शनिवार, 18 अप्रैल 2020

स्टेरायड लेने वाले हो सकते है कोरोना सुपर स्प्रेडर

स्टेरायड लेने वाले हो सकते है कोरोना सुपर स्प्रेडर

चालिस दिन बाद मिला संक्रमण जब पिता और बहन में हुए संक्रमित   
लंबे समय से ग्लूको कार्टिस्टेरायड दवा खा रहे लोगों में 14 दिन बाद भी हो सकती है संक्रमण की पुष्टि
कुमार संजय़। लखनऊ
 किसी दूसरी परेसानी के कारण यदि आप स्टेरायड( ग्लूको कार्टिकोस्टेराय़) दवा लंबे समय से रहे है जो आप को विशेष सावधानी बरतने की सलाह विशेषज्ञों को दी है। आप सुपर स्प्रेडर हो सकते हैं।  एक केस स्टडी के आधार पर कहा गया है कि संभव है कि 14 दिन भी आपको कोई परेशानी न हो और अपने नजदीक रहने वाले लोगों को संक्रमित कर दें। इस लिए शारिरिक दूरी का अच्छी तरह पालन करें। आटो इम्यून डिजीज से ग्रस्त एक 47 वर्षीय महिला लंबे समय से  इम्यूनो सप्रेसिव ग्लूकोकार्टोइकोड्स ले रही थी। इन्हे कोरोना संक्रमण की आशंका के साथ क्वारंटाइन किया गया। 14 दिन में कोई लक्षण नहीं आया। चालिस दिन बाद संक्रमण की पुष्टि हुई । इसी बीच महिला ने शहर छोड़ दिया। इसी बीच महिला के पिता और बहन में कोरोना के संक्रमण की पुष्टि हुई। इस केस के  बारे में क्नीकिल इम्यूनोलाजी मेडिकल जर्नल ने कहा है कि जो लोग किसी दूसरे परेशानी के कारण ग्लूकोकार्टोकोड्स ने रहे है उनमें कोराना वायरस के संपर्क के बाद  तय समय के काफी बाद लक्षण प्रकट हो सकते है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वायरस का  औसत लक्षण दिखने का  समय दो से 14  है।  अधिकतर मामलों में तीन से  सात दिन में लक्षण प्रकट हो जाते है लेकिन इस महिला में चालिस दिन बाद संक्रमण की पुष्टि हुई। इस महिला से घर के दो लोग संक्रमित हुए। विशेषज्ञो का कहना है कि यदि पिता और बहन में परशानी न होती तो शायद इस महिला में संक्रमण की पुष्टि नहीं होती क्यों कि लक्षण नहीं थे। स्टेरायड   लंबे समय से खाने वाले  लोगों में लक्षण दिखने और वायरस के मजबूत होने सा समय लंबा हो सकता है। इनसे सीओवीआईडी -19 का अतिरिक्त संचरण हो सकता है।
क्या है ग्लूकोकार्टकोस्टेराड
ग्लूकोकार्टोइकोड्स (कोर्टिसोलकोर्टिसोन और कॉर्टिकोस्टेरोन) कार्बोहाइड्रेटवसा और प्रोटीन चयापचय को क्रियाशील करता है   और नियंत्रित करते हैं।  इसे इम्यून सिस्टम की क्रिशा शीलता कम करने के लिए विशेषज्ञ तमाम दूसरी बीमारियों में करते हैं।
कैसे बनते है सुपर स्प्रेडर

क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट एंड रूमैटोलाजिस्ट पीजीआइ के एल्यूमिनाई डा. स्कंद शुक्ला के मुताबिक  सुपरस्प्रेडर बनने में व्यक्ति का अपना प्रतिरक्षा-तन्त्र और विषाणु की भी सहभूमिका होती है। सुपरस्प्रेडर अधिक विषाणु-कणों को छोड़ा करते हैं क्योंकि उनका प्रतिरक्षा-तन्त्र कमज़ोर होता है। इनमें लक्षण कम या न-के-बराबर होते हैं इस कारण ये अपना काम-काज समाज में जारी रखते हैं। कमज़ोर प्रतिरक्षा-तन्त्र के कारण इनकी कोशिकाओं के भीतर विषाणु ढेर सारी प्रतिलिपियाँ बना रहा होता है।

कौन है सुपर स्प्रेडर
एक गृहिणी-सुपरस्प्रेडर कम लोगों को संक्रमित कर सकती है। एक डॉक्टर-सुपरस्प्रेडर ढेर सारे लोगों को एवं एक अन्तरराष्ट्रीय व्यापारी-सुपरस्प्रेडर और भी ढेर-सारे लोगों को। सुपरस्प्रेडर केवल कोविड-19 में ही होते हों ऐसा नहीं है। अनेक संक्रमणों में इनकी पुष्टि पहले भी हो चुकी है। 20फीसदी  लोग समाज में 80 फीसदी  रोगियों को जन्म देते हैं । सभी रोगी समाज में एक-बराबर बीमारी नहीं बाँट रहे होते।

इन्हे नहीं होता पता
इन-सब जानकारियों के बावजूद सुपरस्प्रेडर-जनों को बहुधा यह नहीं पता होता कि वे समाज के लिए कितने ख़तरनाक हैं। सुपरस्प्रेडर बनने या होने में उनका कोई दोष नहीं है। किन्तु वे समाज के प्रति उतना उत्तदायित्व ज़रूर निभाएँ जितना हर समझदार व्यक्ति निभा रहा है और उससे अपेक्षा की जाती है। लोगों से दूरी रखनाअकारण मिलना-मिलाना नहीं।

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