मंगलवार, 31 दिसंबर 2024

33 फीसदी में डिमेंशिया के दूसरी बीमारियां बढ़ा रही है जोखिम

 

24.9 फीसदी बुजुर्ग डिमेंशिया के शिकार


 


33 फीसदी में डिमेंशिया के दूसरी बीमारियां बढ़ा रही है जोखिम


 


 कुमार संजय


राजधानी के ग्रामीण इलाकों के 24.9 फीसद बुजुर्ग मनोभ्रंश(डिमेंशिया) के शिकार है। डिमेंशिया के शिकार बुजुर्गों में से 33 फीसदी में दूसरी परेशानियां भी देखने को मिली है। यह जानकारी राजधानी के ग्रामीण इलाकों से  350 बुजुर्गों पर शोध के बाद किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञों ने गहन शोध के बाद दी है। इस तथ्य को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया है। शोध रिपोर्ट के मुताबिक उम्र बढ़ने और मनोभ्रंश के बीच संबंध है। इसे संज्ञानात्मक हानि (सीआई) के रूप में जाना जाता है। न्यूरोडीजेनेरेटिव विकारों की भयावहता बढ़ रही है। सीआई( कॉग्निटिव इंपेयरमेंट)  शीघ्र पहचान से उचित उपचारात्मक उपाय शुरू करने में मदद मिलती है। रिपोर्ट के मुताबिक 60 से 75 आयु वर्ग के 350 बुजुर्गों पर शोध के बाद देखा कि 24.9 फीसदी सीआई के शिकार है। सीआई से वृद्ध वयस्क आबादी के एक-चौथाई प्रभावित है।  दूसरी परेशानियां की उपस्थिति से जोखिम बढ़ जाता है। इनमें शीघ्र स्क्रीनिंग और शीघ्र उपचार की जरूरत है।


 


रिपोर्ट के मुताबिक 60 से 75 आयु वर्ग के लोगों में मनोभ्रंश की परेशानी कम देखने को मिली जबकि 75 से अधिक आयु वर्ग के लोगों में परेशानी अधिक देखने को मिली। महिलाओं में पुरूषों के मुकाबले अधिक परेशानी देखने को मिली। देखा गया कि मनोभ्रंश के शिकार में से 33 फीसदी में उच्च रक्तचाप डायबिटीज, देखने और सुनने में परेशानी के साथ अन्य परेशानी थी जो डिमेंशिया के खतरे को बढ़ा सकता है।


 


 


 


इन्होंने किया शोध


 


किंग जार्ज मेडिकल विवि के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग की डा. प्रत्यक्षा पंडित मनोचिकित्सा विभाग से डा.  रीमा कुमारी, डा.  आदर्श त्रिपाठी और एसजीपीजीआई से बॉयोस्टैटिसटिक्स  प्रभाकर मिश्रा ने


कॉग्निटिव फंक्शनिंग एमंग कम्युनिटी डेवलिंग ओल्डर एडल्ट इन रूरल पापुलेशन आफ लखनऊ एंड इट्स एसोसिएशन विथ को मोरबिडिटी(लखनऊ की ग्रामीण आबादी में समुदाय में रहने वाले वृद्ध वयस्कों के बीच संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली और सह-रुग्णता के साथ इसका संबंध)  विषय को लेकर शोध किया जिसे इंडियन जर्नल ऑफ साइकोलॉजिकल मेडिसिन ने स्वीकार किया है।   


 


 क्या है डिमेंशिया


 


डिमेंशिया में मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं को नुकसान होता है, जो मस्तिष्क के कई क्षेत्रों में हो सकता है। डिमेंशिया लोगों को अलग तरह से प्रभावित करता है, जो मस्तिष्क के प्रभावित क्षेत्र पर निर्भर करता है।


 


यह स्मृति, सोच और सामाजिक क्षमताओं को प्रभावित करता है  जो किसी व्यक्ति में दिन-प्रतिदिन के कामकाज में बाधा उत्पन्न कर सकता है। वृद्ध वयस्कों में अल्जाइमर रोग होने पर डिमेंशिया हो सकता है


 


 


डिमेंशिया के शिकार- 24.9 फीसदी


60 से 75- 17.6 फीसदी


75 से अधिक- 50.6 फीसदी


पुरुष- 13.9 फीसदी


महिला- 33.9 फीसदी


साथ में दूसरी परेशानी- 33 फीसदी


उच्च रक्तचाप- 24.1 फीसदी


डायबिटीज- 28.6 फीसदी


देखने में परेशानी- 63.6 फीसदी


सुनने में परेशानी- 63.2 फीसदी


हड्डी और जोड़ों में परेशानी- 46.8 फीसदी


श्वसन तंत्र में परेशानी- 40 फीसदी

पीजीआई के डॉक्टरों ने पहली बार नवजात के दिल के छेद का किया ऑपरेशन

 

पीजीआई के डॉक्टरों ने पहली बार नवजात के दिल के छेद का किया ऑपरेशन 

- नई तकनीक पीडीए पर आधारित डिवाइस डालकर बंद किया छेद 



पीजीआई में पहली बार महज 45 दिन के नवजात के दिल का ऑपरेशन किया गया है। कॉर्डियोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने पहली बार नई पीडीए तकनीक का इस्तेमाल कर बच्चे के दिल के छेद को छोटी सी डिवाइस से बंद करने में सफलता पायी है। दावा है कि सरकारी संस्थानों में पूरे प्रदेश में इस तरह से किसी नवजात का पहली बार ऑपरेशन किया गया है। 

गोरखपुर निवासी दंपति के जुड़वा बच्चे हुए। पीजीआई के कॉर्डियोलॉजी विभाग के डॉ. अंकित साहू ने बताया कि दोनों बच्चे सात माह में पैदा हुए। प्रीमेच्योर प्रेग्नेंसी में बच्चे का वजन आठ सौ ग्राम था। उसे सांस लेने में तकलीफ के चलते वेंटिलेटर पर भर्ती रखा गया। दवाओं के इस्तेमाल से बच्चे के दिल के छेद को बंद करने की पूरी कोशिश होती रही, लेकिन दवाओं से छेद बंद करने में सफलता नहीं मिली। 

ऐसे में डॉक्टरों की टीम ने सारी जांचें करवाकर नवजात के दिल का ऑपरेशन करने की ठानी। दो दिन पहले डॉक्टरों की टीम ने अमेरिका से मंगाई गई नई तकनीक पीडीए पर आधारित पिकोलो डिवाइस (चार गुणे दो एमएम की डिवाइस) को बच्चे के दिल के छेद में डाल दिया, जिससे छेद हमेशा के लिए पूरी तरह से बंद हो गया। यह डिवाइस मटर के दाने के चौथाई हिस्से के बराबर की होती है। दावा है कि अब बच्चा पूरी तरह से सुरक्षित और स्वस्थ है। उसका वजन भी बढ़ने लगा है। वेंटिलेटर से जल्द ही हटाकर अगले सप्ताह तक नवजात की छुट्टी कर दी जाएगी। डॉ. अंकित ने बताया कि वैसे बच्चों की थोड़ी उम्र बढ़ने पर ही इस तरह का ऑपरेशन किया जाता है, लेकिन इस बार पीडीए तकनीक से डिवाइस का इस्तेमाल कर महज 45 दिन के नवजात के दिल के छेद को बंद करने में सफलता मिली है। यूपी के सरकारी चिकित्सा संस्थानों में ऐसा पहला ऑपरेशन हुआ है। 

ऑपरेशन करने वाली टीम 

ऑपरेशन करने वाली टीम में पीजीआई के कॉर्डियोलॉजी के डॉ. अंकित साहू, न्यूनिटोलॉजी से डॉ. सुशील व डॉ. कीर्ति, पीजीआई एल्युमिनाई व जबलपुर के डॉ. केएल उमा माहेश्वर शामिल रहे। 

क्या होता है पीडीए 

जन्म से पहले दिल में एक रक्तवाहिका होती है, जो महाधमनी को पल्मोनरी धमनी से जोड़ती है। इस रक्तवाहिका डक्टस आर्टीरियोसस से माता के प्रचुर ऑक्सीजन युक्त खून को बच्चे के शरीर में ले जाया जाता है। आमतौर पर जन्म के तुरंत बाद वाहिका बंद हो जाती है। जब डक्टस आर्टीरियोसस खुला होता है तो इसे पेटेंट डक्टस आर्टीरियोसस या पीडीए कहा जाता है।

रविवार, 15 दिसंबर 2024

एएनए जांच में शुरू किया खास पैटर्न की रिपोर्टिंग

 

एएनए जांच में शुरू किया खास पैटर्न की रिपोर्टिंग

 

बेस्ट टेक्नोलॉजिस्ट संजय प्रजापति क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी -आटो इम्यून डिजीज एसएलई का पता करने के लिए एंटी न्यूक्लियर एंटीबॉडी ( एएनए) की जांच इम्यूनो फोलरसेंस तकनीक से करना चाहिए। हमने विभाग की प्रमुख प्रो. अमिता अग्रवाल के सलाह से कई पैटर्न जिसको रिपोर्ट नहीं जाता रहा है करने की कोशिश किया।  टोपोआइसोमरेज  की रिपोर्ट शुरू किया जिससे स्क्लेरोसिस बीमारी का सटीक पता चलता है। छोटी और सस्ती जांच होती है।

डिजिटल एक्सरे से भी स्तन कैंसर की पहचान

 



डिजिटल एक्सरे से भी स्तन कैंसर की पहचान

 

बेस्ट रिसर्च पेपर एवार्ड डा. रिनेले इंडो सर्जरी - 20 मरीजों पर शोध किया है। मैमोग्राफी हर जगह नहीं होती है। डिजिटल एक्सरे करके भी स्तन कैंसर की आशंका का पता लगाया जा सकता है।  मैमोग्राफी 800 और डिजिटल एक्सरे 80-100 रुपए में होता है। इससे यह पता चलेगा कि स्तन कैंसर सर्जरी के बाद पूरा निकला या नहीं।

छोटे चीरे से स्पाइनल ट्यूमर का इलाज संभव

 

छोटे चीरे से स्पाइनल ट्यूमर का इलाज संभव

 

बेस्ट फैकल्टी सर्जिकल कैटेगरी अनंत मेहरोत्रा न्यूरो सर्जरी-

स्पाइन(रीढ़) के ट्यूमर का इलाज एंडोस्कोपी से संभव हो चुका है।  मरीज को डेढ़ सेमी का चीरा लगाया जाता है। इससे मरीज में छोटा निशानदर्द कम होता हैखून कम बहता है। दो दिन में मरीज की छुट्टी कर देते हैं। पहले 10 सेमी का चीरा लगाते और छह सात दिन ठीक होने में लगता था। 50 से अधिक मरीजों का ऑपरेशन इस विधि से किया।

पैराथायरायड ग्लैंड के ट्यूमर की सर्जरी से किडनी बचाना संभव

 



पैराथायरायड ग्लैंड के ट्यूमर की सर्जरी से किडनी बचाना संभव

 

बेस्ट रिसर्च पेपर अवार्ड  डा. दिब्या बेहरा प्रियदर्शिनी इंडो सर्जरी- पैरा थायराइड ग्लैंड में ट्यूमर होने पर हड्डी से कैल्शियम निकलने   लगता है जो पेशाब के रास्ते निकलता है। इससे किडनी खराब हो जाता है। हमने देखा कि पैरा थायराइड ग्लैंड की सर्जरी के बाद देखा गया कि कैल्शियम का क्षरण बंद हो जाता है ।   किडनी को खराब होने से बचाया जा सकता है। इसका इलाज न होने पर प्रत्यारोपित किडनी भी खराब हो जाता है।

एनएलआऱ से ब्रेन स्ट्रोक की गंभीरता का लगेगा पता

 




एनएलआऱ से ब्रेन स्ट्रोक की गंभीरता का लगेगा पता

 

बेस्ट रिसर्च अवार्ड प्रो. रुचिका टंडन न्यूरोलॉजी-   

न्यूट्रोफिल और लिम्फोसाइट अनुपात के जरिए इस्केमिक  ब्रेन स्ट्रोक की गंभीरता का आकलन किया जा सकता है। यह अनुपात शरीर में इंफ्लामेशन मार्कर के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। जांच में केवल 50 रुपये खर्च आता है। न्यूट्रोफिल और लिम्फोसाइट अनुपात (एनएलआर) गणना न्यूट्रोफिल की संख्या को लिम्फोसाइटों की संख्या से विभाजित करके की जाती है।  

जवानी में होने वाली डायबिटीज अधिक खतरनाक

 



जवानी में होने वाली डायबिटीज अधिक खतरनाक


 


पीजीआई ने 800 लोगों पर शोध के बात निकाला तथ्य


जवान लोगों में इंसुलिन बनाने वाला सेल तेजी से होता है खराब


कुमार संजय। लखनऊ


जवानी में होने वाली डायबिटीज अधिक उम्र के लोगों के मुकाबले अधिक खतरनाक है। संजय गांधी पीजीआई के इंडोक्राइनोलॉजी विभाग के चिकित्सा विज्ञानियो ने टाइप टू डायबिटीज ग्रस्त 800 लोगों पर शोध के बाद यह जानकारी हासिल की है। 40 से कम उम्र के पहले डायबिटीज ग्रस्त 400 लोग शामिल है। प्रो. सुभाष यादव और डा. आयुषी सिंघल के मुताबिक जवानों में बीटा सेल जो इंसुलिन बनाता है वह अधिक उम्र के लोगों को मुकाबले पांच गुना अधिक तेजी से खराब होता है जिसके कारण इनमें डायबिटीज अधिक उग्र होता है। युवा वर्ग के ऊपर काम की जिम्मेदारी के साथ तमाम जिम्मेदारी होती है जिसके कारण यह शुगर को नियंत्रित करने पर कम ध्यान देते है। सुगर लंबे समय तक नियंत्रित न होने के कारण इनमें डायबिटीज के कारण सूक्ष्म नसों ( माइक्रो वैस्कुलर ) की कोई परेशानी 69 फीसदी में देखी गयी है। सूक्ष्म नसों में परेशानी के कारण नेफ्रोपैथी( किडनी की परेशानी), रेटिनोपैथी( आंख की परेशानी) , न्यूरोपैथी ( नर्व ) की परेशानी होती है।


40 से कम वाले लोगों में जल्दी इंसुलिन


 शोध में देखा गया कि 15 साल तक डायबिटीज के साथ जीवन गुजारने वाले 40 से कम में इंसुलिन 62 फीसदी में इंसुलिन शुरू करना पड़ा जबकि अधिक उम्र के केवल 41 फीसदी लोगों में इंसुलिन शुरू करना पड़ा। 40 से कम वालों में मेटाबोलिक सिंड्रोम 85 फीसदी लोगों में देखने को मिली जबकि अधिक उम्र के 88 फीसदी लोगों में  देखने को मिली । 40 से कम उम्र में मेटाबोलिक सिंड्रोम और डायबिटीज के बीच सीधा संबंध है। 40 से कम उम्र के 80.1 फीसदी में मोटापा ( बीएमआई 23 से अधिक) , तोंद 70.8 फीसदी में देखने को मिला।


 


दिल को बचाने वाले कोलेस्ट्रॉल युवा डायबिटीज में कम


 


इनमें ट्राइग्लिसराइड जो दिल की बीमारी का कारण साबित होता है 47 फीसदी में और अधिक उम्र 38 फीसदी में देखने को मिला। बैड कोलेस्ट्रॉल एलडीएल दोनों वर्ग को 43 फीसदी में देखने को मिला। इन तमाम शोध के आंकड़ों से साबित होता है युवा अवस्था में होने वाला डायबटीज अधिक खतरनाक है।


 


 कम कर सकते है खतरा


 


विशेषज्ञों का कहना है कि इसके प्रकोप से बचने के लिए रेगुलर फालोअप, समय से दवा लेना, भोजन पर नियंत्रण और लाइफ स्टाइल में बदवा जरूरी है। इस शोध को इंडोक्राइनोलॉजी बिरादरी के लोगों ने स्वीकार किया है। इस शोध को हाल में पीजाई में आयोजित रिसर्च शो केस में भी ऱखा गया था।

सेप्टीसीमिया के कारक बन सकता है हवा में रहने वाले बैक्टीरिया- प्रो. चिन्मय साहू

 



सेप्टीसीमिया के कारक बन सकता है हवा में रहने वाले बैक्टीरिया- प्रो. चिन्मय साहू

 

कैंसर आईसीयू में भर्ती में होने वाले मरीजों में सेप्टीसीमिया कारण हवा और मिट्टी में रहने वाला बैक्टीरिया कारण हो सकता है। माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रो. चिन्मय साहू  ने अपने शोध में बताया कि इन मरीजों में इम्यून सिस्टम कमजोर होता हैजिसके कारण सामान्य बैक्टीरिया गंभीर परेशानी खड़ी करते है। वरखोलडरिया  सामान्य बैक्टीरिया है। हमने माल्डी टांफ तकनीक से एक दिन अंदर रक्त में इस बैक्टीरिया के संक्रमण की पहचान करने के साथ बताया कि इसमें सामान्य एंटीबायोटिक डाक्सीसाइक्लीन ही कारगर है। देखा कि कैंसर के 10 फीसदी में यह बैक्टीरिया सेप्टीसीमिया का कारण था जो सही इलाज से ठीक हो गया। प्रो. साहू ने बताया कि लंबा बुखार सहित अन्य परेशानी होने पर संक्रमण गंभीर होने से पहले मरीज को बचाने के लिए इस सामान्य बैक्टीरिया के संक्रमण की आशंका पर ध्यान देना चाहिए।     

किडनी में रक्त प्रवाह बढ़ा कर लिवर को आराम देना संभव- प्रो. गौरव पाण्डेय




 किडनी में रक्त प्रवाह बढ़ा कर लिवर को आराम देना संभव- प्रो. गौरव पाण्डेय

 

किडनी में रक्त प्रवाह बढा कर लीवर सिरोसिस के मरीजों के पेट में

 बार-बार पानी भरने की परेशानी( एसाइटिस) को कम करना संभव है।

 गैस्ट्रो एंटरोलॉजिस्ट प्रो. गौरऴ पाण्डेय ने 128 लीवर सिरोसिस के

 मरीजों में शोध के बाद यह साबित किया। है। लिवर सिरोसिस के

 मरीजों के पेट में पानी भरने का कारण किडनी में रक्त प्रवाह कम

 होना है। रक्त प्रवाह बढ़ाने के लिए अल्फा वन एड्रजनिक रीसेप्टा

 एगोनिस्ट   दवाएं देने से किडनी में रक्त प्रवाह बढ़ जाता है । इन

 दवाओं का इस्तेमाल दूसरे परेशानियों के लिए किया जाता है। हमने

 इस दवा का शोध  लीवर सिरोसिस के मरीजों पर किया जिसके

 परिणाम बेहतर मिले है। एसाइटिस कम होने पर बार –बार मरीज को

 भर्ती नहीं होना पड़ेगा। संक्रमण की आशंका कम होगी।   

शिशु में शुगर का घटा स्तर तो पेनक्रियाज में ट्यूमर की आशंका- प्रो. बसंत कुमार





 शिशु में शुगर का घटा स्तर तो पेनक्रियाज में ट्यूमर की आशंका- प्रो. बसंत कुमार

 

 

11 माह की बच्ची जिसमें शुगर का स्तर कमी की परेशानी लेकर हमारे पास आयी। हम लोगों ने तमाम परीक्षण के बाद देखा कि प्रैक्रियाज में ट्यूमर था जिसके कारण अधिक इंसुलिन बन रहा था। अधिक इंसुलीन बनने के कारण शुगर का स्तर काफी कम था। इस परेशानी के कारण शरीर और दिमाग में ऑक्सीजन की कमी के कारण ब्रेन मेज हो सकता था। इस रेयर केस होते है ऐसे मामले 50 हजार में से एक किसी बच्चे में होते है। समय पर इलाज से बच्चे का जीवन बचाया जा सकता है। पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो. बसंत कुमार और  डा. पूजा प्रजापति ने इस केस को शोध के रूप में रखा । बताया कि दवा से शुगर नहीं बढ़ा तो हमने प्रैक्रियाज के आंदर जटिल  सर्जरी कर ट्यूमर ग्रस्त भाग को निकाला जिसके बाद सामान्य पैंक्रियाज के बीट सेल सामान्य मात्रा  इंसुलिन बनने लगा । बच्ची का शुगर लेवल ठीक हो गया। हमारे विभाग से 24 शोध पत्र प्रस्तुत किया गया।

 

वायरस के संक्रमण के बाद एड्रेनल ग्लैंड की कार्य में आ सकती है कमी- प्रो. सुभाष यादव

 




वायरस के संक्रमण के बाद एड्रेनल ग्लैंड की कार्य में आ सकती है कमी- प्रो. सुभाष यादव

 

कोविड संक्रमण के बाद देखा गया कि लोगों में लंबे समय तक सुस्ती कमजोरी के परेशानी रही है। इसका कारण जानने के लिए 302 कोविड से उबर चुके लोगों पर शोध किया तो देखा  गया कि एड्रिनल ग्लैंड की कार्य प्रणाली में कमी है। यह  प्राकृतिक स्टेरॉयड बनाता है । स्टेरॉयड की कमी के कारण सुस्ती और थकान की परेशानी होती है। स्टेरॉयड की कमी  12 फीसदी  लोगों में देखी गयी। देखा गया कि एक साल बाद ग्लैड की कार्य प्रणाली में सुधार होना शुरू हुई । स्टेरॉयड की मात्रा बढ़नी शुरू हुई ।  दो साल में मात्रा पूरी तरह सामान्य हो गयी । इंडोक्राइनोलॉजी विभाग के प्रो. सुभाष यादव ने इस शोध से साबित किया कि वायरस के संक्रमण के बाद कमजोरी थाकान के परेशान होने की जरूरत नहीं है। यह एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है। ऐसा दूसरे वायरस के संक्रमण के बाद भी हो सकता है।

 

समुद्री राज्य के लोगों को कम उम्र में हो सकती है किडनी की परेशानी- प्रो. नारायण प्रसाद

 



समुद्री राज्य के लोगों को कम उम्र में हो सकती है किडनी की परेशानी- प्रो. नारायण प्रसाद

समुद्री इलाकों के किनारे रहने वाले लोगों में किडनी की बीमारी की आशंका सामान्य से अधिक है। नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद एशिया के कई देशों के आंकड़ों पर शोध के बाद बताया है कि किडनी की खराबी के कारण उच्च रक्तचाप, डायबिटीज के साथ अन्य है लेकिन तमाम लोगों में कारण का पता नहीं होता है। ऐसे लोगों पर शोध किया तो देखा कि जो  समुद्री इलाके के राज्य के लोगों में किडनी के ऐसे मरीजों की संख्या अधिक है जिनमें कारण का पता नहीं है। देखा गया कि इन राज्यों के लोगों में कम उम्र में किडनी की परेशानी के लक्षण नहीं आते है लेकिन किडनी सिकुड़ी होती है जिससे किडनी काम नहीं करती है। कारण विषाक्त तत्व हो सकता है।

बुधवार, 11 दिसंबर 2024

मूत्र के रास्ते आ रहा था माल पीजीआई के डॉक्टरों ने किया कमाल बनाया सही रास्ता

 

पीजीआई




 तीन सर्जरी के बाद सामान्य हुई जिंदगी आगे होगी हार्मोनल थेरेपी 






-पहले हुई दो सर्जरी लेकिन बढ़ती गयी परेशानी


 


-सर्जरी के  बाद मूत्र द्वार से आने लगा था मल


- पहले लिया होता विशेषज्ञ से सलाह तो शायद बच जाती ओवरी


   


 


हरदोई की रहने वाली 15 वर्षीय बबीता के पेट में दर्द से निजात दिलाने के लिए बच्चेदानी के मुंह चौड़ा करने की सर्जरी हुई लेकिन परेशानी दूर तो हुई नहीं पेशाब के रास्ते मल भी आने लगा जिंदगी और दूभर हो गयी। संजय गांधी पीजीआई के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग मुख्य सर्जन प्रो. अशोक कुमार की टीम ने तीन सर्जरी किया जिससे काफी हद तक जिंदगी सामान्य हो गयी है। पहले ओवरी निकाल दी गयी इसलिए आगे हार्मोनल थेरेपी देना पड़ेगा जो महिलाओं के शारीरिक और मानसिक गुण के लिए जरूरी है।


 


 पहले हुई दो सर्जरी


 


 इस सर्जरी से पहले बबीता दो सर्जरी झेल चुकी है। बबीता की मां ने बताया कि तीन साल पहले पेट में दर्द की परेशानी हुई जिसके लिए वह इलाज लिया लेकिन कोई फायदा न होने पर शाहजहांपुर ने एक सर्जन को दिखाया तो बताया बच्चेदानी का मुंह छोटा है जिसके कारण मासिक स्राव ने निकलने वाले रक्त बाहर नहीं पा रहा है । रक्त जमा होने के कारण दर्द होता है । सर्जन ने बच्चे दानी का मुंह चौड़ा करने के लिए सर्जरी किया जिसमें आंत कट गयी। इसके कारण रक्त तो बाहर आने लगा तो तीन महीने ठीक रहा । इसके बाद पेट में दर्द की परेशानी के साथ मूत्र के रास्ते मल आने लगा। परिजन  अलीगढ़ एक अस्पताल गए जहां पर जांच के बाद पता चला कि बच्चेदानी विकसित नहीं है। वजाइना छोटा है और रेक्टो वेजाइनल फिस्टुला बन गया जिसके कारण यह परेशानी है। सर्जरी करके बच्चेदानी हटा दिया। मल और मूत्र का रास्ता अलग कर दिया । मल के लिए अलग से बैग लगा दिया। इससे उसे मानसिक और सामाजिक परेशानी हो रही थी। परिजन संजय गांधी पीजीआई के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग में संपर्क किया तो यहां पर मलद्वार बनाया ।  आंत का रास्ता मलद्वार से जोडा। वेजिनोप्लास्टी की वजाइना को ठीक किया। प्रो. अशोक ने सलाह दिया लंबे समय पेट में दर्द की परेशानी होने पर विशेषज्ञ से सलाह लेना चाहिए । 


 


 


 


इस टीम ने दिया सर्जरी को  अंजाम


 


प्रो. अशोक कुमार फर्स्ट, डा. सारंगी, डा. कुश , डा. शाहरूख . डा. रोहित निश्चेतना विशेषज्ञ डा.अरूणा भारती . नर्सिंग आफीसर सविता

सोमवार, 9 दिसंबर 2024

रक्त का थक्का बनने से रोक बचाया जाएगा दिल और दिमाग





 रक्त का थक्का बनने से रोक बचाया जाएगा दिल और दिमाग


थक्के बनने रोकना और रक्तस्राव का जोखिम रोकना है बड़ी चुनौती






संजय गांधी पीजीआई के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सत्येंद्र तिवारी ने बताया कि एक सत्र में रक्त के थक्के (थ्रोम्बोसिस) और इसके इलाज के नए तरीकों पर चर्चा हुई । थ्रोम्बोसिस रक्त वाहिकाओं में थक्के बनने की स्थिति को कहते हैं, जिससे रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है और हार्ट अटैक या ब्रेन स्ट्रोक जैसी समस्याएं हो सकती हैं।


 बताया कि थक्के बनने को रोकने और रक्तस्राव के जोखिम को कम करने के बीच संतुलन बनाए रखना हृदय रोगों के इलाज में एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने यह भी बताया कि जिन मरीजों को थक्के की दवाएं दी जा रही हैं, उन्हें नियमित फॉलोअप पर रहना चाहिए, ताकि डॉक्टर दवाओं की मात्रा को समय पर बदल सकें और दोनों जोखिम को कम किया जा सके।


 बताया कि थ्रोम्बो एम्बोलिक घटनाओं के कारण दुनियाभर में होने वाली मौतों में एक तिहाई मामले होते हैं, जो नए उपचारों की आवश्यकता को और बढ़ा देते हैं। इस संदर्भ में, बिवालिरुडिन नामक दवा को हाल ही में प्रभावी पाया गया है। यह एंजियोप्लास्टी से गुजरने वाले मरीजों में थक्के को रोकने में हेपरिन से अधिक प्रभावी साबित हुआ है।


इसके अलावा, उच्च रक्तस्राव वाले मरीजों के लिए कम समय तक एंटीप्लेटलेट थेरेपी कारगर हो सकती है। एंजियोप्लास्टी के बाद क्लोपिडोग्रेल और एस्पिरिन के सुरक्षित विकल्प के रूप में उभरे हैं। एंटी थ्रोम्बोटिक थेरेपी में बदलाव की आवश्यकता है ताकि मरीजों को सबसे अच्छा इलाज मिल सके और रक्तस्राव का जोखिम कम किया जा सके।


 


प्रो. रूपाली खन्ना ने बताया कि  एंटीप्लेटलेट और एंटीकोगुलेंट दवाओं के बारे में बताया कि रक्त के थक्के और रक्तस्राव दोनों को रोकने के लिए इस्तेमाल होती हैं। इनमें एस्पिरिन, क्लोपिडोग्रेल, डिपिरिडामोल और एब्सिक्सिमैब जैसी शक्तिशाली दवाएं शामिल हैं। इसके अलावा, वाल्व रिप्लेसमेंट कराने वाले मरीजों को अकेले मौखिक एंटीकोगुलेंट दवाएं पर्याप्त हो सकती हैं।, नई दवाओं और उपचारों की खोज से थक्के बनने और रक्तस्राव की समस्या से जूझ रहे मरीजों के लिए बेहतर समाधान मिल सकता है

कार्डियोवर्टर-डिफाइब्रिलेटर हाई रिस्क के दिल को देगा जीवन

 

कार्डियोवर्टर-डिफाइब्रिलेटर हाई रिस्क के दिल को देगा जीवन


सार्वजनिक स्थानों पर स्वचालित बाहरी डिफिब्रिलेटर लगाने की सलाह




 बत्रा अस्पताल के वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. आर. डी. यादवे ने बताया कि अचानक हृदय का काम करना बंद करना ( सडेन कार्डियक डेथ-एसीडी)  मौत का एक प्रमुख कारण है। अचानक मृत्यु के मामलों मे  सडेन कार्डियक डेथ या  हृदय संबंधी 63 फीसदी होता है।


एससीडी अक्सर बिना किसी चेतावनी के होती है।  एससीडी के लक्षणों में अचानक गिरना, नाड़ी का न मिलना और सांस न आना शामिल हैं। इन स्थितियों में त्वरित चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है जिसमें  डिफाइब्रिलेशन और सीपीआर की महत्वपूर्ण भूमिका है। सार्वजनिक स्थानों पर स्वचालित बाहरी डिफिब्रिलेटर (एईडी) की उपलब्धता होनी चाहिए। डॉ. यादवे ने उच्च जोखिम वाले मरीजों के लिए इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर-डिफाइब्रिलेटर (आईसीडी) लगना चाहिए। इससे हार्ट को बंद से बचाया जा सकता है।  यह उपकरण वेंट्रीकुलर टैकीकार्डिया या फाइब्रिलेशन के मामलों में मृत्यु दर को कम करने में कारगर साबित हुए हैं। वे आईसीडी तकनीक में हुए नए बदलावों के बारे में बताया कि  कम जटिलताओं के साथ अधिक प्रभावकारी हैं।  एससीडी की रोकथाम के लिए बचपन से ही स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए  । वे अस्पताल के बाहर कार्डियक अरेस्ट के मामलों में एईडी पहुंचाने के लिए ड्रोन के उपयोग जैसे नए समाधानों पर भी चर्चा किए। स्वास्थ्य देखभाल में लगे लोगो को  एससीडी से निपटने के लिए आवश्यक उपकरण और जानकारी देने से मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।

आंख बताएगी दिल का हाल

आंखें बताएंगी दिल का हाल, रेटिना की जांच से पता चलेगा हृदय रोग का खतरा एसजीपीजीआइ में देश की पहली एआइ आधारित आक्टा मशीन से होगी रेटिना की जांच लखनऊ: एक साधारण सी आंखों की जांच दिल की बीमारी के खतरे को बताएगी। किसी व्यक्ति को हृदय रोग का खतरा कितना है, इस जांच से पता चल सकेगा। संजय गांधी पीजीआइ के विशेषज्ञ आर्टिफिशियल इंटलीजेंस (एआइ) आधारित आक्टा मशीन से रेटिना की स्कैनिंग कर दिल धमनियों में ब्लाकेज का पता लगाएंगे। इससे रोगियों के छोटे ब्लाकेज को दवाओं से खत्म करने में मदद मिलेगी। संस्थान में कार्डियोलाजी विभाग के प्रो. नवीन गर्ग और नेत्र रोग विभाग के प्रमुख प्रो. विकास कनौजिया ने इस पर शोध भी शुरू किया है, जिसके शुरुआती परिणाम अच्छे आ रहे हैं। शोध के बाद ब्लाकेज से बचाव और जागरूकता के लिए नई गाइडलाइन बनाने की तैयारी है। प्रो. नवीन गर्ग ने बताया कि संस्थान के नेत्र रोग विभाग में करीब डेढ़ करोड़ कीमत की आधुनिक एआइ आक्टा मशीन लगाई गई है। इसकी खास बात है कि सामान्य मशीन के मुकाबले रेटिना की सटीक जांच हो सकेगी। मशीन में रोगी की आंखें लगाने के कुछ सेकेंड में रेटिना के आकार और नसों के बदलाव की पूरी रिपोर्ट मिल जाएगी। रिपोर्ट के जरिए दिल की धमनियों के ब्लाकेज की सही जानकारी मिलेगी। दरअसल, शरीर में रक्त संचार घटने पर या पर्याप्त न होने पर इसका असर आंखों के रेटिना की कोशिकाओं पर भी होता है। इसकी जांच से भविष्य में हार्ट अटैक का खतरा कम किया जा सकेगा। आने वाले समय में इस मशीन की उपयोगिता तेजी से बढ़ेगी। इन रोगियों पर शोध प्रो. नवीन गर्ग के मुताबिक, संस्थान में एंजियोप्लास्टी करा चुके रोगियों को शोध में शामिल किया गया है। नेत्र रोग विभाग के प्रमुख डा. विकास कनौजिया की मदद से रोगियों की आंख एआई आधारित आप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी एंजियोग्राफी (आक्टा) मशीन से जांच कर रेटिना में बदलाव की जानकारी हासिल की जाएगी। रेटिना की जांच में जिन भी मरीजों में लक्षण दिखेगा, उन्हें हृदय रोग विशेषज्ञ देखेंगे।हालांकि, शोध में डायबिटीज और हाइपरटेंशन के रोगियों को शामिल नहीं किया जाएगा। प्रो. गर्ग का कहना है कि आमतौर पर जब तक कोई व्यक्ति हृदय रोग से नहीं जूझता, इससे जुड़ी जांचें नहीं कराना चाहता है। ऐसे में रेटिना की जांच मरीज की आंखों के साथ उसके दिल का हाल भी बता सकेगी। समय से हृदय रोगों का खतरा पता चलने पर दवा, खानपान और व्यायाम के जरिए इसे रोका जा सकेगा। ऐसे में कई मरीजों को एंजियोप्लास्टी की जरूरत नहीं पड़ेगी।

रविवार, 8 दिसंबर 2024

दिल की मांसपेशियों की मोटाइ से होने वाली परेशानी से राहत संभव



 दिल की मांसपेशियों मोटाइ  को परेशानी राहत   संभव


अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के डॉ. बी. हेडली विल्सन और संजय गांधी पीजीआई के हृदय रोग विभाग के प्रमुख प्रो. आदित्य कपूर ने बताया कि  हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी (एचसीएम) के बारे में बताया कि यह एक जटिल हृदय रोग है जो सार्कोमेरिक जीन उत्परिवर्तन के कारण होता है। इससे बाएं वेंट्रिकुलर हाइपरट्रॉफी (मांसपेशियों का मोटा होना) और हाइपरकॉन्ट्रैक्टिलिटी (अत्यधिक संकुचन) की समस्या उत्पन्न होती है।

बताया कि  रोग की गंभीरता और संभावित जोखिमों का आकलन करने में इकोकार्डियोग्राफी और कार्डियक मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (सीएमआर) की अहम भूमिका है। इसके अलावा, अचानक हृदय मृत्यु (एससीडी) के जोखिम को कम करने के उपायों की आवश्यकता पर भी ध्यान दिया गया है।

इलाज के बारे में बताया कि  मायोसिन इनहैबिटर दवाओं पर शोध चल रहा है। इसके अलावा, पर्क्यूटेनियस सेप्टल एब्लेशनजीन थेरेपी, और आरएनए-आधारित उपचार जैसे भविष्य के उपचार विकल्पों की संभावनाओं पर भी चर्चा की गई है।

क्या है हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी

हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी एक ऐसी समस्या है, जिसमें दिल की मांसपेशी असामान्य रूप से मोटी हो जाती है। इसके कारण दिल के लिए रक्त पंप करना मुश्किल हो जाता है। इस बीमारी का अक्सर पता नहीं चल पाता है क्योंकि अधिकतर मामलों में कोई लक्षण नहीं होते और रोगी को कोई बड़ी समस्या महसूस नहीं होती। हालांकि, कुछ लोगों में सांस लेने में कठिनाई, छाती में दर्द, या दिल की असामान्य धड़कन (अरिद्मिया) जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

इसका इलाज सर्जरी से किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, दिल की धड़कन को सामान्य या धीमा करने के लिए दवाइयोंया शरीर के अंदर लगाए जाने वाले उपकरणों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।


दवाएं हार्ट फेल्योर मरीज की कम कर सकती है परेशानी


 नई दवाएं हार्ट फेल्योर मरीज की कम कर सकती है परेशानी

एनटी-प्रोबीएनपी   बायो मार्कर से जल्दी पकड़ में आता है  हार्ट फ्लोयर

गाइड लाइन डायरेक्टेड मेडिकल थिरेपी हार्ट फेल्योर मरीजो दे रही है राहत


संजय गांधी पीजीआई की हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. रूपाली खन्ना ने बताया कि हार्ट फेल्योर (एचएफ)  बढ़ती उम्र की आबादी और इसकी जटिल पैथॉफिजियोलॉजी के कारण चुनौती है। गाइडलाइन डायरेक्टेड मेडिकल थेरेपी से मरीजों को काफी आराम मिल रहा है। डायबिटीज के इलाज में काम आने वाला रसायन सोडियम-ग्लूकोज को ट्रांसपोर्टर -अवरोधक (एसजीएलटी2आई), शरीर में पानी मात्रा कम करने के साथ रक्त प्रवाह सामान्य करने वाला रसायन  एंजियोटेंसिन रिसेप्टर-नेप्रैलीसिन अवरोधक (एआरएनआई)और गैर-स्टेरायडल मिनरल कॉर्टिकॉइड रिसेप्टर विरोधी (एमआरए) शामिल हैं। हृदय विफलता के रोगियों में अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु दर में लगातार कमी देखी गई है। ये दवाएँ न केवल हृदय संबंधी परिणामों में सुधार करती हैं बल्कि मधुमेह और किडनी रोग जैसी बीमारियों के प्रबंधन में भी सहायक होती हैं। यह दवाएं अस्पताल में भर्ती होने की दर को कम कर सकते हैं।  हृदय विफलता(हार्ट फेल्योर)की घटनाओं और हृदय संबंधी मृत्यु की दर में कमी देखी गई।नवीन उपचार विधियाँ में इंट्रा वेनस आयरन थेरेपी कारगर साबित हो रही है। प्रो. रूपाली खन्ना ने बताया कि आयरन की कमी और रोगियों में कार्या क्षमता और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर रही हैं। इसके साथ-साथ डिवाइस-आधारित उपचारों में भी महत्वपूर्ण प्रगति हो रही है। कार्डियक रीसिंक्रनाइज़ेशन थेरेपी (सीआरटी)इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफाइब्रिलेटर (आईसीडी) और बाएं वेंट्रिकुलर सहायता उपकरण (एलवीएडी) जैसे उन्नत तकनीकी उपकरणों से रोगियों को बेहतर परिणाम मिल रहे हैं। ब्राकोरीसेप्टर एक्टिवेशन थिरेपी और पल्मोनरी प्रेशर मॉनिटरिंग से हृदय विफलता वाले रोगियों के इलाज में सुविधा मिल रही है ।  एनटी-प्रोबीएनपी   बायोमार्कर और कार्डियक एमआरआई जैसे इमेजिंग तकनीकों के माध्यम से हृदय विफलता की डायग्नोसिस  और अधिक सटीक हो रही है।  समय पर उपचार की शुरुआत हो सकती है और रोगियों की जीवन गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।

एरोटिक वाल्व रिप्लेसमेंट में नई खोज: सही वाल्व का चयन बचाएगा मरीजों की जान

 

एरोटिक वाल्व रिप्लेसमेंट में नई खोज: सही वाल्व का चयन बचाएगा मरीजों की जान

वाल्व प्रत्योरण के बाद कम लोगों में होगी परेशानी

 

पीजीआई में खोजा सही वाल्व के चयन का तरीका

 

हर मरीज के लिए अलग अलग एरोटिक वाल्व की होती है जरूरत

 

36.4 फीसदी में गंभीर रूप खराब लगा मिला एरोटिक वाल्व

 

कुमार संजय। लखनऊ

 

संजय गांधी पीजीआई के कार्डियोलॉजी विभाग की प्रो. अंकित साहू ने एरोटिक वाल्व रिप्लेसमेंट (एवीआर) के मरीजों के लिए एक महत्वपूर्ण शोध प्रस्तुत कियाजिसमें वाल्व चयन के सही तरीके पर प्रकाश डाला गया। शोध से यह स्पष्ट हुआ है कि हर मरीज के लिए एक अलग एरोटिक वाल्व की जरूरत होती है और एक जैसा वाल्व सभी मरीजों में प्रभावी नहीं होता।

शोध में 55 रोगियों का 2डी-ईको के माध्यम से मूल्यांकन किया गयाजिसमें पाया गया कि 36.4 फीसदी मरीजों में गंभीर वाल्व मिसमैच (प्रोस्थेसिस पेशेंट मिसमैच - पीपीएम) पाया गया। इस समस्या का असर महिलाओं में अधिक थाजहां 25.5 फीसदी महिलाओं में यह गंभीर समस्या थी। शोध में यह भी पाया गया कि शरीर के आकार और वाल्व के आकार के बीच घनिष्ठ संबंध हैजो वाल्व चयन की सफलता को प्रभावित करता है।

प्रो. साहू ने बताया कि सही वाल्व का चयन करते समय मरीज की उम्रलिंग और शरीर के आकार को ध्यान में रखना जरूरी है। इससे न केवल इलाज की सफलता बढ़ती हैबल्कि मरीज को वाल्व रिप्लेसमेंट के बाद होने वाली समस्याओं से बचाया जा सकता है।

वहींपीपीएम (वाल्व मिसमैच) के कारण मरीजों की मृत्यु दर 20-35 फीसदी तक हो सकती है। ऐसे में सही वाल्व के चयन से गंभीर समस्याओं को टाला जा सकता है। प्रोफेसर साहू ने इस शोध को कार्डियोलॉजी सोसाइटी ऑफ इंडिया के अधिवेशन में प्रस्तुत किया और इसे हृदय रोगियों के इलाज में एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया।

क्या है एरोटिक वाल्व की परेशानी?

एरोटिक वाल्व में खराबी होने पर रक्त का प्रवाह सही तरीके से नहीं हो पाताजिससे दिल पर दबाव बढ़ता है और हार्ट फेल हो सकता है। इसके इलाज के लिए सर्जरी के दौरान पुराने खराब वाल्व को हटा कर कृत्रिम वाल्व लगाया जाता हैजिससे रक्त प्रवाह सामान्य हो सके।

वाल्व का महत्व

हृदय में चार प्रकार के वाल्व होते हैं - ट्राइकसपिडपल्मोनरीमाइट्रल, और एरोटिक। ये वाल्व रक्त प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए खुलते और बंद होते हैं। अगर कोई वाल्व ठीक से नहीं खुलता या बंद नहीं होतातो इससे रक्त प्रवाह पर असर पड़ता हैजिससे दिल पर अतिरिक्त दबाव बनता है।

 

शनिवार, 7 दिसंबर 2024

एक इंजेक्शन से नियंत्रित होगा कोलेस्ट्रॉल

 





एक इंजेक्शन से नियंत्रित होगा कोलेस्ट्रॉल


हार्ट अटैक होने पर तुरंत मुंह 325 मिलीग्राम एस्पिरिन लेकर चबाएं


तीन घंटे के अंदर इलाज तो दिल को कम नुकसान


भारत में कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के वार्षिक सम्मेलन के तीसरे दिन हृदय रोग विशेषज्ञ  डॉ. एस. सुब्रतो मंडल और डॉ. सुनील कुमार मोदी ने  बताया कि उच्च कोलेस्ट्रॉल की अनदेखी करना जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है।  आधुनिक जीवनशैली और आहार सीधे तौर पर कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। हृदय रोगियों में अनियंत्रित कोलेस्ट्रॉल हार्ट अटैक का एक मुख्य कारण है। खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) को सौ मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से नीचे और अच्छे कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल)) को 40 मिली ग्राम से ऊपर बनाए रखना चाहिए। किसी का खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) 190 मिलीग्राम से अधिक हो तो दवा की आवश्यकता होती है। हर छह महीने में एक सिंगल इंजेक्शन पी.सी.एस. के 9 इनहिबिटर्स के माध्यम से उच्च कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित किया जा सकता है। डॉ. टाइनी नायर और डॉ. एच.के. चोपड़ा ने बताया कि दो दवाओं के संयोजन का उपयोग रक्तचाप को अधिक प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। हाइपरटेंशन एक साइलेंट किलर है। 


मेदांता दिल्ली डा.  प्रवीन चंद्रा भारतीयों को पश्चिमी देशों के मुकाबले इस रोग का अधिक खतरा है, जो आनुवंशिकी और आधुनिक जीवनशैली के कारण है। उच्च रक्तचाप, मधुमेह और मोटापे जैसे जोखिम तत्वों को नियंत्रित कर हृदय रोगों को काफी हद तक रोका जा सकता है। डॉ. नलिन सिन्हा ने बताया कि विभिन्न जोखिम  स्कोर भविष्य में होने वाले हार्ट अटैक की संभावना का सही तरीके से अनुमान लगा सकते हैं।


डेनमार्क के डॉ. नॉर्डेसगार्ड ने वैश्विक स्तर पर हार्ट अटैक के बढ़ते मामलों पर चर्चा की और इस महामारी से निपटने के लिए जन जागरूकता की आवश्यकता पर जोर दिया; अन्यथा, स्वास्थ्य सेवाएं इसे संभालने में संघर्ष करेंगी।


फोर्टिस, नई दिल्ली के सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अशोक सेठ ने हृदय विफलता और हार्ट अटैक के लिए नई तकनीकों के बारे में बात की। लंदन के डॉ. रॉक्सी सीनियर ने बताया कि हार्ट अटैक होने पर मरीज  तीन घंटे (गोल्डन आवर्स) के भीतर पहुंच जाता है और एंजियोप्लास्टी कराई जाती है, तो दिल को न्यूनतम नुकसान होता है। हार्ट अटैक का अनुभव करने वाले किसी भी व्यक्ति को तुरंत 325 मिलीग्राम  का एस्पिरिन चबाना चाहिए और अस्पताल जाना चाहिए।


पोस्टग्रेजुएट छात्र डॉ. सत्यप्रकाश ने बताया कि सामान्य ईसीजी होने के बावजूद, विभिन्न रक्त परीक्षण यह संकेत दे सकते हैं कि मरीज ने हार्ट अटैक हुआ है।  डॉ. करण ने बताया कि कभी-कभी ईसीजी परिवर्तन को प्रकट होने में समय लगता है, इसलिये ऐसे मामलों में लक्षण पहचानना महत्वपूर्ण है। 


सम्मेलन के मुख्य आयोजक डॉ. सत्येंद्र तिवारी ने बताया कि सम्मेलन के दौरान कई नई तकनीकों पर चर्चा की गई। उत्तर प्रदेश अध्याय के सदस्य, जिनमें डॉ. एस.के. द्विवेदी, डॉ. आदित्य कपूर, डॉ. नवीन गर्ग, डॉ. ऋषि सेठी, डॉ. सरद चंद्र, डॉ. रूपाली खन्ना, डॉ. भवत तिवारी, डॉ. अवधेश शर्मा, और डॉ. अंकित साहू ने सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया।

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2024

एआई हृदय की बीमारी पकड़ने में क्रांतिकारी साबित हो रहा है

 




एआई हृदय की बीमारी पकड़ने में क्रांतिकारी साबित हो रहा है

इकोकार्डियोग्रामसीटी स्कैन और एमआरआई की सटीक रिपोर्ट

इलाज की दिशा तय करने में मिल रही है मदद

 



आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) हृदय रोगों की पहचान, इलाज और प्रबंधन में बड़ा बदलाव ला रहा है। संजय गांधी पीजीआई की हृदय रोग विशेषज्ञ रूपाली खन्ना का कहना है कि एआई हृदय रोगों के निदान और उपचार को बेहतर बनाने में मदद कर रहा है। मशीन लर्निंग की मदद से एआई जटिल डेटा को समझ सकता है, जिससे कोरोनरी धमनी रोग, हार्ट फेल्योर  और दिल की अनियमित धड़कन (एरिथमिया) जैसी बीमारियों का जल्दी पता चल पाता है।

एआई इमेजिंग सिस्टम को भी बदल रहा है। इससे इकोकार्डियोग्राम, सीटी स्कैन और एमआरआई की रिपोर्टें अधिक सटीक मिल रही हैं, जिससे हृदय रोग विशेषज्ञों को मरीज की स्थिति को जल्दी पहचानने में मदद मिलती है। इससे समय की भी बचत होती है और इलाज में मदद मिलती है, साथ ही दवाइयों के सही प्रयोग के लिए मार्गदर्शन भी मिलता है। एआई के उपयोग से हृदय रोगों के इलाज में बेहतर परिणाम मिलने की उम्मीद है।

हालांकि, एआई के इस्तेमाल में कुछ चुनौतियाँ भी हैं। एआई टूल्स को स्वास्थ्य क्षेत्र में शामिल करने के लिए टेक्नोलॉजी और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच उचित प्रशिक्षण और सहयोग जरूरी है। फिर भी, एआई का उपयोग कार्डियोलॉजी में तेजी से बढ़ रहा है और यह भविष्य में हृदय रोगों का इलाज और बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।


9.6 महिलाओं गर्भवती में हृदय रोग की आशंका- बढ़ती मातृ आयु, प्रतिकूल जीवनशैली और पहले से मौजूद हृदय संबंधी है बडे कारण






 गायनी-कार्डियो विशेषज्ञता की जरूरत

बढ़ती मातृ आयुप्रतिकूल जीवनशैली और पहले से मौजूद हृदय संबंधी है बडे कारण 

9.6 महिलाओं  गर्भवती में हृदय रोग की आशंका


भारत में हृदय रोग और गर्भावस्था से जुड़ी समस्याएं बढ़ रही हैं, इसलिए मद्रास मेडिकल कॉलेज के डॉ. जस्टिन पॉल ने देश में कार्डियो-प्रसूति (कार्डियो गायनी) विशेषज्ञता स्थापित करने की बात कही है। उनका कहना है कि मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) में हृदय रोग एक बड़ा कारण बन रहा है। 2017 तक, भारत में हर साल करीब 35,000 मातृ मृत्यु होती थीं, और इनमें हृदय रोग भी एक बड़ा कारण है।

विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ती उम्र, खराब जीवनशैली और पहले से हृदय रोग होने के कारण गर्भवती महिलाओं में हृदय रोग का खतरा बढ़ रहा है। तमिलनाडु के आंकड़ों के मुताबिक, 2022-2023 में राज्य में मातृ मृत्यु दर में हृदय रोगों की वजह से 9.6% मौतें हुईं।

संजय गांधी पीजीआई के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सत्येंद्र तिवारी ने बताया कि वाल्वुलर और जन्मजात हृदय रोग, पल्मोनरी उच्च रक्तचाप और हृदय फेल्योर जैसी समस्याएं विशेष रूप से निम्न और मध्य आय वाले देशों में महिलाओं के लिए चिंता का कारण बन रही हैं। इसको सुधारने के लिए, चिकित्सा पाठ्यक्रम में कार्डियो-प्रसूति विज्ञान को जोड़ने और हृदय रोग विशेषज्ञों, प्रसूति विशेषज्ञों, एनेस्थेटिस्टों और नियोनेटोलाजिस्टों के बीच बेहतर सहयोग की जरूरत है।

इस विषय पर कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (सीएसआईI) और फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसाइटीज ऑफ इंडिया (फग्सीI) ने मिलकर एक सम्मेलन आयोजित किया। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कार्डियो-प्रसूति विशेषज्ञता को बढ़ावा दिया जाए, तो इससे हृदय रोग से पीड़ित महिलाओं के लिए सुरक्षित गर्भावस्था सुनिश्चित की जा सकती है और कई जानें बचाई जा सकती हैं।


प्रोजेस्ट्रॉन हार्मोन पर नजर रखकर महिलाओं को दिल की बीमारी से बचाना संभव – प्रो. रूपाली खन्ना


 प्रोजेस्ट्रॉन हार्मोन पर नजर रखकर महिलाओं को दिल की बीमारी से बचाना संभव – प्रो. रूपाली खन्ना


 


कम उम्र की महिलाओं के दिल की बीमारी कोरोनरी आर्टरी डिजीज से बचाना संभव होगा। संजय गांधी पीजीआई की हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. रूपाली खन्ना ने 45 से कम उम्र की महिलाओं में दिल की बीमारी की आशंका बढ़ाने वाले कारणों का पता लगाने में कामयाबी हासिल की है। हृदय की बीमारी से ग्रस्त 99 युवा महिलाओं में कारण पता लगाने के लिए शोध किया   । इनमें 66  महिलाओं का कोरोनरी एंजियोग्राफी परीक्षण किया गया।  दो-तिहाई महिलाओं यानि 66 फीसदी   महिलाओं में सीएडी का पता चला है। इनमें  मधुमेह, उच्च सीरम ट्राइग्लिसराइड स्तर, कम प्रोजेस्टेरोन और कम इंसुलिन स्तर देखने को मिला। इस शोध से साबित हुआ कि डायबिटीज पर नियंत्रण और प्रोजेस्ट्रान हार्मोन का नियंत्रित रख कर दिल की बीमारी से बचा जा सकता है। प्रो. रूपाली ने बताया कि सीएडी में दिल की रक्त वाहिका में रुकावट आ जाती है जिससे एंजियोप्लास्टी कर खोला जाता है। देख गया है कि कुल महिलाओं में होने वाली सीएडी बीमारी 45 से कम आयु की 20 फीसदी होती है। इस शोध को इंडियन मेडिकल जर्नल आफ कार्डियोवेस्कुलर डिजीज इन वुमेन ने भी स्वीकार किया है।


 


गले की खराश करने वाला बैक्टीरिया बच्चे के दिल के माइट्रल वाल्व को कर सकता है खराब- प्रो. अंकित साहू

 

गले की खराश करने वाला बैक्टीरिया बच्चे के दिल के माइट्रल वाल्व को कर सकता है खराब- प्रो. अंकित साहू


 


  


बुखार  के साथ ही गले में यदि लगातार संक्रमण रहता है। इसके साथ ही यदि गले के अंदरूनी हिस्से में सूजन और जलन है तो सावधान। यह रूमेटिक बुखार के लक्षण हैं। इसमें पैर और चेहरे के साथ ही शरीर में सूजन बढ़ जाती है। गले में यह संक्रमण स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया के द्वारा होता है। यह दिल को गिरफ्त में ले लेता है ।   इसे रूमेटिक दिल की बीमारी (आरएचडी) कहते हैं। यदि लंबे समय तक यह परेशानी है तो सही समय पर सही इलाज से दिल को बचाया जा सकता है। पूरा एंटीबायोटिक का कोर्स डाक्टर के सालह से करना चाहिए।  संजय गांधी पीजीआई के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. अंकित साहू ने बताया कि यह बीमारी 5 से 15 साल के बच्चों को गिरफ्त में लेती है। बच्चों के दिल के वाल्व में सिकुड़न के साथ ही दिल कमजोर कर देती है। इस सिकुड़न से दिल के वाल्व में लीकेज हो जाता है। वाल्व का समुचित इलाज नहीं मिलने पर दिल की धड़कन अनियंत्रित हो जाती है। इससे दिल में खून के थक्के जमने के साथ ही लकवा या पैरालिसिस और दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। इसका इलाज बैलून वाल्वोप्लास्टी और ओपन हार्ट सर्जरी के जरिए संभव है। यह काफी किफायती है। भीड़भाड़ व अधिक जनसंख्या वाले इलाकों में रहने वाले बच्चे इस बीमारी की जद में ज्यादा आते हैं। यह बीमारी निम्न आय वर्ग के बच्चों में अधिक होती है। यदि इसका शुरूआती दौर में इलाज मिल जाए तो मरीज ठीक हो सकता है। कुछ बच्चों में वाल्व की दिक्कत जन्मजात होती है।


 


 


 


 


 




दिल को दुरुस्त रखना है तो सरसों के तेल का करें इस्तेमाल प्रोफेसर सत्येंद्र तिवारी

 

दिल को दुरूस्त रखना है सरसों का तेल करें इस्तेमाल-प्रो. सत्येंद्र तिवारी


संजय गांधी पीजीआई के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सत्येंद्र तिवारी ने बताया कि रिफाइंड तेल से बचना चाहिए। सरसो का तेल सबसे अधिक दिल के लिए ठीक है। इसमें ओमेगा थ्री और ओमेगा 6 फैटी एसिड होता है दिल को ठीक रखता है। सरसों के तेल में विटामिन ई और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो त्वचा को ऑक्सीडेटिव क्षति से बचाते हैं। सरसों के तेल में प्रोटीन, विटामिन, और मिनरल्स होते हैं, जो मांसपेशियों के विकास और रखरखाव के लिए ज़रूरी हैं। एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल, और एंटीवायरल गुण होते हैं। मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड होता है, जो सेहत के लिए फायदेमंद होता है। सरसों के तेल में बना खाना पचाने में आसान होता है और यह मेटाबॉलिज्म रेट को बढ़ाता है.

शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

बिजली निजीकरण से 77 हजार कर्मियों की नौकरी पर संकट

 

बिजली निजीकरण से 77 हजार कर्मियों की नौकरी पर संकट




लखनऊ। पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि. को निजी कम्पनियों को बेचे जाने के प्रदेश सरकार के प्रस्ताव पर मुखर हुई विद्युत कर्मचारी संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश ने आरोप लगाया है कि इन दो बिजली कम्पनियों का निजीकरण होने से 77 हजार कर्मियों की नौकरी जाएगी। समिति के संयोजक इंजीनियर शैलेन्द्र दुबे ने विश्ववार्ता ब्यूरो से बातचीत में कहा कि इन दो बिजली कम्पनियों गोरखपुर और वाराणणी क्षेत्र के 42 जिलों की बिजली व्यवस्था का निजीकरण होने के बाद बाकी बचे पावर कारपोरेशन में पदों में बढ़ोत्तरी की जाएगी, यह कहकर यूपी पावर कारपोरेशन प्रबंधन ने खुद यह स्वीकार कर लिया है कि निजीकण से कर्मचारियों की पदावनति और छंटनी होने वाली है।


उन्होंने कहा कि 50 हजार आउसोर्स कर्मचारी हैं और 27 हजार 400 नियमित कर्मचारी हैं। निजी कम्पनी द्वारा अधिग्रहण किये जाने के बाद यह 50 हजार आउटसोर्स कर्मचारी तो तत्काल निकाल दिये जाएंगे क्योंकि निजी कम्पनियां अपने कर्मचारी तैनात करेंगी। उन्होंने बताया कि इस निजीकरण से मुख्य अभियंता स्तर-एक के सात पद समाप्त हो जाएंगे। मुख्य अभियंता स्तर एक के तीन पद रिक्त हैं। इस तरह केवल तीन मुख्य अभियंता स्तर एक समायोजित हो सकेंगे और चार मुख्य अभियंता स्तर एक की पदावनति होगी और वह मुख्य अभियंता स्तर-दो पर पदावनत होंगे। इस प्रकार मुख्य अभियंता स्तर दो पर 29 अभियंता सरप्लस हो जाएंगे। मुख्य अभियंता स्तर दो के तीन पद रिक्त हैं इस तरह केवल तीन मुख्य अभियंता स्तर दो समायोजित हो सकेंगे और 26 मुख्य अभियंता पदावनत होकर अधीक्षण अभियंता हो जाएंगे।


50 हजार आउटसोर्स और 27 हजार 400 नियमित कर्मचारी होंगे प्रभावित


अधीक्षण अभियंता स्तर के 109 पद समाप्त होंगे और पदावनत होकर अधीक्षण अभियंता बनने वाले 26 लोगों को और जोड़ लिया जाए तो अधीक्षण अभियंता के पद पर 135 पद सरप्लस हो जाएंगे। बाकी बचे विद्युत वितरण निगमों में अधीक्षण अभियंता के केवल 39 पद रिक्त हैं इस तरह से 135 अधीक्षण अभियंताओं में से केवल 39 समायोजित हो सकेंगे। बाकी 96 अधीक्षण अभियंताओं को पदावनत कर अधिशासी अभियंता बना दिया जाएगा।


अधिशासी अभियंता के 362 पद समाप्त होंगे। 96 अधीक्षण अभियंता पदावनत होकर अधिशासी अभियंता बन जाएंगे और इस तरह अधिशासी अभियंता के 458 पद सरप्लस हो जाएंगे। बाकी बचे विद्युत निगमों में अधिशासी अभियंता स्तर पर शेष 47 पद रिक्त हैं, इन्हें समायोजित करने के बाद 411 अधिशासी अभियंता को पदावनत कर सहायक अभियंता बना दिया जाएगा।


सहायक अभियंता स्तर के 1016 पद समाप्त होंगे। 411 अधिशासी अभियंता पदावनत होकर सहायक अभियंता हो जाएंगे और इन्हें मिलाकर सहायक अभियंता के 1427 पद सरप्लस हो जाएंगे। बाकी बचे विद्युत निगमों में सहायक अभियंता के 295 पद रिक्त हैं इस तरह से 295 सहायक अभियंता

रविवार, 24 नवंबर 2024

नवजात दूध नहीं पी रहा है यह भी बीमारी का संकेत

 

यदि नवजात शिशु लगातार लंबे समय तक रोता है। चिड़चिड़ापन या ऐंठन जो दुलारने और आराम से ठीक नहीं होती है। उसके रोने की आवाज असामान्य होती है। तो यह बीमारी का संकेत हो सकता है। यह शिशु के पेट या शरीर में दर्द का संकेत हो सकता है। यह जानकारी डॉ. आकांक्षा ने दी।

वह पीजीआई के नियोनेटोलॉजी विभाग की ओर से संस्थान के एचजी खुराना सभागार में राष्ट्रीय नवजात सप्ताह और विश्व प्रीमैच्योरिटी दिवस समारोह को संबोधित कर रही थीं। डॉ. आंकक्षा ने कहा कि बच्चों की सेहत व खान-पान का खास खयाल रखें। यदि शिशु लगातार रो रहा है तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। यह दर्द शिशु को पेंट, सिर व शरीर के दूसरे अंग में हो सकता है। लगातार खांसी, उल्टी, दस्त, बुखार व सांस लेने संबंधी परेशानी को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। पीजीआई नियोनेटोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. कीर्ति नारंजे ने कहा कि यदि शिशु दूध नहीं पी रहा है यह भी बीमारी का संकेत है। बच्चे की भूख व चूसने की क्षमता कम या कमजोर होने पर डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. वीके पॉलीवाल ने कहा कि राष्ट्रीय नवजात सप्ताह और विश्व  प्रीमैच्योरिटी दिवस परिवारों के साथ सम्बन्ध को मजबूत करने का दिन है। बीमारी से ऊबरे बच्चों की अविश्वसनीय यात्राओं का जश्न मनाने के साथ-साथ नवजात स्वास्थ्य और प्रीमेच्योरिटी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विभाग की प्रतिबद्धता को प्रबल किया। कार्यक्रम में बायोस्टैटिस्टिक्स व स्वास्थ्य सूचना विज्ञान विभाग के डॉ. प्रभाकर मिश्रा, डॉ. दिशा, डॉ. साक्षी, डॉ. अनीता सिंह, डॉ. सुशील कुमार और डॉ. अभिषेक पॉल समेत अन्य डॉक्टर मौजूद रहे।


माता-पिता ने साझा किए अनुभव

कुछ माता-पिता ने अपनी भावनात्मक संस्मरण को साझा किया। जिसमें उन्होंने समय से पहले बच्चे के जन्म की चुनौतियों को याद किया। साथ ही असाधारण देखभाल और सहायता के लिए नियोनेटोलॉजी के डॉक्टर व उनकी टीम के प्रति आभार जाहिर किया। गोंडा की सुनीता ने बताया कि वह अपने सात माह पर जन्म शिशु को लेकर पीजीआई आई थी। डॉक्टरों ने कड़ी मेहनत कर शिशु को नया जीवन दिया। जन्म से वह बेहद कमजोर था। उसे पीलिया हो गया था। सांस लेने में भी तकलीफ थी।