मंगलवार, 9 जुलाई 2019

पीजीआइ देश का पहला संस्थान जो नापेगा आंत की संवेदनशीलता

पीजीआइ देश का पहला संस्थान जो नापेगा आंत की संवेदनशीलता

पेट के 30 से 40 फीसदी मरीजों को मिलेगा सटीक इलाज
न्यूरो की दवा से हुआ पेट का इलाज

आंत की संवेदन शीलता में कमी या अधिकता के कारण पेट की बीमारी से ग्रस्त 30 से 40 फीसदी मरीजों को सटीक इलाज देने के लिए संजय गांधी पीजीआइ ने रैपिड बैरो स्टैट जांच शुरू किया है। संस्थान देश का पहला संस्थान है जिसने यह जांच शुरू की है। इस जांच को शुरू करने वाले  गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग के प्रो.यूसी घोषाल के मुताबिक आंत की चाल होती है वैसे ही आंत में संवेदन शीलता होती है। संवेदनशीलता की कमी  या अधिकता के कारण कई तरह की परेशानी होती है। इस बीमारी से ग्रस्त लोगों में अभी तक अंदाजे से इलाज किया जाता था लेकिन जांच के जरिए संवेदनशीलता की सही जानकारी हासिल कर सटीक इलाज संभव हो गया है। रैपिड बैरो स्टैट की जांच 15 मरीजों किया जिसके आधार पर इलाज शुरू किया । यह मरीज कोलकता, आबू धाबी, केरला, मुंबई से यहां इलाज के लिए भेजे गए थे। आंत में संवेदनशीलता के कारण होने वाली परेशानी को डाक्टरी भाषा में इंस्टेस्टाइनल सूडो आब्सट्रेक्शन, हर्षप्रांग सिड्रोम सहित अन्य कहते हैं। प्रो. घोषाल के मुताबिक सही समय पर सही इलाज न होने पर इंटेस्टाइनल फेल्योर हो जाता है जिसके कारण व्यक्ति खाना नहीं खा पाता है। इन परेशानियों के इलाज के लिए न्यूरोलाजिकल बीमारियों के लिए दी जाने वाली दवाएं दी जाती है।
कैसे होती ही जांच
इस जांच में आंत में मशीन से जुडे गुब्बारे को डाला जाता है। फिर मशीन से इसे फुलाया जाता है जिसमें तय मात्रा में प्रेशर दिया जाता है। प्रेशर को मरीज अनुभव करता है। संवेदनशीलता अधिक होने पर अधिक प्रेशर देने पर वह दर्द बताता है। कम होने पर कम प्रेशर पर ही दर्द बताता है। प्रेशर के आधार पर आटो जनरटेड ग्राफ मशीन देता है।  
यह तो संभव है संवेदनशीलता में परेशानी
-    पेट में दर्द
-    खाना पेट में अटका रहता
-    मल त्याग करने की इच्छा ही नहीं होती
-    पेट में भारी पन
     
      पेट की जटिल बीमारी के इलाज के लिए नई तकनीक देश में पहली बार स्थापित किया है। प्रो. घोषाल ने बडा काम किया है यह गर्व का विषय है...निदेशक प्रो.राकेश कपूर  

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