पीजीआई ने स्थापित किया हिप प्रत्यारोपण के लिए एंटीरियर एप्रोच तकनीक


 कुमार संजय 


लखनऊ के तेलीबाग क्षेत्र के 27 वर्षीय युवक को एवैस्कुलर नेक्रोसिस (एवीएन) बीमारी का सामना था, जिसमें हड्डियों को रक्त आपूर्ति नहीं मिल पाती और हड्डी धीरे-धीरे मरने लगती है चलने , उठने -बैठने में परेशानी के साथ दर्द होता है।   इस स्थिति में हिप रिप्लेसमेंट ही एकमात्र उपचार है। युवक का एक महीने पहले एक कूल्हे का ऑपरेशन किया गया था, और अब इसी सप्ताह दूसरे कूल्हे का सफल प्रत्यारोपण किया गया।


 


इस सर्जरी की खास बात यह थी कि नई एंटीरियर एप्रोच तकनीक से ऑपरेशन किया गया, जिससे मरीज के पैर की लंबाई में कोई कमी नहीं आई, जो आमतौर पर हिप रिप्लेसमेंट में एक बड़ी समस्या होती है। यह सफलता संजय गांधी पीजीआई के एपेक्स ट्रामा सेंटर के आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. केशव कुमार और उनकी टीम के प्रयासों का परिणाम है। डॉ. कुमार के अनुसार, इस तकनीक से ऑपरेशन के बाद मरीज केवल चार-पाँच दिन में चलने-फिरने में सक्षम हो जाते हैं।


 


नई एंटीरियर एप्रोच तकनीक: कैसे है यह खास?


 


पहले हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी पीठ की ओर से की जाती थी, जिसमें मांसपेशियों को काटना पड़ता था। इसके कारण खून बहने का खतरा और रिकवरी में देरी होती थी। कई बार ऑपरेशन के बाद पैर छोटा हो जाता था, जिससे मरीज को शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता था। लेकिन एंटीरियर एप्रोच, यानी पेट की ओर से की जाने वाली सर्जरी ने इन समस्याओं को हल कर दिया है। इस तकनीक में मांसपेशियों को काटने की बजाय केवल अलग किया जाता है, जिससे शरीर पर कम दबाव पड़ता है और रिकवरी तेज होती है।


 


ऑपरेशन के दौरान सी-आर्म की मदद से यह सुनिश्चित किया जाता है कि पैर की लंबाई में कोई बदलाव नहीं हो रहा। इस तकनीक के कारण अब तक 14 मरीजों की हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी सफलतापूर्वक की जा चुकी है।


 


मरीजों के लिए क्या हैं फायदे?


 


पैर छोटा होने की समस्या नहीं होगी: नई तकनीक से ऑपरेशन के बाद मरीज के पैर की लंबाई में कोई बदलाव नहीं आता।


 


जल्दी रिकवरी: मरीज को जल्दी अस्पताल से छुट्टी मिलती है, और वह अपनी सामान्य दिनचर्या में जल्दी लौट सकते हैं।


 


कामकाजी लोगों के लिए उपयुक्त: खासतौर पर युवाओं और कामकाजी लोगों के लिए यह तकनीक वरदान साबित हो रही है, क्योंकि वे जल्द ही अपने कार्यों पर लौट सकते हैं।


 


बच्चों में बढ़ रही हिप समस्या


 


डॉ. कुमार ने बताया कि अब बच्चों में भी कूल्हे की समस्याएं बढ़ रही हैं, जो जन्मजात विकृति, संक्रमण या चोट के कारण होती हैं। एंटीरियर एप्रोच इन मामलों में भी बेहद कारगर साबित हो रही है।


 


सर्जरी टीम


 


आर्थोपेडिक एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. केशव कुमार


 


एनेस्थीसिया एडिशनल प्रोफेसर गणपत प्रसाद


 


एनेस्थीसिया रेजीडेंट डॉ. उत्कर्ष उपाध्याय


 


एनेस्थीसिया डॉ. अर्पण मिश्रा


 


डॉ. योगेश साहू


 


नर्सिंग ऑफिसर अंकित

सोमवार, 22 सितंबर 2025

सोना आसमान पर, कमाई ज़मीन पर – बेटी की शादी में पिता कैसे निभाएंगे फर्ज़?




सोना आसमान पर,  कमाई ज़मीन पर – बेटी की शादी में पिता कैसे निभाएंगे फर्ज़?





सोना आज सिर्फ़ धातु नहीं, बल्कि आम आदमी के लिए चिंता का विषय बन चुका है। कभी जिसे "अमूल्य धरोहर" कहा जाता था, वही अब लोगों की पहुँच से बाहर होता जा रहा है। आंकड़े बताते हैं कि सोना 24,000 रुपये तक पहुँचने में पूरे 70 साल लगा, लेकिन 24,000 से 1,15,000 तक पहुँचने में महज़ 11 साल। यानी कीमतें अब रफ़्तार से भाग रही हैं।


लेकिन सवाल यह है कि क्या लोगों की आय, वेतन या आमदनी भी उसी अनुपात में बढ़ी? जवाब है – नहीं।


1950 के दशक में जहाँ एक अध्यापक या साधारण कर्मचारी का वेतन 100–200 रुपये महीना होता था, वहीं 2014 तक यह बढ़कर 25–30 हज़ार तक पहुँचा। यह लगभग 150–200 गुना की छलांग थी। पर उसी दौरान सोने ने 2000 गुना से भी ज़्यादा की ऊँचाई छू ली। और अब 2014 से 2025 के बीच तो हालात और विकट हैं – सोना पाँच गुना महँगा हो गया, लेकिन वेतन सिर्फ़ तीन गुना।


यानी जीवन जीने की असली रफ़्तार सोने ने पकड़ी है, न कि लोगों की कमाई ने।



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महंगाई की असली चोट – बेटी की शादी


मुद्दा यहीं खत्म नहीं होता। आज अगर किसी पिता की बेटी या बहन की शादी है तो सबसे बड़ी चिंता सोने के गहनों की होती है। समाज का दबाव, रिश्तेदारों की बातें और तानों का डर – यह सब मिलकर पिता को रातों की नींद हराम कर देता है।


जिस बेटी ने घर में हँसी–खुशी की चहक भर दी, उसकी शादी में अगर सोने के गहने न दिए जाएँ तो वही बेटी और बहन ताने सुनने को मजबूर हो जाती है। और पिता? वह शर्मिंदगी झेलता है, चाहे उसने कितनी ही मेहनत क्यों न की हो।



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सिर्फ़ सोना ही नहीं, ज़िंदगी भी महँगी


भले ही वेतन कुछ गुना बढ़ा हो, पर बच्चों की फीस, घर का राशन, बिजली–पानी के बिल, दवाइयाँ और हर ज़रूरी चीज़ की कीमतें भी आसमान छू रही हैं। ऐसे में शादी जैसे बड़े अवसर पर गहनों और रस्मों की तैयारी करना आम आदमी के लिए किसी पहाड़ चढ़ने से कम नहीं।



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नतीजा


सोना हमेशा से वेतन से तेज़ी से भागता रहा है। और यही दौड़ आम परिवारों के लिए बोझ बन गई है। शादी अब खुशी का मौका कम और चिंता का सबब ज़्यादा लगने लगी है। सवाल यह है कि क्या समाज अपने रवैये बदलेगा, या फिर हर पिता यूँ ही महंगाई और तानों के बीच अपनी इज्ज़त बचाने की जद्दोजहद करता रहेगा?



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📌 फैक्ट बॉक्स

सोना बनाम वेतन


साल सोने की कीमत (10 ग्राम) औसत सरकारी वेतन


1950 ~12 रुपये 100–200 रुपये / माह

2014 ~24,000 रुपये 25–30 हजार रुपये / माह

2025 ~1,15,000 रुपये 70–80 हजार रुपये / माह



👉 साफ है कि सोना हमेशा वेतन से तेज़ दौड़ा है।





रविवार, 21 सितंबर 2025

संजय गांधी पीजीआई के डॉक्टरों ने मौत से छीना 3 दिन के नवजात का जीवन

 

संजय गांधी पीजीआई के डॉक्टरों ने मौत से छीना 3 दिन के नवजात का जीवन

दुर्लभ मस्तिष्क विकार वेन ऑफ गैलेन मैलफॉर्मेशन का सफल उपचार


संजय गांधी पीजीआई के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने अदम्य साहस, सूझबूझ और उत्कृष्ट टीमवर्क का परिचय देते हुए एक तीन दिन के नवजात शिशु का जीवन बचाने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। यह शिशु वेन ऑफ गैलेन मैलफॉर्मेशन नामक दुर्लभ और जटिल जन्मजात मस्तिष्क रोग से पीड़ित था, जिसमें मस्तिष्क की नसों में असामान्य गुच्छा बनने से हृदय पर तीव्र दबाव पड़ता है और शिशु की मृत्यु कुछ ही घंटों में हो सकती है।


पूर्वाभास और तैयारी


एमआरएच विभाग की प्रो. मंदाकिनी प्रधान एवं प्रो. नीता सिंह ने गर्भावस्था के दौरान ही भ्रूण में इस विकार की आशंका व्यक्त कर दी थी।   जन्म के तुरंत बाद इलाज की जरूरत पड़ेगी इसलिए इंटरवेंशन रेडियोलॉजिस्ट प्रोफेसर विवेक सिंह को तैयार रहने के लिए बताया गया।  प्रो विवेक सिंह ने  संपूर्ण टीम ने पहले से तैयारी कर ली थी जिससे जन्म के बाद त्वरित उपचार संभव हो सका।


जन्म और चुनौती


40 सप्ताह की गर्भावस्था के बाद जन्मे शिशु की सांसें प्रारम्भ से ही डगमगाने लगीं। नियोनेटल टीम ने तुरंत वेंटिलेटर सपोर्ट प्रदान किया। शिशु को हृदय विफलता का गंभीर खतरा था। चिकित्सकों ने आपात निर्णय लेते हुए जन्म के तीसरे दिन ही ऑपरेशन करने का निश्चय किया।


सफल इंडोवैस्कुलर प्रक्रिया


न्यूरो-इंटरवेंशन विशेषज्ञ प्रो. विवेक सिंह के नेतृत्व में इंटरवेंशन रेडियोलॉजी टीम के डॉ. सत्यव्रत, डॉ. सौम्या और डॉ. सूर्यकांत ने उच्चस्तरीय इंडोवैस्कुलर तकनीक से ऑपरेशन संपन्न किया। शिशु की जांघ की सूक्ष्म नस से एक बारीक तार मस्तिष्क की विकृत रक्त नलिकाओं तक पहुँचाया गया और विशेष ग्लू डालकर असामान्य रक्त प्रवाह को रोका गया। इतनी नन्हीं नसों में यह प्रक्रिया अत्यंत जटिल थी, किंतु टीम ने इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया।


मल्टी स्पेशलिटी टीम का योगदान


ऑपरेशन उपरांत शिशु की निरंतर निगरानी नियोनेटल विभाग की डॉ. अनीता सिंह एवं डॉ. आकांक्षा द्वारा की गई। एनेस्थीसिया टीम के प्रो. संदीप साहू एवं उनकी टीम ने शिशु को सुरक्षित बेहोशी प्रदान की। एमआरएच विभाग की समयपूर्व दूरदृष्टि ने इस सफलता की नींव रखी।


जीवन की जीत


लगातार चौकस देखभाल और चिकित्सकीय निगरानी के बाद शिशु पूर्णतः स्वस्थ होकर घर लौटा। शिशु के परिवारजनों ने एसजीपीजीआई की टीम के प्रति गहरी कृतज्ञता व्यक्त की।

शनिवार, 20 सितंबर 2025

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की सूची में पीजीआई और केजीएमयू के वैज्ञानिक शामिल

 





स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की सूची में पीजीआई के 15 प्रोफेसर्स शामिल



कैलिफोर्निया स्थित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा हाल ही में जारी दुनिया के शीर्ष 2 प्रतिशत वैज्ञानिकों की सूची में संजय गांधी पीजीआई, लखनऊ के 15 वैज्ञानिक और केजीएमयू के 12 को स्थान मिला है।


इन प्रोफेसर्स के नाम इस प्रकार हैं:


1. प्रो. राधा के धीमन (निदेशक एवं हेपटोलॉजी विभाग)



2. प्रो. बलराज मित्तल (सेवानिवृत्त, मेडिकल जेनेटिक्स विभाग)



3. प्रो. रमा देवी मित्तल (सेवानिवृत्त, यूरोलॉजी विभाग)



4. प्रो. राकेश अग्रवाल (गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभागाध्यक्ष)



5. प्रो. अमिता अग्रवाल (विभागाध्यक्ष, क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी)



6. प्रो. उदय चंद्र घोषाल (पूर्व विभागाध्यक्ष, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी)



7. प्रो. जयंती कालिता (विभागाध्यक्ष, न्यूरोलॉजी)



8. प्रो. गौरव अग्रवाल (विभागाध्यक्ष, एंडोक्राइन एवं ब्रेस्ट सर्जरी)



9. प्रो. उज्जल पोद्दार (विभागाध्यक्ष, पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटरोलॉजी)



10. प्रो. अंशु श्रीवास्तव (पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग)



11. प्रो. नारायण प्रसाद (विभागाध्यक्ष, नेफ्रोलॉजी)



12. प्रो. मोहन गुर्जर (क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग)



13. डॉ. प्रभाकर मिश्रा (एडिशनल प्रोफेसर, बायोस्टैटिस्टिक्स एवं हेल्थ इंफॉर्मेटिक्स)



14. डॉ. दुर्गा प्रसन्ना मिश्रा (एडिशनल प्रोफेसर, क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी)



15. डॉ. रोहित ए. सिन्हा (एसोसिएट प्रोफेसर, एंडोक्रिनोलॉजी)




केजीएमयू से जुड़े डॉक्टर:


डॉ. आर.के. गंग – पूर्व विभागाध्यक्ष, न्यूरोलॉजी


डॉ. सुजीत कुमार कर


डॉ. स्मिता कुमार


डॉ. राजेश कुमार वर्मा


डॉ. शैलेन्द्र कुमार सक्सेना


डॉ. अब्बास अली मेहंदी


डॉ. दिव्या मल्होत्रा


डॉ. रश्मि कुमार


डॉ. सूर्यकांत


डॉ. रूबी द्विवेदी


डॉ. अखिलानंद चौरसिया


डॉ. ज्योति के. सिंह


गुरुवार, 18 सितंबर 2025

पीजीआई देश का नंबर दो

  





संजय गांधी पीजीआई का न्यूरो सर्जरी विभाग: देश में नई तकनीकों का शिखर


 देश के दूसरे संस्थान का दर्जा प्राप्त संजय गांधी पीजीआई का न्यूरो सर्जरी विभाग


आंख के बगल से दिमाग के स्कल बेस के ट्यूमर की  सर्जरी तकनीक स्थापित


जटिल स्कल बेस के अंदर भी सर्जरी की नई तकनीक स्थापित  


 


संजय गांधी पीजीआई का न्यूरो सर्जरी विभाग ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। यह विभाग देश का दूसरा ऐसा संस्थान बन गया है, जहां दिमाग के निचले हिस्से (स्कल बेस) के ट्यूमर और एनीऑरिज्म की सर्जरी बिना सिर खोले, आंख के किनारे से दिमाग के अंदर पहुंच कर करने की तकनीक स्थापित की गई है। इस तकनीक को "ट्रांस आर्बिटल एप्रोच" कहा जाता है, जो एडवांस इंडोस्कोपी के माध्यम से संभव हो पाई है। इस तकनीक को दो साल पहले स्थापित किया गया था और अब तक लगभग 25 मरीजों में सफल सर्जरी हो चुकी है। दूसरी तकनीक, "ट्रांस केवरनेस एप्रोच" के जरिए कान के पास स्थित केवरनेस साइनस से स्कल बेस की जटिल सर्जरी की जा सकती है।


विभाग के  प्रो. कुंतल कांति दास ने कहा, "यह सम्मान केवल एक सर्जन का नहीं बल्कि विभाग के सभी सर्जनों की मेहनत का परिणाम है। यह हमें और काम करने के लिए प्रेरित करता है और संस्थान निदेशक के सहयोग के बिना यह संभव नहीं हो सकता था।"


 


संजय गांधी पीजीआई को प्रतिष्ठित रैंकिंग


 


प्रमुख शोध एजेंसी द्वारा संजय गांधी पीजीआई के न्यूरो सर्जरी विभाग को भारत में दूसरा सर्वश्रेष्ठ और एशिया में 9वां स्थान दिया गया है। वैश्विक स्तर पर यह विभाग 65वें स्थान पर है। यह उपलब्धि रोगी देखभाल, शोध प्रकाशनों और पूर्व छात्रों के सामाजिक योगदान की वजह से मानी जाती है।


 


गामा नाइफ की बडे  ट्यूमर के इलाज होगी भूमिका


प्रो. कुंतल ने बताया कि अब तक माना जाता रहा है कि गामा नाइप का की जरूरत छोटे ट्यूमर में होती है लेकिन अब बडे ट्यूमर में इसकी जरूरत है। बडे ट्यूमर को पूरा निकलाने में कई बार दिमाग को नुकसान होने की आशंका रहती है ऐसे में हम लोग नीयर टोटल रीमूवल करते है बचे हिस्से को गामा नाइफ से रेडियन देकर नष्ट करते है।  जागरूकता के कारण अब छोटे ट्यूमरे के मरीज भी आने लगे कई बार लक्षण के आधार पर भी छोटे ट्यूमर पकड़ में आ जाते है।





सालाना शोध कार्य और परियोजनाएं


 


प्रति वर्ष 40 से 45 उच्च गुणवत्ता वाले शोध पत्र प्रकाशित किए जाते हैं।


 


30 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं।


 


6 करोड़ रुपये से अधिक के शोध परियोजनाएं चल रही हैं।


 


मल्टी-सेंट्रिक शोध परियोजनाओं का संचालन हो रहा है।

 वर्तमान में स्कलबेस सर्जरी, क्रेनियोवर्टेब्रल जंक्शन, एंडोस्कोपिक न्यूरोसर्जरी और न्यूरो ऑन्कोलॉजी जैसे कई क्षेत्रों में अग्रणी है।


: एडुरैंक ने 183 देशों के 14,131 चिकित्सा विश्वविद्यालयों और संस्थान का मूल्यांकन किया।

मंगलवार, 16 सितंबर 2025

संजय गांधी का सपना और भारत की ‘पीपल्स कार




संजय गांधी का सपना और भारत की ‘पीपल्स कार’


1970 के दशक का भारत—जहाँ कार रखना सिर्फ अमीरों का शौक़ माना जाता था। देश की सड़कों पर फिएट (पद्मिनी) और एम्बेसडर जैसी गाड़ियाँ तो दिखती थीं, लेकिन उनकी कीमत, रखरखाव और पेट्रोल खपत आम मध्यम वर्ग के लिए लगभग असंभव थी। इसी दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने एक बड़ा सपना देखा—हर भारतीय परिवार के पास अपनी कार हो।


सपना: एक सस्ती और भरोसेमंद कार


संजय गांधी का विचार था कि भारत को एक ऐसी पीपल्स कार मिले, जो सस्ती, भरोसेमंद और भारतीय सड़कों व मौसम के अनुकूल हो। उन्होंने 1971 में मारुति लिमिटेड नामक कंपनी बनाई।

संजय गांधी हनुमान जी के भक्त थे और हनुमान जी का एक नाम मारुति भी है। इसी आस्था के कारण उन्होंने अपनी कंपनी का नाम ‘मारुति’ रखा।


चुनौतियाँ और असफलता


लेकिन यह सफ़र आसान नहीं था। न तकनीकी अनुभव था, न पूंजी। कार का एक प्रोटोटाइप तो बना, लेकिन वह व्यावहारिक नहीं निकला। आलोचकों ने इसे “राजकुमार का हवाई सपना” कहकर खारिज कर दिया।

1977 में जब जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई, तो मारुति प्रोजेक्ट पर भ्रष्टाचार और लाइसेंसिंग में गड़बड़ी के आरोप लगे और कंपनी बंद कर दी गई।


संजय गांधी की असमय मृत्यु


इसके बावजूद संजय अपने सपने पर डटे रहे। लेकिन 23 जून 1980 को एक विमान दुर्घटना में उनकी असमय मृत्यु हो गई। इसी के साथ भारत की "पीपल्स कार" का सपना अधूरा लगता था।


सपना हुआ साकार: मारुति उद्योग लिमिटेड


1980 के अंत में इंदिरा गांधी फिर सत्ता में लौटीं। उन्होंने अपने बेटे के अधूरे सपने को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया।

1981 में मारुति उद्योग लिमिटेड (Maruti Udyog Ltd.) की स्थापना हुई और जापान की सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन के साथ तकनीकी साझेदारी की गई।


1983: भारत की ‘ड्रीम कार’


दिसंबर 1983 में जब पहली बार मारुति 800 लॉन्च हुई, तो वह केवल एक कार नहीं रही, बल्कि करोड़ों भारतीयों के सपनों की चाबी बन गई।


शुरुआती कीमत करीब ₹50,000 थी।


इसकी माँग इतनी थी कि 5 साल तक वेटिंग लिस्ट लग गई।


किफ़ायती, टिकाऊ और कम पेट्रोल खपत वाली इस कार ने भारतीय मध्यम वर्ग की ज़िंदगी बदल दी।



विरासत जो आज भी जारी है


मारुति 800 ने भारतीय ऑटोमोबाइल सेक्टर की परिभाषा बदल दी। यही वजह है कि इसे भारत की सबसे सफल कार कहा जाता है।

आज मारुति सुजुकी देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी है, जिसका बाज़ार हिस्सा 40% से अधिक है।


नतीजा


संजय गांधी ने शायद यह नहीं सोचा होगा कि उनका सपना कभी इतना बड़ा रूप लेगा। उनका अधूरा सपना, उनकी असमय मौत और फिर इंदिरा गांधी की दृढ़ इच्छाशक्ति ने मिलकर भारत को एक ऐसी "पीपल्स कार" दी, जो आज भी करोड़ों लोगों की यादों और सड़कों पर ज़िंदा है।



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👉 जब भी सड़क पर कोई मारुति सुजुकी कार दौड़ती नज़र आए, तो यह याद रखिए कि यह सिर्फ एक गाड़ी नहीं, बल्कि संजय गांधी की आस्था, उनके अधूरे सपने और भारत के मध्यम वर्ग की कहानी है।



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पीजीआई दीक्षांत समारोह में बृजेश पाठक ने कह दी बड़ी बात





 समाज की अपेक्षाओं पर खरा उतरें डॉक्टर – राज्यपाल


एसजीपीजीआई के 29वें दीक्षांत समारोह में 415 छात्रों को मिली उपाधि


 




संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के 29वें दीक्षांत समारोह में मंगलवार को 415 छात्रों को उपाधि प्रदान की गई। समारोह की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने की।


 


राज्यपाल ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि “संस्था केवल भवन और जमीन से नहीं बनती, बल्कि समाज की अपेक्षाओं को पूरा करने से बनती है। डॉक्टर को मरीज को परिवार की तरह समझ कर सेवा करनी चाहिए – महिला आए तो मां की तरह और बुजुर्ग किसान आए तो पिता की तरह।”


 


विश्व रैंकिंग और गुणवत्ता पर जोर


 


उन्होंने विश्वविद्यालयों की विश्व रैंकिंग का जिक्र करते हुए कहा कि भारत में केवल सात विश्वविद्यालय विश्व स्तर पर पहुंचे हैं। क्वालिटी और शोध पर ध्यान दिए बिना आगे बढ़ना संभव नहीं है। “अगर मेहनत न की होती तो हम आज पांचवें क्रम पर भी नहीं दिखते। वर्ल्ड रैंकिंग में जगह बनाना जरूरी है।”


 


किसानों के बलिदान को न भूलें


 


राज्यपाल ने याद दिलाया कि संस्थान की जमीन किसानों ने दी थी। कई किसानों ने अपनी पूरी जमीन खो दी और उन्हें पर्याप्त मुआवजा भी नहीं मिला। “किसानों की तकलीफ देखकर सेवा भाव से काम करना चाहिए। जिस किसान ने जमीन दी, उसी के गांव में डॉक्टर और स्वास्थ्य सुविधा न हो, यह उचित नहीं है।”


 


जनस्वास्थ्य और समाज की जिम्मेदारी


 


राज्यपाल ने कहा कि—


 


हर महिला और बेटी की जांच व देखभाल जरूरी है।


 


सभी प्रसव 100% अस्पताल में होने चाहिए।


 


शुद्ध पेयजल और स्वच्छ पर्यावरण के बिना बीमारियों पर रोक संभव नहीं।


 


मेडिकल वेस्ट निपटान और ड्रेनेज सिस्टम सुधार में 25 साल लग सकते हैं, लेकिन यही अस्पतालों पर बोझ घटाएगा।


 


डॉक्टरों को गांवों की ओर भेजना जरूरी


 


राज्यपाल ने ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं पर चिंता जताते हुए कहा कि आज भी एक डॉक्टर के भरोसे पूरा पीएचसी या सीएचसी चलता है। कई डॉक्टर बांड भरकर सेवा से बच जाते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि कड़े नियम बनाने होंगे, ताकि डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम तीन साल सेवा दें।


 


मुख्य अतिथि का संबोधन


 


मुख्य अतिथि, एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के अध्यक्ष प्रो. डी. नागेश्वर रेड्डी ने कहा कि संस्थान का गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग देश का नंबर-वन विभाग है। स्वर्गीय प्रो. एस.आर. नायक ने इसकी नींव रखी और इसे विश्व स्तरीय बनाया। उन्होंने कहा, “सम्मान पैसे से नहीं मिलता, समाज के लिए किए गए कार्य के प्रभाव से ही सम्मान मिलता है।”


 


उन्होंने छात्रों को मूल मंत्र दिए—


 


माता और शिक्षक का सम्मान करें।


 


कार्य की गुणवत्ता बढ़ाएं।


 


अनुशासन और दृढ़ निश्चय रखें।


 


सहानुभूति रखें और संवाद पर विशेष ध्यान दें।


 


टीम वर्क और नेतृत्व क्षमता विकसित करें।


 


उद्यमी बनें, हमेशा विनम्र रहें।


 


परिवार और कार्य के बीच संतुलन बनाए रखें।


 


उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने कह दी कड़वी बात


 


उन्होंने कहा कि टर्शियरी केयर के मामले में एसजीपीजीआई का कोई जवाब नहीं है। संस्थान ओवरलोड है, इसलिए विस्तार जरूरी है। “कोशिश करें कि कोई निराश होकर यहां से वापस न जाए।”


छात्रों से कहा कि सरकारी क्षेत्र में काम करें, यहां का अनुभव आगे बहुत उपयोगी होगा। सरकारी क्षेत्र में काम करने वाले डॉक्टर जब यही निजी अस्पतालों में जाते हैं तो सरकारी अस्पताल का इस्तेमाल करते हैं अपने आगे लिखते हैं एक्स पीजीआई ,,,,,,,


 


राज्यमंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह का वक्तव्य


 


उन्होंने कहा कि अनुवांशिकी विभाग एसजीपीजीआई से शुरू हुआ, लेकिन मरीज एम्स दिल्ली जाते हैं। इस विभाग के बारे में अधिक प्रचार की जरूरत है। देश के बड़े डॉक्टरों ने सरकारी क्षेत्र से ही शुरुआत की, क्योंकि यहां सबसे अधिक एक्सपोज़र मिलता है।


 


निदेशक का वक्तव्य


 


संस्थान के निदेशक प्रो. आर.के. धीमान ने बताया कि—


 


स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और फार्माकोलॉजी विभाग की स्थापना की जा रही है।


 


नया ओपीडी परिसर भी बनने जा रहा है।


 


पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत तीन टेस्ला एमआरआई और 128-स्लाइस सीटी स्कैन मशीन लगी हैं, जिससे वेटिंग खत्म हो गई है।


 


टेली-आईसीयू से 6 मेडिकल कॉलेज जुड़े हैं, आगे 36 मेडिकल कॉलेज और 18 जिला अस्पताल जोड़ने की योजना है।


 


बच्चों और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का सम्मान


 


कल्ली पश्चिम प्राथमिक विद्यालय की छात्रा शालिनी ने पर्यावरण पर भाषण दिया। सभा खेड़ा और कल्ली पश्चिमी स्कूलों के छात्रों ने पर्यावरण पर नृत्य-नाटिका प्रस्तुत की। राज्यपाल ने उन्हें सम्मानित किया।


इसके अलावा खुशी, काव्या सिंह, राजकुमार तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं कुसुमलता, सुषमा, अनीता देवी, वंदना श्रीवास्तव को किट देकर सम्मानित किया गया।


 


विशेष सम्मान


 


प्रो. एस.आर. नाइक अवार्ड – प्रो. दुर्गा प्रसन्ना मिश्रा (क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी)


 


प्रो. एस.आर. नाइक अवार्ड – डॉ. चंद्र प्रकाश चतुर्वेदी (क्लिनिकल हेमेटोलॉजी)


 


प्रो. एस.एस. अग्रवाल अवार्ड – डॉ. अर्चना तिवारी (एंडोक्राइनोलॉजी)


 


प्रो. एस.एस. अग्रवाल अवार्ड – डॉ. स्वपलिन सुरेश (क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी)


 


प्रो. एस.एस. अग्रवाल अवार्ड – डॉ. सूरज कुमार सिंह (हेमेटोलॉजी)


 


प्रो. आर.के. शर्मा अवार्ड – डॉ. लक्ष्मी एम.आर. (क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी)


 


प्रो. आर.के. शर्मा अवार्ड – डॉ. स्पंदा (एंडो सर्जरी)


 


डॉ. एस.एस. सरकार गोल्ड मेडल – डॉ. मयंक कुमार (रेडियोडायग्नोसिस)


 


सबसे अधिक पेटेंट – प्रो. देवेंद्र गुप्ता (एनेस्थीसिया), डॉ. विनीता अग्रवाल (पैथोलॉजी), डॉ. आशीष कनौजिया (एनेस्थीसिया), डॉ. तन्मय घटक (इमरजेंसी मेडिसिन)


 


अधिकतम शोध सहायता – डॉ. अनुष्का श्रीवास्तव (मेडिकल जेनेटिक्स), डॉ. रोहित सिन्हा (एंडोक्राइनोलॉजी), प्रो. राजेश कश्यप (हेमेटोलॉजी), प्रो. अमित गोयल (हेपेटोलॉजी)


शोध विज्ञानियों से बता



टाकायासु आर्टेराइटिस में  हृदय रोग की आशंका अधिक

डा. स्वप्निल सुरेश-  प्रो. एस.एस. अग्रवाल अवार्ड

टाकायासू आर्टराइटिस में बड़ी धमनियों में सूजन और संकुचन हो जाता है।  इस रोग से पीड़ित मरीजों में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण हृदय रोग है। धमनियों पर लगातार दबाव के कारण ब्लड प्रेशर बढ़ता है और दिल का दौरा या हृदय विफलता का खतरा रहता है। ऐसे मरीजों की नियमित हृदय जांच, ब्लड प्रेशर नियंत्रण, स्टेरॉयड व इम्यूनो-सप्रेसिव दवाओं का प्रयोग और जीवनशैली में सुधार बेहद जरूरी है। समय रहते रोकथाम और देखभाल से मृत्यु की आशंका को काफी हद तक कम किया जा सकता है।





नैनोमैटेरियल से स्टेम सेल की बढाया -

प्रो. एस.एस. अग्रवाल अवार्ड – डॉ. सूरज कुमार सिंह (हेमेटोलॉजी)


 नैनोमेटेरियल की मदद से स्टेम सेल गुणवत्ता बढ़ाने में कामयाबी मिली है। पैंक्रियाटिक बीटा सेल में परिवर्तित हो सकते हैं, जो इंसुलिन उत्पादन के लिए जिम्मेदार होते हैं। इस तकनीक से तैयार बीटा सेल भविष्य में डायबिटीज मरीजों के लिए बीटा सेल ट्रांसप्लांट में उपयोगी साबित होंगे। यह विधि न केवल कृत्रिम इंसुलिन पर निर्भरता कम कर सकती है बल्कि मरीजों के रक्त शर्करा नियंत्रण को भी लंबे समय तक स्थिर बनाए रखने में मददगार होगी।


 

नॉन-फैटी लिवर बीमारी के इलाज की दिशा में नई उम्मीद -

प्रो. एस.एस. अग्रवाल अवार्ड – डॉ. अर्चना तिवारी (एंडोक्राइनोलॉजी)


नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर बीमारी का अभी तक कोई निश्चित इलाज नहीं है। हाल ही में चूहों पर हुए एक अध्ययन में पाया गया कि शरीर में प्राकृतिक रूप से बनने वाले राइबो न्यूक्लिएज वन एंजाइम को इंजेक्ट करने से लिवर को बचाया जा सकता है। सामान्यतः फैटी लिवर में सेल फट जाते हैं और अन्य स्थान पर चिपककर सिरोसिस का कारण बनते हैं। लेकिन एंजाइम देने पर यह प्रक्रिया रुक गई।यह तकनीक भविष्य में उन मरीजों के लिए राहत बन सकती है  फैटी लिवर से ग्रस्त होते है। 









बच्चों में रूमेटाइड आर्थराइटिस, परिवार को रहना होगा सतर्क

प्रो. आर.के. शर्मा अवार्ड – डॉ. लक्ष्मी एम.आर. (क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी)




रूमेटाइड अर्थराइटिस से ग्रस्त लगभग 40% बच्चों के परिवार या रक्त संबंधियों में किसी न किसी प्रकार की ऑटोइम्यून बीमारी पाई गई है।  यह प्रवृत्ति आनुवंशिक हो सकती है, इसलिए परिवार के अन्य सदस्यों को भी समय-समय पर जांच कर सतर्क रहना चाहिए। बच्चों में होने वाली आर्थराइटिस को अक्सर साधारण जोड़ दर्द समझकर नजरअंदाज कर दिया जाता है। सही समय पर इलाज न मिलने से इन बच्चों में हृदय रोग, आंखों की समस्या और विकास में रुकावट जैसी गंभीर दिक्कतें हो सकती हैं। इसलिए शुरुआती पहचान और विशेषज्ञ चिकित्सक से उपचार बेहद जरूरी है।









जेगुलर वेन का फैलाव बना सिरदर्द और कान की समस्या का कारण

डॉ. एस.एस. सरकार गोल्ड मेडल – डॉ. मयंक कुमार (रेडियोडायग्नोसिस)



 2.3% मरीजों में सिरदर्द और कान से जुड़ी परेशानियों का कारण जेगुलर वेन का फैलाव है। जब यह नस असामान्य रूप से चौड़ी हो जाती है तो दिमाग को सुरक्षा देने वाली परत मैनेनजिस पर दबाव पड़ता है। इससे मरीज को लगातार सिरदर्द, कानों में सनसनाहट या सीटी बजने जैसी समस्या (टिन्निटस) हो सकती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस स्थिति की पहचान एमआरआई और एंजियोग्राफी से संभव है। शुरुआती स्तर पर इलाज न होने पर यह समस्या न्यूरोलॉजिकल दिक्कतों को जन्म दे सकती है। 







थायरॉयड ऊतक में खून से अलग पाई गई सूजन की स्थिति


प्रो. आर.के. शर्मा अवार्ड – डॉ. स्पंदना जे (एंडो सर्जरी)



 थायरॉयड सर्जरी के दौरान लिए गए ऊतक (कोलॉइड) में सूजन पैदा करने वाले तत्व, खून के नमूनों की तुलना में कहीं अधिक पाए गए। कि इसका अर्थ है कि थायरॉयड के भीतर की सूजन की स्थिति शरीर की सामान्य रक्त परिसंचरण प्रणाली से अलग होती है। यह खोज थायरॉयड से जुड़ी बीमारियों जैसे गॉयटर और कैंसर के इलाज को समझने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस अध्ययन से आगे थायरॉयड की सूजन और उससे जुड़े खतरों पर गहन रिसर्च का रास्ता खुलेगा।



शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

होल-लंग लवेज” तकनीक से चलने लगी सांस

 






होल-लंग लवेज” तकनीक से चलने लगी सांस


पीजीआई में  पल्मोनरी एल्वियोलर प्रोटीनोंसिस से पीड़ित दो मरीजों की जिंदगी बची


विशेषज्ञों ने बताई जागरूकता की ज़रूरत



जब सांसें बार-बार रुकने लगें, सीढ़ियां चढ़ना भी कठिन हो जाए और सफेद झाग जैसे कफ आने लगें तो यह सामान्य अस्थमा, निमोनिया या टीबी नहीं बल्कि पल्मोनरी एल्वियोलर प्रोटीनोंसिस (पीएपी) नामक अल्ट्रा-रेयर फेफड़ों की बीमारी हो सकती है। इस बीमारी में प्रोटीन जैसी झागदार परत फेफड़ों की थैलियों (एयर सैक) में जम जाती है, जिससे ऑक्सीजन खून तक नहीं पहुंच पाती और मरीज धीरे-धीरे गंभीर सांस की तकलीफ में फंस जाता है।10 लाख में 7 लोग ही इस बीमारी से प्रभावित होते हैं। 

संजय गांधी पीजीआई ने ऐसे ही दो गंभीर मरीजों को होल-लंग लवेज  द्वारा नई जिंदगी दी है। 


क्या होता है होल लंग लवेज तकनीक


यह एक विशेष तकनीक है जिसमें मरीज को बेहोशी देकर एक-एक कर फेफड़ों को अलग किया जाता है और उनमें गर्म खारा पानी (सलाइन) डाला और निकाला जाता है। इस धुलाई से फेफड़ों में जमा झागदार परत साफ हो जाती है और मरीज को सांस लेने में राहत मिलती है।

विभागाध्यक्ष पल्मोनरी मेडिसिन प्रो. आलोक नाथ ने बताया कि

“यह बीमारी आम संक्रमणों जैसी दिखती है और अक्सर देर से पकड़ी जाती है। समय पर रेफरल और विशेषज्ञ केंद्रों पर इलाज ही मरीज की जिंदगी बदल सकता है।इलाज के बाद 85 फीसदी से अधिक मरीज बेहतर होते 




 टीबी या अस्थमा समझते रहते हैं


 लगातार खांसी, सीने में भारीपन, सफेद-जेली जैसे बलगम और हल्की मेहनत पर भी सांस फूलना — अक्सर अस्थमा, वायरल संक्रमण या टीबी जैसे सामान्य रोग समझ लिए जाते हैं। इसी वजह से मरीजों का सही निदान महीनों या वर्षों तक नहीं हो पाता। यही देरी जानलेवा साबित हो सकती है।



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 इलाज करने वाली टीम


पल्मोनरी मेडिसिन विभाग से अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. मानसी गुप्ता, सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रसंथ ए.पी. और सहायक प्रोफेसर डॉ. यश जगधरी के नेतृत्व में, लीड इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजिस्ट प्रो. अजमल खान की देखरेख में दोनों मरीजों की सफल सर्जरी की गई।


कार्डियक एनेस्थीसिया विभाग की टीम  अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. अमित रस्तोगी, सहायक प्रोफेसर डॉ. पल्लव सिंह, सहायक प्रोफेसर डॉ. आरिब शेख, के साथ विभागाध्यक्ष कार्डियक एनेस्थीसिया प्रो. प्रभात तिवारी और विभागाध्यक्ष सीटीवीएस प्रो. एस.के. अग्रवाल के मार्गदर्शन में जुड़ी रही।








 


किस पर ज्यादा असर 


 मध्यम आयु वर्ग, खासकर पुरुषों पर; धूम्रपान, धूल-धुएं का एक्सपोजर, संक्रमण व रक्त कैंसर जैसी स्थितियों से खतरा बढ़ता है



इलाज करने वाले डॉक्टर की टीम

स्किनी ओबेसिटी का खतरा: सामान्य वजन में भी छिपा हो सकता है ज्यादा फैट”

 

“स्किनी ओबेसिटी का खतरा: सामान्य वजन में भी छिपा हो सकता है ज्यादा फैट”



संजय गांधी पीजीआई  में शुक्रवार को न्यूट्रिशन मंथ (पोषण माह) के अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। विशेषज्ञों ने चेताया कि केवल वजन सामान्य होना ही स्वस्थ होने का संकेत नहीं है। कई बार सामान्य वजन वाले लोगों में भी शरीर का फैट प्रतिशत ज़्यादा होता है, जिसे “स्किनी ओबेसिटी” कहा जाता है। यह स्थिति मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है।


कार्यक्रम की शुरुआत ज़ुम्बा और वार्म-अप सेशन से हुई। स्वागत भाषण डॉ. निरुपमा सिंह ने दिया और थीम का विमोचन डॉ. अर्चना सिन्हा ने किया। निदेशक प्रो. आर.के. धीमान , डॉ शिल्पी पांडे  , डॉ रीता आनन्द , डॉ  मोनिका दीक्षित समेत वरिष्ठ चिकित्सकों ने “आहार पर ध्यान” विषय पर विचार रखे।


पैनल चर्चा में बताया गया कि पुरुषों के लिए बॉडी फैट 10–20% और महिलाओं के लिए 18–28% होना चाहिए। यदि बॉडी फैट इनसे ज़्यादा हो, तो शरीर सामान्य वजन के बावजूद अस्वस्थ माना जाता है। विशेषज्ञों ने कहा कि इसे समझने के लिए बॉडी कंपोज़िशन एनालिसिस करवाना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि यही जांच शरीर में फैट, मसल्स, पानी और हड्डियों का संतुलन सही-सही बताती है।


उन्होंने आहार में मौसमी फल-सब्ज़ियां, साबुत अनाज, दालें, दूध-दही और सूखे मेवे शामिल करने तथा प्रोसेस्ड और तैलीय भोजन से बचने की सलाह दी।






क्या है स्किनी ओबेसिटी


सामान्य वजन लेकिन शरीर में फैट प्रतिशत ज़्यादा होना।


बाहरी तौर पर दुबले दिखने वाले लोग भी इसके शिकार हो सकते हैं।

सही भोजन और जीवन शैली से घटती बीमारियों की आशंका

 

सही भोजन और जीवन शैली से घटती बीमारियों की आशंका


एसजीपीजीआई में पुरुष स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम



राष्ट्रीय पोषण माह की पूर्व संध्या पर संजय गांधी पीजीआई में गुरुवार को पुरुषों के स्वास्थ्य और पोषण पर विशेष जागरूकता कार्यक्रम हुआ। “मांसपेशियों से परे : पुरुषों का पोषण और सम्पूर्ण स्वास्थ्य” विषय पर आयोजित इस सत्र का आयोजन आईएपीईएन इंडिया, लखनऊ चैप्टर और ‘हेल्दी खाएगा इंडिया’ अभियान के सहयोग से किया गया।


विशेषज्ञों ने बताया कि पुरुष अक्सर जिम्मेदारियों और व्यस्त जीवनशैली के कारण खानपान को नज़र अंदाज़ कर देते हैं। इसका असर स्वास्थ्य पर पड़ता है और मोटापा, डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और हृदय रोग जैसी समस्याएं बढ़ने लगती हैं। सही खानपान और जीवनशैली अपनाकर इन बीमारियों से बचा जा सकता है।


कार्यक्रम में एसजीपीजीआई निदेशक प्रो. आरके धीमान, चिकित्सा अधीक्षक प्रो. राजेश हर्षवर्धन, संयुक्त निदेशक सामग्री प्रबंधन प्रकाश सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. इंदु शुक्ला, सीनियर फिज़िशियन व मॉडरेटर डॉ. प्रेर्णा कपूर, मुख्य आहार विशेषज्ञ डॉ. रमा त्रिपाठी, सीनियर पीडियाट्रिशियन डॉ. पियाली भट्टाचार्य, पीडियाट्रिक गैस्ट्रो विभाग के प्रो. एल.के. भारती और सीनियर डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. अजीत कुमार शामिल रहे। इसके अलावा केजीएमयू की सीनियर डायटीशियन दीप्ति रावत भी मौजूद रहीं।


एम्पलाई वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष धर्मेश कुमार, वरिष्ठ सदस्य सरोज कुमार वर्मा और मेडिटेक संगठन के अध्यक्ष मनोज कुमार सिंह सहित अन्य लोगों ने भी भागीदारी की।


मुख्य आहार विशेषज्ञ डॉ. रमा त्रिपाठी ने कहा कि संतुलित आहार पुरुषों के लिए जीवनभर की हेल्थ इंश्योरेंस है। उन्होंने सुझाव दिया कि पर्याप्त पानी पिएं, मीठे और फास्टफूड से बचें और रोज़ाना कम से कम 30 मिनट व्यायाम करें। साथ ही मौसमी फल, दालें, हरी सब्जियां और अनाज को नियमित आहार में शामिल करना चाहिए।

बुधवार, 10 सितंबर 2025

एम्स बीबीनगर की कार्यकारी निदेशक बनीं पीजीआई की प्रो अमिता अग्रवाल

 



एम्स बीबीनगर की कार्यकारी निदेशक बनीं पीजीआई की प्रो अमिता अग्रवाल



 तेलंगाना के यादाद्रि-भुवनगिरी ज़िले में स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एआईआईएमएस, बीबीनगर) के कार्यकारी निदेशक पद  पर  संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआईएमएस)  के क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रोफेसर अमिता अग्रवाल को  नियुक्त किया गया है। भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने देर शाम यह आदेश जारी किया है।


प्रो. अग्रवाल ने वर्ष 1996 में एसजीपीजीआई से अपने करियर की शुरुआत की थी और लगभग 29 वर्षों तक संस्थान में सेवाएं दीं। उन्होंने एमबीबीएस और एमडी (इंटरनल मेडिसिन) एम्स, नई दिल्ली से किया, इसके बाद एसजीपीजीआई, लखनऊ से क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी में डीएम की पढ़ाई की।


शोध और योगदान


प्रो. अग्रवाल का शोध मुख्य रूप से ऑटोइम्यून बीमारियों—जैसे रूमेटॉइड आर्थराइटिस, जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस (जे.आई.ए.), ल्यूपस (एस.एल.ई.) और वेस्कुलाइटिस—पर केंद्रित रहा है। उन्होंने भारतीय मरीजों में जे.आई.ए. के अलग स्वरूप की पहचान की और यह स्थापित किया कि देश में एंथेसाइटिस रिलेटेड आर्थराइटिस (ई.आर.ए.) सबसे आम श्रेणी है।

उन्होंने ई.आर.ए. के रोगजनन, साइटोकाइन प्रोफाइल और गट माइक्रोबायोम पर गहन शोध किया है। इसके अलावा, ल्यूपस नेफ्राइटिस की रोग-प्रक्रिया को समझने में भी उनके योगदान को वैश्विक स्तर पर सराहा गया है।


उन्होंने देश का पहला मल्टी-इंस्टीट्यूशनल लुपस नेटवर्क तैयार किया, जिससे भारत में ल्यूपस की विविधता को समझने और उपचार रणनीति विकसित करने में मदद मिली। अब तक वे करीब 100 विद्यार्थियों को प्रशिक्षित कर चुकी हैं, जो देशभर में इस क्षेत्र को आगे बढ़ा रहे हैं।


सम्मान और उपलब्धियाँ


प्रो. अग्रवाल को 1998 में आईसीएमआर का शकुंतला अमीरचंद पुरस्कार और 2004 में नेशनल बायोसाइंस अवॉर्ड फॉर करियर डेवलपमेंट से नवाजा जा चुका है। वे नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज और इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज की निर्वाचित फेलो भी हैं।


प्रो. अग्रवाल का मानना है कि भारत में ऑटोइम्यून रोगों की समय रहते पहचान और आधुनिक उपचार के लिए शोध, शिक्षा और जागरूकता तीनों पर समान रूप से ध्यान देना ज़रूरी है।


सोमवार, 8 सितंबर 2025

अब केवल 4 घंटे में कौन सी दवा होगी कारगर चलेगा पता

 



 अब केवल 4 घंटे में  कौन सी दवा होगी कारगर चलेगा पता 


एसजीपीजीआई ने विकसित की नई जांच पद्धति, इलाज में तेजी संभव


161 गंभीर संक्रमित मरीजों पर हआ शोध




गंभीर संक्रमण यानी सेप्सिस से जूझ रहे मरीजों के लिए एक बड़ी राहत की खबर सामने आई है। अब शरीर में कौन-सी दवा असरदार होगी, यह जानकारी पहले की तुलना में कहीं तेजी से मिल सकेगी। इससे संक्रमित मरीज को अनावश्यक एंटीबायोटिक नहीं खाना पड़ेगा। 

संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई),  के विशेषज्ञों ने रक्त से निकले कीटाणुओं पर की जाने वाली दवा संवेदनशीलता जांच को लेकर एक नई और तेज पद्धति का मूल्यांकन किया है, जिससे यह जांच अब केवल 4 घंटे में संभव हो सकेगी। शोध को  जर्नल ऑफ माइक्रोबायोलॉजिकल मेथड्स ने हाल में ही स्वीकार किया है। इस तकनीक का नाम है "डायरेक्ट रैपिड एंटीमाइक्रोबियल ससेप्टिबिलिटी टेस्टिंग( डी आर ए एस टी)।


अब इलाज में नहीं होगी देरी


आमतौर पर ब्लड कल्चर रिपोर्ट आने में 48 से 96 घंटे लगते हैं, लेकिन नई तकनीक से यह समय घटकर 4 से 24 घंटे तक आ गया है। इससे डॉक्टर बिना देर किए सही दवा देना शुरू कर सकते हैं। समय पर सही दवा मिलने से सेप्सिस मरीज की जान बचाने की संभावना बढ़ जाती है।


ऐसे की गई जांच


इस शोध में 161 संक्रमित रक्त नमूनों की जांच की गई। इनमें से 84 प्रतिशत नमूने ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया और 15 प्रतिशत ग्राम-पॉजिटिव बैक्टीरिया से संक्रमित पाए गए। हर नमूने को तीन अलग-अलग समय – 4 घंटे, 8 घंटे और 24 घंटे – के लिए जांचा गया।


किस पर कितने घंटे में मिला सही परिणाम:

बैक्टीरिया का नाम सब-कल्चर समय जांच का समय परिणाम

ई. कोलाई, क्लीब्सिएला, एसिनेटोबैक्टर 4 घंटे 4 घंटे 

स्यूडोमोनास, बर्कहोल्डेरिया, स्टेनोट्रोफोमोनास 8 घंटे 4 घंटे 

स्टेफिलोकोकस, एंटरोकोकस, ओक्रोबैक्ट्रम 24 घंटे 4 घंटे 



मरीजों के लिए वरदान साबित हो सकती है तकनीक



इस शोध में पाया गया कि दवा संवेदनशीलता जांच को शुरूआती ग्रोथ से ही किया जा सकता है, जिससे रिपोर्ट जल्दी उपलब्ध हो सकेगी। यह पद्धति सेप्सिस, न्यूमोनिया और अन्य गंभीर संक्रमणों में इलाज के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।


ये रहे प्रमुख शोधकर्ता

यह अध्ययन डॉ निधि तेजान, डॉ राधिका चौधरी, डॉ चिन्मय साहू, डॉ संग्राम सिंह पटेल, डॉ अतुल गर्ग, डॉ गरलिन वर्गीज और डॉ अक्षय कुमार आर्य द्वारा किया गया। सभी विशेषज्ञ लखनऊ स्थित एसजीपीजीआई और सरकारी मेडिकल कॉलेज सैफई से जुड़े हैं।

A P k फाइल पर क्लिक करते ही आपका खाता हो जाएगा खाली





Apk फाइल अपने डाउनलोड किया तो आपका मोबाइल होजएगा हैक 


खता हो जाएगा खली

“नमस्कार... खबर आपकी सुरक्षा से जुड़ी है। अगर आपके मोबाइल पर किसी रिश्तेदार या दोस्त के नाम से शादी का कार्ड आए और उसके साथ एक APK फाइल (.apk) जुड़ी हो... तो सावधान हो जाइए। ये कार्ड नहीं, बल्कि आपके मोबाइल और बैंक खाते के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है।”



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“दरअसल, साइबर ठगों ने अब लोगों को फंसाने का नया तरीका निकाला है। वे शादी का कार्ड बताकर या किसी परिचित का मैसेज बनाकर आपके व्हाट्सएप पर APK फाइल भेज रहे हैं।

अगर आप इस फाइल को डाउनलोड कर लेते हैं, तो आपका पूरा मोबाइल हैक हो सकता है।”



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“इस फाइल में छिपा होता है एक खतरनाक प्रोग्राम। इंस्टॉल करते ही यह आपके मोबाइल का कंट्रोल अपराधियों के हाथ में दे देता है। आपकी निजी जानकारी, फोटो, कांटैक्ट लिस्ट और बैंक अकाउंट की डिटेल तुरंत ठगों तक पहुंच जाती है... और आपके खाते से पैसे भी साफ हो सकते हैं।”



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“पुलिस और साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी अनजान APK फाइल को कभी भी इंस्टॉल न करें। यह देखने में बिल्कुल असली एप्लिकेशन जैसी लगती है, लेकिन यह सिर्फ एक जाल है।”



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✔️ अगर ठगी की कोशिश हो, तो तुरंत 1930 नंबर पर शिकायत करें।

✔️ नज़दीकी थाने या साइबर सेल में रिपोर्ट दर्ज कराएं।

✔️ बिना जानकारी वाली APK फाइल को न खोलें।

✔️ मोबाइल में ऑटो-डाउनलोड बंद रखें।

✔️ सार्वजनिक जगहों के वाई-फाई से बचें।



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“तो अगली बार जब भी आपको शादी का कार्ड या कोई फाइल मैसेज पर मिले... डाउनलोड करने से पहले सौ बार सोचें। क्योंकि एक क्लिक आपकी मेहनत की कमाई को खतरे में डाल सकता है।”



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“APK फाइल से बचें... और साइबर ठगी से सुरक्षित रहें।”



रविवार, 7 सितंबर 2025

Mobility Restored with Mega Prosthesis



Mobility Restored with Mega Prosthesis
First Successful Knee Implant at SGPGIMS

Lucknow: In a medical breakthrough, Sanjay Gandhi Postgraduate Institute of Medical Sciences (SGPGIMS), Lucknow, has for the first time successfully performed a knee replacement using the Mega Prosthesis technique. This advanced procedure is particularly effective where Total Knee Replacement (TKR) is not possible, such as in cases of bone loss due to tumors or severe damage.

The surgery was carried out at the Apex Trauma Centre by Associate Professor Dr. Amit Kumar and his team from the Department of Orthopaedics. The patient, 45-year-old Sangeeta Devi from Fatehpur, had previously undergone surgery for a spinal tumor. Over time, weakness in her right leg led to repeated dislocation of her knee joint, leaving her unable to walk.

Before the implant, Additional Professor Dr. Anil Singh of Radiodiagnosis successfully treated her hematoma. Once her condition stabilized, the orthopaedic team proceeded with the Mega Prosthesis surgery. During the operation, Additional Professor Dr. Vansh from Anaesthesiology administered ultrasound-guided spinal anesthesia, crucial in this complex case.

Institute Director Prof. R.K. Dhiman hailed the success and congratulated the team. Prof. Arun Kumar Srivastava, Head of the Apex Trauma Centre, said the achievement reflected “excellent multi-disciplinary coordination.” Sangeeta Devi has now recovered well and is walking independently.

What is a Mega Prosthesis?

A large artificial implant used when a significant portion of bone is damaged.

Especially beneficial after tumor removal or when bone preservation is not possible.

Provides a solution when standard Total Knee Replacement is not feasible.

Restores mobility and helps preserve the limb.


Surgical Team

Residents: , Dr. Amit, Dr. Akash Yadav, Dr. Aishwarya Baghel
Nursing In-charge: Anita Singh
Nursing Officers: Aditya, Mayank Yadav, Deepika, Jaspreet Kaur


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पीजीआई में पहली बार मेगा प्रोस्थेसिस द्वारा घुटने का सफल प्रत्यारोपण

 




अब मेगा प्रोस्थेसिस से मिलेगी चाल

जहां टोटल नी रिप्लेसमेंट संभव नहीं, वहां कारगर तकनीक

एसजीपीजीआई में पहली बार मेगा प्रोस्थेसिस द्वारा घुटने का सफल प्रत्यारोपण


 संजय गांधी पीजीआई में पहली बार मेगा प्रोस्थेसिस  तकनीक द्वारा घुटने का सफल प्रत्यारोपण किया गया। यह एक बड़ा कृत्रिम प्रत्यारोपण है, जिसका उपयोग उन मरीजों में किया जाता है जिनमें साधारण टोटल नी रिप्लेसमेंट( टीकेआर) संभव नहीं होता। विशेषकर, ट्यूमर हटाने के बाद या हड्डी के बड़े हिस्से के खराब हो जाने पर यह तकनीक जीवनदायी साबित होती है।

एपेक्स ट्रॉमा सेंटर के हड्डी रोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. अमित कुमार एवं उनकी टीम ने फतेहपुर निवासी 45 वर्षीय संगीता देवी के दाहिने घुटने का सफल प्रत्यारोपण मेगा प्रोस्थेसिस से किया। संगीता देवी को कई वर्ष पहले स्पाइन ट्यूमर हुआ था, जिसकी सर्जरी के बाद उनके दाहिने पैर में लगातार कमजोरी बनी रही और घुटना अपनी जगह से हट गया।

एसजीपीजीआई में पहले रेडियोडायग्नोसिस विभाग के एडीशनल प्रोफेसर डा. अनिल सिंह ने हेमेटोमा का इलाज किया। स्थिति सुधरने के बाद डा. अमित कुमार की टीम ने घुटने में मेगा प्रोस्थेसिस लगाया। एनेस्थीसिया विभाग के एडीशनल प्रोफेसर डा. वंश ने जटिल परिस्थिति में अल्ट्रासाउंड गाइडेड स्पाइनल एनेस्थीसिया देकर बड़ी भूमिका निभाई।

संस्थान के निदेशक प्रो. आर.के. धीमन ने इस सफलता पर टीम को बधाई दी। एपेक्स ट्रॉमा सेंटर प्रमुख प्रो. अरुण कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि यह उपलब्धि मल्टी-डिसिप्लिनरी तालमेल का उत्कृष्ट उदाहरण है। वर्तमान में संगीता देवी पूरी तरह स्वस्थ हैं और अपने पैरों पर चल रही हैं।


 मेगा प्रोस्थेसिस क्या है और कब लगाया जाता है

मेगा प्रोस्थेसिस एक बड़ा कृत्रिम प्रत्यारोपण (इंप्लांट) होता है।

इसका उपयोग तब किया जाता है जब हड्डी का बड़ा हिस्सा खराब हो जाए या ट्यूमर हटाने के बाद हड्डी बचाना संभव न हो।

साधारण  टोटल नी रिप्लेसमेंट से जिन मरीजों का इलाज संभव नहीं होता, उनमें यह तकनीक काम आती है।

यह मरीज को चलने-फिरने की क्षमता वापस दिलाने में मदद करता है और अंग को बचा लेता है।


सर्जिकल टीम 
रेजिडेंट

डॉ. अमित कुमार 

डॉ. अमित

डॉ. आकाश यादव

डॉ. ऐश्वर्या बघेल




नर्सिंग इंचार्ज
अनीता सिंह
नर्सिंग ऑफिसर 
आदित्य

मयंक यादव

दीपिक

जसप्रीत कौर


शनिवार, 6 सितंबर 2025

प्रोस्टेट कैंसर इलाज में एसजीपीजीआई की नई उपलब्धि

 

प्रोस्टेट कैंसर इलाज में एसजीपीजीआई की नई उपलब्धि

रेट्ज़ियस-स्पेरिंग और मल्टीपोर्ट ट्रांसवेसिकल रोबोटिक रैडिकल प्रोस्टेक्टोमी तकनीक से मरीजों को नया जीवन



 संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआई), लखनऊ ने प्रोस्टेट कैंसर के इलाज में बड़ी प्रगति की है। संस्थान के यूरोलॉजी एवं रीनल ट्रांसप्लांटेशन विभाग ने अत्याधुनिक रेट्ज़ियस-स्पेरिंग और मल्टीपोर्ट ट्रांसवेसिकल रोबोटिक रैडिकल प्रोस्टेक्टोमी तकनीकों की शुरुआत की है। इन नई विधियों से न केवल कैंसर का प्रभावी इलाज हो रहा है, बल्कि मरीजों को सर्जरी के बाद सामान्य जीवन जीने का अवसर मिल रहा है।


 क्या है तकनीक


रेट्ज़ियस-स्पेरिंग तकनीक में सर्जरी के दौरान पेट के निचले हिस्से (रेट्ज़ियस स्पेस) को बचाया जाता है। इस हिस्से में मूत्र नियंत्रण और यौन क्षमता से जुड़ी नाजुक संरचनाएं होती हैं। इन्हें सुरक्षित रखने से मरीज बहुत जल्दी सामान्य जीवन जीने लगता है।


मल्टीपोर्ट ट्रांसवेसिकल रोबोटिक रैडिकल प्रोस्टेक्टोमी में मूत्राशय के रास्ते से रोबोटिक तकनीक की मदद से प्रोस्टेट निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में कई छोटे पोर्ट बनाए जाते हैं और रोबोटिक उपकरणों से अत्यंत सटीक सर्जरी की जाती है। इससे खून का बहाव कम होता है और मरीज की रिकवरी तेजी से होती है।


विशेषज्ञ की राय


 विभाग के एडीशनल प्रोफेसर डॉ. उदय प्रताप सिंह ने बताया—

“इन दोनों तकनीकों की खासियत यह है कि यह कैंसर को पूरी तरह हटाती हैं और साथ ही मूत्र एवं यौन क्षमता को सुरक्षित रखती हैं। पहले मरीजों को लंबे समय तक इन परेशानियों का सामना करना पड़ता था, लेकिन अब कुछ ही हफ्तों में वे सामान्य जीवन जीने लगते हैं।”


एडवांस्ड स्टेज के मरीजों के लिए नई उम्मीद


 कई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त दवा परीक्षण और शोध परियोजनाएं चल रही हैं। इनसे उन मरीजों को नई उम्मीद मिल रही है, जिनका कैंसर हड्डियों, फेफड़ों या लिवर तक फैल चुका है और जहां पारंपरिक इलाज कारगर नहीं होता।


यूरोलॉजी विभाग के एडीशनल प्रोफेसर डॉ. सिंह ने कहा—

“हमारा उद्देश्य केवल कैंसर का इलाज करना नहीं है, बल्कि मरीजों की जीवन गुणवत्ता बेहतर बनाना है।

New Achievement of SGPGIMS in Prostate Cancer Treatment




New Achievement of SGPGIMS in Prostate Cancer Treatment

Retzius-Sparing and Multiport Transvesical Robotic Radical Prostatectomy Giving Patients a New Lease of Life


Lucknow: Sanjay Gandhi Postgraduate Institute of Medical Sciences (SGPGIMS), Lucknow has made a significant breakthrough in the treatment of prostate cancer. The Department of Urology and Renal Transplantation has introduced advanced Retzius-Sparing and Multiport Transvesical Robotic Radical Prostatectomy techniques. These state-of-the-art procedures not only ensure effective cancer removal but also help patients return to normal life much sooner after surgery.


What are these techniques?


In the Retzius-Sparing technique, surgeons avoid operating through the Retzius space, located in the lower abdomen. This area contains delicate structures responsible for urinary continence and sexual function. By preserving these structures, patients regain normal lifestyle functions much earlier.


The Multiport Transvesical Robotic Radical Prostatectomy involves removing the prostate through the bladder using robotic technology. Multiple small ports are created, and highly precise robotic instruments are used to perform the surgery. This approach minimizes blood loss and speeds up recovery.


Expert’s Opinion


Dr. Uday Pratap Singh, Additional Professor in the Department, explained:

“The uniqueness of these techniques lies in their ability to completely remove cancer while also preserving urinary control and sexual function. Earlier, patients often struggled with these problems for a long time, but now most of them can resume normal life within weeks.”


New Hope for Advanced-Stage Patients


Several internationally recognized clinical trials and research projects are also underway at SGPGIMS. These are offering hope to patients whose cancer has spread to bones, lungs, or liver—cases where conventional treatments are often ineffective.


Dr. Singh emphasized:

“Our goal is not just to cure cancer, but also to improve the overall quality of life for our patients.”





मंगलवार, 2 सितंबर 2025

आशियाना जैन मंदिर में दसलक्षण पर्व के छठे दिन ‘उत्तम संयम धर्म दिवस’ मनाया गया

 

आशियाना जैन मंदिर में दसलक्षण पर्व के छठे दिन ‘उत्तम संयम धर्म दिवस’ मनाया गया


 दिगम्बर जैन सेवा समिति, आशियाना के तत्वावधान में मंगलवार 2 सितंबर 2025 को जैन धर्म के शाश्वत पर्व दसलक्षण महापर्व के छठे दिन ‘उत्तम संयम धर्म दिवस’ (सुगंध दशमी) का आयोजन धूमधाम से किया गया। इस अवसर पर सुबह से ही मंदिर प्रांगण में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी और धार्मिक उल्लास का वातावरण बना रहा।


समिति के अध्यक्ष चन्द्र प्रकाश जैन के नेतृत्व में प्रतिष्ठित पंडित उमेश जैन शास्त्री ने मंगलाचरण और पूजा-अभिषेक सम्पन्न कराए। उनके मार्गदर्शन में धर्मसभा का आयोजन हुआ, जिसमें संयम धर्म की महत्ता और जीवन में उसके अनुपालन पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। श्रद्धालुओं ने गहन श्रद्धा एवं भक्ति भाव से पूजा-अर्चना में भाग लिया।


धार्मिक कार्यक्रम के दौरान जी की शान्तिधारा का सौभाग्य महिला मंडल, आशियाना को प्राप्त हुआ। इस अवसर पर समिति के मंत्री अनिल जैन, उपाध्यक्ष हरिओम जैन, कोषाध्यक्ष शरद जैन, संयुक्त मंत्री अंकित जैन, संजीव जैन, बृजेश जैन (बंटी), आशीष जैन सहित बड़ी संख्या में पदाधिकारी एवं श्रद्धालु मौजूद रहे।


महिला मंडल की अध्यक्ष अपर्णा जैन, उपाध्यक्ष डॉ. सविता जैन, स्वीटी जैन, सोनी जैन, अनीता जैन, राखी जैन, रिमझिम जैन, मीनू जैन, सरिता जैन, संगीता जैन आदि ने सक्रिय सहयोग करते हुए आयोजन को सफल बनाया।


सायंकालीन सत्र में पंडित उमेश जैन शास्त्री ने प्रवचन देते हुए कहा कि उत्तम संयम धर्म मानव जीवन का आधार है। संयम से ही जीवन में शांति, संतोष और स्थिरता आती है। उन्होंने कहा कि संयम को अपनाकर मनुष्य अपने भीतर के क्रोध, लोभ और मोह पर नियंत्रण पा सकता है।


प्रवचन के उपरांत महिला मंडल की ओर से विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए, जिनमें धार्मिक गीत, नृत्य और नाट्य प्रस्तुति शामिल रही। श्रद्धालुओं ने पूरे उत्साह से कार्यक्रम का आनंद लिया और संयम धर्म की महत्ता को आत्मसात करने का संकल्प लिया।


आयोजन में शामिल बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने कहा कि ऐसे धार्मिक पर्व समाज में आध्यात्मिक जागरण का कार्य करते हैं और लोगों को धर्म के प्रति प्रेरित करते हैं।