गुरुवार, 2 नवंबर 2017

अब एमअारअाई से ही संभव है ब्रन ट्यूमर और ग्लायोमा में भेद

अब एमअारअाई से ही संभव है ब्रन ट्यूमर और ग्लायोमा में भेद

स्टेटिसयन की है नए शोध , इलाज और जांच में अहम भूमिका





अब एमआरआई से ही दिमाग में ट्यूमर या ग्लायोमा का भेद करना  संभव संजय गांधी पीजीआई के बायोस्टेस्टियन प्रो.सीएम पाण्डेय ने सहयोगियो के साथ किया । इस खोज को अमेरिकन जनरल अाफ न्यूरोलाजी ने भी स्वीकार किया है। इंडियन सोसाइटी फार मेडिकल स्टेटिक्स के 35 वें वार्षिक अधिवेशन के मौके पर मेडिकल साइंस में स्टेटिक्स की भूमिका पर प्रो.सीएम पाण्डेय, झांसी मेडिकल कालेज के प्रो.वीएल वर्मा, जिपमर पांडीचेरी के प्रो.अजीत सहाय ने बताया कि दिमाग में ट्यूमर या ग्लायोमा है यह पहले एमअारआाई से से नहीं लग पाता था क्योंकि एमअारई की इमेज दोनों में एक तरह दिखती थी। हम ने इमेज की बैकग्राउंड के गुण के अाधार पर तकनीक स्थापित की जिससे दोनों के बीच अंतर स्थापित किया जा सकता है। अब मरीजों में इस्तेमाल भी हो रहा है। ब्रेन ट्यूमर और ग्लायोमा दोनों के इलाज में काफी अंतर है। एेसे ही बायो स्टेटिक्स के जरिए ही नई दवा कितनी कारगर है। नई जांच कितनी उपयोगी है यह तथ्य स्थापित किया जा सकता है।  हम लोग शोध में मिले परिणाम की गणना कर सही तथ्य स्थापित करते है। इसी सभी मेडिकल कालेज में हम लोगों की तैनाती है । देश में अाठ संस्थानों  में पूरा विभाग स्थापित है। हमारी सोसाइटी है जिसका वार्षिक अधिवेशन दो से चार नवंबर तक तक होने जा रहा है। इसमें दो सौ से अधिक विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं। 

आर्युवैदिक दवा नुकसान नहीं करती है कितना सही

सभी लोग कहते है कि अार्युवैदिक दवा नुकसान नहीं करती लेकिन इसको लेकर वैज्ञानिक तथ्य नहीं है। यह तभी कहा जा सकता है इस पर शोध हो अाज कोई वैज्ञानिक शोघ नहीं हुअा है। 

स्टेटिक्स है  नर्सिग की जनक

स्टेटिसयन ने देखा कि अस्पताल में मरने वाले की संख्या सीमा पर लड़ने वाले लोगों से सात गुना अधिक है। हम लोगों ने ब्रिटेन की महारानी को बताया कि अस्पताल में इलाज तो डाक्टर कर रहे है लेकिन देख -भाल न होने के कारण मरीजों में संक्रमण हो रहा है । सही समय पर मरीज दवाएं नहीं खा रहे है जिसके कारण मौत हो रही है। इस जानकारी के बाद मरीजों के देख भाल के लिए डाक्टरों की सहायता के लिए सहायक लगाए गए यही से नर्सिग की शुरूअात हुई।

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