बुधवार, 31 जुलाई 2019

पीजीआइ की संविदा नर्सेज को मिल रहा है देश में सबसे कम वेतन

 पीजीआइ की संविदा नर्सेज को मिल रहा है देश में सबसे कम वेतन   
संविदा नर्सेज को रेलवे में 44 नौ सौ और आईसीएमआर में 31 पांच सौ का वेतन
नर्सिग एसोसिएशन ने जताया विरोध

संजय गांधी पीजीआइ में इलाज का स्तर को देश के बडे तीन संस्थानों के बराबर है । इलाज में नर्सेज की अहम भूमिका है लेकिन संविदा- आउट सोर्सिग पर तैनात नर्सेज को वेतन काफी कम है।  रेलवे में संविदा पर तैनात नर्स को 44, 900 मानदेय दिया जाता है। इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च में तैनाज नर्सेज को 31, 500 फिक्स मानदेय़ दिया  जाता है  वहीं पर यहां पर केवल 18  हजार मान देय दिया जाता है। इस तरह की अनियमता के कारण नर्सेज बहनों का शोषण हो रहा है। किसी कारण वस अवकाश ले लिया तो उस दिन का पैसा काट लिया जाता है। कर्मचारी नेताओं ने रेलवे के बराबर मानदेय़, अवकाश  और जाब सिक्योरटी के लिए आंदोलन की चेतावनी दी है। मांग की है कि सरकार एक देश एक कानून के तहत वेतन या मानदेय का तय किया जाए। जांब सिक्योरटी भी नहीं है जब ठेकेदार जिसे चाहे बाहर कर देता है। युवा मानव शक्ति का उपयोग किया जाता है। यही हजारों मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए वर्षों तक काम करते है लेकिन जब चाहें उसे बाहर कर देते है। मांग किया कि परमानेंट पदों पर क्रम के अनुसार इनका सीधे समायोजन किया जाए क्योंकि संविदा पर तैनाती सलेक्शन प्रक्रिया के तहत होता है । इस लिए समायोजन में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। आउट सोर्सिग के नाम पर बीच में ठेकेदार रखा गया है तो कमीशन लेता है रेलवे या आईसीएमआर की तरह सीधे रखने में क्या परेशानी है । बीच  में ठेकेदार केवल कमीशन के लिए रखा गया है। 

महिलाओं का हो रहा हैै शोषण
 संजय गांधी पीजीआइ नर्सेज एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला ने संस्थान में संविदा- आउट सोर्सिग पर तैनात नर्सेज को मिल रहे वेतन पर एतजार जताते हुए कहा कि नर्सेज को रेलवे के बराबर या आईसीएमआर के बारबर वेतन दिया जाए। सीधे तैनात किया जाए ।  उत्तर भारत के सबसे बडे इस अस्पताल में एक देश एक कानून लागू नहीं है। महिला संंसाधन का शोषण हो रहा है इस प्रोफेसन 90 फीसदी महिलाएं है जो आवाज नहीं उठा पा रही है। शोषण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसके लिए हर स्तर पर आंदोलन होगा।

पीजीआइ एपेक्स ट्रामा-गोल्डेल आवर में 10 फीसदी लोगों को ही मिल पाता है इलाज

पीजीआइ एपेक्स ट्रामा सेंटर का स्थापना दिवस समारोह

कैसर, हृदय घात से अधिक लोगों की जान ले रहा है रोड एक्सीडेंट
गोल्डेल आवर में 10 फीसदी लोगों को ही मिल पाता है इलाज
एटीएलएस के जरिए रोकी जा सकती है मौत 

जागरण संवाददाता। लखनऊ
दूसरे देशों के मुकाबले हमारे देश में वाहन सात- आठ गुना कम है लेकिन रोड एक्सीडेंट की  दर इन देशो से  अधिक है। ट्रामा मैनेजमेंट न होने  हर मिनट में एक व्यक्ति की मौत रोड एक्सीडेंट के कारण होती है।  रोड या किसी भी एक्सीडेंट होने पर गोल्डेन आवर यानि पहले एक घंटे में अस्पताल में इलाज केवल पांच से 10 फीसदी लोगों को मिल पाता है इस लिए एडवांस ट्रामा लाइफ सपोर्ट सिस्टम विकसित करने की जरूरत है। जिसमें सांस चलाने के लिए चेस्ट कंप्रेशन, रक्त स्राव रोकने के प्रेशर सिस्टम सहित अन्य है। यह सलाह संजय गांधी पीजीआई के एपेक्स ट्रामा सेंटर के पहले स्थापना दिवस समारोह के मुख्य अतिथि एम्स दिल्ली ट्रामा सेंटर के पूर्व निदेशक एवं वर्तमना में महात्मा गांधी यूविवर्सटी आफ हेल्थ जयपुर  के कुलपति   प्रो.एमसी मिश्रा ने दी । बताया कि प्रति एक लाख में 30.5 ट्रामा के कारण मौत के शिकार होते है जो हृदय रोग और कैंसर से अधिक है। डिजीज वर्डन के दस बडे कारणों में तीसरे नंबर पर  रोड एक्सीडेंट है पहले नंबर पर हार्ट डिजीज और दूसरे नंबर डिप्रेशन है। आईजी  पुलिस दीपक रतन ने कहा कि पीजीआइ के अंदर बेड मिलते ही लगता है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा यह विश्वास पैदा करने में यहां के टैलेट और टेक्नोलाजी की भूमिका है।   ट्रामा सेंटर के प्रभारी प्रो.अमित अग्रवाल, सेंटर के सदस्य प्रो. एसके अग्रवाल ने कहा कि  सेंटर को मजबूत करने की कोशिश कर रहे है। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी भरत सिंह ने बताया कि एक्सीडेंट के बाद लोग गुस्से में कई बार  बवाल करतें है जिसमें हम लोग मानवीय तरीके से हैंडिल करते हैं। मेडिकल सोशल आफीसर एसके श्रीवास्तव, एमएसडब्लू मदांसा द्वेदी ने बताया कि एक्सीडेंट शिकार के आते ही सबसे पहले हम लोग उन्हें इमरजेंसी में जल्दी से जल्दी एंबूलेंस से उतरा कर लाते है फिर डाक्टर के सलाह पर डायग्नोसिस के लिए प्रयास करते है कि 20 मिनट में प्राइमरी परेशानी का पता लग जाए। 


खुद को ठीक करना होगा तब थमेंगा रोड एक्सीडेंट

संस्थान के निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने कहा कि रोड एक्सीडेंट में कमी तभी आयेगी जब हम खुद ट्रैफिक नियमों का पालन करेंगे लेकिन रोड पर देखिए तो लोग  आगे निकलने की होड़ में बुरी तरह गाडी चलाते है। बाइक वाले तो कट मर कर आगे आ जाते है। खुद  में सुधार के बिना कुछ संभव नहीं है। हर जगह पुलिस तो नहीं लोगों को कंट्रोल कर सकती है। जागरूकता के कारण ही एचआईवी , हिपेटाइटिस में कमी आयी है । कहा कि एक साल में ट्रामा सेंटर ने काफी अच्छा काम किया जिसमें सबकी बराबर की भागीदारी है। हम फेज मैनर में काम कर रहे है एक साथ केवल नाम के 210 बेड नहीं शुरू करेंगे। जब हम इतना बेड  चलाने के लिए पूरी तरह संसाधन से लैस हो जाएंगे तब चलाएंगे

पीजीआइ ट्रामा सेंटर सुधारेगा प्रदेश के तीन और ट्रामा सेंटर की सेहत

पीजीआइ ट्रामा सेंटर सुधारेगा प्रदेश के तीन और ट्रामा सेंटर की सेहत
एक महीने में बढ़ेगा 50 बेड  
पीजीआइ ट्रामा सेंटर का स्थापना दिवस समारोह आज



संजय गांधी पीजीआइ एपेक्स ट्रामा सेंटर को  प्रयागराज, कानपुर और गोरखपुर ट्रामा सेंटर की सेहत ठीक करने का जिम्मा मिला है। इन ट्रामा सेंटर का दौरा यहां के विशेषज्ञ करने के बाद संसाधन का ब्यौरा बना कर सरकार को सौपेंगे जिसे पूरा कराने के बाद टेक्निकल सपोर्ट देकर इनकी सेहत ठीक करेंगे। पीजीआइ ट्रामा सेंटर के स्थापना दिवस के मौके पर प्रभारी प्रो. अमित अग्रवाल, प्रो. पुलक शर्मा, प्रो. कमलेश और प्रो. अमित सिंह ने ने बताया कि हम लोग अपने ट्रामा सेंटर को मजबूत करने के साथ प्रदेश के इन ट्रामा सेंटर को भी मजबूत करने की योजना पर काम कर रहे हैं। एक्सीडेंट होने पर नजदीक से नजदीक ट्रामा सेंटर की जरूरत है क्योंकि जितनी जल्दी इलाल मिलना शुरू होता है सफलता दर उतनी ही बढ़ जाती है। इस लिए पेरीफेरी के ट्रामा सेंटर को मजबूत  होना जरूरी है। विशेषज्ञों ने बताया कि एक महीने के अंदर हम लोग 50 बेड और बढा लेंगे। अभी हमारे पास 66 बेड है जो बढ़ कर 116 बेड हो जाएगा। नर्सेज और रेजीडेंट की कमी को पूरा करने के बाद बेड बढेगा। दस नान टीचिंग डाक्टर भी लेने जा रहे हैं। रेजीडेंट की कमी को पूरा करने के लिए फेलोशिफ शुरू कर रहे है क्योंकि ट्रामा सेंटर एकेडमिक प्रोग्राम न होने की वजह से रेजीडेंट नहीं आ रहे हैैं।

संसाधऩ और उपलब्धियां

-  बेड 66
- संकाय सदस्य 18
-रेजीडेंट 9
- न्यूरो सर्जरी- 194
- ट्रामा सर्जरी( सांस की नली, पेट, प्लेविक फ्रैक्चर, वेसेल डैमेज आदि)- 51 मेजर- 227 माइनर 
- हड्डी की सर्जरी- 500 मेजर सर्जरी
-मैक्सीलोफेसियल सर्जरी- 50
- रीहमैबिलेटशन- 2200 केस 

सोमवार, 29 जुलाई 2019

रक्तस्राव रोककर 30 फीसद घायलों की बचा सकते हैं जान- ब्लीडिंग रोकने के लिए दिया जागा प्रशिक्षण

रक्तस्राव रोककर 30 फीसद घायलों की बचा सकते हैं जान

एसजीपीजीआइ, केजीएमयू और वील कर्नल मेडिकल हॉस्पिटल अमेरिका मिलकर पूरे प्रदेश में तैयार करेंगे जीवनदूत

 दुर्घटना के शिकार व्यक्ति में हो रहे रक्तस्नाव को मौके पर मौजूद लोग यदि रोक दें तो उसकी मौत को टाला जा सकता है। 30 फीसद घायलों में मौत का कारण अत्यधिक रक्तस्नाव होता है। इसकी रोक थाम को लेकर आम लोगों को जागरूक करने के लिए संजय गांधी पीजीआइ, केजीएमयू और वील कर्नल मेडिकल हॉस्पिटल अमेरिका ने प्रदेश में अभियान शुरू किया है। इसके तहत स्कूली बच्चों, पुलिस सहित अन्य समाजसेवियों को रक्तस्नाव रोकने के साधारण तरीके के बारे में जागरूक किया जाएगा।
कार्यक्रम के संयोजक प्रो. संदीप कुमार और प्रो. संदीप तिवारी ने तय किया है कि वह पूरे प्रदेश के लोगों को रक्तस्नाव रोकने के लिए जागरूक करेंगे। इसके लिए हर जिले में मास्टर ट्रेनर तैयार करेंगे। ये ट्रेनर 10 लोगों को रक्तस्नाव रोकने का तरीका सिखाएगा। प्रो. संदीप के मुताबिक रक्तस्नाव रोकने के लिए किसी खास उपकरण की जरूरत नहीं है। केवल मौके पर मौजूद कपड़े, रबड़ से भी खून बहना रोक सकते हैं।


क्या परेशानी होती है
’रक्तस्नाव होने पर रक्त को थक्का जमाने वाले तत्व केसाथ प्लेटलेट्स कम हो जाते हैं।
’शरीर में आक्सीजन की कमी हो जाती है, जिस कारण आर्गन फेल्योर हो जाता है।
’रक्तस्नाव के कारण ब्लड प्रेशर भी कम हो जाता है।
रोकने का तरीका
’10 मिनट तक घाव पर दोनों हथेली से प्रेशर बनाएं, यदि घाव गहरा है तो कोई साफ कपड़ा घाव में भर कर प्रेशर दें
’नस कटी है तो जहां कटी है उससे दो से तीन सेमी ऊपर कपड़े या रबड़ से खूब तेज बांध दें, जिससे रक्तस्नाव रुक जाए और इसे अस्पताल पहुंचने तक बंधा रहने दें।

अब घरों में पानी के लिए भी निजि सप्लायर करेंगे

अब घरों में पानी के लिए  भी निजि सप्लायर करेंगे 




 बिजली आपूर्ति की तरह आने वाले समय में प्रदेश में जलापूर्ति की व्यवस्था भी कोई निजी कंपनी संभाल सकती है। निवेश परियोजनाओं के भूमिपूजन समारोह में देशभर से जुटे उद्यमियों के सामने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह प्रस्ताव रखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर घर नल योजना की घोषणा की है। उद्यमी चाहें तो इसमें भी निवेश कर सकते हैं।
भूमिपूजन समारोह के अंत में इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान के ज्युपिटर हॉल में उद्यमियों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों के प्रतिनिधियों का सम्मान समारोह आयोजित किया गया। इस दौरान मुख्यमंत्री ने उद्यमियों से कहा कि प्रधानमंत्री ने हर घर नल योजना में निवेश की संभावनाएं हैं। निजी क्षेत्र आगे आ सकते हैं। हमार पास सतही जल और भूगर्भ जल पर्याप्त मात्र में है। निजी निवेशक बिजली की तरह जलापूर्ति वितरण व्यवस्था संभाल सकते हैं। साथ ही इलेक्टिक वाहनों के क्षेत्र में भी निवेश के अवसर हैं।

रविवार, 28 जुलाई 2019

पीजीआइ को एसबीआई ने दिया डायलसिस मशीन के लिए 51 लाख




पीजीआइ को एसबीआई ने दिया डायलसिस मशीन के लिए 51 लाख 

सीएसआर के तहत पीजीआइ को स्टेट बैंक करता रहेगा मदद
जागरणसंवाददाता। लखनऊ 
भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा कि संजय गांधी पीजीआइ के लिए सहायता का प्रस्ताव बोर्ड के सामने आया तो नाम ही काफी था। हम लोगों को विश्वास है कि संस्थान में पैसे का सही उपयोग होगा। इससे पहले भी सोशल  रिसप्लांसबिलिटी(सीएसआऱ) के तहत संस्थान को हमारे बैंक ने मदद किया है। कहा कि अभी चिकित्सा आम आदमी के पहुंच से बाहर है जिसके लिए भारत सरकार ने आयुष्मान योजना लागू किया इससे काफी लोगों को फायदा मिल रहा है। पीजीआइ के साथ स्टेट बैंक का रिश्ता बना रहेगा। 
चेयरमैन ने संस्थान को डायलसिस मशीन खरीदने के लिए 51 लाख का चेक निदेशक प्रो राकेश कपूर को सौंपा। इस मैके पर निदेशक प्रो. राकेश कपूर ने कहा कि इससे पहले स्टेट बैंक ने पेशेंट सेल्टर बनवाया जिससे दूर से आने वाले मरीजों को आराम करने की जगह मिल गयी। मरीज  बाहर बडे रहते थे जिसे देख कर कष्ट हुआ तो स्टेट बैंक से अनुरोध किया। हमारे पास डायलसिस की 55 मशीन है जिस पर रोज 150 से अधिक मरीजों की डालसिस 24 घंटे सातों दिन होती है। विभाग की मशीने बदलने की जरूरत थी जिसके लिए स्टेट बैंक के ब्रांच मैनेजर राहुल सिंह से कहा तो वह तुरंत प्रोपजल बना कर मुख्यालय भेजे जहां पर लखनऊ मंडल की मुख्य महाप्रबंधक सलोनी नरायन ने स्वीकार कर आगे भेजा जिसका नतीजा है कि आज मशीन खरीदने के लिए पैसा मिला।चिकित्सा अधीक्षक प्रो. अमित अग्रवाल और नेफ्रोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो. अमित गुप्ता ने बताय  कि 51 लाख से सात डायलसिस मशीन खरीदी जाएगी जिससे मरीजों को राहत मिलेगी। 


स्तन में गांठ तो जांच कराएं जांच - स्तन की हर गांठ नहीं होता कैंसर

स्तन में गांठ तो जांच कराएं जांच

स्तन की हर गांठ नहीं होता कैंसर 
  
पीजीआई में ब्रेस्ट इमेजिंग अपडेट पर वर्कशॉप



जागरण संवाददाता। लखनऊ

स्तन हर की हर गांठ कैंसर नहीं होती है फिर भी गांठ होने पर उसकी जांच करना जरूरी है। यह बात संजय गांधी पीजीआई की रेडियोलाजिस्ट प्रो. अर्चना गुप्ता ने स्तन कैंसर पर आयोजित सीएमई में कही। कहा कि  महिलाओं में स्तन के भीतर या बाहर कोई गांठ महसूस होती है। स्तन में दर्द के साथ अचानक उसका आकार का बढ़ रहा है। स्तन से तरल द्रव निकल रहा है। तो तुरंत डॉक्टर की मदद ले और उपयोगी जांच कराएं। ये लक्षण स्तन कैंसर के हो सकते हैं।  पीजीआई और मेदांता के सहयोग से ब्रेस्ट इमेजिंग अपडेट पर आयोजित सीएमई में विशेषज्ञों ने स्तन कैंसर की पहचान के लिए मौजूद नवीन तकनीक के बारे में जानकारी दी।  स्तन कैंसर की पहचान के लिए  एमआरआई, अल्ट्रासाउंड, ब्रेस्ट मेमोग्राम, डिजिटल ब्रेस्ट मेमोसेन्थेसिस के बारे प्रशिक्षु रेडियोलॉजिस्ट और टेक्नीशियन को जानकारी दी गई। वर्कशॉप में एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज मेरठ, बीएचयू वाराणसी और जीएसबीएम कानपुर डॉक्टर और टेक्नीशियन मौजूद थे। वर्कशॉप का लाइव वेबकास्टस किया गया। पीजीआई के सीनियर रेडियोलॉजिस्ट डॉ. शिवकुमार ने कहा कि ऐसे आयोजनों से प्रशिक्षु रेडियोलॉजिस्ट को नई तकनीक की जानकारी मिलती है।


स्तन कैंसर महिलाओं में मौत की अहम कारण
डॉ. अर्चना बताती हैं कि विश्व मे हर साल करीब दो मिलियन महिलाएं स्तन कैंसर की चपेट में आती हैं। बीते साल वर्ष 2018 में स्तन कैंसर से छह लाख 27 हज़ार महिलाओं की मौत हो चुकी है। महिलाओं में मौत का सबसे बड़ा कारण स्तन कैंसर है। विकसित क्षेत्रों में महिलाओं में स्तन कैंसर की दर अधिक है।


समय पर जांच से इलाज संभव है

डॉ . अर्चना गुप्ता बताती है स्तन कैंसर की यदि समय पर पहचान हो जाय तो इलाज मुमकिन है। स्तन कोशिकाओं में होने वाली अनियंत्रित वृद्धि स्तन कैंसर का मुख कारण हैं। ये वृद्धि गांठ का रूप ले लेती है। जिसे कैंसर ट्यूमर कहते हैं। महिलाओ में स्तन कैंसर की कमी हैं। स्तन में गांठ आकर बढ़ने पर बिना किसी संकोच के  घरवालो को बताए। डॉक्टर की परामर्श लेकर जांच करायें। समय पर इलाज होने पर पूरी तरह से स्तन कैंसर से निजात पाई  जा सकती है।
 
इनमें होता है स्तन कैंसर

परिवार में किसी को स्तन कैंसर होने पर आगे की पीढ़ी में होने की आशंका अधिक होती है। देर से शादी करने वाली महिलाओं में, जल्दी मासिक धर्म आने वाली किशोरियों में, देर गर्भ धारण करने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर होने की संभावना अधिक होती है।

पीजीआइ ट्रामा सेंटर में वृक्षारोपण - सामाजिक सरोकार मंच

पीजीआइ ट्रामा सेंटर में वृक्षारोपण   


सामाजिक सरोकार मंच ने  वृक्षा भूषण के तहत हिमालयन एन्क्लेव परिसर निकट अपैक्स ट्रामा सेंटर पी जी आई में आज दिनांक  रविवार को प्रातः बृहद पौधा रोपड़ आयोजित किया गया जिसमें बड़ी संख्या में सहजन आम नीम कटहल आदि के पौधे लगाए गए विशेष रूप से एक बरगद एक पीपल और एक पाकड़ परिसर के कोने में खुले स्थान में लगाया गया । इस कार्यक्रम का उद्धघाटन योजना विभाग के अधिकारी श्री पी एस ओझा द्वारा किया गया उन्होंने पौधे को पर्यावरण राखी बांध कर उसे बचाने का संकल्प दिलाया।  , 
इस अवसर पर बड़ी संख्या में परिसर के निवासी और सामाजिक सरोकार से जुड़े लोगो ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया कार्यक्रम की संयोजक श्रीमती गोमती द्विवेदी जी ने बताया की पुराणों के अनुसार एक पेड़ दस पुत्रो के समान होता है डॉ पी के गुप्ता ने राखी बांधो अभियान के  अंतर्गत पेड़ लगाए राखी बांधे रच्छा का संकल्प करें का नारा लगवा कर लोगो का उतसाह वर्धन किया और लोगो से स्वस्थ रहने के लिए प्रकृति से रिश्ता बनाने की सलाह दी। स्वछ्ता अभियान के संयोजक आजय कुमार सिंह सहित कई लोगों ने वृक्षा रोपण कर उसे बचाने का संकल्प लिया। 

बिना चोट के रक्तस्राव को नजर अंदाज न करें



पीजीआई में हीमोफीलिया पर  वर्कशॉप
 जीन में गड़बड़ी से रक्त का नहीं बनता है थक्का
बिना चोट के रक्तस्राव को नजर अंदाज न करें

जागरण संवाददाता। लखनऊ
यदि बिना कोई चोट लगे के नाक व मसूड़ा समेत शरीर के बाहर व भीतर के किसी अंग से खून निकल रहा है। इलाज के बाद यदि खून का निकलना बंद नही हो रहा है, तो   यह हेमोफिलिया (ब्लीडिंग डिसआर्डर) के लक्षण हैं। हेमोफिलिया ज्यादातर आनुवांशिक बीमारी है। यह बीमारी कभी पूरी तरह से ठीक नहीं होती है। लोगों को जीवनभर इलाज की जरूरत होती है। यह बातें गुरुवार को पीजीआई में आयोजित वर्कशाप में के हिमेटोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रो सोनिया नित्यानंद और प्रो रुचि गुप्ता ने दी। पीजीआई का हिमेटोलॉजी विभाग प्रदेश का नोडल सेंटर नामित है। जिसकी प्रभारी प्रो सोनिया नित्यानंद हैं।
विशेषज्ञों ने जांच करने की जानकारी दी
विशेषज्ञों ने वर्कशाप में गोरखपुर, मेरठ, दिल्ली, कश्मीर, उदयपुर, व देहरादून मेडिकल कालेज से आये पैथालॉजिस्ट और लैब टेक्निशयनों को हेमोफिलिया की जांच के बारे में जानकारी दी। पीजीआई के हिमेटोलॉजी विभाग के प्रो अंसुल गुप्ता,  व डॉ. दिनेश चन्द्रा ने इन्हें बेसिक और स्पेशल जांच के सैंपल लेने से लेकर इनकी जांच की विधि बतायी। इनमें प्रोथ्रोम्बिन टाइम (पीटी), एक्टीवेटेट पार्शियल थ्रोम्बोप्लास्टिन टाइम (एपीटीटी), कम्पलीट ब्लड काउंट (सीबीसी), फिब्रिनोजेन, फैक्टर एएसएसएवाई, मिक्सिंग स्टडी समेत अन्य कई जांचों के बारे में बताया। इन्हें लैब में सैम्पल के जरिये जांच कर दिखायी भी गईं।  जांच में जितनी जल्दी पुष्टि हो जाती हैं। उतनी जल्दी मरीज का इलाज शुरू हो जाता है।

बुधवार, 24 जुलाई 2019

पीजीआइ में मिसेज यूनीवर्स और पीसीएस जे में चयनित का हुआ सम्मान

पीजीआइ में मिसेज यूनीवर्स और पीसीएस जे में चयनित नर्स हुआ सम्मान


माडल नर्स नहीं बन सकती है लेकिन नर्स बन सकती है माडल

कोई भी माडल नर्स नहीं बन सकती लेकिन एक नर्स माडल बन सकती है । मिसेज यूनीवर्स चुनी गयी संजय गांधी पीजीआइ की नर्सिग आफीसर नीमा पंत और पीसीएस जे में चयनति विजय लक्ष्मी के सम्मान समारोह में नीमा पंत ने कहा कि केवल चेहरे की सुंदरता केवल मिसेज यूनिवर्स नहीं हो सकता है। इसके लिए ज्ञान की भी परीक्षा होती है। सफलता हासिल करने के लिए निरंतर कोशिश करनी चाहिए। पीसीएस जे में चयनित नर्सिग आफीसर विजय लक्ष्मी ने बताया कि वह 12 साल पहले पीजीआइ ज्वाइन की थी लेकिन पढाई जारी रखी। कैथ लैब में ड्यूटी के साथ लगातार कोशिश करती रही। विभाग के साथी भी मनोबल बढाते रहे जिसका नतीजा है कि चयन हुआ। सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो.सुदीप और मुख्य नर्सिग आफीसर एल कालिब सोलंकी ने  ने कहा कि कैथ लैब में काम करने वाली दो नर्सिग आफीसर ने बडी सफलता हासिल की है । इन दोनों लोगों के नर्स की सेवा बेस्ट परफारमेंश दिया। कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष जितेंद्र यादव, और महामंत्री धर्मेश कुमार ने कहा कि पढाई जारी रखना चाहिए। पढ़ने से जो काम कर रहे हैं उसमें और निखार आता है साथ आगे बढने का मौका मिलता है। संघ की वरिष्ठ महामंत्री रेखा मिश्रा , वरिष्ठ उपाध्यक्ष भीम सिंह सहित अन्य लोगों ने कहा कि इनके सफलता से संस्थान के नए कर्मचारियों का मनोबल बढेगा।   

पीजीआइः पैर का नर्व लगाया हाथ में आ गया दम

पीजीआइः पैर का नर्व लगाया हाथ में आ गया दम 

नर्व इंजरी के कारण चली गयी थी हाथ में जान  
एक्सीडेंट के बाद हाथ में चोट न खरोंच फिर न लगे दम तो संभव है नर्व इंजरी
कुमार संजय। लखनऊ
 27 वर्षीय सोनू रोड एक्सीडेंट  का शिकार हुआ। कही कोई चोट न फ्रैक्टर लेकिन हाथ में दम चला गया। संजय गांधी पीजीआइ के प्लास्टिक सर्जरी  प्रो अंकुर भटनागर ने पैर के नर्व को हाथ में रोपित किया । अब सोनू का हाथ में ताकत आ गयी है। नर्व टूटने या इंजरी के कारण  कारण दिमाग हाथ को कमांड देना बंद कर देता है। हाथ में लकवा मार जाता है। संवेदना खत्म हो जाती है। हाथ में दम न होने से रोज मर्रा की जिंदगी प्रभावित होती है। ऐसे हाथ में जान डालना ब्रेकियल पेक्सिस नर्व सर्जरी के जरिए संभव हो गया है। हाथ को कमांड  देने के लिए  पांच नर्व होती है।  कुछ लोगों में सभी नर्व डैमेज होती है तो कुछ लोगों में दो या तीन।कुछ नर्व डैमेज होती है जो उसे दोबारा माइक्रो न्यूरल सर्जरी कर जोड़ते है।  सभी नर्व के डैमेज होने पर शरीर के दूसरे अंग के नर्व को निकाल ग्राफ्ट( रोपित) करते हैं। इस जटिल सर्जरी में आठ से नौ घंटे लगते है। नर्व को जोड़ने के बाद नर्व ग्लू लगाकर नर्व को फिक्स करते हैं। ब्रेकियल पेक्सिस नर्व इंजरी के 10 फीसदी मामलों में समय के साथ हाथ काम करने लगता है लेकिन 90 फीसदी मामलों में सर्जरी या दवा से ही इलाज संभव होता है। नर्व इंजरी का पता एमआरआई और नर्व कंडक्शन जांच से लगता है।  

क्या है नर्व
मासपेशियों को काम करने के लिए दिमाग से सिगनल मांसपेशियों तक 0.5 से 2 मिमी मोटाई का तंतु से जाता है । इसे नर्व कहते है। इसमें इंजरी या टूट जाने पर दिमाग से सिगलनल नहीं जाता जिससे हाथ में लकवा मार जाता है।    

इंजरी के 3 से 6 महीने में सर्जरी से परिणाम बेहतर
प्रो.अंकुर के  मुताबिक नर्व इंजरी के मामले देर से आते है जिसके कारण सर्जरी का परिणाम उतना बेहतर नहीं मिलता है। देखा गया है कि तीन से 6  महीने में सर्जरी करने पर एक साल में बेहतर परिणाम मिलने लगता है। बताया कि नर्व की इंजरी होने पर दिमाग कुछ दिन भल जाता है कि यह मेरा अंग था जिसके कारण दोबारा जोड़ने पर दिमाग लंबे समय के बाद सिगनल देना शुरू करता है।
  
अब सोनू की कलाई भी होगी सीधी

 हाथ में पूरी ताकत आ गयी लेकिन कलाई लटक रही अब कलाई को सीधा करने के लिए इसी हफ्ते आर्थो डिसेस सर्जरी कर कलाई में प्लेट लगाया है जिसके बाद कलाई सीधी हो गयी है। अब सोनू दोनों हाथों से काम कर पाएंगा। प्रो. अंकुर के मुताबिक नर्व सर्जरी के बाद ताकत आने में 6 महीने से एक साल तक लगता है । एक सर्जरी में खर्च 30 से 35 हजार आता है। 


रविवार, 21 जुलाई 2019

सोशल मीडिया के जरिए मिल रहा है खून जब खून देने के नाम रिश्तेदार नहीं देते साथ रक्तपूरक करता है मदद





सोशल मीडिया के जरिए मिल रहा है खून
जब खून देने के नाम रिश्तेदार नहीं देते साथ रक्तपूरक करता है मदद 
 15 सौ से अधिक  मरीज को उपलब्ध करा चुके है खून 
जिसका कोई नहीं उसके लिए खून उपलब्ध कराते है रक्तपूरक 

कुमार संजय। लखनऊ
- 21 वर्षीय अभिषेक रक्त कैंसर से ग्रस्त है तो दो यूनिट खून की तुरंत जरूरत है । हम लोग बाहर से डोनर नहीं है। पीजीआइ में मरीज भर्ती है   
-चंदन को दो यूनिट खून की जरूरत है। रक्त कैंसर से ग्रस्त  है। पीजीआइ में भर्ती है।    
यह तो एक- दो मैसेज है जो सोशल मीडिया के रक्त पूरक फाउंडेशन पर फ्लैस हुआ। मैसेज फ्लैस होते ही रक्तदाता सक्रिय हो गए किसी ने समय दे दिया कि चिंता न करें रक्त दाता पहुंच कर आप से संपर्क करेगे। इलाज के लिए दूर-दूर से लोग परिजन राजधानी आते है। मरीज में खून की कमी होने पर रक्त चढाने की जरूरत होती है। रक्त बाजार में पैसे तो मिलता नहीं न हीं इसे बनाया जा सकता है।  ऐेसे में रिप्लेसमेंट डोनेशन के जरिए ही मरीज को खून उपलब्ध ब्लड बैंक कराते है। जिसके पास डोनर नहीं होते उन्हें खून उपलब्ध कराने के लिए सोशल मीडिया पर बना व्हाटसअप ग्रुप के सदस्य 24 घंटे सक्रिया रहते है।  ग्रुप के संचालक बलराज ढिल्लन कहते है कि सोशल मिडिया की तमाम अच्छाई भी कैसे उसका इस्तेमाल करते हैं। बताते है कि  ग्रुप पर ही मैसेज आते ही  फला डोलर आज ही आप से आप के दिए नंबर पर संपर्क करेंगे। रक्त दान करने वाले ग्रुप पर बताते है कि फला रक्तदाता ने रक्तदान कर दिया है। खून के लिए परेशान परिजनों की खुशी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है।   रोज 40 से 50 लोग प्रदेश के जिलों से खून के लिए गुहार लगाते है। ग्रुप से स्वैछिक रक्त दाताओं जुडे है । लखनऊ के 15 सौ  से अधिक लोगों का जीवन रक्तदान कर बचा चुके है। 
एक हजार से अधिक है रक्तदाता  
फाउंडेशन से जुडे रक्त दाता सोनू, विनीता, अमरेंद्र, पियुष सहित  फाउंडेशन से लखनऊ के एक हजार लोग जुडे है।  जिन्हे रक्त की जरूरत होती है उसके लिए रक्त दान के लिए फाउंडेशन के सदस्यों से कहते है । सदस्य जा कर रक्तदान करते है। बलराज कहते है कि किसी के सुख में शामिल न हो तो कोई बात नहीं लेकिन दुःख में शामिल हो कर हम लोगों को बडा सुकुन मिलता है। आज भी खून देने के नाम तमाम रिश्तेनातेदार भाग खडे होते है।  यह खुद रेगुलर डोनर है।

केवल लखनऊ से 20 से अधिक आती है काल
 लखनऊ से रोज 20 से 255 लोगों की काल रहती है। इनका फाउंडेशन यहां के अलावा दूसरे शहरों में भी काम कर रहा है। सबसे अधिक कैंसरडायलसिस ,एक्सीडेंटल केस के लिए रक्तदान के लिए काल अती है। बताया कि 7607609777 नंबर पर रक्तदान और रक्त की जरूरत के लिए संपर्क किया जा सकता है।

पीजीआइ में मायोकॉर्डियल परफ्यूजन जांच से मिल सकेंगे हार्ट अटैक के संकेत




दिल देगा दगा, पहले से चल जाएगा पता

पीजीआइ में मायोकॉर्डियल परफ्यूजन जांच से मिल सकेंगे हार्ट अटैक के संकेत

कुमार संजय ’ लखनऊ
जिंदगी की भागमभाग और तनाव के बीच हमारे दिल पर जोर लगातार बढ़ रहा है। यही कारण है, इसके दगा देने के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं। हार्ट अटैक होने पर कुछ मामलों में जान बचाने तक का मौका नहीं मिलता। कुछ में जिंदगी बच भी जाती है मगर, दिल के दौरे की आशंका उम्र भर बनी रहती है।
लखनऊ स्थित एसजीपीजीआइ में गंभीर होते इसी मर्ज का रास्ता खोजा गया है। कुछ इस तरह ताकि दिल के दगा देने से पहले उसकी हरकत का पता चल जाए। समय पर इलाज के जरिये मरीज की जान सुरक्षित की जा सके।
दिल की सलामती का ऐसे निकाला रास्ता : दरअसल, बस्ती निवासी 40 वर्षीय विपिन शुक्ला को लंबे समय से घबराहट की परेशानी थी। जबकि सात से आठ किमी चलने पर कोई दिक्कत नहीं होती थी। सीढ़ी भी चढ़ते थे। घबराहट की जांच के लिए वह संजय गांधी पीजीआइ के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर सुदीप के पास आए। ईसीजी सहित कुछ जांच हुईं मगर, वजह पता नहीं चली। इस पर प्रो. सुदीप ने मायोकार्डियल परफ्यूजन इमेजिंग (एमपीआइ) जांच कराई। उसमें दिल की परेशानी के कुछ संकेत मिले।
एंजियोग्राफी की तो दिल की एक रक्त वाहिका में रुकावट मिली, जिसे स्टेंट लगाकर दूर कर दिया। अब उन्हें हार्टअटैक की संभावना खत्म हो गई है। प्रो. सुदीप की मानें तो हार्ट अटैक के बाद इलाज सामान्य प्रक्रिया है, मगर आशंका का पहले पता लगाकर दिल दुरुस्त करने से भविष्य की चिंता खत्म हो जाती है।
एमपीआइ और पेट स्कैन खोलता दिल के राज
न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर एस. गंभीर के मुताबिक, मायोकॉर्डियल परफ्यूजन जांच में हम मीबी नाम की आइसोटोपिक दवा इजेंक्ट करते है। ऐसा करने के कुछ देर बाद गामा कैमरे में दिल की मांसपेशियों की हलचल देखते हैं। फिर मरीज का स्ट्रेस (दौड़ाकर) देखते हैं कि कहीं मेहनत के दौरान रक्त प्रवाह तो कम नहीं हो रहा। यदि रक्त प्रवाह कम है तो मान लें कहीं रुकावट है। इसके अलावा पेट (पॉजीट्रान इमेशन टोमोग्राफी) के जरिये भी पता लगाया जा सकता है कि दिल के किस हिस्से में कितना रक्त प्रवाह है। यह बेहद संवेदनशील जांच होती है।
अटैक के बाद कमजोर होती है दिल की मांसपेशी
प्रो. सुदीप के मुताबिक, हार्ट अटैक के बावजूद हमारी जान तो बच जाती है मगर, 50 फीसद रक्त की रुकावट के कारण दिल की मांसपेशी हमेशा के लिए डैमेज हो जाती है। इससे हमेशा खतरा बना रहता है। पहले आशंका का पता लगा कर इलाज करने से मांसपेशी बच जाती है। हार्ट की पंपिंग पूरी तरह ठीक रहती है। प्रोफेसर सुदीप के अनुसार कम उम्र मे लोगों में दिल की परेशानी बढ़ रही है। हार्ट अटैक आने से पहले थोड़ा जागरूक होकर इस परेशानी से बचा जा सकता है। विभाग में नस के जरिये दिल में पहुंचकर रक्त वाहिका की रुकावट दूर करने की विशेष तकनीक उपलब्ध है। हम लोगों के पास चालीस प्रतिशत केस हार्ट अटैक के बाद आते हैं।

पीजीआई ने 10 साल पहले खरीद लिया प्लांटर प्रेशर नही किया इस्तेमाल

पीजीआई ने 10 साल पहले खरीद लिया प्लांटर प्रेशर नही किया इस्तेमाल  
कबाड़ होने के बाद स्टाल हुई मशीन नहीं हो रही जांच
जागरण संवाददाता। लखनऊ
डायबटिक  मरीजों के पैर को बचाने के लिए प्लांटर प्रेशर मशीन लगना के कवायद 2009 में शुरू हुई तमाम प्रक्रिया के बाद मशीन 2011  में संस्थान में आ गयी । मशीन आयी भी आधी-आधूरी जिसमें न तो कंप्यूटर और न प्रिंटर । मशीन के कीमत का 75 फीसदी भगुतान भी मई 2011 में कर दिया गया। इसके बाद तमाम लिखा पढ़ी के बाद भी कंपनी इंटरनेशनल इलेक्ट्रो मेडिकल कंपनी ने कोई रूचि नहीं दिखायी क्योंकि कंपनी को पेमेंट हो गया था। कंपनी को उसकी कीमत मिल गयी थी। सवाल उठा कि आधूरी मशीन की सप्लाई पर पेमेंट क्यों हुआ तो इसको लेकर तत्कालीन विभाग के खरीद प्रस्तावक लीपा पोती करते रहे। संस्थान प्रशासन के तमाम बदाव के बाद हाल में ही मशीन इंस्टाल हो गयी लेकिन मशीन से जांच संभव नहीं पा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि मशीन सीएमसी पांच साल बाद शुरू हो जाती है। मशीन में की बार पानी तक भर चुका है। केवल बचाव के लिए मशीन को स्टाल किया गया है।   
क्या करती है मशीन
 ८५ से ९० प्रतिशत मधुमेह रोगियों का पैर कटने से बच सकते है ।  प्लांटर स्कैन  के जरिएपैर में रक्त दाब व डाप्लर से रक्त वाहिकाओं में रूकावट का पता लगेगा। छोटे-छोटे ट्रांस मीटर लगे होते हैं। इस मशीन पर खड़े होने से मरीज के पैर में कहां पर कितना रक्त दाब रंगीन फोटो से पता चल जाता है। जहां पर रक्त दाब अधिक होता है वहां पर त्वचा धीरे-धीरे मोटी हो जाती है। फिर वहां की त्वचा फट जाती है। त्वचा के फटने पर घाव या अल्सर हो जाता है। डाप्लर के जरिए देखा जाता है कि किस रक्त वाहक नलिका में कितनी व कहां पर रूकावट है। रक्त वाहक· नलिकाओं की रूकावट का पता लगा कर एंजियोप्लास्टी से रूकावट को दूर रक्त प्रïवाह सामान्य किया जा स·ता है। इससे पैर में घाव बनने की आशंका समाप्त हो जाती है।

मशीन खरीद के बाद इसका इस्तेमाल नहीं हुपीजीआई ने 10 साल पहले खरीद लिया प्लांटर प्रेशर नही किया इस्तेमालआ । जानकारी होने पर मशीन को स्टाल कराया गया जांच की जा रही है जो भी दोषी होगी उनके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा.....निदेशक प्रो.राकेश कपूर 

ठीक हो जाने वाले मरीजों को पीजीआइ भेट करेगा पौधा

पीजीआइ में चला वृहद वृक्षारोपण अभियान

ठीक हो जाने वाले मरीजों को पीजीआइ भेट करेगा पौधा
जागरण संवाददाता। लखनऊ

वृक्षाभूषण के तहत संजय गांधी पीजीआइ परिसर में वृहद वृक्षारोपण अभियान की शुरूआत शनिवार को दैनिक जागरण के संपादक सदगुरू शरण अस्वथी , निदेशक प्रो.राकेश कपूर, यूरोलाजिस्ट एवं किडनी ट्रांसप्लांट एक्पर्ट प्रो. संजय सुरेका, चीफ नर्सिग आफीसर एल कालिब सोलंकी,  वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, भरत सिंह, पीआरओ निदेशक  नील मणि तिवारी, निदेशक के साहायक अमर सिंह, हार्टीकल्चरj
 विभाग के नोडल आफीसर राजेश मिश्रा  सहित अन्य लोगों ने किया। निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने कहा कि पेड़ लगाने के बाद उसकी देख-भाल जरूरी है। कहा कि वृक्षा रोपण को बढावा देने के लिए संस्थान प्रशासन ठीक हो कर जाने वाले मरीजों को पौधा भेट करने की योजना बना रहा है। इस मौके पर तकनीकि अधिकारी क्लीकल इम्यूनोलाजी अभिषेक पाण्डेय , राम सागर, अशोक कुमार, वासुदेव,
कर्मचारी महासंघ (एस) की अध्यक्ष सावित्री सिंह  सहति अन्य लोगों ने वृक्षारोपण किया। राजेश मिश्रा ने बताया कि अभियान के तहत 125 नीम, पीपल के आलावा पाकड़ के वृक्ष लगाया गया। 

गुरुवार, 18 जुलाई 2019

पीजीआइ में स्थापित हुआ वेस्कुलर मालफारमेशन सर्जरी आफ्टर क्वायलिंग

पीजीआइ में स्थापित हुआ वेस्कुलर मालफारमेशन सर्जरी आफ्टर क्वायलिंग
-उत्तर भारत का पहला अस्पताल जहां संभव है यह सर्जरी
-देवेंद्र अब बना पाएगा कैरियर

जागरण संवाददाता। लखनऊ
उरई निवासी 23 वर्षीय देवेंद्र अब कैरियर बना सकेगा। बायें पैर के ऊंगली में वेस्कुलर मैलफारमेशन की परेशानी के कारण एक साल से परेशान था। बार-बार पैर में इंफेक्शन के कारण मवाद पड़ जाता । चलने फिरने में लाचार हो जाते । कई डाक्टरों को दिखाया लेकिन कही राहत नहीं मिली। झांसी मेडिकल कालेज के डाक्टर ने संजय गांधी पीजीआइ भेज दिया। संस्थान के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो.राजीव अग्रवाल और इंटरवेशन रेडियोलाजिस्ट प्रो. रघुनंदन ने वेस्कुलर मैलफारमेशन सर्जरी आफ्टर क्वायलिंग तकनीक के जरिए देवेंद्र को लगभग ठीक कर दिया है। इस तकनीक के जरिए वेस्कुलर मालफारमेशन की सर्जरी करने वाला उत्तर भारत का पहला संस्थान बन गया है। सर्जरी के  देवेंद्र के हौसला बढ़ गया है।  कहते है अब पालीटेक्निक की पढाई पूरी कर अपने पैर में खड़े हो सकेंगे। प्रो. राजीव के मुताबिक जिस अंग में वेस्कुलर ट्यूमर होता है वहां मांसपेशी, हड्डी भी बडी हो जाती है जिससे परेशानी होती है। इन मामलों को कोई हाथ भी नहीं लगता है। मरीज परेशान रहते है। हमारी अोपीडी में हर महीने इस तरह के दो से तीन मामले आते है जिसमें इस सर्जरी से इलाज संभव है।  
ट्यूमर की ब्लड सप्लाई रोक की सर्जरी
प्रो. राजीव के मुताबिक रक्त वाहिका में ट्यूमर बन जाने के कारण यह परेशानी होती है। ट्यूमर में अधिक रक्त प्रवाह होने के कारण सामान्य तौर पर सर्जरी संभव नहीं होती है। जरा सा चीरा लगाते ही खून का फब्बारा निकलने लगता है। ऐसे में रक्त प्रवाह रोकना जरूरी होता है। इसके लिए इटरवेंशन रेडियोलाजिस्ट उस ट्यूमर को खून सप्लाई करने वाले नस में क्वायल लगा कर रक्त प्रवाह को कम किया। क्वायल लगाने के 24  घंटे बाद ट्यूमर की सर्जरी कर दिया। तकनीक को हम लोगों ने स्थापित कर लिया है।

इंटरवेंशन रेडियोलाजिस्ट और प्लास्टिक सर्जन का साथ जरूरी
प्रो.राजीव अग्रवाल का कहना है कि वेस्कुलर मैलफारमेशन सर्जरी आफ्टर क्वायलिंग तकनीक में  प्लास्टिक सर्जन के साथ इंटरवेंशन रेडियोलाजिस्ट का सामजस्य होना जरूरी है। बताया कि वेस्कुलर मालफारमेशन शऱीर के किसी भी अंग में हो सकता है। शरीर के किसी  भी अंग में गांठ हो तुरंत संपर्क करना चाहिए क्योंकि ट्यूमर के बढ़ जाने पर सर्जरी में कंपलीकेशन बढ़ जाता है।

पीजीआई में रोबोट से महिला का गुर्दा निकाला गया, बुजुर्ग का प्रोस्टेट का ऑपरेशन किया

पीजीआई में रोबोट से महिला का गुर्दा निकाला गया, बुजुर्ग का प्रोस्टेट
का ऑपरेशन किया
संस्थान के डॉक्टरों बिना बाहर के एक्सपर्ट के किये यह दोनों ऑपरेशन

62 वर्षीय राजकुमार  प्रोस्टेट कैंसर की परेशान लेकर एसजीपीजीआई पहुंचा
था। डॉक्टरों ने रोबोटिक सर्जरी कर प्रोस्टेट को निकाल दिया। विशेषज्ञों
का मानना है कि कैंसर युक्त पूरा प्रोस्टेट निकल जाने के कारण दोबारा
कैंसर पहनपने की आशंका कम हो गयी है। जबकि एक अन्य 50 साल की लक्ष्मी के
गुर्दे में स्टोन होने की वजह से एक गुर्दा सिकुड़ गया था। पीजीआई के
डॉक्टरों ने लक्ष्मी के खराब हो चुके गुर्दे को रोबोट की मदद से निकाल
दिया है। विशेषज्ञों का दावा है दोनों मरीज अब स्वस्थ्य हैं। यह दोनों
ऑपरेशन संस्थान प्रो. राकेश कपूर और प्रो. संजय सुरेखा द्वारा किये गये।
यह दोनों ऑपरेशन में बाहर का कोई एक्सपर्ट मौजूद नही था।
  यूरोलाजास्टि एवं किडनी ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट प्रो. राकेश कपूर और
प्रो. संजय सुरेखा के मुताबिक इन दोनों सर्जरी को शुक्रवार को अंजाम दिया
गया। मरीज फिट है। पांच -6 दिन में छुट्टी दे दी जाएगी। विशेषज्ञों के
मुताबिक राज कुमार  प्रोस्टेट कैंसर की परेशानी थी जिसमें पूरे प्रोस्टेट
को निकलना ही उपाय था। यह सर्जरी ओपेन भी हो सकती थी लेकिन कई तरह के
रिस्क थे। रोबोटिक सर्जरी करने से रिस्क कम तो हुआ ही साथ पूरा कैंसर
युक्त प्रोस्टेट निकाल दिया गया। इसी तरह लक्ष्मी के एक गुर्दे में स्टोन
लंबे समय से था जिसके कारण किडनी सिकुड़ गयी थी । यह किडनी दूसरे किडनी
को भी प्रभावित कर  रही थी । रोबोटिक सर्जरी कर खराब गुर्दे को निकाल
दिया गया। डॉ. राकेश कपूर ने बताया कि रोबोटिक सर्जरी ओपेन सर्जरी से
ज्यादा सुरक्षित हैं। ब्लड कम निकलता है। चीरा छोट लगता है। मरीज को दर्द
कम सहने के साथ ही अस्प्ताल में स्टे कम होता है।
इनकी होगी रोबोटिक सर्जरी
प्रो. राकेश कपूर के संस्थान में एसजीपीजीआई में अब तक यूरोलॉजी की 10 और
इंडोक्राइन सर्जरी विभाग की 6 सर्जरी की जा चुकी हैं। सभी मरीज स्वस्थ्य
हैं। कार्डियक सर्जरी और गेस्ट्रो सर्जरी विभाग के ऑपरेशन जल्द किये
जायेंगे। इन दोनों विभागों के डॉक्टरों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।