पीजीआइ में इंडियन सोसाइटी फार मेडिकल स्टेस्टिक्स का अधिवेशन
दैनिक जीवन में सांख्यिकी की अहम भूमिका- राज्यपाल
जागरण संवाददाता। लखनऊ
ब्लड प्रेशर , बुखार नापने का पैमाना है लेकिन मानसिक स्थित नापने के लिए कोई पैमाना नहीं था । मानसिक स्थित नापने के लिए विशेषज्ञों ने पैमाना बनाया है ऐसे ही मानसिक बीमारी स्किज़ोफ्रेनिया बीमारी की गंभीरता और इलाज की दिशा तय करने के लिए पैमाना नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मेंटल हेल्थ( निमहांस) बंगलौर के प्रो. डीके शुभाकृष्णना की टीम ने तैयार किया है। संजय गांधी पीजीआइ में आयोजित इंडियन सोसाइटी फार मेडिकल स्टेस्टिक्स के 35 वें वार्षिक अधिवेशन में बताया कि सोशल आक्युपेशनल फंक्शन स्केल के जरिए इस बीमारी से ग्रस्त मरीजों में बताया जा सकता है कि बीमारी की गंभीरता कितनी है। इलाज घर या अस्पताल में कहां संभव है। इलाज के बाद बीमारी कितनी कम हुई। इसके लिए जो स्केल बनाया गया है वह कोई उपकरण नहीं है इसमें डाक्टर कुछ सवाल मरीज से , घर वालों से पूछते है जिसके आधार पर बीमारी की स्थित का आकलन किया जाता है। स्केल को और अधिक लोगों में वैलीडेट करने की जरूरत है। हमने इस बीमारी से ग्रस्त 25 लोग घर में इलाज लेने वाले, 25 अस्पताल में इलाज लेने वाले और 25 इलाज के बाद ठीक हो रहे है लोगों पर स्केल का इस्तेमाल कर स्थित का आकलन किया है। अधिवेशन के उद्घाटन के मुख्य अतिथि राज्यपाल श्री राम नाइक ने कहा कि बिना स्टेस्टिक्स के विज्ञान संभव नहीं है। दैनिक दिन चर्या को लय बद्ध करने में भी इसका अहम रोल है। इस मौके पर निदेशक प्रो.राकेश कपूर, संयुक्त निदेशक एवं बायो स्टेस्टेक्सि विभाग के प्रो. उत्तम सिंह , आयोजक प्रो. सीएम पाण्डेय में सांख्यिकी की शोध में भमिका पर जानकारी दी।
क्या है स्किज़ोफ्रेनिया
एक मानसिक विकार है। इस परेशानी से ग्रस्त व्यक्ति असामान्य सामाजिक व्यवहार तथा वास्तविक को पहचान पाने में असमर्थता होती है। लगभग 1% लोगो में यह विकार पाया जाता है। इस रोग में रोगी के विचार, संवेग, तथा व्यवहार में आसामान्य बदलाव आ जाते हैं जिनके कारण वह कुछ समय लिए अपनी जिम्मेदारियों तथा अपनी देखभाल करने में असमर्थ हो जाता है। स्किज़ोफ्रेनिया का शाब्दिक अर्थ है - 'मन का टूटना'।
-सिज़ोफ्रेनिया के कुछ प्रमुख लक्षण हैं,
-रोगी अकेला रहने लगता है,
-वह अपनी जिम्मेदारियों तथा जरूरतों का ध्यान नहीं रख पाता,
-रोगी अक्सर खुद ही मुस्कुराता या बुदबुदाता दिखाई देता है,
-रोगी को विभिन्न प्रकार के अनुभव हो सकते हैं जैसे की कुछ ऐसी आवाजे सुनाई देना जो अन्य लोगों को न सुनाई दें, कुछ ऐसी वस्तुएं, लोग, या आकृतियाँ -दिखाई देना जो औरों को न दिखाई दे, या शरीर पर कुछ न होते हुए भी सरसराहट, या दबाव महसूस होना, आदि,
-रोगी को ऐसा विश्वास होने लगता है कि लोग उसके बारे में बातें करते है, उसके खिलाफ हो गए हैं, या उसके खिलाफ कोई षड्यंत्र रच रहे हो,
-उसे नुकसान पहुँचाना चाहते हो, या फिर उसका भगवान् से कोई सम्बन्ध हो, आदि,
-रोगी को लग सकता है कि कोई बाहरी ताकत उसके विचारो को नियंत्रित कर रही है, या उसके विचार उसके अपने नहीं है,
-रोगी असामान्य रूप से अपने आप में हंसने, रोने, या अप्रासंगिक बातें करनें लगता है,
-रोगी अपनी देखभाल व जरूरतों को नहीं समझ पाता,
-रोगी कभी-कभी बेवजह स्वयं या किसी और को चोट भी पंहुचा सकता है,
-रोगी की नींद व अन्य शारीरिक जरूरतें भी बिगड़ सकती हैं
लोकल डाटा के जरिए बने वहां के लिए योजना
सोसाइटी के वरिष्ठ सदस्य एवं बीएचयू के पूर्व प्रो. डीसीएस रेड्डी ने कहा कि किसी भी योजना को लागू करने से पहले जहां योजना लागू करनी वहां की स्थित के बारे में डाटा का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए लोकल स्टडी की जरूरत है। कहा कि आयोडीन की कमी हर जगह नहीं है लेकिन आयोडीन नमक पूरे देश को खिलाया जा रहा है। इस लिए जहां पर कमी है वहां पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इसी तरह फ्लोरोसिस की परेशानी कुछ खास जगहों पर वहां पर योजना लागू करने की जरूरत है लेकिन देखा जा रहा है कि नेशनल डाटा के आधार पर पूरे देश में योजना लागू कर दी जाती है।
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