बुधवार, 11 दिसंबर 2024

मूत्र के रास्ते आ रहा था माल पीजीआई के डॉक्टरों ने किया कमाल बनाया सही रास्ता

 

पीजीआई




 तीन सर्जरी के बाद सामान्य हुई जिंदगी आगे होगी हार्मोनल थेरेपी 






-पहले हुई दो सर्जरी लेकिन बढ़ती गयी परेशानी


 


-सर्जरी के  बाद मूत्र द्वार से आने लगा था मल


- पहले लिया होता विशेषज्ञ से सलाह तो शायद बच जाती ओवरी


   


 


हरदोई की रहने वाली 15 वर्षीय बबीता के पेट में दर्द से निजात दिलाने के लिए बच्चेदानी के मुंह चौड़ा करने की सर्जरी हुई लेकिन परेशानी दूर तो हुई नहीं पेशाब के रास्ते मल भी आने लगा जिंदगी और दूभर हो गयी। संजय गांधी पीजीआई के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग मुख्य सर्जन प्रो. अशोक कुमार की टीम ने तीन सर्जरी किया जिससे काफी हद तक जिंदगी सामान्य हो गयी है। पहले ओवरी निकाल दी गयी इसलिए आगे हार्मोनल थेरेपी देना पड़ेगा जो महिलाओं के शारीरिक और मानसिक गुण के लिए जरूरी है।


 


 पहले हुई दो सर्जरी


 


 इस सर्जरी से पहले बबीता दो सर्जरी झेल चुकी है। बबीता की मां ने बताया कि तीन साल पहले पेट में दर्द की परेशानी हुई जिसके लिए वह इलाज लिया लेकिन कोई फायदा न होने पर शाहजहांपुर ने एक सर्जन को दिखाया तो बताया बच्चेदानी का मुंह छोटा है जिसके कारण मासिक स्राव ने निकलने वाले रक्त बाहर नहीं पा रहा है । रक्त जमा होने के कारण दर्द होता है । सर्जन ने बच्चे दानी का मुंह चौड़ा करने के लिए सर्जरी किया जिसमें आंत कट गयी। इसके कारण रक्त तो बाहर आने लगा तो तीन महीने ठीक रहा । इसके बाद पेट में दर्द की परेशानी के साथ मूत्र के रास्ते मल आने लगा। परिजन  अलीगढ़ एक अस्पताल गए जहां पर जांच के बाद पता चला कि बच्चेदानी विकसित नहीं है। वजाइना छोटा है और रेक्टो वेजाइनल फिस्टुला बन गया जिसके कारण यह परेशानी है। सर्जरी करके बच्चेदानी हटा दिया। मल और मूत्र का रास्ता अलग कर दिया । मल के लिए अलग से बैग लगा दिया। इससे उसे मानसिक और सामाजिक परेशानी हो रही थी। परिजन संजय गांधी पीजीआई के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग में संपर्क किया तो यहां पर मलद्वार बनाया ।  आंत का रास्ता मलद्वार से जोडा। वेजिनोप्लास्टी की वजाइना को ठीक किया। प्रो. अशोक ने सलाह दिया लंबे समय पेट में दर्द की परेशानी होने पर विशेषज्ञ से सलाह लेना चाहिए । 


 


 


 


इस टीम ने दिया सर्जरी को  अंजाम


 


प्रो. अशोक कुमार फर्स्ट, डा. सारंगी, डा. कुश , डा. शाहरूख . डा. रोहित निश्चेतना विशेषज्ञ डा.अरूणा भारती . नर्सिंग आफीसर सविता

सोमवार, 9 दिसंबर 2024

रक्त का थक्का बनने से रोक बचाया जाएगा दिल और दिमाग





 रक्त का थक्का बनने से रोक बचाया जाएगा दिल और दिमाग


थक्के बनने रोकना और रक्तस्राव का जोखिम रोकना है बड़ी चुनौती






संजय गांधी पीजीआई के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सत्येंद्र तिवारी ने बताया कि एक सत्र में रक्त के थक्के (थ्रोम्बोसिस) और इसके इलाज के नए तरीकों पर चर्चा हुई । थ्रोम्बोसिस रक्त वाहिकाओं में थक्के बनने की स्थिति को कहते हैं, जिससे रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है और हार्ट अटैक या ब्रेन स्ट्रोक जैसी समस्याएं हो सकती हैं।


 बताया कि थक्के बनने को रोकने और रक्तस्राव के जोखिम को कम करने के बीच संतुलन बनाए रखना हृदय रोगों के इलाज में एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने यह भी बताया कि जिन मरीजों को थक्के की दवाएं दी जा रही हैं, उन्हें नियमित फॉलोअप पर रहना चाहिए, ताकि डॉक्टर दवाओं की मात्रा को समय पर बदल सकें और दोनों जोखिम को कम किया जा सके।


 बताया कि थ्रोम्बो एम्बोलिक घटनाओं के कारण दुनियाभर में होने वाली मौतों में एक तिहाई मामले होते हैं, जो नए उपचारों की आवश्यकता को और बढ़ा देते हैं। इस संदर्भ में, बिवालिरुडिन नामक दवा को हाल ही में प्रभावी पाया गया है। यह एंजियोप्लास्टी से गुजरने वाले मरीजों में थक्के को रोकने में हेपरिन से अधिक प्रभावी साबित हुआ है।


इसके अलावा, उच्च रक्तस्राव वाले मरीजों के लिए कम समय तक एंटीप्लेटलेट थेरेपी कारगर हो सकती है। एंजियोप्लास्टी के बाद क्लोपिडोग्रेल और एस्पिरिन के सुरक्षित विकल्प के रूप में उभरे हैं। एंटी थ्रोम्बोटिक थेरेपी में बदलाव की आवश्यकता है ताकि मरीजों को सबसे अच्छा इलाज मिल सके और रक्तस्राव का जोखिम कम किया जा सके।


 


प्रो. रूपाली खन्ना ने बताया कि  एंटीप्लेटलेट और एंटीकोगुलेंट दवाओं के बारे में बताया कि रक्त के थक्के और रक्तस्राव दोनों को रोकने के लिए इस्तेमाल होती हैं। इनमें एस्पिरिन, क्लोपिडोग्रेल, डिपिरिडामोल और एब्सिक्सिमैब जैसी शक्तिशाली दवाएं शामिल हैं। इसके अलावा, वाल्व रिप्लेसमेंट कराने वाले मरीजों को अकेले मौखिक एंटीकोगुलेंट दवाएं पर्याप्त हो सकती हैं।, नई दवाओं और उपचारों की खोज से थक्के बनने और रक्तस्राव की समस्या से जूझ रहे मरीजों के लिए बेहतर समाधान मिल सकता है

कार्डियोवर्टर-डिफाइब्रिलेटर हाई रिस्क के दिल को देगा जीवन

 

कार्डियोवर्टर-डिफाइब्रिलेटर हाई रिस्क के दिल को देगा जीवन


सार्वजनिक स्थानों पर स्वचालित बाहरी डिफिब्रिलेटर लगाने की सलाह




 बत्रा अस्पताल के वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. आर. डी. यादवे ने बताया कि अचानक हृदय का काम करना बंद करना ( सडेन कार्डियक डेथ-एसीडी)  मौत का एक प्रमुख कारण है। अचानक मृत्यु के मामलों मे  सडेन कार्डियक डेथ या  हृदय संबंधी 63 फीसदी होता है।


एससीडी अक्सर बिना किसी चेतावनी के होती है।  एससीडी के लक्षणों में अचानक गिरना, नाड़ी का न मिलना और सांस न आना शामिल हैं। इन स्थितियों में त्वरित चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है जिसमें  डिफाइब्रिलेशन और सीपीआर की महत्वपूर्ण भूमिका है। सार्वजनिक स्थानों पर स्वचालित बाहरी डिफिब्रिलेटर (एईडी) की उपलब्धता होनी चाहिए। डॉ. यादवे ने उच्च जोखिम वाले मरीजों के लिए इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर-डिफाइब्रिलेटर (आईसीडी) लगना चाहिए। इससे हार्ट को बंद से बचाया जा सकता है।  यह उपकरण वेंट्रीकुलर टैकीकार्डिया या फाइब्रिलेशन के मामलों में मृत्यु दर को कम करने में कारगर साबित हुए हैं। वे आईसीडी तकनीक में हुए नए बदलावों के बारे में बताया कि  कम जटिलताओं के साथ अधिक प्रभावकारी हैं।  एससीडी की रोकथाम के लिए बचपन से ही स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए  । वे अस्पताल के बाहर कार्डियक अरेस्ट के मामलों में एईडी पहुंचाने के लिए ड्रोन के उपयोग जैसे नए समाधानों पर भी चर्चा किए। स्वास्थ्य देखभाल में लगे लोगो को  एससीडी से निपटने के लिए आवश्यक उपकरण और जानकारी देने से मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।

आंख बताएगी दिल का हाल

आंखें बताएंगी दिल का हाल, रेटिना की जांच से पता चलेगा हृदय रोग का खतरा एसजीपीजीआइ में देश की पहली एआइ आधारित आक्टा मशीन से होगी रेटिना की जांच लखनऊ: एक साधारण सी आंखों की जांच दिल की बीमारी के खतरे को बताएगी। किसी व्यक्ति को हृदय रोग का खतरा कितना है, इस जांच से पता चल सकेगा। संजय गांधी पीजीआइ के विशेषज्ञ आर्टिफिशियल इंटलीजेंस (एआइ) आधारित आक्टा मशीन से रेटिना की स्कैनिंग कर दिल धमनियों में ब्लाकेज का पता लगाएंगे। इससे रोगियों के छोटे ब्लाकेज को दवाओं से खत्म करने में मदद मिलेगी। संस्थान में कार्डियोलाजी विभाग के प्रो. नवीन गर्ग और नेत्र रोग विभाग के प्रमुख प्रो. विकास कनौजिया ने इस पर शोध भी शुरू किया है, जिसके शुरुआती परिणाम अच्छे आ रहे हैं। शोध के बाद ब्लाकेज से बचाव और जागरूकता के लिए नई गाइडलाइन बनाने की तैयारी है। प्रो. नवीन गर्ग ने बताया कि संस्थान के नेत्र रोग विभाग में करीब डेढ़ करोड़ कीमत की आधुनिक एआइ आक्टा मशीन लगाई गई है। इसकी खास बात है कि सामान्य मशीन के मुकाबले रेटिना की सटीक जांच हो सकेगी। मशीन में रोगी की आंखें लगाने के कुछ सेकेंड में रेटिना के आकार और नसों के बदलाव की पूरी रिपोर्ट मिल जाएगी। रिपोर्ट के जरिए दिल की धमनियों के ब्लाकेज की सही जानकारी मिलेगी। दरअसल, शरीर में रक्त संचार घटने पर या पर्याप्त न होने पर इसका असर आंखों के रेटिना की कोशिकाओं पर भी होता है। इसकी जांच से भविष्य में हार्ट अटैक का खतरा कम किया जा सकेगा। आने वाले समय में इस मशीन की उपयोगिता तेजी से बढ़ेगी। इन रोगियों पर शोध प्रो. नवीन गर्ग के मुताबिक, संस्थान में एंजियोप्लास्टी करा चुके रोगियों को शोध में शामिल किया गया है। नेत्र रोग विभाग के प्रमुख डा. विकास कनौजिया की मदद से रोगियों की आंख एआई आधारित आप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी एंजियोग्राफी (आक्टा) मशीन से जांच कर रेटिना में बदलाव की जानकारी हासिल की जाएगी। रेटिना की जांच में जिन भी मरीजों में लक्षण दिखेगा, उन्हें हृदय रोग विशेषज्ञ देखेंगे।हालांकि, शोध में डायबिटीज और हाइपरटेंशन के रोगियों को शामिल नहीं किया जाएगा। प्रो. गर्ग का कहना है कि आमतौर पर जब तक कोई व्यक्ति हृदय रोग से नहीं जूझता, इससे जुड़ी जांचें नहीं कराना चाहता है। ऐसे में रेटिना की जांच मरीज की आंखों के साथ उसके दिल का हाल भी बता सकेगी। समय से हृदय रोगों का खतरा पता चलने पर दवा, खानपान और व्यायाम के जरिए इसे रोका जा सकेगा। ऐसे में कई मरीजों को एंजियोप्लास्टी की जरूरत नहीं पड़ेगी।

रविवार, 8 दिसंबर 2024

दिल की मांसपेशियों की मोटाइ से होने वाली परेशानी से राहत संभव



 दिल की मांसपेशियों मोटाइ  को परेशानी राहत   संभव


अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के डॉ. बी. हेडली विल्सन और संजय गांधी पीजीआई के हृदय रोग विभाग के प्रमुख प्रो. आदित्य कपूर ने बताया कि  हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी (एचसीएम) के बारे में बताया कि यह एक जटिल हृदय रोग है जो सार्कोमेरिक जीन उत्परिवर्तन के कारण होता है। इससे बाएं वेंट्रिकुलर हाइपरट्रॉफी (मांसपेशियों का मोटा होना) और हाइपरकॉन्ट्रैक्टिलिटी (अत्यधिक संकुचन) की समस्या उत्पन्न होती है।

बताया कि  रोग की गंभीरता और संभावित जोखिमों का आकलन करने में इकोकार्डियोग्राफी और कार्डियक मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (सीएमआर) की अहम भूमिका है। इसके अलावा, अचानक हृदय मृत्यु (एससीडी) के जोखिम को कम करने के उपायों की आवश्यकता पर भी ध्यान दिया गया है।

इलाज के बारे में बताया कि  मायोसिन इनहैबिटर दवाओं पर शोध चल रहा है। इसके अलावा, पर्क्यूटेनियस सेप्टल एब्लेशनजीन थेरेपी, और आरएनए-आधारित उपचार जैसे भविष्य के उपचार विकल्पों की संभावनाओं पर भी चर्चा की गई है।

क्या है हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी

हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी एक ऐसी समस्या है, जिसमें दिल की मांसपेशी असामान्य रूप से मोटी हो जाती है। इसके कारण दिल के लिए रक्त पंप करना मुश्किल हो जाता है। इस बीमारी का अक्सर पता नहीं चल पाता है क्योंकि अधिकतर मामलों में कोई लक्षण नहीं होते और रोगी को कोई बड़ी समस्या महसूस नहीं होती। हालांकि, कुछ लोगों में सांस लेने में कठिनाई, छाती में दर्द, या दिल की असामान्य धड़कन (अरिद्मिया) जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

इसका इलाज सर्जरी से किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, दिल की धड़कन को सामान्य या धीमा करने के लिए दवाइयोंया शरीर के अंदर लगाए जाने वाले उपकरणों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।


दवाएं हार्ट फेल्योर मरीज की कम कर सकती है परेशानी


 नई दवाएं हार्ट फेल्योर मरीज की कम कर सकती है परेशानी

एनटी-प्रोबीएनपी   बायो मार्कर से जल्दी पकड़ में आता है  हार्ट फ्लोयर

गाइड लाइन डायरेक्टेड मेडिकल थिरेपी हार्ट फेल्योर मरीजो दे रही है राहत


संजय गांधी पीजीआई की हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. रूपाली खन्ना ने बताया कि हार्ट फेल्योर (एचएफ)  बढ़ती उम्र की आबादी और इसकी जटिल पैथॉफिजियोलॉजी के कारण चुनौती है। गाइडलाइन डायरेक्टेड मेडिकल थेरेपी से मरीजों को काफी आराम मिल रहा है। डायबिटीज के इलाज में काम आने वाला रसायन सोडियम-ग्लूकोज को ट्रांसपोर्टर -अवरोधक (एसजीएलटी2आई), शरीर में पानी मात्रा कम करने के साथ रक्त प्रवाह सामान्य करने वाला रसायन  एंजियोटेंसिन रिसेप्टर-नेप्रैलीसिन अवरोधक (एआरएनआई)और गैर-स्टेरायडल मिनरल कॉर्टिकॉइड रिसेप्टर विरोधी (एमआरए) शामिल हैं। हृदय विफलता के रोगियों में अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु दर में लगातार कमी देखी गई है। ये दवाएँ न केवल हृदय संबंधी परिणामों में सुधार करती हैं बल्कि मधुमेह और किडनी रोग जैसी बीमारियों के प्रबंधन में भी सहायक होती हैं। यह दवाएं अस्पताल में भर्ती होने की दर को कम कर सकते हैं।  हृदय विफलता(हार्ट फेल्योर)की घटनाओं और हृदय संबंधी मृत्यु की दर में कमी देखी गई।नवीन उपचार विधियाँ में इंट्रा वेनस आयरन थेरेपी कारगर साबित हो रही है। प्रो. रूपाली खन्ना ने बताया कि आयरन की कमी और रोगियों में कार्या क्षमता और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर रही हैं। इसके साथ-साथ डिवाइस-आधारित उपचारों में भी महत्वपूर्ण प्रगति हो रही है। कार्डियक रीसिंक्रनाइज़ेशन थेरेपी (सीआरटी)इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफाइब्रिलेटर (आईसीडी) और बाएं वेंट्रिकुलर सहायता उपकरण (एलवीएडी) जैसे उन्नत तकनीकी उपकरणों से रोगियों को बेहतर परिणाम मिल रहे हैं। ब्राकोरीसेप्टर एक्टिवेशन थिरेपी और पल्मोनरी प्रेशर मॉनिटरिंग से हृदय विफलता वाले रोगियों के इलाज में सुविधा मिल रही है ।  एनटी-प्रोबीएनपी   बायोमार्कर और कार्डियक एमआरआई जैसे इमेजिंग तकनीकों के माध्यम से हृदय विफलता की डायग्नोसिस  और अधिक सटीक हो रही है।  समय पर उपचार की शुरुआत हो सकती है और रोगियों की जीवन गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।

एरोटिक वाल्व रिप्लेसमेंट में नई खोज: सही वाल्व का चयन बचाएगा मरीजों की जान

 

एरोटिक वाल्व रिप्लेसमेंट में नई खोज: सही वाल्व का चयन बचाएगा मरीजों की जान

वाल्व प्रत्योरण के बाद कम लोगों में होगी परेशानी

 

पीजीआई में खोजा सही वाल्व के चयन का तरीका

 

हर मरीज के लिए अलग अलग एरोटिक वाल्व की होती है जरूरत

 

36.4 फीसदी में गंभीर रूप खराब लगा मिला एरोटिक वाल्व

 

कुमार संजय। लखनऊ

 

संजय गांधी पीजीआई के कार्डियोलॉजी विभाग की प्रो. अंकित साहू ने एरोटिक वाल्व रिप्लेसमेंट (एवीआर) के मरीजों के लिए एक महत्वपूर्ण शोध प्रस्तुत कियाजिसमें वाल्व चयन के सही तरीके पर प्रकाश डाला गया। शोध से यह स्पष्ट हुआ है कि हर मरीज के लिए एक अलग एरोटिक वाल्व की जरूरत होती है और एक जैसा वाल्व सभी मरीजों में प्रभावी नहीं होता।

शोध में 55 रोगियों का 2डी-ईको के माध्यम से मूल्यांकन किया गयाजिसमें पाया गया कि 36.4 फीसदी मरीजों में गंभीर वाल्व मिसमैच (प्रोस्थेसिस पेशेंट मिसमैच - पीपीएम) पाया गया। इस समस्या का असर महिलाओं में अधिक थाजहां 25.5 फीसदी महिलाओं में यह गंभीर समस्या थी। शोध में यह भी पाया गया कि शरीर के आकार और वाल्व के आकार के बीच घनिष्ठ संबंध हैजो वाल्व चयन की सफलता को प्रभावित करता है।

प्रो. साहू ने बताया कि सही वाल्व का चयन करते समय मरीज की उम्रलिंग और शरीर के आकार को ध्यान में रखना जरूरी है। इससे न केवल इलाज की सफलता बढ़ती हैबल्कि मरीज को वाल्व रिप्लेसमेंट के बाद होने वाली समस्याओं से बचाया जा सकता है।

वहींपीपीएम (वाल्व मिसमैच) के कारण मरीजों की मृत्यु दर 20-35 फीसदी तक हो सकती है। ऐसे में सही वाल्व के चयन से गंभीर समस्याओं को टाला जा सकता है। प्रोफेसर साहू ने इस शोध को कार्डियोलॉजी सोसाइटी ऑफ इंडिया के अधिवेशन में प्रस्तुत किया और इसे हृदय रोगियों के इलाज में एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया।

क्या है एरोटिक वाल्व की परेशानी?

एरोटिक वाल्व में खराबी होने पर रक्त का प्रवाह सही तरीके से नहीं हो पाताजिससे दिल पर दबाव बढ़ता है और हार्ट फेल हो सकता है। इसके इलाज के लिए सर्जरी के दौरान पुराने खराब वाल्व को हटा कर कृत्रिम वाल्व लगाया जाता हैजिससे रक्त प्रवाह सामान्य हो सके।

वाल्व का महत्व

हृदय में चार प्रकार के वाल्व होते हैं - ट्राइकसपिडपल्मोनरीमाइट्रल, और एरोटिक। ये वाल्व रक्त प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए खुलते और बंद होते हैं। अगर कोई वाल्व ठीक से नहीं खुलता या बंद नहीं होतातो इससे रक्त प्रवाह पर असर पड़ता हैजिससे दिल पर अतिरिक्त दबाव बनता है।

 

शनिवार, 7 दिसंबर 2024

एक इंजेक्शन से नियंत्रित होगा कोलेस्ट्रॉल

 





एक इंजेक्शन से नियंत्रित होगा कोलेस्ट्रॉल


हार्ट अटैक होने पर तुरंत मुंह 325 मिलीग्राम एस्पिरिन लेकर चबाएं


तीन घंटे के अंदर इलाज तो दिल को कम नुकसान


भारत में कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के वार्षिक सम्मेलन के तीसरे दिन हृदय रोग विशेषज्ञ  डॉ. एस. सुब्रतो मंडल और डॉ. सुनील कुमार मोदी ने  बताया कि उच्च कोलेस्ट्रॉल की अनदेखी करना जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है।  आधुनिक जीवनशैली और आहार सीधे तौर पर कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। हृदय रोगियों में अनियंत्रित कोलेस्ट्रॉल हार्ट अटैक का एक मुख्य कारण है। खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) को सौ मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से नीचे और अच्छे कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल)) को 40 मिली ग्राम से ऊपर बनाए रखना चाहिए। किसी का खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) 190 मिलीग्राम से अधिक हो तो दवा की आवश्यकता होती है। हर छह महीने में एक सिंगल इंजेक्शन पी.सी.एस. के 9 इनहिबिटर्स के माध्यम से उच्च कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित किया जा सकता है। डॉ. टाइनी नायर और डॉ. एच.के. चोपड़ा ने बताया कि दो दवाओं के संयोजन का उपयोग रक्तचाप को अधिक प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। हाइपरटेंशन एक साइलेंट किलर है। 


मेदांता दिल्ली डा.  प्रवीन चंद्रा भारतीयों को पश्चिमी देशों के मुकाबले इस रोग का अधिक खतरा है, जो आनुवंशिकी और आधुनिक जीवनशैली के कारण है। उच्च रक्तचाप, मधुमेह और मोटापे जैसे जोखिम तत्वों को नियंत्रित कर हृदय रोगों को काफी हद तक रोका जा सकता है। डॉ. नलिन सिन्हा ने बताया कि विभिन्न जोखिम  स्कोर भविष्य में होने वाले हार्ट अटैक की संभावना का सही तरीके से अनुमान लगा सकते हैं।


डेनमार्क के डॉ. नॉर्डेसगार्ड ने वैश्विक स्तर पर हार्ट अटैक के बढ़ते मामलों पर चर्चा की और इस महामारी से निपटने के लिए जन जागरूकता की आवश्यकता पर जोर दिया; अन्यथा, स्वास्थ्य सेवाएं इसे संभालने में संघर्ष करेंगी।


फोर्टिस, नई दिल्ली के सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अशोक सेठ ने हृदय विफलता और हार्ट अटैक के लिए नई तकनीकों के बारे में बात की। लंदन के डॉ. रॉक्सी सीनियर ने बताया कि हार्ट अटैक होने पर मरीज  तीन घंटे (गोल्डन आवर्स) के भीतर पहुंच जाता है और एंजियोप्लास्टी कराई जाती है, तो दिल को न्यूनतम नुकसान होता है। हार्ट अटैक का अनुभव करने वाले किसी भी व्यक्ति को तुरंत 325 मिलीग्राम  का एस्पिरिन चबाना चाहिए और अस्पताल जाना चाहिए।


पोस्टग्रेजुएट छात्र डॉ. सत्यप्रकाश ने बताया कि सामान्य ईसीजी होने के बावजूद, विभिन्न रक्त परीक्षण यह संकेत दे सकते हैं कि मरीज ने हार्ट अटैक हुआ है।  डॉ. करण ने बताया कि कभी-कभी ईसीजी परिवर्तन को प्रकट होने में समय लगता है, इसलिये ऐसे मामलों में लक्षण पहचानना महत्वपूर्ण है। 


सम्मेलन के मुख्य आयोजक डॉ. सत्येंद्र तिवारी ने बताया कि सम्मेलन के दौरान कई नई तकनीकों पर चर्चा की गई। उत्तर प्रदेश अध्याय के सदस्य, जिनमें डॉ. एस.के. द्विवेदी, डॉ. आदित्य कपूर, डॉ. नवीन गर्ग, डॉ. ऋषि सेठी, डॉ. सरद चंद्र, डॉ. रूपाली खन्ना, डॉ. भवत तिवारी, डॉ. अवधेश शर्मा, और डॉ. अंकित साहू ने सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया।

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2024

एआई हृदय की बीमारी पकड़ने में क्रांतिकारी साबित हो रहा है

 




एआई हृदय की बीमारी पकड़ने में क्रांतिकारी साबित हो रहा है

इकोकार्डियोग्रामसीटी स्कैन और एमआरआई की सटीक रिपोर्ट

इलाज की दिशा तय करने में मिल रही है मदद

 



आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) हृदय रोगों की पहचान, इलाज और प्रबंधन में बड़ा बदलाव ला रहा है। संजय गांधी पीजीआई की हृदय रोग विशेषज्ञ रूपाली खन्ना का कहना है कि एआई हृदय रोगों के निदान और उपचार को बेहतर बनाने में मदद कर रहा है। मशीन लर्निंग की मदद से एआई जटिल डेटा को समझ सकता है, जिससे कोरोनरी धमनी रोग, हार्ट फेल्योर  और दिल की अनियमित धड़कन (एरिथमिया) जैसी बीमारियों का जल्दी पता चल पाता है।

एआई इमेजिंग सिस्टम को भी बदल रहा है। इससे इकोकार्डियोग्राम, सीटी स्कैन और एमआरआई की रिपोर्टें अधिक सटीक मिल रही हैं, जिससे हृदय रोग विशेषज्ञों को मरीज की स्थिति को जल्दी पहचानने में मदद मिलती है। इससे समय की भी बचत होती है और इलाज में मदद मिलती है, साथ ही दवाइयों के सही प्रयोग के लिए मार्गदर्शन भी मिलता है। एआई के उपयोग से हृदय रोगों के इलाज में बेहतर परिणाम मिलने की उम्मीद है।

हालांकि, एआई के इस्तेमाल में कुछ चुनौतियाँ भी हैं। एआई टूल्स को स्वास्थ्य क्षेत्र में शामिल करने के लिए टेक्नोलॉजी और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच उचित प्रशिक्षण और सहयोग जरूरी है। फिर भी, एआई का उपयोग कार्डियोलॉजी में तेजी से बढ़ रहा है और यह भविष्य में हृदय रोगों का इलाज और बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।


9.6 महिलाओं गर्भवती में हृदय रोग की आशंका- बढ़ती मातृ आयु, प्रतिकूल जीवनशैली और पहले से मौजूद हृदय संबंधी है बडे कारण






 गायनी-कार्डियो विशेषज्ञता की जरूरत

बढ़ती मातृ आयुप्रतिकूल जीवनशैली और पहले से मौजूद हृदय संबंधी है बडे कारण 

9.6 महिलाओं  गर्भवती में हृदय रोग की आशंका


भारत में हृदय रोग और गर्भावस्था से जुड़ी समस्याएं बढ़ रही हैं, इसलिए मद्रास मेडिकल कॉलेज के डॉ. जस्टिन पॉल ने देश में कार्डियो-प्रसूति (कार्डियो गायनी) विशेषज्ञता स्थापित करने की बात कही है। उनका कहना है कि मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) में हृदय रोग एक बड़ा कारण बन रहा है। 2017 तक, भारत में हर साल करीब 35,000 मातृ मृत्यु होती थीं, और इनमें हृदय रोग भी एक बड़ा कारण है।

विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ती उम्र, खराब जीवनशैली और पहले से हृदय रोग होने के कारण गर्भवती महिलाओं में हृदय रोग का खतरा बढ़ रहा है। तमिलनाडु के आंकड़ों के मुताबिक, 2022-2023 में राज्य में मातृ मृत्यु दर में हृदय रोगों की वजह से 9.6% मौतें हुईं।

संजय गांधी पीजीआई के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सत्येंद्र तिवारी ने बताया कि वाल्वुलर और जन्मजात हृदय रोग, पल्मोनरी उच्च रक्तचाप और हृदय फेल्योर जैसी समस्याएं विशेष रूप से निम्न और मध्य आय वाले देशों में महिलाओं के लिए चिंता का कारण बन रही हैं। इसको सुधारने के लिए, चिकित्सा पाठ्यक्रम में कार्डियो-प्रसूति विज्ञान को जोड़ने और हृदय रोग विशेषज्ञों, प्रसूति विशेषज्ञों, एनेस्थेटिस्टों और नियोनेटोलाजिस्टों के बीच बेहतर सहयोग की जरूरत है।

इस विषय पर कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (सीएसआईI) और फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसाइटीज ऑफ इंडिया (फग्सीI) ने मिलकर एक सम्मेलन आयोजित किया। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कार्डियो-प्रसूति विशेषज्ञता को बढ़ावा दिया जाए, तो इससे हृदय रोग से पीड़ित महिलाओं के लिए सुरक्षित गर्भावस्था सुनिश्चित की जा सकती है और कई जानें बचाई जा सकती हैं।


प्रोजेस्ट्रॉन हार्मोन पर नजर रखकर महिलाओं को दिल की बीमारी से बचाना संभव – प्रो. रूपाली खन्ना


 प्रोजेस्ट्रॉन हार्मोन पर नजर रखकर महिलाओं को दिल की बीमारी से बचाना संभव – प्रो. रूपाली खन्ना


 


कम उम्र की महिलाओं के दिल की बीमारी कोरोनरी आर्टरी डिजीज से बचाना संभव होगा। संजय गांधी पीजीआई की हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. रूपाली खन्ना ने 45 से कम उम्र की महिलाओं में दिल की बीमारी की आशंका बढ़ाने वाले कारणों का पता लगाने में कामयाबी हासिल की है। हृदय की बीमारी से ग्रस्त 99 युवा महिलाओं में कारण पता लगाने के लिए शोध किया   । इनमें 66  महिलाओं का कोरोनरी एंजियोग्राफी परीक्षण किया गया।  दो-तिहाई महिलाओं यानि 66 फीसदी   महिलाओं में सीएडी का पता चला है। इनमें  मधुमेह, उच्च सीरम ट्राइग्लिसराइड स्तर, कम प्रोजेस्टेरोन और कम इंसुलिन स्तर देखने को मिला। इस शोध से साबित हुआ कि डायबिटीज पर नियंत्रण और प्रोजेस्ट्रान हार्मोन का नियंत्रित रख कर दिल की बीमारी से बचा जा सकता है। प्रो. रूपाली ने बताया कि सीएडी में दिल की रक्त वाहिका में रुकावट आ जाती है जिससे एंजियोप्लास्टी कर खोला जाता है। देख गया है कि कुल महिलाओं में होने वाली सीएडी बीमारी 45 से कम आयु की 20 फीसदी होती है। इस शोध को इंडियन मेडिकल जर्नल आफ कार्डियोवेस्कुलर डिजीज इन वुमेन ने भी स्वीकार किया है।


 


गले की खराश करने वाला बैक्टीरिया बच्चे के दिल के माइट्रल वाल्व को कर सकता है खराब- प्रो. अंकित साहू

 

गले की खराश करने वाला बैक्टीरिया बच्चे के दिल के माइट्रल वाल्व को कर सकता है खराब- प्रो. अंकित साहू


 


  


बुखार  के साथ ही गले में यदि लगातार संक्रमण रहता है। इसके साथ ही यदि गले के अंदरूनी हिस्से में सूजन और जलन है तो सावधान। यह रूमेटिक बुखार के लक्षण हैं। इसमें पैर और चेहरे के साथ ही शरीर में सूजन बढ़ जाती है। गले में यह संक्रमण स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया के द्वारा होता है। यह दिल को गिरफ्त में ले लेता है ।   इसे रूमेटिक दिल की बीमारी (आरएचडी) कहते हैं। यदि लंबे समय तक यह परेशानी है तो सही समय पर सही इलाज से दिल को बचाया जा सकता है। पूरा एंटीबायोटिक का कोर्स डाक्टर के सालह से करना चाहिए।  संजय गांधी पीजीआई के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. अंकित साहू ने बताया कि यह बीमारी 5 से 15 साल के बच्चों को गिरफ्त में लेती है। बच्चों के दिल के वाल्व में सिकुड़न के साथ ही दिल कमजोर कर देती है। इस सिकुड़न से दिल के वाल्व में लीकेज हो जाता है। वाल्व का समुचित इलाज नहीं मिलने पर दिल की धड़कन अनियंत्रित हो जाती है। इससे दिल में खून के थक्के जमने के साथ ही लकवा या पैरालिसिस और दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। इसका इलाज बैलून वाल्वोप्लास्टी और ओपन हार्ट सर्जरी के जरिए संभव है। यह काफी किफायती है। भीड़भाड़ व अधिक जनसंख्या वाले इलाकों में रहने वाले बच्चे इस बीमारी की जद में ज्यादा आते हैं। यह बीमारी निम्न आय वर्ग के बच्चों में अधिक होती है। यदि इसका शुरूआती दौर में इलाज मिल जाए तो मरीज ठीक हो सकता है। कुछ बच्चों में वाल्व की दिक्कत जन्मजात होती है।


 


 


 


 


 




दिल को दुरुस्त रखना है तो सरसों के तेल का करें इस्तेमाल प्रोफेसर सत्येंद्र तिवारी

 

दिल को दुरूस्त रखना है सरसों का तेल करें इस्तेमाल-प्रो. सत्येंद्र तिवारी


संजय गांधी पीजीआई के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सत्येंद्र तिवारी ने बताया कि रिफाइंड तेल से बचना चाहिए। सरसो का तेल सबसे अधिक दिल के लिए ठीक है। इसमें ओमेगा थ्री और ओमेगा 6 फैटी एसिड होता है दिल को ठीक रखता है। सरसों के तेल में विटामिन ई और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो त्वचा को ऑक्सीडेटिव क्षति से बचाते हैं। सरसों के तेल में प्रोटीन, विटामिन, और मिनरल्स होते हैं, जो मांसपेशियों के विकास और रखरखाव के लिए ज़रूरी हैं। एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल, और एंटीवायरल गुण होते हैं। मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड होता है, जो सेहत के लिए फायदेमंद होता है। सरसों के तेल में बना खाना पचाने में आसान होता है और यह मेटाबॉलिज्म रेट को बढ़ाता है.

शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

बिजली निजीकरण से 77 हजार कर्मियों की नौकरी पर संकट

 

बिजली निजीकरण से 77 हजार कर्मियों की नौकरी पर संकट




लखनऊ। पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि. को निजी कम्पनियों को बेचे जाने के प्रदेश सरकार के प्रस्ताव पर मुखर हुई विद्युत कर्मचारी संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश ने आरोप लगाया है कि इन दो बिजली कम्पनियों का निजीकरण होने से 77 हजार कर्मियों की नौकरी जाएगी। समिति के संयोजक इंजीनियर शैलेन्द्र दुबे ने विश्ववार्ता ब्यूरो से बातचीत में कहा कि इन दो बिजली कम्पनियों गोरखपुर और वाराणणी क्षेत्र के 42 जिलों की बिजली व्यवस्था का निजीकरण होने के बाद बाकी बचे पावर कारपोरेशन में पदों में बढ़ोत्तरी की जाएगी, यह कहकर यूपी पावर कारपोरेशन प्रबंधन ने खुद यह स्वीकार कर लिया है कि निजीकण से कर्मचारियों की पदावनति और छंटनी होने वाली है।


उन्होंने कहा कि 50 हजार आउसोर्स कर्मचारी हैं और 27 हजार 400 नियमित कर्मचारी हैं। निजी कम्पनी द्वारा अधिग्रहण किये जाने के बाद यह 50 हजार आउटसोर्स कर्मचारी तो तत्काल निकाल दिये जाएंगे क्योंकि निजी कम्पनियां अपने कर्मचारी तैनात करेंगी। उन्होंने बताया कि इस निजीकरण से मुख्य अभियंता स्तर-एक के सात पद समाप्त हो जाएंगे। मुख्य अभियंता स्तर एक के तीन पद रिक्त हैं। इस तरह केवल तीन मुख्य अभियंता स्तर एक समायोजित हो सकेंगे और चार मुख्य अभियंता स्तर एक की पदावनति होगी और वह मुख्य अभियंता स्तर-दो पर पदावनत होंगे। इस प्रकार मुख्य अभियंता स्तर दो पर 29 अभियंता सरप्लस हो जाएंगे। मुख्य अभियंता स्तर दो के तीन पद रिक्त हैं इस तरह केवल तीन मुख्य अभियंता स्तर दो समायोजित हो सकेंगे और 26 मुख्य अभियंता पदावनत होकर अधीक्षण अभियंता हो जाएंगे।


50 हजार आउटसोर्स और 27 हजार 400 नियमित कर्मचारी होंगे प्रभावित


अधीक्षण अभियंता स्तर के 109 पद समाप्त होंगे और पदावनत होकर अधीक्षण अभियंता बनने वाले 26 लोगों को और जोड़ लिया जाए तो अधीक्षण अभियंता के पद पर 135 पद सरप्लस हो जाएंगे। बाकी बचे विद्युत वितरण निगमों में अधीक्षण अभियंता के केवल 39 पद रिक्त हैं इस तरह से 135 अधीक्षण अभियंताओं में से केवल 39 समायोजित हो सकेंगे। बाकी 96 अधीक्षण अभियंताओं को पदावनत कर अधिशासी अभियंता बना दिया जाएगा।


अधिशासी अभियंता के 362 पद समाप्त होंगे। 96 अधीक्षण अभियंता पदावनत होकर अधिशासी अभियंता बन जाएंगे और इस तरह अधिशासी अभियंता के 458 पद सरप्लस हो जाएंगे। बाकी बचे विद्युत निगमों में अधिशासी अभियंता स्तर पर शेष 47 पद रिक्त हैं, इन्हें समायोजित करने के बाद 411 अधिशासी अभियंता को पदावनत कर सहायक अभियंता बना दिया जाएगा।


सहायक अभियंता स्तर के 1016 पद समाप्त होंगे। 411 अधिशासी अभियंता पदावनत होकर सहायक अभियंता हो जाएंगे और इन्हें मिलाकर सहायक अभियंता के 1427 पद सरप्लस हो जाएंगे। बाकी बचे विद्युत निगमों में सहायक अभियंता के 295 पद रिक्त हैं इस तरह से 295 सहायक अभियंता

रविवार, 24 नवंबर 2024

नवजात दूध नहीं पी रहा है यह भी बीमारी का संकेत

 

यदि नवजात शिशु लगातार लंबे समय तक रोता है। चिड़चिड़ापन या ऐंठन जो दुलारने और आराम से ठीक नहीं होती है। उसके रोने की आवाज असामान्य होती है। तो यह बीमारी का संकेत हो सकता है। यह शिशु के पेट या शरीर में दर्द का संकेत हो सकता है। यह जानकारी डॉ. आकांक्षा ने दी।

वह पीजीआई के नियोनेटोलॉजी विभाग की ओर से संस्थान के एचजी खुराना सभागार में राष्ट्रीय नवजात सप्ताह और विश्व प्रीमैच्योरिटी दिवस समारोह को संबोधित कर रही थीं। डॉ. आंकक्षा ने कहा कि बच्चों की सेहत व खान-पान का खास खयाल रखें। यदि शिशु लगातार रो रहा है तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। यह दर्द शिशु को पेंट, सिर व शरीर के दूसरे अंग में हो सकता है। लगातार खांसी, उल्टी, दस्त, बुखार व सांस लेने संबंधी परेशानी को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। पीजीआई नियोनेटोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. कीर्ति नारंजे ने कहा कि यदि शिशु दूध नहीं पी रहा है यह भी बीमारी का संकेत है। बच्चे की भूख व चूसने की क्षमता कम या कमजोर होने पर डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. वीके पॉलीवाल ने कहा कि राष्ट्रीय नवजात सप्ताह और विश्व  प्रीमैच्योरिटी दिवस परिवारों के साथ सम्बन्ध को मजबूत करने का दिन है। बीमारी से ऊबरे बच्चों की अविश्वसनीय यात्राओं का जश्न मनाने के साथ-साथ नवजात स्वास्थ्य और प्रीमेच्योरिटी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विभाग की प्रतिबद्धता को प्रबल किया। कार्यक्रम में बायोस्टैटिस्टिक्स व स्वास्थ्य सूचना विज्ञान विभाग के डॉ. प्रभाकर मिश्रा, डॉ. दिशा, डॉ. साक्षी, डॉ. अनीता सिंह, डॉ. सुशील कुमार और डॉ. अभिषेक पॉल समेत अन्य डॉक्टर मौजूद रहे।


माता-पिता ने साझा किए अनुभव

कुछ माता-पिता ने अपनी भावनात्मक संस्मरण को साझा किया। जिसमें उन्होंने समय से पहले बच्चे के जन्म की चुनौतियों को याद किया। साथ ही असाधारण देखभाल और सहायता के लिए नियोनेटोलॉजी के डॉक्टर व उनकी टीम के प्रति आभार जाहिर किया। गोंडा की सुनीता ने बताया कि वह अपने सात माह पर जन्म शिशु को लेकर पीजीआई आई थी। डॉक्टरों ने कड़ी मेहनत कर शिशु को नया जीवन दिया। जन्म से वह बेहद कमजोर था। उसे पीलिया हो गया था। सांस लेने में भी तकलीफ थी।

रविवार, 10 नवंबर 2024

गाल ब्लैडर स्टोन 70 फीसदी में बनता है पेनक्रिएटाइटिस का कारण

 



वर्ल्ड रेडियोलॉजी डे


 


गाल ब्लैडर में स्टोन न करें लापरवाही कराएं सर्जरी


 


स्टोन प्रैक्रियाज की नली में कर सकता है रुकावट


 


गाल ब्लैडर स्टोन 70 फीसदी में बनता है  पेनक्रिएटाइटिस का कारण




पित्ताशय ( गाल ब्लैडर) में स्टोन का पता लगते है तुरंत सर्जरी कराना चाहिए। तमाम लोग इंतजार करते रहे यह सेप्टीसीमिया का कारण साबित हो सकता है। पित्ताशय की थैली का स्टोन इससे निकल कर प्रैक्रियाज की नली में फंस सकता है जिससे पेनक्रियाज की नली तक फट सकती है ऐसे में पैंक्रियाज का जूस इसके अगल बगल स्थिति भीतरी अंगो का खराब कर सकता है। ऐसे गंभीर स्थिति वाले मरीजों को भी इंटरवेंशन रेडियोलाजिकल तकनीक बचाया जा सकता है।  संजय गांधी पीजीआई में वर्ल्ड रेडियोलॉजी डे के मौके पर इंटरवेंशन टेक्नोलॉजिस्ट देवाशीष चक्रवर्ती ने यह सलाह देते हुए कहा कि प्रैक्रियाज में स्टोन फंसने से प्रैक्रिए टाइटस होता है। पेट में तेज दर्द, बुखार की परेशानी होती है। हम लोग फंसे स्टोन को इंटरवेंशन तकनीक से निकालने के साथ ही प्रैक्रियाज डक्ट फटने से आस –पास फैले जूस को भी निकाल कर जीवन बचा सकते हैं। इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट  डॉ. रजनी कांत, डा. अनिल कुमार ने बताया कि परक्यूटीनियस ड्रेनेज तकनीक जिसमें  अल्ट्रासाउंड से जहां पर जूस जमा  स्थिति का पता लगा कर वहां ट्यूब डाल कर जूस निकालते है। नली में जाकर स्टोन को भी निकालते हैं। पित्ताशय के स्टोन के अलावा कई बार प्रैक्रियाज जूस भी गाढा हो कर स्टोन बन जाता है लेकिन 70 फीसदी मामलों में पित्ताशय स्टोन की कारण बनता है। आयोजन सचिव चीफ टेक्नोलॉजिस्ट सरोज वर्मा ने बताया कि इंटरवेंशन की ओपीडी रोज चलती है विभाग में संपर्क कर सकता है खास तौर जब प्रैक्रियाज में स्टोन फंसा हो। विभाग की प्रमुख प्रो. अर्चना गुप्ता ने कहा कि एमआरआई की वेटिंग ओपीडी मरीजों को लिए एक सप्ताह करने की दिशा में काम कर रहे हैं। तीन एमआरआई मशीन चल रही है एक ओर पीपीपी मॉडल पर लगने जा रही है। टेक्नोलॉजिस्ट अभय झा ने बताया कि पुरानी मशीन को भी चला रहे है। आरएमएल के रेडियोलाजिस्ट डा. गौरव राज ने फोटान काउंट सीटी के बारे में बताया। यूपी एक्स-रे एसोसिएशन के अध्यक्ष  राम मनोहर कुशवाहा ने कहा कि एक्स-रे टेक्नोलॉजिस्ट की बीमारी पता लगाने में अहम भूमिका है।


पार्किंसंस के 70 फीसदी मामलों में दवा कारगर

 




न्यूरोकांन -2024


 


पार्किंसंस के 70 फीसदी मामलों में दवा कारगर


कैंसर विहीन ब्रेन ट्यूमर है तो सर्जरी के बाद दोबारा नहीं होती है ट्यूमर की आशंका


 


पार्किंसंस ( हाथ कंपन) के 70 फीसदी मामलों में दवा काम करती है लेकिन पांच साल बाद दवा का असर कम हो जाता है।  डीप वेन स्टीमुलेशन तकनीक ही राहत दे सकती है। संजय गांधी पीजीआई में आयोजित न्यूरोकांन 2024 में उत्तर प्रदेश ग्रामीण आयुर्विज्ञान संस्थान सैफई के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. रमा कांत यादव ने बताया कि न्यूरो डीजरेटिव डिजीज की आशंका उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती है। दवाओं से राहत तो मिलती है लेकिन लाइफ स्टाइल को ठीक रखना जरूरी है। पार्किसंस बीमारी में सेंट्रल नर्वस सिस्टम (केंद्रीय तंत्रिका तंत्र) की बीमारी है, जो अक्सर मरीज़ की शारीरिक गतिविधियों पर असर करती है। इसमें अक्सर कंपकंपी भी होती है। दिमाग में तंत्रिका कोशिका को नुकसान होने से डोपामाइन का स्तर गिर जाता है। पार्किंसंस की शुरुआत में किसी एक हाथ में कंपकंपी होती है। साथ ही, धीमी गति, अकड़न, और संतुलन खोने जैसे अन्य लक्षण दिखते हैं। उपचार में डोपामाइन बढ़ाने वाली दवाएं शामिल हैं। सेफैई के ही न्यूरो सर्जन प्रो. फहीम ने बताया कि ब्रेन ट्यूमर के 10 से 15 फीसदी मामले ऐसे होते जो कैंसर नहीं होते है। इन मरीजों एक बार सर्जरी कराने से दोबारा ट्यूमर की आशंका नहीं होती है लेकिन कैंसर युक्त ट्यूमर में सर्जरी के बाद दोबारा ट्यूमर की आशंका रहती है।

शनिवार, 9 नवंबर 2024

45 वर्ष आयु तक लगता है सर्वाइकल कैंसर का वैक्सीन

 

पीजीआई में एसोसिएशन ऑफ गायनेकोलॉजिकल ऑंकोलॉजिस्ट आफ इंडिया सम्मेलन


  


45 वर्ष आयु तक लगता है सर्वाइकल कैंसर का वैक्सीन


 


जागरूकता की कमी के कारण एक फीसदी से कम में लगता है एचपीवी वैक्सीन


उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती है आशंका  


 जागरण संवाददाता। लखनऊ


सर्वाइकल मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण है, जो 30 से 69 वर्ष की आयु की महिलाओं में कैंसर से होने वाली सभी मौतों का 17 फीसदी है। इस कैंसर से बचाव के लिए वैक्सीन उपलब्ध है। संजय गांधी पीजीआई में एसोसिएशन ऑफ गायनेकोलॉजिकल ऑंकोलॉजिस्ट ऑफ इंडिया के सम्मेलन में संस्थान के मैटरनल एंड रिप्रोडक्टिव हेल्थ की प्रो. अमृता गुप्ता और प्रो. इंदु लता साहू  वैक्सीनेशन की दर काफी है। एक फीसदी से भी लड़कियों में एपीपी वैक्सीन लग पाता है। नई गाइडलाइन के अनुसार नौ से 35 वर्ष की आयु तक वैक्सीन लग सकता है। 9 से 14 वर्ष की आयु की लड़कियों में दो डोज ।  15 से 45  के बाद तीन डोज की जरूरत होती है। विशेषज्ञों ने कहा कि एचपीवी वैक्सीनेशन प्रोग्राम को नेशनल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम में शामिल करने की जरूरत है।






स्कूलों में जागरूकता अभियान की जरूरत 




संयोजक डॉ. किरण पांडेय और डॉ. अंजू रानी ने बताया कि सर्वाइकल कैंसर की आशंका उम्र बढ़ने का साथ बढ़ती जाती है। जागरूकता के लिए कॉलेज और स्कूलों में जागरूकता अभियान की जरूरत है जिसमें शिक्षिकाएं अहम भूमिका निभा सकती है।  


 


सिंगल डोज वैक्सीन भी हो सकता है कारगर


 


शुरूआती दौर के शोध परिणाम बताते है कि सिंगल डोज वैक्सीन लेने से भी 88 फीसदी में कैंसर का खतरा कम होता है। सिंगल डोज  वैक्सीन लेने वालों में दो खुराक वालों के समान ही फायदा है। सिंगल वैक्सीनेसन सरल है और सस्ती है हालांकि एंटीबॉडी का स्तर सिंगल डोज वालों में तीन खुराक प्राप्त करने वालों की तुलना में कम था।  सिंगल डोज टीकाकरण सुरक्षा दो या तीन खुराक से थोड़ी कम है फिर भी काफी लड़कियां एक डोज से सुरक्षित हो सकती है।


 


 


किस उम्र में कितने में कैंसर


20 से 29- 1.32


30 से 39- 10.20


40 से 49 – 26.32


50 से 59- 27 .37


60 से 69- 22.49


70 से अधिक- 22.26


 


 


क्या है सर्वाइकल कैंसर


गर्भाशय ग्रीवा गर्भाशय (गर्भ) का निचला, संकीर्ण छोर है। गर्भाशय ग्रीवा गर्भाशय को योनि से जोड़ती है। कैंसर दिखाई देने से पहले गर्भाशय ग्रीवा में असामान्य कोशिकाएं दिखाई देने लगती हैं । समय के साथ, यदि उन्हें नष्ट या हटाया नहीं जाता है कोशिकाएं कैंसर कोशिकाएं बन सकती हैं। आस-पास के क्षेत्रों में अधिक गहराई से बढ़ने और फैलने लगती हैं।

गुरुवार, 24 अक्टूबर 2024

PCOS affects reproductive health as well as metabolism.

 

 



Obesity - Motherhood is taking away, on top of that, it can cause heart problems



PCOS and high cholesterol in obese women


Research conducted on 228 PCOS women


42.5 percent PCOS victims of obesity



 Kumar Sanjay. Lucknow


Irregular daily routine, fast food result in obesity. Along with difficulty in becoming a mother due to obesity, the risk of heart disease is increasing among girls. Dr. Aparna Shukla of the Advanced Research Center of King George's Medical University and Dr. Renu Singh of the Department of Gynecology and Obstetrics conducted research to find out the relationship between body weight and cholesterol levels in women suffering from Polycystic Ovarian Syndrome (PCOS). That western lifestyle can cause PCOS. This research has recently been accepted by the International Medical Journal Cures. Women suffering from PCOS have difficulty becoming mothers. Irregular menstrual cycle creates problems in conceiving. For prevention, it is necessary to lose weight. For this there is a need to change the lifestyle. 



There is a relationship between obesity and cholesterol


To explore the complex relationship between lipid profile and body mass index (BMI) in patients with PCOS visiting the Department of Obstetrics and Gynecology, 228 women with a mean age of 20.4 to 30.4 years were studied. 45.6 percent were currently married.  28.1 percent were overweight. 42.5 percent were obese. Serum cholesterol was more than 200 mg/dl i.e. increased in 28.5 percent women. Triglycerides were found to be more than 150 mg/dl in 70.2 percent. Overweight is significantly associated with triglycerides and total cholesterol.


50 percent of the disease is not detected

According to research reports, PCOC is an endocrine gland disorder that affects approximately 5-18 percent of women of reproductive age.  In more than 50 percent of women, the disease is either not detected or is detected late. PCOS is increasing due to westernization of lifestyle. According to reports, PCOS affects reproductive health as well as metabolism.




मोटापा- छीन रहा है मातृत्व ऊपर से दिल की खड़ी कर सकता है परेशानी

 





मोटापा- छीन रहा है मातृत्व ऊपर से दिल की खड़ी कर सकता है परेशानी

 

 

 

मोटापे के शिकार महिलाओं में पीसीओएस और हाई कोलेस्ट्रॉल

 

228 पीसीओएस महिलाओं पर हुआ शोध

 

 

 

मोटापे के शिकार 42.5 फीसदी पीसीओएस

 

 कुमार संजय। लखनऊ

 

 

 

अनियमित दिनचर्या, फास्ट फूड नतीजा मोटापा । मोटापे के कारण मां बनने में परेशानी के साथ ही दिल की बीमारी का खतरा युवतियों में बढ़ रहा है। किंग जॉर्ज मेडिकल विवि के उन्नत अनुसंधान केंद्र की डा. अपर्णा शुक्ला , स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की डॉ.  रेनू सिंह ने पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) ग्रस्त महिलाओं में शरीर  भार,  कोलेस्ट्रॉल का स्तर से रिश्ता जानने के लिए शोध किया तो पता चला कि पश्चिमी लाइफस्टाइल के कारण पीसीओएस हो सकता है। इस शोध को इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल क्यूरस ने हाल में ही स्वीकार किया है। पीसीओएस ग्रस्त महिलाओं को मां बनने में परेशानी होती है। अनियमित मासिक चक्र गर्भ धारण में परेशानी खड़ी करता है। बचाव के लिए वजन कम करना जरूरी है। इसके लिए लाइफ स्टाइल को बदलने की जरूरत है। 

 

 

 

मोटापा और कोलेस्ट्रॉल के बीच है मिला संबंध

 

 

 

प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग में आने वाले पीसीओएस वाले रोगियों में लिपिड प्रोफाइल और बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) के बीच जटिल संबंध का पता लगाने के लिए 20.4 से  30.4 वर्ष की औसत आयु वाले 228 महिलाओं शोध किया गया। 45.6 फीसदी वर्तमान में विवाहित थी।  28.1 फीसदी  अधिक वजन वाली थी। 42.5 फीसदी  मोटापे के शिकार थी। 28.5 फीसदी महिलाओं में सीरम कोलेस्ट्रॉल 200 मिलीग्राम/डीएल से अधिक यानि बढ़ा हुआ था। 70.2 फीसदी में ट्राइग्लिसराइड्स  150 मिलीग्राम/डीएल से अधिक मिला। अधिक वजन, ट्राइग्लिसराइड्स, कुल कोलेस्ट्रॉल के साथ महत्वपूर्ण रूप से संबंधित है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

50 फीसदी नहीं लगता है बीमारी का पता

 

 

 

शोध रिपोर्ट के मुताबिक पीसीओसी  अंतःस्रावी ग्रंथि का विकार है जो प्रजनन आयु की लगभग 5-18 फीसदी महिलाओं को प्रभावित करता है।  50 फीसदी से अधिक महिलाओं का या तो बीमारी का पता नहीं हो पाता है या देर से  होता है। जीवनशैली के पश्चिमीकरण के कारण पीसीओएस बढ़ता जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक पीसीओएस प्रजनन स्वास्थ्य के साथ-साथ चयापचय(मेटाबोलिक) को प्रभावित करता है।

 

 

 

 

 

क्या है पीसीओएस

 

 

 

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) है जो हार्मोन को प्रभावित करती है। यह अनियमित मासिक धर्म, अतिरिक्त बाल विकास, मुँहासा और बांझपन का कारण बनता है।पीड़ित लोगों को मधुमेह और उच्च रक्तचाप खतरा अधिक हो सकता है।

शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024

पीपल रात में ऑक्सीजन नहीं छोड़ता है

 


पीपल रात को ऑक्सीजन नहीं छोड़ताछोड़ता, वह वायुमण्डल से कार्बनडायऑक्साइड बटोरता है, ताकि दिन में अपनी जल-हानि से बचकर, प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया सम्पादित कर सके।"



पीपल के पेड़ के विषय में यह भ्रामक बात जाने कैसे फैल गयी कि वह रात में ऑक्सीजन छोड़ता है ???


तथ्य या मिथ


"इसका कारण "ऑक्सीजन-उत्सर्जन" और पीपल दोनों को ही ढंग से न समझना है।"


"अब समझा कैसे जाए ?"


"पेड़-पौधे भी अन्य प्राणियों की ही तरह साँस चौबीस घण्टे लेते हैं। इस क्रिया में वे ऑक्सीजन वायुमण्डल से लेते हैं और कार्बनडायऑक्साइड छोड़ते हैं।


 लेकिन वे सूर्य के प्रकाश में एक और महत्त्वपूर्ण क्रिया भी करते हैं , जिसे प्रकाश-संश्लेषण कहा जाता है। इस क्रिया में वे अपना भोजन (ग्लूकोज़) स्वयं बनाते हैं, 


वायुमण्डल से कार्बनडायऑक्साइड और पृथ्वी से जल को लेकर। इस काम में उनका हरा रंजक (क्लोरोफ़िल) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और सूर्य का प्रकाश भी। इसी प्रकाश-संश्लेषण के दौरान ग्लूकोज़ के साथ साथ ऑक्सीजन बनती है , जिसे वायुमण्डल में वापस छोड़ दिया जाता है।"


"यानि कि यदि पौधा या पेड़ हरा न हो और प्रकाश न हो , तो प्रकाश-संश्लेषण होगा ही नहीं।"


"बिलकुल नहीं।"


"तो ग्लूकोज़ और ऑक्सीजन बनेंगे ही नहीं।"


और उत्तर है, बिलकुल नहीं। 


ज़ाहिर है रात में जब प्रकाश न के बराबर रहता है, तो यह काम प्रचुरता से तो होने से रहा। 


पीपल और उस जैसे कई अन्य पेड़-पौधे कुछ और काम करते हैं, जिसे लोग ढंग से समझ नहीं पाये।


"क्या ?"


पीपल का पेड़ शुष्क वातावरण में पनपता है और इसके लिए उसकी देह में पर्याप्त तैयारियाँ हैं। पेड़-पौधों की सतह पर, विशेषत: पत्तियों की सतह पर 'स्टोमेटा' नामक नन्हें छिद्र होते हैं, जिनसे गैसों और जलवाष्प का आदान-प्रदान होता है। 


सूखे और गर्म वातावरण में पेड़ का पानी न निचुड़ जाए, इसलिए पीपल ऐसे मौसम में दिन में अपेक्षाकृत अपने स्टोमेटा बन्द करके रखता है।


इससे दिन में पानी की कमी से वह लड़ पाता है।


बिलकुल। लेकिन इसका एक नुकसान यह है कि फिर दिन में प्रकाश-संश्लेषण के लिए कार्बन-डायऑक्साइड उसकी पत्तियों में कैसे प्रवेश करे ? क्योंकि स्टोमेटा तो बन्द हैं।


 तो फिर प्रकाश-संश्लेषण कैसे हो?


 ग्लूकोज़ कैसे बने ?


"तो ?"


तो पीपल व उसके जैसे कई पेड़-पौधे रात को अपने स्टोमेटा खोलते हैं और हवा से कार्बन-डायऑक्साइड बटोरते हैं। उससे मैलियेट नामक एक रसायन बनाकर रख लेते हैं। 


ताकि फिर आगे दिन में जब सूरज चमके और प्रकाश मिले , तो प्रकाश-संश्लेषण में सीधे वायुमण्डलीय कार्बन-डायऑक्साइड की जगह इस मैलियेट का प्रयोग कर सकें।


"यानी पीपल का पेड़ रात को भी कार्बन-डायऑक्साइडमे का शोषण करता है।"


"बिलकुल करता है। और वह अकेला नहीं है। कई हैं उस जैसे पेड़। अधिकतर रेगिस्तानी पौधे यही करते हैं। ऐरीका पाम , नीम, स्नेक प्लांट , ऑर्किड , और कई अन्य। 


रात को कार्बनडायऑक्साइड लेकर, उससे मैलियेट बनाकर आगे दिन में प्रकाश-संश्लेषण के लिए प्रयुक्त करने की यह प्रक्रिया CAM मार्ग ( क्रासुलेसियन पाथवे ) के नाम से पादप-विज्ञान में जानी जाती है।


"तो पीपल रात को ऑक्सीजन नहीं छोड़ताछोड़ता, वह वायुमण्डल से कार्बनडायऑक्साइड बटोरता है, ताकि दिन में अपनी जल-हानि से बचकर, प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया सम्पादित कर सके।"


लेकिन अतिवृहद छत्रक (canopy), बड़ी, घनी और चौड़ी पत्तियाँ (pendulous leaves) और अपेक्षाकृत अतिविस्तृत leaf area होने के कारण पीपल में प्रकाश संश्लेषण एवं ऑक्सीजन उत्पादन की दर अन्य वृक्षों की तुलना में काफी अधिक होती है। 


श्वशन और प्रकाश संश्लेषण के बीच उच्च अनुपात भी वृक्ष के आसपास अधिक ऑक्सीजन उपलब्ध करता है। लंबी आयु, शीतलता एवं अन्य अनेक जीवों का आश्रय स्थल होने के कारण इसे Keystone प्रजाति की श्रेणी में रखा गया गया। 


ये वो प्रजातियां होती हैं, जिनमें पर्यावरण की दशाओं में परिवर्तन की क्षमता होती है। यही गुण इस वृक्ष को महत्वपूर्ण और पूजनीय बनाते हैं।

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

पीजीआई में आज नहीं होगा नए मरीजों का पंजीकरण बंद रहेगा ओपीडी कलेक्शन

 





पीजीआई में आज नहीं होगा नए मरीजों का पंजीकरण बंद रहेगा ओपीडी कलेक्शन


 संजय गांधी पीजीआई में  11 अक्तूबर शुक्रवार को ओ पी डी में नये पंजीकरण नहीं होंगे। ।

जिन पुराने रोगियों को ओ पी डी परामर्श के लिये पहले से ही तारीख दी गयी है, उन्हे ओ पी डी में देखा जायेगा व जिन रोगियों की विभिन्न विभागों में जाँचो की तारीख है, उनकी जांचे भी होंगी। ऑपरेशन थिएटर भी यथावत चलेगे। 24  घंटे लैब

 क्रियाशील रहेगी। आकस्मिक सेवाएं यथावत चलेगी।

ओ पी डी का सैम्पल कलेक्शन बंद रहेगा।

मां पीतांबरा सरोजिनी नगर द्वारा फलाहार एवं हवन






 मां पीतांबरा सरोजिनी नगर द्वारा  हवन एवं फलाहार कार्यक्रम का आयोजन कानपुर रोड स्थित सेक्टर जी स्थित राधा कृष्ण मंदिर में हुआ जिसमें उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक आयोजन करता दुर्गेश पांडेय एवं एस  एन पांडेय के साथ हवन एवं फलाहार कार्यक्रम में शामिल हुए

शनिवार, 5 अक्टूबर 2024

PGI-AI data will tell what is the risk during anesthesia

 

37th Foundation Day Celebration of PGI Anesthesia Department




AI data will tell what is the risk during anesthesia




AI will make surgery safe




PGI is working on 2 model 












Sanjay Gandhi PGI is going to prepare an Artificial Intelligence (AI) based program (algorithm) to make the surgery safe. On the 37th foundation day of the Department of Anesthesiology of the Institute, Prof. Sandeep Khuba said that pre-anesthesia checkup is necessary before surgery, for this, after various tests of the patient, we see how fit the patient is for surgery. We are working on such an algorithm in which after feeding all the data of the patient, the program will tell how many medicines will be given during the surgery and in what quantity so that the surgery can be made safe. It can also be seen how much surgery will be safe in this patient and what are the risks which can be managed first. Head of the department Prof. Prabhat Tiwari said that the role of anesthesia is continuously increasing. It plays an important role in pain management, protection of all body parts during surgery, post-operative care and ICU care after surgery. During the pre-anesthesia checkup, the problems during surgery can be reduced by giving complete information to the doctor about the patient's allergies, the medicines he is taking, the treatment he has taken before, family history of the disease. Prof. Sujit Gautam on AI, Prof. Tapas Singh Ethics, Prof. Puneet Goyal on the future of anesthesia, Prof. Chetna Shamsheri, technical officer Rajeev Singh and others presented their views on balance between work and life.            




 




Sensor will control medicine during surgery




 




Pro. Khuba said that we are working on target control infusion.  During surgery, many parameters including heart rate, blood pressure, saturated oxygen level are monitored. We are making such an AI based program in which the center will inject medicines into the body to control these parameters. This will help in increasing the success of the surgery.


He was honored




 Best Junior Resident III: Dr. Esther Ovac, 


Best Office Employee: Mr. Suresh Pal, 


Best Office Staff (Outsourced): Ms. Meenu Singh, Best Nursing Officer: Mrs. Meena, 

Best Nursing Officer (Outsourced): Shri Vimal Kumar, Best Technical Officer: Shri Lallan Gupta, 

Best Technical Officer (Outsourced): Mr. Akhilesh Kumar, Best Office Assistant: Mr. Ram Kishun,

 Certificate of Appreciation for Drawing and Art: Dr. Rumit Bhagat