गुरुवार, 30 नवंबर 2017

अब जोडो के अल्ट्रासाउंड से शुरूअाती दौर में लगेगा खराबी का पता -पीजीआइ में स्थापित हो गयी है यह तकनीक



पीजीआइ में इराकांन 2017

अब जोडो के अल्ट्रासाउंड से शुरूअाती दौर में लगेगा खराबी का पता
पीजीआइ में स्थापित हो गयी है यह तकनीक   
रूमटायड अर्थराइटिस होने के पांच  से 6 साल बाद मिलता है सही इलाज  
जागरण संवाददाता। लखनऊ
अब शरीर के जोड़ो का अल्ट्रासाउंड कर जोडो की खराबी का पता शुरूअाती दौर में लगा कर जोडों को और खराब होने से बचाया जा सकता है। ज्वाइंट अल्ट्रासाउंड की तकनीक संजय गांधी पीजीआइ के क्लीनिकल इम्यूनोलाजी विभाग में स्थापित हो गयी । इसके तकनीक के बारे में देश भर के रूमैटोलाजिस्ट को कार्यशाला कर गुरूवार को दी गयी। रूमटायड अर्थराइिटस के इलाज और बीमारी पता करने के तमाम तकनीक पर जानकारी देने के लिए संस्थान ने इंडियन रूमैटोलाजी एसोसिएशन( इराकांन 2017) का आयोजन किया है । अधिवेशन के बारे में जानकारी देते विभाग के प्रमुख प्रो.अारएन मिश्रा एवं यूनिवर्सटी अाफ कैलीफोर्निया लांस एजलिस के प्रो. राम राज सिंह ने बताया कि अर्थराइिटस एक तरह की अाटो इम्यून डिजीजी है जिसमें शरीर के जोडो के खिलाफ एंटीबाडी बनने लगती है जिससे जोड़ खराब हो जाते है। शुरूअात हाथ की उंगलियों से होती है। जोड की खराबी पता करने के लिए हम लोग पहले एक्स-रे कराते थे लेकिन एक्स-रे से जोडो की खराबी का पता देर से लगता है। जोड जितना खराब हो जाता है उसे वापस अच्छी स्थिति में लाना संभव नहीं होता है। ज्वाइंट अल्ट्रासाउंड से खराबी का पता शुरूअाती दौर में लग जाता है जिसे डिजीज माडी फाइंग ड्रग से अागे खराब होने से रोका जा सकता है। कहा कि इस बीमारी से ग्रस्त 90 फीसदी मरीज बीमारी शुरू होने के चार से पांच साल बाद अाते है लोग हड्डी रोग विशेषज्ञों से सलाह और इलाज लेते रहते है जबकि इलाज रूमैटोलाजिस्ट ही कर सकता है।  बताया कि अधिवेशन में 600 से अधिक देश और विदेश विशेषज्ञ शामिल हो रहे हैं। 

तीस से अधिक होती है अाटो इम्यून डिजीज

विभाग के प्रो. विकास अग्रवाल और प्रो. दुर्गा प्रसन्ना ने बताया कि अाटो इम्यून डिजीज तीस से अधिक होती है। इसमें रूमटायड अर्थराइिटस ही सौ से अधिक प्रकार की होती है।  अाटो इम्यून डिजीज में मुख्य रूप से एलएलई, एंकलाइजिंग स्पांडलाइिटस, मायसाइिटस, वेस्कुलाइिटस सहित कई बीमारियां है। हर बीमारी के इलाज और बीमारी पता करने की तकनीक अलग है। बताया कि अब दुनिया भर में शोध से पता चल रहा है कि बीमारी का कारण कौन सा साइटो काइन उसे कमजोर करने के लिए दवाएं अा गयी है। जिसे टारगेट थिरेपी कहा जाता है। संस्थान इसका इस्तेमाल कर रहा है। 

फ्री मिलने वाली दवाअों में नहीं शामिल है अर्थराइिटस की दवा

विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार कुछ बीमारी के इलाज के फ्री दवा उपलब्ध कराती है लेकिन सरकारी लिस्ट में रूमटायड अर्थराइिटस की दवाएं शामिल नही है जिसके कारण कई मरीज इलाज नहीं करा पाते है। इससे उनकी दैनिक दिन चर्या प्रभावित होती है। विशेषज्ञों से सरकार से अपील की है कि इन दवाअों को भी शामिल किया जाए। इसके अलावा शोध पर वजट बढाने की मांग की।  

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