रविवार, 12 अक्टूबर 2025

एल्डिको उद्यान-दो में ‘दान उत्सव’

 


एल्डिको उद्यान-दो में ‘दान उत्सव’ : गूंज संस्था के लिए कॉलोनीवासियों ने जुटाए कपड़े, खिलौने और ज़रूरत का सामान



सुरक्षा-2, एल्डिको उद्यान-दो में रविवार को सामाजिक दायित्व और संवेदना का अनोखा उदाहरण देखने को मिला, जब गूंज संस्था के सहयोग से कॉलोनीवासियों ने ‘दान उत्सव’ मनाया। इस अवसर पर कॉलोनी के लगभग हर घर से लोगों ने पुराने कपड़े, खिलौने, स्टेशनरी, दैनिक उपयोग की वस्तुएं और नगद राशि दान स्वरूप दी।


इस कार्यक्रम का उद्देश्य "रीसायकल के माध्यम से उपयोगी बनाना और गरीब व जरूरतमंदों तक सहायता पहुँचाना" था। गूंज संस्था इन एकत्रित वस्तुओं को छांटकर दोबारा उपयोग योग्य बनाती है और उन्हें ग्रामीण व वंचित समुदायों तक पहुंचाती है।


कार्यक्रम में गूंज संस्था से रुचि मैडम, प्रियंका शर्मा और शिवानी सिंह सहित कई सदस्य मौजूद रहे। वहीं कॉलोनी की ओर से रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) के अध्यक्ष डॉ. ए. के. सचान, श्री दिलीप सिंह, श्री प्रदीप सिंह, श्री महेंद्र वर्मा, श्री अरुण श्रीवास्तव, श्री रमेश सर, संदीप कश्यप, श्री उमेश दत्त शर्मा, विभा शर्मा, सुधा सिंह, श्री प्रदीप चौधरी, श्री सुरेश चंद्र, श्री अजय उप्रेती, श्री महेंद्र श्रीवास्तव, श्री महेंद्र शर्मा, श्री अभय मल्होत्रा, अवनीश शर्मा और श्री जी. सी. यादव सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे।


इस अवसर पर RWA की ओर से श्री दिलीप सिंह द्वारा तैयार की गई ‘राम किट’ भी सभी परिवारों में वितरित की गई।


कॉलोनीवासियों ने कहा कि इस तरह के आयोजन मानवता, करुणा और पर्यावरण संरक्षण—तीनों के प्रति जागरूकता बढ़ाते हैं। उन्होंने यह भी संकल्प लिया कि हर वर्ष इस तरह का दान उत्सव मनाकर समाज के जरूरतमंद लोगों की मदद की जाएगी।


नेपाल आंदोलन का वास्तविक कारण: युवाओं का असंतोष




आंदोलन का वास्तविक कारण: युवाओं का असंतोष


नेपाल की युवा पीढ़ी, विशेषकर जेन-ज़, राजनीतिक भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, और आर्थिक असमानता से त्रस्त थी। नेपाली समाज में "नेपो किड्स" (Nepo Kids) के रूप में एक ट्रेंड उभरा, जिसमें राजनीतिक नेताओं के बच्चों की विलासिता और भ्रष्टाचार को सोशल मीडिया पर उजागर किया गया। यह स्थिति युवाओं में गहरी नाराजगी का कारण बनी। सरकार ने 4 सितंबर 2025 को 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाया, जिसका मुख्य उद्देश्य डिजिटल सेवाओं पर टैक्स लगाना और विदेशी ई-सर्विस प्रदाताओं पर नियंत्रण स्थापित करना था। हालांकि, आलोचकों का मानना था कि यह कदम राजनीतिक असहमति को दबाने के लिए था। 


सोशल मीडिया पर प्रतिबंध ने युवाओं की आवाज़ को और दबाया, जिससे उनका गुस्सा और बढ़ा। प्रदर्शनकारियों ने "Shut down corruption, not social media" जैसे नारे लगाए, जो यह दर्शाते हैं कि उनका मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार के खिलाफ था, न कि सोशल मीडिया पर प्रतिबंध। 



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भारतीय मीडिया ने इस आंदोलन को सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ विरोध के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे वास्तविक मुद्दे की अनदेखी हुई। इसने आंदोलन के मुख्य कारण, जैसे भ्रष्टाचार और बेरोजगारी, को गौण कर दिया। इस प्रकार, भारतीय मीडिया ने जनता को गुमराह करने का कार्य किया।



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नेपाल का जेन-ज़ आंदोलन एक संकेत है कि युवा पीढ़ी अब केवल डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स पर नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन में भी अपनी आवाज़ उठाने के लिए तैयार है। यह आंदोलन लोकतांत्रिक मूल्यों, पारदर्शिता, और भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक बन गया है। भारतीय मीडिया को चाहिए कि वह इस आंदोलन के वास्तविक कारणों को समझे और उसे सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करे, ताकि दोनों देशों के नागरिकों के बीच बेहतर समझ और सहयोग स्थापित हो सके।


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शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

वी. पी. सिंह: आरोपों की राजनीति और राजीव गांधी की बदनाम की गई विरासत

 



वी. पी. सिंह: आरोपों की राजनीति और राजीव गांधी की बदनाम की गई विरासत


भारतीय राजनीति में विश्वनाथ प्रताप सिंह (वी. पी. सिंह) का नाम उस दौर के प्रतीक के रूप में लिया जाता है जब “भ्रष्टाचार विरोधी अभियान” की आड़ में आरोप और अफवाहें राजनीतिक हथियार बन गईं।

बोफोर्स घोटाले को लेकर लगाए गए आरोपों ने उस समय की राजनीति को हिला दिया — पर अदालतों ने बाद में स्पष्ट कहा कि इन आरोपों का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला।



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बोफोर्स मामला: अदालतों ने कहा — कोई घोटाला सिद्ध नहीं हुआ


1987 में स्वीडन के रेडियो ने रिपोर्ट दी कि बोफोर्स कंपनी ने भारत को तोपों के सौदे में रिश्वत दी। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उनके करीबी इस सौदे में निशाने पर आए।

यहीं से वी. पी. सिंह ने “भ्रष्टाचार विरोधी नायक” के रूप में खुद को प्रस्तुत किया और राजीव गांधी के खिलाफ खुला अभियान चलाया।


परंतु बाद की न्यायिक प्रक्रिया ने यह साबित किया कि आरोप अधूरे और प्रमाणहीन थे।


दिल्ली उच्च न्यायालय (2004) ने स्पष्ट कहा कि राजीव गांधी के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं हैं कि उन्होंने रिश्वत ली या सौदे में कोई निजी लाभ पाया।


अदालत ने “public servant” के रूप में राजीव गांधी पर लगे सभी आरोपों को खारिज किया।


हिंदुजा भाइयों और अन्य अभियुक्तों को भी अदालत ने क्लीन चिट दी, यह कहते हुए कि सीबीआई आरोप सिद्ध करने में विफल रही।


बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की अपील भी खारिज कर दी, यह कहते हुए कि मामला न केवल साक्ष्यहीन है, बल्कि प्रक्रिया की समय-सीमा भी समाप्त हो चुकी थी।



अर्थात, अदालतों ने साफ कहा कि बोफोर्स सौदे में किसी भी भारतीय राजनेता द्वारा रिश्वत लेने का प्रमाण नहीं मिला।


फिर भी उस समय की राजनीति में यह आरोप इतना बड़ा मुद्दा बन गया कि राजीव गांधी की “मिस्टर क्लीन” वाली छवि पूरी तरह ध्वस्त हो गई और जनता ने वी. पी. सिंह को “ईमानदार योद्धा” मान लिया।



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सत्ता की सीढ़ी: आरोपों के सहारे सिंहासन


राजीव गांधी के साथ वित्त मंत्री रहे वी. पी. सिंह ने पहले वित्त मंत्रालय में टैक्स और भ्रष्टाचार के मामलों में सख्ती दिखाई। बाद में रक्षा मंत्रालय में सौदों पर सवाल उठाए। कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने जनता दल बनाया और भाजपा तथा वामदलों के समर्थन से 1989 में प्रधानमंत्री बने।


यह सत्ता दरअसल बोफोर्स के आरोपों के सहारे हासिल की गई थी। जनता में यह धारणा बैठ चुकी थी कि राजीव गांधी ने भ्रष्टाचार किया है, जबकि अदालत ने बाद में इसे गलत ठहराया।

विश्लेषकों के अनुसार, यही वह मोड़ था जब भारतीय राजनीति में “झूठे या अप्रमाणित आरोपों” की प्रवृत्ति शुरू हुई।



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मंडल बनाम कमंडल: जब राजनीति जाति और धर्म में बंटी


प्रधानमंत्री बनने के बाद वी. पी. सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कीं, जिनके तहत ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण मिला।

यह फैसला ऐतिहासिक था, लेकिन देशभर में भारी विरोध हुआ। सैकड़ों जगह छात्र सड़कों पर उतरे, आत्मदाह करने लगे — कई युवा अपनी जान गंवा बैठे।


उस समय भाजपा बाहर से वी. पी. सिंह सरकार को समर्थन दे रही थी, लेकिन जब देशभर में छात्र आग में झुलस रहे थे, तब भाजपा ने समर्थन वापस नहीं लिया।

पार्टी का ध्यान अपने “राम मंदिर आंदोलन” की तरफ था, जो तेजी से धार्मिक जनभावना का केंद्र बन रहा था।


जब लालकृष्ण आडवाणी ने राम रथ यात्रा शुरू की और आंदोलन अपने चरम पर पहुंच गया — तब भाजपा ने राजनीतिक रूप से यह महसूस किया कि अब जनता की भावनाएं “राम मंदिर” के मुद्दे पर उनके पक्ष में हैं।

ठीक उसी समय, मंडल से उपजे जातीय संघर्ष के बीच, भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया।

इस प्रकार सरकार गिराने का कारण “छात्रों की पीड़ा” नहीं बल्कि राम मंदिर की राजनीति से सत्ता प्राप्ति की रणनीति थी।


इस निर्णय ने भारतीय राजनीति में यह भी स्पष्ट कर दिया कि सामाजिक न्याय और धार्मिक भावनाओं के बीच टकराव को सत्ता के लिए साधन की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।



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प्रतीकवाद, तुष्टिकरण और जनता दल का विखंडन


वी. पी. सिंह ने अपने कार्यकाल में सामाजिक न्याय को मजबूत करने के लिए कई प्रतीकात्मक फैसले लिए — जिनमें डॉ. भीमराव आंबेडकर को मरणोपरांत भारत रत्न देना ऐतिहासिक कदम था।

लेकिन राजनीतिक रूप से यह भी कहा गया कि वे विभिन्न वर्गों को खुश करने के लिए तुष्टिकरण की राह पर चल पड़े थे।


उनकी सरकार लंबी नहीं चली।

जनता दल शीघ्र ही कई भागों में टूट गया — लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, देवगौड़ा और अजित सिंह जैसे नेता अलग-अलग दिशाओं में निकल गए।

आज इन्हीं में से कुछ दल भाजपा के साथ हैं, कुछ कांग्रेस के साथ — जबकि उसी दौर की राजनीति ने भारत को स्थायी रूप से गठबंधन युग में पहुंचा दिया।



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निष्कर्ष: आरोपों से बनी सत्ता, सच्चाई से टूटी छवि


वी. पी. सिंह ने ईमानदारी और पारदर्शिता की बात की, लेकिन उनकी राजनीति अदालत में असत्य सिद्ध हुए आरोपों पर खड़ी थी।

राजीव गांधी को भ्रष्ट सिद्ध करने का जो अभियान उन्होंने चलाया, वह इतिहास में राजनीतिक अवसरवाद का प्रतीक बन गया।


अदालतों ने बोफोर्स मामले में कहा —


> “राजीव गांधी के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं है। रिश्वत या भ्रष्टाचार का कोई प्रमाण नहीं मिला।”




फिर भी इस अप्रमाणित आरोप ने न केवल एक प्रधानमंत्री की छवि मिटा दी, बल्कि भारतीय राजनीति को उस राह पर डाल दिया जहाँ सत्य से अधिक प्रचार और धारणा निर्णायक बन गई।


मंडल और कमंडल की राजनीति ने तब जो विभाजन पैदा किया, वह आज तक जारी है।

वी. पी. सिंह ने जिस “ईमानदारी” के नाम पर सत्ता पाई, उसी के परिणामस्वरूप देश में आरोपों, वर्गीय विभाजनों और अवसरवादी गठबंधनों की परंपरा स्थायी हो गई।


इस दृष्टि से वी. पी. सिंह वह नेता थे जिन्होंने सत्ता पाने के लिए झूठ और अवसर का उपयोग किया — और देश को सिखा गए कि राजनीतिक लाभ के लिए असत्य कितना विनाशकारी हो सकता है।





गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

एड़ी के दर्द से मिली मुक्ति जिंदगी हुआ आसान

 


पीजीआई एपेक्स ट्रामा सेंटर


प्लाज्मा रिच थेरेपी से एड़ी के दर्द से मिली मुक्ति जिंदगी हुआ आसान


 पीआरपी थिरेपी से पहली बार हुआ इलाज


 दो साल से चलना फिरना  हो गया था कठिन




बाराबंकी की 42 वर्षीय गृहिणी सुनीता वर्मा पिछले दो वर्षों से क्रॉनिक प्लांटर फेशियाटिस (एड़ी का पुराना दर्द) से परेशान थीं। रसोई में लंबे समय तक खड़े रहना, बाज़ार जाना  कठिन हो गया था।  दवाइयों और आराम से राहत न मिलने पर उन्हें एसजीपीजीआई के फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन (पीएमआर) विभाग में रेफर किया गया।  मस्कुलोस्केलेटल अल्ट्रासाउंड और अन्य परीक्षणों के बाद पीएमआर टीम ने उन्हें अल्ट्रासाउंड-गाइडेड प्लेटलेट रिच प्लाज्मा (पीआरपी) थेरेपी दी, जिससे उन्हें  राहत मिली। थेरेपी के साथ स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज, चाल प्रशिक्षण (गैट ट्रेनिंग) और जूते में सुधार (फुटवेयर मॉडिफिकेशन) जैसे व्यक्तिगत पुनर्वास अभ्यास भी कराया गया। छह हफ्तों में उनके दर्द में उल्लेखनीय कमी आई और तीन महीने में वे फिर से बिना किसी परेशानी के अपने दैनिक कार्य करने लगीं। अल्ट्रासाउंड जांच में ऊतकों में सुधार और सूजन में कमी की पुष्टि हुई। प्रो. सिद्धार्थ ने बताया कि यह  पहला मामला जिसमें  पीआरपी थिरेपी से इलाज किया गया। अब यह तकनीक स्थापित हो गई है। एपेक्स ट्रॉमा सेंटर के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. राजेश हर्षवर्धन ने पीएमआर टीम को बधाई देते हुए कहा कि इस पहल से अत्याधुनिक चिकित्सा विज्ञान को रोगी देखभाल से सीधे जोड़ा गया है।


 


क्या होती है पीआरपी थेरेपी


विभाग के प्रो. सिद्धार्थ राय ने बताया कि इस तकनीक में मरीज के अपने रक्त से प्लेटलेट्स को अलग कर सटीक रूप से दर्द ग्रस्त फेशिया (ऊतक) में इंजेक्ट किया जाता है।प्लेटलेट्स में मौजूद ग्रोथ फैक्टर्स ऊतकों की मरम्मत में मदद करते हैं और सूजन को कम करते हैं। यह शरीर की प्राकृतिक उपचार प्रक्रिया को तेज करता है।


 


इन परेशानियों का भी संभव होगा इलाज


प्रो. राय के अनुसार, अल्ट्रासाउंड-गाइडेड पीआरपी थेरेपी न केवल एड़ी के दर्द (प्लांटर फेशियाटिस) में, बल्कि बर्साइटिस, अकिलीज़ टेंडिनोपैथी, गठिया, लिगामेंट चोटें और डायबिटिक फुट जटिलताओं में भी प्रभावी है।इसके अलावा, अल्ट्रासाउंड-गाइडेड ग्रोथ फैक्टर कंसन्ट्रेट थेरेपी जैसी उन्नत तकनीक भी अब स्थापित हो चुकी हैं, जो पुराने मस्कुलोस्केलेटल दर्द और उपचार-प्रतिरोधी स्थितियों में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो रही हैं।


 


हर शुक्रवार विशेष ओपीडी


प्रो. सिद्धार्थ राय ने बताया कि अब हर शुक्रवार एपेक्स ट्रॉमा सेंटर में फुट एंड एंकल रिहैबिलिटेशन क्लिनिक आयोजित की जाती है।विभाग के प्रमुख प्रो. अरुण श्रीवास्तव ने कहा कि यह पहल निचले अंगों की चोटों और पुराने दर्द से पीड़ित मरीजों के पुनर्वास को तेज़ करेगी। इसके अलावा मधुमेह, वृद्धावस्था या अत्यधिक कार्यभार से उत्पन्न जटिलताओं से ग्रस्त लोगों के लिए भी यह क्लिनिक एक बड़ा सहारा साबित होगी।

रविवार, 5 अक्टूबर 2025

लंबी जिंदगी अनुशासन, शांति, परिवार और दोस्तों के साथ अच्छे संबंध, प्रकृति के साथ संपर्क, emotional stability, कोई चिंता नहीं, कोई पछतावा नहीं, भरपूर सकारात्मकता और टॉक्सिक लोगों से दूर रहने" को दिया था।

 




जन्म की तारीख और समय: 4 मार्च 1907, सान फ्रांसिस्को, कैलिफ़ोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका

मृत्यु की जगह और तारीख: 19 अगस्त 2024, Olot, स्पेन

राष्ट्रीयता: अमेरिकी, स्पेनी

माता-पिता: जोसेफ ब्रान्यास जूलिया


दुनिया की लगभग सभी सभ्यताओं में चाहे उनकी धार्मिक मान्यताएं जो भी हों, एक बात यह कॉमन है कि सब लोग लम्बी उम्र जीना चाहते हैं जिसमे बीमारियां लगभग न हों।बल्कि कुछ तो अमर भी होना  चाहते हैं। लोगों की इस इच्छा का फायदा उठाते हुए दुनिया भर के वैज्ञानिक लम्बे जीवन के रहस्यों का पता लगाने हेतु शोध में लगे हुए हैं। 


अभी पिछले हफ्ते प्रकाशित हुए एक बेहद जटिल तकनीकी तरीकों का इस्तेमाल कर हुए वैज्ञानिक अध्ययन में बड़ी दिलचस्प जानकारियां सामने आई हैं। यह अध्ययन अभी दुनिया की सबसे लम्बे समय तक और बगैर किसी बीमारी के जीवित रहने वाली महिला (117 साल की उम्र में पिछले साल २०२४ में उनका देहांत हुआ) महिला "मारिया ब्रान्यास" पर कई वर्षों तक हुए शोध पर आधारित है। उनके मरने से कई साल पहले से ही वैज्ञानिकों के एक समूह ने दुनिया की सबसे उम्रदराज इस महिला के Genes , प्रोटीन्स, मेटाबॉलिस्म, और उनके खानपान से संबधित विषयों पर गहन शोध आरम्भ कर दिया था, —और शोधकर्ताओं का कहना है कि उनकी लंबी उम्र सिर्फ़ सौभाग्य की वजह से नहीं थी।


अपने एक बयान में Maria ब्रान्यास ने अपनी लंबी उम्र का श्रेय "अनुशासन, शांति, परिवार और दोस्तों के साथ अच्छे संबंध, प्रकृति के साथ संपर्क, emotional stability, कोई चिंता नहीं, कोई पछतावा नहीं, भरपूर सकारात्मकता और टॉक्सिक लोगों से दूर रहने" को दिया था।


हालाँकि वैज्ञानिक शोध में जो परिणाम मिले उसमे संक्षेप में निम्न बातें प्रमुखता से सामने आईं:   


Genetics ने अहम भूमिका निभाई: उनके पास कुछ दुर्लभ gene variants थे जो longevity और मजबूत immune system से जुड़े हुए थे। उनके शरीर में aging धीमी होने के संकेत दिखे, जैसे कि लंबे telomeres (DNA के सुरक्षा देने वाले सिरे) और उनके blood cells में कम age-related mutations।


उनका immune system युवा बना रहा: ज़्यादातर बुज़ुर्गों के विपरीत, उनके immune response में आश्चर्यजनक रूप से सक्रियता थी, जिससे वे अपनी उम्र के अन्य लोगों की तुलना में बीमारियों से बेहतर तरीके से लड़ पाईं।


सरल diet और lifestyle: मारिया  ने एक सीधी-सादी diet अपनाई—अधिकतर eggs, meat और कुछ सब्जियाँ। उन्होंने processed foods से परहेज़ किया और न तो धूम्रपान किया, न शराब पी। वे ज़्यादातर जीवन भर स्वतंत्र रहीं, जिससे उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा बना रहा।


कम inflammation levels: Chronic inflammation कई age-related बीमारियों से जुड़ी होती है। मारिया के शरीर में inflammation का स्तर कम था, जिससे उन्हें heart disease और Alzheimer’s जैसी बीमारियों से बचाव मिला हो सकता है।


Gut health भी महत्वपूर्ण रही: उनके gut bacteria युवा लोगों जैसे थे, जिससे उन्हें digestion, immunity और समग्र स्वास्थ्य में मदद मिली।


इस शोध पत्र में उनकी रोजाना की डाइट क्या होती थी उसका भी ब्यौरा बड़े विस्तार से दिया गया है, ऐसा भोजन जो वे लगभग पिछले २० सालों से लगातार कर रही थीं। वैसे तो यह मुख्यतः मेडिटरेनीयन डाइट थी जिसे पहले से भी वैज्ञानिकों द्वारा बहुत स्वास्थप्रद माना गया पर सबसे विलक्षण बात जो मुझे लगी वह हर दिन नियमित रूप से दही (योगर्ट) का सेवन करती थीं लगभग दिन में ३ बार. लंच, आफ्टरनून के स्नैक में और रात को भी। 


आप अपने जेनेटिक मेकअप को तो बदल नहीं सकते, पर दही तो खा ही सकते हैं। सबको आसानी से उपलब्ध है।

पिंक वेव’ में उमड़ा लखनऊ, ब्रेस्ट कैंसर जागरूकता की दी अलख

 





पिंक वेव’ में उमड़ा लखनऊ, ब्रेस्ट कैंसर जागरूकता की दी अलख


 एसजीपीजीआई व 41 क्लब ऑफ इंडिया ने दिया ‘अर्ली डिटेक्शन’ का संदेश



समय पर जांच ही जीवन की कुंजी



महिलाओं में बढ़ते ब्रेस्ट कैंसर को लेकर जनजागरूकता फैलाने के उद्देश्य से रविवार को राजधानी में ‘पिंक वेव’ अभियान का आयोजन हुआ। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के ब्रेस्ट हेल्थ प्रोग्राम और 41 क्लब ऑफ इंडिया एरिया-9 के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य था — “अर्ली डिटेक्शन से जीवन की रक्षा”।

कार्यक्रम में लखनऊ गोल्फ क्लब, इनर व्हील क्लब सहित कई सामाजिक संगठनों ने भाग लिया। आयोजन को इंडियन ऑयल और ग्यान दूध का सहयोग मिला।


सुबह 7 बजे आयोजित वॉकाथन का शुभारंभ प्रमुख सचिव, उद्योग अलोक कुमार, प्रमुख सचिव, योजना अलोक कुमार (III) तथा डीसीपी, महिला प्रकोष्ठ ममता रानी ने किया।

इस अवसर पर एसजीपीजीआई के एंडोक्राइन सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. गौरव अग्रवाल, लखनऊ गोल्फ क्लब के सचिव राजनीश सेठी, सरस्वती डेंटल कॉलेज के डॉ. रजत माथुर, 41 एसोसिएशन ऑफ इंडिया के क्लब 95 के चेयरमैन विवेक जायसवाल, नेक्स बोर्ड सदस्य डॉ. पियूष अग्रवाल तथा एरिया चेयरमैन एरिया-9 मनीष टंडन सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। लगभग 300 से अधिक प्रतिभागियों ने 3 किलोमीटर लंबे वॉकाथन में भाग लिया।


वॉकाथन के बाद सुबह 8 बजे विंटेज कार रैली का आयोजन हुआ, जो लोहीया पथ से होते हुए लखनऊ गोल्फ ड्राइविंग रेंज पर समाप्त हुई।


कार्यक्रम के दौरान एसजीपीजीआई ब्रेस्ट हेल्थ प्रोग्राम की टीम और लखनऊ एंडोक्राइन एंड ब्रेस्ट सर्जरी क्लब के चिकित्सकों ने महिलाओं से मासिक ब्रेस्ट सेल्फ-एग्जामिनेशन करने और 40 वर्ष से अधिक आयु में वार्षिक जांच कराने की अपील की।

डॉ. गौरव अग्रवाल ने कहा, “ब्रेस्ट कैंसर के अधिकतर मरीज प्रारंभिक अवस्था में पहचान होने पर पूरी तरह ठीक हो सकते हैं। महिलाओं को बिना डर और झिझक के लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए और तुरंत विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।”


एसजीपीजीआई की टीम ने लखनऊ गोल्फ क्लब ड्राइविंग रेंज पर कैडीज और उनके परिवारों के लिए भी जांच एवं परामर्श शिविर आयोजित किया, ताकि समाज के हर वर्ग में जागरूकता बढ़ाई जा सके।


कार्यक्रम के अंत में आयोजकों ने कहा कि “पिंक वेव” के जरिए यह संदेश दिया गया कि ब्रेस्ट कैंसर से डरने की नहीं, समय रहते जांच कराने की ज़रूरत है।

भारतीय महिलाओ ने भी पाकिस्तान चटाई धूल



भारतीय महिलाओ ने भी पाकिस्तान को चटाई धूल



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🇮🇳 भारतीय शेरनियों का जलवा, पाकिस्तान पर 88 रन से शानदार जीत

🇮🇳 भारत ने पाकिस्तान को 88 रन से हराया


बल्ले और गेंद दोनों से दम दिखाया, क्रांति गौड़ बनीं ‘प्लेयर ऑफ द मैच’


कोलंबो, 5 अक्टूबर।

महिला वर्ल्ड कप 2025 के बहुप्रतीक्षित मुकाबले में भारत ने पाकिस्तान को 88 रन से हराकर टूर्नामेंट में अपनी दूसरी बड़ी जीत दर्ज की। यह मुकाबला भारतीय टीम के अनुशासित प्रदर्शन और मजबूत रणनीति का प्रमाण बन गया।



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🏏 भारत की बल्लेबाज़ी — संभली शुरुआत, दमदार अंत


पहले बल्लेबाज़ी करने उतरी भारतीय टीम ने निर्धारित 50 ओवर में 247 रन बनाए।

टीम की शुरुआत सावधानी भरी रही लेकिन मध्यक्रम ने मोर्चा संभाल लिया।


बल्लेबाज़ों का योगदान इस प्रकार रहा:


हरलीन देओल — 46 रन (62 गेंद, 5 चौके)


ऋचा घोष — 35* रन (26 गेंद, 3 चौके)


स्मृति मंधाना — 23 रन


प्रतिका रावल — 31 रन


जेमिमा रोड्रिग्स — 27 रन


दीप्ति शर्मा — 18 रन



भारत की पारी में आख़िरी 10 ओवरों में तेज़ रन बने, जहां ऋचा घोष और दीप्ति शर्मा ने तेज़ साझेदारी की और स्कोर को 240 से ऊपर पहुंचाया।



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🏹 पाकिस्तान की पारी — सिद्रा अमीन का संघर्ष बेकार


248 रन के लक्ष्य का पीछा करते हुए पाकिस्तान की टीम शुरुआत में ही दबाव में आ गई।

सिद्रा अमीन ने अकेले दम पर संघर्ष करते हुए 81 रन (95 गेंद, 8 चौके) बनाए, लेकिन उन्हें कोई स्थायी साझेदार नहीं मिला।


बाकी बल्लेबाज़ों का हाल यह रहा:


मुनिबा अली — 14 रन


निदा डार — 18 रन


बिस्मा मारूफ — 9 रन


अलिया रियाज — 12 रन


बाकी बल्लेबाज़ दहाई अंक तक नहीं पहुंच पाईं।



पूरी पाकिस्तानी टीम 159 रन पर ऑल आउट हो गई और भारत ने मैच 88 रन से जीत लिया।



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🎯 भारत की गेंदबाज़ी — सटीक लाइन और कमाल का अनुशासन


भारतीय गेंदबाज़ों ने एक बार फिर शानदार टीमवर्क दिखाया।


क्रांति गौड़ — 10 ओवर में 3 विकेट / 20 रन


दीप्ति शर्मा — 3 विकेट / 45 रन


स्नेह राणा — 2 विकेट / 34 रन


रेणुका सिंह ठाकुर — 1 विकेट



क्रांति गौड़ ने पाकिस्तान के टॉप ऑर्डर को तहस-नहस कर दिया और इसी कारण उन्हें ‘प्लेयर ऑफ द मैच’ घोषित किया गया।



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🗣️ कप्तान की प्रतिक्रिया


भारतीय कप्तान ने मैच के बाद कहा —


> “टीम ने योजनानुसार खेला। बल्लेबाज़ों ने शुरुआत दी, और गेंदबाज़ों ने उसे जीत में बदला। यह जीत सिर्फ स्कोरबोर्ड की नहीं, टीम की एकजुटता की जीत है।”





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💬 दर्शकों की प्रतिक्रिया


कोलंबो स्टेडियम में भारतीय समर्थकों ने टीम के हर विकेट पर जोश से झंडे लहराए। सोशल मीडिया पर भी #IndWvPakW और #BlueBrigade जैसे ट्रेंड्स छा गए।



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🏆 नतीजा


भारत — 247/8 (50 ओवर)

पाकिस्तान — 159 ऑल आउट (42.1 ओवर)

भारत ने 88 रन से जीत दर्ज की


प्लेयर ऑफ द मैच: क्रांति गौड़ (3/20)



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गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025

ट्रांसप्लांट के बाद भी दौड़ती है जिंदगी

 





ट्रांसप्लांट के बाद भी दौड़ती है जिंदगी


किडनी ट्रांसप्लांट के बाद भी थमी नहीं जिंदगी, बाराबंकी के बलबीर सिंह ने ओलंपिक में जीते पदक


कुमार संजय

किडनी ट्रांसप्लांट के बाद जिंदगी थमती नहीं है, अगर हिम्मत और हौसला हो तो इंसान हर मुश्किल को मात दे सकता है। बाराबंकी के बलबीर सिंह इसका जीवंत उदाहरण हैं। 2011 में उनका किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था, लेकिन आज वह ऑर्गन ट्रांसप्लांट ओलंपिक में चार पदक जीतकर न सिर्फ देश का मान बढ़ा चुके हैं, बल्कि उन तमाम मरीजों को राह दिखा रहे हैं, जो ट्रांसप्लांट के बाद खुद को कमजोर समझते हैं।


बलबीर नियमित रूप से संजय गांधी पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. नरायन प्रसाद से फॉलोअप कराते हैं और डॉक्टर की सलाह से दवाएं समय पर लेते हैं। वे बताते हैं कि अनुशासन और मेहनत से वह पूरी तरह फिट हैं। हाल ही में 21 अगस्त को जर्मनी में आयोजित ऑर्गन ट्रांसप्लांट ओलंपिक में बैडमिंटन में कांस्य पदक जीतकर लौटे हैं। इस दौरान उन्होंने हंगरी और ब्रिटेन के खिलाड़ियों को हराकर यह उपलब्धि हासिल की। इससे पहले वह अर्जेंटीना, स्पेन और ब्रिटेन में आयोजित प्रतियोगिताओं में गोल्ड और सिल्वर पदक जीत चुके हैं।


बलबीर रोजाना दो घंटे पसीना बहाकर अभ्यास करते हैं। उनका कहना है कि किडनी ट्रांसप्लांट के बाद फिट रहने के लिए नियमित व्यायाम और दवा बेहद जरूरी है। अंगदाता का आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा— “अगर अंगदान न होता तो शायद यह जिंदगी और यह उपलब्धियां कभी संभव न होतीं।”


उन्होंने लोगों से अपील की कि अंगदान के लिए आगे आएं, खासकर ब्रेन डेड व्यक्ति के परिजन साहस दिखाकर अंगदान का निर्णय लें। यही कदम किसी और की जिंदगी को नई दिशा दे सकता है।


प्रो. नारायण प्रसाद, विभागाध्यक्ष, नेफ्रोलॉजी, एसजीपीजीआई ने कहा—

“बलबीर जैसे मरीज हमारी प्रेरणा हैं। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद अगर मरीज अनुशासन से दवाएं लें, नियमित जांच कराएं और जीवनशैली पर नियंत्रण रखें तो वह सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन जी सकते हैं। बलबीर का प्रदर्शन यह संदेश देता है कि ट्रांसप्लांट कोई बाधा नहीं बल्कि नई जिंदगी की शुरुआत है।”

बुधवार, 1 अक्टूबर 2025

रेस्ट लेग सिंड्रोम से परेशान को चैन की नींद देगा टीईएनएस थेरेपी

 




रेस्ट लेग सिंड्रोम से परेशान को चैन की नींद देगा टीईएनएस थेरेपी


थिरेपी से  पैरों की बेचैनी, नींद की कमी और अवसाद से मिला छुटकारा


जिनमें दवा से इलाज नहीं संभव उनमें यह थिरेपी कारगर



कुमार संजय


 


रेस्टलेस लेग सिंड्रोम (आरएलएस) ग्रस्त लोगों को टीईएनएस (ट्रांस क्यूटेनियस इलेक्ट्रिक नर्व स्टिमुलेशन) थिरेपी से राहत मिली है। संजय गांधी पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रो. विमल कुमार पालीवाल ने लिवर सिरोसिस से ग्रस्त 25 मरीजों पर शोध कर यह साबित किया है। प्रो.पालीवाल के मुताबिक लिवर सिरोसिस से ग्रस्त  25 मरीजों को शोध में शामिल किया गया। सिरोसिस के आलावा गर्भावस्था, किडनी की बीमारी होने पर दवा से साइड इफेक्ट की आशंका रहती है ऐसे में इनमें यह थिरेपी काफी कारगर साबित होती है। थिरेपी के तहत  रोज 30 मिनट के लिए 6 सप्ताह तक  टीईएनएस थेरेपी दी गई।  पैरों की बेचैनी, नींद न आने की समस्या, और चिंता-अवसाद जैसे लक्षणों में जबरदस्त सुधार देखने को मिला।


क्या है रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम


रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम (आरएलएस) एक तंत्रिका  संबंधी विकार है जिसमें व्यक्ति को पैरों में अजीब सी झुनझुनी, खिंचाव या चुभन महसूस होती है। ये लक्षण तब और बढ़ जाते हैं जब व्यक्ति विश्राम कर रहा होता है या  रात को सोते समय। मरीजों को बार-बार अपने पैर हिलाने या चलने की इच्छा होती है, जिससे नींद में खलल पड़ता है और मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।


 


यह मिला परिणाम


- आरएलएस -के गंभीरता को मापने वाला स्कोर 22.28 था।  वह 1 सप्ताह के बाद घटकर 6.08।  4 सप्ताह बाद 6.7।  6 सप्ताह बाद 5.4 रह गया।


-  नींद की गुणवत्ता में सुधार हुआ- स्कोर 9.6 से घटकर 4.7 हो गया।


- जीवन की गुणवत्ता -स्कोर 73 से बढ़कर 94.9 हो गया।


 अवसाद - स्कोर 19.2 से घटकर 7.5 हो गया।


 चिंता -  स्कोर 25.4 से घटकर 8.9 हो गया


 


 क्या है टीईएनएस थेरेपी


 इसमें शरीर पर हल्के इलेक्ट्रिक करंट का इस्तेमाल होता है, जिससे नसों को आराम मिलता है।  बैटरी से संचालित एक डिवाइस के ज़रिए हल्की विद्युत तरंगें मरीजों की टांगों पर लगाई गईं।


 


क्यों होती है परेशानी


 कई बार आयरन और आवश्यक पोषक तत्वों की कमी, साथ ही खून में विषैले तत्वों का जमाव हो सकता है। ये सभी कारक तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते हैं और आरएलएस जैसी समस्याओं को जन्म देते हैं।


 


 यह शोध में रहे शामिल


 न्यूरोलॉजी विभाग के प्रो. विमल कुमार पालीवाल और डा. स्वांशु बत्रा,  हेपेटोलॉजी विभाग प्रमुख  प्रो. अमित गोयल ने  ट्रांस क्यूटेनियस इलेक्ट्रिक नर्व स्टिमुलेशन इन रेस्टलेस लेग सिंड्रोम विद सिरोसिस: ए पायलट स्टडी" शीर्षक से शोध किया जिसे एक्सपर्ट रिव्यू ऑफ मेडिकल डिवाइसेस  अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा जर्नल ने स्वीकार किया है।

सुपारी, गुटखा और पान मसाला खाने वालों में आम बीमारी ओरल सबम्यूकोस फाइब्रोसिस के इलाज को लेकर नई उम्मीद

 

फाइब्रोसिस में राहत देगा हर्बल नुस्खा


गोरखमुंडी, तुलसी और शहद से बनी दवा से मुँह की बीमारी में राहत


 शोध को नेशनल जर्नल ऑफ मैक्सिलोफेशियल सर्जरी ने किया स्वीकार


कुमार संजय


सुपारी, गुटखा और पान मसाला खाने वालों में आम बीमारी ओरल सबम्यूकोस फाइब्रोसिस के इलाज को लेकर नई उम्मीद सामने आई है। शोध विज्ञानियों ने देखा है कि गोरखमुंडी, तुलसी और शहद से बने हर्बल अर्क को मानक इलाज के साथ देने से मरीजों को मुँह खोलते समय होने वाले दर्द और जलन से तेज़ राहत मिली।

शोधकर्ताओं ने 60 मरीजों को दो समूहों में बाँटा। 

पहले समूह को सिर्फ मानक इलाज दिया गया, जिसमें स्टेरॉयड इंजेक्शन, हायल्यूरोनिडेज़ और एंटीऑक्सीडेंट दवाएँ शामिल थीं। दूसरे समूह को वही मानक इलाज, लेकिन उसके साथ गोरखमुंडी, तुलसी और शहद से तैयार हर्बल अर्क भी दिया गया। देखा गया कि हर्बल अर्क लेने वाले मरीजों में जलन और दर्द में उल्लेखनीय कमी देखी गई । 

वहीं, सूजन से जुड़े बायोमार्कर इंटरल्यूकिन-6  का स्तर दोनों समूहों में घटा, लेकिन सिर्फ मानक इलाज लेने वाले मरीजों में यह कमी तुलनात्मक रूप से अधिक पाई गई।  शोधकर्ताओं का कहना है कि यह हर्बल अर्क बीमारी को पूरी तरह खत्म करने वाली दवा नहीं है, लेकिन इसे सहायक इलाज  के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है, ख़ासकर शुरुआती मरीजों में। 


क्या है फाइब्रोसिस


ओरल सबम्यूकोस फाइब्रोसिस   मुंह की गंभीर बीमारी है, जो पान, गुटखा और तंबाकू के सेवन से होती है। इसमें मुँह की झिल्ली सख्त हो जाती है, मुँह खोलना कठिन होता है और दर्द या जलन होती है। यह पूर्व-कैंसर अवस्था है। रोकथाम और समय पर इलाज जरूरी है।




हर्बल अर्क के घटक


गोरखमुंडी  — सूजन और दर्द कम करने वाली जड़ी-बूटी


तुलसी — रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली औषधि


शहद — घाव भरने और जलन घटाने में उपयोगी






 शोध टीम


किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी से

डॉ. ऋचा, प्रो. विभा सिंह, डॉ. शादाब मोहम्मद, प्रो. यू. एस. पाल, डॉ. गीता सिंह, डॉ. अमिया अग्रवाल, डॉ. अरुणेश के. तिवारी।

सेंटर फॉर्म फॉर एडवांस्ड रिसर्च, केजीएमयू के

डॉ. नीतू निगम।

आयुर्वेद आचार्य

डॉ. अभया एन. तिवारी।

सेवाथा यूनिवर्सिटी, चेन्नई के

डॉ. शांतोष कन्ना।

शोध को 

नेशनल जर्नल ऑफ मैक्सिलोफेशियल सर्जरी ने हाल में स्वीकारा किया है।