हर पल अपने को खतरे में डाल कर आप के लिए कर रहे है कोरोना से सामना
बिना लक्षण के भी कोरोना पाजिटिव ट्रेंड थोड़ा डर तो पैदा करता ही है
हर दिन हर पल डर के साये में हम लोग लोगों की जिंदगी के लिए अपने को दांव पर लगाए है। 23 अप्रैल को जांच शुरू हुई थी आज एक महीना हो गया है। घर नहीं गए है। जब तक जांच चलेगी शायद घर जाना नहीं होगा। संजय गांधी पीजीआइ के माइक्रोबायलोजी विभाग के कोरोना जांच टीम के लोगों का कहना है कि हम लोग क्वंरटाइन होने के बाद जब घर जाएंगे तो भी परिवार को संक्रमण का खतरा लग रहा है क्योंकि देखने में आ रहा है 50 से 60 फीसदी लोगों में लक्षण न होने के बाद कोरोना पाजिटिव आ रहा है। हम लोग 14 दिन क्वरटाइन रहेंगे जांच भी निगेटिव आ जाएगी लेकिन खतरा तो 14 दिन बाद भी है। टेक्निकल आफीसर वीके मिश्रा, टेक्नोलाजिस्ट हेमंत वर्मा, डा. धर्मवीर सिंह, डा. अकिता पाण्डेय, डा. जसमीत, डा. संजय सिंह, डा. सौरभ मिश्रा और सीनियर रिसर्च फेलो श्रुति शुक्ला विभाग की कोर टीम है जो 24 घंटे काम कर रही है। यह लोग आपस में ताल मेल बना कर थोडा रेस्ट भी कर लेते हैं। टीम में शामिल वीके मिश्रा, हेमंत और धर्मवीर कहते है कि हम लोगों ने 2009 में पहली बार स्वाइन फ्लू आया तो जांच पहली बार शुरू किया । यह भी आरएनए वायरस था जिसका अनुभव कोरोना में काम आया। विभाग की प्रमुख उज्वला घोषाल न हर स्तर पर हम लोगों का मनोबल बढाया जिसके कारण हम लोग सब कुछ भूल कर अपने काम को अंजाम दे रहे है लेकिन नए एसिम्पोटोमेटिक ट्रेंड को देख कर थोडा तो डर लगता ही है।
रोज 250 मरीजों की हो रही जांच
विभाग की प्रमुख प्रो.उज्वला घोषाल कहती है कि टीम भावना से काम होने के कारण हम रोज 250 से अधिक मरीजों के नमूनों की जांच कर रहे हैं। हमारे साथ विभाग डा. रूंगमी, डा. एसके मर्क, डा. चिन्मय साहू. डा अतुल गर्गस डा. संग्राम सिंह पटेल हर कदम साथ दे रहे हैं। औरया, शामली, कानपुर नगर, कानपुर देहात, रायबरेली, अंबेडकर नगर, अमेठी, बाराबंकी जिले के मरीजों के साथ वहां हेल्थ केयर वर्कर की जांच के नूमने हमारे पास आ रहे हैं।
जरा सी चूक पड़ सकती है भारी
टीम के लोगो का कहना है कि जांच के दौरान पूरी सावधानी बरतनी होती है जरा सी चूक संक्रमण का कारण बन सकता है। पूरी तरह से कवर होने के बाद नमूने आरएनए को अलग करना फिर पीसीआऱ से उसकी संख्या बढाना फिर उसमें कोरोना बैंड देख कर रिपोर्ट करना बडा टास्क होता है। जांच में जरा सी चूक भी मरीज के लिए मानसिक परेशानी खडी कर सकता है जो रिपोर्ट की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है।
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