रक्त का थक्का बनने से रोक बचाया जाएगा दिल और दिमाग
थक्के बनने रोकना और रक्तस्राव का जोखिम रोकना है बड़ी चुनौती
संजय गांधी पीजीआई के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सत्येंद्र तिवारी ने बताया कि एक सत्र में रक्त के थक्के (थ्रोम्बोसिस) और इसके इलाज के नए तरीकों पर चर्चा हुई । थ्रोम्बोसिस रक्त वाहिकाओं में थक्के बनने की स्थिति को कहते हैं, जिससे रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है और हार्ट अटैक या ब्रेन स्ट्रोक जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
बताया कि थक्के बनने को रोकने और रक्तस्राव के जोखिम को कम करने के बीच संतुलन बनाए रखना हृदय रोगों के इलाज में एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने यह भी बताया कि जिन मरीजों को थक्के की दवाएं दी जा रही हैं, उन्हें नियमित फॉलोअप पर रहना चाहिए, ताकि डॉक्टर दवाओं की मात्रा को समय पर बदल सकें और दोनों जोखिम को कम किया जा सके।
बताया कि थ्रोम्बो एम्बोलिक घटनाओं के कारण दुनियाभर में होने वाली मौतों में एक तिहाई मामले होते हैं, जो नए उपचारों की आवश्यकता को और बढ़ा देते हैं। इस संदर्भ में, बिवालिरुडिन नामक दवा को हाल ही में प्रभावी पाया गया है। यह एंजियोप्लास्टी से गुजरने वाले मरीजों में थक्के को रोकने में हेपरिन से अधिक प्रभावी साबित हुआ है।
इसके अलावा, उच्च रक्तस्राव वाले मरीजों के लिए कम समय तक एंटीप्लेटलेट थेरेपी कारगर हो सकती है। एंजियोप्लास्टी के बाद क्लोपिडोग्रेल और एस्पिरिन के सुरक्षित विकल्प के रूप में उभरे हैं। एंटी थ्रोम्बोटिक थेरेपी में बदलाव की आवश्यकता है ताकि मरीजों को सबसे अच्छा इलाज मिल सके और रक्तस्राव का जोखिम कम किया जा सके।
प्रो. रूपाली खन्ना ने बताया कि एंटीप्लेटलेट और एंटीकोगुलेंट दवाओं के बारे में बताया कि रक्त के थक्के और रक्तस्राव दोनों को रोकने के लिए इस्तेमाल होती हैं। इनमें एस्पिरिन, क्लोपिडोग्रेल, डिपिरिडामोल और एब्सिक्सिमैब जैसी शक्तिशाली दवाएं शामिल हैं। इसके अलावा, वाल्व रिप्लेसमेंट कराने वाले मरीजों को अकेले मौखिक एंटीकोगुलेंट दवाएं पर्याप्त हो सकती हैं।, नई दवाओं और उपचारों की खोज से थक्के बनने और रक्तस्राव की समस्या से जूझ रहे मरीजों के लिए बेहतर समाधान मिल सकता है
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