सोमवार, 9 दिसंबर 2024
आंख बताएगी दिल का हाल
आंखें बताएंगी दिल का हाल, रेटिना की जांच से पता चलेगा हृदय रोग का खतरा
एसजीपीजीआइ में देश की पहली एआइ आधारित आक्टा मशीन से होगी रेटिना की जांच
लखनऊ: एक साधारण सी आंखों की जांच दिल की बीमारी के खतरे को बताएगी। किसी व्यक्ति को हृदय रोग का खतरा कितना है, इस जांच से पता चल सकेगा। संजय गांधी पीजीआइ के विशेषज्ञ आर्टिफिशियल इंटलीजेंस (एआइ) आधारित आक्टा मशीन से रेटिना की स्कैनिंग कर दिल धमनियों में ब्लाकेज का पता लगाएंगे। इससे रोगियों के छोटे ब्लाकेज को दवाओं से खत्म करने में मदद मिलेगी। संस्थान में कार्डियोलाजी विभाग के प्रो. नवीन गर्ग और नेत्र रोग विभाग के प्रमुख प्रो. विकास कनौजिया ने इस पर शोध भी शुरू किया है, जिसके शुरुआती परिणाम अच्छे आ रहे हैं। शोध के बाद ब्लाकेज से बचाव और जागरूकता के लिए नई गाइडलाइन बनाने की तैयारी है।
प्रो. नवीन गर्ग ने बताया कि संस्थान के नेत्र रोग विभाग में करीब डेढ़ करोड़ कीमत की आधुनिक एआइ आक्टा मशीन लगाई गई है। इसकी खास बात है कि सामान्य मशीन के मुकाबले रेटिना की सटीक जांच हो सकेगी। मशीन में रोगी की आंखें लगाने के कुछ सेकेंड में रेटिना के आकार और नसों के बदलाव की पूरी रिपोर्ट मिल जाएगी। रिपोर्ट के जरिए दिल की धमनियों के ब्लाकेज की सही जानकारी मिलेगी। दरअसल, शरीर में रक्त संचार घटने पर या पर्याप्त न होने पर इसका असर आंखों के रेटिना की कोशिकाओं पर भी होता है। इसकी जांच से भविष्य में हार्ट अटैक का खतरा कम किया जा सकेगा। आने वाले समय में इस मशीन की उपयोगिता तेजी से बढ़ेगी।
इन रोगियों पर शोध
प्रो. नवीन गर्ग के मुताबिक, संस्थान में एंजियोप्लास्टी करा चुके रोगियों को शोध में शामिल किया गया है। नेत्र रोग विभाग के प्रमुख डा. विकास कनौजिया की मदद से रोगियों की आंख एआई आधारित आप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी एंजियोग्राफी (आक्टा) मशीन से जांच कर रेटिना में बदलाव की जानकारी हासिल की जाएगी। रेटिना की जांच में जिन भी मरीजों में लक्षण दिखेगा, उन्हें हृदय रोग विशेषज्ञ देखेंगे।हालांकि, शोध में डायबिटीज और हाइपरटेंशन के रोगियों को शामिल नहीं किया जाएगा। प्रो. गर्ग का कहना है कि आमतौर पर जब तक कोई व्यक्ति हृदय रोग से नहीं जूझता, इससे जुड़ी जांचें नहीं कराना चाहता है। ऐसे में रेटिना की जांच मरीज की आंखों के साथ उसके दिल का हाल भी बता सकेगी। समय से हृदय रोगों का खतरा पता चलने पर दवा, खानपान और व्यायाम के जरिए इसे रोका जा सकेगा। ऐसे में कई मरीजों को एंजियोप्लास्टी की जरूरत नहीं पड़ेगी।
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