गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

बायो मार्कर बताएगा कितनी होगी कोरोना संक्रमित में गंभीर परेशानी

बायो मार्कर बताएगा कितनी होगी कोरोना संक्रमित में गंभीर परेशानी



कोशिकाओं की संख्या बताएगी कितना गंभीर होगा कोरोना

एनएलआर के आधार पर काफी पहले लगता है आंदाजा

सामान्य पैथोलाजी में 40 रूपए में जांच है संभव

कुमार संजय़। लखनऊ  

कोरोना संक्रमित मरीज में गंभीरता कितनी अधिक होगी इसका अंदाजा काफी पहले लगाया जा सकता है। गंभीरता को खास कोशिकाओं की संख्या के आधार पर भांपा जा सकेगा। यह खास कोशिकाएं है न्यूट्रोफिल और लिम्फोसाइट । यह दोनों कोशिकाएं शरीर के इम्यून सिस्सटम में अहम भूमिका निभाती है। विशेषज्ञों ने साबित किया है कि इस बायो मार्कर को  एनएलआर( न्यूट्रोफिल लिम्फोसाइट रेसिओ) नाम दिया है। इस जांच के लिए खर्च 40 से 50 रूपया है । सामान्य पैथोलाजी में भी बल्ड पिक्चर जांच होती है वह भी यह जांच कर सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक  न्यूट्रोफिल और लिम्फोसाइट की संख्या के आधार पर अनुपात निकाला जाता है। देखा गया है कि एनएलआर बढा है तो मरीजों में बीमारी की गंभीरता बढ़ सकती है । गंभीरता को भांप कर पहले से एहितायत बरत कर  परेशानी को कम करने की योजना पर काम किया जा सकता है। इस जांच के लिए केवल दो मिली रक्त की जरूरत होती है। इंटरनेशनल इम्यूनो फार्माकोलाजी जर्नल के शोध रिपोर्ट के मूताबिक विशेषज्ञों ने द डायग्नोस्टिक एंड प्रिडेक्टिव रोल आफ एलएलआर( न्यूट्रोफिल लिम्फोसाइट रेसिओ, पीएलआर( प्लेटलेट्स लिफ्मोसाइट रेसिओ) , लिम्फोसाइट मोनासाइट रेसिओ विषय़ पर शोध 93 कोरोना संक्रमित मरीजों पर किया। इनमें 83.8 फीसदी में बुखार और 70.9 कफ सामान्य लक्षण पाया गया। देखा कि जिन मरीजों में एलएलआर बढा था उनमें बीमारी की गभीरता अधिक हुई। उनमें सांस लेने में परेशानी के आलावा दूसरी परेशानी दूसरे मरीजों के मुकाबले अधिक देखी गयी। विशेषज्ञों का कहना है कि इसका उम्र से भी संबंध देखा गया जिनकी उम्र अधिक थी उनमें यह बढा हुआ था। इस बायोमार्कर की दक्षता 88 फीसदी तक बतायी गयी है यानि यह बायो मार्कर 88 फीसदी मामले में सटीक जानकारी देता है।



छोटे अस्पताल में भी संभव होगा यह जांच

संजय गांधी पीजीआइ के क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट एंड रूमैटोलाजिस्ट प्रो. विकास अग्रवाल और एसोसिएशन आफ पैथोलाजिस्ट एंड माइक्रोबायलोजिस्ट के अध्यक्ष डा. पीके गुप्ता कहते है कि यह बायोमार्कर उन मरीजों के कारगर साबित होगा जो जिलों और सामान्य अस्पताल में भर्ती है उनमें स्थित की गंभीरता का अंदाजा लगा कर योजना बनाने में मदद मिलेगी।      





क्या एनएलआर

कुल न्यूट्रोफिल की कुल संख्या को लिम्फोसाइट की कुल संख्या से भाग दिया जाता है जो परिणाम आता है उसे एलएलआर कहते हैं।    

रविवार, 26 अप्रैल 2020

कोरोना वायरस फेफड़े के साथ गुर्दे को कर सकता है बीमार किडनी की परेशानी के कारण भी हो सकती है-- सांस लेने में परेशानी

कोरोना वायरस फेफड़े के साथ गुर्दे को कर सकता है बीमार


किडनी  की परेशानी के कारण भी  हो सकती है सांस लेने में परेशानी 

-खून व पेशाब की जांच में सीरम क्रिटनिन, प्रोटीन और रक्त कणिकाओं की
मात्रा अधिक 

कुमार संजय। लखनऊ
कोरोना वायरस का संक्रमण सिर्फ फेफड़े तक ही सीमित नहीं है। यह गुर्दे के
लिए भी घातक है। कोरोना संक्रमित मरीज के गुर्दे भी परेशानी हो सकती है। 
गुर्दा मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। किडनी के परेशानी के कारण सांस फूलने की भी परेशानी हो सकती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोरोना संक्रमण है। हम लोगों के पास कई मामले ऐसे भी आए जिनमें सांस लेने की परेशानी के साथ , बुखार की परेशानी थी लेकिन कोरोना निगेटिव आया है। इस लिए किडनी की परेशानी है और सांस लेने में परेशानी है तो परेशान न हो केवल एहतियात बरतें।  कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों पर शोध हुआ तो देखा गया कि   मरीजों में सीरम क्रिटनिन के साथ ही कई खून की जांचें गड़बड़ मिली। शोध पत्र इंटरनेशनल किडनी जर्नलमें प्रकाशित हुआ है। यह जर्नल इंडियन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी का है।
100 मरीजों पर हुआ शोध
इंडियन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के सचिव व पीजीआई के वरिष्ठ नेफ्रोलॉजिस्ट
प्रो. नारायण प्रसाद बताते हैं कि कोरोना वायरस से पीड़ित चीन और ताइवान के
करीब 100 मरीजों पर शोध किया गया। इंडियन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के सदस्य
और गुर्दा विशेषज्ञों इनकी खून और पेशाब की जांच से लेकर दूसरी अन्य
जांचों का अध्ययन किया गया। जिसमें पाया गया है कि कोरोना का फेफड़े को
सक्रमण की गिरफ्त में लेने के साथ ही गुर्दे की सेहत बिगाड़ रहा है।
इनमें से 15 फीसदी पीड़ितों में सीरम क्रिटनिन बढ़ा हुआ पाया गया। इसके
अलावा इनमें 50 प्रतिशत मरीजों में प्रोटीन की मात्रा अधिक मिली। 26
प्रतिशत मरीजों में लाल रक्त कणिकाएं बढ़ी हुई पायी गईं।


भीड़भाड़ की जगहों में जाने से बचें

प्रो. नारायण प्रसाद बताते हैं कि किडनी की बीमारी से पीड़ित मरीज बाजार
आदि भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें। मुंह में मास्क का प्रयोग
करें। दिन में कई बार हाथ धुलें। सेनेटाइज करें। खुद के साथ ही अपने
आसपास भी साफ सफाई रखें। बाहर के खानपान की चीजों से परहेज करें।

यह रहें सतर्कं

गुर्दे की बीमारी से पीड़ित मरीज जो इलाज कराने के साथ ही डायलिसिस और
गुर्दा प्रत्यारोपण करा चुके लोग सावधानी बरतें। इसके अलावा 60 साल से
अधिक उम्र के लोग खासतौर पर सतर्क रहें। उम्र बढ़ने के साथ ही इनके शरीर
की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। सर्दी, जुखाम, खांसी व बुखार आने पर
डॉक्टर की सलाह लें।

दिमाग और त्वचा पर भी असर दिखा रहा है कोरोना

डब्लूएचओ ने नए लक्षणों के लेकर किया सचेत


दिमाग और त्वचा पर भी असर दिखा रहा है कोरोना
 सिरदर्दबोलते-बोलते सुध-बुध खो देनापेट में दर्द और दिमाग में खून के थक्के जमना
कुमार संजय। लखनऊ
कोरोना महामारी की शुरुआत में विश्व स्वास्थ्य संगठन और सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने इसके लक्षणों पर एडवाइजरी जारी की थी। जिसके मुताबिकबुखारसांस लेने में तकलीफखांसीसीने में तेज दर्दचेहरा या होंठ नीला पड़नासंक्रमण का लक्षण था। लेकिन पिछले महीने में जो मामने सामने आए उसमें कई और लक्षण सामने आएइसे समझना बेहद जरूरी है। अब पेट में दर्द महसूस होनागंध या स्वाद का पता न चलनालगातार सिरदर्द महसूसपैर में जामुनी रंग का घाव होने पर इसे नजरअंदाज न करें और डॉक्टरी सलाह लें। विशेषज्ञों का कहना है कि आमतौर पर चिकनपॉक्स में पैरों पर दिखने वाला जामुनी रंग का घाव भी कोरोना संक्रमण का एक लक्षण हो सकता है। कोरोना पॉजिटिव पाए गएजिनके अंगूठे में गहरे घाव थे। ये लक्षण खासतौर पर बच्चों और किशोरों में देखे गए। दुनियाभर में जितनी तेजी से कोरोनावायरस के संक्रमण का दायरा बढ़ रहा हैउतना ही लक्षणों में भी बदलाव आ रहा है। दुनियाभर के देशों में हुई रिसर्च के मुताबिकपिछले 4 महीने के अंदर कोरोना के 15 से ज्यादा नए लक्षण देखे गए हैं। सबसे खास बात है कि ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है जिसमें कोरोना के वे आम लक्षण नहीं दिखाई देते जैसे बुखारमांसपेशियों में अकड़न और सांस में तकलीफ। संक्रमण की शुरुआत में ही ऐसे बदलाव दिखाई दे रहे हैं जिसे लोग संक्रमण का इशारा नहीं समझ पा रहे जैसे सिरदर्दबोलते-बोलते सुध-बुध खो देनापेट में दर्दडायरिया और दिमाग में खून के थक्के जमना

केस-1 : पहले पैर में गहरे रंग का घाव फिर शरीर में खुजली और अकड़न
पैरों में गहरे रंग का घाव जैसा था जिसे मकड़ी के काटने का निशान मना गया। घाव बढ़ने पर दो दिन बादबुखारसिरदर्दशरीर में खुजलीघाव पर जलनमांसपेशियों में दर्द के लक्षण दिखे।
केस-2 : फूड पॉइजनिंग से संक्रमण का इशारा
50 फीसदी कोरोना मरीजों में पेट में दर्दउल्टी और डायरिया जैसे लक्षण देखे गए। अमेरिकन जर्नल ऑफ गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी में प्रकाशित शोध के मुताबिक 204 मरीजों पर हुई रिसर्च में इसकी पुष्टि हुई है। एक मरीज ने बताया कि पेट में अजीब किस्म का दर्द महसूस हुआ।  एक दिन सुबह उठी तो लगा कि फूड पॉइजनिंग हुई है। कुछ घंटों बाद गले में सूजन और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण दिखे। रात तक नाक पूरी बंद हो चुकी थी। शरीर में अकड़न हो रही थी और काफी भारीपन महसूस होने के साथ बुखार चढ़ रहा था।

केस-3 : बोलते-बोलते सुध-बुध खोई और नाम तक नहीं बता पाया मरीज
50 साल की एक महिला को कोरोना का संक्रमण हुआ। जब ब्रेन स्कैनिंग की गई तो सामने आया कि दिमाग के कई हिस्सों अलग तरह की सूजन है। दिमाग के एक हिस्से की कुछ कोशिकाएं डैमेज होकर खत्म हो गई थीं।  ब्रेन स्ट्रोकदिमागी दौरेएन्सेफेलाइटिस के लक्षणदिमाग में खून के थक्के जमनासुन्न हो जाना जैसी स्थिति शामिल हैं। कुछ मामलों में कोरोना का मरीज बुखार और सांस में तकलीफ जैसे लक्षण दिखने से पहले ही बेसुध हो जाता है।

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

हर पल अपने को खतरे में डाल कर आप के लिए कर रहे है कोरोना से सामना




हर पल अपने को खतरे में डाल कर आप के लिए कर रहे है कोरोना से सामना



 बिना लक्षण के भी कोरोना पाजिटिव ट्रेंड थोड़ा डर तो पैदा करता ही है 

हर दिन हर पल  डर के साये में हम लोग लोगों की जिंदगी के लिए अपने को दांव पर लगाए है। 23 अप्रैल को जांच शुरू हुई थी आज एक महीना हो गया है। घर नहीं गए है। जब तक जांच चलेगी शायद घर जाना नहीं होगा।  संजय गांधी पीजीआइ के माइक्रोबायलोजी विभाग के कोरोना जांच टीम के लोगों का कहना है कि हम लोग क्वंरटाइन होने के बाद जब घर जाएंगे तो भी परिवार को संक्रमण का खतरा लग रहा है क्योंकि देखने में आ रहा है 50 से 60 फीसदी लोगों में लक्षण न होने के बाद कोरोना पाजिटिव आ रहा है। हम लोग 14 दिन क्वरटाइन रहेंगे जांच भी निगेटिव आ जाएगी लेकिन खतरा तो 14 दिन बाद भी है। टेक्निकल आफीसर वीके मिश्रा, टेक्नोलाजिस्ट हेमंत वर्मा, डा. धर्मवीर सिंह, डा. अकिता पाण्डेय, डा. जसमीत, डा. संजय सिंह, डा. सौरभ मिश्रा और सीनियर रिसर्च फेलो श्रुति शुक्ला विभाग की कोर टीम है जो 24 घंटे काम कर रही है। यह लोग आपस में ताल मेल बना कर थोडा रेस्ट भी कर लेते हैं। टीम में शामिल वीके मिश्रा, हेमंत और धर्मवीर कहते है कि हम लोगों ने 2009 में पहली बार स्वाइन फ्लू आया  तो जांच पहली बार शुरू किया । यह भी आरएनए वायरस था जिसका अनुभव कोरोना में काम आया।  विभाग की प्रमुख उज्वला घोषाल न हर स्तर पर हम लोगों का मनोबल बढाया जिसके कारण हम लोग सब कुछ भूल कर अपने काम को अंजाम दे रहे है लेकिन नए एसिम्पोटोमेटिक ट्रेंड को देख कर थोडा तो डर लगता ही है। 

रोज 250 मरीजों की हो रही जांच
 विभाग की प्रमुख प्रो.उज्वला घोषाल कहती है कि टीम भावना से काम होने के कारण हम रोज 250 से अधिक मरीजों के नमूनों की जांच कर रहे हैं। हमारे साथ विभाग  डा. रूंगमी, डा. एसके मर्क, डा. चिन्मय साहू. डा अतुल गर्गस डा. संग्राम सिंह पटेल हर कदम साथ दे रहे हैं।  औरया, शामली, कानपुर नगर, कानपुर देहात, रायबरेली, अंबेडकर नगर, अमेठी, बाराबंकी जिले के मरीजों के साथ वहां हेल्थ केयर वर्कर की जांच के नूमने हमारे पास आ रहे हैं। 



जरा सी चूक पड़ सकती है भारी
टीम के लोगो का कहना है कि जांच के दौरान पूरी सावधानी बरतनी होती है जरा सी चूक संक्रमण का कारण बन सकता है। पूरी तरह से कवर होने के बाद नमूने आरएनए को अलग करना फिर पीसीआऱ से उसकी संख्या बढाना फिर उसमें कोरोना बैंड देख कर रिपोर्ट करना बडा टास्क होता है। जांच में जरा सी चूक भी मरीज के लिए मानसिक परेशानी खडी कर सकता है जो रिपोर्ट की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है।   

पारा थामने वाली दवा पर कोरोना नहीं पडेगा भारी - बिना डाक्टर के सलाह न बंद करे बीपी की दवा

पारा थामने वाली  दवा पर कोरोना नहीं पडेगा भारी

एसीई इंहिबिटर दवाओं  से कोरोना के संक्रमण की आशंका पर लगा ब्रेक

 बिना डाक्टर के सलाह न बंद करे बीपी की दवा

  कुमार संजय़। लखनऊ

पारा थामने वाली दवा  एसीई( एंजियो टेंसिन कनर्टिंग एजाइम) इंहिबिटर दवाएं खाने से कोरोना वायरस के संक्रमण की आशंका को विशेषज्ञों ने खारिज कर दिया है। इस रसायन वाली दवाओं का हाई बीपी से 50 से 60 मरीज इस्तेमाल करते है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस दवा के बंद करने से कई तरह की परेशानी हो सकती है। इस लिए इस दवा को बीपी जो मरीज लेना बंद न करें। हृय रोग विशेषज्ञों के मुताबिक  कुछ दिन  शोध पत्रों में कहा गया था कि ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने वाली दवा  एसीई इनहैबिटर दवाओं के खाने से संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। इस शोध पत्र के आने के बाद दिल,किडनी ,शुगर के मरीजों में रक्त दाब नियंत्रित करने के लिए डाक्टर विकल्पों पर विचार करने लगे थे। सबसे बडी परेशानी थी कि एक दम दवा बदलने से यदि बीपी कंट्रोल न हुआ तो मरीजों के ब्रेन स्ट्रोक सहित दूसरी परेशानी हो सकती है। इसी बीच राहतदेने वाली खबर दूसरे शोध पत्रों में आयी जिसमें कहा गया कि शुरूआती दौर के शोध में जो तथ्य दिया गया उस पर शोध किया गया तो देखा गया कि इससे कोई नुकसान नहीं है। यह एडाप्टिव इम्युनिटी को सप्रेस करता है जिससे वायरल इंफेक्शन के चांस कम हो होते है। इसी तरह के एडाप्टिव इम्यून रिसपांस स्टेरायड विहीन एंटी इंफलामेंटरी दवाओं में देखा गया है।
बाक्स
संजय गांधी पीजीआई के हृदय रोग विशेषज्ञ न्यू इंग्लैंड मेडिकल जर्नल और यूरोपियन सोसाइटी आफ हाइपरटेंशन के गाइड लाइन का हवाले देते हुए कहते है कि  हाई रिस्क वाले दिल के मरीज जैसे हार्ट फेल्योरबीपी के मरीजमायोकार्डियल इंफ्रैक्सन के मरीजों में एसीई इन हैबिटर दवा बंद करने से मरीजों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए जब और अधिक कोरोना मरीजों पर शोध न हो जाएतब इसे बंद करने की जरूरत नहीं है।



 कैसे काम करती है यह



विशेषज्ञों के मुताबिक  एंजियोटेंनसिन 2 नामक का यह रसायन रक्त प्रवाह के जरिए नसों में दौड़ता है । यह रक्त वाहिकाअों को पतला कर देता है जिससे रक्त संचार बाधित होने लगता है। शरीर में रक्त संचार बढाने के लिए दिल को अधिक प्रेशर देना पड़ता है जिसके कारण ही ब्लड प्रेशर बढ़ जात है। एंजियोटेंसिन 2 लिवर में स्वतः बनने वाले एंजियोटेंसिन -1 के जरिए एंजियो टेंसिन कनवर्टिंग एजाइम की सहायता से बनता है। एसीई इनबैहिटर दवाएं एंजियोटेंसिन कनवर्टिंग एजाइम की क्रियाशलीत को कम करती है जिससे एंजियोटेंनसिन2 रसायन बनने की मात्रा कम हो जाती है। इससे  रक्त वाहिकाएं समान्य होने लगती है ।सिकुडन कम हो जाता है । रक्त प्रवाह सामान्य हो जाता है। इससे बीपी कम होता है।

शनिवार, 18 अप्रैल 2020

कोरोना स्टेप्स बनेगा सुरक्षा कवच- हेल्थ केयर वर्कर में रहती है संक्रमण की आशंका

कोरोना स्टेप्स  बनेगा सुरक्षा कवच

हेल्थ केयर वर्कर  में रहती है संक्रमण की आशंका   

इनटरनेशनल स्तर पर जारी हुई गाइड लाइन

कुमार संजय। लखनऊ

कोरोना वायरस के संक्रमण की आशंका उनकी जिंदगी बचाने के लिए लगे डाक्टर, नर्सेज सबसे अधिक होती है। तमाम शोध में देखा गया है कि 10 फीसदी हेल्थ केयर वर्कर जिसमें डाक्टर, नर्सेज अन्य नजदीक रहने वाले संक्रमित हुए है। इनके बचाव के लिए कोरोना केयर टिप्स जारी की गयी है। विशेषज्ञों का कहना है कि वेंटीलेटर लगाने के लिए ट्रेकीयोस्टोमी किया जाता है गले में स्थित ट्रेकिया में कट लगा कर वेंटीलेटर से जुंडी ट्यूब लगायी जाती है। वेंटीलर लगाने के लिए मुंह में ट्यूब डाला जाता है।  इस दौरान गले से वायरस अधिक मात्रा में निकलने की आशंका रहती है। इस दौरान विशेष सावधानी की जरूरत होती है। इटरनेशनल मेडिकल जर्नल ओरल आंकोलाजी में विशेषज्ञों ने पूरी गाइड लाइन जारी की है। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रेकियोस्टोमी एक व्यापक रूप से प्रचलित और बतायी गयी सर्जिकल तकनीक है लेकिन वर्तमान के किसी भी रिपोर्ट में कोविद 19  पाजिटिव  रोगियों में इस प्रक्रिया के सुरक्षित तरीके से  और प्रबंधन पर गाइड लाइन नहीं थी जिसके कारण  कोरोना-स्टेप्स के जरिए  पॉजिटिव रोगियों में ट्रेकियोस्टोमी प्रबंधन के लिए एक सुरक्षित विधि का विस्तार करना और लोगों को जानकारी देना है। 

 

कोरोना स्टेप्स से मिलेगी सुरक्षा

 

 रिसर्च सोसाइटी आफ एनेस्थेसिया एंड फार्माकोलाजी के प्रदेश सचिव प्रो.संदीप साहू ने इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल ओरल आंकोलाजी का हवाला देते हुए बताया कि  मुताबिक ब्रांकोस्कोपी, वेंटीलेटर लगाने के लिए मुंह में ट्यूब डालने के साथ  ट्रेकियोस्टोमी यानि गले में छेड कर ट्यूब ( केनुला) डालने के दौरान संक्रमण की आशंका रहती है। इस दौरान  सुरक्षित रहने की जनकारी कोरोना स्टेप्स  उन  लोगों को मिलेगी जो दूर –दराज इलाके में हेल्थ वर्कर है।

स्टेरायड लेने वाले हो सकते है कोरोना सुपर स्प्रेडर

स्टेरायड लेने वाले हो सकते है कोरोना सुपर स्प्रेडर

चालिस दिन बाद मिला संक्रमण जब पिता और बहन में हुए संक्रमित   
लंबे समय से ग्लूको कार्टिस्टेरायड दवा खा रहे लोगों में 14 दिन बाद भी हो सकती है संक्रमण की पुष्टि
कुमार संजय़। लखनऊ
 किसी दूसरी परेसानी के कारण यदि आप स्टेरायड( ग्लूको कार्टिकोस्टेराय़) दवा लंबे समय से रहे है जो आप को विशेष सावधानी बरतने की सलाह विशेषज्ञों को दी है। आप सुपर स्प्रेडर हो सकते हैं।  एक केस स्टडी के आधार पर कहा गया है कि संभव है कि 14 दिन भी आपको कोई परेशानी न हो और अपने नजदीक रहने वाले लोगों को संक्रमित कर दें। इस लिए शारिरिक दूरी का अच्छी तरह पालन करें। आटो इम्यून डिजीज से ग्रस्त एक 47 वर्षीय महिला लंबे समय से  इम्यूनो सप्रेसिव ग्लूकोकार्टोइकोड्स ले रही थी। इन्हे कोरोना संक्रमण की आशंका के साथ क्वारंटाइन किया गया। 14 दिन में कोई लक्षण नहीं आया। चालिस दिन बाद संक्रमण की पुष्टि हुई । इसी बीच महिला ने शहर छोड़ दिया। इसी बीच महिला के पिता और बहन में कोरोना के संक्रमण की पुष्टि हुई। इस केस के  बारे में क्नीकिल इम्यूनोलाजी मेडिकल जर्नल ने कहा है कि जो लोग किसी दूसरे परेशानी के कारण ग्लूकोकार्टोकोड्स ने रहे है उनमें कोराना वायरस के संपर्क के बाद  तय समय के काफी बाद लक्षण प्रकट हो सकते है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वायरस का  औसत लक्षण दिखने का  समय दो से 14  है।  अधिकतर मामलों में तीन से  सात दिन में लक्षण प्रकट हो जाते है लेकिन इस महिला में चालिस दिन बाद संक्रमण की पुष्टि हुई। इस महिला से घर के दो लोग संक्रमित हुए। विशेषज्ञो का कहना है कि यदि पिता और बहन में परशानी न होती तो शायद इस महिला में संक्रमण की पुष्टि नहीं होती क्यों कि लक्षण नहीं थे। स्टेरायड   लंबे समय से खाने वाले  लोगों में लक्षण दिखने और वायरस के मजबूत होने सा समय लंबा हो सकता है। इनसे सीओवीआईडी -19 का अतिरिक्त संचरण हो सकता है।
क्या है ग्लूकोकार्टकोस्टेराड
ग्लूकोकार्टोइकोड्स (कोर्टिसोलकोर्टिसोन और कॉर्टिकोस्टेरोन) कार्बोहाइड्रेटवसा और प्रोटीन चयापचय को क्रियाशील करता है   और नियंत्रित करते हैं।  इसे इम्यून सिस्टम की क्रिशा शीलता कम करने के लिए विशेषज्ञ तमाम दूसरी बीमारियों में करते हैं।
कैसे बनते है सुपर स्प्रेडर

क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट एंड रूमैटोलाजिस्ट पीजीआइ के एल्यूमिनाई डा. स्कंद शुक्ला के मुताबिक  सुपरस्प्रेडर बनने में व्यक्ति का अपना प्रतिरक्षा-तन्त्र और विषाणु की भी सहभूमिका होती है। सुपरस्प्रेडर अधिक विषाणु-कणों को छोड़ा करते हैं क्योंकि उनका प्रतिरक्षा-तन्त्र कमज़ोर होता है। इनमें लक्षण कम या न-के-बराबर होते हैं इस कारण ये अपना काम-काज समाज में जारी रखते हैं। कमज़ोर प्रतिरक्षा-तन्त्र के कारण इनकी कोशिकाओं के भीतर विषाणु ढेर सारी प्रतिलिपियाँ बना रहा होता है।

कौन है सुपर स्प्रेडर
एक गृहिणी-सुपरस्प्रेडर कम लोगों को संक्रमित कर सकती है। एक डॉक्टर-सुपरस्प्रेडर ढेर सारे लोगों को एवं एक अन्तरराष्ट्रीय व्यापारी-सुपरस्प्रेडर और भी ढेर-सारे लोगों को। सुपरस्प्रेडर केवल कोविड-19 में ही होते हों ऐसा नहीं है। अनेक संक्रमणों में इनकी पुष्टि पहले भी हो चुकी है। 20फीसदी  लोग समाज में 80 फीसदी  रोगियों को जन्म देते हैं । सभी रोगी समाज में एक-बराबर बीमारी नहीं बाँट रहे होते।

इन्हे नहीं होता पता
इन-सब जानकारियों के बावजूद सुपरस्प्रेडर-जनों को बहुधा यह नहीं पता होता कि वे समाज के लिए कितने ख़तरनाक हैं। सुपरस्प्रेडर बनने या होने में उनका कोई दोष नहीं है। किन्तु वे समाज के प्रति उतना उत्तदायित्व ज़रूर निभाएँ जितना हर समझदार व्यक्ति निभा रहा है और उससे अपेक्षा की जाती है। लोगों से दूरी रखनाअकारण मिलना-मिलाना नहीं।

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

पहरेदार ही कोरोना संक्रमित मरीजों को दे रहा है धोखा

 पहरेदार ही कोरोना संक्रमित मरीजों को दे रहा है धोखा



नए दुश्नमन को कमजोर कर बचाया जा सकते है कोरोना संक्रमित मरीज
 
एपला और वीटी की परेशानी दूर होने से कम होगी कोरोना संक्रमित की परेशानी  
  
 केस स्टडी जिसमें देखा कि संक्रमित मरीजों में  एंटी कार्डियोलिपिन और बीटी-टू जीपी वन का स्तर बढा मिला
 कुमार संजय़। लखनऊ
शरीर को बैक्टीरिया या वायरस के प्रहार से बचाने के लिए इम्यून सिस्टम काम करता है लेकिन कोरोना मरीजों में एक खास पहरे दार ही शरीर के कोशिकाओं का दुश्मन बन रहा है जिसके कारण संक्रमित मरीजों बीमारी की गंभीरता बढाने के साथ ही दूसरी परेशानियां खडी कर सकता है। इन दुश्मन का नाम एंटी फास्फोलिपिड एंटी बाडी(एपला) जो कोशिकाओं की सतह पर पाए फास्फोलिपिड के खिलाफ काम  करने लगता है । वैज्ञानिकों ने इस नए दुश्मन का पता लगाने के बाद सलाह दिया है कि इस दुश्मन पर भी नजर रख कर मरीजों को तमाम परेशानी से बचाया जा सकता है।
इसके कारण इससे खून के थक्के बनने की आशंका होती है। फेफडे की सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं सहित अन्य थक्के बनने से रक्त स्राव आशंका रहती है। शरीर में प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती जिससे डाक्टरी भाषा में थ्रम्बोसाइटोपिनिया कहते है। इस परेशानी के एंटी फास्फोलिपिड एंटी बाडी( एपला) सिंड्रोम कहते है। इसके कारण एंटी फास्फोलिपिड एंटी बाडी सिंड्रोम परेशानी हो जाती है।  इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल न्यू इंग्लैंड जर्नल आफ मेडिसिन में  कोगुलोपैथी एंड एंटी फास्फोलिपिड एंटी बाडी इन पेशेंट विथ कोविद-19 विशष पर जारी केस स्टडी में पर कहा है कि कोविद 19 के  मरीजों में इस एंटीबाडी के स्तर पर ही नजर रखनी होगी। शोध पत्र में विशेषज्ञों ने एंटी कार्डियोलिपिन एंटी बाडी-ए के साथ बीटा टू ग्लायकोप्रटीन आईजी-ए, आईजी-जी का स्तर बढा हुआ कुछ मरीजों में देखा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस एंटीबाडी का रोल अधिक मरीजों में मिलता है तो मैनेजमेंट से संभव है कि गंभीरता को कम किया जा सके।

क्या है एंटी फास्फोलिपिड एंटी बाडी सिंड्रोम
 एंटी बाडी  शरीर में रोगों से लड़ने वाला तंत्र (प्रतिरक्षा तंत्र) खून में मौजूद सामान्य प्रोटीन पर गलती से हमला करके उन्हें नष्ट करने लगता है जिसे एंटीफ़ॉस्फ़ोलिपिड सिंड्रोम (लक्षण) भी कहते है। इसके के कारण नसों और अंगों के भीतर खून के थक्के बन सकते हैं। अभी तय यह एंटी बाडी  गर्भवती महिलाओं में गर्भपात और बच्चे का मृत पैदा होने का कारण बनती थी लेकिन अब कोरोना मरीजों में बीमारी की गंभीरता बढाने वाला बताया गया है।

40 फीसदी में वेनस थ्रम्बोसिस की आशंका
इस शोध की पुष्टि एक और शोध पत्र इटरनेशनल मेडिकल जर्नल ने लांसेट ने एटेशन सुड बी पेड टू वेनस थ्रम्बोसिस प्रोफाइलेक्सिस इन मैनेजमेंट कोविद 19 में एक हजार से अधिक भर्ती होने वाले मरीजों में वेनस थ्रम्बोसिस(वीटी) की आशंका 40 फीसदी मरीजों मे देखी है। इस लिए इससे बचाव के लिए एहतियात पर शुरू से अमल करने को कहा है।

  क्या है वेनस थ्रम्बोसिस
इस परेशानी में वेन में खून का थक्का बनने लगता है जिसके कारण रक्त स्राव की आशंका रहती है। सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं में थक्का बनने से फट जाती है। फेफडे की नसों में थक्का बनता है तो इसे पल्मोनरी इंबोलिज्म , पैर में बनता है डीप वेन थ्रम्बोसिस कहते है।


खून पतला करने की दवाएं होती है कारगर
 पीजीआइ के क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट एंड रूमैटोलाजिस्ट प्रो. विकास कहते है कि एंटी फास्फोलिपिड सिंड्रोम और वेनस थ्रम्बोसिस  के लक्षणों में खून के थक्के बनना शामिल हैजो पैरोंबाहों या फेफड़ों में बन सकते हैं।  फेफड़ों में खून के थक्के या सांस फूलने की परेशानी होतीहै।  खून को पतला करने वाली दवाएं खून के थक्के बनने के जोखिम को कम कर सकती हैं।  


सोमवार, 13 अप्रैल 2020

नींद ले भरपूर कोरोना रहेगा दूर- प्रो जिया हाशिम

आपकी भरपूर नींद देगी कोरोना को नींद  


    
आठ घंटा नींद से शरीर में बनते है संक्रमणसे बचाने वाले साइटोकाइंस और टी सेल

सोशल मीडिया और टीवी उडा रही है नींद

कुमार संजय़ । लखनऊ  
 नींद न आने से थकान और मानसिक तनाव होने लगता है। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं अगर  इस  समय में पूरी नींद नहीं लेंगे तो हमारा प्रतिरोधी तंत्र कमजोर हो जाएगा जिससे संक्रमण होने की संभावना बढ़ सकती है।  लॉकडाउन के समय  शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में सात से आठ घंटे की नींद बहुत जरूरी है। देखा जा रहा है कि सोशल मीडिया पर लंबा समय बिता रहे है।  देर रात तक टीवी पर चिपके रहते है जिससे देर रात लोग सोते है। इससे इम्यून सिस्टम प्रभावित हो सकता है। इंडियन स्लीप सोसाइटी के फेलो और संजय गांधी पीजीआइ के पल्मोनरी मेडिसिन के विशेषज्ञ प्रो. जिया हाशिम के मुताबिक कोरोना एडवाइजरी में पूरी नींद को भी शामिल किया गया।  कोई व्यक्ति रात में छह घंटे से कम नींद लेता है तो उसे जुकाम होने की आशंका चार गुना बढ़ जाएगी। इसके पीछे कारण यह है कि नींद के शुरुआती एक तिहाई समय में शरीर का प्रतिरोधी तंत्र मजबूत होता है जो कि सर्दी जुकाम से बचाता है। कम से कम आठ घंटे नींद ले रहे हैं तो साइटोकिन्स और टी कोशिकाएं पर्याप्त मात्रा में पैदा होंगी और संक्रमण के प्रति आपकी शारीरिक क्षमता बढ़ेगी।


पूरी नींद से बनती है बीमारी से बचाने वाले टी सेल
शरीर में संक्रमण को नष्ट करने के लिए नींद सबसे जरूरी है। नींद के दौरान हमारे शरीर का प्रतिरोधी तंत्र एक प्रोटीन साइटोकिन्स  बनाकर शरीर में फैलाता है। इस प्रोटीन में विशेष तरह की श्वेत रक्त कोशिका टी-सेल पायी जाती है जो किसी भी संक्रमित कोशिका पर हमला करके उसे नष्ट कर देती हैं।

कम सोते हैं भारतीय -
प्रो. जिया के मुताबिक हर दिन भारतीय सात घंटे की नींद लेते हैं जबकि यूरोपीय देशों में लोग सात से आठ घंटे तक सोते हैं। अनिंद्रा चिंता का विषय तो है हीलॉकडाउन के समय स्थिति गंभीर रूप ले सकती है।

नींद न लेना बीमारी को निमंत्रण-
तनाव या डर के कारण नींद न आने से प्रतिरोधी तंत्र पर दोगुनी मार पड़ती है क्योंकि तब शरीर के इम्यून सिस्टम की प्रतिक्रिया देने की क्षमता असंतुलित हो जाती है। इससे तनाव बढ़ता जाता है और मानसिक अवसाद की स्थिति में पहुंचने का डर पैदा हो जाता हैवहीं शारीरिक कमजोरी आने से शरीर में फ्लू आदि का खतरा पनपता है।

कोरोना योद्धा --पीजीआई के डा. फैजल और डा. दिवस ने दिखया आइना--पिता ने कहा मेरे बेटे से सीखें मुसलमान होने का मतलब



पीजीआइ के कोरोना वार्ड की इस जोडी के बीच नहीं है धर्म की दीवार
डा.दिवस पाण्डेय और डा.फैजल आजमी की जोडी ने दूसरे डाक्टर और स्टाफ के डर निकालने  के लिए खुद आए आगे
कुमार संजय़     

समाज में दो धर्म के लोगों को बीच चाहे तो मन की दूरी हो लेकिन संजय गांधी पीजीआइ के कोरोना वार्ड में काम करने वाले डा.फैजल आजमी और डा.  दिवस पाण्डेय की जोडी मिल कर अपने को खतरे में डाल कर वार्ड में अपने डाक्टरी धर्म को पूरी सिद्दत के साथ निभा रहे है। इन दोनों डाक्टर के आपसी ताल मेल और लगाव इतना है कि दोनों एक दूसरे को बडा साबित करने में कोई भी तर्क नहीं छोड़ते है। कोरोना वार्ड में काम के दौरान जरा सी चूक इनके लिए भारी पड़ सकती है। ड्यूटी भी यहां की कठिन होती है। 6 घंटे न वाश रूम जा सकतेहै न कुछ खा पी सकते है एक दमअलर्ट रहना होता है। पहली बार ड्यूटी करने में थोडा लोग परेशान होते है । हमलोग फर्सट बैच में ड्यूटी कर लोगों के मन का डर निकालने की कोशिश किए । जब जांच रिपोर्ट नहीं आ जाती है तब चिंता होना मानवीय प्रवित्त है। इनलोगों के कहा कि  शिक्षक एनेस्थेसिया विभाग के प्रो.पुनीत न हर मोड़ पर मनोबल बढाया। 

---डा. फैजल आजमी कोरोना वार्ड में काम करने के लिए खुद आगे लाए नियमानुसार ड्यूटी लगती तो शायद बाद में नंबर आता । लखनऊ के गोमती नगर के इलाके के रहने वाले है । पिता –माता , भाई , बहन युक्त पूरा परिवार है। सामान्य दिनों में यह दो तीन दिन में शाम को घर चले जाते लेकिन अब कोरना वार्ड में ड्यूटी के दौरान 21 दिन तक घर नहीं जाए पाएंगे। ड्यूटी के बाद अब हमक्वारंटाइन में है। इनके पिता अब्दुल अहद पेशे से वकील है कहते है कि कुछ हमारे समाज के लोग गलत हरकत कर रहे है यह लोग पूरे हमारे समाज का प्रतिनिधत्व नहीं करते है। कही नहीं लिखा है कि महामारी को रोकने के लिए नियमों का पालन मत करें। हमारे बेटे ने तो खुद अपने को कोरोना वार्ड में काम करने के लिए आगे किया जिससे कोरोना मरीजों की सेवा हो सके और दूसरे डाक्टर और स्टाफ में भय कम हो। लोगों को काम करने की प्रेरणा मिले। पत्नी डा.सदफ जो एमडीएस कर रही है उन्होंने भी मनोबल बढाया।

--डा.दिवस पाण्डेय भी कोरोना वार्ड में  फर्स्ट बैच में ड्यूटी के बाद क्वारंटाइन है। इनका घर भी लखनऊ में है ।  माता-पिता कैंट इलाके में रहते है । इमरजेंसी ड्यूटीन होने पर घर चले जाते थे और मा-पिता कीसेवा के साथ घर के काम भी निपटा लेते थे। वह 21 दिन तक घर नहीं जा पाएंगे। पिता घनश्याम पाण्डेय कहते है कि कोरोना के मरीजों की सेवा में लगे डाक्टर की स्थित के बारे में जब विदेशी समाचार देखते है तो थोडा भय होता है लेकिन मानवता से बडा कुछ नहीं है। डाक्टर ही डर जाएंगे तो कौन इनकी देख-भाल करेगा। जिस समय़ पीजीआइ में पहली मरीज कोरोना की भर्ती हुई तो बेटे ने खुद को आगे लाकर ड्यूटी लगवा ली। बेटे का क्वरंटाइन पूरा होने वाला है जांच निगेटिव आ गयी है। ईश्वर का शुक्र है कि सब कुछ ठीक रहा। फोन पर बात हो जाती है। अब जल्दी बेटे से मुलाकात भी होगी। डा. दिवस की अभी शादी नहीं हुई लेकिन मां पिता न भी मनोबल बढाया।