पीजीआई ने 10 साल पहले खरीद लिया प्लांटर प्रेशर नही किया इस्तेमाल
कबाड़ होने के बाद स्टाल हुई मशीन नहीं हो रही जांच
जागरण संवाददाता। लखनऊ
डायबटिक मरीजों के पैर को बचाने के लिए प्लांटर प्रेशर मशीन लगना के कवायद 2009 में शुरू हुई तमाम प्रक्रिया के बाद मशीन 2011 में संस्थान में आ गयी । मशीन आयी भी आधी-आधूरी जिसमें न तो कंप्यूटर और न प्रिंटर । मशीन के कीमत का 75 फीसदी भगुतान भी मई 2011 में कर दिया गया। इसके बाद तमाम लिखा पढ़ी के बाद भी कंपनी इंटरनेशनल इलेक्ट्रो मेडिकल कंपनी ने कोई रूचि नहीं दिखायी क्योंकि कंपनी को पेमेंट हो गया था। कंपनी को उसकी कीमत मिल गयी थी। सवाल उठा कि आधूरी मशीन की सप्लाई पर पेमेंट क्यों हुआ तो इसको लेकर तत्कालीन विभाग के खरीद प्रस्तावक लीपा पोती करते रहे। संस्थान प्रशासन के तमाम बदाव के बाद हाल में ही मशीन इंस्टाल हो गयी लेकिन मशीन से जांच संभव नहीं पा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि मशीन सीएमसी पांच साल बाद शुरू हो जाती है। मशीन में की बार पानी तक भर चुका है। केवल बचाव के लिए मशीन को स्टाल किया गया है।
क्या करती है मशीन
८५ से ९० प्रतिशत मधुमेह रोगियों का पैर कटने से बच सकते है । प्लांटर स्कैन के जरिएपैर में रक्त दाब व डाप्लर से रक्त वाहिकाओं में रूकावट का पता लगेगा। छोटे-छोटे ट्रांस मीटर लगे होते हैं। इस मशीन पर खड़े होने से मरीज के पैर में कहां पर कितना रक्त दाब रंगीन फोटो से पता चल जाता है। जहां पर रक्त दाब अधिक होता है वहां पर त्वचा धीरे-धीरे मोटी हो जाती है। फिर वहां की त्वचा फट जाती है। त्वचा के फटने पर घाव या अल्सर हो जाता है। डाप्लर के जरिए देखा जाता है कि किस रक्त वाहक नलिका में कितनी व कहां पर रूकावट है। रक्त वाहक· नलिकाओं की रूकावट का पता लगा कर एंजियोप्लास्टी से रूकावट को दूर रक्त प्रïवाह सामान्य किया जा स·ता है। इससे पैर में घाव बनने की आशंका समाप्त हो जाती है।
मशीन खरीद के बाद इसका इस्तेमाल नहीं हुपीजीआई ने 10 साल पहले खरीद लिया प्लांटर प्रेशर नही किया इस्तेमालआ । जानकारी होने पर मशीन को स्टाल कराया गया जांच की जा रही है जो भी दोषी होगी उनके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा.....निदेशक प्रो.राकेश कपूर
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